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वास्तविक संख्याएँ 1ण्1 भूमिका कक्षा 9 में, आपने वास्तविक संख्याओं की खोज प्रारंभ की और इस प्रिया से आपको अपरिमेय संख्याओं को जानने का अवसर मिला। इस अध्याय में, हम वास्तविक संख्याओं के बारे में अपनी चचार् जारी रखेंगे। यह चचार् हम अनुच्छेद 1.2 तथा 1.3 में ध्नात्मक पूणा±कों के दो अति महत्वपूणर् गुणों से प्रारंभ करेंगे। ये गुण हैंः यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म ;कलन विध्िद्ध ;म्नबसपकष्े कपअपेपवद ंसहवतपजीउद्ध और अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय ;थ्नदकंउमदजंस ज्ीमवतमउ व ि।तपजीउमजपबद्ध । जैसा कि नाम से विदित होता है, यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म पूणा±कों की विभाज्यता से किसी रूप में संबंध्ित है। साधरण भाषा में कहा जाए, तो एल्गोरिथ्म के अनुसार, एक ध्नात्मक पूणा±क ं को किसी अन्य ध्नात्मक पूणा±क इ से इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है कि शेषपफल त प्राप्त हो, जोइ से छोटा ;कमद्ध है। आप में से अध्िकतर लोग शायद इसे सामान्य लंबी विभाजन प्रिया ;सवदह कपअपेपवद चतवबमेेद्ध के रूप में जानते हैं। यद्यपि यह परिणाम कहने और समझने में बहुत सरल है, परंतु पूणा±कों की विभाज्यता के गुणों से संबंिात इसके अनेक अनुप्रयोग हैं। हम इनमें से वुफछ पर प्रकाश डालेंगे तथा मुख्यतः इसका प्रयोगदो ध्नात्मक पूणा±कों के महत्तम समापवतर्क ;भ्ब्थ्द्ध परिकलित करने में करेंगे। दूसरी ओर, अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय का संबंध् ध्नात्मक पूणा±कों के गुणन से है। आप पहले से ही जानते हैं कि प्रत्येक भाज्य संख्या ;ब्वउचवेपजम दनउइमतद्ध को एक अद्वितीय रूप से अभाज्य संख्याओं ;चतपउम दनउइमतेद्ध के गुणनपफल के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। यही महत्वपूणर् तथ्य अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय है। पुनः, यह परिणाम कहने और समझने में बहुत सरल है, परंतु इसके गण्िात के क्षेत्रा में बहुत व्यापक और साथर्क अनुप्रयोग हैं। यहाँ, हम अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय के दो मुख्य अनुप्रयोग देखेंगे। एक तो हम इसका प्रयोग कक्षा प्ग् में अध्ययन की गइर् वुफछ संख्याओं, जैसे 2ए 3 और आदि की अपरिमेयता सि( करने में करेंगे। दूसरे, हम इसका प्रयोग यह खोजने में करेंगे कि च किसी परिमेय संख्या, मान लीजिए ु ;ु ≠ 0द्ध ए का दशमलव प्रसार कब सांत ;जमतउपदंजपदहद्ध होता है तथा कब असांत आवतीर् ;दवद.जमतउपदंजपदह तमचमंजपदहद्ध होता है। ऐसा हम ुच के हर ु के अभाज्य गुणनखंडन को देखकर ज्ञात करते हैं। आप देखेंगे कि ु के अभाज्य गुणनखंडन से ुच के दशमलव प्रसार की प्रवृफति का पूणर्तया पता लग जाएगा। अतः, आइए अपनी खोज प्रारंभ करें। 1ण्2 यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका निम्नलिख्िात लोक पहेली’ पर विचार कीजिएः एक विव्रेफता सड़क पर चलते हुए अंडे बेच रहा था। एक आलसी व्यक्ित, जिसके पास कोइर् काम नहीं था, ने उस विव्रेफता से वाव्फ - यु( प्रारंभ कर दिया। इससे बात आगे बढ़ गइर् और उसने अंडों की टोकरी को छीन कर सड़क पर गिरा दिया। अंडे टूट गए। विवे्रफता ने पंचायत से कहा कि उस व्यक्ित से टूटे हुए अंडों का मूल्य देने को कहे। पंचायत ने विवे्रफतासे पूछा कि कितने अंडे टूटे थे। उसने निम्नलिख्िात उत्तर दियाः दो - दो गिनने पर एक बचेगाऋ तीन - तीन गिनने पर दो बचेंगेऋ चार - चार गिनने पर तीन बचेंगेऋ पाँच - पाँच गिनने पर चार बचेंगेऋ छः - छः गिनने पर पाँच बचेंगेऋ सात - सात गिनने पर वुफछ नहीं बचेगाऋ मेरी टोकरी मंे 150 से अध्िक अंडे नहीं आ सकते। अतः, कितने अंडे थे? आइए इस पहेली को हल करने का प्रयत्न करें। मान लीजिए अंडों की संख्या ं है। तब उल्टे क्रम से कायर् करते हुए, हम देखते हैं कि ं संख्या 150 से छोटी है या उसके बराबर है। यदि सात - सात गिनें, तो वुफछ नहीं बचेगा। यहं त्र 7च ़ 0 के रूप में परिव£तत हो जाता है, जहाँ च कोइर् प्रावृफत संख्या है। ’ यह ‘न्यूमेरेसी काउंट्स’ ;लेखकगण ए. रामपाल और अन्यद्ध में दी पहेली का एक परिव£तत रूप है। यदि छः - छः गिनें, तो 5 बचेंगे। यहं त्र 6ु ़ 5 के रूप में परिव£तत हो जाता है, जहाँ ु कोइर् प्रावृफत संख्या है। पाँच - पाँच गिनने पर, 4 बचेंगे। यह ं त्र 5े ़ 4 में परिव£तत हो जाता है, जहाँ े कोइर् प्रावृफत संख्या है। चार - चार गिनने पर, 3 बचेंगे। यह ं त्र 4ज ़ 3ए में परिव£तत हो जाता है, जहाँ ज कोइर् प्रावृफत संख्या है। तीन - तीन गिनने पर 2 बचेंगे। यह ं त्र 3न ़ 2 में परिव£तत हो जाता है, जहाँ न कोइर् प्रावृफत संख्या है। फत संख्या है। अथार्त्, उपरोक्त प्रत्येक स्िथति में, हमारे पास दो ध्नात्मक पूणा±क ं और इ हैं ;लिए गए उदाहरण में इ के मान क्रमशः 7ए 6ए 5ए 4ए 3 और 2 हैंद्ध। इनमें ं को इ से भाग देने पर शेष त बचता है ;उपरोक्त में त के मान क्रमशः 0ए 5ए 4ए 3ए 2 और 1 हैंद्ध अथार्त्, त भाजक इ से छोटा है। जैसे ही हम इस प्रकार के समीकरण लिखते हैं, हम यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका ;म्नबसपकष्े कपअपेपवद समउउंद्ध का प्रयोग कर रहे हैं, जिसे प्रमेय 1.1 में दिया जा रहा है। अब अपनी पहेली पर वापस आने पर, क्या आप कोइर् बात सोच कर बता सकते हैं कि इस पहेली को वैफसे हल करेंगे? हाँ! आप 7 के ऐसे गुणजों को खोजिए जो उपरोक्त सभी प्रतिबंधें को संतुष्ट करंे। जाँच और भूल विध्ि से ;स्ब्ड का प्रयोग करकेद्ध आप ज्ञात कर सकते हैं कि अंडों की संख्या 119 थी। इस बात का अनुभव करने के लिए कि यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका क्या है, पूणा±कों के निम्नलिख्िात युग्मों पर विचार कीजिएः ;पद्ध 17ए 6 ;पपद्ध 5ए 12 ;पपपद्ध 20ए 4 जैसा कि हमने पहेली वाले उदाहरण में किया था, यहाँ भी हम प्रत्येक युग्म के लिए संबंध् लिख सकते हैं जैसा कि नीचे दशार्या गया है। ;पद्ध 17 त्र 6 × 2 ़ 5 ;17 में 6 दो बार जाता है और शेष 5 बचता हैद्ध ;पपद्ध 5 त्र 12 × 0 ़ 5 ;यह संबंध् इसलिए सही है, क्योंकि 12, 5 से बड़ा हैद्ध ;पपपद्ध 20 त्र 4 × 5 ़ 0 ;20 में 4 पाँच बार जाता है और वुफछ शेष नहीं बचताद्ध अथार्त् ध्नात्मक पूणा±कों ं और इ के प्रत्येक युग्म के लिए, हमने ऐसी पूणर् संख्याएँ ु और त ज्ञात कर चुके हैं कि ं त्र इु ़ तए 0 ≤ त ढ इ है। दा - दागिननपर, 1 बचेगा। यहं त्र 2अ ़ 1ए में परिव£तत हो जाता है जहाँअ कोइर् पावेेे ्र ृ ध्यान दीजिए कि ु या त शून्य भी हो सकते हैं। अब आप ध्नात्मक पूणा±कों ं और इ के निम्नलिख्िात युग्मों के लिए पूणा±क ु और त ज्ञात करने का प्रयत्न कीजिएः ;पद्ध 10ए 3 ;पपद्ध 4ए 19 ;पपपद्ध 81ए 3 क्या आप ध्यान दे रहे हैं कि ु और त अद्वितीय हैं? ये ही केवल ऐसे पूणा±क हैं, जो प्रतिबंधें ं त्र इु ़ तए 0 ≤ त ढ इ को संतुष्ट करते हैं। आपने यह भी समझ लिया होगा कि यह लंबी विभाजन प्रिया के अतिरिक्त वुफछ भी नहीं है, जिसे आप इतने वषो± तक करते चले आए हैं तथा ु और त को क्रमशः भागपफल;ुनवजपमदजद्ध और शेषपफल;तमउंपदकमतद्ध कहा जाता है।ण् इस परिणाम का औपचारिक कथन निम्नलिख्िात हैः प्रमेय 1ण्1 ;यूक्िलड विभाजन प्रमेयिकाद्ध रू दो ध्नात्मक पूणा±क ं और इ दिए रहने पर, ऐसी अद्वितीय पूणर् संख्याएँ ु और त विद्यमान हैं कि ं त्र इु ़ तए 0 ≤ त ढ इ है। इस परिणाम की जानकारी संभवतः बहुत पहले समय से थी, परंतु लिख्िात रूप में इसका सवर्प्रथम उल्लेख यूक्िलड एलीमेंट्स ;म्नबसपकश्े म्समउमदजेद्ध की पुस्तक टप्प् में किया गया। यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म ;कलन विध्िद्ध इसी प्रमेयिका ;स्मउउंद्ध पर आधरित है। एल्गोरिथ्म सुपरिभाष्िात चरणों की एक शृंखला होती है, जो एक विशेष प्रकार की समस्या को हल करने की एक प्रिया या विध्ि प्रदान करती है। शब्द ‘एल्गोरिथम’ 9वीं शताब्दी के एक पफारसी गण्िातज्ञ अल - ख्वारिजमी के नाम से लिया गया है।़वास्तव में, शब्द ‘एलजबरा’ ;।सहमइतंद्ध भी इन्हीं की लिख्िात पुस्तक ‘हिसाब अल - ज़् ाबर वा अल मुकाबला’ से लिया गया है। मुहम्मद इब्न मूसा अल - ख्वारिज़्ामी प्रमेयिकाएक सि( किया हुआ कथन होता है ;780 दृ 850 इर्.द्ध और इसे एक अन्य कथन को सि( करने में प्रयोग करते हैं। यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म दो ध्नात्मक पूणा±कों का भ्ब्थ् परिकलित करने की एक तकनीक है। आपको याद होगा कि दो ध्नात्मक पूणा±कों ं और इ का भ्ब्थ् वह सबसे बड़ा पूणा±क क है, जो ं और इ दोनों को ;पूणर्तयाद्ध विभाजित करता है। आइए सबसे पहले एक उदाहरण लेकर देखें कि यह एल्गोरिथ्म किस प्रकार कायर् करता है। मान लीजिए हमें पूणा±कों 455 और 42 का भ्ब्थ् ज्ञात करना है। हम बड़े पूणा±क 455 से प्रारंभ करते हैं। तब यूक्िलड प्रमेयिका से, हमें प्राप्त होता हैः 455 त्र 42 × 10 ़ 35 अब भाजक 42 और शेषपफल 35 लेकर, यूक्िलड प्रमेयिका का प्रयोग करने पर, हमें प्राप्त होता हैः 42त्र 35 × 1 ़ 7 अब, भाजक 35 और शेषपफल 7 लेकर, यूक्िलड प्रमेयिका का प्रयोग करने पर, हमें प्राप्त होता हैः 35त्र 7 × 5 ़ 0 ध्यान दीजिए कि यहाँ शेषपफल शून्य आ गया है तथा हम आगे वुफछ नहीं कर सकते। हम कहते हैं कि इस स्िथति वाला भाजक, अथार्त् 7 ही 455 और 42 का भ्ब्थ् है। आप इसकी सत्यता की जाँच 455 और 32 के सभी गुणनखंडों को लिखकर कर सकते हैं। यह विध्ि किस कारण कायर् कर जाती है? इसका कारण यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म है, जिसके चरणों को नीचे स्पष्ट किया जा रहा हैः दो ध्नात्मक पूणा±कों, मान लीजिए ब और क ;ब झ कद्ध का भ्ब्थ् ज्ञात करने के लिए नीचे दिए हुए चरणों का अनुसरण कीजिएः चरण 1 रू ब और क के लिए यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोग कीजिए। इसलिए, हम ऐसे ु और त ज्ञात करते हैं कि ब त्र कु ़ तए 0 ≤ त ढ क हो। चरण 2 रू यदि त त्र 0 है, तो क पूणा±कों ब और क का भ्ब्थ् है। यदि त ≠ 0 है, तो क और त के लिए, यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोग कीजिए। चरण 3 रू इस प्रिया को तब तक जारी रख्िाए, जब तक शेषपफल 0 न प्राप्त हो जाए। इसी स्िथति में, प्राप्त भाजक ही वांछित भ्ब्थ् है। यह एल्गोरिथ्म इसलिए प्रभावशाली है, क्योंकि भ्ब्थ् ;बए कद्ध त्र भ्ब्थ् ;कए तद्ध होता है, जहाँ संकेत भ्ब्थ् ;बए कद्ध का अथर् है ब और क का भ्ब्थ्। उदाहरण 1 रू 4052 और 12576 का भ्ब्थ् यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म का प्रयोग करके ज्ञात कीजिए। हल रू चरण 1 रू यहाँ 12576 झ 4052 है। हम12576 और 4052 पर यूक्िलड प्रमेयिका का प्रयोग करने पर, प्राप्त करते हैंः 12576 त्र 4052 × 3 ़ 420 चरण 2 रू क्योंकि शेषपफल 420 ≠ 0 है, इसलिए हम 4052 और 420 के लिए यूक्िलडप्रमेयिका का प्रयोग करके निम्नलिख्िात प्राप्त करते हैंः 4052 त्र 420 × 9 ़ 272 चरण 3 रू हम नए भाजक 420 और नए शेषपफल 272 को लेकर यूक्िलड प्रमेयिका का प्रयोगकरके, निम्नलिख्िात प्राप्त करते हैंः 420 त्र 272 × 1 ़ 148 अब, हम नए भाजक 272 और नए शेषपफल 148 पर यूक्िलड प्रमेयिका का प्रयोग करकेप्राप्त करते हैंः 272 त्र 148 × 1 ़ 124 अब, हम नए भाजक 148 और नए शेषपफल 124 पर यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोगकरके प्राप्त करते हैंः 148 त्र 124 × 1 ़ 24 अब, हम नए भाजक 124 और नए शेषपफल 24 पर यूक्िलड प्रमेयिका लगा कर, प्राप्त करते हैंः 124 त्र 24 × 5 ़ 4 अब, हम नए भाजक 24 और नए शेषपफल 4 को लेकर यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका काप्रयोग करके, प्राप्त करते हैंः 24त्र 4 × 6 ़ 0 यहाँ शेषपफल 0 प्राप्त हो गया है। इसलिए प्रिया यहाँ समाप्त हो जाती है। चूँकि इस स्िथतिमें भाजक 4 है, इसलिए 12576 और 4052 का भ्ब्थ् 4 है। ध्यान दीजिए कि भ्ब्थ् ;24ए 4द्ध त्र भ्ब्थ् ;124ए 24द्ध त्र भ्ब्थ् ;148ए 124द्ध त्र भ्ब्थ् ;272ए 148द्ध त्र भ्ब्थ् ;420ए 272द्ध त्र भ्ब्थ् ;4052ए 420द्ध त्र भ्ब्थ् ;12576ए 4052द्ध है। यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म न केवल बड़ी संख्याओं के भ्ब्थ् परिकलित करने में उपयोगीहै, अपितु यह इसलिए भी महत्वपूणर् है कि यह उन एल्गोरिथ्मों में से एक है, जिनका वंफप्यूटर में एक प्रोग्राम के रूप में सबसे पहले प्रयोग किया गया। टिप्पणी रू 1ण् यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका और यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म परस्पर इतने अंत£नहित हंै कि लोग प्रायः यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका को ही यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म कहते हैं। 2ण् यद्यपि यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका/एल्गोरिथ्म को केवल ध्नात्मक पूणा±कों के लिए ही लिखा गया है, परंतु इसे सभी पूणा±कों ;शून्य को छोड़कर अथार्त इ ≠ 0द्ध के लिए लागू किया जा सकता है। यद्यपि, हम यहाँ इस तथ्य पर विचार नहीं करेंगे। यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका/एल्गोरिथ्म के संख्याओं के गुणों से संबंध्ित अनेक अनुप्रयोग हैं। हम इन अनुप्रयोगों के वुफछ उदाहरण नीचे दे रहे हैंः उदाहरण 2 रू दशार्इए कि प्रत्येक ध्नात्मक सम पूणा±क 2ु के रूप का होता है तथा प्रत्येक ध्नात्मक विषम पूणा±क 2ु ़ 1 के रूप का होता है, जहाँ ु कोइर् पूणा±क है। हलरू मान लीजिए ं कोइर् ध्नात्मक पूणा±क है तथा इ त्र 2 है। तब यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म से, किसी पूणा±क ु ≥ 0 के लिए ं त्र 2ु ़ त है जहाँ त त्र 0 है या त त्र 1 है, क्योंकि 0 ≤ त ढ 2 है। इसलिए, ं त्र 2ु या ं त्र 2ु ़ 1 है। यदि ं त्र 2ु है तो यह एक सम पूणा±क है। साथ ही, एक ध्नात्मक पूणा±क या तो सम हो सकता है या विषम। इसलिए कोइर् भी ध्नात्मक विषम पूणा±क 2ु ़ 1 के रूप का होगा। उदाहरण 3 रू दशार्इए कि एक ध्नात्मक विषम पूणा±क 4ु ़ 1 या 4ु ़ 3 के रूप का होता है, जहाँ ु एक पूणा±क है। हल रू आइए एक ध्नात्मक विषम पूणा±क ं लेकर, प्रश्न को हल करना प्रारंभ करें। हम ं और इ त्र 4 में विभाजन एल्गोरिथ्म का प्रयोग करते हैं। चँूकि 0 ≤ त ढ 4 है, इसलिए संभावित शेषपफल 0ए 1ए 2 और 3 हैं। अथार्त् ं संख्याओं 4ुए 4ु ़ 1ए 4ु ़ 2 या 4ु ़ 3 के रूप का हो सकता है जहाँ ु भागपफल है। चूँकि ं एक विषम पूणा±क है, इसलिए यह 4ु और 4ु ़ 2 के रूप का नहीं हो सकता ;क्योंकि दोनों 2 से विभाज्य हैंद्ध। इसलिए, कोइर् भी ध्नात्मक विषम पूणा±क 4ु ़ 1 या 4ु ़ 3 के रूप का होगा। उदाहरण 4 रू एक मिठाइर् विव्रेफता के पास 420 काजू की ब£पफयाँ और 130 बादाम की ब£पफयाँ हैं। वह इनकी ऐसी ढेरियाँ बनाना चाहती है कि प्रत्येक ढेरी में ब£पफयों की संख्या समान रहे तथा ये ढेरियाँ बपफीर् की परात में न्यूनतम स्थान घेरें। इस काम के लिए, प्रत्येक ढेरी में कितनी ब£पफयाँ रखी जा सकती हैं? हल रू यह कायर् जाँच और भूल विध्ि से किया जा सकता है। परंतु इसे एक क्रमब( रूप से करने के लिए हम भ्ब्थ् ;420, 130द्ध ज्ञात करते हैं। तब, इस भ्ब्थ् से प्रत्येक ढेरी में रखी जा सकने वाली ब£पफयों की अध्िकतम संख्या प्राप्त होगी, जिससे ढेरियों की संख्या न्यूनतम होगी और परात में ये ब£पफयाँ न्यूनतम स्थान घेरेंगी। आइए, अब यूक्िलड एल्गोरिथ्म का प्रयोग करके 420 और 130 का भ्ब्थ् ज्ञात करें। 420 त्र 130 × 3 ़ 30 130 त्र 30 × 4 ़ 10 30त्र 10 × 3 ़ 0 अतः, 420 और 130 का भ्ब्थ् 10 है। इसलिए, प्रत्येक प्रकार की ब£पफयों के लिए मिठाइर् विव्रेफता दस - दस की ढेरी बना सकता है। प्रश्नावली 1ण्1 1ण् निम्नलिख्िात संख्याओं का भ्ब्थ् ज्ञात करने के लिए यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्म का प्रयोग कीजिएः ;पद्ध 135 और 225 ;पपद्ध 196 और38220 ;पपपद्ध 867 और 255 2ण् दशार्इए कि कोइर् भी ध्नात्मक विषम पूणा±क 6ु ़ 1 या 6ु ़ 3 या 6ु ़ 5 के रूप का होता है, जहाँ ु कोइर् पूणा±क है। 3ण् किसी परेड में 616 सदस्यों वाली एक सेना;आमीर्द्ध की टुकड़ी को 32 सदस्यों वाले एक आमीर् बैंड के पीछे माचर् करना है। दोनों समूहों को समान संख्या वाले स्तंभों में माचर् करना है। उन स्तंभों की अध्िकतम संख्या क्या है, जिसमें वे माचर् कर सकते हैं? 4ण् यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोग करके दशार्इए कि किसी ध्नात्मक पूणा±क का वगर्, किसी पूणा±कउ के लिए 3उ या 3उ ़ 1 के रूप का होता है। ख्संकेतः यह मान लीजिए ग कोइर् ध्नात्मक पूणा±क है। तब, यह 3ुए 3ु ़ 1 या3ु ़ 2 के रूप में लिखा जा सकता है। इनमें से प्रत्येक का वगर् कीजिए और दशार्इए कि इन वगो± को3उ या 3उ ़ 1 के रूप में लिखा जा सकता है।, 5ण् यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोग करके दशार्इए कि किसी ध्नात्मक पूणा±क का घन 9उए 9उ ़ 1 या 9उ ़ 8 के रूप का होता है। 1ण्3 अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय आप पिछली कक्षाओं में देख चुके हैं कि किसी भी प्रावृफत संख्या को उसके अभाज्य गुणनखंडों के एक गुणनपफल के रूप में लिखा जा सकता है। उदाहरणाथर्, 2 त्र 2ए 4 त्र 2 × 2ए 253 त्र 11 × 23ए इत्यादि। अब, आइए प्रावृफत संख्याओं पर एक अन्य दृष्िटकोण से विचार करने का प्रयत्न करें। अथार्त् यह देखें कि क्या अभाज्य संख्याओं को गुणा करके, एक प्रावृफत संख्या प्राप्त की जा सकती है। आइए इसकी जाँच करें। वुफछ अभाज्य संख्याओं, मान लीजिए 2ए 3ए 7ए 11 और 23 का कोइर् संग्रह लीजिए। यदि हम इन संख्याओें में से वुफछ या सभी संख्याओं को इस प्रकार गुणा करें कि इन संख्याओंकी हम जितनी बार चाहें पुनरावृिा कर सकते हैं, तो हम ध्नात्मक पूणा±कों का एक बड़ा संग्रह बना सकते हैं ;वास्तव में, अपरिमित रूप से अनेकद्ध। आइए इनमें से वुफछ की सूची बनाएँः 7 × 11 × 23 त्र 1771ए 3 × 7 × 11 × 23 त्र 5313ए 2 × 3 × 7 × 11 × 23 त्र 10626ए 23 × 3 × 73 त्र 8232ए 22 × 3 × 7 × 11 × 23 त्र 21252 इत्यादि। अब मान लीजिए कि आपके संग्रह में, सभी संभव अभाज्य संख्याएँ सम्िमलित हैं। इस संग्रह की आमाप ;ेप्रमद्ध के बारे में आप क्या अनुमान लगा सकते हैं? क्या इसमें परिमित संख्या में पूणा±क सम्िमलित हैं अथवा अपरिमित रूप से अनेक पूणा±क सम्िमलित हैं? वास्तव में, अभाज्य संख्याएँ अपरिमित रूप से अनेक हैं। इसलिए, यदि हम इन अभाज्य संख्याओं को सभी संभव प्रकारों से संयोजित करें तो हमंे सभी अभाज्य संख्याओं और अभाज्य संख्याओं के सभी संभव गुणनपफलों का एक अनंत संग्रह प्राप्त होगा। अब प्रश्न उठता है, क्या हम इस प्रकार से सभी भाज्य संख्याएँ ;बवउचवेपजम दनउइमतेद्ध प्राप्त कर सकते हैं? आप क्या सोचते हैं? क्या आप सोचते हैं कि कोइर् ऐसी भाज्य संख्या हो सकती है जो अभाज्य संख्याओं की घातों ;चवूमतेद्ध का गुणनपफल न हो? इसका उत्तर देने से पहले, आइए ध्नात्मक पूणा±कों के गुणनखंडन करें, अथार्त् अभी तक जो हमने किया है उसका उल्टा करें। हम एक गुणनखंड वृक्ष ;ंिबजवत जतममद्ध का प्रयोग करेंगे जिससे आप पूवर् परिचित हैं। आइए, एकबड़ं ी सख्या, मान लीजिए 32760, लें और उसके गुणनखंड नीचे दशार्ए अनुसार करेंः 32760 इस प्रकार, हमने32760 को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनपफल के रूप में गुणनखंडित कर लिया है, जो2 × 2 × 2 × 3 × 3 × 5 × 7 × 13 है। अथार्त् 32760 त्र 23 × 32 × 5 × 7 × 13 है, जो अभाज्य संख्याओं की घातों के रूप में हैं। आइए एक अन्य संख्या, मान लीजिए 123456789 लेकर उसके गुणनखंड लिखें। इसे32 × 3803 × 3607 के रूप में लिखा जा सकता है। निस्संदेह, आपको इसकी जाँच करनी होगी कि 3803 और 3607 अभाज्य संख्याएँ हैं। ;ऐसा ही अनेक अन्य प्रावृफत संख्याएँ लेकर स्वयं करने का प्रयत्न करें।द्ध इससे हमें यह अनुमान या वंफजेक्चर ;बवदरमबजनतमद्ध प्राप्त होता है कि प्रत्येक भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं की घातों के गुणनपफल के रूप में लिखा जा सकता है। वास्तव में, यह कथन सत्य है तथा पूणा±कों के अध्ययन में यह मूलरूप से एक अति महत्वपूणर् स्थान रखता है। इसी कारण यह कथन अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय ;थ्नदकंउमदजंस ज्ीमवतमउ व ि।तपजीउमजपबद्ध कहलाता है। आइए इस प्रमेय को औपचारिक रूप से व्यक्त करें। प्रमेय 1ण्2 ;अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेयद्ध रू प्रत्येक भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनपफल के रूप में व्यक्त ;गुणनखंडितद्ध किया जा सकता है तथा यह गुणनखंडन अभाज्य गुणनखंडों के आने वाले क्रम के बिना अद्वितीय होता है। अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय के रूप में विख्यात होने से पहले, प्रमेय 1.2 का संभवतया सवर्प्रथम वणर्न यूक्िलड के एलीमेंट्स की पुस्तक प्ग् में साध्य ;चतवचवेपजपवदद्ध 14 के रूप में हुआ था। परंतु इसकी सबसे पहले सही उपपिा कालर् प्रैफडिªक गाॅस ;ब्ंतस थ्तपमकतपबी ळंनेेद्ध ने अपनी वृफति डिसक्वीशंस अरिथ्िामेटिकी ;क्पेुनपेपजपवदे ।तपजीउमजपबंमद्ध में दी। कालर् प्रैफडिªक गाॅस को प्रायः ‘गण्िातज्ञों का राजवुफमार’ कहा जाता है तथा उनका नाम सभी समयकालों के तीन महानतम गण्िातज्ञों में लिया जाता है, जिनमें आ£कमिडीज़;।तबीपउमकमेद्ध कालर् प्रैफडिªक गाॅसऔर न्यूटन ;छमूजवदद्ध भी सम्िमलित हैं। उनका गण्िात और ;1777 दृ 1855द्ध विज्ञान दोनों में मौलिक योगदान है। अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय कहती है कि प्रत्येक भाज्य संख्या अभाज्य संख्याओं के एक गुणनपफल के रूप में गुणनखंडित की जा सकती है। वास्तव में, यह और भी वुफछ कहती है। यह कहती है कि एक दी हुइर् भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनपफल के रूप में, बिना यह ध्यान दिए कि अभाज्य संख्याएँ किस क्रम में आ रही हैं, एक अद्वितीय प्रकार ;न्दपुनम ूंलद्ध से गुणनखंडित किया जा सकता है। अथार्त् यदि कोइर् भाज्य संख्या दी हुइर् है, तो उसे अभाज्य संख्याओं के गुणनपफल के रूप में लिखने की केवल एक ही विध्ि है, जब तक कि हम अभाज्य संख्याओं के आने वाले क्रम पर कोइर् विचार नहीं करते। इसलिए, उदाहरणाथर्, हम 2 × 3 × 5 × 7 को वही मानते हैं जो 3 × 5 × 7 × 2ए को माना जाता है। इसी प्रकार, इन्हीं अभाज्य संख्याओं के गुणनपफल के किसी अन्य क्रम को भी हम 2 × 3 × 5 × 7 जैसा ही मानेंगे। इस तथ्य को निम्नलिख्िात रूप में भी व्यक्त किया जाता हैः एक प्रावृफत संख्या का अभाज्य गुणनखंडन, उसके गुणनखंडों के क्रम को छोड़ते हुए अद्वितीय होता है। व्यापक रूप में, जब हमें एक भाज्य संख्या ग दी हुइर् हो, तो हम उसे ग त्र चच2 ण्ण्ण् चए 1द के रूप में गुणनखंडित करते हैं, जहाँ च1ए च2एण्ण्ण्ए चइत्यादि आरोही क्रम में लिखी अभाज्य द संख्याएँ हैं। अथार्त् च≤ च≤ ण् ण् ण् ≤ चहै। यदि हम समान अभाज्य संख्याओं को एक साथ 12 द ;मिलाद्ध लें, तो हमें अभाज्य संख्याओं की घातें ;चवूमतेद्ध प्राप्त हो जाती हैं। उदाहरणाथर्, 32760 त्र 2 × 2 × 2 × 3 × 3 × 5 × 7 × 13 त्र 23 × 32 × 5 × 7 × 13 एक बार यह निणर्य लेने के बाद कि गुणनखंडों का क्रम आरोही होगा तो दी हुइर् संख्या के अभाज्य गुणनखंड अद्वितीय होंगे। अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय के गण्िात तथा अन्य क्षेत्रों में भी अनेक अनुप्रयोग हैं। आइए इनके वुफछ उदाहरण को देखें। उदाहरण 5 रू संख्याओं 4द पर विचार कीजिए, जहाँ द एक प्रावृफत संख्या है। जाँच कीजिए कि क्या द का कोइर् ऐसा मान है, जिसके लिए 4द अंक शून्य ;0द्ध पर समाप्त होता है। हलरू यदि किसी द के लिए, संख्या 4द शून्य पर समाप्त होगी तो वह 5 से विभाज्य होगी। अथार्त् 4द के अभाज्य गुणनखंडन में अभाज्य संख्या 5 आनी चाहिए। यह संभव नहीं है क्योंकि 4द त्र ;2द्ध2द है। इसी कारण, 4द के गुणनखंडन में केवल अभाज्य संख्या 2 ही आ सकती है। अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय की अद्वितीयता हमें यह निश्िचत कराती है कि 4द के गुणनखंडन में 2 के अतिरिक्त और कोइर् अभाज्य गुणनखंड नहीं है। इसलिए ऐसी कोइर् संख्या द नहीं है, जिसके लिए 4द अंक 0 पर समाप्त होगी। आप पिछली कक्षाओं में, यह पढ़ चुके हैं कि दो ध्नात्मक पूणा±कों के भ्ब्थ् और स्ब्ड अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय का प्रयोग करके किस प्रकार ज्ञात किए जाते हैं। ऐसा करते समय, इस प्रमेय के नाम का उल्लेख नहीं किया गया था। इस विध्ि को अभाज्य गुणनखंडन विध्ि ;चतपउम ंिबजवतपेंजपवद उमजीवकद्ध भी कहते हैं। आइए, एक उदाहरण की सहायता से इस विध्ि को पुनः याद करें। उदाहरण6 रू संख्याओं6 और 20 के अभाज्य गुणनखंडन विध्ि से भ्ब्थ् और स्ब्ड ज्ञात कीजिए। हलरू यहाँ 6 त्र 21 × 31 और 20 त्र 2 × 2 × 5 त्र 22 × 51 है। जैसाकि आप पिछली कक्षाओं में कर चुके हैं, आप भ्ब्थ् ;6ए 20द्ध त्र 2 तथा स्ब्ड ;6ए 20द्ध त्र 2 × 2 × 3 × 5 त्र 60ए ज्ञात कर सकते हैं। ध्यान दीजिए कि भ्ब्थ् ;6ए 20द्ध त्र 21 त्र संख्याओं में प्रत्येक उभयनिष्ठ अभाज्य गुणनखंड की सबसे छोटी घात का गुणनपफल तथा स्ब्ड ;6ए 20द्ध त्र 22 × 31 × 51 त्र संख्याओं में संब( प्रत्येक अभाज्य गुणनखंड की सबसे बड़ी घात का गुणनपफल उपरोक्त उदाहरण से आपने यह देख लिया होगा कि भ्ब्थ् ;6ए 20द्ध × स्ब्ड ;6ए 20द्ध त्र 6 × 20 है। वास्तव में, अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय का प्रयोग करके हम इसकी जाँच कर सकते हैं कि किन्हीं दो ध्नात्मक पूणा±कों ं और इ के लिए, भ्ब्थ् ;ंए इद्ध × स्ब्ड ;ंए इद्ध त्र ं × इ होता है। इस परिणाम का प्रयोग करके, हम दो ध्नात्मक पूणा±कों का स्ब्ड ज्ञात कर सकते हैं, यदि हमने उनका भ्ब्थ् पहले ही ज्ञात कर लिया है। उदाहरण 7 रू अभाज्य गुणनखंडन विध्ि द्वारा 96 और 404 का भ्ब्थ् ज्ञात कीजिए और पिफर इनका स्ब्ड ज्ञात कीजिए। हल रू 96 और 404 के अभाज्य गुणनखंडन से हमें प्राप्त होता है कि 96 त्र 25 × 3ए 404 त्र 22 × 101 इसलिए, इन दोनों पूणा±कों का भ्ब्थ् त्र 22 त्र 4 96 × 404 96 × 404 साथ ही स्ब्ड ;96ए 404द्ध त्र त्रत्र 9696 भ्ब्थ्;96ए 404द्ध 4 उदाहरण 8 रू संख्या6ए 72 और 120 का अभाज्य गुणनखंडन विध्ि द्वारा भ्ब्थ् और स्ब्ड ज्ञात कीजिए। हल रू हमें प्राप्त हैः 6 त्र 2 × 3ए 72त्र23 × 32 तथा 120 त्र 23 × 3 × 5 21 और 31 प्रत्येक उभयनिष्ठ अभाज्य गुणनखंड की सबसे छोटी घातें हैं। अतः, भ्ब्थ् ;6ए 72ए 120द्ध त्र 21 × 31 त्र 2 × 3 त्र 6 23ए 32 और 51 प्रत्येक अभाज्य गुणनखंड की सबसे बड़ी घातें हैं, जो तीनों संख्याओं से संब( हैं। अतः, स्ब्ड ;6ए 72ए 120द्ध त्र 23 × 32 × 51 त्र 360 टिप्पणीरू ध्यान दीजिए कि 6 × 72 × 120 ≠ भ्ब्थ् ;6ए 72ए 120द्ध × स्ब्ड ;6ए 72ए 120द्धए अथार्त् तीन संख्याओं का गुणनपफल उनके भ्ब्थ् और स्ब्ड के गुणनपफल के बराबर नहीं होता है। प्रश्नावली 1ण्2 1ण् निम्नलिख्िात संख्याओं वफो अभाज्य गुणनखंडों के गुणनपफल के रूप में व्यक्त कीजिएः ;पद्ध 140 ;पपद्ध 156 ;पपपद्ध 3825 ;पअद्ध 5005 ;अद्ध 7429 2ण् पूणा±कांे के निम्नलिख्िात युग्मों के भ्ब्थ् और स्ब्ड ज्ञात कीजिए तथा इसकी जाँच कीजिए कि दो संख्याओं का गुणनपफलत्र भ्ब्थ् × स्ब्ड है। ;पद्ध 26और 91 ;पपद्ध 510 और 92 ;पपपद्ध 336 और 54 3ण् अभाज्य गुणनखंडन विध्ि द्वारा निम्नलिख्िात पूणा±कों के भ्ब्थ् और स्ब्ड ज्ञात कीजिएः ;पद्ध 12ए 15और 21 ;पपद्ध 17ए 23 और 29 ;पपपद्ध 8ए 9 और 25 4ण् भ्ब्थ् ;306, 657द्ध त्र 9 दिया है। स्ब्ड ;306, 657द्ध ज्ञात कीजिए। 5ण् जाँच कीजिए कि क्या किसी प्रावृफत संख्या द के लिए, संख्या 6द अंक 0 पर समाप्त हो सकती है। 6ण् व्याख्या कीजिए कि 7 × 11 × 13 ़ 13 और 7 × 6 × 5 × 4 × 3 × 2 × 1 ़ 5 भाज्य संख्याएँ क्यों हैं। 7ण् किसी खेल के मैदान के चारों ओर एक वृत्ताकार पथ है। इस मैदान का एक चक्कर लगाने में सोनिया को 18 मिनट लगते हैं, जबकि इसी मैदान का एक चक्कर लगाने में रवि को 12 मिनट लगते हैं। मान लीजिए वे दोनों एक ही स्थान और एक ही समय पर चलना प्रारंभ करके एक ही दिशा में चलते हैं। कितने समय बाद वे पुनः प्रांरभ्िाक स्थान पर मिलेंगे? 1ण्4 अपरिमेय संख्याओं का पुनभर््रमण कक्षा प्ग् में, आपको अपरिमेय संख्याओं एवं उनके अनेक गुणों से परिचित कराया गया था। आपने इनके अस्ितत्व के बारे में अध्ययन किया तथा यह देखा कि किस प्रकार परिमेय और अपरिमेय संख्याएँ मिलकर वास्तविक संख्याएँ ;तमंस दनउइमतेद्ध बनाती हैं। आपने यह भी सीखा था कि संख्या रेखा पर किस प्रकार अपरिमित संख्याओं के स्थान निधर्रित करते हैं। तथापि हमने यह सि( नहीं किया था कि ये संख्याएँ अपरिमेय ;पततंजपवदंसेद्ध हैं। इस अनुच्छेद में, हम यह सि( करेंगे कि 2ए 3ए 5 तथा, व्यापक रूप में, च अपरिमेय संख्याएँ हैं, जहाँ च एक अभाज्य संख्या है। अपनी उपपिा में, हम जिन प्रमेयों का प्रयोग करेंगे उनमें से एक है अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय। याद कीजिए कि एक, संख्या ष्ेष् अपरिमेय संख्या कहलाती है, यदि उसे च के रूप ु में नहीं लिखा जा सकता हो, जहाँ च और ु पूणा±क हैं और ु ≠ 0 है। अपरिमेय संख्याओं केवुफछ उदाहरण, जिनसे आप परिचित हैं, निम्नलिख्िात हैंः 2 2ए 3ए 15ए ए π− ए 0ण्10110111011110ण्ण्ण् ए इत्यादि।3 इससे पहले कि हम 2 को अपरिमेय संख्या सि( करें, हमें निम्नलिख्िात प्रमेय की आवश्यकता पड़ेगी, जिसकी उपपिा अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय पर आधरित है। प्रमेय 1ण्3 रू मान लीजिए च एक अभाज्य संख्या है। यदि चए ं2 को विभाजित करती है, तो चए ं को भी विभाजित करेगी, जहाँ ं एक ध्नात्मक पूणा±क है। ’उपपिा रू मान लीजिए ं के अभाज्य गुणनखंडन निम्नलिख्िात रूप के हैंः ं त्र चच ण् ण् ण् च 12द जहाँ च1एच2ए ण् ण् ण् च अभाज्य संख्याएँ हैं, परंतु आवश्यक रूप से भ्िान्न - भ्िान्न नहीं हैं। द अतः, ं2 त्र ;चच ण् ण् ण् चद्ध ; चच ण् ण् ण् चद्ध त्र च2 च2 ण् ण् ण् च2 12द12द 12द अब, हमें दिया है कि चए ं2 को विभाजित करती है। इसलिए, अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय के अनुसारऋ च एं2 का एक अभाज्य गुणनखंड है। परंतु अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेय की अद्वितीयता के गुण का प्रयोग करने पर, हम पाएँगे कि ं2 के अभाज्य गुणनखंड केवल च1ए च2ए ण् ण् ण्ए चहैं। इसलिए च को च1ए च2ए ण् ण् ण्ए चमें से ही एक होना चाहिए। द द अब, चूँकि ं त्र चच ण् ण् ण् चहै, इसलिए चए ं को विभाजित अवश्य करेगा। „ 12द अब हम इसकी उपपिा दे सकते हैं कि 2 एक अपरिमेय संख्या है। यह उपपिा उस तकनीक पर आधरित है जिसे ‘विरोधेक्ित द्वारा उपपिा’ ;चतवव िइल बवदजतंकपबजपवदद्ध कहते हैं ;इस तकनीक की वुफछ विस्तृत रूप से चचार् परिश्िाष्ट 1 में की गइर् हैद्ध। प्रमेय 1ण्4 रू 2 एक अपरिमेय संख्या है। उपपिा रू हम इसके विपरीत यह मान लेते हैं कि 2 एक परिमेय संख्या है। त अतः, हम दो पूणा±क त और े ऐसे ज्ञात कर सकते हैं कि 2 त्र हो तथा े ;≠ 0द्ध हो। े मान लीजिए त और े में, 1 के अतिरिक्त, कोइर् उभयनिष्ठ गुणनखंड है। तब, हम इस ’ यह परीक्षा की दृष्िट से नहीं है। वास्तविक संख्याएँ 15 उभयनिष्ठ गुणनखंड से त और े को विभाजित करके 2 त्र ं इ प्राप्त कर सकते हैं, जहाँ ं और इ सहअभाज्य ;बव.चतपउमद्ध हैं। अतः इ 2 त्र ं हुआ। दोनों पक्षों का वगर् करने तथा पुनव्यवर्स्िथत करने पर, हमें प्राप्त होता हैः 2इ2 त्र ं2 अतः 2ए ं2 को विभाजित करता है। इसलिए प्रमेय 1ण्3 द्वारा 2ए ं को विभाजित करेगा। अतः हम ं त्र 2ब लिख सकते हैं, जहाँ ब कोइर् पूणा±क हैं। ं वफा मान प्रतिस्थापित करने पर हमें 2इ2 त्र 4ब2ए अथार्त् इ2 त्र 2ब2 प्राप्त होता है। इसका अथर् है कि 2ए इ2 को विभाजित करता है और इसीलिए 2ए इ को भी विभाजित करेगा ;प्रमेय 1ण्3 द्वारा च त्र 2 लेने परद्ध। अतः ं और इ में कम से कम एक उभयनिष्ठ गुणनखंड 2 है। परंतु इससे इस तथ्य का विरोधभास प्राप्त होता है कि ं और इ में, 1 के अतिरिक्त, कोइर् उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है। यह विरोधभास हमें इस कारण प्राप्त हुआ है, क्योंकि हमने एक त्राुटिपूणर् कल्पना कर ली है कि 2 एक परिमेय संख्या है। अतः, हम निष्कषर् निकालते हैं कि 2 एक अपरिमेय संख्या है। ऽ उदाहरण 9 रू 3 एक अपरिमेय संख्या है। हल रू आइए हम इसके विपरीत यह मान लें कि 3 एक परिमेय संख्या है। ं अथार्त्, हम ऐसे दो पूणा±क ं और इ ;≠ 0द्ध प्राप्त कर सकते हैं कि 3 त्र इ है। यदि ं और इ में, 1 के अतिरिक्त कोइर् उभयनिष्ठ गुणनखंड हो, तो हम उस उभयनिष्ठ गुणनखंड से भाग देकर ं और इ को सहअभाज्य बना सकते हैं। अतः इ 3 त्र ं है। दोनों पक्षों का वगर् करने तथा पुनव्यर्वस्िथत करने पर, हमें 3इ2 त्र ं2 प्राप्त होता है। अतः ं2ए 3 से विभाजित है। इसलिए, प्रमेय 1.3 द्वारा 3ए ं को भी विभाजित करेगा। अतः हम ं त्र 3ब लिख सकते हैं, जहाँ ब एक पूणा±क है। ं के इस मान को 3इ2 त्र ं2 में प्रतिस्थापित करने पर, हमें प्राप्त होता हैः 3इ2 त्र 9ब2 अथार्त् इ2 त्र 3ब2 इसका अथर् है किइ2ए 3 से विभाजित हो जाता है। इसलिए प्रमेय 1.3 द्वारा इ भी 3 से विभाजित होगा। अतः ं और इ में कम से कम एक उभयनिष्ठ गुणनखंड 3 है। परंतु इससे इस तथ्य का विरोधभास प्राप्त होता है कि ं और इ सहअभाज्य हैं। हमें यह विरोधभास अपनी त्राुटिपूणर् कल्पना के कारण प्राप्त हुआ है कि 3 एक परिमेय संख्या है। अतः हम निष्कषर् निकालते हैं कि 3 एक अपरिमेय संख्या है। कक्षा प्ग् में हमने बताया था किः ऽ एक परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का योग या अंतर एक अपरिमेय संख्या होती है तथा ऽ एक शून्येतर परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का गुणनपफल या भागपफल एक अपरिमेय संख्या होती है। यहाँ, हम उपरोक्त की वुफछ विश्िाष्ट स्िथतियाँ सि( करेंगे। उदाहरण 10 रू दशार्इए कि 5दृ 3 एक अपरिमेय संख्या है। हल रू आइए इसके विपरीत मान लें कि 5दृ 3 एक परिमेय संख्या है। ं अथार्त् हम सहअभाज्य ऐसी संख्याएँं और इ ;इ ≠ 0द्ध ज्ञात कर सकते हैं कि 5 − 3 त्र हो। इ ं अतः 5 −त्र 3 है। इ इस समीकरण को पुनव्यर्वस्िथत करने पर हमें प्राप्त होता हैः 35दृ ं त्र इ चूँकि ं और इ पूणा±क हैं, इसलिए 5दृ ं एक परिमेय संख्या है अथार्त् 3 एक परिमेय संख्या है। इ परंतु इससे इस तथ्य का विरोधभास प्राप्त होता है कि 3 एक अपरिमेय संख्या है। हमें यह विरोधभास अपनी गलत कल्पना के कारण प्राप्त हुआ है कि 5 दृ 3 एक परिमेय संख्या है। अतः, हम निष्कषर् निकालते हैं कि 5 − 3 एक अपरिमेय संख्या है। उदाहरण 11 रू दशार्इए कि 32 एक अपरिमेय संख्या है। हल रू आइए इसके विपरीत मान लें कि 32 एक परिमेय संख्या है। ं अथार्त् हम ऐसी सहअभाज्य संख्याएँ ं और इ ;इ ≠ 0द्ध ज्ञात कर सकते हैं कि 32 त्र हो। इ ं पुनव्यर्वस्िथत करने पर, हमें 2 त्र प्राप्त होगा। 3इ ं चूँकि 3ए ं और इ पूणा±क हैं, इसलिए 3इ एक परिमेय संख्या होगी। इसलिए 2 भी एक परिमेय संख्या होगी। परंतु इससे इस तथ्य का विरोधभास प्राप्त होता है कि 2 एक अपरिमेय संख्या है। अतः, हम यह निष्कषर् निकालते हैं कि 32 एक अपरिमेय संख्या है। प्रश्नावली 1ण्3 1ण् सि( कीजिए कि 5 एक अपरिमेय संख्या है। 2ण् सि( कीजिए कि 32 5 एक अपरिमेय संख्या है। ़ 3ण् सि( कीजिए कि निम्नलिख्िात संख्याएँ अपरिमेय हैंः 1 ;पद्ध ;पपद्ध 75 ;पपपद्ध 6 ़ 2 2 1ण्5 परिमेय संख्याओं और उनके दशमलव प्रसारों का पुनभ्रर्मण कक्षा प्ग् में, आपने यह पढ़ा है कि परिमेय संख्याओं के या तो सांत दशमलव प्रसार;जमतउपदंजपदह कमबपउंस मगचंदेपवदेद्ध होते हैं या पिफर असांत आवतीर् ;दवद.जमतउपदंजपदह तमचमंजपदहद्ध दशमलव प्रसार होते हैं। इस अनुच्छेद में हम एक परिमेय संख्या, मान लीजिए च ु ;ु ≠ 0द्ध ए पर विचार करेंगे तथा यथाथर् रूप से इसकी खोज करेंगे कि ुच का दशमलव प्रसार कब सांत होगा और कब असांत आवतीर् होगा। हम ऐसा वुफछ उदाहरणों द्वारा करंेगे। आइए निम्नलिख्िात परिमेय संख्याओं पर विचार करेंः ;पद्ध 0ण्375 ;पपद्ध 0ण्104 ;पपपद्ध 0ण्0875 ;पअद्ध 23ण्3408 375 375 104 104 अब ;पद्ध 0ण्375 त्रत्र ;पपद्ध 0ण्104 त्रत्र 1000 10 3 1000 10 3 875 875 233408 233408 ;पपपद्ध 0ण्0875 त्रत्र 4 ;पअद्ध 23ण्3408 त्रत्र 410000 10 10000 10 जैसा कि कोइर् आशा करेगा, इन सभी को ऐसी परिमेय संख्याओं के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जिनका हर 10 की कोइर् घात होगा। आइए अंश और हर में उभयनिष्ठ गुणनखंड को काट कर, यह देखने का प्रयत्न करें कि हमें क्या प्राप्त होता है। 375 3 ×53 3 104 13 ×23 13 ;पद्ध 0ण्375 त्रत्र त्र ;पपद्ध 0ण्104 त्रत्र त्र 3 333 3 333 10 2 ×52 102 ×55 875 7 233408 22 ××521 7 ;पपपद्ध 0ण्0875 त्रत्र ;पअद्ध 23ण्3408 त्रत्र 44 44 10 2 ×5 105 क्या आप यहाँ कोइर् प्रतिरूप देख रहे हैं? ऐसा प्रतीत होता है कि हमने उस वास्तविक संख्या को जिसका दशमलव प्रसार एक सांत दशमलव है, एक ुच के रूप की परिमेय संख्या में बदल लिया है, जहाँ च और ु सहअभाज्य हैं तथा हर ;अथार्त् ुद्ध में केवल 2 की घातें या 5 की घातें या दोनों की घातें हैं। हमें हर इसी प्रकार का दिखना चाहिए, क्योंकि 10 की घातों में केवल 2 और 5 की घातें ही गुणनखंड के रूप में होंगी। यद्यपि हमने वुफछ कम ही उदाहरण हल करके देखे हैं, पिफर भी आप देख सकते हैं कि कोइर् भी वास्तविक संख्या, जिसका दशमलव प्रसार सांत है, एक ऐसी परिमेय संख्या के रूप में व्यक्त की जा सकती है जिसका हर 10 की कोइर् घात है। साथ ही 10 के अभाज्य गुणनखंड केवल 2 और 5 ही हैं। अतः अंश और हर में से उभयनिष्ठ गुणनखंडों को काटकर, हम ज्ञात करते हैं कि यह वास्तविक संख्या ुच के रूप की एक ऐसी परिमेय संख्या है, जहाँ ु का अभाज्य गुणनखंडन 2द5उ के रूप का है तथाद और उ कोइर् )णेतर ;दवद.दमहंजपअमद्ध पूणा±क हैं। आइए अपने परिणाम को औपचारिक रूप से लिखेंः प्रमेय 1ण्5 रू मान लीजिए ग एक ऐसी परिमेय संख्या है जिसका दशमलव प्रसार सांत है। तब ग को ुच के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जहाँ च और ु सहअभाज्य हैं तथा ु का अभाज्य गुणनखंडन 2द5उ के रूप का है, जहाँ दए उ कोइर् )णेतर पूणा±क हैं। वास्तविक संख्याएँ आप संभवतः आश्चयर् कर रहे होंगे कि प्रमेय 1ण्5 का विलोम क्या होगा? अथार्त् यदि हमारे पास कोइर् परिमेय संख्या ुच के रूप की है तथा ु का अभाज्य गुणनखंडन 2द5उ के रूप का है, जहाँ द और उ )णेतर पूणा±क हैं, तो क्या च का दशमलव प्रसार सांत होगा? ु आइए अब देखें कि क्या उपरोक्त कथन के सत्य होने के कोइर् स्पष्ट कारण हैं। आप ं निश्चय ही इस बात से सहमत होंगे कि इ के रूप की किसी भी परिमेय संख्या, जहाँ इए 10 की कोइर् घात है, का दशमलव प्रसार सांत होगा। अतः यह अथर्पूणर् प्रतीत होता है कि ुच ं के रूप की परिमेय संख्या, जहाँ ुए 2द5उ के रूप का है, को इ के ऐसे तुल्य परिमेय संख्या के रूप में व्यक्त किया जाए, जहाँ इए 10 की कोइर् घात हो। आइए अपने ऊपर के उदाहरणों पर वापस लौट आएँ और विपरीत दिशा मंे कायर् करना प्रारंभ करें। 33 3 ×53 375 ;पद्ध त्रत्र त्रत्र0ण्375 333 3 82 2 ×5 10 13 1313 ×23 104 ;पपद्ध त्रत्र त्रत्र0ण्104 53 3 ×53 125 2 310 7 77 ×53 875 ;पपपद्ध त्रत्र त्रत्र0ण्0875 4 444 80 2 ×52 ×5 10 14588 22 ××521 26 7 521 233408 7 ×× ;पअद्ध त्रत्र त्रत्र23ण्3408 4 444 6255 2 ×5 10 अतः, ये उदाहरण यह दशार्ते हैं कि किस प्रकार च के रूप की एक परिमेय संख्या, ुं जहाँ ुए 2द5उ के रूप का है, को के ऐसे तुल्य परिमेय संख्या में बदला जा सकता है, इ जहाँ इए 10 की कोइर् घात है। अतः इस प्रकार की परिमेय संख्या का एक सांत दशमलव प्रसार होगा। आइए अपने परिणाम को औपचारिक रूप से लिखें। प्रमेय 1ण्6 रू मान लीजिए ग त्र च एक परिमेय संख्या ऐसी है कि ुए 2द5उ के रूप का है, जहाँ ु द और उ )णेतर पूणा±क हैं। तब ग का दशमलव प्रसार सांत होता है। अब हम उन परिमेय संख्याओं की ओर बढ़ने को तैयार हैं जिनके दशमलव प्रसार असांत आवतीर् होते हैं। एक बार पिफर, हमएक उदाहरण लेकर देखते हैं कि इसमें क्या हो रहा है। हम कक्षा प्ग् की पाठ्यपुस्तक के अध्याय 1 के उदाहरण 5 को लेते हैं, जिसमें 1 का दशमलव प्रसार ज्ञात किया गया था। यहाँ शेष 7 3ए 2ए 6ए 4ए 5ए 1ए 3ए 2ए 6ए 4ए 5ए 1ए ण् ण् ण् हैं और भाजक7 है।ध्यान दीजिए कि यहाँ हर 7 स्पष्ट रूप से2द5उ के रूप का नहीं है। अतः, प्रमेयों 1.5 और 1.6 से, 1 का दशमलव प्रसार 7 सांत नहीं होगा। यहाँ 0 शेष के रूप में नहीं प्रकट होगा ;क्यों?द्धतथा एक स्िथति के बाद, शेषपफलों की पुनरावृिा प्रारंभ हो जाएगी। इसीलिए 1 के भागपफल में अंकों के एक ब्लाॅक अथार्त् 142857 7 की पुनरावृिा होगी। हमने 1 के दशमलव प्रसार मंे जो देखा है वह उन सभी परिमेय संख्याओं के लिए 7 सत्य है जो प्रमेयांे 1.5 और 1.6 के अंतगर्त नहीं आती हंै। इस प्रकार की संख्याओं के लिए हम प्राप्त करते हैंः च प्रमेय 1ण्7 रू मान लीजिए ग त्र ु एक परिमेय संख्या इस प्रकार की है कि ु का अभाज्य गुणनखंडन 2द5उ के रूप का नहीं है, जहाँ दए उ )णेतर पूणा±क हैं। तब ग का दशमलव प्रसार असांत आवतीर् होता है। उपरोक्त चचार् के आधर पर, हम यह कह सकते हैं कि किसी परिमेय संख्या कादशमलव प्रसार या तो सांत होता है या असांत आवतीर् है। प्रश्नावली 1ण्4 1ण् बिना लंबी विभाजन प्रिया किए बताइए कि निम्नलिख्िात परिमेय संख्याओं के दशमलव प्रसार सांत हैं या असांत आवतीर् हैंः 1317 64 ;पद्ध ;पपद्ध ;पपपद्ध 3125 8 455 1529 23 ;पअद्ध ;अद्ध ;अपद्ध 32 1600 343 25 129 6 3577 ;अपपद्ध 27 5 ;अपपपद्ध ;पगद्ध ;गद्ध 257 15 50 210 2ण् ऊपर दिए गए प्रश्न में उन परिमेय संख्याओं के दशमलव प्रसारों को लिख्िाए जो सांत हैं। 3ण् वुुफछ वास्तविक संख्याओं के दशमलव प्रसार नीचे दशार्ए गए हैं। प्रत्येक स्िथति के लिए निधर्रित कीजिए कि यह संख्या परिमेय संख्या है या नहीं। यदि यह परिमेय संख्या है और च ु के रूप की है तोु के अभाज्य गुणनखंडों के बारे में आप क्या कह सकते हैं? ;पद्ध 43ण्123456789 ;पपद्ध 0ण्120120012000120000ण् ण् ण् ;पपपद्ध 43ण्123456789 1ण्6 सारांश इस अध्याय में, आपने निम्नलिख्िात तथ्यों का अध्ययन किया हैः 1ण् यूक्िलड विभाजन प्रमेयिकाः दो ध्नात्मक पूणा±कं औरइ दिए रहने पर, हमं त्र इु ़ तए 0 ≤ त ढ इ को संतुष्ट करने वाली पूणर् संख्याएँ ु और त ज्ञात कर सकते हैं अथार्त् ऐसी संख्याओं का अस्ितत्व है। 2ण् यूक्िलड विभाजन एल्गोरिथ्मः यह यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका पर आधरित है। इसका प्रयोग कर दो ध्नात्मक पूणा±कों ं और इए ;ं झ इद्ध का भ्ब्थ् नीचे दशार्इर् विध्ि द्वारा प्राप्त किया जाता हैः चरण 1 रू ु और त ज्ञात करने के लिए यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोग कीजिए, जहाँ ं त्रइु ़ तए 0 ≤ त ढ इ है। चरण 2 रू यदित त्र 0 है तो भ्ब्थ् त्र इ है। यदि त ≠ 0 है तो इ और त पर यूक्िलड विभाजन प्रमेयिका का प्रयोग कीजिए। चरण 3 रू इस प्रिया को तब तक जारी रख्िाए जब तक शेषपफल शून्य न प्राप्त हो जाए। इस स्िथति वाला भाजक ही भ्ब्थ् ;ंए इद्ध है। साथ ही, भ्ब्थ् ;ंए इद्ध त्र भ्ब्थ् ;इए तद्ध 3ण् अंकगण्िात की आधरभूत प्रमेयः प्रत्येक भाज्य संख्या को अभाज्य संख्याओं के एक गुणनपफल के रूप में व्यक्त ;गुणनखंडितद्ध किया जा सकता है तथा यह गुणनखंडन अद्वितीय होता है, इस पर कोइर् ध्यान दिए बिना कि अभाज्य गुणनखंड किस क्रम में आ रहे हैं। 4ण् यदि च कोइर् अभाज्य संख्या है और चए ं2 को विभाजित करता है तो चए ं को भी विभाजित करेगा, जहाँ ं एक ध्नात्मक पूणा±क है। 5ण् उपपिा कि 3 इत्यादि अपरिमेय संख्याएँ हैं। 6ण् मान लीजिए ग एक परिमेय संख्या है जिसका दशमलव प्रसार सांत है। तब, हम ग को च के रूप में व्यक्त कर सकते हैं, जहाँ च औरु सहअभाज्य हैं तथा ु का अभाज्य गुणनखंडन 2द5ुउ के रूप का है, जहाँ दए उ )णेतर पूणा±क हैं। 7ण् मान लीजिए गत्र चएक ऐसी परिमेय संख्या है कि ुका अभाज्य गुणनखंडन 2द5उ के रूप का ु है, जहाँ दए उ)णेतर पूणा±क हैं तो गका दशमलव प्रसार सांत होगा। 8ण् मान लीजिए गत्र चएक ऐसी परिमेय संख्या है कि ुका अभाज्य गुणनखंडन2द 5उके रूप का ु नहीं है, जहाँ दए उ)णेतर पूणा±क हैं तो गका दशमलव प्रसार असांत आवतीर् होगा।

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