Aroh

7 जन्म: सन् 1899, महिषादल, ;बंगाल के मेदिनीपुर िाले मेंद्ध पारिवारिक गाँव - गढ़ाकोला, ;उÂाव, उत्तर प्रदेशद्ध प्रमुख रचनाएँ: अनामिका, परिमल, गीतिका, बेला, नए पत्ते, अण्िामा, तुलसीदास, वुफवुफरमुत्ता ;कविता संग्रहद्धऋ चतुरी चमार, प्रभावती, बिल्लेसुर बकरिहा, चोटी की पकड़, काले कारनामे ;गद्यद्धऋ आठ खंडों में ‘निराला रचनावली’ प्रकाश्िात। समन्वय, मतवाला पत्रिाका का संपादन निधन: सन् 1961, ;इलाहाबाद मेंद्ध नव गति नव लय ताल छंद नव / नवल वंफठ नव जलद मंद रव / नव नभ के नव विहग वृंद को / नव पर नव स्वर दे। कविता को नया स्वर देने वाले निराला छायावाद के ऐसे कवि हैं जो एक ओर कबीर की परंपरा से जुड़ते हैं तो दूसरी ओर समकालीन कवियों के प्रेरणा स्रोत भी हैं। उनका यह विस्तृत काव्य - संसार अपने भीतर संघषर् और जीवन, क्रांति और निमार्ण, ओज और माधुयर्, आशा और निराशा के द्वंद्व को वुफछ इस तरह समेटे हुए है कि वह किसी सीमा में बँध नहीं पाता। उनका यह निब±ध और उदात्त काव्य - व्यक्ितत्व कविता और जीवन में पफाँक नहीं रखता। वे आपस में घुले - मिले हैं। उल्लास - शोक, राग - विराग, उत्थान - पतन, अंधकार - प्रकाश का सजीव कोलाज है उनकी कविता। जब वे मुक्त छंद की बात करते हैं तो केवल छंद, रूढि़यों आदि के बंधन को ही नहीं तोड़ते बल्िक काव्य विषय और युग की सीमाओं को भी अतिक्रमित करते हैं। विषयों और भावों की तरह भाषा की दृष्िट से भी निराला की कविता के कइर् रंग हैं। एक तरप़् ाफ तत्सम सामासिक पदावली और ध्वन्यात्मक ¯बबों से युक्त राम की शक्ित पूजा और कठिन छंद - साध्ना का प्रतिमान तुलसीदास है, तो दूसरी तरपफ देशी टटके शब्दों का़सोंधापन लिए वुफवुफरमुत्ता, रानी और कानी, महँगू महँगा रहा जैसी कविताएँ हैं। आरोह िाव्फ जीवन जो / पाता ही आया विरोध, कहने वाले निराला उत्कट आत्मशक्ित और अद्भुत जिजीविषा के कवि हंै, जो हार नहीं मानते और निराशा के क्षणों में शक्ित की मौलिक कल्पना कर शक्ित का साधन जुटाते हैं। इसीलिए इस शक्ितसाध्य कवि निराला को वषार् )तु अिाक आवृफष्ट करती हैऋ क्योंकि बादल के भीतर सृजन और ध्वंस की ताकत एक साथ समाहित है। बादल उन्हें पि्रय है क्योंकि स्वयं उनका व्यक्ितत्व बादल के स्वभाव के करीब है। बादल किसान के लिए उल्लास एवं निमार्ण का तो मशदूर के संदभर् में क्रांति एवं बदलाव का अग्रदूत है। बनता है। उर में पृथ्वी के, आशाओं से नवजीवन की, उँफचा कर सिर, ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल! पिफर - पिफर बार - बार गजर्न वषर्ण है मूसलधार, हृदय थाम लेता संसार, सुन - सुन घोर वज्र - हंुकार। अशनि - पात से शापित उÂत शत - शत वीर, क्षत - विक्षत हत अचल - शरीर, गगन - स्पशीर् स्प(ार् धीर। हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार - शस्य अपार, हिल - हिल ख्िाल - ख्िाल, हाथ हिलाते, तुझे बुलाते, विप्लव - रव से छोटे ही हैं शोभा पाते। आरोह अ‘ालिका नहीं है रे आतंक - भवन सदा पंक पर ही होता जल - विप्लव - प्लावन, क्षुद्र प्रपुफल्ल जलज से बादल राग अंगना - अंग से लिपटे भी आतंक अंक पर काँप रहे हैं। धनी, वज्र - गजर्न से बादल! त्रास्त - नयन मुख ढाँप रहे हैं। जीणर् बाहु, है शीणर् शरीर, तुझे बुलाता वृफषक अधीर, ऐ विप्लव के वीर! चूस लिया है उसका सार, हाड़ - मात्रा ही है आधार, ऐ जीवन के पारावार! अभ्यास कविता के साथ 1.अस्िथर सुख पर दुख की छाया पंक्ित में दुख की छाया किसे कहा गया है और क्यों? 2.अशनि - पात से शापित उÂत शत - शत वीर पंक्ित में किसकी ओर संकेत किया गया है? 3.विप्लव - रव से छोटे ही हैं शोभा पाते पंक्ित में विप्लव - रव से क्या तात्पयर् है? छोटे ही हैं शोभा पाते ऐसा क्यों कहा गया है? 4.बादलों के आगमन से प्रवृफति में होने वाले किन - किन परिवतर्नों को कविता रेखांकित करती है? व्याख्या कीजिए 1.तिरती है समीर - सागर पर अस्िथर सुख पर दुख की छाया - जग के दग्ध हृदय पर निदर्य विप्लव की प्लावित माया - 2.अ‘ालिका नहीं है रे आतंक - भवन सदा पंक पर ही होता जल - विप्लव - प्लावन कला की बात पूरी कविता में प्रवृफति का मानवीकरण किया गया है। आपको प्रवृफति का कौन - सा मानवीय रूप पसंद आया और क्यों? 2.कविता में रूपक अलंकार का प्रयोग कहाँ - कहाँ हुआ है? संबंिात वाक्यांश को छाँटकर लिख्िाए। 3.इस कविता में बादल के लिए ऐ विप्लव के वीर!, ऐ जीवन के पारावार! जैसे संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। बादल राग कविता के शेष पाँच खंडों में भी कइर् संबोधनों का इस्तेमाल किया गया है। जैसे - अरे वषर् के हषर्!, मेरे पागल बादल!, ऐ निब±ध!, ऐ स्वच्छंद!, ऐ उद्दाम!, ऐ सम्राट!, ऐ विप्लव के प्लावन!, ऐ अनंत के चंचल श्िाशु सुवुफमार! उपयुर्क्त संबोधनों की व्याख्या करें तथा बताएँ कि बादल के लिए इन संबोधनों का क्या औचित्य है? 4.कवि बादलों को किस रूप में देखता है? कालिदास ने मेघदूत काव्य में मेघों को दूत के रूप में देखा। आप अपना कोइर् काल्पनिक बिंब दीजिए। 5.कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता है जैसे - अस्िथर सुख। सुख के साथ अस्िथर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अथर् में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर लिखें तथा बताएँ कि ऐसे शब्द - पदों के प्रयोग से कविता के अथर् में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ है? शब्द - छवि रफ( - रफका हुआ क्षुब्ध - अशांत, व्रुफ( अंक - हृदय शीणर् - क्षीण वृफषक - किसान विप्लव - क्रांति, बाढ़ दग्ध - तप्त, तपा हुआ रण - तरी - यु( की नौका प्लावित - बहा दिया गया भेरी - बड़ा ढोल सुप्त - सोया हुआ अशनि - पात - वज्रपात क्षत - विक्षत - लहूलुहान, बुरी तरह से घायल हत - घायल, मारा हुआ शस्य - हरा

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