
अध्याय 7 प्रत्यावतीर् धरा 7ण्1 भूमिका अब तक हमने दिष्टधरा ;कबद्ध स्रोतों एवं दिष्टधरा स्रोतों से युक्त परिपथों पर विचार किया है। समयके साथ इन धराओं की दिशा में परिवतर्न नहीं होता। तथापि, समय के साथ परिव£तत होने वालीधराओं और वोल्टताओं का मिलना एक आम बात है। हमारे घरों एवं दफ्रतरों में पाया जाने वालामुख्य विद्युत प्रदाय ;मसमबजतपब उंपदे ेनचचसलद्ध एक ऐसी ही वोल्टता का स्रोत है जो समय केसाथ ज्या पफलन ;ेपदम निदबजपवदद्ध की भाँति परिव£तत होता है। ऐसी वोल्टता को प्रत्यावतीर् ;ंबद्ध वोल्टता तथा किसी परिपथ में इसके द्वारा अचालित धरा को प्रत्यावतीर् धरा ;ंब धराद्ध’ कहते हैं।आजकल जिन वैद्युत युक्ितयों का हम उपयोग करते हैं उनमें से अध्िकांश के लिए ंब वोल्टता की ही आवश्यकता होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि अध्िकांश विद्युत कंपनियों द्वारा बेची जारही विद्युत ऊजार् प्रत्यावतीर् धरा के रूप में ही संप्रेष्िात एवं वितरित होती है। कब पर ंब के उपयोग को वरीयता दिए जाने का मुख्य कारण यह है कि ंब वोल्टताओं को ट्रांसपफाॅमर्रों द्वारा आसानी सेएवं दक्षता के साथ एक वोल्टता से दूसरी वोल्टता में बदला जा सकता है। इसके अतिरिक्त ंब के रूप में लंबी दूरियों तक वैद्युत ऊजार् का संप्रेषण भी अपेक्षावृफत कम खचीर्ला होता है। प्रत्यावतीर्धारा परिपथ ऐसे अभ्िालक्षण प्रद£शत करता है जिनका उपयोग दैनिक जीवन में काम आने वालीअनेक युक्ितयों में किया जाता है। उदाहरणाथर्, जब हम अपने रेडियो को अपने मनपसंद स्टेशन सेसमस्वरित करते हैं तो ंब परिपथों के एक विश्िाष्ट गुण का लाभ उठाते हैं जो उन अनेक गुणों मेंसे एक है जिनका अध्ययन आप इस अध्याय में करेंगे। ’ ंब वोल्टता एवं ंब धरा, ये वाक्यांश असंगत एवं अनुप्रयुक्त हैं, क्योंकि इनका शाब्िदक अथर् है क्रमशः‘प्रत्यावतीर् धरा वोल्टता’ एवं ‘प्रत्यावतीर् धरा धरा’। तब भी संकेताक्षर ंब समय के अनुसार सरल आवतीर्क्रम में परिव£तत होने वाली वैद्युत राश्िा को व्यक्त करने के लिए इतनी सावर्भौमिक स्वीवृफति पा चुका है किइसके प्रयोग में हम प्रचलित परिपाटी का ही अनुसरण करेंगे। इसके अतिरिक्त, सामान्यतः प्रयुक्त होने वालेशब्द वोल्टता का अथर् दो बिंदुओं के बीच विभवांतर होता है। निकोला टेस्ला ;1836 दृ 1943द्ध युगोस्लाविया के वैज्ञानिक, आविष्कतार् एवं प्रतिभावान व्यक्ित। चुंबकीय क्षेत्रा को घुमाने का उनका विचार ही व्यावहारिक रूप में सब प्रत्यावतीर् धरा मशीनों का आधर बना जिसके कारण विद्युत शक्ित के युग में प्रवेश किया जा सका। अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त, प्रेरण मोटर, ंब शक्ित की बहुपेफश प्रणालीऋ रेडियो, टेलीविजन तथा अन्य वैद्युतउपकरणों पर लगने वाली उच्च आवृिा प्रेरण वंुफडली ;टेस्ला वंुफडलीद्ध का आविष्कार भी उन्होंने किया। चुंबकीय क्षेत्रा के ैप् मात्राक का नाम उनके सम्मान में रखा गया है। 7ण्2 प्रतिरोध्क पर प्रयुक्त ंब वोल्टता चित्रा 7ण्1 में ंब वोल्टता स्रोत ε से जुड़ा प्रतिरोध्क त्दशार्या गया है। परिपथआरेख में ंब स्रोत का संकेत चिÉ ् है। यहाँ हम एक ऐसे स्रोत की बातकर रहे हैं जो अपने सिरों के बीच ज्यावक्रीय रूप में परिवतर्नशील विभवांतरउत्पन्न करता है, माना कि यह विभवांतर जिसे ंब वोल्टता भी कहा जाताहै, निम्नलिख्िात प्रकार से व्यक्त किया जाए अअउेपद ज ;7ण्1द्ध यहाँ अदोलायमान विभवांतर का आयाम एवं ω इसकी कोणीय आवृिा है। उ प्रतिरोध्क में प्रवाहित होने वाली धरा का मान प्राप्त करने के लिए हम चित्रा 7.1 में दशार्ए गए परिपथ पर किरखोपफ का लूप नियम ;द्धज 0ए लागू करते हैं जिससे हमें प्राप्त होता है: उेपद त्र त् अ जप अथवा प अउेपद ज त् चूँकित्एक नियतांक है, हम इस समीकरण को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं: पप उेपद ज ;7ण्2द्ध यहाँ धरा आयाम पके लिए सूत्रा है: उ अपउ त्उ ;7ण्3द्ध समीकरण ;7ण्3द्ध मात्रा ओम का नियम ही है जो प्रतिरोध्कों के प्रकरण में ंब एवं कब दोनों प्रकार की वोल्टताओं के लिए समान रूप से लागू होता है। समीकरण ;7ण्1द्ध एवं समीकरण ;7ण्2द्ध द्वारा व्यक्त किसी शु( प्रतिरोध्क के सिरों के बीच लगाइर् गइर्वोल्टता एवं इसमें प्रवाहित होने वाली धरा को चित्रा 7ण्2 में समय के पफलन के रूपमें आलेख्िात किया गया है। इस तथ्य पर विशेष ध्यान दीजिए कि अएवं पदोनों ही शून्य,न्यूनतम एवं अध्िकतम मानों की स्िथतियाँ साथ - साथ ही प्राप्त करती हैं। अतः स्पष्ट हैकि वोल्टता एवं धरा एक दूसरे के साथ समान कला में हैं। हम देखते हैं कि प्रयुक्त वोल्टता की भाँति ही धरा भी ज्या - वक्रीय रूप में परिव£तत होती है और तदनुसार ही प्रत्येक चक्र में इसके ध्नात्मक एवं )णात्मक मान प्राप्त होते हैं। अतः एक संपूणर् चक्र में तात्क्षण्िाक धरा मानों का योग शून्य होता है तथा माध्य धारा शून्य होती है। तथापि माध्य धरा शून्य है इस तथ्य का यह अथर् नहीं है कि व्यय होने 234 वाली माध्य शक्ित भी शून्य है, और विद्युत ऊजार् का क्षय नहीं हो रहा है। जैसा कि आप जानते हैं जूल प2त् द्वारा व्यक्त होता है और प2 ;जो सदैव धनात्मक ही होता है चाहे प ध्नात्मक हो या )णात्मकद्ध पर निभर्र करता है, न कि प पर। अतःजब किसी प्रतिरोध्क से ंब धरा प्रवाहित होती है तो जूल तापन एवं वैद्युतऊजार् का क्षय होता है।प्रतिरोध्कता के क्षयित होने वाली तात्क्षण्िाक शक्ित होती है 22 च पत् पउत् ेपद2 ज ;7 ण्4द्ध एक समय चक्र में च का माध्य मान है’ 22 च पत् पउत् ेपद2 ज ख्7ण्5;ंद्ध, जहाँ किसी अक्षर के ऊपर लगी रेखा ;यहाँ चद्ध उसका माध्य मान नि£दष्टकरती है एवं ढण्ण्ण्ण्ण्ण्झ यह सूचित करता है कि कोष्ठक के अंदर की राश्िा कामाध्य लिया गया है। चूँकि प2 एवं त् नियत राश्िायाँ हैं उ 2 च पत् ेपद2 ज ख्7ण्5;इद्ध, उ त्रिाकोणमितीय सवर्समिका ेपद2 ωज त्र ;1ध्2द्ध ;1दृ बवे 2ωज द्धए का उपयोग करने पर ढ ेपद2 ωज झ त्र ;1ध्2द्ध ;1दृ ढ बवे 2ωज झद्ध और चूँकि ढ बवे2ωज झ त्र 0’’ए इसीलिए 21 ेपद ज 2 अतः, 12 च पत् उ ख्7ण्5;बद्ध, 2 ंब शक्ित को उसी रूप में व्यक्त करने के लिए जिसमें कब शक्ित ;च् त्र प2त्द्ध को व्यक्त किया जाता है धरा के एक विश्िाष्ट मान का उपयोगकिया जाता है जिसे वगर् माध्य मूल ;तउेद्ध अथवा प्रभावी ;ममििबजपअमद्ध धारा;चित्रा 7ण्3द्ध कहते हैं और इसे प् अथवा प् द्वारा नि£दष्ट किया जाता है। तउे जाॅजर् वे¯स्टगहाउस ;1846 दृ 1914द्ध दिष्टधरा की तुलना में प्रत्यावतीर् धरा के प्रमुख पक्षधर। अतः दिष्टधरा के समथर्क थाॅमस अल्वा एडीसन से उनका सीध संघषर् हुआ। वे¯स्टगहाउस का पूणर् विश्वास था कि प्रत्यावतीर् धरा प्रौद्योगिकी के हाथ में ही वैद्युतीय भविष्य की वुंफजी है। उन्होंने अपने नाम वाली प्रसि( कम्पनी की स्थापना की और निकोला टेस्ला एवं अन्य आविष्कारकों को प्रत्यावतीर् धरा मोटरों एवं उच्च वोल्टता पर विद्युत धारा के संप्रेषण संबंध्ी उपकरणों के विकास के लिए नियुक्त किया, जिससे बड़े पैमाने पर प्रकाश प्राप्त करने का मागर् खुला। चित्रा 7ण्3 तउे धारा प्, श्िाखरधरा प से सूत्रा प् त्र प ध्2 त्र 0ण्707 प उउ उ द्वारा संबंध्ित है। 1 ज् थ्ज;द्ध थ्ज;द्धकज ’ किसी पफलन थ् ;जद्ध का समयावध्ि ज् में माध्यमान ज्ञात करने के लिए सूत्रा है ज् 0 1 ज् 1 ेपद 2 जज् 1 बवे2 ज बवे2 ज कज ेपद 2 ज् 00 ’’ ज् 0 ज् 22 ज् 235 0 इसे इस प्रकार व्यक्त किया जाता है 1 प 22 उ प्प प 2 उ 2 त्र 0ण्707 प्उ ;7ण्6द्ध प् के पदों में व्यक्त करें तो च् द्वारा नि£दष्ट माध्य शक्ित 1 च्च प2 त्प् 2 त् उ ;7ण्7द्ध 2 इसी प्रकार, तउे वोल्टता अथवा प्रभावी वोल्टता को हम व्यक्त करते हैं: अट त्र उ त्र 0ण्707 अउ ;7ण्8द्ध 2 समीकरण ;7ण्3द्ध के आधर पर अ त्र पत् उउ अउ पउ त् अथवा 22 अथवा ट त्र प्त् ;7ण्9द्ध समीकरण ;7ण्9द्ध ंब धरा एवं ंब वोल्टता के बीच संबंध् बताती है जो कब में इन राश्िायों केसंबंध् के समान ही है। यह तउे मानों की अवधरणा के लाभ दशार्ती है। तउे मानों के पदों में, ंब परिपथों के लिए शक्ित का समीकरण ;7ण्7द्ध एवं धरा तथा वोल्टता का संबंध् वही है जो कब के लिए होता है। परंपरा यह कि ंब राश्िायों को उनके तउे मानों के पदों में मापा और व्यक्त किया जाए। उदाहरणाथर्,घरेलू आपू£त में 220 ट वोल्टता का तउे मान है जिसका श्िाखर मान है अउ त्र 2 ट त्र ;1ण्414द्ध;220 टद्ध त्र 311 ट वास्तव में, प् अथवा तउे धरा उस कब धरा के समतुल्य है जो वही माध्य शक्ित ह्रास करेगीजो प्रत्यावतीर् धरा करती है। समीकरण ;7ण्7द्ध को निम्नलिख्िात रूप में भी प्रस्तुत कर सकते हैंμ च् त्र ट2 ध् त् त्र प् ट ;चूँकि ट त्र प् त्द्ध उदाहरण 7ण्1 एक विद्युत बल्ब 220ट आपू£त पर 100ॅ शक्ित देने के लिए बनाया गया है। ;ंद्ध बल्ब का प्रतिरोध्ऋ ;इद्ध स्रोत की श्िाखर वोल्टता एवं ;बद्ध बल्ब में प्रवाहित होने वाली तउे धारा ज्ञात कीजिए। हल ;ंद्ध दिया है च् त्र 100 ॅ एवं ट त्र 220 ट। बल्ब का प्रतिरोध् है: 2 ट 220ट 2 त् 484 च् 100 ॅ ;इद्ध स्रोत की श्िाखर वोल्टता अ 2ट 311ट उ ;बद्ध चूँकि, च् त्र प् ट च् 100 ॅ प् 0ण्450। ट 220 ट 236 7ण्3 ंब धरा एवं वोल्टता का घूणीर् सदिश द्वारा निरूपणμ कलासमंजक ;पेफजसर्द्ध पिछले अनुभाग में हमने सीखा कि किसी प्रतिरोध्क में प्रवाहित होने वाली धरा तथा ंब वोल्टता समान कला में रहते हैं। परन्तु प्रेरक, संधरित्रा अथवा इनके संयोजन युक्त परिपथों में ऐसा नहीं होता है। ंब परिपथ में धरा एवं वोल्टता के बीच कला संबंध् दशार्ने के लिए हम पेफजसर् की धरणा का उपयोग करते हैं। पेफजर चित्रा के उपयोग से ंब परिपथ का विश्लेषण सरलतापूवर्क हो जाता है। पेफजर’ जैसा कि चित्रा 7ण्4 में दशार्या गया है, एक सदिश है जो मूल ¯बदु के परितः कोणीय वेग ω से घूणर्न करता है। पेफजसर् ट एवं प् के ऊध्वार्ध्र घटक ज्यावक्रीय रूप से परिवतर्नशील राश्िायाँ अ एवं प निरूपित करते हैं। पेफजसर् ट एवं प् के परिमाण इन दोलायमान राश्िायों के आयाम अथवा श्िाखरमान अ एवं पउ उ निरूपित करते हैं। चित्रा 7ण्4;ंद्ध चित्रा 7ण्1 के संगत किसी प्रतिरोधक के सिरों से जुड़ी ंब वोल्टता की, किसी क्षण ज1 पर, चित्रा 7ण्4 ;ंद्ध चित्रा 7ण्1 में दशार्ए गए परिपथ के लिए पेफजरवोल्टता एवं धरा के पेफजसर् और उनका पारस्परिक संबंध् दशार्ताआरेख ;इद्ध अ एवं प तथा ωज के बीच ग्रापफ।है। वोल्टता एवं धरा के ऊध्वार्ध्र अक्ष पर प्रक्षेप अथार्त अ उ ेपदωज एवं प ेपद ωजए क्रमशः, उस क्षण विशेष पर वोल्टता एवं उ धरा के मान निरूपित करते हैं। ज्यों - ज्यों वे आवृिा ω से घूणर्न करते हैं चित्रा 7ण्4;इद्ध में दशार्ए गए वक्र जैसे होते हैं। चित्रा 7ण्4;ंद्ध से हम यह समझ सकते हैं कि प्रतिरोध्क के लिए पेफजसर् ट एवं प् एक ही दिशा में होते हैं। ऐसा हर समय होता है। इसका अथर् है कि वोल्टता एवं धरा के बीच कला कोण शून्य होता है। 7ण्4 प्रेरक पर प्रयुक्त ंब वोल्टता चित्रा 7ण्5 एक पे्ररक के सिरों पर लगा ंब स्रोत दशार्ता है। प्रायः प्रेरक के लपेटों में लगे तार का अच्छा खासा प्रतिरोध् होता है, लेकिन यहाँ हम यह मानेंगे कि इस प्रेरक का प्रतिरोध् नगण्य है। अतः यह परिपथ विशु( प्रेरण्िाक ंब परिपथ है। माना कि स्रोत के सिरों के बीच वोल्टता अ त्र अ उ ेपदωज है क्योंकि परिपथ में कोइर् प्रतिरोध्क नहीं है। किरखोपफ लूप नियम ;द्ध 0ए का उपयोग करने से ज कप अस् 0 ;7ण्10द्ध कज यहाँ समीकरण का दूसरा पद प्रेरक में स्वप्रेरित पैफराडे मउ िहै, एवं स् प्रेरकका स्व - प्रेरकत्व है। )णात्मक चिÉ लेंज के नियम का अनुसरण करने से ’ यद्यपि ंब परिपथ में वोल्टता एवं धरा को घूणर्न करते सदिशों - पेफजसर् द्वारा निरूपित किया जाता है, अपने आप में वे सदिश नहीं हैं। वे अदिश राश्िायाँ हैं। होता यह है, कि आवतीर् रूप से परिव£तत होते अदिशों की कलाएँ एवं आयाम गण्िातीय रूप से उसी प्रकार संयोजित होते हैं जैसे कि उन्हीं परिमाण एवं दिशाओं वाले घूणर्न सदिशों के प्रक्षेप। आवतीर् रूप से परिव£तत होने वाली अदिश राश्िायों को, घूणर्न सदिशों द्वारा निरूपित करने से हम इन राश्िायों का संयोजन एक सरल विध्ि द्वारा, एक पहले से ही ज्ञात नियम का प्रयोग करके, कर सकते हैं। 237 समाविष्ट होता है ;अध्याय 6द्ध। समीकरण ;7ण्1द्ध एवं समीकरण ;7ण्10द्ध को संयोजित करने पर कपअअ उेपद ज ;7ण्11द्ध कजस् स् समीकरण ;7ण्11द्ध में यह सन्िनहित है कि धरा प;जद्ध के लिए समीकरण समय का ऐसा पफलन होना चाहिए कि इसकी प्रवणता, कपध्कज एक ज्यावक्रीय रूप में परिवतर्नशील राश्िा हो जो स्रोत वोल्टता के साथ समान कला में रहती हो और जिसका आयाम अ ध्स् द्वारा प्राप्त होता हो। धरा का उ मान प्राप्त करने के लिए, हम कपध्कज को समय के सापेक्ष समाकलित करते हैं, कप अउ कज ेपद; ज द्धक ज कजस् इससे हमें प्राप्त होता है: अ उ प बवे; ज द्ध नियताकं स् यहाँ समाकलन नियतांक की विमा, धरा की विमा होती है और यह समय पर निभर्र नहीं करती। चूँकि, स्रोत का मउ िशून्य के परितः सममितीय रूप से दोलन करता हैऋ वह धरा, जो इसके कारण बहती है, भी सममितीय रूप से दोलन करती है। अतः न तो धरा का कोइर् नियत, न ही समय पर निभर्र करने वाला अवयव, अस्ितत्व में आता है। इसलिए, समाकलन नियतांक का मान शून्य होता है। बवे; जद्ध ेपद ज ए लिखें तो 2 पप ेपद ज ;7ण्12द्धउ 2 अ यहाँ पउ उस् धरा का आयाम है।राश्िाω स् प्रतिरोध् के सदृश है, इसे प्रेरकीय प्रतिघात कहा जाता है एवं इसे ग्स् द्वारा व्यक्त करते हैं। ग्स् त्र ω स् ;7ण्13द्ध तब, धरा का आयाम है: अ पउ उ ;7ण् 14द्ध ग्स् प्रेरकीय प्रतिघात की विमाएँ वही हैं तो प्रतिरोध् की और इसका ैप् मात्राक ओम ;Ωद्ध है। प्रेरकीय प्रतिघात एक शु( प्रेरण्िाक परिपथ में धरा को वैसे ही नियंत्रिात करता है जैसे प्रतिरोध् एकशु( प्रतिरोध्क परिपथ में। प्रेरकीय प्रतिघात, प्रेरकत्व एवं धरा की आवृिा के अनुक्रमानुपाती होता है। स्रोत वोल्टता एवं प्रेरक में प्रवाहित होने वाली धरा के समीकरण ;7ण्1द्ध एवं;7ण्12द्ध की तुलना से यह ज्ञात होता है कि धरा वोल्टता से πध्2 अथवा ;1ध्4द्ध चक्र पीछे रहती है। चित्रा 7ण्6 ;ंद्ध प्रस्तुत प्रकरण के ज1 क्षण पर, वोल्टता एव धरा पफजसर् दशार्ता है। धरा पेफजर प् वोल्टता पेफजर ट सेπध्2 पीछे ंे है। जब उन्हेंω आवृिा से वामावतर् दिशा में घूणर्न कराते हैं तो ये वोल्टता एवं धरा जनित करते हैं जो क्रमशः समीकरण ;7ण्1द्ध एवं ;7ण्12द्ध द्वारा व्यक्त की जाती है और जिसे चित्रा 7ण्6 ;इद्ध में दशार्या 238 गया है। ंब परिपथ के अवयव, त्ए स् तथा ब् एवं त्स्ब् श्रेणी - परिपथ के पेफशर आरेखों से संबंध्ित प्रभावी सजीव चित्राण ीजजचरूध्ध्ूूूण्ंदपउंजपवदेण्चीलेपबेण्नदेूण्मकनण्ंनध्ध्रूध्।ब्ण्ीजउस चित्रा 7ण्6 ;ंद्ध चित्रा 7ण्5 में दशार्ए गए परिपथ का पेफजर आरेख ;इद्ध अएवं पतथा ωजके बीच ग्राप़्ाफ। हम देखते हैं कि धरा, वोल्टता की अपेक्षा चैथाइर् आवतर् काल ज् 4 ध्2 के पश्चात अपने अध्िकतम मान को प्राप्त करती है। आपने देखा कि एक प्रेरक में प्रतिघात होता है जो धारा को उसी प्रकार नियंत्रिात करता है जैसे कब परिपथ में प्रतिरोध् करता है। पर, क्या प्रतिरोध् की तरह ही इसमें भी शक्ित व्यय होती है? आइए, इसका पता लगाने का प्रयास करें। प्रेरक को आपूतर् तात्क्षण्िाक शक्ित चस् पअ प उेपद ज अउेपद ज 2 पअ बवे जेपद ज उउ पअ उउेपद 2 ज 2 अतः एक पूरे चक्र में माध्य शक्ित पअ उउेपद 2 ज च्स् 2 पअ उउ ेपद 2 ज त्र 02 क्योंकि, एक पूरे चक्र में ेपद;2ωजद्ध का माध्य शून्य होता है इसलिए एक पूरे चक्र में किसी प्रेरक को आपूतर् माध्य शक्ित भी शून्य होती है। चित्रा 7ण्7 में इस तथ्य को विस्तार में समझाया गया है। उदाहरण 7ण्2 25ण्0 उभ् का एक शु( प्रेरक 220 ट के एक स्रोत से जुड़ा है। यदि स्रोत कीआवृिा 50 भ््र हो तो परिपथ का प्रेरकीय प्रतिघात एवं तउे धरा ज्ञात कीजिए। हल प्रेरकीय प्रतिघात ग्स् त्र 2 स्त्र2 ण्दृ3 3145025 10 ॅ त्र 7ण्85Ω परिपथ में तउे धरा ट 220 ट प् 28। ग्स् 7ण्85 239 0.1 वुंफडली में प्रवाहित होने वाली धरा पए जो वुंफडली में बिंदु । पर प्रवेश करती है, शून्य से अध्िकतम मान तक बढ़तीहै। फ्रलक्स रेखाएँ स्थापित होती हैं अथार्त क्रोड चुंबकित होताहै। दशार्यी गइर् ध््रुव स्िथति के लिए, वोल्टता एवं धरा दोनोंधनात्मक होते हैं, अतः इनका गुणनपफल च ध्नात्मक होता है। स्रोत से ऊजार् अवशोष्िात होती है। 1.2 वंुफडली में प्रवाहित होने वाली धरा अभी भी धनात्मकहै परन्तु कम हो रही है। आध्े चक्र के अंत में क्रोडविचुंबकित हो जाता है और वुफल फ्रलक्स शून्य हो जाता है।वोल्टता अ )णात्मक है ;क्योंकि कपध्कज का मान )णात्मक होता हैद्ध वोल्टता एवं धरा का गुणनपफल )णात्मक होताहै और ऊजार् स्रोत को लौटाइर् जाने लगती है। वोल्टता/धरा का एक पूणर् चक्र। ध्यान दीजिए कि धरा वोल्टता से पीछे है। 2.3 धरा प )णात्मक हो जाती है अथार्त यह बिंदुठ से प्रवेश कर बिंदु । से बाहर आती है। क्योंकि धरा की दिशा बदलगइर् है, चुंबक के ध््रुव भी बदल जाते हैं। धरा और वोल्टतादोनों )णात्मक हो जाते हैं अतः उनका गुणनपफल च धनात्मक है। ऊजार् अवशोष्िात होती है। 3.4 धरा प कम होती है और 4 पर धरा शून्य हो जाती है।4 पर क्रोड विचुंबकित हो जाता है तथा फ्रलक्स शून्य है।वोल्टता ध्नात्मक एवं धरा )णात्मक हैं। अतः शक्ित)णात्मक है। जो ऊजार् 2.3 चैथाइर् चक्र के दौरान अवशोष्िातहुइर् थी ऊजार् स्रोत को वापस लौटा दी जाती है। 240 चित्रा 7ण्7 किसी प्रेरक का चंुबकन एवं विचुंबकन। 7ण्5 संधरित्रा पर प्रयुक्त ंब वोल्टता चित्रा 7ण्8 में एक संधरित्राीय ंब परिपथ दशार्या गया है जिसमें केवल एक संधरित्रा एक ऐसे ंब स्रोत ε से जुड़ा है जो वोल्टता अ त्र अ ेपद ωज प्रदान करता है। उ जब कब परिपथ में वोल्टता स्रोत से किसी संधरित्रा को जोड़ा जाता है तो इसमें धरा, उस अल्पकाल के लिए ही प्रवाहित होती है जो संधारित्रा की प्लेटों पर एकत्रिात होता है, उनके बीच विभवांतर बढ़ता है, जो धारा का विरोध् करता है। अथार्त कब परिपथ में ज्यों - ज्यों संधरित्रा आवेश्िात होता है यह परिपथ धरा को सीमित करता है अथवा उसके प्रवाह का विरोध् करता है। जब संधरित्रा पूरी तरह आवेश्िात हो जाता है तो परिपथ में धरा गिर कर शून्य हो जाती है। जब संधरित्रा को ंब स्रोत से जोड़ा जाता है, जैसा कि चित्रा 7ण्8 में दशार्या गया है तो यह धरा को नियंत्रिात तो करता है, पर आवेश के प्रवाह चित्रा 7ण्8 एक संधरित्रा से जुड़ी ंब वोल्टता। को पूरी तरह रोकता नहीं है। क्योंकि धरा प्रत्येक अ(र् चक्र में प्रत्याव£तत होती है संधरित्रा भी एकांतर क्रम में आवेश्िात एवं अनावेश्िात होता है। माना कि किसी क्षण ज पर संधरित्रा पर आवेश ु है। तो संधरित्रा के सिरों के बीच तात्क्षण्िाक वोल्टता है, ु अ ;7ण्15द्ध ब् किरखोपफ के लूप नियम के अनुसार, स्रोत एवं संधरित्रा के सिरों के बीच वोल्टताएँ समान हैं, अतः ु अउ ेपद ज ब् कु धरा का मान ज्ञात करने के लिए हम संबंध् प का उपयोग करते हैं कज क प अउब् ेपद ज ब्अ उ बवे; जद्ध कज संबंध्, बवे; जद्ध ेपद ज ए का उपयोग करने से हम पाते हैं, 2 प पउ ेपद ज ;7ण्16द्ध 2 यहाँ, दोलायमान धरा का आयाम प त्र ωब्अ है। इसको हम उउ अ पउ उ ;1ध् ब्द्ध के रूप में लिखें और विशु( प्रतिरोध्कीय परिपथ के तदनुरूपी सूत्रा प त्र अ ध्त् से तुलना करें तो उउ हम पाते हें कि ;1ध्ωब्द्ध की भूमिका प्रतिरोध् जैसी ही है। इसको संधरित्रा प्रतिघात कहते हैं और ग् से निरूपित करते हैं। ब ग्बत्र 1ध्ωब् ;7ण्17द्ध अतः धरा का आयाम है, अ पउ उ ;7ण्18द्ध 241 ग्ब् संधरित्राीय प्रतिघात की विमाएँ वही हैं जो प्रतिरोध् की और इसका ैप् मात्राक ओम ;Ωद्ध है। संधरित्राीय प्रतिघात उसी प्रकार विशु( संधरित्राीय परिपथ में धरा को नियंत्रिात करता है जैसेविशु( प्रतिरोध्कीय परिपथ में प्रतिरोध्, परंतु इसका मान आवृिा एवं धरिता के व्युत्क्रमानुपाती होता है। समीकरण ;7ण्16द्ध की स्रोत वोल्टता की समीकरण ;7ण्1द्ध से तुलना करने पर हम पाते हैं कि धरा, वोल्टता से πध्2 अग्रगामी होती है। चित्रा 7ण्9 ;ंद्ध किसी क्षण जपर पेफजर आरेख 1 चित्रा 7ण्9 ;ंद्ध चित्रा 7ण्7 में दशार्ए गए परिपथ का पेफजर आरेख दशार्ता है। यहाँ धरा पेफजर प् ए वोल्टता पेफजर ट से πध्2 कोण ;इद्ध अएवं पका समय के सापेक्ष ग्रापफ।़ अग्रगामी है जब वे वामावतर् घूणर्न करते हैं। चित्रा 7ण्9 ;इद्धए वोल्टता एवं धरा में समय के साथ होने वाला परिवतर्न दशार्ता है। हम देखते हैं कि धरा, वोल्टता की तुलना में चैथाइर् समयकाल पहले अध्िकतम मान ग्रहण करती है। संधरित्रा को आपूतर् तात्क्षण्िाक शक्ित, चब त्र प अत्र पउबवे;ωजद्धअउेपद;ωजद्ध त्र पउअउबवे;ωजद्ध ेपद;ωजद्ध पअ उउेपद;2 जद्ध ;7ण्19द्ध 2 अतः संधरित्रा के प्रकरण में, माध्य शक्ित पअ पअ उउ च्ब् उउेपद;2 जद्ध ेपद;2 जद्ध 0 2 2 क्योंकि एक पूणर् चक्र पर ढेपद ;2ωजद्धझ त्र 0ए चित्रा 7ण्10 इसकी विस्तार से व्याख्या करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रेरक के प्रकरण में धरा, वोल्टता से πध्2 कोण पश्चगामी एवं संधरित्रा के प्रकरण में धरा, वोल्टता से πध्2 कोण अग्रगामी होती है। उदाहरण 7ण्3 एक लैंप किसी संधरित्रा के साथ श्रेणीक्रम में जुड़ा है। कब एवं ंब संयोजनों के लिए अपने प्रेक्षणों की प्रागुक्ित कीजिए। प्रत्येक प्रकरण में बताइए कि संधरित्रा की धरिता कम करने का क्या प्रभाव होगा? हल जब संधरित्रा के साथ किसी कब स्रोत को जोड़ते हैं तो संधरित्रा आवेश्िात होता है और उसके पूणर् आवेशन के बाद परिपथ में कोइर् धरा प्रवाहित नहीं होती और लैंप प्रकाश्िात नहीं होता है। इस मामले में ब्को कम करने से कोइर् परिवतर्न नहीं आएगा। ंब स्रोत के साथ, संधरित्रा ;1ध्ωब्द्ध संधरित्राीय प्रतिघात लगाता है और परिपथ में धरा प्रवाहित होती है। परिणामतः लैंप प्रकाश देगा। ब्को कम करने से प्रतिघात बढ़ेगा और लैंप पहले की तुलना में दीप्ित से प्रकाश्िात होगा। उदाहरण 7ण्4 15ण्0 μथ् का एक संधरित्रा, 220 टए 50 भ््र स्रोत से जोड़ा गया है। परिपथ का संधरित्राीय प्रतिघात और इसमें प्रवाहित होने वाली ;तउे एवं श्िाखरद्ध धरा का मान बताइए।यदि आवृिा को दोगुना कर दिया जाए तो संधरित्राीय प्रतिघात और धरा के मान पर क्या प्रभाव होगा? हल संधरित्राीय प्रतिघात है, 11 ग् 212 ब् 2 ब् 2 ;50 भ््रद्ध;15ण्0 10 6 थ्द्ध 242 0.1 धरा प दशार्ए अनुसार प्रवाहित होती है एवं 0 पर अध्िकतम मानसे 1 पर शून्य हो जाती है। प्लेट । ध्नावेश्िात होती है जबकि प्लेट ठ पर )णात्मक आवेश ु बढ़ता है जो 1 पर अध्िकतम हो जाता हैजहाँ धरा शून्य हो जाती है। वोल्टता अ त्र ुध्ब् आवेश ु के साथ ब समान कला में रहती है और 1 पर शून्य हो जाती है। धारा औरवोल्टता दोनों ध्नात्मक होती हैं। अतः च त्र अप ध्नात्मक है। इस ब चैथाइर् चक्र में जैसे - जैसे संधरित्रा आवेश्िात होता है, यह स्रोत सेऊजार् अवशोष्िात करता है। 1.2 धरा प की दिशा उलट जाती है। संगृहित आवेश समाप्त हो जाता है अथार्त संधरित्रा इस चैथाइर् चक्र में विसजिर्त हो जाता है। वोल्टता कम होती जाती है पर ध्नात्मक बनी रहती है। धरा )णात्मक है। अतः शक्ित जो इनका गुणनपफल है, )णात्मक होती है। 0.1 चैथाइर्चक्र में अवशोष्िात ऊजार् इस चैथाइर् चक्र में वापस मिल जाती है। वोल्टता/धरा/आवेश/शक्ित का एक पूणर् चक्र। ध्यान दीजिए कि धरा वोल्टता की तुलना में अग्रगामी है। 2.3 क्योंकि धरा प । सेठ की ओर बहती है, संधरित्रा विपरीत धु्रवता3.4 क्षण 3 पर धरा प की दिशा में उत्क्रमण हो जाता है और यहके साथ आवेश्िात होता है, अथार्त प्लेट ठ पर ध्नात्मक एवं प्लेट ठ से । की ओर प्रवाहित होने लगती है। संग्रहित आवेश समाप्त हो। पर )णात्मक आवेश आने लगता है। धरा एवं वोल्टता दोनों हीजाता है और वोल्टता अका परिमाण कम हो जाता है। जब 4 पर ब )णात्मक होते हैं। उनका गुणनपफल च ध्नात्मक है। इस चैथाइर् चक्र संधरित्रा पूणर्तः आवेश्िात हो जाता है तो अ का मान शून्य हो जाता ब में संधरित्रा ऊजार् अवशोष्िात करता है। है। शक्ित )णात्मक होती है और 2.3 में अवशोष्िात ऊजार् स्रात का ेे वापस लौटा दी जाती है। वुफल अवशोष्िात ऊजार् शून्य है। 243 चित्रा 7ण्10 एक संधरित्रा का आवेशन एवं निरावेशन। भौतिकी तउे धरा है ट 220 ट प् 1ण्04 । ग्ब् 212 श्िाखर धरा है उ 2 ;1ण्41द्ध;1ण्04 ।द्ध 1ण्47 । पप् यह धरा ़1ण्47। एवं दृ1ण्47 । के बीच दोलन करती है और वोल्टता सेπध्2 कोण अग्रगामी होती है। यदि आवृिा दोगुनी हो जाए तो संधरित्राीय प्रतिघात आध रह जाता है, परिणामतः धरा दोगुनीहो जाती है। उदाहरण 7ण्5एक प्रकाश बल्ब और एक सरल वुंफडली प्रेरक, एक वुंफजी सहित, चित्रा में दशार्एअनुसार, एक ंब स्रोत से जोड़े गए हैं। स्िवच को बंद कर दिया गया है और वुफछ समय पश्चातएक लोहे की छड़ प्रेरक वुंफडली के अंदर प्रविष्ट कराइर् जाती है। चित्रा 7ण्11 छड़ को प्रविष्ट कराते समय प्रकाश बल्ब की चमक ;ंद्ध बढ़ती है ;इद्ध घटती है ;बद्ध अपरिव£तत रहती है। कारण सहित उत्तर दीजिए। हल जैसे - जैसे लोहे की छड़ वुंफडली में प्रवेश करती है वुंफडली के अंदर का चुंबकीय क्षेत्रा इसेचुंबकित कर देता है जिससे वुंफडली के अंदर चुंबकीय क्षेत्रा बढ़ जाता है। अतः वुंफडली का प्रेरकत्वबढ़ जाता है। परिणामतः वुंफडली का प्रेरकीय प्रतिघात बढ़ जाता है। इस प्रकार प्रयुक्त ंब वोल्टता का अध्िकांश भाग पे्ररक के सिरों के बीच प्रभावी हो जाता है और बल्ब के सिरों के बीच वोल्टताकम रह जाती है। अतः बल्ब की दीप्ित कम हो जाती है। 7ण्6 श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ पर प्रयुक्तंब वोल्टता चित्रा 7ण्12ए ंब स्रोत ε से जुड़ा श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ दशार्ता है। पहले की ही भाँति हम ंब स्रोत की वोल्टता अ त्र अ ेपद ωज लेते हैं। उ यदि संधरित्रा पर आवेशुएवं किसी क्षण ज पर परिपथ में प्रवाहित धराप है तो किरखोपफ पाश नियम से़ कपु स्पत् अ ;7ण्20द्ध कजब् हम तात्क्षण्िाक धराप और प्रयुक्त प्रत्यावतीर् वोल्टता अ के साथ इसका कला संबंध् ज्ञात करना चाहते हैं। हम इस समस्या को हल करने के लिए दो विध्ियों का उपयोग करेंगे। पहली विध्ि में हम चित्रा 7ण्12 किसी ंब स्रोत से संयोजित श्रेणीब( स्ब्त् पेफजसर् तकनीक का उपयोग करेंगे और दूसरी विध्ि में हम समीकरणपरिपथ। ;7ण्20द्ध को विश्लेषणात्मक रूप से हल करकेप की कालाश्रितता244 प्राप्त करेंगे। 7ण्6ण्1 पेफजर आरेख द्वारा हल चित्रा 7ण्12 में दशार्ए गए परिपथ में प्रतिरोध्क, प्रेरक एवं संधरित्रा श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। अतः किसी क्षण विशेष पर परिपथ के हर घटक में ंब धरा, उसके आयाम एवं कला समान हैं। माना कि प त्र पउ ेपद;ωज़φद्ध ;7ण्21द्ध यहाँ φ स्रोत की वोल्टता और परिपथ में प्रवाहित होने वाली धरा में कला - अंतर है। पिछले अनुभागों में हमने जो सीखा है उसके आधर पर हम वतर्मान प्रकरण का एक पेफजर आरेख बनाएँगे। मान लीजिए कि समीकरण ;7ण्21द्ध द्वारा प्रदत्त परिपथ की धरा को पेफजर प् द्वारा व्यक्त करें। और प्रेरक, प्रतिरोध्क, संधरित्रा एवं स्रोत के सिरों के बीच वोल्टताओं को क्रमशः टस्ए टत्ए टब्ए एवं ट से निरूपित करें तो पिछले अनुभाग से हम जानते हैं कि टत्ए प् के समातंर है, टब् धरा प् से πध्2 रेडियन पीछे है तथा टस् ए प् से πध्2 रेडियन आगे है। चित्रा 7ण्13;ंद्ध में टस्ए टत्ए टब् एवं प् को समुचित कला संबंधें के साथ दशार्या गया है। इन पेफजसर् की लंबाइर् अथार्त टत्ए टब् एवं टस् के आयाम हैं: अत्र प त्ए अत्र प ग्एअत्र पग्;7ण्22द्ध त्उ उब्उ उब्स्उ उ स् परिपथ के लिए वोल्टता समीकरण ;7ण्20द्ध को इस प्रकार लिखा जा सकता है अस् ़ अत् ़ अब् त्र अ ;7ण्23द्ध वह पेफजर संबंध् जिसके ऊध्वार्ध्र घटकों द्वारा उपरोक्त समीकरण बनती है, वह है चित्रा 7ण्13 ;ंद्ध पेफजसर् टए टए टए एवं प् के बीच पारस्परिक स्त्ब् टस् ़ टत् ़ टब् त्र ट ;7ण्24द्ध संबंध् ;इद्ध पेफजसर् टस्ए टत्ए एवं ;टस् ़ टब्द्ध के बीच 7ण्11 में दशार्ए गए परिपथ के लिए संबंध्। इस संबंध् को चित्रा 7ण्13 ;इद्ध में प्रस्तुत किया गया है। चूँकि, टब् एवं टस् सदैव एक ही सरल रेखा में और एक दूसरे की विपरीत दिशाओं में होते हैं, उनको एक एकल पेफजर ;टब् ़ टस्द्ध के रूप में संयोजित किया जा सकता है जिसका परिमाण ⏐अ दृ अ⏐ होता है। चूँकि ट उस समकोण त्रिाभुज के कणर् से निरूपित किया ब्उस्उ गया है जिसकी भुजाएँ टत् एवं ;टब् ़ टस्द्ध हैं, पाइथागोरस प्रमेय द्वारा, 222 अअ अअ उ त्उ ब्उ स्उ समीकरण ;7ण्22द्ध से अत्उए अब्उए एवं अस्उ के मान प्रत्येक समीकरण में रखने पर 22 2 ;पउत्द्ध प ग् पउग्स् द्ध अउ ; उब् 22 2 पउ त् ;ग्ब् ग्स् द्ध अ पउ उ अथवा 2 2 ख्7ण्25;ंद्ध, त् ;ग्ब् ग्स् द्ध किसी परिपथ में प्रतिरोध् से समतुल्यता के आधर पर हम ंब परिपथ के लिए प्रतिबाध, र् पद को उपयोग में लाएँ तो अ पउ उ ख्7ण्25;इद्ध, र् यहाँ र् त्2;ग्ग् द्ध2 ;7ण्26द्ध 245 ब्स् चूँकि पेफजर प् सदैव पेफजर टत् के समांतर होता है, कला कोण φ टत् एवं ट के बीच बना कोण है और चित्रा 7ण्14 के आधर पर इसका मान ज्ञात किया जा सकता है अअ ब्उ स्उ जंद अ त्उ समीकरण ;7ण्22द्ध का उपयोग करने पर, जंद ग्ब् ग्स् ;7ण्27द्ध त् समीकरणों ;7ण्26द्ध एवं ;7ण्27द्ध का ग्रापफीय निरूपण चित्रा ;7ण्14द्ध में प्रस्तुत किया गया चित्रा 7ण्14 प्रतिबाध आरेख। है। यह प्रतिबाध आरेख कहलाता है। यह एक समकोण त्रिाभुज है जिसका कणर् र् है। समीकरण 7ण्25;ंद्ध धरा का आयाम बताती है एवं समीकरण ;7ण्27द्ध से कलाकोण का मान प्राप्त होता है। इनके साथ मिलकर समीकरण ;7ण्21द्ध पूणर्तः नि£दष्ट हो जाती है। यदि ग्ब् झ ग्स्ए φ ध्नात्मक होता है तथा परिपथ का धरितात्मक व्यवहार प्रधन हो जाता है। परिणामतः परिपथ में धरा स्रोत वोल्टता से अग्र हो जाती है। यदि ग्ब् ढ ग्स्ए φ )णात्मक होता है तथा परिपथ का प्रेरकीय व्यवहार प्रमुख हो जाता है। परिणामतः परिपथ में धरा स्रोत वोल्टता से पश्च हो जाती है। चित्रा 7ण्15ए ग्झ ग्के प्रकरण के लिए पेफजर आरेख है और यह ω ज के साथ अ एवं प ब्स् में होने वाले परिवतर्न को दशार्ता है। इस प्रकार, पेफजसर् तकनीक का उपयोग करके, हमने श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ में धरा का आयाम एवं कला ज्ञात कर ली है। लेकिन ंब परिपथों के विश्लेषण की इस वििा में वुफछ कमियाँ हैं। प्रथम तो यह कि पेफशर आरेख प्रारंभ्िाक स्िथतियों के विषय में कोइर् सूचना नहीं देते। आप ज का कोइर् भी यादृच्िछक मान ;जैसा कि इस अध्याय में सब जगह ज1 लिया गया हैद्ध ले सकते हैं और विभ्िान्न पेफजसर् के बीच सापेक्ष्िाक कोण दशार्ते हुए अलग - अलग पेफजसर् आरेख बना सकते हैं। इस प्रकार प्राप्त हल को स्थायी अवस्था हल कहतेचित्रा 7ण्15 ;ंद्ध ट एवं प् के लिए पेफजर आरेख हैं। यह कोइर् व्यापक हल नहीं है। इसके अतिरिक्त एक ;इद्ध श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ के लिए ω ज के साथ अ एवं प में क्षण्िाक हल भी होता है जो अ त्र 0 के लिए भी लागू होता परिवतर्न दशार्ने वाले ग्रापफ ;यहाँ ग् झ ग्द्ध।ब्स्है। व्यापक हल, क्षण्िाक हल एवं स्थायी अवस्था हल के योग से प्राप्त होता है। पयार्प्त दीघर्काल के पश्चात क्षण्िाक हल के प्रभाव निष्प्रभावी हो जाते हैं और परिपथ के आचरण का वणर्न स्थायी अवस्था द्वारा ही हल किया जाता है। 7ण्6ण्2 विश्लेषणात्मक हल परिपथ के लिए वोल्टता समीकरण है, कपु स्त्प अ कजब् त्र अ ेपद ωज उ हम जानते हैं कि प त्र कुध्कज इसलिए, कपध्कज त्र क2ुध्कज2 अतः, ु के पदों में, वोल्टता समीकरण246 को लिख सकते हैं, क2ु कुु स् 2 त् अउ ेपद ज ;7ण्28द्ध कज कजब् यह किसी प्रणोदित अवमंदित दोलक के समीकरण जैसी ही है। ¹देख्िाए समीकरण ;14ण्37;इद्ध कक्षा 11 भौतिकी पाठ्यपुस्तकह्। मान लिया कि इसका एक हल है, ु त्र ुउ ेपद ;ω ज ़ θद्ध कु ताकि, ु बवे; ज द्ध कजउ क2ु 2 एवं 2 ुउ ेपद; ज द्ध कज इन मानों को समीकरण ;7ण्28द्ध में रखने पर, हम पाते हैं ुत् बवे; ज द्ध;ग्ग् द्धेपद; ज द्धत्र अ ेपद ज उ ब्स्उ ख्7ण्29;ंद्ध, ख्7ण्29;इद्ध, ख्7ण्29;बद्ध, ;7ण्30द्ध यहाँ हमने ग् त्र 1ध्ωब् एवं ग् त्र ω स् संबंधें का उपयोग किया है। समीकरण ;7ण्30द्ध के वाम पक्ष बस् से गुणा एवं विभाजित करने पर, त् ;ग्ब् ग्स् द्ध ुर् बवे; ज द्ध ेपद; ज द्ध उ अउ ेपद ज ;7ण्31द्ध र्र् त् अब, माना कि बवे र् ;ग्ब् ग्स् द्ध तथा ेपद र् ग्ग् 1 ब्स् ताकि जंद ;7ण्32द्ध त् समीकरण ;7ण्31द्ध में यह मान प्रतिस्थापित करके सरलीकरण करने पर, ुउ र् बवे; ज द्ध अउ ेपद ज ;7ण्33द्ध इस समीकरण के दोनों पक्षों की तुलना करने पर हम पाते हैं कि, अउ ुउर् पउर् यहाँ पउ ुउ ख्7ण्33 ;ंद्ध, एवं 2 अथवा 2 ख्7ण्33 ;इद्ध, इसलिए परिपथ में धरा का संबंध् है क ु प ुउ बवे; ज द्ध कज त्र पउ बवे;ωज ़ θद्ध अथवा प त्र पउेपद;ωज ़ φद्ध ;7ण्34द्ध अअ यहाँ पउ उ ख्7ण्34 ;ंद्ध, उ र् 22 त् ;ग्ब् ग्स् द्ध ग्ग् 1 ब्स् एवं जंद 247 त् अतः परिपथ में धरा के आयाम एवं कला के लिए विश्लेषणात्मक हल पेफजसर् तकनीक से प्राप्त हल से मेल खाता है। 7ण्6ण्3 अनुनाद श्रेणीब( त्स्ब् परिपथ का एक रोचक अभ्िालक्षण अनुनाद की परिघटना है। अनुनाद ऐसे सभीनिकायों की एक सामान्य परिघटना है जिनमें एक विश्िाष्ट आवृिा से दोलन की प्रवृिा होती है। यहआवृिा उस निकाय की प्रावृफतिक आवृिा कहलाती है। यदि इस प्रकार का कोइर् निकाय किसी ऐसेऊजार् स्रोत द्वारा संचालित हो जिसकी आवृिा निकाय की प्रावृफतिक आवृिा के सन्िनकट हो तो निकाय बहुत अध्िक आयाम के साथ दोलन करता हुआ पाया जाता है। इसका एक सुपरिचित उदाहरण झूले पर बैठा हुआ बच्चा है। झूले की, लोलक की ही तरह मूल बिन्दु के इध्र - उध्र दोलनकी एक प्रावृफतिक आवृिा होती है। यदि बच्चा रस्सी को नियमित समय - अंतरालों पर खींचता हैऔर खींचने की आवृिा लगभग झूले के दोलनों की प्रावृफतिक आवृिा के बराबर हो तो झूलने का आयाम अध्िक होगा ;देख्िाए कक्षा 11 का अध्याय 14द्ध। अ आयाम एवं ω आवृिा की वोल्टता द्वारा संचालित त्स्ब् परिपथ के लिए हम पाते हैं कि उ धरा आयाम, अअ पउ उ उ 22 र् त् ;ग्ब् ग्स् द्ध यहाँ ग् त्र 1ध्ωब् एवं ग् त्र ω स् अतः यदि ω को परिव£तत किया जाए तो एक विश्िाष्ट आवृिा बस् ωपरग् त्र ग्एवं प्रतिबाध र् का मान न्यूनतम र् त्2 02 त् हो जाता है। यह आवृिा 0 बस् अनुनादी आवृिा कहलाती है: ग्ब ग्स् या 1 0 स् 0 ब् 1 या स्ब् ;7ण्35द्ध 0 अनुनादी आवृिा पर धरा का आयाम अध्िकतम होता है और 1ण्0 0ण्5 0ण्0 0ण्5 1ण्0 1ण्5 2ण्0 ए ड तंकध्े चित्रा 7ण्16 दो प्रकरणों ;पद्ध त् त्र 100 Ω एवं ;पपद्ध त् त्र 200 Ω के लिएण् ω के साथ स का परिवतर्न। दोनों प्रकरणों में उ स् त्र 1ण्00 उभ् 248 इसका मान है, प त्र अ ध्त् उउ चित्रा 7ण्16 किसी त्स्ब् श्रेणीक्रम परिपथ के लिए ω के साथ प् का परिवतर्न दशार्ता है। यहाँ स् त्र 1ण्00 उभ्ए ब् त्र उ 1ण्00 दथ् है तथा त् के दो अलग - अलग मान ;पद्ध त् त्र 100 Ω एवं ;पपद्ध त् त्र 200 Ω लिए गए हैं। प्रयुक्त स्रोत के लिए ट उ 1 त्र 100 टए इस प्रकरण में ω0 त्र ; द्ध त्र 1ण्00×106 स्ब् तंकध्े । हम देखते हैं कि अनुनादी आवृिा पर धरा का आयाम अिाकतम होता है। चूँकि प त्र अ ध् त् अनुनाद की स्िथति में, उ उ प्रकरण ;पद्ध में धरा का परिमाण प्रकरण ;पपद्ध की स्िथति में धराके परिमाण से दोगुना है। अनुनादी परिपथों के तरह - तरह के अनुप्रयोग होते हैंउदाहरणाथर्, रेडियो एवं टीवी सेटों के समस्वरण की ियावििा।किसी रेडियो का ऐंटिना अनेक प्रसारक स्टेशनों से संकेतों का अभ्िाग्रहण करता है। ऐंटिना द्वारा अभ्िाग्रहित संकेत, रेडियो के समस्वरण परिपथ में स्रोत का कायर्करते हैं, इसलिए परिपथ अनेक आवृिायों पर संचालित किया जा सकता है। परंतु किसी विश्िाष्ट रेडियो स्टेशन को सुनने के लिए हम रेडियो को समस्वरित करते हैं। समस्वरण के लिए हमसमस्वरण परिपथ में लगे संधरित्रा की धरिता को परिव£तत कर परिपथ की आवृिा को परिव£ततकर इस स्िथति में लाते हैं कि उसकी अनुनादी आवृिा अभ्िागृहित रेडियो संकेतों की आवृिा के लगभग बराबर हो जाए। जब ऐसा होता है तो परिपथ में उस विश्िाष्ट रेडियो स्टेशन से आने वालेसंकेतों की आवृिा के धरा आयाम का मान अध्िकतम हो जाता है। एक महत्वपूणर् एवं ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि अनुनाद की परिघटना केवल उन्हीं परिपथों द्वारा प्रद£शत की जाती है जिनमें स् एवं ब् दोनों विद्यमान होते हैं। क्योंकि केवल तभी स् एवं ब् के सिरों के बीच की वोल्टता ;विपरीत कला में होने के कारणद्ध एक दूसरे को निरस्त करती हैं और धरा आयाम अ ध्त् होता है तथा वुफल स्रोत वोल्टता त् के सिरों के बीच ही प्रभावी पायी जाती है। उ इसका अथर् यह हुआ कि त्स् या त्ब् परिपथ में अनुनाद नहीं। अनुनाद की तीक्ष्णता श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ में धरा का आयाम, अ प उ और इसका मान अध्िकतम होता है, जब 1ध् स्ब् तथा यह अध्िकतम मान होता है 0 अध्िकतम पउ अउ ध्त् ω के ω0 के अतिरिक्त सभी मानों के लिए धरा का आयाम, इसके अध्िकतम मान से कम होता है। मान लीजिए कि हम ω का एक ऐसा मान चुनते हैं जिसके लिए धरा आयाम, अध्िकतम मान का 1ध् 2 गुना है। इस मान के लिए परिपथ में होने वाला शक्ित क्षय आध हो जाता है। चित्रा ;7ण्16द्ध के वक्र में हम देखते हैं कि ω के ऐसे दो मान हैं, ω1 एवं ω2ए जिनमें एक ω0 से कम है और दूसरा ω0 से अध्िक। ये दोनों मान ω0 के इध्र - उध्र सममित रूप में स्िथत होते हैं। हम लिख सकते हैं: ω1 त्र ω0 ़ Δω ω2 त्र ω0 दृ Δω इन दोनों आवृिायों के बीच का अंतर ω दृ ω त्र 2Δω प्रायः परिपथ का बैंड - विस्तार कहलाता 12 है। राश्िा ;ω0 ध् 2Δωद्ध को अनुनाद की तीव्रता का माप माना जाता है। Δω जितना छोटा होगा, अनुनादउतना ही तीक्ष्ण या संकीणर् होगा। पअध्िकतम Δω के लिए व्यंजक प्राप्त करने के लिए, ध्यान दें कि धरा - आयाम प त्र 1ध् 2 तब उउ होता है जब ω1 त्र ω0 ़ Δωए इसलिए अ उ परए प 1 उ 2 त्21स् 1 1ब् अध्िकतम पउ अउ 249 2 त् 2 2 21 अथवा त् 1स्त् 2 1 ब् 2 21 2 अथवा त् 1 स् 2त् 1 ब् 1 1स्त् 1ब् जिसको लिख सकते हैं 1 ;द्धस्त् 0 ;0द्धब् 1 0स् 1 त् 0 ब् 01 0 वामपक्ष के दूसरे पद में 21 का उपयोग करने पर 0 स्ब् 0स् 0स् 1 त् 01 0 1 चूँकि ढढ1ए 1 का सन्िनकट मान 1 रख सकते हैं। इसलिए, 00 0 0स् 10स् 1 त् 00 2 0स्त् अथवा 0 त् ख्7ण्36 ;ंद्ध, 2स् अतः, अनुनाद की तीक्ष्णता 00स् ख्7ण्36 ;इद्ध, 2 त् 0स् 0स् अनुपात को परिपथ का गुणवत्ता गुणांक फ भी कहते हैं फ ख्7ण्36 ;बद्ध, त्त् समीकरण ख्7ण्36 ;इद्ध, एवं ख्7ण्36 ;बद्ध, से हम देखते हैं कि 20 अतः, फ का मान जितना फ 250 अध्िक होगा, 2Δω अथार्त बैंड विस्तार का मान उतना ही कम होगा और अनुनाद उतना ही तीक्ष्ण होगा। 2 1ध्स्ब् का उपयोग करके समीकरण ख्7ण्36;बद्ध, को समतुल्यतापूवर्क निम्न प्रकार से 0 व्यक्त कर सकते हैं फत्र 1ध्ω0ब्त् चित्रा 7ण्15 से हम देखते हैं कि यदि अनुनाद की तीक्ष्णता कम हो तो न केवल श्िाखर धराकम होती है, परिपथ अध्िक बड़े आवृिा परिसर Δω के लिए अनुनाद के निकट रहता है और इसलिए परिपथ का समस्वरण अच्छा नहीं हो पाएगा। अतः अनुनाद जितना कम तीक्ष्ण होगा परिपथ की चयन क्षमता भी उतनी ही कम होगी। इसके विपरीत यदि अनुनाद तीक्ष्ण है तो परिपथ की चयन क्षमता भी अध्िक होगी। समीकरण ;7ण्36द्ध से हम देखते हैं कि यदि गुणवत्ता गुणांक अध्िक है, अथार्त त् कम या स्अध्िक है तो परिपथ की चयन क्षमता अध्िक होती है। उदाहरण 7ण्6 एक 200 Ω प्रतिरोध्क एवं एक 15ण्0 μथ् संधरित्रा, किसी 220 टए 50 भ््र ंब स्रोत से श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। ;ंद्ध परिपथ में धरा की गणना कीजिएऋ ;इद्ध प्रतिरोध्क एवं संधरित्रा के सिरों के बीच ;तउेद्ध वोल्टता की गणना कीजिए। क्या इन वोल्टताओं का बीजगण्िातीय योग स्रोत वोल्टता से अध्िक है? यदि हाँ, तो इस विरोधभास का निराकरण कीजिए। हल दिया है त् 200 ए ब् 15ण्0 थ् 15ण्0 10 6थ् ट 220टए 50भ््र ;ंद्ध धरा की गणना करने के लिए, हमें परिपथ की प्रतिबाध की आवश्यकता होती है। यह होता हैμ 22 2 2 र् त्ग्ब् त् ;2 ब्द्ध 291ण्5 इसलिए, परिपथ में धरा है, ;इद्ध चूँकि पूरे परिपथ में समान धरा प्रवाहित हो रही है, इसलिए टत् प्त् ;0ण्755।द्ध;200 द्ध 151ट टब् प्ग् ब् ;0ण्755।द्ध;212ण्3 द्ध 160ण्3ट दोनों वोल्टताओं टएवं टका बीजगण्िातीय योग 311ण्3 ट है जो स्रोत वोल्टता 220 ट से त्ब् अिाक है। इस विरोधभास का निराकरण किस प्रकार किया जाए? जैसा कि आपने पाठ में पढ़ा है, दोनों वोल्टताएँ समान कला में नहीं होती हैं। इसलिए उनको साधरण संख्याओं की तरह नहीं जोड़ा जा सकता है। इन वोल्टताओं में 90ह् का कला - अंतर होता है। इसलिए इनके योग का परिमाण पाइथागोरस के प्रमेय का उपयोग करके ज्ञात किया जा सकता है। अतः, प् ट 220 ट 0ण्755 । र् 291ण्5 के सिरों के बीच वुफल वोल्टता ज्ञात की जाए तो यह स्रोत वोल्टता के बराबर ही पायी जाएगी। 251 ट ट2 ट2 त्ब् त्ब् त्र 220 ट इस प्रकार, यदि दो वोल्टताओं के बीच के कला - अंतर को गणना में लाते हुए प्रतिरोध्क एवं संधारित्रा 7ण्7 ंब परिपथों में शक्ित: शक्ित गुणांक हम देख चुके हैं कि श्रेणीब( त्स्ब् परिपथ में प्रयुक्त कोइर् वोल्टता अ त्र अ ेपदωज इस परिपथ में उ धारा प त्र प ेपद;ωज ़ φद्ध प्रवाहित करती है। यहाँ, उ अ ग्ब् उ 1 ग्स् पउ एवं जंद र्त् इसलिए स्रोत द्वारा आपूतर् तात्क्षण्िाक शक्ित च है, चअप अउ ेपद ज पउ ेपद; ज द्ध अप उउबवे बवे;2 ज द्ध ;7ण्37द्ध 2 एक पूणर् चक्र में माध्य शक्ित समीकरण ;7ण्37द्ध के दाएँ पक्ष के दोनों पदों का माध्य लेने से प्राप्त हो सकती है। इनमें केवल दूसरा पद ही समय पर निभर्र करता है, और इसका माध्य शून्य है ;कोज्या ;बवेपदमद्ध का ध्नात्मक अ(र् इसके )णात्मक अ(र् को निरस्त कर देता है।द्ध इसलिए, अप अप उ उ बवे च् उउबवे 2 22 टप् बवे ख्7ण्38;ंद्ध, इसको इस प्रकार भी लिखा जा सकता है च्प्2 र् बवे ख्7ण्38;इद्ध, अतः क्षयित माध्य शक्ित, न केवल वोल्टता एवं धरा पर निभर्र करती है बल्िक उनके बीच केकला - कोण की कोज्या ;बवेपदमद्ध पर भी निभर्र करती है। राश्िा बवे φ को शक्ित गुणांक कहा जाताहै। आइए निम्नलिख्िात प्रकरणों पर चचार् करें: प्रकरण ;पद्ध प्रतिरोध्कीय परिपथ: यदि परिपथ में केवल शु( त् है तो यह परिपथ प्रतिरोध्कीय परिपथ कहलाता है। इस परिपथ के लिए φ त्र 0ए बवे φ त्र 1 इसमें अध्िकतम शक्ित क्षय होती है। प्रकरण ;पपद्ध शु( प्रेरकीय अथवा धरितीय परिपथ: यदि परिपथ में केवल एक प्रेरक अथवा संधारित्रा हो तो हम जानते हैं कि धरा एवं वोल्टता के बीच कला अंतर πध्2 होता है। इसलिए बवे φ त्र 0 और इसलिए यद्यपि परिपथ में धरा प्रवाहित होती है तो भी कोइर् शक्ित क्षय नहीं होती। इस धरा को कभी - कभी वाटहीन धरा भी कहा जाता है। प्रकरण ;पपपद्ध श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ: किसी स्ब्त् परिपथ में शक्ित क्षय समीकरण ;7ण्38द्ध के अनुसार होता है। यहाँ φ त्र जंददृ1 ;ग् दृ ग्द्धध् त् अतः किसी त्स् या त्ब् या त्ब्स् परिपथ में φ बस् शून्येतर हो सकता है। इन परिपथों में भी शक्ित केवल प्रतिरोध्क में ही क्षयित होती है। प्रकरण ;पअद्ध स्ब्त् परिपथ में अनुनाद स्िथति में शक्ित क्षयः अनुनाद की स्िथति में ग् दृ ग्त्र 0 बस् एवं φ त्र 0 इसलिए बवेφ त्र 1 एवं च् त्र प्2र् त्र प्2 त् अथार्त परिपथ में अध्िकतम शक्ित ;त् के माध्यम सेद्ध अनुनाद की स्िथति में क्षयित होती है। उदाहरण 7ण्8 283 ट श्िाखर वोल्टता एवं 50 भ््र आवृिा की एक ज्यावक्रीय वोल्टता एक श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ से जुड़ी है जिसमें त् त्र 3 Ωए स् त्र 25ण्48 उभ्ए एवं ब् त्र 796 μथ् है। ज्ञात कीजिए ;ंद्ध परिपथ की प्रतिबाधऋ ;इद्ध स्रोत के सिरों के बीच लगी वोल्टता एवं परिपथ में प्रवाहित होने वाली धरा के बीच कला - अंतरऋ ;बद्ध परिपथ में होने वाला शक्ित - क्षयऋ एवं;कद्ध शक्ित गुणांक। हल ;ंद्ध परिपथ की प्रतिबाध ज्ञात करने के लिए पहले हम ग्स् एवं ग्ब् की गणना करेंगे। ग्स् त्र 2 πνस् त्र 2 × 3ण्14 × 50 × 25ण्48 × 10दृ3 Ω त्र 8 Ω 1 ग्ब् 2 ब् 253 1 64 2 3ण्14 50 796 10 इसलिए, त्र 5 Ω ग्ब् ग्स् ;इद्ध कला - अंतर, φ त्र जंददृ1 त् 148 जंद 53ण्1 3 चूँकि φ का मान )णात्मक है, परिपथ में धरा स्रोत के सिरों के बीच वोल्टता से पीछे रहती है, ;बद्ध परिपथ में शक्ित क्षय, 2 च् प्त् पउ 1 283 40। 2 25 अब, प् अतः, च् ;40 ।द्ध2 3 4800 ॅ ;कद्ध शक्ित गुणांक त्रबवे बवे53ण्1 0ण्6 उदाहरण 7ण्9 माना कि पूवर् उदाहरण में व£णत स्रोत की आवृिा परिवतर्नशील है। ;ंद्ध स्रोत की किस आवृिा पर अनुनाद होगा। ;इद्ध अनुनाद की अवस्था में प्रतिबाध, धरा एवं क्षयित शक्ित कीगणना कीजिए। हल ;ंद्ध वह आवृिा जिस पर अनुनाद होगा, 11 222ण्1तंकध्े 0 221ण्1 त भ््र 35ण्4भ््र 2 2 3ण्14 ;इद्ध अनुनाद की स्िथति में प्रतिबाध, र् प्रतिरोध्, त् के बराबर होती है अतः र्त् 3 अनुनाद स्िथति में तउे धरा टट 283 1 66ण्7। र्त् 23 अनुनाद स्िथति में शक्ित क्षय च्प्2 त् ;66ण्7द्ध2 3 13ण्35 ाॅ प्रस्तुत प्रकरण में आप देख सकते हैं कि अनुनाद स्िथति में शक्ित क्षय उदाहरण 7ण्8 में हुए शक्ित क्षय से अध्िक है। 254 हल धतु संसूचक ंब परिपथों मंे अनुनाद के सि(ांत पर कायर् करता है। जब आप किसी धतु संसूचक से गुजरते है तो वास्तव में आप अनेक पेफरों वाली एक वुंफडली से होकर गुजरते हैं। यह वुंफडली एक ऐसी समस्वरित संधरित्रा से जुड़ी होती है जिसके कारण परिपथ अनुनाद की स्िथति में होता है। जब आप जेब में धतु लेकर वुंफडली से गुजरते हैं तो परिपथ की प्रतिबाध परिव£तत हो जाती है, परिणामस्वरूप परिपथ में प्रवाहित होने वाली धरा में साथर्क परिवतर्न होता है। धरा का यह परिवतर्न संसूचित होता है एवं इलेक्ट्राॅनिक परिपथ्िाकी के कारण चेतावनी की ध्वनि उत्पन्न होती है। 7ण्8 स्ब् दोलन हम जानते हैं कि एक संधरित्रा एवं एक प्रेरक क्रमशः वैद्युत एवं चुंबकीय ऊजार् संचित कर सकते हैं। जब एक ;पहले से आवेश्िातद्ध संधरित्रा एक प्रेरक के साथ जोड़ा जाता है तो संधरित्रा पर आवेश एवं परिपथ में धरा, वैद्युत दोलनों की वैसी ही परिघटना प्रद£शत करते हैं जैसी यांत्रिाक प्रणालियों के दोलनों में देखी जाती है ;अध्याय 14ए कक्षा 11द्ध। माना कि किसी संधरित्रा पर ;ज त्र 0द्ध पर ुआवेश है और इसे एक प्रेरक उ से जोड़ा गया है जैसा चित्रा 7ण्18 मंे दशार्या गया है। जैसे ही परिपथ पूणर् होता है, संधरित्रा पर आवेश कम होना प्रारंभ हो जाता है जिससे परिपथ में धरा प्रवाहित होने लगती है। माना कि किसी क्षण ज पर आवेश ु एवं परिपथ में धरा प है। चूँकि कपध्कज ध्नात्मक है, स् में प्रेरित मउ िकी धु्रवता वही होगी जो चित्रा में दशार्यी गइर् है, अथार्त अढ अ । किरखोपफ के लूप नियम इ ं के अनुसार, चित्रा 7ण्18 दशार्ए गए क्षण पर धरा ु कप स् 0 ;7ण्39द्ध बढ़ रही है अतः प्रेरक में प्रेरण द्वारा ब् कज उत्पन्न की गइर् ध््रुवता वैसी ही होती हैप त्र दृ ;कुध्कजद्धए क्योंकि प्रस्तुत प्रकरण में ु कम हो रहा है, प बढ़ रहा है जैसी चित्रा में दशार्यी गइर् है। अतः समीकरण ;7ण्39द्ध को लिख सकते हैं: क2ु 1 ु 0 ;7ण्40द्ध कज2 स्ब् क2ग इस समीकरण का स्वरूप सरल आवतर् गति की समीकरण 22 ग 0 जैसा है। अतः, कज 0 आवेश सरल आवतर् दोलन करता है जिनकी प्रावृफतिक आवृिा है, 1 ;7ण्41द्ध 0 स्ब् और इसके परिमाण में समय के साथ ज्यावक्रीय रूप से परिवतर्न होता है जिसको हम निम्नलिख्िात सूत्रा द्वारा व्यक्त कर सकते हैं: ुुउबवे 0 ज ;7ण्42द्ध 255 यहाँ ुआवेश ु का अध्िकतम मान है एवं φ एक कला नियतांक है। चूंँकि, ज त्र 0 पर ु त्र ुए उउ बवे φ त्र1 या φ त्र 0 । इसलिए, प्रस्तुत प्रकरण में ुुउबवे; 0जद्ध ;7ण्43द्ध कु तब धरा प को व्यक्त कर सवेंफगे, कज प पउ ेपद; 0जद्ध ;7ण्44द्ध यहाँ पु उ 0 उ आइए अब यह देखने की चेष्टा करें कि परिपथ में यह दोलन होते वैफसे हैं? चित्रा 7ण्19;ंद्ध में प्रारंभ्िाक आवेश ुयुक्त एक संधरित्रा एक आदशर् प्रेरक से जुड़ा दिखाया उ 1 ु2 उ गया है। आवेश्िात संधरित्रा में संचित वैद्युत ऊजार् है न् । क्योंकि, परिपथ में कोइर् धारा म् 2 ब् प्रवाहित नहीं हो रही है, प्रेरक में ऊजार् शून्य है। अतः स्ब् परिपथ की वुफल ऊजार् है, 1 ु2 न्न् उ म् 2 ब् चित्रा 7ण्19 स्ब् परिपथ के दोलन ¯स्प्रग के सिरे पर लगे गुटके के दोलनों के समतुल्य हैं। चित्रा में दोलनों के आध्े चक्र को दशार्या गया है। ज त्र 0 पर स्िवच बंद कर दिया जाता है और संधरित्रा विस£जत होने लगता है ¹चित्रा 7ण्19 ;इद्धह्। जैसे - जैसे धरा बढ़ती है प्रेरक में चुंबकीय क्षेत्रा स्थापित होने लगता है और प्रेरक में चुंबकीयऊजार् के रूप में ऊजार् संचित होने लगती है जिसका मान है न् त्र ;1ध्2द्ध स्प2। जब प ए ठउ ;ज त्र ज्ध्4 परद्ध धरा का मान अध्िकतम प होता है, जैसा चित्रा 7ण्19 ;बद्ध में दशार्या गया है तो वुफल उ ऊजार् चुंबकीय क्षेत्रा के रूप में संचित होती है जिसका मान हैμ न् त्र ;1ध्2द्ध स्प2 । आप यह ठउ आसानी से जाँच सकते हैं कि अध्िकतम वैद्युत ऊजार्, अध्िकतम चुंबकीय ऊजार् के बराबर होतीहै। इस स्िथति में संधरित्रा पर कोइर् आवेश और इसलिए कोइर् ऊजार् नहीं होती। अब, जैसा चित्रा 7ण्19 ;कद्ध में दशार्या गया है, धरा संधरित्रा को आवेश्िात करने लगती है। यह प्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि ;ज त्र ज्ध्2 परद्ध संधरित्रा पूरी तरह आवेश्िात नहीं हो जाता है ¹चित्रा 7ण्19 ;मद्धह्। लेकिन, अब इसका आवेशन, चित्रा 7ण्19 ;ंद्ध में दशार्यी गइर् प्रारंभ्िाक स्िथति कीध्रुवता को विपरीत ध्ु्रवता के साथ होता है। ऊपर बताइर् गइर् प्रिया अब पिफर से दोहराइर् जाएगीजिससे प्रणाली अपनी मूल अवस्था में लौट आएगी। अतः इस प्रणाली में ऊजार् संधरित्रा एवं प्रेरक 256 के बीच दोलन करती है। स्ब् दोलन ¯स्प्रग से जुड़े ¯पड के यांत्रिाक दोलनों की ही तरह है। चित्रा 7ण्19 में प्रत्येक आवृफति का नीचे का भाग यांत्रिाक प्रणाली ;¯स्प्रग से जुड़े ¯पडद्ध की संगत अवस्था प्रदश्िार्त करता है। जैसा पहले देखा गया है, उ द्रव्यमान के ω0 आवृिा से दोलन करते ¯पड के लिए, समीकरण है क2ग 2 ग 0 20 कज यहाँ, ाउ ए एवं ा ¯स्प्रग नियतांक है। इसलिए, ग के संगत राश्िा ु है। यांत्रिाक प्रणाली के ध् 0 लिए, थ् त्र उं त्र उ;कअध्कजद्ध त्र उ;क2गध्कज2द्ध। विद्युतीय प्रणाली के लिए ε त्र दृस्;कपध्कजद्ध त्र दृस्;क2ुध्कज2द्ध। इन दो समीकरणों की तुलना करने पर, हम देखते हैं कि स् द्रव्यमान उ के समतुल्य है: स् धरा में परिवतर्न के प्रतिरोध् का माप है। स्ब् परिपथ के प्रकरण में, 1ध् स्ब् एवं 0 ¯स्प्रग पर दोलन करते द्रव्यमान के लिए, ध्। इसलिए 1ध्ब् ¯स्प्रग नियतांक ा 0 ाउ के समतुल्य है। नियतांक, ा ;त्रथ्ध्गद्ध व्यक्त करता है इकाइर् विस्थापन के लिए आवश्यक ;बाह्यद्ध बल, जबकि 1ध्ब् ;त्रटध्ुद्ध व्यक्त करता है इकाइर् आवेश संचित करने के लिए आवश्यक विभवांतर। सारणी 7ण्1 में यांत्रिाक एवं वैद्युत राश्िायों की सादृश्यता प्रस्तुत की गइर् है। ध्यान दें कि स्ब् दोलनों के संबंध् में उपरोक्त चचार् दो कारणों से यथाथर् नहीं हैμ ;पद्ध प्रत्येक प्रेरक में वुफछ न वुफछ प्रतिरोध् अवश्य होता है। यह प्रतिरोध् आवेश एवं परिपथ में प्रवाहित धरा पर अवमंदक प्रभाव डालता है जिससे अंततः दोलन समाप्त हो जाते हैं। ;पपद्ध यदि प्रतिरोध् शून्य हो तो भी निकाय की वुफल ऊजार् नियत नहीं रहेगी। यह निकाय से विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में विकिरित हो जाएगी ;अगले अध्याय में इस विषय में विस्तार से चचार्की गइर् हैद्ध। वास्तव में रेडियो एवं टीवी संप्रेषकों की कायर् प्रणाली इन्हीं विकिरणों के ऊपर निभर्र करती है। 257 258 0 प्रेरक के साथ जोड़ा गया है। जैसा आपने अनुभाग 7ण्8 में पढ़ा है, इस स्ब् परिपथ में आवृिा ;ωद्ध 1 यहाँ ω 2 के दोलन बने रहेंगे। स्ब् किसी क्षण ज पर, संधरित्रा पर आवेश ु एवं परिपथ में धरा प हैं, ु ;जद्ध त्र ु0 बवे ωज प ;जद्ध त्र दृ ु0 ω ेपद ωज समय ज पर, प्रेरक में संचित ऊजार् 1 21 ु2 न् ब्ट म् 22 ब् 2 ु0 बवे 2 ;जद्ध 2ब् समय ज पर प्रेरक में संचित ऊजार् 12 स्प न्ड 2 1 22 2 स्ु ेपद ; जद्ध 20 2 ु 02 2 ेपद ; जद्ध 1ध् स्ब् 2ब् ऊजार्ओं का योग 2 ु 02 2 न्न् बवे ज ेपद ज म्ड 2ब् 2 ु 0 2ब् क्योंकि ुएवंब् दोनों ही समय पर निभर्र नहीं करते इसलिए यह योग समय के साथ नहीं बदलता। ध्यान देने व योग्य बात यह है कि ऊजार्ओं का यह योग संधरित्रा की प्रारंभ्िाक ऊजार् के बराबर है। ऐसा क्यों है? विचार कीजिए! 7ण्9 ट्रांसपफाॅमर्र अनेक उद्देश्यों के लिए ंब वोल्टता को एक मान से दूसरे अध्िक या कम मान में परिव£तत करना ;या रूपांतरित करनाद्ध आवश्यक हो जाता है। ऐसा अन्योन्य प्रेरण के सि(ांत पर आधरित एक युक्ित के द्वारा किया जाता है जिसे ट्रांसपफाॅमर्र कहते हैं। ट्रांसपफामर्र में दो वुंफडलियाँ होती हैं जो एक दूसरे से विद्युतरु( होती हैं। वे एक कोमल - लौह - क्रोड पर लिपटी होती हैं। लपेटने की विध्ि या तो चित्रा 7ण्20 ;ंद्ध की भाँति होती है, जिसमें एक वुंफडलीदूसरी के ऊपर लिपटी होती है, या पिफर चित्रा 7ण्20 ;इद्ध की भाँति जिसमें दोनों वुंफडलियाँ क्रोड की अलग - अलग भुजाओं पर लिपटी होती हैं। एक वुंफडली को प्राथमिक वुंफडली ;चतपउंतल बवपसद्ध कहते हैं इसमें छच लपेटे होते हैं। दूसरी वुंफडली को द्वितीयक वुंफडली ;ेमबवदकंतल बवपसद्ध कहते 259 चित्रा 7ण्20 किसी ट्रांसपफाॅमर्र में प्राथमिक एवं द्वितीयक वुंफडलियों को लपेटने की दो व्यवस्थाएँ: ;ंद्ध एक दूसरे के ऊपर लपेटी गइर् दो वुंफडलियाँ ;इद्ध क्रोड की अलग - अलग भुजाओं पर लिपटी वुंफडलियाँ हैं, इसमें छ लपेटे होते हैं। प्रायः प्राथमिक वुंफडली निवेशी वुंफडली होती है एवं द्वितीयक वुंफडली े ट्रांसपफामर्र की निगर्त वुंफडली होती है। जब प्राथमिक वुंफडली के सिरों के बीच प्रत्यावतीर् वोल्टता लगाइर् जाती है तो परिणामी धराएक प्रत्यावतीर् चुंबकीय फ्रलक्स उत्पन्न करती है जो द्वितीयक वुंफडली से संयोजित होकर इसके सिरों के बीच एक मउ िप्रेरित करता है। इस मउ िका मान द्वितीयक वुंफडली में पेफरों की संख्या पर निभर्र करता है। हम मान लेते हैं कि हमारा ट्रांसपफाॅमर्र एक आदशर् ट्रांसपफाॅमर्र है जिसकी प्राथमिक वुंफडलीका प्रतिरोध् नगण्य है, और क्रोड का संपूणर् फ्रलक्स प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों वुुंफडलियों से गुजरता है। प्राथमिक वुुंफडली के सिरों के बीच वोल्टता अच लगाने से, माना किसी क्षण ज पर, इस वंुफडली का प्रत्येक पेफरा क्रोड में φ फ्रलक्स उत्पन्न करता है। तब छ लपेटों वाली द्वितीयक वुंफडली के सिरों के बीच प्रेरित मउ िया वोल्टता ε है े े क े छे ;7ण्45द्ध कज प्रत्यावतीर् फ्रलक्स, φ प्राथमिक वुंफडली में भी एक मउ िप्रेरित करता है जिसे पश्च विद्युत वाहकबल कहते हैं। यह है, क च छच ;7ण्46द्ध कज लेकिन, ε च त्र अच यदि ऐसा नहीं होता तो प्रारंभ्िाक वुंफडली ;जिसका प्रतिरोध् हमने शून्य माना हैद्ध में अनंत परिमाण की धरा प्रवाहित होती। यदि द्वितीयक वुंुफडली के सिरे मुक्त हों अथवा इससे बहुत कम धरा ली जा रही हो तो पयार्प्त सन्िनकट मान तक ε त्र अ ेे यहाँ अ द्वितीयक वुंफडली के सिरों के बीच वोल्टता है। अतः समीकरणों ;7ण्45द्ध एवं ;7ण्46द्ध को े हम इस प्रकार लिख सकते हैं μ क अछ ेे ख्7ण्45;ंद्ध, कज क अछ चच ख्7ण्46;ंद्ध, कज समीकरण ख्7ण्45 ;ंद्ध, एवं ख्7ण्46 ;ंद्ध, से, अे छे 260 अच छच ;7ण्47द्ध ध्यान दीजिए कि उपरोक्त संबंध् की व्युत्पिा में हमने तीन परिकल्पनाओं का उपयोग किया है जो इस प्रकार हैंμ ;पद्ध प्राथमिक वुंफडली का प्रतिरोध् एवं इसमें प्रवाहित होने वाली धरा कम हैऋ ;पपद्ध प्राथमिक एवं द्वितीयक वुंफडली से समान फ्रलक्स बाहर निकल पाता हैऋ एवं ;पपपद्ध द्वितीयक वुंफडली में बहुत कम धरा प्रवाहित होती है। यदि यह मान लिया जाए कि ट्रांसपफाॅमर्र की दक्षता 100ः है ;कोइर् ऊजार् क्षय नहीं होताद्धऋ तो निवेशी शक्ित, निगर्त शक्ित के बराबर होगी और चूँकि च त्र प अए पअ त्र पअ ;7ण्48द्ध चचेे यद्यपि वुफछ न वुफछ ऊजार् क्षय तो सदैव होता ही है, पिफर भी यह एक अच्छा सन्िनकटन है, क्योंकि एक भली प्रकार अभ्िाकल्िपत ट्रांसपफाॅमर्र की दक्षता 95ः से अध्िक होती है। समीकरण ;7ण्47द्ध एवं ;7ण्48द्ध को संयोजित करने पर, पचअे छे ;7ण्49द्ध पअ छ ेच च क्योंकि प एवं अ दोनों की दोलन आवृिा वही है जो ंब स्रोत की, समीकरण ;7ण्49द्ध से संगत राश्िायों के आयामों अथवा तउे मानों का अनुपात भी प्राप्त होता है। अब, हम देख सकते हैं कि ट्रांसपफाॅमर्र किस प्रकार वोल्टता एवं धरा के मानों को प्रभावित करता है। हम जानते हैं कि: छ छचटे छेटच तथा प्े छप्च ;7ण्50द्ध चे अथार्त यदि द्वितीयक वुंफडली में प्राथमिक वंुफडली से अध्िक पेफरे हैं ;छे झ छचद्ध तो वोल्टता बढ़ जाती है ;टे झ टचद्ध । इस प्रकार की व्यवस्था को उच्चायी ट्रांसपफाॅमर्र ;ेजमच.नच जतंदेवितउमतद्ध कहते हैं। तथापि, इस व्यवस्था में, द्वितीयक वुंफडली में धरा प्राथमिक वंुफडली से कम होती है ;छ ध्छ ढ 1 एवं प् ढ प् द्ध। उदाहरणाथर्, यदि किसी ट्रांसपफाॅमर्र की प्राथमिक वुंफडली चे ेचमें 100 एवं द्वितीयक वंुफडली में 200 पेफरे हों तो छेध्छच त्र 2 एवं छचध्छेत्र1ध्2 । अतः 220टए 10। का निवेश, बढ़कर 440 ट का निगर्म 5ण्0 । पर देगा। यदि द्वितीयक वुंफडली में प्राथमिक वंुफडली से कम पेफरे हैं ;छे ढ छचद्ध तो यह ट्रांसपफाॅमर्र अपचयी ;ेजमच.कवूद जतंदेवितउमतद्ध है। इस ट्रांसपफामर्र में ट ढ ट एवं प् झ प् अथार्त वोल्टता े च ेच कम हो जाती है तथा धरा बढ़ जाती है। ऊपर प्राप्त की गइर् समीकरण आदशर् ट्रांसपफाॅमर्रों के लिए ही लागू होती है ;जिनमें कोइर् ऊजार्क्षय नहीं होताद्ध। परंतु वास्तविक ट्राॅसपफाॅमर्रों में निम्नलिख्िात कारणों से अल्प मात्रा में ऊजार् क्षय होता हैμ ;पद्ध फ्रलक्स क्षरणμसदैव वुफछ न वुफछ फ्रलक्स तो क्षरित होता ही है, अथार्त क्रोड के खराबअभ्िाकल्पन या इसमें रही वायु रिक्ित के कारण, प्राथमिक वुंफडली का समस्त फ्रलक्स द्वितीयकवुंफडली से नहीं गुजरता। प्राथमिक एवं द्वितीयक वुंफडलियों को एक दूसरे के ऊपर लपेट करफ्रलक्स क्षरण को कम किया जाता है। ;पपद्ध वुंफडलनों का प्रतिरोध्μ वंुफडलियाँ बनाने में लगे तारों का वुफछ न वुफछ प्रतिरोध् तो होता ही है औरइसलिए इन तारों में उत्पन्न ऊष्मा ;प् 2त्द्ध के कारण ऊजार् क्षय होता है। उच्च धरा, निम्न वोल्टतावंुफडलनों में मोटे तार का उपयोग करके, इनमें होने वाले ऊजार् क्षय को कम किया जाता है। ;पपपद्ध भँवर धराएँμप्रत्यावतीर् चुंबकीय फ्रलक्स, लौह - क्रोड में भँवर धराएँ प्रेरित करके, इसे गमर् कर देता है। स्तरित क्रोड का उपयोग करके इस प्रभाव को कम किया जाता है। ;पअद्ध शैथ्िाल्य ;भ्लेजमतमेपेद्धμप्रत्यावतीर् चुंबकीय क्षेत्रा द्वारा क्रोड का चुंबकन बार - बार उत्क्रमितहोता है। इस प्रिया में व्यय होने वाली ऊजार् क्रोड में ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है। कम शैथ्िाल्य वाले पदाथर् का क्रोड में उपयोग करके इस प्रभाव को कम रखा जाता है। 261 विद्युत ऊजार् का लंबी दूरियों तक, बड़े पैमाने पर संपे्रषण एवं वितरण करने के लिए ट्रांसपफाॅमर्रों का उपयोग किया जाता है। जनित्रा की निगर्त वोल्टता को उच्चायित किया जाता है ;ताकि धरा कम हो जाती है और परिणामस्वरूप प्2त् हानि घट जाती है। इसकी लंबी दूरी के उपभोक्ता के समीप स्िथत क्षेत्राीय उप - स्टेशन तक संप्रेष्िात किया जाता है। वहाँ वोल्टता को अपचयित किया जाता है। वितरण उप - स्टेशनों एवं खंभों पर पिफर से अपचयित करके 240 ट की शक्ित आपू£त हमारे घरों को पहुँचायी जाती है। सारांश 1ण् जब किसी प्रतिरोधक त् के सिरों पर कोइर् प्रत्यावतीर् वोल्टता अअ ेपद ज लगाइर् जाती उ अ है तो उसमें धारा प त्र प ेपदωज संचालित होती है जहाँ, पउ उ ण् यह धारा प्रयुक्त उ त् वोल्टता की कला में होती है। 2ण् किसी प्रतिरोधक त् से प्रवाहित प्रत्यावतीर् धारा प त्र प ेपदωज के लिए जूल तापन के कारण उ माध्य शक्ित क्षय ; 1ध्2 द्धप2 त् होता है। इसे उसी रूप में व्यक्त करने के लिए जिसमें उ कब शक्ित ;च् त्र प् 2त्द्धए को व्यक्त करते हैं, धारा के एक विश्िाष्ट मान का उपयोग कियाजाता है। इसे वगर् माध्य मूल ;तउेद्ध धारा कहते हैं तथा प् से व्यक्त करते हैं: प प् उ 0ण्707 पउ 2 इसी प्रकार, तउे वोल्टता अ ट उ 0ण्707अउ 2 माध्य शक्ित के लिए व्यंजक च् त्र प्ट त्र प्2त् 3ण् किसी शु( प्रेरक स् के किसी पर प्रयुक्त ंब वोल्टता अ त्र अ ेपदωज इसमें प त्र प ेपद उउ ;ωज दृ πध्2द्धए धरा संचालित करता है, यहाँ अपत्र उउ जहाँ ग् स्स् ग् स् ग्को प्रेरण्िाक प्रतिघात कहते हैं। प्रेरक में धरा वोल्टता से πध्2 रेडियन से पीछे होती स् है। एक पूरे चक्र में किसी प्रेरिक को आपूतिर् माध्य शक्ित शून्य होती है। 4ण् किसी संधारित्रा के सिरों पर प्रयुक्त ंब वोल्टता अ त्र अ ेपदωज उसमें प त्र प ेपद ;ωज ़ उउ πध्2द्ध धारा संचालित करता है। यहाँ अउ 1 प ए ग् उग् ब्ब् ब् ग् को धारिता प्रतिघात कहते हैं। संधारित्रा में प्रवाहित धारा प्रयुक्त वोल्टता से πध्2 ब् रेडियन आगे होती है। प्रेरक के समान ही एक पूरे चक्र में संधारित्रा को आपूतर् माध्यशक्ित शून्य होती है। 5ण् वोल्टता अ त्र अ ेपदωजए द्वारा संचालित किसी श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ में धारा का मान उ निम्नलिख्िात व्यंजक से दिया जाता है, अ उ यहाँ प उ त्2 ग्ब् ग्स् 2 262 ग्ग् 1 ब्स् तथा जंद त् होता है। 2 र् त् ग्ग्2 को परिपथ की प्रतिबाधा कहते हैं। ब्स् एक पूरे चक्र में माध्य शक्ित क्षय को निम्न सूत्रा से व्यक्त करते हैं, च् त्र ट प् बवेφ पद बवेφ को शक्ित गुणांक कहते हैं। 6ण् किसी विशु( प्रेरण्िाक अथवा धारिता परिपथ के लिए बवे त्र 0। ऐसे परिपथ में यद्यपिधारा तो प्रवाहित होती है तथापि शक्ित क्षय नहीं होता है। ऐसे उदाहरणों में धारा को वाटहीन ;ॅंजजसमेेद्ध धारा कहते हैं। 7ण् किसी ंब परिपथ में धारा व वोल्टता के मध्य कला के संबंध को सुगमता से व्यक्त कियाजा सकता है। इसमें वोल्टता तथा धारा को घूणीर् सदिशों से निरूपित करते हैं। घूणीर् सदिशको पेफजर कहते हैं। पेफजर एक सदिश के समान है जो चाल से मूल बिंदु के चतुदिर्शघूणर्न करता है। पेफजर का परिमाण पेफजर द्वारा निरूपित राश्िा ;वोल्टता या धाराद्ध के आयामया श्िाखर मान को व्यक्त करता है।पेफजर - आरेख के उपयोग से किसी ंब परिपथ का विश्लेषण आसान हो जाता है। 8ण् अनुनाद की घटना किसी श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ की एक रोचक विश्िाष्टता है। परिपथ अनुनाद 1 को प्रद£शत करता है अथार्त अनुनादी आवृिा पर धारा का आयाम अिाकतम 0 स्ब् 1 होता है। फ 0स् द्वारा परिभाष्िात गुणता कारक ;फनंसपजल थ्ंबजवतद्ध फ त् 0ब्त् अनुनाद की तीक्ष्णता का संकेतक है। फ का अिाक मान यह संकेत करता है कि धारा का श्िाखर अपेक्षाकृत अिाक तीक्ष्ण है। 9ण् ंब ड्डोत तथा प्रतिरोधक विहीन कोइर् ऐसा परिपथ जिसमें कोइर् प्रेरक स् तथा संधारित्रा ब् ;प्रारंभ में आवेश्िातद्ध हैं, मुक्त दोलन प्रदश्िार्त करता है। संधारित्रा का आवेश ु एक सरलआवतर् गति करता हैः क2ु 1 2 ु 0 कज स्ब् इस प्रकार मुक्त दोलनों की आवृिा 1ध् स्ब् होती है। निकाय की ऊजार् संधारित्रा तथा 0 प्रेरक के मध्य दोलन करती है, किंतु उनका योग अथवा वुफल ऊजार् समय के साथ नियत रहती है। 10ण् ट्रांसपफामर्र में एक लोहे का क्रोड होता है जिसमें पेफरों की संख्या छच की एक प्राथमिक वुंफडली तथा पेफरों की संख्या छ की एक द्वितीयक वुंफडली लिपटी रहती है। यदि प्राथमिक े वुंफडली को किसी ंब ड्डोत से जोड़ दें, तो प्राथमिक एवं द्वितीयक वोल्टता निम्नलिख्िातव्यंजक द्वारा संबंिात होती हैं, छे टे छचटच तथा दोनों धाराओं के मध्य के संबंध को निम्नलिख्िात सूत्रा से व्यक्त करते हैं छच प्े प्च छे यदि प्राथमिक की तुलना में द्वितीयक वुंफडली में पेफरों की संख्या अिाक है तो वोल्टता उच्चहो जाती है ;टे टच द्ध। इस प्रकार की युक्ित को उच्चायी ट्रांसपफामर्र कहते हैं। किंतु यदिप्राथमिक की तु लना में द्वितीयक में पेफरों की संख्या कम है तो ट्रांसपफामर्र अपचयी होता है। 263 तउे वोल्टता तउे धारा प्रतिघात: प्रेरण्िाक धारितात्मक प्रतिबाधा अनुनादीआवृिा गुणता कारक शक्ित कारक 1ण् 2ण् 3ण् 4ण् 264 ट ख्ड स्2 ज्दृ3 ।दृ1, ट तउे प् ख् ।, । तउे ख्ड स्2 ज्दृ3 ।दृ2, ग्स् ख्ड स्2 ज्दृ3 ।दृ2, ग्ब् र् ख्ड स्2 ज्दृ3 ।दृ2, ख्ज्दृ1, ω त या ω0 भ््र फ विमाहीन विमाहीन विचारणीय विषय जब ंब वोल्टता या धारा को कोइर् मान दिया जाता है तो यह प्रायः धारा अथवा वोल्टता का तउे मान होता है। आपके कमरे में लगे विद्युत स्िवच के टमिर्नलों के बीच वोल्टता सामान्यतया 240 ट होती है। यह वोल्टता के तउे मान को निदिर्ष्ट करती है। इस वोल्टता का आयाम ट 2ट 2 240 द्ध तउे ; 340 ट है। उ किसी ंब परिपथ में प्रयुक्त अवयव की शक्ित संनिधार्रण माध्य शक्ित से निधार्रण को इंगित करती है। किसी परिपथ में उपयुक्त शक्ित कभी भी )णात्मक नहीं होती। प्रत्यावतीर् एवं दिष्ट धाराएँ दोनों ऐम्िपयर में मापी जाती हैं। किंतु प्रत्यावतीर् धारा के लिए ऐम्िपयर को किस प्रकार भौतिक रूप से परिभाष्िात किया जाए? जिस प्रकार कब ऐम्िपयर को परिभाष्िात करते हैं उसी प्रकार इसे ;ंब ऐम्िपयर कोद्ध ंब धाराओं को वहन करने वाले दो समांतर तारों के अन्योन्य आकषर्ण के रूप में परिभाष्िात नहीं कर सकते। ंब धारा ड्डोत की आवृिा के साथ दिशा परिवतिर्त करती है जिससे माध्य आकषर्ण बल शून्य हो जाता है। अतः ंब ऐम्िपयर को किसी ऐसे गुण के संबंध में परिभाष्िात करना चाहिए जो धारा की दिशा पर निभर्र न करता हो। जूल तापन एक ऐसा ही गुण है, तथा किसी परिपथ में प्रत्यावतीर् धारा के तउे मान को एकऐम्िपयर के रूप में परिभाष्िात करते हैं यदि यह धारा वही औसत ऊष्मीय प्रभाव उत्पन्न करती है, जैसा कि कब धारा की एक ऐम्िपयर उन्हीं परिस्िथतियों में करती है। 5ण् किसी ंब परिपथ में विभ्िान्न अवयवों के सिरों के बीच वोल्टताओं का योग करते समय उनकी कलाओं का उचित ध्यान रखना चाहिए। उदाहरणाथर्, यदि किसी त्ब् परिपथ में ट और ट क्रमशः त्ब् त् व ब् के सिरांे के बीच वोल्टता है तो त्ब् संयोजन के सिरों के बीच वोल्टता ट ट 2 ट 2 त्ब् त्ब् होगी न कि ट ़ ट क्योंकि ट तथा ट के बीच कला - अंतर है। त् ब्ब्त् 2 6ण् यद्यपि किसी पेफजर - आरेख में वोल्टता तथा धारा को सदिशों से निरूपित करते हैं तथापि ये राश्िायाँ वास्तव में सदिश नहीं हंै। ये अदिश राश्िायाँ हैं। ऐसा होता है कि सरल आवतर् रूप से परिवतिर्त होने वाले अदिशों की कलाएँ गण्िातीय रूप से उसी प्रकार संयोग करती हैं, जैसे कि तदनुसार परिमाणों व दिशाओं के घूणीर् सदिशों के प्रक्षेप करते हैं। ‘घूणीर् सदिश’, जो सरल आवतर् रूप से परिवतर्नशील अदिश राश्िायों का निरूपण करते हैं, हमें इन राश्िायों के जोड़ने की सरल वििा प्रदान करने के लिए सन्िनविष्ट किए जाते हैं। इसके लिए हम उस नियम का उपयोग करते हैं जिसे हम सदिशों के संयोजन के नियम के रूप में पहले ही से जानते हैं। 7ण् किसी ंब परिपथ में शु( संधारित्रों तथा प्रेरकों से कोइर् शक्ित - क्षय संब( नहीं होता। यदि ंब परिपथ में किसी अवयव द्वारा शक्ित - क्षय होता है तो वह प्रतिरोधक अवयव है। 1 8ण् किसी स्ब्त् परिपथ में अनुनाद की परिघटना तब होती है जब ग् त्र ग् या 0 । स् ब् स्ब् अनुनाद होने के लिए परिपथ में स् व ब् दोनों अवयवों का होना आवश्यक है। इनमें से मात्रा एक ;स् अथवा ब्द्ध के होने से वोल्टता के निरस्त होने की संभावना नहीं होती और इस प्रकार अनुनाद संभव नहीं है। 9ण् किसी स्ब्त् परिपथ में शक्ित गुणांक ;च्वूमत थ्ंबजवतद्ध इस बात को मापता है कि परिपथ अिाकतम शक्ित व्यय करने के कितने समीप है। 10ण् जनित्रों एवं मोटरों में निवेश तथा निगर्त की भूमिकाएँ एक - दूसरे के विपरीत होती हैं। एक मोटरमें वैद्युत ऊजार् निवेश है तथा यांत्रिाक ऊजार् निगर्त हैऋ जनित्रा में यांत्रिाक ऊजार् निवेश है तथा वैद्युतऊजार् निगर्त है। दोनों युक्ितयाँ ऊजार् को एक प्रकार से दूसरे में रूपांतरित करती हैं। 11ण् एक ट्रांसपफाॅमर्र ;उच्चायीद्ध निम्न वोल्टता को उच्च वोल्टता में परिवतिर्त करता है। यह ऊजार् केसंरक्षण के नियम का उल्लंघन नहीं करता है। धारा उसी अनुपात में घट जाती है। 12ण् यह चयन करना कि दोलन गति का विवरण ज्या ;ेपदमद्ध या कोज्या ;बवेपदमद्ध के द्वारा दियाजाता है अथवा इनके रैख्िाक संयोग द्वारा, महत्वहीन है क्योंकि शून्य - समय स्िथति में परिवतर्न एक को दूसरे में रूपांतरित कर देता है। 265 अभ्यास 7ण्1 एक 100 Ω का प्रतिरोधक 200 टए 50 भ््र आपूतिर् से संयोजित है। ;ंद्ध परिपथ में धारा का तउे मान कितना है? ;इद्ध एक पूरे चक्र में कितनी नेट शक्ित व्यय होती है। 7ण्2 ;ंद्ध ंब आपूतिर् का श्िाखर मान 300 ट है। तउे वोल्टता कितनी है? ;इद्ध ंब परिपथ में धारा का तउे मान 10 । है। श्िाखर धारा कितनी है? 7ण्3 एक 44 उभ् का प्रेरित्रा 220 टए 50 भ््र आपूतिर् से जोड़ा गया है। परिपथ में धारा के तउे मान को ज्ञात कीजिए। 7ण्4 एक 60 μथ् का संधारित्रा 110 टए 60 भ््र ंब आपूतिर् से जोड़ा गया है। परिपथ में धारा के तउे मान को ज्ञात कीजिए। 7ण्5 अभ्यास 7ण्3 व 7ण्4 में एक पूरे चक्र की अविा में प्रत्येक परिपथ में कितनी नेट शक्ितअवशोष्िात होती है? अपने उत्तर का विवरण दीजिए। 7ण्6 एक स्ब्त् परिपथ की, जिसमें स् त्र 2ण्0 भ्ए ब् त्र 32 μथ् तथा त् त्र 10 Ω अनुनाद आवृिा परिकलित कीजिए। इस परिपथ के लिए फ का क्या मान है? त 7ण्7 30 μथ् का एक आवेश्िात संधारित्रा 27 उभ् के प्रेरित्रा से जोड़ा गया है। परिपथ के मुक्त दोलनोंकी कोणीय आवृिा कितनी है? 7ण्8 कल्पना कीजिए कि अभ्यास 7ण्7 में संधारित्रा पर प्रारंभ्िाक आवेश 6 उब् है। प्रारंभ में परिपथ मेंवुफल कितनी ऊजार् संचित होती है। बाद में वुफल ऊजार् कितनी होगी? 7ण्9 एक श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ को, जिसमें त् त्र 20 Ωए स् त्र 1ण्5 भ् तथा ब् त्र 35 μथ्ए एकपरिवतीर् आवृिा की 200 ट ंब आपूतिर् से जोड़ा गया है। जब आपूतिर् की आवृिा परिपथ कीमूल आवृिा के बराबर होती है तो एक पूरे चक्र में परिपथ को स्थानांतरित की गइर् माध्य शक्ित कितनी होगी? 7ण्10 एक रेडियो को डॅ प्रसारण बैंड के एक खंड के आवृिा परास के एक ओर से दूसरी ओर ;800 ाभ््र से 1200 ाभ््रद्ध तक समस्वरित किया जा सकता है। यदि इसके स्ब् परिपथ का प्रभावकारी प्रेरकत्व 200 μभ् हो, तो उसके परिवतीर् संधारित्रा की परास कितनी होनी चाहिए? ¹संकेत: समस्वरित करने के लिए मूल आवृिा अथार्त स्ब् परिपथ के मुक्त दोलनों की आवृिारेडियो तरंग की आवृिा के समान होनी चाहिए।ह् 7ण्11 चित्रा 7ण्21 में एक श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ दिखलाया गया है जिसे परिवतीर् आवृिा के 230 ट के ड्डोत से जोड़ा गया है। स् त्र 5ण्0 भ्ए ब् त्र 80 थ्ए त् त्र 40 Ω चित्रा 7ण्21 ;ंद्ध ड्डोत की आवृिा निकालिए जो परिपथ में अनुनाद उत्पन्न करे। ;इद्ध परिपथ की प्रतिबाधा तथा अनुनादी आवृिा पर धारा का आयाम निकालिए। ;बद्ध परिपथ के तीनों अवयवों के सिरों पर विभवपात के तउे मानों को निकालिए। दिखलाइए 266 कि अनुनादी आवृिा पर स्ब् संयोग के सिरों पर विभवपात शून्य है। अतिरिक्त अभ्यास 7ण्12 किसी स्ब् परिपथ में 20 उभ् का एक प्रेरक तथा 50 μथ् का एक संधारित्रा है जिस पर प्रारंभ्िाक आवेश 10 उब् है। परिपथ का प्रतिरोध नगण्य है। मान लीजिए कि वह क्षण जिस पर परिपथ बंद किया जाता है ज त्र 0 है। ;ंद्ध प्रारंभ में वुफल कितनी ऊजार् संचित है? क्या यह स्ब् दोलनों की अविा में संरक्ष्िात है? ;इद्ध परिपथ की मूल आवृिा क्या है? ;बद्ध किस समय पर संचित ऊजार् ;पद्ध पूरी तरह से वैद्युत है ;अथार्त वह संधारित्रा में संचित हैद्ध? ;पपद्ध पूरी तरह से चुंबकीय है ;अथार्त प्रेरक में संचित हैद्ध? ;कद्ध किन समयों पर संपूणर् ऊजार् प्रेरक एवं संधारित्रा के मध्य समान रूप से विभाजित है? ;मद्ध यदि एक प्रतिरोधक को परिपथ में लगाया जाए तो कितनी ऊजार् अंततः ऊष्मा के रूप में क्षयित होगी? 7ण्13 एक वुंफडली को जिसका प्रेरण 0ण्50 भ् तथा प्रतिरोध 100 है, 240 ट व 50 भ््र की एक आपूतिर् से जोड़ा गया है। ;ंद्ध वुंफडली में अिाकतम धारा कितनी है? 7ण्14 ;इद्ध वोल्टेज शीषर् व धारा शीषर् के बीच समय - पश्चता ;जपउम संहद्ध कितनी है?यदि परिपथ को उच्च आवृिा की आपूतिर् ;240 टए 10 ाभ््रद्ध से जोड़ा जाता है तो अभ्यास 7ण्13 ;ंद्ध तथा ;इद्ध के उत्तर निकालिए। इससे इस कथन की व्याख्या कीजिए कि अति उच्चआवृिा पर किसी परिपथ में प्रेरक लगभग खुले परिपथ के तुल्य होता है। स्िथर अवस्था के पश्चात किसी कब परिपथ में प्रेरक किस प्रकार का व्यवहार करता है। 7ण्15 40 प्रतिरोध के श्रेणीक्रम में एक 100 μथ् के संधारित्रा को 110 टए 60 भ््र की आपूतिर् से जोड़ा गया है। ;ंद्ध परिपथ में अिाकतम धारा कितनी है? 7ण्16 ;इद्ध धारा शीषर् व वोल्टेश शीषर् के बीच समय - पश्चता कितनी है? यदि परिपथ को 110 टए 12 ाभ््र आपूतिर् से जोड़ा जाए तो अभ्यास ;ंद्ध व ;इद्ध का उत्तरनिकालिए। इससे इस कथन की व्याख्या कीजिए कि अति उच्च आवृिायों पर एक संधारित्रा चालक होता है। इसकी तुलना उस व्यवहार से कीजिए जो किसी कब परिपथ में एक संधारित्रा प्रदश्िार्त 7ण्17 करता है।ड्डोत की आवृिा को एक श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ की अनुनादी आवृिा के बराबर रखते हुए तीन अवयवों स्ए ब् तथा त् को समांतरक्रम में लगाते हैं। यह दशार्इए कि समांतर स्ब्त् परिपथ मेंइस आवृिा पर वुफल धारा न्यूनतम है। इस आवृिा के लिए अभ्यास 7ण्11 में निदिर्ष्ट ड्डोत तथा अवयवों के लिए परिपथ की हर शाखा में धारा के तउे मान को परिकलित कीजिए। 7ण्18 एक परिपथ को जिसमें 80 उभ् का एक प्रेरक तथा 60 μथ् का संधारित्रा श्रेणीक्रम में है, 230 टए 50 भ््र की आपूतिर् से जोड़ा गया है। परिपथ का प्रतिरोध नगण्य है। ;ंद्ध धारा का आयाम तथा तउे मानों को निकालिए। ;इद्ध हर अवयव के सिरों पर विभवपात के तउे मानों को निकालिए। ;बद्ध प्रेरक में स्थानांतरित माध्य शक्ित कितनी है? ;कद्ध संधारित्रा में स्थानांतरित माध्य शक्ित कितनी है? ;मद्ध परिपथ द्वारा अवशोष्िात वुफल माध्य शक्ित कितनी है? ¹‘माध्य में यह समाविष्ट है’ कि इसे ‘पूरे चक्र’ के लिए लिया गया हैह्। 7ण्19 कल्पना कीजिए कि अभ्यास 7ण्18 में प्रतिरोध 15 है। परिपथ के हर अवयव को स्थानांतरित माध्य शक्ित तथा संपूणर् अवशोष्िात शक्ित को परिकलित कीजिए। 267 7ण्20 7ण्21 7ण्22 7ण्23 7ण्24 7ण्25 7ण्26 एक श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ को जिसमें स् त्र 0ण्12 भ्ए ब् त्र 480 दथ्ए त् त्र 23 ए 230 ट परिवतीर् आवृिा वाले ड्डोत से जोड़ा गया है। ;ंद्ध ड्डोत की वह आवृिा कितनी है जिस पर धारा आयाम अिाकतम है। इस अिाकतम मान को निकालिए। ;इद्ध ड्डोत की वह आवृिा कितनी है जिसके लिए परिपथ द्वारा अवशोष्िात माध्य शक्ित अिाकतम ;बद्ध है।ड्डोत की किस आवृिा के लिए परिपथ को स्थानांतरित शक्ित अनुनादी आवृिा की शक्ित की आधी है। ;कद्ध दिए गए परिपथ के लिए फ कारक कितना है? एक श्रेणीब( स्ब्त् परिपथ के लिए जिसमें स् त्र 3ण्0 भ्ए ब् त्र 27 μथ् तथा त् त्र 7ण्4 अनुनादी आवृिा तथा फ कारक निकालिए। परिपथ के अनुनाद की तीक्ष्णता को सुधारने की इच्छा से फ्अधर् उच्िचष्ठ पर पूणर् चैड़ाइर्य् को 2 गुणक द्वारा घटा दिया जाता है। इसके लिए उचित उपाय सुझाइए।निम्नलिख्िात प्रश्नों के उत्तर दीजिएμ ;ंद्ध क्या किसी ंब परिपथ में प्रयुक्त तात्क्षण्िाक वोल्टता परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़े गए अवयवों के सिरों पर तात्क्षण्िाक वोल्टताओं के बीजगण्िातीय योग के बराबर होता है? क्या यही बात तउे वोल्टताओं में भी लागू होती है? ;इद्ध प्रेरण वुंफडली के प्राथमिक परिपथ में एक संधारित्रा का उपयोग करते हैं। ;बद्ध एक प्रयुक्त वोल्टता संकेत एक कब वोल्टता तथा उच्च आवृिा के एक ंब वोल्टता के अध्यारोपण से निमिर्त है। परिपथ एक श्रेणीब( प्रेरक तथा संधारित्रा से निमिर्त है। दशार्इए कि कब संकेत ब् तथा ंब संकेत स् के सिरे पर प्रकट होगा। ;कद्ध एक लैंप से श्रेणीक्रम में जुड़ी चोक को एक कब लाइन से जोड़ा गया है। लैंप तेजी से चमकता है। चोक में लोहे के क्रोड को प्रवेश कराने पर लैंप की दीप्ित में कोइर् अंतर नहीं पड़ता है। यदि एक ंब लाइन से लैंप का संयोजन किया जाए तो तदनुसार प्रेक्षणों की प्रागुक्ित कीजिए। ;मद्ध ंब मेंस के साथ कायर् करने वाली फ्रलोरोसेंट ट्यूब में प्रयुक्त चोक वुंफडली की आवश्यकता क्यों होती है? चोक वुंफडली के स्थान पर सामान्य प्रतिरोध्क का उपयोग क्यों नहीं होता? एक शक्ित संप्रेषण लाइन अपचयी ट्रांसपफामर्र में जिसकी प्राथमिक वुंफडली में 4000 पेफरे हैं, 2300 वोल्ट पर शक्ित निवेश्िात करती है। 230 ट की निगर्त शक्ित प्राप्त करने के लिए द्वितीयक में कितने पेफरे होने चाहिए?एक जल विद्युत शक्ित संयंत्रा में जल दाब शीषर् 300 उ की ऊँचाइर् पर है तथा उपलब्ध जलप्रवाह 100 उ3ेदृ1 है। यदि टबार्इन जनित्रा की दक्षता 60ः हो तो संयंत्रा से उपलब्ध विद्युत शक्ितका आकलन कीजिए, ह त्र 9ण्8 उ ेदृ2 । 440 ट पर शक्ित उत्पादन करने वाले किसी विद्युत संयंत्रा से 15 ाउ दूर स्िथत एक छोटे सेकस्बे में 220 ट पर 800 ाॅ शक्ित की आवश्यकता है। विद्युत शक्ित ले जाने वाली दोनोंतार की लाइनों का प्रतिरोध 0ण्5 प्रति किलोमीटर है। कस्बे को उप - स्टेशन में लगे 4000 दृ 220 ट अपचयी ट्रांसपफामर्र से लाइन द्वारा शक्ित पहुँचती है। ;ंद्ध ऊष्मा के रूप में लाइन से होने वाली शक्ित के क्षय का आकलन कीजिए। ;इद्ध संयंत्रा से कितनी शक्ित की आपूतिर् की जानी चाहिए, यदि क्षरण द्वारा शक्ित का क्षय नगण्य है। ;बद्ध संयंत्रा के उच्चायी ट्रांसपफामर्र की विशेषता बतलाइए। ऊपर किए गए अभ्यास को पुनः कीजिए। इसमें पहले के ट्रांसपफामर्र के स्थान पर 40ए000 दृ 220 ट का अपचयी ट्रांसपफामर्र है। ¹पूवर् की भाँति क्षरण के कारण हानियों को नगण्य मानिए, यद्यपि अब यह सन्िनकटन उचित नहीं है क्योंकि इसमें उच्च वोल्टता पर संप्रेषण होता हैह्। अतः समझाइए कि क्यों उच्च वोल्टता संप्रेषण अिाक वरीय है? 268