
अध्याय 5 चुंबकत्व एवं द्रव्य 5ण्1 भूमिका चुंबकीय परिघटना प्रकृति में सावर्भौमिक है। विशाल दूरस्थ गैलेक्िसयाँ, अतिसूक्ष्म अदृश्य परमाणु,आदमी और जानवर, सबमें भाँति - भाँति के ड्डोतों से उत्पन्न भाँति - भाँति के चुंबकीय क्षेत्रा व्याप्त हैं। भू - चुंबकत्व, मानवीय विकास से भी पूवर् से अस्ितत्व में है। ‘चुंबक’ शब्द यूनान के एक द्वीप मैग्नेश्िाया के नाम से व्युत्पन्न है, जहाँ बहुत पहले 600 इर्सा पूवर् चुंबकीय अयस्कों के भंडार मिले थे। इस द्वीप के गड़रियों ने श्िाकायत की कि उनके लकड़ी के जूते ;जिनमें कीलें लगी हुइर् थींद्ध, कइर् बार जमीन से चिपक जाते थे। लोहे की टोपी चढ़ी उनकी लाठी भी इसी प्रकार प्रभावित होती थी। चुंबकों के इस आकष्िार्त करने वाले गुण ने उनका घूमना - पिफरना दूभर बना दिया था। चुंबकों का दैश्िाक गुण भी प्राचीन काल से ज्ञात था। चुंबक का एक पतला लंबा टुकड़ा,स्वतंत्रातापूवर्क लटकाए जाने पर, हमेशा उत्तर - दक्ष्िाण दिशा के अनुदिश ठहरता था। ऐसा ही व्यवहारतब भी देखने में आता था जब इसको एक काॅवर्फ के ऊपर रख कर, उसको ठहरे हुए पानी में तैराया जाता था। प्रावृफतिक रूप से पाए जाने वाले लोहे के एक अयस्क मैग्नेटाइट का एक नाम लोडस्टोन है, जिसका अथर् है लीडिंग स्टोन अथार्त मागर्दशर्क पत्थर। इस गुण के तकनीकी उपयोग का श्रेय आमतौर पर चीनियों को दिया जाता है। 400 इर्सा पूवर् की चीनी पाठ्यपुस्तकों में नौकायन में दिशा ज्ञान के लिए चुंबकीय सुइयों के उपयोग का िाक्र है। गोबी रेगिस्तान को पार करने वाले काप्ि़ ाफले भी चुंबकीय सुइयों का उपयोग करते थे। एक चीनी आख्यान में, लगभग 4000 वषर् पुरानी, सम्राट ह्नेंग - ती की विजय गाथा है, जिसमें उसको अपने श्िाल्पकारों ;जिन्हें आज की भाषा में आप इंजीनियर कहते हैंद्ध के कारण विजय प्राप्त हुइर् थी। इन ‘इंजीनियरों’ ने एक रथ बनाया जिस पर उन्होंने चुंबक की बनी हुइर् एक प्रतिमा लगाइर्, जिसका एक हाथ बाहर पैफला हुआ था। चित्रा 5ण्1 में इस रथ का एक चित्राकार द्वारा दिया गया विवरण है। रथ पर लगी हुइर् प्रतिमा इस तरह घूम जाती थी कि उसकी अँगुली हमेशा दक्ष्िाण की ओर संकेत करे। इस रथ के सहारे, घने कोहरे में ह्नेंग - ती की प़्ाफौजें दुश्मन के पीछे पहुँच गईं और आक्रमण कर उन्हें हरा दिया। पिछले अध्याय में हमने सीखा कि गतिशील आवेश या विद्युत धारा चुंबकीय क्षेत्रा उत्पन्न करती है। यह खोज जो उन्नीसवीं शताब्दी के पूवार्(र् में की गइर् थी, इसका श्रेय आॅस्टेर्ड, ऐम्िपयर, बायो एवं सावटर् तथा अन्य वुफछ लोगों को दिया जाता है। प्रस्तुत अध्याय में हम चुंबकत्व पर एक स्वतंत्रा विषय के रूप में दृष्िट डालेंगे। चुंबकत्व संबंधी वुफछ आम विचार इस प्रकार हैंμ ;पद्ध पृथ्वी एक चुंबक की भाँति व्यवहार करती है जिसका चुंबकीय क्षेत्रालगभग भौगोलिक दक्ष्िाण से उत्तर की ओर संकेत करता है। ;पपद्ध जब एक छड़ चुंबक को स्वतंत्रातापूवर्क लटकाया या शांत पानी परतैराया जाता है तो यह उत्तर - दक्ष्िाण दिशा में ठहरता है। इसका वह सिरा जो भौगोलिक उत्तर की ओर संकेत करता है, उत्तरी धु्रव और जो भौगोलिक दक्ष्िाण की ओर संकेत करता है, चुंबक का दक्ष्िाणी धु्रव कहलाता है। ;पपपद्ध दो पृथक - पृथक चुंबकों के दो उत्तरी धु्रव ;या दो दक्ष्िाणी ध्रुवद्ध जब पास - पास लाए जाते हैंतो वे एक - दूसरे को विक£षत करते हैं। इसके विपरीत, एक चुंबक के उत्तर और दूसरे के दक्ष्िाण धु्रव एक - दूसरे को आक£षत करते हैं। ;पअद्ध किसी चुंबक के उत्तर और दक्ष्िाण धु्रवों को अलग - अलग नहीं किया जा सकता। यदि किसी छड़ चुंबक को दो भागों में विभाजित किया जाए तो हमें दो छोटे अलग - अलग छड़ चुंबक मिलजाएँगे, जिनका चुंबकत्व क्षीण होगा। वैद्युत आवेशों की तरह, विलगित चुंबकीय उत्तरी तथा दक्ष्िाणी ध््रुवों जिन्हें चुंबकीय एकधु्रव कहते हैं, का अस्ितत्व नहीं है। ;अद्ध लौह और इसकी मिश्र - धातुओं से चुंबक बनाने संभव हैं। इस अध्याय में हम एक छड़ चुंबक और एक बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा में इसके व्यवहार के वणर्न से प्रारंभ करेंगे। हम चुंबकत्व संबंधी गाउस का नियम बताएँगे। इसके बाद पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा का विवरण देंगे। उसके बाद यह बताएँगे कि चुंबकीय गुणों के आधार पर पदाथो± का वगीर्करण वैफसे किया जाता है और पिफर अनुचुंबकत्व, प्रतिचुंबकत्व तथा लौह - चुंबकत्व का वणर्न करेंगे और अंत में वैद्युत - चुंबक एवं स्थायी चुंबकों पर एक अनुभाग के साथ इसका समापन करेंगे। 5ण्2 छड़ चुंबक प्रसि( भौतिक विज्ञानी अल्बटर् आइंसटीन के अति प्रारंभ्िाक बचपन की स्मृतियों में से एक उसचुंबक से जुड़ी थी, जो उन्हें उनके एक संबंधी ने भेंट किया था। आइंसटीन उससे चमत्कृत हो गए थे और उससे खेलते हुए कभी थकते नहीं थे। उनको आश्चयर् होता था कि वैफसे एक चुंबक उन कीलों और पिनों को अपनी ओर खींच लेती थी, जो उससे दूर रखे थे और किसी ¯स्प्रग या धागे 174 द्वारा उससे जुड़े भी नहीं थे। हम अपने अध्ययन की शुरुआत लौह रेतन से करते हैं जो एक छोटे छड़ चुंबक के ऊपर रखी गइर् काँच की शीट पर छिड़का गया है। लौह रेतन की यह व्यवस्था चित्रा 5ण्2 में दशार्यी गइर् है। लौह रेतन के पैटनर् यह इंगित करते हैं कि चुंबक के दो धु्रव होते हैं, वैसे ही जैसे वैद्युत द्विध्रुव के धनात्मक एवं )णात्मक आवेश। जैसा कि पहले भूमिका में बताया जा चुका है, एक ध्रुव कोउत्तर और दूसरे को दक्ष्िाण धु्रव कहते हैं। जब छड़ चुंबक को स्वतंत्रातापूवर्क लटकाया जाता है तोये धु्रव क्रमशः लगभग भौगोलिक उत्तरी एवं दक्ष्िाणी धु्रवों की ओर संकेत करते हैं। लौह रेतन का इसी से मिलता - जुलता पैटनर् एक धारावाही परिनालिका के इदर् - गिदर् भी बनता है। 5ण्2ण्1 चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ लौह रेतन के बने पैटनो± के आधार पर हम चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ’ खींच सकते हैं। चित्रा 5ण्3 में यह छड़ चुंबक और धारावाही परिनालिका, दोनों के लिए दशार्या गया है। तुलना के लिए अध्याय एक चित्रा 1ण्17;कद्ध देख्िाए। विद्युत द्विध्ु्रव की वैद्युत बल रेखाएँ चित्रा 5ण्3;बद्ध में भी दशार्यी गइर् हैं। चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ, चुंबकीय क्षेत्रा का दृश्य और अंतदर्ृष्िटपरक प्रस्तुतीकरण हंै। इनके गुण हैंः ;पद्ध किसी चुंबक ;या धरावाही परिनालिकाद्ध की चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ संतत बंद लूप बनाती हैं। यह वैद्युत - द्विधु्रव के जैसी नहीं है, जहाँ ये रेखाएँ धनावेश से शुरू होकर )णावेश पर खत्म हो जाती हैं ख्चित्रा 5ण्3;बद्ध देख्िाए, या पिफर अनंत की ओर चली जाती हैं। ;पपद्ध क्षेत्रा रेखा के किसी ¯बदु पर खींची गइर् स्पशर् रेखा उस ¯बदु पर परिणामी चुंबकीय क्षेत्रा ठ की दिशा बताती है। चित्रा 5ण्3 क्षेत्रा रेखाएँ ;ंद्ध एक छड़ चुंबक की ;इद्ध एक सीमित आकार वाली धारावाही परिनालिका की, और ;बद्ध एक वैद्युत द्विधु्रव की। बहुत अिाक दूरी पर तीनों रेखा समुच्चय एक से हैं। अंकित वक्र, बंद गाउसीय पृष्ठ हैं। ’ वुफछ पाठ्यपुस्तकों में चुंबकीय क्षेत्रा रेखाओं को चुंबकीय बल रेखाएँ कहा गया है। इस नामावली से बचना उचित होगा क्योंकि यह भ्रामक है। स्िथरवैद्युत के विपरीत चुंबकत्व में क्षेत्रा रेखाएँ ;गतिमानद्ध आवेश पर 175 बल की दिशा की सूचक नहीं हैं। ;पपपद्ध क्षेत्रा के लंबवत रखे गए तल के प्रति इकाइर् क्षेत्रापफल से जितनी अिाक क्षेत्रा रेखाएँ गुजरती हैं, उतना ही अिाक उस स्थान पर चुंबकीय क्षेत्रा ठ का परिमाण होता है। चित्रा 5ण्3 ;ंद्ध में,क्षेत्रा के आसपास ठ का परिमाण क्षेत्रा प की तुलना में अिाक है। ;पअद्ध चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ एक - दूसरे को काटती नहीं हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस स्िथति मेंकटान ¯बदु पर चुंबकीय क्षेत्रा की दिशा एक ही नहीं रह जाती।आप चाहें तो कइर् तरह से चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ आलेख्िात कर सकते हैं। एक तरीका यह है कि भ्िान्न - भ्िान्न जगहों पर एक छोटी चुंबकीय कंपास सुइर् रख्िाए और इसके दिव्फविन्यास कोअंकित कीजिए। इस तरह आप चुंबक के आस - पास विभ्िान्न ¯बदुओं पर चुंबकीय क्षेत्रा की दिशाजान सवेंफगे। 5ण्2ण्2 छड़ चंुबक का एक धरावाही परिनालिका की तरह व्यवहार पिछले अध्याय में हमने यह समझाया है कि किस प्रकार एक धारा लूप एक चुंबकीय द्विधु्रव की तरह व्यवहार करता है ;अनुभाग 4ण्10 देख्िाएद्ध। हमने ऐम्िपयर की इस परिकल्पना का जिक्र भी किया था कि सभी चुंबकीय परिघटनाओं को परिवाही धाराओं के प्रभावों के रूप में समझाया जा सकता है। याद कीजिए कि किसी धारावाही लूप से जुड़े चुंबकीय द्विधु्रव आघूणर् उ की परिभाषा उ त्र छप्। से दी जाती है, जहाँ छ लूप में पेफरों की संख्या, प् धारा एवं । क्षेत्रापफल - सदिश है ¹समीकरण ;4ण्30द्ध देख्िाएह्। एक छड़ चुंबक की चुंबकीय क्षेत्रा रेखाओं की, एक धारावाही परिनालिका की चुंबकीय क्षेत्रा रेखाओं से साम्यता यह सुझाती है कि जैसे परिनालिका बहुत - सी परिवाही धाराओं का योग है वैसे ही छड़ चुंबक भी बहुत - सी परिसंचारी धाराओं का योग हो सकता है। एक छड़ चुंबक के दो बराबर टुकड़े करना वैसा ही है जैसे एक परिनालिका को काटना। जिससे हमें दो छोटी परिनालिकाएँ मिल जातीहैं जिनके चुंबकीय क्षेत्रा अपेक्षाकृत क्षीण होते हैं। क्षेत्रा रेखाएँ संतत बनी रहती हैं, एक सिरे से बाहर निकलती हैं और दूसरे सिरे से अंदर प्रवेश करती हैं। एक छोटी चुंबकीय वंफपास सुइर् को एक छड़ चुंबक एवं एक धारावाही सीमित परिनालिका के पास एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर चित्रा 5ण्4 ;ंद्ध एक सीमित परिनालिका के अक्षीय क्षेत्रा का परिकलन, यह देखा जा सकता है कि दोनों के लिए चुंबकीय सुइर् में ताकि इसकी छड़ चुंबक से साम्यता प्रद£शत की जा सके। ;इद्ध एक विक्षेपण एक जैसा है और इस तरह इस साम्यता का परीक्षण समान चुंबकीय क्षेत्रा ठ में रखी हुइर् चुंबकीय सूइर्। यह प्रबंध् चुंबकीय आसानी से किया जा सकता है। क्षेत्रा ठ अथवा चुंबकीय आघूणर् उ का आकलन करने में सहायक है। इस साम्यता को और अिाक सुदृढ़ करने के लिए हम चित्रा 5ण्4 ;ंद्ध में दशार्यी गइर् सीमित परिनालिका के अक्षीय क्षेत्रा की गणना करते हैं। हम यह प्रद£शत करेंगे कि बहुत अिाक दूरी पर यह अक्षीय क्षेत्रा छड़ चुंबक के अक्षीय क्षेत्रा जैसा ही है। माना कि चित्रा 5ण्4 ;ंद्ध में दशार्यी गइर् धारावाही परिनालिका की प्रति इकाइर् लंबाइर् में द पफेरे हैं और इसकी त्रिाज्या ष्ंष् है। माना इसकी लंबाइर् 2स है। परिनालिका के वेंफद्र से त दूरी पर ;¯बदु च्द्ध हम अक्षीय क्षेत्रा ज्ञात कर सकते हैं। यह करने के लिए, परिनालिका का एक छोटा वृत्ताकार अंश कग मोटाइर् का लेते हैं जो इसके वेंफद्र से ग दूरी पर है। इसमें द कग पेफरे हैं। माना कि परिनालिका 176 में प् धारा प्रवाहित हो रही है। पिछले अध्याय के अनुभाग 4ण्6 में हमने एक वृत्ताकार लूप के अक्ष पर चुंबकीय क्षेत्रा की गणना की थी। समीकरण ;4ण्17द्ध के अनुसार, वृत्ताकार अंश के कारण ¯बदु च् पर चुंबकीय क्षेत्रा का परिमाण 0दकगप्ं 2 कठ 2ख्;तगद्ध2 ं2, वुफल क्षेत्रा का परिमाण प्राप्त करने के लिए ऐसे सभी अंशों के योगदान जोड़ने होंगे। दूसरे शब्दों में गत्र दृ स से गत्र ़ स तक समाकलन करना होगा। दप्ं2 स कग ठ 0 2 2 3ध्2 2 स ख्;तगद्ध ं , यह समाकलन त्रिाकोणमितीय प्रतिस्थापन द्वारा किया जा सकता है। ¯कतु, हमारा उद्देश्य पूरा करने के लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं है। ध्यान दें कि ग का परास −स से ़स तक है। धारावाही परिनालिका के बहुत दूर स्िथत अक्षीय ¯बदु के लिए तझझ ं एवं तझझ स। तब भ्िान्न में हर का लगभग मान हो जाएगा: 3 2 ख्;तगद्ध2 ं2,3 त 2 स दप्ं और ठ 0 कग 2त3 स दप् 2सं2 त्र 0 3 ;5ण्1द्ध 2 त ध्यान दीजिए कि धारावाही परिनालिका के चुंबकीय आघूणर् का परिमाण उत्र द;2सद्ध प्;πं2द्ध ¹अथार्त वुफल पफेरों की संख्या × धारा × अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रापफलह्। अतः 02उ ठ 3 ;5ण्2द्ध 4 त यही समीकरण छड़ चुंबक की अक्ष पर दूर स्िथत ¯बदु के लिए भी है जिसे कोइर् भी प्रयोगात्मक वििा से प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार, छड़ चुंबक और धारावाही परिनालिका एक जैसे चुंबकीय क्षेत्रा उत्पन्न करते हैं। अतः एक छड़ चुंबक का चुंबकीय आघूणर्, उतना ही चुंबकीय क्षेत्रा उत्पन्न करने वाली समतुल्य धारावाही परिनालिका के चुंबकीय आघूणर् के बराबर है। वुफछ पाठ्यपुस्तवेंफ 2स लंबाइर् के एक छड़ चुंबक के उत्तर धु्रव के लिए एक चुंबकीय आवेश़ु उ एवं दक्ष्िाण ;इसे ध््रुव शक्ित कहते हैंद्ध धु्रव के लिए दृु नियत करके इसका चुंबकीय आघूणर् उ ़ु;2सद्ध नियत करती हंै। तदूरी पर ु के कारण क्षेत्रा की तीव्रता μुध्4πत2 होगी और तब उउ0उ अक्षीय एवं अनुप्रस्थ दोनों स्िथतियों में इस छड़ चुंबक के कारण चुंबकीय क्षेत्रा उसी प्रकार ज्ञात किया जा सकता है जैसा कि वैद्युत द्विधु्रव के लिए किया गया था ;देख्िाए अध्याय 1द्ध। यह तरीका सरल भी है और आकषर्क भी। परंतु, चुंबकीय एकधु्रवों का अस्ितत्व तो होता नहीं, इसलिए, हमने इस प्रस्तुति - वििा का उपयोग नहीं किया है। 5ण्2ण्3 एकसमान चुंबकीय क्षेत्रा में द्विध्ु्रव लौह रेतन ;पतवद पिससपदहद्ध से बने पैटनर् अथार्त चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ हमें चुंबकीय क्षेत्रा ठ का एक सन्िनकट मान बताते हैं। प्रायः हमें ठ का सही - सही मान जानने की आवश्यकता होती है। इसके लिए हम एक पतली चुंबकीय सुइर् का, जिसका चुंबकीय आघूणर् उ एवं जड़त्वाघूणर् प् ज्ञात हों, इस चुंबकीय क्षेत्रा में दोलन कराते हैं। यह व्यवस्था चित्रा 5ण्4 ;इद्ध में दशार्यी गइर् है। 177 चुंबकीय सुइर् पर बलआघूणर् ¹समीकरण ;4ण्29द्ध देख्िाएह् 178 τ त्र उ × ठ ;5ण्3द्ध जिसका परिमाण τ त्र उठ ेपदθ यहाँ τ प्रत्यानयन आघूणर् है तथा कोण θए उ और ठ के बीच का कोण है। अतः, संतुलनावस्था में प् क22 उठ ेपद कज उठ ेपदθ के साथ )णात्मक चिÉ यह नि£दष्ट करता है कि प्रत्यानयन आघूणर् विस्थापनकारी आघूणर् के विपरीत दिशा में है। रेडियन में बहुत छोटे कोण के लिए हम ेपद θ ≈ θ लेते हैं। अतः, क2 प् 2दृउठ कज अथवा क22 उठ कज प् यह सरल आवतर् गति दशार्ता है, जिसके लिए, कोणीय आवृिा का वगर्ω2 त्र उठध्प् तथा दोलन काल है, प् ज् 2 ;5ण्4द्ध उठ 4 2 प् अथवा ठ उज् ;5ण्5द्ध 2 चुंबकीय स्िथतिज ऊजार् के लिए व्यंजक प्राप्त करने के लिए हम उसी विध्ि का अनुसरणकर सकते हैं जो हमने वैद्युत स्िथतिज ऊजार् का व्यंजक प्राप्त करने के लिए अपनायी थी।किसी चुंबकीय द्विध्ु्रव की चुंबकीय स्िथतिज ऊजार् न् इस प्रकार है उ न्उ ;द्धक उठ ेपद उठ बवे उठ;5ण्6द्ध इस बात को हमने पहले भी कापफी जोर देकर कहा था कि स्िथतिज ऊजार् का शून्य हम अपनी सुविधनुसार निधर्रित कर सकते हैं। समाकलन नियंताक को शून्य लेने का अथर् है कि हमनेस्िथतिज ऊजार् का शून्य θ त्र 90ह् पर, अथार्त उस स्िथति को ले लिया है जिस पर सुइर् क्षेत्रा के लंबवत है। समीकरण ;5ण्6द्ध यह दशार्ती है कि न्यूनतम स्िथतिज ऊजार् ;त्र दृउठद्ध ;अथार्त सवार्ध्िक स्थायी अवस्थाद्ध θ त्र 0ह् पर होती है एवं अध्िकतम स्िथतिज ऊजार् ;त्र ़उठद्ध ;अथार्त अध्िकतम अस्थायी अवस्थाद्ध θ त्र 180ह् पर होती है। उदाहरण 5ण्1 चित्रा 5ण्4 ;इद्ध में, चुंबकीय सुइर् का चुंबकीय आघूणर् 6ण्7 × 10दृ2 । उ2 औरजड़त्वाघूणर् प् त्र 7ण्5 × 10दृ6 ाह उ2 है। यह 6ण्70 े में 10 पूरे दोलन करती है। चुंबकीय क्षेत्राका परिमाण क्या है? हल दोलनकाल 6ण्70 ज् 0ण्67 े 10 समीकरण ;5ण्5द्ध से प्राप्त होता है 42प् ठ 2 उज् 4 ;3ण्14द्ध2 7ण्5 10 6 त्र दृ22 6ण्7 10 ;0ण्67द्ध त्र 0ण्01 ज् उदाहरण 5ण्2 एक छोटे छड़ चुंबक को जब 800 ळ के बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा में इस तरह रखा जाता है कि इसकी अक्ष क्षेत्रा से 30व का कोण बनाए, तो यह 0ण्016 छ उ का बलआघूणर् अनुभव करता है। ;ंद्ध चुंबक का चुंबकीय आघूणर् कितना है? ;इद्ध सवार्िाक स्थायी स्िथति से सवार्िाक अस्थायी स्िथति तक इसको घुमाने में कितना कायर् करना पड़ेगा? ;बद्ध छड़ चुंबक को यदि एक परिनालिका से प्रतिस्थापित कर दें जिसमें 1000 पेफरे हों, जिसके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रापफल 2 × 10दृ4 उ2 हो और जिसका चुंबकीय आघूणर् उतना ही हो जितना छड़ चुंबक का है, तो परिनालिका में प्रवाहित होने वाली धारा ज्ञात कीजिए। हल ;ंद्ध समीकरण ;5ण्3द्ध के अनुसार τ त्र उ ठ ेपद θए θ त्र 30ह्ए इसलिए ेपदθ त्र1ध्2 अतः, 0ण्016 त्र उ × ;800 × 10दृ4 ज्द्ध × ;1ध्2द्ध उ त्र 160 × 2ध्800 त्र 0ण्40 । उ2 ;इद्ध समीकरण ;5ण्6द्ध के अनुसार सवार्िाक स्थायी स्िथति तब है जब θ त्र 0व एवं सवार्िाक अस्थायी स्िथति तब है जब θ त्र180व ॅ न्उ ; 180 द्ध न्उ ; 0द्ध त्र 2 उ ठ त्र 2 × 0ण्40 × 800 × 10दृ4 त्र 0ण्064 श्र ;बद्ध समीकरण ;4ण्30द्ध के अनुसार उ त्र छप्। भाग ;ंद्ध में हमने ज्ञात किया है किउ त्र 0ण्40 । उ2 े े 0ण्40 त्र 1000 × प् × 2 × 10दृ4 प् त्र 0ण्40 × 104ध्;1000 × 2द्ध त्र 2। उदाहरण 5ण्3 ;ंद्ध क्या होता है जबकि एक चुंबक को दो खंडों में विभाजित करते हैं ;पद्ध इसकी लंबाइर् के लंबवत ;पपद्ध लंबाइर् के अनुदिश? ;इद्ध एकसमान चुंबकीय क्षेत्रा में रखी गइर् किसी चंुबकीय सुइर् पर बल आघूणर् तो प्रभावी होता है पर इस पर कोइर् परिणामी बल नहीं लगता। तथापि, एक छड़ चुंबक के पास रखी लोहे की कील पर बल आघूणर् के साथ - साथ परिणामी बल भी लगता है। क्यों? ;बद्ध क्या प्रत्येक चुंबकीय विन्यास का एक उत्तरी और एक दक्ष्िाणी ध्ु्रव होना आवश्यक है? एक टोराॅयड के चंुबकीय क्षेत्रा के संबंध् में इस विषय में अपनी टिप्पणी दीजिए। ;कद्ध दो एक जैसी दिखाइर् पड़ने वाली छड़ें । एवं ठ दी गइर् हैं जिनमें कोइर् एक निश्िचत रूप से चुंबकीय है, यह ज्ञात है ;पर, कौन सी यह ज्ञात नहीं हैद्ध। आप यह वैफसे सुनिश्िचत करेंगे कि दोनों छड़ें चुंबकित हैं या केवल एक? और यदि केवल एक छड़ चुंबकित है तो यह वैफसे पता लगाएँगे कि वह कौन सी है। ¹आपको छड़ों । एवंठ के अतिरिक्त अन्य कोइर् चीज प्रयोग नहीं करनी है।ह् हल ;ंद्ध दोनों ही प्रकरणों में आपको दो चुंबक प्राप्त होते हैं जिनमें से प्रत्येक में एक उत्तरी और एक दक्ष्िाणी ध््रुव होता है। ;इद्ध यदि क्षेत्रा एकसमान हों केवल तभी चुंबक पर कोइर् बल नहीं लगता। परंतु छड़ चुंबक के कारण कील पर असमान क्षेत्रा आरोपित होता है जिसके कारण कील में चुंबकीय आघूणर् प्रेरित होता है। अतः इस पर परिणामी बल भी लगता है और बल आघूणर् भी। परिणामी बल आकषर्णबल होता है, क्योंकि कील में प्रेरित दक्ष्िाण ध््रुव ;मानाद्ध इसमें प्रेरित उत्तरी ध्ु्रव की अपेक्षा चंुबक के अध्िक निकट होता है। ;बद्ध आवश्यक नहीं है। यह तभी सत्य होगा जब चुंबकीय क्षेत्रा के स्रोत का परिणामी चुंबकीय आघूणर् शून्य नहीं होगा। टोराॅयड या अनंत लंबाइर् की परिनालिका के लिए ऐसा नहीं होता। ;कद्ध चुंबकों के अलग - अलग सिरों को एक - दूसरे के पास लाने की कोश्िाश कीजिए। यदि किसी स्िथति में प्रतिकषर्ण बल का अनुभव हो तो दोनों छड़ें चुंबकित हैं। यदि हमेशा आकषर्ण बल 179 5ण्2ण्4 स्िथरवैद्युत अनुरूप समीकरणों ;5ण्2द्धए ;5ण्3द्ध एवं ;5ण्4द्ध के संगत विद्युत द्विधु्रव के समीकरणों ;अध्याय 1 देख्िाएद्ध सेतुलना करने पर हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि उ चुंबकीय आघूणर् वाले छड़ चुंबक काचुंबकीय क्षेत्रा, इससे बहुत दूरी पर स्िथत किसी ¯बदु पर ज्ञात करने के लिए, हमें द्विधु्रव आघूणो±वाले विद्युत द्विधु्रव के कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्रा के समीकरण में, केवल निम्नलिख्िात प्रतिस्थापनकरने होंगेμ 10म्ठ ए चउ ए 40 4 विशेषतः, त दूरी ;त झझ स के लिए, जहाँ स चुंबक की लंबाइर् हैद्धपर एक छड़ चुंबक का विषुवतीय चुंबकीय क्षेत्रा उठ 0 म् 3 ;5ण्7द्ध 4 त इसी प्रकार, त दूरी ;त झझ स के लिएद्ध पर एक छड़ चुंबक का अक्षीय चुंबकीय क्षेत्रा 02उ ठ । 3 ;5ण्8द्ध 4 त समीकरण ;5ण्8द्ध, समीकरण ;5ण्2द्ध का सदिश रूप है। सारणी 5ण्1 विद्युत एवं चुंबकीय द्विधु्रवों के मध्य समानता दशार्ती है। 180 उदाहरण 5ण्4 5 बउ लंबाइर् के छड़ चुंबक के वेंफद्र से 50 बउ की दूरी पर स्िथत ¯बदुपर, विषुुवतीय एवं अक्षीय स्िथतियों के लिए चुंबकीय क्षेत्रा का परिकलन कीजिए। छड़चुंबक का चुंबकीय आघूणर् 0ण्40 । उ2, जैसा कि उदाहरण 5ण्2 में है। हल समीकरण ;5ण्7द्ध के अनुसार, 0उ 107 0ण्4 10 7 0ण्4 ठ 7 म् 3 3 3ण्210 ज् 4 त 0ण्5 0ण्125 02उ ठ 7 समीकरण ;5ण्8द्ध के अनुसार, 3 6ण्4 10 ज् । 4 त 5ण्3 चुंबकत्व एवं गाउस नियम अध्याय 1 में हमने स्िथरवैद्युत के लिए गाउस के नियम का अध्ययन किया था। चित्रा 5ण्3 ;बद्ध में हम देखते हैं कि प द्वारा अंकित बंद गाउसीय सतह से क्षेत्रा रेखाओं की जितनी संख्या बाहर आती है, उतनी ही इसके अंदर प्रवेश करती है। इस बात की इस तथ्य से संगति बैठती है कि सतह द्वारा परिवेष्िठत वुफल आवेश का परिमाण शून्य है। ¯कतु, उसी चित्रा में, बंद सतह पप जो किसी धनावेश 181 को घेरती है, के लिए परिणामी निगर्त फ्रलक्स होता है। ब्ींचजमत 5;भ्पदकपद्धण्च्डक् 181 27.12.2012ए 15रू54 कालर् प्रेफडिªक गाउस ;1777 दृ 1855द्ध वे एक विलक्षण बाल - प्रतिभा थे। गण्िात, भौतिकी, अभ्िायांत्रिाकी, खगोलशास्त्रा और यहाँ तक कि भू - सवेर्क्षणमें भी उनको प्रकृति की अनुपम देन थी। संख्याओं के गुण उनको लुभाते थे और उनके कायर् में उनके बाद आने वाले जमाने के प्रमुख गण्िातीय विकास का पूवार्भास होता है। 1833 में विल्हेम वेलसर के साथ मिलकर उन्होंने पहला विद्युतीय टेलिग्रापफ बनाया। वक्र - पृष्ठों से संबंध्ित उनके गण्िातीय सि(ांत ने बाद में रीमन द्वारा किए गए कायर् की आधारश्िाला रखी। यह स्िथति उन चुंबकीय क्षेत्रों के लिए पूणर्तः भ्िान्न है, जो संतत हैं और बंद लूप बनाते हैं। चित्रा 5ण्3 ;ंद्ध या 5ण्3 ;इद्ध में द्वारा अंकित गाउसीय सतहों का निरीक्षण कीजिए। आप पाएँगे कि सतह से बाहर आने वाली बल रेखाओं की संख्या इसके अंदर प्रवेश करने वाली संख्या के बराबर है।दोनों ही सतहों के लिए वुफल चुंबकीय फ्रलक्स शून्य है और यह बात किसी भी बंद सतह के लिए सत्य है। चित्रा 5ण्6 किसी बंद सतह ै का एक छोटा सदिश क्षेत्रापफल अवयव Δै लीजिए। जैसा कि चित्रा 5.6 में दशार्या गया है। Δै से गुजरने वाला चुंबकीय फ्रलक्स Δφ त्र ठण्Δै है, जहाँ ठए Δै पर चुंबकीय क्षेत्रा है। हम ै को कइर् छोटे - छोटे ठ अवयवों में बाँट लेते हैं और उनमें से प्रत्येक से गुजरने वाले फ्रलक्सों के मानअलग - अलग निकालते हैं। तब, वुफल फ्रलक्स φ का मान है, ठ 0 ठै ठठ ;5ण्9द्ध श्सभी श्श्सभी श् जहाँ ‘सभी’ का अथर् है सभी क्षेत्रापफल अवयव Δै । इसकी तुलना वैद्युतस्िथतिकी के गाउस केनियम से कीजिए। जहाँ एक बंद सतह से गुजरने वाला वैद्युत फ्रलक्स ु म्ै 0 जहाँ ु बंद सतह द्वारा परिब( आवेश है। चुंबकत्व एवं स्िथरवैद्युतिकी के गाउस नियमों के बीच का अंतर इसी तथ्य की अभ्िाव्यक्ित है कि पृथक्कृत चुंबकीय धु्रवों ;जिन्हें एकधु्रव भी कहते हैंद्ध का अस्ितत्व नहीं होता। ठ का कोइर् उद्गम या अभ्िागम नहीं होता है। सरलतम चुंबकीय अवयव एक द्विधु्रव या धारा लूप है। सभी चुंबकीय परिघटनाएँ एक धारा लूप एवं/या द्विधु्रव व्यवस्था के रूप में समझायी जा सकती हैं। चुंबकत्व के लिए गाउस का नियम हैμ किसी भी बंद सतह से गुशरने वाला वुफल चुंबकीय फ्रलक्स हमेशा शून्य होता है। उदाहरण 5ण्6 नीचे दिए गए चित्रों में से कइर् में चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ गलत दशार्यी गइर् हैं ¹चित्रों में मोटी रेखाएँह्। पहचानिए कि उनमें गलती क्या है? इनमें से वुफछ में वैद्युत क्षेत्रा रेखाएँ ठीक - ठीक दशार्यी गइर् हैं। बताइए, वे कौन से चित्रा हैं? 182 चुंबकत्व एवं द्रव्य मुक्त आकाश चित्रा 5ण्7 हल ;ंद्ध गलत है। चुंबकीय बल रेखाएँ एक बिंदु से इस प्रकार नहीं निकल सकतीं जैसा कि चित्रा में दिखाया गया है। किसी बंद सतह पर ठ का वुफल फ्रलक्स हमेशा शून्य ही होना चाहिए अथार्त, चित्रा में जितनी क्षेत्रा रेखाएँ सतह में प्रवेश करंे उतनी ही इससे बाहर निकलनी चाहिए। दिखायी गइर् क्षेत्रा रेखाएँ, वास्तव में, एक लंबे धनावेश्िात तार का विद्युत क्षेत्रा प्रदश्िार्त करती हैं। सही चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ जैसा अध्याय 4 में बताया गया है, सीधे तार को चारों ओर से घेरने वालेवृत्तों के रूप में हैं। उदाहरण 5ण्6 184 ;इद्ध गलत है। चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ ;विद्युत क्षेत्रा रेखाओं की तरह हीद्ध कभी भी एक - दूसरे को काट नहीं सकतीं। क्योंकि, अन्यथा कटान बिंदु पर क्षेत्रा की दिशा संदिग्ध हो जाएगी। चित्रा में एक गलती और भी है। स्िथर - चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ मुक्त आकाश में कभी भी बंद वक्र नहीं बना सकतीं। स्िथर - चुंबकीय क्षेत्रा रेखा के बंद लूप को निश्िचत रूप से एक ऐसे प्रदेश को घेरना चाहिए जिसमें से होकर धारा प्रवाहित हो रही हो ¹इसके विपरीत वैद्युत क्षेत्रा रेखाएँ कभी भी बंद लूप नहीं बना सकतीं, न तो मुक्त आकाश में और न ही तब जब लूप आवेश को घेरते हैं।ह् ;बद्ध ठीक है। चुंबकीय रेखाएँ पूणर्तः एक टोराॅइड में समाहित हैं। यहाँ चुंबकीय क्षेत्रा रेखाओं द्वारा बंद लूप बनाने में कोइर् त्राुटि नहीं है, क्योंकि प्रत्येक लूप एक ऐसे क्षेत्रा को घेरता है जिसमें से होकर धारा गुजरती है। ध्यान दीजिए कि चित्रा में स्पष्टता लाने के लिए ही टोराॅइड के अंदर मात्रा वुफछ क्षेत्रा रेखाएँ दिखायी गइर् हैं। तथ्य यह है कि टोराॅइड के पेफरों के अंदर के संपूणर् भाग में चुंबकीय क्षेत्रा मौजूद रहता है। ;कद्ध गलत है। परिनालिका की क्षेत्रा रेखाएँ, इसके सिरों पर और इसके बाहर पूणर्तः सीधी और सिमटी हुइर् नहीं हो सकती हैं। ऐसा होने से ऐम्िपयर का नियम भंग होता है। ये रेखाएँ सिरों पर वित हो जानी चाहिए और इनको अंत में मिल कर बंद पाश बनाने चाहिए। ;मद्ध सही है। एक छड़ चुंबक के अंदर एवं बाहर दोनों ओर चुंबकीय क्षेत्रा होता है। अंदर क्षेत्रा कीदिशा पर अच्छी तरह ध्यान दीजिए। सभी क्षेत्रा रेखाएँ उत्तर धु्रव से नहीं निकलतीं ;और न ही दक्ष्िाण धु्रव पर समाप्त होती हैंद्ध। छ.धु्रव एवं ै.धु्रव के चारों तरपफ क्षेत्रा के कारण वुफल फ्रलक्स शून्य होता है। ;द्धि गलत है। संभावना यही है कि ये क्षेत्रा रेखाएँ चुंबकीय क्षेत्रा प्रदश्िार्त नहीं करतीं। ऊपरी भाग को देख्िाए। सभी क्षेत्रा रेखाएँ छायित प्लेट से निकलती जान पड़ती हैं। इस प्लेट को घेरने वालीसतह से गुजरने वाले क्षेत्रा का वुफल फ्रलक्स शून्य नहीं है। चुंबकीय क्षेत्रा के संदभर् में ऐसा होनासंभव नहीं है। दिखायी गइर् क्षेत्रा रेखाएँ, वास्तव में, धनावेश्िात ऊपरी प्लेट एवं )णावेश्िात निचली प्लेट के बीच स्िथरवैद्युत क्षेत्रा रेखाएँ हैं। ¹चित्रा 5ण्7;मद्ध एवं ;द्धिह्के बीच के अंतर को ध्यानपूवर्क ग्रहण करना चाहिए। ;हद्ध गलत है। दो धु्रवों के बीच चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ, सिरों पर, ठीक सरल रेखाएँ नहीं हो सकतीं। रेखाओं में वुफछ पैफलाव अवश्यम्भावी है अन्यथा, ऐम्िपयर का नियम भंग होता है। यह बात वैद्युत क्षेत्रा रेखाओं के लिए भी लागू होती है। उदाहरण 5ण्7 ;ंद्ध चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ ;हर ¯बदु परद्ध वह दिशा बताती हैं जिसमें ;उस ¯बदु पर रखीद्ध चुंबकीय सुइर् संकेत करती है। क्या चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ प्रत्येक ¯बदु पर गतिमान आवेश्िात कण पर आरोपित बल रेखाएँ भी हैं? ;इद्ध एक टोराॅइड में तो चुंबकीय क्षेत्रा पूणर्तः क्रोड के अंदर सीमित रहता है, पर परिनालिका मेंऐसा नहीं होता। क्यों? ;बद्ध यदि चुंबकीय एकल धु्रवों का अस्ितत्व होता तो चुंबकत्व संबंधी गाउस का नियम क्या रूपग्रहण करता? ;कद्ध क्या कोइर् छड़ चुंबक अपने क्षेत्रा की वजह से अपने ऊपर बल आघूणर् आरोपित करती है?क्या किसी धारावाही तार का एक अवयव उसी तार के दूसरे अवयव पर बल आरोपित करताहै। ;मद्ध गतिमान आवेशों के कारण चुंबकीय क्षेत्रा उत्पन्न होते हैं। क्या कोइर् ऐसी प्रणाली है जिसका चुंबकीय आघूणर् होगा, यद्यपि उसका नेट आवेश शून्य है? हल ;ंद्ध नहीं। चुंबकीय बल सदैव ठ के लंबवत होता है ;क्योंकि चुंबकीय बल त्र ु;अ × ठद्ध अतः ठ की क्षेत्रा रेखाओं को बल रेखाएँ कहना भ्रामक वक्तव्य है। ;इद्ध यदि क्षेत्रा रेखाएँ सिपफर् सीधी परिनालिका के दो सिरों के बीच सीमित होतीं तो प्रत्येक सिरे के अनुप्रस्थ काट से गुशरने वाला फ्रलक्स शून्य न होता। लेकिन, क्षेत्रा ठ का किसी बंद सतह से गुशरने वाला फ्रलक्स तो सदैव शून्य ही होता है। टोराॅइड के विषय में यह समस्या ही खड़ी नहीं होती क्योंकि इसके कोइर् सिरे नहीं होते। ;बद्ध चुंबकत्व संबंधी गाउस का नियम यह कहता है कि क्षेत्राठ के कारण, किसी बंद सतह से गुशरने वाला वुफल फ्रलक्स सदैव शून्य होता है । किसी बंद सतह ै के लिए ठेक 0 ै यदि एकल धु्रवों का अस्ितत्व होता तो ;स्िथरवैद्युतिकी के गाउस नियम के अनुरूपद्ध समीकरण के दायीं ओर सतह ै से घ्िारे एकल धु्रवों ;चुंबकीय आवेशोंद्ध ु का योग आता। अथार्त उ समीकरण का रूप होता क ु जहाँ ु ए ै से घ्िारा चुंबकीय आवेश ;एकल धु्रवद्ध है। ठे0 उउ ै ;कद्ध नहीं। तार के अल्पांश द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्रा के कारण इसके स्वयं के ऊपर कोइर् बल या बल आघूणर् नहीं लगता। लेकिन इसके कारण उसी तार के दूसरे अल्पांश पर बल ;या बल आघूणर्द्ध लगता है। ;सीधे तार के विशेष मामले में, यह बल शून्य ही होता हैद्ध। ;मद्ध हाँ। संपूणर् व्यवस्था को देखें तो सभी आवेशों का औसत शून्य हो सकता है। पिफर भी, यह हो सकता है कि विभ्िान्न धारा लूपों के कारण उत्पन्न चुंबकीय आघूणो± का औसत शून्य न हो। हमारे समक्ष अनुचुंबकीय पदाथो± के संदभर् में ऐसे कइर् उदाहरण आएँगे जहाँ परमाणुओं का आवेश शून्य है लेकिन उनका द्विध्ु्रव - आघूणर् शून्य नहीं है। 5ण्4 भू - चुंबकत्व हमने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा का जिक्र पहले भी किया है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा की तीव्रता, इसकी सतह पर, भ्िान्न स्थानों पर भ्िान्न होती है, पर इसका मान 10दृ5 ज् की कोटि का होता है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा का कारण क्या है, यह बहुत स्पष्ट नहीं है। प्रारंभ में यह सोचा गया कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा इसके अंदर बहुत गहराइर् में रखे एक विशाल चुंबक के कारण है जो लगभग पृथ्वी के घूणर्न अक्ष के अनुदिश रखा है। परंतु, यह सरलीवृफत चित्रा निश्िचत रूप से सही नहीं है। अब यह माना जाता है कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा इसके बाह्य क्रोड के धत्िवक तरलों ;जो अध्िकांशतः पिघला लोहा एवं निकिल हैद्ध की संवाहक गति के कारण उत्पन्न विद्युत धराओं के परिणामस्वरूप अस्ितत्व में आता है। इसको डायनेमो प्रभाव कहा जाता है। पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ, पृथ्वी के वेंफद्र पर रखे ;काल्पनिकद्ध चुंबकीय द्विध्ु्रव के जैसी ही होती हैं। इस द्विध्ु्रव की अक्ष पृथ्वी के घूणर्न अक्ष के संपाती नहीं होती है, बल्िक वतर्मान में यह इससे लगभग 11ण्3ह् पर झुकी हुइर् है। इस दृष्िट से देखें तो चुुंबकीय ध्ु्रव वहाँ अवस्िथत हैजहाँ चुंबकीय बल रेखाएँ पृथ्वी में प्रवेश करती हैं अथवा इससे बाहर निकलती हैं। पृथ्वी के उत्तरी चुंबकीय ध्ु्रव की स्िथति 79ण्74ह् छ अक्षांश एवं 71ण्8ह् ॅ देशांतर पर है। यह स्थान उत्तरी कनाडा में है। चुंबकीय दक्ष्िाणी ध्ु्रव अंटावर्फटिका में, 79ण्74ह् ै अक्षांश एवं 108ण्22ह् म् देशांतर पर है। वह ध््रुव जो पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी ध्ु्रव के निकट है उत्तरी चुंबकीय ध्ु्रव कहलाता है। 185 इसी प्रकार पृथ्वी के भौगोलिक दक्ष्िाण ध्ु्रव के निकट स्िथत ध््रुव दक्ष्िाणी चुंबकीय ध््रुव कहलाता भू - चुंबकत्व μ बहुध पूछे जाने वाले प्रश्न ीजजचरूध्ध्ूूूण्दहकमण्दवंण्हवअध्ेमहध्हमवउंहध् भौतिकी है। ध््रुवों के नामकरण के संबंध् में वुफछ संभ्रम हैं। यदि आप पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्रा रेखाओं को देखें ;चित्रा 5ण्8द्धए तो छड़ चुंबक के विपरीत क्षेत्रा रेखाएँ उत्तरी चुंबकीय ध्ु्रव ;छ द्ध से पृथ्वी के अंदर प्रवेश करती हैं और दक्ष्िाणी उ चुंबकीय ध्ु्रव ;ै द्ध से बाहर आती हंै। यह परिपाटी इसलिए शुरू हुइर् क्योंकि उ चुंबकीय उत्तर वह दिशा थी जिसमें चुंबकीय सुइर् का उत्तरी सिरा संकेत करता थाऋ चुंबक के ध्ु्रव को उत्तरी ध्ु्रव इसलिए कहा गया क्योंकि यह उत्तर दिशा का ज्ञान कराने में सहायक था। इस प्रकार, वास्तव में, उत्तरी चुंबकीय ध्ु्रव पृथ्वी के अंदर के छड़ चुंबक के दक्ष्िाणी ध्ु्रव की तरह व्यवहार करता है एवं दक्ष्िाणी चित्रा 5ण्8 पृथ्वी, एक विशाल चुंबकीय चुंबकीय ध्ु्रव इस छड़ चुंबक के उत्तरी ध्ु्रव की तरह। द्विध्ु्रव की भाँति। उदाहरण 5ण्8 विषुवत रेखा पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा का परिमाण लगभग 0ण्4 ळ है। पृथ्वी के चुंबक के द्विध्ु्रव आघूणर् की गणना कीजिए। हल समीकरण ;5ण्7द्ध के अनुसार विषुवतीय चुंबकीय क्षेत्रा का परिमाण, उठम् 0 43 त दिया हैः ठ् 0ण्4 ळत्र 4 × 10दृ5 ज्ए त यहाँ पृथ्वी की त्रिाज्या है, 6ण्4 × 106 उ अतः म् 5 63 410 ;6ण्410 द्ध उ त्र4 × 102 × ;6ण्4 × 106द्ध3 ;μ0ध्4π त्र 10दृ7द्ध 0ध्4 त्र 1ण्05 × 1023 । उ2 यह मान भू - चुंबकत्व संबंध्ी पुस्तकों में दिए गए मान 8 × 1022 । उ2 के बहुत निकट है। 5ण्4ण्1 चुंबकीय दिव्फपात एवं नति पृथ्वी की सतह पर कोइर् ¯बदु लीजिए। इस ¯बदु से गुशरने वाला देशांतर वृत्तभौगोलिक उत्तर - दक्ष्िाण दिशा नि£दष्ट करता है जिसकी उत्तरी ध्ु्रव की ओर जानेवाली रेखा यथाथर् उत्तर की ओर इंगित करती है। देशांतर वृत्त एवं पृथ्वी के घूणर्नअक्ष में से गुजरने वाला ऊध्वार्धर तल भौगोलिक याम्योत्तर कहलाता है। इसी प्रकार आप किसी स्थान विशेष पर चुंबकीय याम्योत्तर भी उस स्थान और चुंबकीय उत्तरीएवं दक्ष्िाणी ध्ु्रवों को मिल जाने वाली काल्पनिक रेखा से गुशरने वाले ऊध्वार्ध्र तल के रूप में परिभाष्िात कर सकते हैं। यह तल भी पृथ्वी की सतह को देशांतर जैसेही एक वृत्त में काटेगा। एक चुंबकीय सुइर् जो क्षैतिज तल में घूमने के लिए स्वतंत्राहै, तब चुंबकीय याम्योत्तर में रहेगी और इसका उत्तरी ध्ु्रव पृथ्वी के चुंबकीय उत्तरी ध्ु्रव की ओर संकेत करेगा। चूँकि चुंबकीय ध््रुवों को मिलाने वाली रेखा, पृथ्वी के भौगोलिक अक्ष की तुलना में किसी कोण पर झुकी रहती है, किसी स्थान परचुंबकीय याम्योत्तर, भौगोलिक याम्योत्तर से एक कोण बनाती है। यही वह कोण है चित्रा 5ण्9 क्षैतिज तल में घूमने के लिए जो यथाथर् भौगोलिक उत्तर एवं चुंबकीय सुइर् द्वारा इंगित उत्तर के बीच बनता है। इस स्वतंत्रा चुंबकीय सुइर्, चुंबकीय उत्तर - दक्ष्िाण कोण को चुंबकीय दिव्फपात अथवा केवल दिव्फपात कहते हैं ;चित्रा 5ण्9द्ध। दिशा में इंगित करती है। दिव्फपात उच्चतर अक्षांशों पर अध्िक एवं विषुवत रेखा के पास कम होता 186 है, भारत में दिव्फपात का मान कम है, यह दिल्ली में 0ह्41′ म् एवं मुंबइर् में 0ह्58′ ॅ है। अतः दोनों ही स्थानों पर चुंबकीय सुइर् काप़फी हद तक सही उत्तर दिशा दशार्ती है। एक अन्य महत्वपूणर् राश्िा भी है जिसमें आपकी रुचि हो सकती है। यदि कोइर् चुंबकीय सुइर्, एक क्षैतिज अक्ष पर इस प्रकार पूणर् संतुलन में हो कि चुंबकीय याम्योत्तर के तल में घूम सके तो यह सुइर् क्षैतिज से एक कोण बनाएगी ;चित्रा 5ण्10द्ध। यह नमन कोण ;या आनतिद्ध कहलाता है। अतः आनति वह कोण है जो पृथ्वी का वुफल चुंबकीय क्षेत्रा ठम् पृथ्वी की सतह से बनाता है। चित्रा ;5ण्11द्ध पृथ्वी की सतह के किसी ¯बदु च् पर चुंबकीय याम्योत्तर तल दशार्ता है। यह तल पृथ्वी से गुजरने वाला एक खंड है। ¯बदु च् पर वुफल चित्रा 5ण्10 दशार्या गया वृत्त, पृथ्वी सेचित्रा 5ण्11 पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा ठम्ए एवं गुशरने वाला चुंबकीय याम्योत्तर का खंड है। इसके क्षैतिज एवं ऊध्वार्ध्र अवयव भ्म् एवं ठम् एवं क्षैतिज अवयव भ्म् के बीच बना र्म्। दिव्फपात कोण क् एवं नमन कोण प् भी कोण आनति है। दशार्ए गए हैं। अध्िकतर उत्तरी गोलाध्र् में नमन वृत्त की सुइर् का उत्तरी ध्ु्रव नीचे की ओर झुकता है। इसी प्रकार अध्िकांश दक्ष्िाणी गोलाध्र् में नमन सुइर् का दक्ष्िाणी ध्ु्रव नीचे झुकता है। पृथ्वी की सतह पर स्िथत किसी ¯बुद पर चुंबकीय क्षेत्रा को पूरी तरह नि£दष्ट करने के लिए हमें तीन राश्िायों का विवरण देना होता है, ये हैं - दिव्फपात कोण क्ए आनति या नमन कोण प् एवं पृथ्वी के चंुबकीय क्षेत्रा का क्षैतिज अवयव भ्म् । ये पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा के घटक कहलाते हैं। यहाँ ऊध्वार्ध्र घटक, र्म् त्र ठम् ेपदप् क्षैतिज घटक, ख्5ण्10;ंद्ध, भ्म् त्र ठम् बवेप् ख्5ण्10;इद्ध, जिससे हमें प्राप्त होता है र् जंद प्म् ख्5ण्10;बद्ध, 187 भ्म् भौतिकी ध्ु्रवों पर हमारी चंुबकीय सुइर् को क्या हो जाता है? चुंबकीय दिव्फसूचक में एक चुंबकीय सुइर् एक ध्ुरी पर स्वतंत्रातापूवर्क घूम सकती है। जब दिकसूचक को समतल में रखा जाता है तो इसकी चुंबकीय सुइर् उस स्थान पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा के क्षैतिज अवयव की दिशा में ठहरती है। पृथ्वीपर वुफछ स्थानों पर चुंबकीय खनिजों के भंडार पाए जाते हैं जिनके कारण दिव्फसूचक सुइर् चुंबकीय याम्योत्तर से हट जातीहै। किसी स्थान पर दिव्फपात का ज्ञान, हमें उस स्थान पर दिव्फसूचक सुइर् के मान में संशोध्न कर यथाथर् उत्तर दिशा जानने में सहायता करता है अतः चुंबकीय सुइर् को ध््रुव पर ले जाने का परिणाम क्या होगा? ध्ु्रव पर, या तो चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ ऊध्वार्ध्रतः अभ्िासरित होंगी या अपसरित होंगी इससे क्षैतिज घटक का मान उपेक्षणीय होगा। यदि सुइर् केवल क्षैतिज तल में ही घूमने के लिए स्वतंत्रा होगी तो यह किसी भी दिशा में संकेत कर सकती है और इस कारण दिव्फसूचक के रूप में इसकी कोइर् उपयोगिता नहीं रह जाएगी। इस स्िथति में जिस वस्तु की हमें आवश्यकता है वह है नमनदशीर् सुइर् जो एक ऐसी दिव्फसूचकसुइर् है जिसको पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा से युक्त ऊध्वार्ध्र तल में घूमने के लिए ध्ुरी पर रखा गया है। तब इस दिव्फसूचककी सुइर् वह कोण दशार्ती है जो चुंबकीय क्षेत्रा ऊध्वार्ध्र से बनाता है। चुंबकीय ध्ु्रवों पर यह सुइर् सीध्े नीचे की ओर इंगित करती है। उदाहरण 5ण्9 किसी स्थान के चुंबकीय याम्योत्तर में पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा का क्षैतिज अवयव 0ण्26 ळ है एवं नमन कोण 60व है। इस स्थान पर पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा क्या है? हल यह दिया गया है कि भ् त्र 0ण्26 ळ, चित्रा 5ण्11 से हम पाते हैं किμ म् भ्म् बवे600 ठम् भ्म्ठम् बवे600 0ण्26 त्र 0ण्52ळ ;1ध्2द्ध 188 5ण्5 चुंबकीकरण एवं चुंबकीय तीव्रता पृथ्वी तत्वों एवं यौगिकों की विस्मयकारी विभ्िान्नताओं से भरपूर है। इसके अतिरिक्त, हम नए - नए मिश्रधातु, यौगिक, यहाँ तक कि तत्व भी संश्लेष्िात करते जा रहे हैं। आप इन सब पदाथो± कोचुंबकीय गुणों के आधार पर वगीर्कृत करना चाहेंगे। प्रस्तुत अनुभाग में हम ऐसे वुफछ पदों की परिभाषा देंगे और उनके बारे में समझाएँगे जो इस वगीर्करण में हमारी सहायता करेंगे। हम यह देख चुके हैं कि परमाणु में परिक्रमण करते इलेक्ट्राॅन का एक चुंबकीय आघूणर् होता है। पदाथर् के किसी बड़े टुकड़े में ये चुंबकीय आघूणर् सदिश रूप से समाकलित होकर शून्येतर परिणामी चुंबकीय आघूणर् प्रदान कर सकते हैं। किसी दिए गए नमूने का चुंबकन ड हम इस प्रकार उत्पन्न हुए प्रति इकाइर् आयतन परिणामी चुंबकीय आघूणर् के रूप में परिभाष्िात कर सकते हैं, उ नटे ड ;5ण्11द्ध ट ड एक सदिश राश्िा है जिसका विमीय सूत्रा स्दृ1 । एवं मात्राक । उदृ1 है। एक लंबी परिनालिका लीजिए जिसकी प्रति इकाइर् लंबाइर् में द पेफरे हों, और जिसमें प् धरा 189 प्रवाहित हो रही हो। इस परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्रा का परिमाण है, 190 ठ0 त्र μ0 दप् ;5ण्12द्ध यदि परिनालिका के अंदर शून्येतर चुंबकन का कोइर् पदाथर् भरा हो तो यहाँ क्षेत्रा ठ0 से अिाक होगा। परिनालिका के अंदर परिणामी क्षेत्रा ठ को लिख सकते हैं ठ त्र ठ0 ़ ठ उ ;5ण्13द्ध जहाँ ठ क्रोड के पदाथर् द्वारा प्रदत्त क्षेत्रा है। यह पाया गया है कि यह अतिरिक्त क्षेत्रा ठ पदाथर् के उउ चंुबकन ड के अनुक्रमानुपाती होता है और इसको हम निम्नवत व्यक्त कर सकते हैं ठ उ त्र μ0ड ;5ण्14द्ध जहाँ μवही नियंताक है ;निवार्त की पारगम्यताद्ध जो बायो - सावटर् के नियम में उपयोग किया गया 0 था। सुविध के लिए हम एक अन्य सदिश क्षेत्रा भ् की बात करते हैं जिसे चुंबकीय तीव्रता कहा जाता है और जिसको निम्नलिख्िात समीकरण द्वारा परिभाष्िात किया जाता है ठ भ् दृ ड ;5ण्15द्ध 0 जहाँ भ् की विमाएँ वहीं हैं जो ड की और इसका मात्राक भी । उदृ1 ही है। इस प्रकार वुफल चुंबकीय क्षेत्रा ठ को लिख सकते हैं ठ त्र μ0 ;भ् ़ डद्ध ;5ण्16द्ध उपरोक्त विवरण में आए पदों को व्युत्पन्न करने में हमने जिस प(ति का प्रयोग किया है उसकोदोहराते हैं। परिनालिका के अंदर के वुफल चुंबकीय क्षेत्रा को हमने दो अलग - अलग योगदानों के रूपमें प्रस्तुत कियाμ पहला बाह्य कारक, जैसे कि परिनालिका में प्रवाहित होने वाली धारा का योगदान। यह भ् द्वारा व्यक्त किया गया हैऋ और दूसरा चुंबकीय पदाथर् की विशेष प्रकृति के कारण अथार्त ड । बाद वाली राश्िा ;डद्ध बाह्य कारकों द्वारा प्रभावित की जा सकती है। यह प्रभाव गण्िातीय रूपमें इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैंः डभ् ;5ण्17द्ध जहाँ χ एक विमाविहीन राश्िा है और इसे चुंबकीय प्रवृिा कहते हैं। यह किसी चुंबकीय पदाथर्पर बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा के प्रभाव का माप है। सारणी 5ण्2 में वुफछ तत्वों की चुंबकीय प्रवृिा कोसूचीब( किया गया है। हम देखते हैं कि χ बहुत छोटे परिमाण वाली राश्िा है। वुफछ पदाथो± के लिएइसका मान छोटा और धनात्मक है जिन्हें अनुचुंबकीय पदाथर् कहते हैं। वुफछ पदाथो± के लिए इसकामान छोटा एवं )णात्मक है जिन्हें प्रतिचुंबकीय पदाथर् कहते हैं। प्रतिचुंबकीय पदाथो± में ड एवं भ् विपरीत दिशाओं में होते हैं। समीकरण ;5ण्16द्ध एवं ;5ण्17द्ध से हम पाते हैं, ठ 0;1 द्धभ् ;5ण्18द्ध त्र μ0 μ त भ् त्र μ भ् ;5ण्19द्ध जहाँ, μ त्र ;1 ़ χद्ध एक विमाविहीन राश्िा है जिसे हम पदाथर् की आपेक्ष्िाक चुंबकशीलता या ‘आपेक्ष त चुंबकीय पारगम्यता’ कहते हैं। यह स्िथरवैद्युतिकी के परावैद्युतांक के समतुल्य राश्िा है। पदाथर् कीचुंबकशीलता μ है और इसकी विमाएँ तथा मात्राक वही हैं जो μ0 के हैं। μ त्र μ0μ त त्र μ0 ;1़χद्ध χए μ एवं μ में तीन राश्िायाँ परस्पर संबंिात हैं। यदि इनमें से किसी एक का मान ज्ञात हो त तो बाकी दोनों के मान ज्ञात किए जा सकते हैं। बिस्मथ सारणी 5ण्2 300 ज्ञ पर वुफछ तत्वों की चुंबकीय प्रवृिा प्रतिचुंबकीय पदाथर् χ अनुचुंबकीय पदाथर् χ −1ण्66 × 10−5 ऐलुमिनियम 2ण्3 × 10−5 ताँबा −9ण्8 × 10−6 वैफल्िशयम 1ण्9 × 10−5 हीरा −2ण्2 × 10−5 क्रोमियम 2ण्7 × 10−4 सोना −3ण्6 × 10−5 लिथ्िायम 2ण्1 × 10−5 सीसा −1ण्7 × 10−5 मैग्नीश्िायम 1ण्2 × 10−5 पारा −2ण्9 × 10−5 नियोबियम 2ण्6 × 10−5 नाइट्रोजन ;ैज्च्द्ध −5ण्0 × 10−9 आॅक्सीजन ;ैज्च्द्ध 2ण्1 × 10−6 चाँदी −2ण्6 × 10−5 प्लैटिनम 2ण्9 × 10−4 सिलिकन −4ण्2 × 10−6 टंगस्टन 6ण्8 × 10−5 उदाहरण 5ण्10 एक परिनालिका के क्रोड में भरे पदाथर् की आपेक्ष्िाक चुंबकशीलता 400 है। परिनालिका के विद्युतीय रूप से पृथक्वृफत पेफरों में 2। की धरा प्रवाहित हो रही है। यदि इसकी प्रति 1उ लंबाइर् में पेफरों की संख्या 1000 है तो ;ंद्ध भ्ए ;इद्ध डए ;बद्ध ठ एवं ;कद्ध चुंबककारी धरा प् की उ गणना कीजिए। हल ;ंद्ध क्षेत्रा भ् क्रोड के पदाथर् पर निभर्र करता है और इसके लिए सूत्रा है भ् त्र दप् त्र 1000 × 2ण्0 त्र 2 ×103 ।ध्उ ;इद्ध चुंबकीय क्षेत्रा ठ के लिए सूत्रा है ठ त्र μ त μ0 भ् त्र 400 × 4π ×10दृ7 ;छध्।2द्ध × 2 × 103 ;।ध्उद्ध त्र 1ण्0 ज् ;बद्ध चुंबकन ड त्र ;ठदृ μ0 भ्द्धध् μ0 त्र ;μ μ0 भ्द्धध्μ0 त्र ;μ दृ 1द्धभ् त्र 399 × भ् तभ्दृμ0 त ≅ 8 × 105 ।ध्उ ;कद्ध चुंबकन धरा प्वह अतिरिक्त धरा है जो क्रोड की अनुपस्िथति में परिनालिका के पेफरों में ड प्रवाहित किए जाने पर इसके अंदर उतना ही क्षेत्रा ठ उत्पन्न करेगी जितना क्रोड की उपस्िथति में होता। अतः ठ त्र μ तद0 ;प् ़ प्डद्ध लेने पर प् त्र 2 ।ए ठ त्र 1 ज् हमें प्राप्त होता है प्ड त्र 794 । 5ण्6 पदाथो± के चुंबकीय गुण पिछले अनुभाग में व£णत विचार हमें पदाथो± को प्रतिचुंबकीय, अनुचुंबकीय एवं लोहचुंबकीय श्रेण्िायोंमें वगीर्कृत करने में सहायता प्रदान करते हैं। चुंबकीय प्रवृिा χ की दृष्िट से देखें तो कोइर् पदाथर् प्रतिचुंबकीय है यदि इसके लिए χ )णात्मक है, अनुचुंबकीय होगा यदि χ धनात्मक एवं अल्प मान वाला है, और लोहचुंबकीय होगा यदि χ ध्नात्मक एवं अिाक मान वाला है। अिाक मूतर् रूप में सारणी 5ण्3 पर एक दृष्िट हमें इन पदाथो± का एक अच्छा अनुभव प्रदान करती है। यहाँ ε एक छोटी धन संख्या है जो अनुचुंबकत्व का परिमाण निधार्रित करने के लिए लाइर् 191 गइर् है। अब हम इन पदाथो± के बारे में वुफछ विस्तार से चचार् करेंगे। चित्रा 5ण्12 एक ;ंद्ध प्रतिचुंबकीय ;इद्ध अनुचुंबकीय पदाथर् के निकट किसी बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा के कारण चंुबकीय क्षेत्रा रेखाओं का व्यवहार। 192 5ण्6ण्1 प्रतिचुंबकत्व प्रतिचुंबकीय पदाथर् वह होते हैं जिनमें बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा में अध्िक तीव्रता वाले भाग से कमतीव्रता वाले भाग की ओर जाने की प्रवृिा होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो चुंबक लोहे जैसी धातुओं को तो अपनी ओर आकष्िार्त करता है, परंतु यह प्रतिचुंबकीय पदाथो± को विकष्िार्त करेगा। चित्रा 5ण्12 ;ंद्धए बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा में रखी प्रतिचुंबकीय पदाथर् की एक छड़ दशार्ता है। क्षेत्रा रेखाएँ विकष्िार्त होती हैं या दूर हटती हैं इसलिए पदाथर् के अन्दर क्षेत्रा कम हो जाता है सारणी 5ण्2 से यह स्पष्ट है कि अध्िकांश मामलों में क्षेत्रा की तीव्रता में यह कमी अत्यल्प होती है ;105 भागों में एक भागद्ध। छड़ को किसी असमान चुंबकीय क्षेत्रा में रखने पर इसकी प्रवृिा अध्िक क्षेत्रा से कम क्षेत्रा की ओर जाने की होती है। प्रतिचुंबकत्व की सरलतम व्याख्या इस प्रकार हैμनाभ्िाक के चारों ओर घूमते इलेक्ट्राॅनों के कारण कक्षीय कोणीय संवेग होता है। ये प्ररिक्रमण करते इलेक्ट्राॅन एक धरावाही लूप के समतुल्य होते हैं और इस कारण इनका कक्षीय चुंबकीय आघूणर् होता है, प्रतिचुंबकीय पदाथर् वे होते हैं जिनके परमाणु में परिणामी चुंबकीय आघूणर् शून्य होता है। जब कोइर् बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा आरोपित किया जाता है तो जिन इलेक्ट्राॅनों के कक्षीय चुंबकीय आघूणर् क्षेत्रा की दिशा में होते हैं उनकी गति मंद हो जाती है और जिनके चुुंबकीय आघूणर् क्षेत्रा के विपरीत दिशा में होते हैं उनकी गति बढ़ जाती है। ऐसा लेंज के नियम के अनुसार प्रेरित धरा के कारण होता है जिसके विषय में आप अध्याय 6 में अध्ययन करेंगे। इस प्रकार पदाथर् में परिणामी चुंबकीय आघूणर् आरोपित क्षेत्रा के विपरीत दिशा में विकसित होता है और इस कारण यह प्रतिकष्िार्त होता है। कुछ प्रतिचुंबकीय पदाथर् हैंμ बिस्मथ, ताँबा, सीसा, सिलिकन, नाइट्रोजन ;ैज्च् परद्धए पानी एवं सोडियम क्लोराइड। प्रति चुंबकत्व सभी पदाथो± में विद्यमान होता है। परंतु, अध्िकांश पदाथो± के लिए यह इतना क्षीण होता है कि अनुचुंबकत्व एवं लौह चुंबकत्व जैसे प्रभाव इस पर हावी हो जाते हैं। सबसे अध्िक असामान्य प्रतिचुंबकीय पदाथर् हंै अति चालक। ये ऐसी धतुएँ हैं, जिनको यदि बहुत निम्न ताप तक ठंडा कर दिया जाता है तो ये पूणर् चालकता एवं पूणर् प्रतिचुंबकत्व दोनों प्रदश्िार्त करती हैं। चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ पूणर्तः इनके बाहर रहती हैं, χ त्र दृ1 एवं μ त्र 0। एक अतिचालक, त एक चुंबक को प्रतिकष्िार्त करेगा और ;न्यूटन के तृतीय नियमानुसारद्ध स्वयं इसके द्वारा प्रतिकष्िार्त होगा। अतिचालकों में पूणर् प्रतिचुंबकत्व की यह परिघटना इसके आविष्कारक के नाम पर माइस्नर प्रभाव कहलाती है। अनेक भ्िान्न परिस्िथतियों में जैसे कि, चुंबकीकृत अध्रगामी अति तीव्र रेलगाडि़यों को चलाने में अतिचालक चुंबकों का लाभ उठाया जा सकता है। 5ण्6ण्2 अनुचुंबकत्व अनुचुंबकीय पदाथर् ऐसे पदाथर् होते हैं जो बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा में रखे जाने पर क्षीण चुंबकत्व प्राप्तकर लेते हैं। उनमें क्षीण चुंबकीय क्षेत्रा से सशक्त चुंबकीय क्षेत्रा की ओर जाने की प्रवृिा होती है अथार्त ये चुंबक की ओर क्षीण बल द्वारा आकष्िार्त होते हैं। किसी अनुचुंबकीय पदाथर् के परमाणुओं ;या आयनों या अणुओंद्ध का अपना स्वयं का स्थायी चुंबकीय द्विध््रुव आघूणर् होता है। परमाणुओं की सतत यादृच्िछक तापीय गति के कारण कोइर् परिणामी चंुबकीकरण दृष्िटगत नहीं होता। पयार्प्त शक्ितशाली बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा ठ0 की उपस्िथति में एवं निम्न तापों पर अलग - अलग परमाणुओं के द्विध््रुव आघूणर् सरल रेखाओं में और ठ0 की दिशा के अनुदिश संरेख्िात किए जा सकते हैं। चित्रा 5ण्12 ;इद्ध बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा में रखी हुइर् अनुचुंबकीय पदाथर् की एक छड़ प्रदश्िार्त करता है। चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ पदाथर् के अंदर संकेंदि्रत हो जाती हैं और अंदर चुंबकीय क्षेत्रा बढ़ जाता है। अध्िकतर मामलांे में, जैसा सारणी 5ण्2 से प्रकट है कि यह वृि अति न्यून है, 105 भागों में एक भाग। असमान चुंबकीय क्षेत्रा में रखने पर यह छड़ निम्न क्षेत्रा से उच्च क्षेत्रा की ओर चलने की चेष्टा करेगी। कुछ अनुचुंबकीय पदाथर् हैंμऐलुमिनियम, सोडियम, कैल्िशयम, आॅक्सीजन ;ैज्च् परद्ध एवं काॅपर क्लोराइड। प्रयोगात्मक रूप से किसी अनुचुंबकीय पदाथर् का चुंबकन लगाए गए चुंबकीय क्षेत्रा के अनुक्रमानुपाती एवं परम ताप ज् के व्युत्क्रमानुपाती होता है। ठ ड 0 ब् ख्5ण्20;ंद्ध, ज् या दूसरे समतुल्य रूप में, समीकरण ;5ण्12द्ध एवं ;5ण्17द्ध के प्रयोग से ब्ज् 0 ख्5ण्20;इद्ध, यह इसके शोध्कतार् पियरे क्यूरी ;1859.1906द्ध के सम्मान में क्यूरी का नियम कहलाता है। नियतांक ब् को क्यूरी नियतांक कहते हैं। अतः किसी अनुचुंबकीय पदाथर् के लिए χ एवं μ दोनों त का मान न केवल पदाथर् पर निभर्र करता है, वरन् ;एक सरल रूप मेंद्ध इसके ताप पर भी निभर्र करता है। बहुत उच्च चंुबकीय क्षेत्रों में या बहुत निम्न ताप पर, चुंबकन अपना अध्िकतम मान ग्रहण करने लगता है, जबकि सभी परमाण्वीय द्विध्ु्रव आघूणर् चुंबकीय क्षेत्रा में रेखाओं के अनुदिश संरेख्िात हो जाते हैं। यह संतृप्त चुंबकन मान ड कहलाता है। इसके परे, क्यूरी का नियम ख्समीकरण े ;5ण्20द्ध, मान्य नहीं रह जाता है। 5ण्6ण्3 लौह चुंबकत्व लौह चुंबकीय पदाथर् ऐसे पदाथर् होते हैं जो बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा में रखे जाने पर शक्ितशाली चुंबकबन जाते हैं। उनमें चुंबकीय क्षेत्रा के क्षीण भाग शक्ितशाली भाग की ओर चलने की तीव्र प्रवृिाहोती है अथार्त वे चुंबक की ओर भारी आकषर्ण बल का अनुभव करते हैं। किसी लौह चुंबकीय पदाथर् के एकल परमाणुओं ;या आयनों या अणुओंद्ध का भी अनुचुंबकीय पदाथो± की तरह हीचुंबकीय द्विध््रुव आघूणर् होता है। परंतु, वे एक - दूसरे के साथ इस प्रकार अन्योन्य िया करते हैं किएक स्थूल आयतन में ;जिसे डोमेन कहते हैंद्ध सब एक साथ एक दिशा में संरेख्िात हो जाते हैं।इस सहकारी प्रभाव की व्याख्या के लिए क्वांटम यांत्रिाकी की आवश्यकता होती है, जो इसपाठ्यपुस्तक के क्षेत्रा से बाहर है। प्रत्येक डोमेन का अपना परिणामी चुंबकन होता है। प्रारूपी डोमेनका आकार 1 उउ है, और एक डोमेन में लगभग 1011 परमाणु होते हैं। प्रथमदृष्टया चुंबकन एक डोमेन से दूसरे डोमेन तक जाने पर यादृच्िछक रूप से बदलता है तथा वुफल पदाथर् में कोइर् चुंबकन नहीं होता। यह चित्रा 5ण्13 ;ंद्ध में दिखाया गया है। जब हम बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा ठ लगाते हैं, 0तो डोमेन ठ0 के अनुदिश उन्मुख होने लगते हैं और साथ ही वे डोमेन जो ठ0 की दिशा में हैं, साइश में बढ़ने लगते हैं। डोमेनों का अस्ितत्व और ठ के अनुदिश उनके होने वाली गति केवल 0 अनुमान नहीं है। लौह चुंबकीय पदाथर् के पाउडर को किसी द्रव में छिड़क कर उसके निलंबन चुंबकीय पदाथर्, डोमेन आदि ीजजचरूध्ध्ूूूण्दकज.मकण्वतहध्म्कनबंजपवदत्मेवनतबमेध्ब्वउउनदपजलब्वससमहमध्डंहच्ंतजपबसमध्च्ीलेपबेध्डंहदमजपबडंजसेण्ीजउ चित्रा 5ण्13 ;ंद्ध यादृच्िछक अभ्िाविन्यासित डोमेन, ;इद्ध संरेख्िात डोमेन। 193 चुंबकीय पदाथो± में शैथ्िाल्य ीजजचरूध्ध्ीलचमतचीलेपबेण्चीलऋंेजतण्हेपनण्मकनध्ीइंेमध्ेवसपकेध्ीलेजण्ीजउस को सूक्ष्मदशीर् के द्वारा उसकी यादृच्िछक गति को देखा जा सकता है। चित्रा 5ण्12 ;इद्ध वह स्िथति दशार्ता है जब सभी डोमेन पंक्ितब( हो गए हैं और उन्होंने घु ल - मिलकर एक अकेला विशाल डोमेन बना लिया है। इस प्रकार एक लौह चुंबकीय पदाथर् में चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ बहुत अिाक संवेंफित हो जाती हैं। एक असमान चुंबकीय क्षेत्रा में इस पदाथर् का नमूना अिाक शक्ितशाली चुंबकीय क्षेत्रा वाले भाग की ओर चलने को प्रवृत्त होता है। हम यह सोच सकते हैं कि बाह्य क्षेत्रा हटा लेने पर क्या होगा? वुफछ चुंबकीय पदाथो± में चुंबकन बना रह जाता है। ऐसे पदाथो± को कठोर चुंबकीय पदाथर् या कठोर लौह चुंबक कहा जाता है। एलनिको ;लोहे, ऐलुमिनियम, निकल, कोबाल्ट एवं ताँबे का एक मिश्रातुद्ध ऐसा ही एक पदाथर् है और प्राकृतिक रूप में उपलब्ध लोडस्टोन दूसरा। इन पदाथो± से स्थायी चुंबक बनते हैं और इनका उपयोग चुंबकीय सुइर् बनाने के अलावा अन्य कायो± में भी होता है। दूसरी ओर लौह चुंबकीय पदाथो± की एक श्रेणी ऐसी है जिनका चुंबकन बाह्य क्षेत्रा को हटाते ही खत्म हो जाता है। नमर् लोहा ऐसा ही एक पदाथर् है। उचित रूप से ही, ऐसे पदाथो± को नमर् लौह चुंबकीय पदाथर् कहा जाता है। बहुत से तत्व लौह चुंबकीय हैंऋ जैसेμलोहा, कोबाल्ट, निकल, गैडोलिनियम आदि। इनकी आपेक्ष्िाक चुंबकशीलता 1000 से अध्िक है। लौह चुंबकीय गुण भी ताप पर निभर्र करता है। पयार्प्त उच्च ताप पर एक लौह चुंबक, अनुचुंबक बन जाता है। ताप बढ़ने पर डोमेन संरचनाएँ विघटित होने लगती हैं। ताप बढ़ने पर चुंबकन का विलोपन धीरे - धीरे होता है। यह एक तरह का प्रावस्था ;च्ींेमद्ध परिवतर्न है वैसे ही जैसे किसी ठोस मण्िाभ ;िस्टलद्ध का पिघलना। वह ताप जिस पर कोइर् लौह चुंबक, अनुचुंबक में परिवतिर्त हो जाता है क्यूरी ताप ;ज्द्ध कहलाता है। सारणी 5ण्4 वुफछ लौह चुंबकों के क्यूरी ताप दशार्ती है। ब क्यूरी ताप से उच्चतर ताप पर अथार्त अनुचुंबकीय प्रावस्था में चुंबकीय प्रवृिा, ब् ;ज्ज् द्ध ब ;5ण्21द्ध ज्ज्ब उदाहरण 5ण्11 लौह चुंबकीय पदाथर् लोहे में कोइर् डोमेन 10दृ4उ भुजा वाले घन के रूप में है। डोमेन में लौह परमाणुओं की संख्या, अिाकतम संभावित चुंबकीय द्विधु्रव आघूणर् और इसके चुंबकन का मान ज्ञात कीजिए। लोहे का परमाण्िवक द्रव्यमान 55 हध्उवसम और इसका घनत्व 7ण्9 हध्बउ3 है। यह मान लीजिए कि प्रत्येक लौह परमाणु का चुंबकीय द्विधु्रव आघूणर् 9ण्27 × 10−24 । उ2 है। 194 हल घनीय डोमेन का आयतन होगा ट त्र ;10दृ6 उद्ध3 त्र 10दृ18 उ3 त्र 10दृ12 बउ3 इसका द्रव्यमान त्र आयतन × घनत्व त्र 7ण्9 ह बउदृ3 × 10दृ12 बउ3त्र 7ण्9 × 10दृ12 ह यह दिया गया है कि एक एवोगाद्रो संख्या ;6ण्023 × 1023द्ध के बराबर लौह परमाणुओं का द्रव्यमान 55 ह है। अतः डोमेन में परमाणुओं की संख्या, 12 23 7ण्9 10 6ण्02310 छ 55 त्र 8ण्65 × 1010 परमाणु अिाकतम संभावित चुंबकीय द्विधु्रव आघूणर् उ तब प्राप्त होता है ;यद्यपि यह एक अवास्तविक अध्िकतम स्िथति हैद्ध, जब सभी परमाण्िवक आघूणर् पूणर्तः पंक्ितब( हो जाते हैं। अतः उ त्र ;8ण्65 × 1010द्ध × ;9ण्27 × 10दृ24द्ध अध्िकतम त्र 8ण्0 × 10दृ13 । उ2 परिणामी चुंबकन का मान ड त्र उध्डोमेन आयतन अध्िकतमअध्िकतम त्र 8ण्0 × 10दृ13 ।उ2ध्10दृ18 उ3 त्र 8ण्0 × 105 । उदृ1 लौह - चुंबकीय पदाथो± में ठ एवं भ् का संबंध बहुत जटिल है। प्रायः यह रैख्िाक संबंध नहीं होताएवं नमूने के चुंबकीय अतीत पर निभर्र करता है। चित्रा 5ण्14 चुंबकन के एक चक्र में पदाथर् काव्यवहार चित्रिात करता है। माना कि पदाथर् शुरू में बिलवुफल विचुंबकित है। हम इसको परिनालिकामें रखते हैं और परिनालिका में धारा का मान बढ़ाते हैं। पदाथर् में चुंबकीय क्षेत्रा ठ का मान बढ़ता है और अंत में संतृप्त हो जाता है जैसा कि वक्र व्ं में चित्रिात है। यह व्यवहारदशार्ता है कि डोमेन तब तक पंक्ितब( और एक - दूसरे में विलीन होते रहते हैंजब तक कि आगे वृि असंभव न हो जाए। इससे आगे धारा ;और इस कारणचुंबकीय तीव्रता भ्द्ध को बढ़ाने का कोइर् उपयोग नहीं है। पिफर, हम भ् को घटाते हुए शून्य पर ले आते हैं। भ् त्र 0 पर ठ ≠ 0 है। यह वक्र ंइ द्वारा प्रदश्िार्त है। भ् त्र 0 पर ठ का मान पदाथर् की चुंबकीय धारणशीलता या चुंबकत्वावशेषकहलाता है। चित्रा 5ण्14 में ठत् ् 1ण्2 ज् है, यहाँ निम्नष्ठ त् धरणशीलता कोइंगित करता है। बाह्य चुंबकनकारी क्षेत्रा हटा लेने पर भी डोमेन पूणर्तः बेतरतीबविन्यास ग्रहण नहीं कर पाते। अब, परिनालिका में धारा की दिशा उलट देते हैंऔर धीरे - धीरे इसका मान बढ़ाते हैं। पफलस्वरूप वुफछ डोमेन पलटकर अपनाविन्यास बदल लेते हैं, जब तक कि अंदर परिणामी क्षेत्रा शून्य न हो जाए। यह वक्र इब द्वारा दशार्या गया है। ब ¯बदु पर भ् का मान, पदाथर् की निग्राहिता कहलातीहै। चित्रा 5ण्14 में, भ् ∼ −90 । उ−1। प्रतिलोम धारा का परिमाण बढ़ाते जाने पर ब हम एक बार पिफर संतृप्तता की स्िथति प्राप्त कर लेते हैं। वक्र बक यही दशार्ताहै। संतृप्त चुंबकीय क्षेत्रा ठ ् 1ण्5 ज् है। एक बार पिफर, धारा को कम किया े जाता है ;वक्र कमद्ध और पिफर उलट दिया जाता है ;वक्र मंद्ध। यह चक्र दोहरायाजाता रहता है। इस विषय में हम निम्नलिख्िात प्रेक्षण लेते हैंः ;पद्ध जब भ् को कम किया जाता है,तो वक्र व्ं पुनः अनुरेख्िात नहीं होता। भ् के दिए गए मान के लिए, ठ का कोइर् अद्वितीय मानलब्ध नहीं होता, बल्िक यह नमूने के पूवर् इतिहास पर निभर्र करता है। यह परिघटना चुंबकीय शैथ्िाल्य;भ्लेजमतपेपेद्ध कहलाती है। शब्द हिस्टेरिसिस का अथर् चुंबकीय पश्चता है ;‘इतिहास’ नहींद्ध। 5ण्7 स्थायी चुंबक एवं विद्युत चुंबक वह पदाथर् जो कमरे के ताप पर अपने लौह - चुंबकीय गुण दीघर् काल के लिए बनाए रख सकते हैं, स्थायी चुंबक कहलाते हैं। स्थायी चुंबक विभ्िान्न तरीकों से बनाए जा सकते हैं। लोहे की एक 195 छड़ को उत्तर - दक्ष्िाण दिशा में रख कर बार - बार इस पर हथौड़े से प्रहार करते हैं तो वह चुंबक बन जाती है। यह वििा चित्रा 5ण्15 में दशार्यी गइर् है। यह चित्रा एक 400 साल पुरानी पुस्तक से यह दशार्ने के लिए लिया गया है कि स्थायी चुंबक बनाने की कला कापफी पुरानी है। स्थायी चुंबक बनाने के लिए एक स्टील की छड़ को पकड़कर उसके ऊपर किसी छड़ चुंबक का एक सिरा एक ओर से दूसरी ओर स्पशर् कराते हुए बार - बार ले जाते हैं। स्थायी चुंबक बनाने का एक प्रभावी तरीका यह है कि किसी परिनालिका के अंदर एक लौह चुंबकीय पदाथर् की छड़ रखी जाए और उस परिनालिका में नियत दिष्ट धारा प्रवाहित की जाए। परिनालिका का चुंबकीय क्षेत्रा छड़ को चुंबकित कर देता है। चुंबकीय शैथ्िाल्य वक्र ;चित्रा 5ण्14द्ध हमें स्थायी चुंबकों के लिए उचित पदाथर् चुनने में सहायता करते हैं। शक्ितशाली चुंबक बनाने के लिए पदाथर् की उच्च चुंबकीय धारणशीलता और उच्च निग्राहिता होनी चाहिए ताकि इधर - उधर के चुंबकीय क्षेत्रों या तापीय उतार - चढ़ावों या क्षुद्र यांत्रिाक हानियों के कारण इसका चुंबकत्व आसानी से खत्म न हो जाए। इसके अलावा पदाथर् की उच्च चुंबकशीलता होनी चाहिए। स्टील ऐसा ही एकपदाथर् है। इसकी धारणशीलता नमर् लोहे से वुफछ कम है पर नमर् लोहे की निग्राहिताइतनी कम है कि सब गुणों को सोचें तो स्थायी चुंबक बनाने के लिए स्टील नमर्लोहे से बेहतर है। स्थायी चुंबकों के लिए उपयुक्त अन्य पदाथो± के नाम हैंμऐलनिको ;लोहे, एलुमिनियम, निकल, कोबाल्ट एवं ताँबे का एक मिश्रातुद्ध, कोबाल्ट - स्टील एवं टिकोनल। विद्युत चुंबक ऐसे लौह चुंबकीय पदाथो± के बने होते हैं जिनकी चुंबकशीलता बहुत अिाक एवंधारणशीलता बहुत कम होती है। नमर् लोहा विद्युत चुंबकों के लिए एक उपयुक्त पदाथर् है। किसीपरिनालिका के अंदर नमर् लोहे की छड़ रख कर हम उसमें नियत दिष्ट धारा प्रवाहित करते हैं, तोपरिनालिका का चुंबकीय क्षेत्रा हशार गुना बढ़ जाता है। जब हम परिनालिका में धारा प्रवाहित करनाबंद कर देते हैं तो चुंबकीय क्षेत्रा भी वस्तुतः समाप्त हो जाता है क्योंकि नमर् लोहे वाले क्रोड कीचुंबकीय धारणशीलता बहुत कम है। यह व्यवस्था चित्रा 5ए16 में दशार्यी गइर् है। चित्रा 5ण्15 एक लोहार, उत्तर - दक्ष्िाण दिशा में रखी एक लाल गमर् लोहे की छड़ को हथौड़े से पीट कर चुंबक में बदलते हुए। यह आरेख सन 1600 में प्रकाश्िात, डाॅ. विलियम गिल्बटर् ;जो इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ के शाही चिकित्सक थेद्ध की पुस्तक, डे मैग्नेटे ;क्म डंहदमजमद्ध से है। भारत के चंुबकीय क्षेत्रा ीजजचरूध्ध्पपहेण्पपहउण्तमेण्पद चित्रा 5ण्16 एक नमर् लौह - क्रोड युक्त परिनालिका विद्युत चुंबक की तरह व्यवहार करती है। वुफछ अनुप्रयोगों में पदाथर् एक लंबे समय तक चुंबकन के प्रत्यावतीर् चक्र से गुजरता है। ट्रांसपफाॅमर्रके क्रोड एवं टेलीपफोन के डायÚाम में ऐसा ही होता है। इनमें प्रयुक्त पदाथो± के चुंबकीय शैथ्िाल्यवक्र संकीणर् होने चाहिए। परिणामस्वरूप इनमें ऊष्मा क्षय एवं ताप वृि कम होगी। इन पदाथो± कीप्रतिरोधकता भी कम होनी चाहिए ताकि भँवर धाराओं के कारण ऊजार् क्षय में कमी रहे। भँवर धाराओं के विषय में हम अध्याय 6 में अध्ययन करेंगे। विद्युत चुंबकों का अनुप्रयोग विद्युत घंटियों, ध्वनि विस्तारक एवं दूरभाष यंत्रों में होता है। विशालकाय विद्युत चुंबकों का व्रेफनांे में मशीनों या लोहे एवं स्टील की भारी वस्तुओं को उठाने के 196 लिए इस्तेमाल किया जाता है। सारांश 1ण् चुंबकत्व विज्ञान एक प्राचीन विज्ञान है। यह अत्यंत प्राचीन काल से ज्ञात रहा है कि चुंबकीयपदाथो± में उत्तर - दक्ष्िाण दिशा में संकेत करने की प्रवृिा होती है। समान धु्रव एक - दूसरे को प्रतिकष्िार्त करते हैं और विपरीत धु्रव आकष्िार्त। किसी छड़ चुंबक को काटकर दो भागों में विभाजित करें तो दो छोटे चुंबक बन जाते हैं। चुंबक के धु्रव अलग नहीं किए जा सकते। 2ण् जब उचंुबकीय द्विधु्रव आघूणर् वाले छड़ चुंबक को समांग चुंबकीय क्षेत्रा ठमें रखते हैं, तो ;ंद्ध इस पर लगने वाला वुफल बल शून्य होता है। ;इद्ध बल आघूणर् उ× ठहोता है। ;बद्ध इसकी स्िथतिज ऊजार् दृउण्ठहोती है, जहाँ हमने शून्य ऊजार् को उस विन्यास में लिया है जब उचुंबकीय क्षेत्रा ठके लंबवत है। 3ण् लंबाइर् स एवं चुंबकीय आघूणर् उका एक छड़ चुंबक लीजिए। इसके मध्य ¯बदु से त दूरी पर, जहाँ त झझ सए इस छड़ के कारण चुंबकीय क्षेत्रा ठका मान होगा, ठ0उ ;अक्ष के अनुदिशद्ध 2त3 0उ 3 ;विषुवत वृत्त के अनुदिशद्ध 4त 4ण् चुंबकत्व सबधी गाउस के नियमानुसार, किसी बंद पृष्ठ में से गुजरने वाला वुफल चुंबकीय ं फ्रलक्स हमेशा शून्य होता है। ण् ठै ठ त्र 0 सभी क्षेत्रापफलअश्ं ाांेै वफे लिए 5ण् पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा, पृथ्वी के वेंफद्र पर रखे एक चुंबकीय द्विध्ु्रव ;परिकल्िपतद्ध के समतुल्यहै। पृथ्वी के भौगोलिक उत्तरी ध्ु्रव के समीप के ध््रुव को उत्तरी चुंबकीय ध्ु्रव कहते हैं। इसी प्रकार से, पृथ्वी के भौगोलिक दक्ष्िाणी ध्ु्रव के समीप के ध्ु्रव को दक्ष्िाण चुंबकीय ध्ु्रव कहते हैं। यह द्विधु्रव पृथ्वी के घूणर्न अक्ष से एक छोटा कोण बनाता है। पृथ्वी की सतह पर चुंबकीय क्षेत्रा का परिमाण ≈ 4 × 10दृ5 ज् है। 197 6ण् पृथ्वी की सतह पर इसके चुंबकीय क्षेत्रा का विवरण देने के लिए तीन राश्िायाँ आवश्यक हैंμ चुंबकीय क्षेत्रा का क्षैतिज अवयव, चुंबकीय दिव्फपात एवं चुंबकीय नति। ये पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा के अवयव हैं। 7ण् माना कि कोइर् पदाथर् एक बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा ठ में रखा है। चुंबकीय तीव्रता की परिभाषा है, 0 ठ भ् 0 0 पदाथर् का चुंबकन ड इसका द्विधु्रव आघूणर् प्रति इकाइर् आयतन है। पदाथर् के अंदर चुंबकीय क्षेत्रा ठ 0;भ् डद्ध 8ण् रैख्िाक पदाथर् के लिए, ड त्र χ भ् जिससे कि ठ त्र μ भ् एवं χ पदाथर् की चुंबकीय प्रवृिा कहलाती है। राश्िायों χ, आपेक्ष्िाक चुंबकशीलता μ एवं त चुंबकशीलता μ में निम्नलिख्िात संबंध हैंμ 0 त 1 त 9ण् चुंबकीय पदाथो± को मोटे तौर पर तीन श्रेण्िायों में विभाजित करते हैं: प्रतिचुंबकीय, अनुचुंबकीय एवं लौह चुंबकीय। प्रतिचुंबकीय पदाथो± के लिए χ का मान )णात्मक और प्रायः बहुत कम होता है, अनुचुंबकीय पदाथो± के लिए χ धनात्मक एवं बहुत कम है। लौह चुंबकों के लिए χ धनात्मक एवं बहुत अिाक मान वाला है और ये ठ एवं भ् के रैख्िाक संबंधों से भी पहचाने जाते हैं। वे शैथ्िाल्यता का गुण प्रदश्िार्त करते हैं। 10ण् वे पदाथर् जो सामान्य ताप पर लंबे समय के लिए लौह चुंबकीय गुण दशार्ते हैं, स्थायी चुंबक कहलाते हैं। निवार्त की चुंबकशीलता μ0 अदिश ख्ड स् ज्दृ2 ।दृ2, ज् उ ।दृ1 μ0ध्4π त्र 10दृ7 चुंबकीय क्षेत्राऋचुंबकीय प्रेरणऋचुंबकीय फ्रलक्स घनत्व ठ सदिश ख्ड ज्दृ2 ।दृ1, ज् ;टेस्लाद्ध 104 ळ ;गाउसद्ध त्र 1 ज् चुंबकीय आघूणर् उ सदिश ख्स्दृ2 ।, । उ2 चुंबकीय फ्रलक्स φठ अदिश ख्ड स्2 ज्दृ2 ।दृ1, ॅ ;वेबरद्ध ॅ त्र ज् उ2 चुंबकन ड सदिश ख्स्दृ1।, । उदृ1 चबुं कीय आघण्ूार् आयतन चुंबकीय तीव्रता भ् सदिश ख्स्दृ1।, । उदृ1 द्ध;0 डभ्ठ चुंबकीय क्षेत्रा सामथ्यर् चुंबकीय प्रवृिा χ अदिश . . ड त्र χ भ् आपेक्ष्िाक चुंबकशीलता μ त अदिश . . भ्ठ त 0 चुंबकशीलता μ अदिश ख्ड स् ज्दृ2।दृ2, ज् उ ।दृ1 त 0 छ ।दृ2 भ्ठ 198 विचारणीय विषय 1ण् गतिमान आवेशों/धाराओं के माध्यम से चुंबकीय प्रक्रमों की संतोषजनक समझ सन 1800 इर्के बाद पैदा हुइर्। लेकिन, चुंबकों के दैश्िाक गुणों का प्रौद्योगिकीय उपयोग इस वैज्ञानिक समझ से दो हजार वषर् पूवर् होने लगा था। अतः अभ्िायंात्रिाक अनुप्रयोगों के लिए, वैज्ञानिक समझ का होना कोइर् आवश्यक शतर् नहीं है। आदशर् स्िथति यह है कि विज्ञान और अभ्िायंात्रिाकी एक - दूसरे से सहयोग करते हुए चलते हैं। कभी विज्ञान अभ्िायंात्रिाकी को आगे बढ़ाता है तो कभी अभ्िायंात्रिाकी विज्ञान को। 2ण् एकल चुंबकीय धु्रवों का अस्ितत्व नहीं होता। यदि आप एक चुंबक को काट कर दो टुकड़े करतेहैं तो आपको दो छोटे चुंबक प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत पृथक्कृत धनात्मक एवं )णात्मक विद्युत आवेशों का अस्ितत्व है। एक इलेक्ट्राॅन पर आवेश का परिमाण ⏐म⏐ त्र 1ण्6 × 10दृ19 ब् होता है जो आवेश का सूक्ष्मतम मान है। अन्य सभी आवेश इस न्यूनतम इकाइर् आवेश के पूणर्गुणांक होते हैं। दूसरे शब्दों में, आवेश क्वांटीकृत होते हैं। हमें ज्ञात नहीं है कि एकल चुंबकीय ध््रुवों का अस्ितत्व क्यों नहीं है अथवा विद्युत आवेश क्वांटीवृफत क्यों होता है? 3ण् इस तथ्य का कि चुंबकीय एकल धु्रवों का अस्ितत्व नहीं होता, एक परिणाम यह है कि चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ संतत हैं और बंद लूप बनाती हैं। इसके विपरीत, वैद्युत बल रेखाएँ धनावेश से शुरू होकर )णावेश पर समाप्त हो जाती हैं ;या अनंत में लीन हो जाती हैंद्ध। 4ण् पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा इसके अंदर रखे एक विशाल छड़ चुंबक के कारण नहीं है। पृथ्वी का क्रोड गमर् एवं पिघली हुइर् अवस्था में है। शायद इस क्रोड में प्रवाहित होने वाली संवहन धाराएँ ही पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा के लिए जिम्मेदार हैं। हम नहीं जानते कि वह कौन - सा ‘जनित्रा’ प्रभाव है जो इन धाराओं को बनाये रखता है और पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा लगभग हर दस लाख सालों में अपनी धु्रवता क्यों उलट लेता है। 5ण् चुंबकीय प्रवृिा χ के मान में अत्यल्प अंतर से पदाथर् के व्यवहार में मूलभूत अंतर पाया जाता है, जैसे प्रतिचुंबक और अनुचुंबक के व्यवहारों में अंतर। प्रतिचुंबकीय पदाथो± के लिए χ दृ10दृ5 जबकि अनुचुंबकीय पदाथो± के लिए χ ़10दृ5। 6ण् अतिचालक, परिपूणर् प्रतिचंुबक ;चमतमिबज कपंउंहदमजपबद्ध भी होते हैं। इसके लिए χ त्र दृ1ए μ त्र 0ए μ त्र 0। बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा पूणर्तः इसके बाहर ही रहता है। एक मनोरंजक तथ्य यह त है कि यह पदाथर् एक परिपूणर् चालक भी है। परंतु, ऐसा कोइर् चिरसम्मत सि(ांत नहीं है जो इन दोनों गुणों में एक सूत्राता ला सके। बाडीर्न, वूफपर एवं श्रीपफर ने एक क्वांटम यांत्रिाकीय सि(ांत ;ठब्ै सि(ांतद्ध दिया है, जो इन प्रभावों की व्याख्या कर सकता है। ठब्ै सि(ांत 1957 में प्रस्तावित किया गया था और बाद में, 1970 में, भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के रूप में इसको मान्यता प्राप्त हुइर्। 7ण् चुंबकीय शैथ्िाल्यता की परिघटना, पदाथो± के प्रत्यास्थता संबंधी मिलते - जुलते व्यवहार की याददिलाता है। जैसेμप्रतिबल, विकृति के अनुक्रमानुपाती होना आवश्यक नहीं है वैसे ही यहाँ भ् एवं ठ ;या डद्ध में रैख्िाक संबंध नहीं है। प्रतिबल - विकृति वक्र शैथ्िाल्यता का प्रदशर्न करता हैऔर इससे घ्िारा हुआ क्षेत्रापफल प्रति इकाइर् आयतन में होने वाला ऊजार् क्षय व्यक्त करता है। ठ.भ् चुंबकीय शैथ्िाल्य वक्र की भी इसी तरह की व्याख्या की जा सकती है। 8ण् प्रतिचुंबकत्व सावर्त्रिाक है। यह सभी पदाथो± में विद्यमान है। परंतु अनुचुंबकीय एवं लौह चुंबकीय पदाथो± में यह बहुत क्षीण होता है और इसका पता लगाना बहुत कठिन है। 9ण् हमने पदाथो± का प्रतिचुंबकीय, अनुचुंबकीय एवं लौह चुंबकीय रूपों में वगीर्करण किया है। लेकिन चुंबकीय पदाथो± के इनके अलावा भी वुफछ प्रकार हैंऋ जैसेμलघु लौह चंुबकीय ;पेफरी चुंबकीयद्ध, प्रतिलौह चुंबकीय, स्िपन - काँच आदि जिनके गुण बहुत ही असामान्य एवं रहस्यमय हैं। 199 अभ्यास 5ण्1 भू - चुंबकत्व संबंधी निम्नलिख्िात प्रश्नों के उत्तर दीजिएμ ;ंद्ध एक सदिश को पूणर् रूप से व्यक्त करने के लिए तीन राश्िायों की आवश्यकता होती है। उन तीन स्वतंत्रा राश्िायों के नाम लिख्िाए जो परंपरागत रूप से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होती हैं। ;इद्ध दक्ष्िाण भारत में किसी स्थान पर नति कोण का मान लगभग 18व है। बि्रटेन में आप इससे अिाक नति कोण की अपेक्षा करेंगे या कम की? ;बद्ध यदि आप आॅस्टेªलिया के मेल्बोनर् शहर में भू - चुंबकीय क्षेत्रा रेखाओं का नक्शा बनाएँ तो ये रेखाएँ पृथ्वी के अंदर जाएँगी या इससे बाहर आएँगी? ;कद्ध एक चुंबकीय सुइर् जो ऊध्वार्ध्र तल में घूमने के लिए स्वतंत्रा है, यदि भू - चुंबकीय उत्तर या दक्ष्िाण धु्रव पर रखी हो तो यह किस दिशा में संकेत करेगी? ;मद्ध यह माना जाता है कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा लगभग एक चुंबकीय द्विधु्रव के क्षेत्रा जैसा है जो पृथ्वी के वेंफद्र पर रखा है और जिसका द्विधु्रव आघूणर् 8 × 1022 श्रज्दृ1 है। कोइर् ढंग सुझाइए जिससे इस संख्या के परिमाण की कोटि जाँची जा सके। ;द्धि भू - गभर्शास्ित्रायों का मानना है कि मुख्य छ.ै चुंबकीय धु्रवों के अतिरिक्त, पृथ्वी की सतह पर कइर् अन्य स्थानीय धु्रव भी हैं, जो विभ्िान्न दिशाओं में विन्यस्त हैं। ऐसा होना वैफसे संभव है? 5ण्2 निम्नलिख्िात प्रश्नों के उत्तर दीजिएμ ;ंद्ध एक जगह से दूसरी जगह जाने पर पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा बदलता है। क्या यह समय के साथ भी बदलता है? यदि हाँ, तो कितने समय अंतराल पर इसमें पयार्प्त परिवतर्न होते हैं? ;इद्ध पृथ्वी के क्रोड में लोहा है, यह ज्ञात है। पिफर भी भूगभर्शास्त्राी इसको पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्राका ड्डोत नहीं मानते। क्यों? ;बद्ध पृथ्वी के क्रोड के बाहरी चालक भाग में प्रवाहित होने वाली आवेश धाराएँ भू - चुंबकीय क्षेत्राके लिए उत्तरदायी समझी जाती हैं। इन धाराओं को बनाए रखने वाली बैटरी ;ऊजार् ड्डोतद्ध क्या हो सकती है? ;कद्ध अपने 4.5 अरब वषो± के इतिहास में पृथ्वी अपने चुंबकीय क्षेत्रा की दिशा कइर् बार उलट चुकी होगी। भूगभर्शास्त्राी, इतने सुदूर अतीत के पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा के बारे में वैफसे जान पाते हैं? ;मद्ध बहुत अिाक दूरियों पर ;30ए000 ाउ से अिाकद्ध पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा अपनी द्विधु्रवीयआकृति से कापफी भ्िान्न हो जाता है। कौन से कारक इस विकृति के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं? ;द्धि अंतरातारकीय अंतरिक्ष में 10.12 ज् की कोटि का बहुत ही क्षीण चुंबकीय क्षेत्रा होता है। क्या इस क्षीण चुंबकीय क्षेत्रा के भी वुफछ प्रभावी परिणाम हो सकते हैं? समझाइए। ¹टिप्पणी: प्रश्न 5ण्2 का उद्देश्य मुख्यतः आपकी जिज्ञासा जगाना है। उपरोक्त कइर् प्रश्नों केउत्तर या तो काम चलाऊ हैं या अज्ञात हैं। जितना संभव हो सका, प्रश्नों के संक्ष्िाप्त उत्तर पुस्तकके अंत में दिए गए हैं। विस्तृत उत्तरों के लिए आपको भू - चुंबकत्व पर कोइर् अच्छी पाठ्यपुस्तक देखनी होगी।ह् 5ण्3 एक छोटा छड़ चुंबक जो एकसमान बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा 0ण्25 ज् के साथ 30व का कोण बनाता 200 है, पर 4ण्5 × 10.2 श्र का बल आघूणर् लगता है। चुंबक के चुंबकीय आघूणर् का परिमाण क्या है? 5ण्4 चुंबकीय आघूणर् उ त्र 0ण्32 श्रज्.1 वाला एक छोटा छड़ चुंबक, 0ण्15 ज् के एकसमान बाह्य चुंबकीय क्षेत्रा में रखा है। यदि यह छड़ क्षेत्रा के तल में घूमने के लिए स्वतंत्रा हो, तो क्षेत्रा के किस विन्यास में यह ;पद्ध स्थायी संतुलन और ;पपद्ध अस्थायी संतुलन में होगा? प्रत्येक स्िथति में चुंबककी स्िथतिज ऊजार् का मान बताइए। 5ण्5 एक परिनालिका में पास - पास लपेटे गए 800 पफेरे हैं, तथा इसका अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रापफल 2ण्5 × 10.4 उ2 है और इसमें 3ण्0 । धारा प्रवाहित हो रही है। समझाइए कि किस अथर् में यह परिनालिका एक छड़ चुंबक की तरह व्यवहार करती है? इसके साथ जुड़ा हुआ चुंबकीय आघूणर् कितना है? 5ण्6 यदि प्रश्न 5ण्5 में बताइर् गइर् परिनालिका ऊध्वार्धर दिशा के परितः घूमने के लिए स्वतंत्रा हो और इस पर क्षैतिज दिशा में एक 0ण्25 ज् का एकसमान चुंबकीय क्षेत्रा लगाया जाए, तो इस परिनालिका पर लगने वाले बल आघूणर् का परिमाण उस समय क्या होगा, जब इसकी अक्ष आरोपित क्षेत्रा की दिशा से 30व का कोण बना रही हो? 5ण्7 एक छड़ चुंबक जिसका चुंबकीय आघूणर् 1ण्5 श्र ज्.1 है, 0ण्22 ज् के एक एकसमान चुंबकीय क्षेत्रा के अनुदिश रखा है। ;ंद्ध एक बाह्य बल आघूणर् कितना कायर् करेगा यदि यह चुंबक को चुंबकीय क्षेत्रा के ;पद्ध लंबवत ;पपद्ध विपरीत दिशा में संरेख्िात करने के लिए घुमा दे। ;इद्ध स्िथति ;पद्ध एवं ;पपद्ध में चुंबक पर कितना बल आघूणर् होता है? 5ण्8 एक परिनालिका जिसमें पास - पास 2000 पफेरे लपेटे गए हैं तथा जिसके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रापफल 1ण्6 × 10.4 उ2 है और जिसमें 4ण्0 । की धारा प्रवाहित हो रही है, इसके वेंफद्र से इस प्रकार लटकायी गइर् है कि यह एक क्षैतिज तल में घूम सके। ;ंद्ध परिनालिका के चुंबकीय आघूणर् का मान क्या है? ;इद्ध परिनालिका पर लगने वाला बल एवं बल आघूणर् क्या है, यदि इस पर, इसकी अक्ष से 30व का कोण बनाता हुआ 7ण्5 × 10.2 ज् का एकसमान क्षैतिज चुंबकीय क्षेत्रा लगाया जाए? 5ण्9 एक वृत्ताकार वुफंडली जिसमें 16 पफेरे हैं, जिसकी त्रिाज्या 10 बउ है और जिसमें 0ण्75 । धारा प्रवाहित हो रही है, इस प्रकार रखी है कि इसका तल, 5ण्0 × 10.2 ज् परिमाण वाले बाह्य क्षेत्रा के लंबवत है। वुफंडली, चुंबकीय क्षेत्रा के लंबवत और इसके अपने तल में स्िथत एक अक्ष के चारों तरपफ घूमने के लिए स्वतंत्रा है। यदि वुफंडली को जरा - सा घुमा कर छोड़ दिया जाए तो यह अपनी स्थायी संतुलनावस्था के इधर - उधर 2ण्0 े.1 की आवृिा से दोलन करती है। वुफंडली का अपने घूणर्न अक्ष के परितः जड़त्व - आघूणर् क्या है? 5ण्10 एक चुंबकीय सुइर् चुंबकीय याम्योत्तर के समांतर एक ऊध्वार्धर तल में घूमने के लिए स्वतंत्रा है।इसका उत्तरी धु्रव क्षैतिज से 22व के कोण पर नीचे की ओर झुका है। इस स्थान पर चुंबकीय क्षेत्रा के क्षैतिज अवयव का मान 0ण्35 ळ है। इस स्थान पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा का परिमाण ज्ञात कीजिए। 5ण्11 दक्ष्िाण अÚीका में किसी स्थान पर एक चुंबकीय सुइर् भौगोलिक उत्तर से 12व पश्िचम की ओरसंकेत करती है। चुंबकीय याम्योत्तर में संरेख्िात नति - वृत्त की चुंबकीय सुइर् का उत्तरी धु्रव क्षैतिज से 60व उत्तर की ओर संकेत करता है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा का क्षैतिज अवयव मापने पर 0ण्16 ळ पाया जाता है। इस स्थान पर पृथ्वी के क्षेत्रा का परिमाण और दिशा बताइए। 5ण्12 किसी छोटे छड़ चुंबक का चुंबकीय आघूणर् 0ण्48 श्रज्.1 है। चुंबक के वेंफद्र से 10 बउ की दूरी पर स्िथत किसी ¯बदु पर इसके चुंबकीय क्षेत्रा का परिमाण एवं दिशा बताइए यदि यह ¯बदु ;पद्ध चुंबक 201 के अक्ष पर स्िथत हो ;पपद्ध चुंबक के अभ्िालंब समद्विभाजक पर स्िथत हो। 5ण्13 क्षैतिज तल में रखे एक छोटे छड़ चुंबक का अक्ष, चुंबकीय उत्तर - दक्ष्िाण दिशा के अनुदिश है। संतुलन ¯बदु चुंबक के अक्ष पर, इसके वेंफद्र से 14 बउ दूर स्िथत है। इस स्थान पर पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा 0ण्36 ळ एवं नति कोण शून्य है। चुंबक के अभ्िालंब समद्विभाजक पर इसके वेंफद्र से उतनी ही दूर ;14 बउद्ध स्िथत किसी ¯बदु पर परिणामी चुंबकीय क्षेत्रा क्या होगा? 5ण्14 यदि प्रश्न 5ण्13 में वण्िार्त चुंबक को 180व से घुमा दिया जाए तो संतुलन ¯बदुओं की नयी स्िथति क्या होगी? 5ण्15 एक छोटा छड़ चुंबक जिसका चुंबकीय आघूणर् 5ण्25 × 10.2 श्रज्.1 है, इस प्रकार रखा है कि इसका अक्ष पृथ्वी के क्षेत्रा की दिशा के लंबवत है। चुंबक के वेंफद्र से कितनी दूरी पर, परिणामी क्षेत्रा पृथ्वी के क्षेत्रा की दिशा से 45व का कोण बनाएगा, यदि हम ;ंद्ध अभ्िालंब समद्विभाजक पर देखें, ;इद्ध अक्ष पर देखें। इस स्थान पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा का परिमाण 0ण्42 ळ है। प्रयुक्त दूरियों की तुलना में चुंबक की लंबाइर् की उपेक्षा कर सकते हैं। अतिरिक्त अभ्यास 5ण्16 निम्नलिख्िात प्रश्नों के उत्तर दीजिएμ ;ंद्ध ठंडा करने पर किसी अनुचुंबकीय पदाथर् का नमूना अिाक चुंबकन क्यों प्रदश्िार्त करता है? ;एक ही चुंबककारी क्षेत्रा के लिएद्ध ;इद्ध अनुचुंबकत्व के विपरीत, प्रतिचुंबकत्व पर ताप का प्रभाव लगभग नहीं होता। क्यों? ;बद्ध यदि एक टोराॅइड में बिस्मथ का क्रोड लगाया जाए तो इसके अंदर चुंबकीय क्षेत्रा उस स्िथति की तुलना में ;¯कचितद्ध कम होगा या ;¯कचितद्ध ज्यादा होगा, जबकि क्रोड खाली हो? ;कद्ध क्या किसी लौह चुंबकीय पदाथर् की चुंबकशीलता चुंबकीय क्षेत्रा पर निभर्र करती है? यदि हाँ, तो उच्च चुंबकीय क्षेत्रों के लिए इसका मान कम होगा या अिाक? ;मद्ध किसी लौह चुंबक की सतह के प्रत्येक ¯बदु पर चुंबकीय क्षेत्रा रेखाएँ सदैव लंबवत होती हैं ¹यह तथ्य उन स्िथरवैद्युत क्षेत्रा रेखाओं के सदृश है जो कि चालक की सतह के प्रत्येक ¯बदु पर लंबवत होती हैंह्। क्यों? ;द्धि क्या किसी अनुचुंबकीय नमूने का अिाकतम संभव चुंबकन, लौह चुंबक के चुंबकन के परिमाण की कोटि का होगा? 5ण्17 निम्नलिख्िात प्रश्नों के उत्तर दीजिएμ ;ंद्ध लौह चुंबकीय पदाथर् के चुंबकन वक्र की अनुत्क्रमणीयता, डोमेनो के आधार पर गुणात्मक दृष्िटकोण से समझाइए। ;इद्ध नमर् लोहे के एक टुकड़े के शैथ्िाल्य लूप का क्षेत्रापफल, काबर्न - स्टील के टुकड़े के शैथ्िाल्य लूप के क्षेत्रापफल से कम होता है। यदि पदाथर् को बार - बार चुंबकन चक्र से गुजारा जाए तोकौन सा टुकड़ा अिाक ऊष्मा ऊजार् का क्षय करेगा? ;बद्ध लौह चुंबक जैसा शैथ्िाल्य लूप प्रदश्िार्त करने वाली कोइर् प्रणाली स्मृति संग्रहण की युक्ित है। इस कथन की व्याख्या कीजिए। ;कद्ध वैफसेट के चुंबकीय पफीतों पर पतर् चढ़ाने के लिए या आधुनिक कंप्यूटर में स्मृति संग्रहण के लिए, किस तरह के लौह चुंबकीय पदाथो± का इस्तेमाल होता है? ;मद्ध किसी स्थान को चुंबकीय क्षेत्रा से परिरक्ष्िात करना है। कोइर् वििा सुझाइए। 5ण्18 एक लंबे, सीधे, क्षैतिज केबल में, 2ण्5 । धारा, 10व दक्ष्िाण - पश्िचम से 10व उत्तर - पूवर् की ओरप्रवाहित हो रही है। इस स्थान पर चुंबकीय याम्योत्तर भौगोलिक याम्योत्तर के 10व पश्िचम में है। यहाँ पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा 0ण्33 ळ एवं नति कोण शून्य है। उदासीन ¯बदुओं की रेखा निधार्रित कीजिए। ;केबल की मोटाइर् की उपेक्षा कर सकते हैंद्ध। ;उदासीन ¯बदुओं पर, धरावाही केबल द्वारा चुंबकीय क्षेत्रा, पृथ्वी के क्षैतिज घटक के चुंबकीय क्षेत्रा 202 के समान एवं विपरीत दिशा में होता है।द्ध 5ण्19 किसी स्थान पर एक टेलिपफोन केबल में चार लंबे, सीधे, क्षैतिज तार हैं जिनमें से प्रत्येक में 1ण्0 । की धारा पूवर् से पश्िचम की ओर प्रवाहित हो रही है। इस स्थान पर पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्रा 0ण्39 ळ एवं नति कोण 35व है। दिव्फपात कोण लगभग शून्य है। केबल के 4ण्0 बउ नीचे और 4ण्0 बउ ऊपर परिणामी चुंबकीय क्षेत्रों के मान क्या होंगे? 5ण्20 एक चुंबकीय सुइर् जो क्षैतिज तल में घूमने के लिए स्वतंत्रा है, 30 पफेरों एवं 12 बउ त्रिाज्या वालीएक वुफंडली के वेंफद्र पर रखी है। वुफंडली एक ऊध्वार्धर तल में है और चुंबकीय याम्योत्तर से 45व का कोण बनाती है। जब वुफंडली में 0ण्35 । धारा प्रवाहित होती है, चुंबकीय सुइर् पश्िचम से पूवर् की ओर संकेत करती है। ;ंद्ध इस स्थान पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रा के क्षैतिज अवयव का मान ज्ञात कीजिए। ;इद्ध वुफंडली में धारा की दिशा उलट दी जाती है और इसको अपनी ऊध्वार्धर अक्ष पर वामावतर्दिशा में ;ऊपर से देखने परद्ध 90व के कोण पर घुमा दिया जाता है। चुंबकीय सुइर् किस दिशा में ठहरेगी? इस स्थान पर चुंबकीय दिव्फपात शून्य लीजिए। 5ण्21 एक चुंबकीय द्विधु्रव दो चुंबकीय क्षेत्रों के प्रभाव में है। ये क्षेत्रा एक - दूसरे से 60व का कोण बनाते हैं और उनमें से एक क्षेत्रा का परिमाण 1ण्2 × 10.2 ज् है। यदि द्विधु्रव स्थायी संतुलन में इस क्षेत्रा से 15व का कोण बनाए, तो दूसरे क्षेत्रा का परिमाण क्या होगा? 5ण्22 एक समोजीर् 18 ामट वाले इलेक्ट्राॅनों के किरण पुंज पर जो शुरू में क्षैतिज दिशा में गतिमान है, 0ण्04 ळ का एक क्षैतिज चुंबकीय क्षेत्रा, जो किरण पंुज की प्रारंभ्िाक दिशा के लंबवत है, लगाया गया है। आकलन कीजिए 30 बउ की क्षैतिज दूरी चलने में किरण पंुज कितनी दूरी ऊपर या नीचे विस्थापित होगा? ;उ त्र 9ण्11 × 10दृ31 ाहए म त्र 1ण्60 × 10दृ19 ब्द्ध। म ¹नोटः इस प्रश्न में आँकड़े इस प्रकार चुने गए हैं कि उत्तर से आपको यह अनुमान हो, कि ज्ट सेट में इलेक्ट्राॅन गन से पदेर् तक इलेक्ट्राॅन किरण पुंज की गति भू - चुंबकीय क्षेत्रा से किस प्रकार प्रभावित होती हैह्। 5ण्23 अनुचुंबकीय लवण के एक नमूने में 2ण्0 × 1024 परमाणु द्विधु्रव हैं जिनमें से प्रत्येक का द्विधु्रव आघूणर् 1ण्5 × 10दृ23 श्र ज्दृ1 है। इस नमूने को 0ण्64 ज् के एक एकसमान चुंबकीय क्षेत्रा में रखा गया और 4ण्2 ज्ञ ताप तक ठंडा किया गया। इसमें 15ः चुंबकीय संतृप्तता आ गइर्। यदि इस नमूने को 0ण्98 ज् के चुंबकीय क्षेत्रा में 2ण्8 ज्ञ ताप पर रखा हो तो इसका वुफल द्विधु्रव आघूणर् कितना होगा? ;यह मान सकते हैं कि क्यूरी नियम लागू होता है।द्ध 5ण्24 एक रोलैंड रिंग की औसत त्रिाज्या 15 बउ है और इसमें 800 आपेक्ष्िाक चुंबकशीलता के लौह चुंबकीय क्रोड पर 3500 पफेरे लिपटे हुए हैं। 1ण्2 । की चुंबककारी धारा के कारण इसके क्रोड में कितना चुंबकीय क्षेत्रा ;ठद्ध होगा? 5ण्25 किसी इलेक्ट्राॅन के नैज चक्रणी कोणीय संवेग ै एवं कक्षीय कोणीय संवेग स के साथ जुड़े चुंबकीय आघूणर् क्रमशः μ और μ है। क्वांटम सि(ांत के आधार पर ;और प्रयोगात्मक रूप से अत्यंत ेस परिशु(तापूवर्क पुष्टद्ध इनके मान क्रमशः निम्न प्रकार दिए जाते हैंμ μै त्र दृ;मध्उद्धैए एवं μस त्र दृ;मध्2उद्धस इनमें से कौन - सा व्यंजक चिरसम्मत सि(ांतों के आधार पर प्राप्त करने की आशा की जा सकती है? उस चिरसम्मत आधार पर प्राप्त होने वाले व्यंजक को व्युत्पन्न कीजिए। 203