Samashthy Arthshashtra ek Parichay

अब तक हमने राष्ट्रीय आय, कीमत स्तर, ब्याज की दर इत्यादि के मूल्यों को नियंत्रिात करने वाली शक्ितयों का अन्वेषण किये बिना ही एक तदथर् रूप से इनके संबंध में चचार् की है। समष्िट अथर्शास्त्रा का मौलिक उद्देश्य इन परिवतो± के मूल्यों को निधार्रित करने के प्रक्रमों का वणर्न करने में सक्षम सै(ांतिक उपकरणों अथार्त माॅडलों का विकास करना है। विशेष तौर पर माॅडलों के माध्यम से वुफछ प्रश्नों की सै(ांतिक व्याख्या करने का प्रयत्न किया जाता है, जैसे - अथर्व्यवस्था में धीमी संवृि की अविा अथवा मंदी अथवा कीमत स्तर में वृि या बेरोजगारी में वृि आदि के क्या कारण हैं। एक ही समय इन सभी परिवतो± के संबंध में बताना कठिन है। अतः जब हम किसी परिवतर् विशेष के निधार्रण पर ध्यान वेंफदि्रत करें, तो हमें अन्य सभी परिवतो± के मूल्यों को स्िथर रखना चाहिए। यह प्रायः किसी भी सै(ांतिक अभ्यास का प्ररूपी रूढ़ीकरण है, जिसे सेटेरिस पारिबस ;ब्मजमतपे च्ंतपइनेद्ध की मान्यता कहते हैं, जिसका शब्िदक अथर् है ‘यदि अन्य बातें समान रहें’। आप निम्नलिख्िात प्रकार से इस प्रिया पर विचार कर सकते हैंः दो समीकरणों से दो परिवतो± ग और ल का मूल्य निकालने के लिए, हम प्रथम समीकरण में ग का मूल्य ल के पदों मंे लिखते हैं और इस मूल्य को दूसरे समीकरण में प्रतिस्थापित कर पूणर् हल प्राप्त करते हैं। इसी वििा का प्रयोग हम समष्िट अथर्शास्त्रा में भी करते हैं। इस अध्याय में हम अथर्व्यवस्था में अंतिम वस्तु की निधर्रित कीमत तथा नियत ब्याज दर के बिना राष्ट्रीय आय के निधर्रण का अध्ययन करेंगे। राष्ट्रीय आय लेखांकन वाले अध्याय में हम उपभोग, निवेश अथवा किसी अथर्व्यवस्था में अंतिम वस्तुओं व सेवाओं का वुफल निगर्त ;सकल घरेलू उत्पादद्ध के संबंध में अध्ययन कर चुके हैं। इन पदों के दो अथर् होते हैं। अध्याय - 2 में इनका प्रयोग लेखांकन के अथर् में हुआ है - जिससे किसी अथर्व्यवस्था के अंतगर्त एक दिए हुए वषर् में उत्पादन गतिवििायों की माप करने से इन मदों का वास्तविक मूल्य प्राप्त होता है। इन वास्तविक अथवा लेखांकन मूल्यों को, हम इन मदों का यथाथर् माप कहते हैं। तथापि इन पदों का प्रयोग भ्िान्न अथो± में किया जा सकता है। उपभोग से यह पता नहीं चल सकता कि वास्तव में किसी निश्िचत वषर् में लोगों ने कितना उपभोग किया, बल्िक उस अविा में उन्होंने उपभोग की कितनी मात्रा की योजना बनायी। इसी तरह, निवेश का अथर् हो सकता है कि उत्पादक ने अपनी माल - सूची में कितनी मात्रा में वृि की योजना बनायी है। यह मात्रा उस मात्रा से भ्िान्न भी हो सकती है, जितना कि उत्पादन वह अंतिम रूप से कर पाती है। मान लीजिए कि उत्पादक वषर् के अंत तक अपने भंडार में 100 रु॰ मूल्य की वस्तु जोड़ने की योजना बनाता है। अतः उस वषर् में उसका नियोजित निवेश 100 रु॰ है। ¯कतु बाशार में उसकी वस्तुओं की माँग में अप्रत्याश्िात वृि के कारण उसकी विक्रय मात्रा में उस परिमाण से अिाक वृि होती है, जितना कि उसने बेचने की योजना बनाइर् थी। इस अतिरिक्त माँग की पूतिर् के लिए उसे अपने भंडार से 30 रु॰ मूल्य की वस्तु बेचनी पड़ती है। अतः वषर् के अंत में उसकी माल - सूची में केवल ;100 - 30द्ध रु॰ = 70 रु॰ की वृि होती है। उसका नियोजित निवेश 100 रु॰ है, जबकि उसका यथाथर् निवेश केवल 70 रु॰ है। इन परिवतो± - उपभोग, निवेश अथवा अंतिम वस्तुओं के निगर्त के नियोजित मूल्य को हम उनकी प्रत्याश्िात माप कहते हैं। अथर्व्यवस्था के सै(ांतिक माॅडल में इन परिवतो± के प्रत्याश्िात मूल्य से हमारा प्राथमिक सरोकार होना चाहिए। ‘‘यदि कोइर् यह पूवार्नुमान करना चाहता है कि अंतिम वस्तु, निगर्त अथवा सकल घरेलू उत्पाद का संतुलन मूल्य क्या होगा, तो उसके लिए यह जानना महत्त्वपूणर् होगा कि अंतिम वस्तुओं की कितनी मात्रा की लोगों ने माँग अथवा पूतिर् करने की योजना बनायी है।’’ अतः हमें उपभोग, निवेश अथवा अथर्व्यवस्था के समस्त निगर्त के प्रत्याश्िात मूल्यों के निधार्रकों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। प्रत्याश्िात उपभोगः नियोजित उपभोग किस पर निभर्र करता है? लोग अपनी आय का एक भाग उपभोग पर व्यय करते हैं तथा शेष की बचत करते हैं। मान लीजिए, आपकी आय 100 रु॰ बढ़ जाती है। आप इस पूरी अतिरिक्त आय को खचर् नहीं करेंगे बल्िक इसके वुफछ भाग, को मान लीजिए 20» आप बचा कर रखेंगे। जिसे आप बचत के रूप में उस अविा के लिए रखते हैं, जब आपकी आय 56 बंद हो जाती है अथवा भविष्य में अिाक व्यय का सामना करना पड़ता है। भ्िान्न - भ्िान्न लोग अपनी अतिरिक्त आय के भ्िान्न - भ्िान्न भाग की बचत करने की योजना बनाते हैं ;धनी लोग गरीबों की तुलना में अपनी आय के अिाक अनुपात की बचत करते हैंद्ध और यदि इनका औसत निकालें तो हमें एक ऐसा अंश प्राप्त होगा, जिससे यह ज्ञात होगा कि लोग सं पूणर् रूप से अथर्व्यवस्था की वुफल अतिरिक्त आय का कितना अनुपात बचाना चाहते हैं। इस अंश को हम सीमांत बचत प्रवृिा कहते हैं। इससे किसी अथर्व्यवस्था की वुफल अतिरिक्त आय में उस अथर्व्यवस्था की वुफल अतिरिक्त नियोजित बचतों का अनुपात प्राप्त होता है। चूँकि उपभोग बचतों का पूरक होता है ;अथर्व्यवस्था की अतिरिक्त आय या तो अतिरिक्त बचत होती है अथवा लोगों द्वारा अतिरिक्त उपभोग के रूप में प्रयोग होती हैद्ध। यदि हम सीमांत बचत प्रवृिा को 1 में से घटा दें, तो हमें सीमांत उपभोग प्रवृिा प्राप्त होती है। यह वुफल अतिरिक्त आय का वह अंश है, जो कि लोग उपभोग में प्रयोग करते हैं। मान लीजिए कि अथर्व्यवस्था की सीमांत उपभोग प्रवृिा ब है, जहाँ 0 ढ ब ढ 1 है। यदि अथर्व्यवस्था की वुफल आय में 0 से ल् तक वृि हो जाती है, तो अथर्व्यवस्था का वुफल उपभोग होगा - ब् त्र ब ;ल्दृ 0द्ध त्र बण्ल् ¯कतु स्पष्ट रूप से ऐसा नहीं होता। हमने यहाँ वुफछ भूल की है। यदि अथर्व्यवस्था की आय किसी नियत वषर् में शून्य हो, तो उपयुर्क्त समीकरण बताता है कि अथर्व्यवस्था पूरे वषर् वंफगाल बनी रहेगी, जो कि निःसंदेह एक अच्छा विचार नहीं है। यदि आपकी आय किसी नियत अविा में शून्य है, तो आप जीवनयापन के एक निश्िचत उपभोग पर अपनी पूवर् बचत को खचर् करते हैं। अतः हमें उपयुर्क्त समीकरण में अथर्व्यवस्था के उपभोग के न्यूनतम अथवा जीवन निवार्ह स्तर को अवश्य जोड़ना चाहिए। जो होगा - ब् त्र ब् ़ बण्ल् ;4.1द्ध जहाँ ब् झ0 न्यूनतम उपभोग स्तर है और हमारे माॅडल में दिया हुआ या बहिजार्त मद है, जिसे स्िथर माना जाता है। समीकरण बताता है कि जब अथर्व्यवस्था की आय शून्य से अिाक होती है, तो अथर्व्यवस्था इस अतिरिक्त आय का ब अनुपात का प्रयोग अपने उपभोग में न्यूनतम स्तर से वृि करने में करती है। प्रत्याश्िात निवेशः निवेश को भौतिक पूँजी स्टाॅक ;जैसे कि मशीन, भवन, सड़क इत्यादि, अथार्त् ऐसी कोइर् भी चीश जिनसे भविष्य में अथर्व्यवस्था की उत्पादक क्षमता में वृि होद्ध में वृि और उत्पादक की माल - सूची ;तैयार माल का स्टाॅकद्ध में परिवतर्न के रूप में परिभाष्िात किया जाता है। ध्यान दें कि निवेश वस्तुएँ ;जैसे - मशीनद्ध भी अंतिम वस्तुओं का भाग हैं। ये कच्चे माल की तरह मध्यवतीर् वस्तुएँ नहीं हैं। किसी दिए हुए वषर् में मशीनों का जो उत्पादन होता है, उनका प्रयोग उसी वषर् अन्य वस्तुओं के उत्पादन में नहीं होता है बल्िक कइर् वषो± तक उनकी सेवाएँ ली जाती हैं। उत्पादकों का निवेश संबंधी निणर्य, जैसे कि नयी मशीनों की खरीद, अिाकांशतः ब्याज की बाशार दर पर निभर्र करता है। ¯कतु सरलता की दृष्िट से हम यह मान लेते हैं कि पफमर् हर वषर् उसी मात्रा में निवेश करने की योजना बनाती है। प्रत्याश्िात निवेश माँग को हम इस प्रकार लिख सकते हैंः प् त्र प् ;4.2द्ध जहाँ, प् धनात्मक स्िथरांक है। प् दिए हुए वषर् में अथर्व्यवस्था में स्वायत्त ;दिया हुआ अथवा बहिजार्तद्ध निवेश को प्रदश्िार्त करता है। अंतिम वस्तुओं के लिए प्रत्याश्िात समस्त माँगः सरकार रहित अथर्व्यवस्था में अंतिम वस्तु की प्रत्याश्िात समस्त माँग ऐसी वस्तुओं पर किये गए वुफल प्रत्याश्िात उपभोग व्यय और प्रत्याश्िात निवेश व्यय का योग होती है, अथार्त्् ।क् त्र ब् ़ प् । समीकरण 4.1 और 4.2 में ब् और प् के मूल्यों को प्रतिस्थापित करने पर अंतिम वस्तुओं की समस्त माँग को इस प्रकार लिखा जा सकता है - ।क् त्र ब् ़ प् ़ बण्ल् यदि अंतिम वस्तु बाशार संतुलन में हो, तो इसे इस प्रकार लिखा जा सकता हैः ल् त्र ब् ़ प् ़ बण्ल् जहाँ ल् अंतिम वस्तु की प्रत्याश्िात अथवा नियोजित निगर्त है। इस समीकरण को दो स्वायत्त पदों ब् और प् को जोड़कर पुनः इस प्रकार सरल किया जा सकता हैः ल् त्र । ़ बण्ल् ;4.3द्ध जहाँ । त्र ब् ़ प् अथर्व्यवस्था का वुफल स्वायत्त व्यय है। वास्तव में स्वायत्त व्यय के ये दोनों घटक भ्िान्न - भ्िान्न प्रकार से व्यवहार करते हैं और अथर्व्यवस्था के जीवन निवार्ह उपभोग स्तर को प्रदश्िार्त करने वाला ब् , प्रायः स्िथर ही रहता है। ¯कतु प् में समय - समय पर उतार - चढ़ाव देखा जाता है। यहाँ एक बात ध्यान देने की है, समीकरण 4.3 की बायीं ओर ल् पद अंतिम वस्तुओं की प्रत्याश्िात निगर्त अथवा नियोजित पूतिर् को प्रदश्िार्त करता है। दूसरी ओर, दायीं ओर की अभ्िाव्यक्ित से अथर्व्यवस्था में अंतिम वस्तु की प्रत्याश्िात अथवा नियोजित समस्त माँग प्रदश्िार्त होती है। जब अंतिम वस्तु बाशार और अथर्व्यवस्था संतुलन की स्िथति में होती हैं, तभी प्रत्याश्िात पूतिर् प्रत्याश्िात माँग के बराबर होती है। अतः समीकरण 4.3 को अध्याय 2 के तादात्म्य का लेखांकन से भ्रमित नहीं करना चाहिए, जो कि यह बतलाता है कि वुफल निगर्त का यथाथर् मूल्य हमेशा अथर्व्यवस्था के यथाथर् उपभोग और यथाथर् निवेश के वुफल योग के बराबर होता है। यदि अंतिम वस्तु के निगर्त से, जो कि उत्पादक किसी नियत वषर् में उत्पादन करने का नियोजन करता है अंतिम वस्तु की प्रत्याश्िात माँग कम हो, तो समीकरण 4.3 सही नहीं होगा। गोदाम में स्टाॅक का अंबार लगा रहेगा, जिसे माल - सूची का अनभ्िाप्रेत संचय कहा जाएगा। यह नियोजित अथवा प्रत्याश्िात निवेश का अंश नहीं है, ¯कतु निश्िचत रूप से यह वषर् के अंत में माल - सूची में हुइर् वास्तविक वृि का अंश है अथवा दूसरे शब्दों में, एक यथाथर् निवेश होगा। अतः यद्यपि नियोजित ल् नियोजित ब़् प् से अिाक है, पिफर भी वास्तविक ल् वास्तविक ब़् प् के बराबर होगी। लेखांकन तादात्म्य की दायीं ओर यथाथर् निवेश में मालों का अनभ्िाप्रेत संचय के रूप में अतिरिक्त निगर्त को दशार्ता है। यहाँ अब हम अथर्व्यवस्था में सरकार को शामिल करेंगे। अंतिम वस्तुओं और सेवाओं की समस्त माँग को प्रभावित करने वाले सरकार के मुख्य कायर्कलाप का संक्ष्िाप्त विवरण राजकोषीय परिवतर् कर ;ज् द्ध और सरकारी व्यय ;ळद्ध जो दोनों हमारे विश्लेषण में स्वायत्त हंै, के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है। अन्य पफमो± तथा परिवारों की तरह सरकार अपने व्यय ;ळद्ध के माध्यम से समस्त माँग में वृि करती है। दूसरी ओर, सरकार कर लगाकर परिवारों की आय का एक अंश ले लेती है। अतः उसकी प्रयोज्य आय ल्क त्र ल् दृ ज् हो जाती है। परिवार इस प्रयोज्य आय के केवल एक अंश का ही व्यय उपभोग के लिए करते हैं। अतः सरकार को शामिल करने के लिए समीकरण 4.3 में निम्न प्रकार से परिवतर्न करना होगाः ल्त्र ब् ़ प् ़ ळ ़ ब ;ल् दृ ज् द्ध ध्यान दीजिए कि ब् और प् की तरह ळ दृ बण्ज् स्वायत्त पद । में शामिल हो जाता है। इससे विश्लेषण में कोइर् गुणात्मक परिवतर्न नहीं होता है। सरलता की दृष्िट से, हमने इस अध्याय के शेष भाग में सरकारी क्षेत्रा की ओर ध्यान नहीं दिया है। यह भी द्रष्टव्य है कि सरकार द्वारा आरोपित अप्रत्यक्ष कर और दिए गए उपदान के बिना अथर्व्यवस्था में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के वुफल मूल्य, अथार्त सकल घरेलू उत्पाद तादात्म्य रूप से राष्ट्रीय आय के समान होते हैं। यहाँ से आगे, इस अध्याय के पूरे शेष भाग में हम ल् को सकल घरेलू उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय के रूप में सूचित करेंगे। 4.2 एक वक्र पर संचलन बनाम एक वक्र का श्िाफ्रट अथर्व्यवस्था के माॅडल का विश्लेषण करने के लिए हम आलेखीय तकनीकों का प्रयोग करेंगे। अतः किसी ग्रापफ को पढ़ना हमारे लिए महत्त्वपूणर् है। इ त्र उं ़ ε के रूप में सरल रेखीय समीकरण को दशार्ने वाले आलेख पर क्षैतिज और उध्वार्धर अक्षों पर ं और इ दो परिवतो± को नीचे दशार्या गया है। यहाँ उ झ 0 को सरल रेखा की प्रवणता कहते हैं और ε झ 0 उध्वार्धर ;अथार्त इद्ध अक्ष पर अंतःखंड है। जब ं में 1 इकाइर् की वृि होती है, तो इ के मूल्य में उ इकाइयों से वृि हो जाती है। इसे आलेख पर परिवतो± का संचलन कहते हैं। 2 के बराबर ε के स्िथर मूल्य पर विचार कीजिए। मान लीजिए कि उ के दो मूल्य क्रमशः उ त्र 0ण्5 और उ त्र1 हैं। उ के इन मूल्यों के संगत हम दो सरल रेखाएँ लेते हैं, जिनमें एक - दूसरे की अपेक्षा अिाक खड़े ढाल वाला है। सत्ताएँ ε और उ को आलेख का पैरामीटर कहते हैं। ये अक्षों पर दशार्ए परिवतो± की तरह प्रकट नहीं होते, लेकिन आलेख की स्िथति को नियमित करने के लिए पृष्ठभूमि में कायर् एक धनात्मक ढाल सरल रेखा का रेखाचित्रा उध्वर् श्िाफ्रट ढाल के करते हैं। उपयुर्क्त उदाहरण में जैसे - जैसे दुगुना होने पर उ बढ़ता है, सरल रेखा उफपर की ओर बढ़ती है। इसे आलेख ;4.1द्ध का पैरामेटिªक श्िाफ्रट कहते हैं। चूँकि उपयुर्क्त आकृति की सरल रेखा का दूसरा पैरामीटर ε है, हम इस रेखा पर पैरामेटिªक श्िाफ्रट के दूसरे प्रकार का प्रक्षेण कर सकते हैं। इसे देखने के लिए हमें 0.5 पर उ के मूल्य को स्िथर मानकर ε के अंतःखंड 2 से 3 तक वृि करना चाहिए। अब सरल रेखा उफपर की ओर समांतर रूप से श्िाफ्रट होगी, जैसाकि रेखाचित्रा 4.2 में दशार्या गया है। अब क्रमशः नीचे की ओर और उफपर की ओर ढाल वाली सरल रेखा को प्रदश्िार्त करने वाले समीकरणों पर विचार कीजिएः ल त्र ्र दृ गए और लत्र 1 ़गए ्रझ त्र 0 प्रथम समीकरण में ्र एक अंतःखंड पैरामीटर के रूप में प्रकट हुआ है। अतः ्र के मूल्य को बढ़ाने के लिए शून्य से प्रारंभ कर प्रथम सरल रेखा उफपर की ओर समांतर श्िाफ्रट होगी, जैसाकि रेखाचित्रा 4.3 में दशार्या गया है। परिणामतः दूसरी सरल रेखा के साथ इसके प्रतिच्छेदन ¯बदु, पीछे दशार्ये गए की भाँति, दूसरी रेखा पर उफपर की ओर जायेंगेः मान लीजिए, कि हम ्र और ग के संतुलन मूल्य के मध्य संबंध प्राप्त करना चाहते हैं, इसे निम्नांकित क्षैतिज और उध्वार्धर अक्षों पर क्रमशः ग और ्र परिवतो± का ’ चित्रांकन करके एक चित्रा पर ;ग 1 ्र1द्धए ’’ ;ग 2 ्र2द्धए ;ग 3 ्र3द्ध इत्यादि ¯बदुएँ अंकित कर प्राप्त किया जा सकता है। ध्यान दें ;गए लद्ध में समतल ्र को एक पैरामीटर के रूप में माना गया था, लेकिन ;गए ्रद्ध में ्र स्वयं एक परिवतर् है। अब तक हमने जो वुफछ भी किया है, उसे इस प्रकार देखा जा सकता हैः दूसरे समीकरण में ग और ल पर विचार करते समय हमने ्र के मूल्य को स्िथर रखा है और ल को ग के पदों के रूप में हल किया है। उसके बाद ग और ्र के मध्य संबंध व्युत्पन्न करने के लिए प्रथम समीकरण में इस हल को रख दिया है। अब, हम इस तकनीक का प्रयोग पूरे अध्याय में करेंगे। अब हम अथर्व्यवस्था में अंतिम वस्तुओं की स्िथर कीमत और स्िथर ब्याज दर के अंतगर्त समस्त माँग की व्युत्पिा पर विचार करें। ¯कतु कीमत को किसी विशेष स्तर पर स्िथर रखने के क्रम में यह कल्पना करनी होगी कि उस कीमत पर उपभोक्ता की माँग की जितनी मात्रा होगी, पूतिर्कतार् उतनी मात्रा की पूतिर् करेंगे। इस कीमत पर माँग की 60 मात्रा से पूतिर् की मात्रा अिाक होने या कम होने से, अिापूतिर् अथवा अिामाँग के कारण कीमत में परिवतर्न होगा। इस समस्या से बचने के लिए हम कल्पना करते हैं कि पूतिर् की लोच अनंत है अथार्त्् स्िथर कीमत पर पूतिर् अनुसूची क्षैतिज है। ऐसी परिस्िथतियों में अथर्व्यवस्था में इस कीमत पर केवल माँग की समस्त मात्रा से ही संतुलन निगर्त का निधार्रण होगा। इसे हम प्रभावी माँग का सि(ांत कहते हैं। ‘अल्पकालिक शब्द’ पर भी ध्यान दीजिए। हम कल्पना करते हैं कि अथर्व्यवस्था में कीमत को अिामाँग या अिापूतिर् की शक्ितयों के प्रति अनुिया करने में वुफछ समय लगता है। इस बीच, उत्पादक अिामाँग या अिापूतिर् की स्िथति को दूर करने के लिए अपनी उत्पादन योजना को अद्यतन करने की कोश्िाश करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि चालू उत्पादन चक्र में उत्पादक, अिापूतिर् का सामना करते हैं, तो वे अगले चक्र में कम उत्पादन करेंगे जिससे उनके गोदामों में माल का संचय न हो पाए। यह भी ध्यान रखें कि एक व्यक्ितगत उत्पादक राष्ट्रीय बाशार के आकार की तुलना में बहुत छोटा होता है और इसलिए वह बाशार कीमत को स्वयं प्रभावित नहीं कर सकता। प्रत्येक उत्पादक को प्रचलित बाशार कीमत को स्वीकार करना पड़ता है। अथर्व्यवस्था के समस्त कीमत स्तर में तभी परिवतर्न होता है, जब अिामाँग या अिापूतिर् को दूर करने के लिए अध्िपूतिर् या अध्िमाँग को टालने के क्रम में उत्पादक किस प्रकार उत्पादन योजना का नवीनीकरण करने की कोश्िाश करते हैं? इस पर कक्षा में परिचचार् करें। अथर्व्यवस्था के सभी बाशार में समंजन में असपफल हो जाते हैं। अतः यह कल्पना की जाती है कि कीमतों में परिवतर्न केवल दीघर्काल में ही होता है। 4.3.1 समस्त माँग वक्र पर एक बिंदु स्िथर कीमत पर अंतिम वस्तु की प्रत्याश्िात समस्त माँग का मूल्य ।क् प्रत्याश्िात उपभोग व्यय और प्रत्याश्िात निवेश व्यय के वुफल योग के बराबर होता है। प्रभावी माँग सि(ान्त के अंतगर्त अंतिम वस्तुओं का संतुलन निगर्त प्रत्याश्िात समस्त माँग के बराबर होता है, जिसे समीकरण 4.3 द्वारा प्रदश्िार्त किया गया हैः ल् त्र । ़ बण्ल् जहाँ । अथर्व्यवस्था में स्वायत्त व्यय का वुफल मूल्य है। अब हम समस्त माँग के मूल्य को व्युत्पन्न करने के लिए एक संख्यात्मक उदाहरण पर विचार करते हैं और इस प्रकार स्िथर दर पर अथर्व्यवस्था का संतुलन निगर्त प्राप्त करेंगे। मान लीजिए कि स्वायत्त व्यय के मूल्य हैं, ब् त्र 40ए प् त्र 10 और सीमांत उपभोग प्रवृिा ;उचबद्ध का मूल्य है बत्र 0ण्8 हैं, तो ल् का संतुलन मूल्य क्या होगा? परीक्षण हल के लिए हम ल् त्र 200 लेते हैं। निगर्त की इस मात्रा पर प्रत्याश्िात उपभोग व्यय का मूल्य है, ब्त्र ब़् 0ण्8 ल्त्र 40 ़ ;0ण्8द्ध 200 त्र 200 है। प्रत्याश्िात निवेश व्यय प् त्र प् त्र10ए है और प्रत्याश्िात समस्त माँग, ।क् त्र ब् ़ प् त्र 200 ़ 10 त्र 210 है। निगर्त स्तर ल त्र 200 पर प्रत्याश्िात समस्त माँग का मूल्य 210 है, जो अिामाँग की स्िथति को बताता है। स्पष्टतः ल् त्र 200ए अथर्व्यवस्था में निगर्त का संतुलन स्तर नहीं है। अब निगर्त स्तर ल् त्र 300 पर विचार करते हैं। उपयुर्क्त स्िथति जैसी गणना से पता चलता है कि प्रत्याश्िात समस्त माँग का मूल्य । ़ बल् त्र ब् ़1़ बल् त्र 50 ़ ;0ण्8द्ध 300 त्र 290 प्रत्याश्िात समस्त माँग निगर्त से नीचे गिर जाती है और अिापूतिर् की स्िथति उत्पन्न होती है। अतः ल् त्र 300 भी अथर्व्यवस्था में निगर्त का संतुलन स्तर नहीं है। अंत में ल् त्र 250 पर विचार करते हैं। इस निगर्त पर, ।क् त्र 50 ़ ;0ण्8द्ध 250 त्र 250। अतः हमने ल् का सही मूल्य ज्ञात कर लिया है, जिस पर समस्त माँग, समस्त निगर्त के बराबर होती है। अतः स्िथर कीमत पर अथर्व्यवस्था का संतुलन निगर्त ल् त्र 250 है। 4.3.2 उत्पाद बाशार में संतुलन माँग पर स्वायत्त परिवतर्न का प्रभाव स्िथर कीमत पर समस्त माँग के संतुलन मूल्य के क्या निधार्रक हैं? दूसरे शब्दों में, यह कौन निधार्रित करता है कि उपयुर्क्त उदाहरण में संतुलन समस्त माँग 250 होगी या 210 अथवा 290? स्िथर कीमत - ब्याज दर पर संतुलन निगर्त और समस्त माँग समीकरण ल् त्र ।क् त्र । ़ बल् को हल करके प्राप्त किया जाता है। यह सिपर्फ एक परिवतर् - ल् वाला समीकरण है। समीकरण का हल हैः ल् त्र । ;4.4द्ध 1दृ ब अतः ल् का मूल्य दायीं ओर के पैरामीटर के मूल्यों पर निभर्र करेगा, जो कि इस उदाहरण में । और ब है। उपयुर्क्त उदाहरण में समस्त माँग का संतुलन मूल्य 250 है और इसलिए समस्त माँग अनुसूची में एकल बिंदु की स्िथति जो हमें अब तक प्राप्त हुइर् है, इन पैरामीटरों के मूल्यों पर निभर्र करेंगी। समीकरण ।क् त्र । ़बल् की मानक रूप वाली सरल रेखीय समीकरणः इत्र ε ़ उं से तुलना कीजिए, जैसाकि खंड 4.2 में उल्लेख किया गया है। इस समीकरण में । अंतःखंड पैरामीटर है और ब पैरामीटर की प्रवणता है। जब ब में वृि होगी तो समस्त माँग के समीकरण को निरूपित करने वाली सरल रेखा ऊपर की ओर उठेगी। दूसरी ओर, जब । बढ़ेगा तो सरल रेखा ऊपर की ओर समानांतर रूप से श्िाफ्रट होगी। ¯कतु, केवल । संयुक्त पद है, जो ब् और प् के योग को निरूपित करता है। अतः यह ।क् रेखा का वास्तविक श्िाफ्रट पैरामीटर है। मान लीजिए, प् में 10 से 20 तक वृि हो जाती है, तो संतुलन निगर्त और समस्त माँग का क्या होगा? रेखाचित्रा 4.5 में इस स्िथति को दशार्या गया है। रेखाएँ ।क्1 और ।क्2ए । के दो मूल्य अथार्त् ।1 और ।2 क्रमशः के संगत हैं। इन मूल्यों में Δ प् त्र 10 का अंतर है, जो कि स्वायत्त निवेश में वृि है। रेखाएँ ।क् की प्रवणता 0 ढबढ 1 है और उध्वार्धर अक्ष पर उनके अंतःखंड क्रमशः ।1 अैार ।2 है। ध्यान दें कि ।क् रेखा 45° रेखा से कम प्रवणतावाली है क्योंकि 45° रेखा की ढाल 1 ;रूप 45° त्र1द्ध के बराबर है। 45° रेखा उन बिंदुओं को निरूपित करती हैं, जिन पर समस्त माँग और निगर्त बराबर है। अतः अथर्व्यवस्था में जब स्वायत्त व्यय का स्तर ।1 है तो रेखा ।क् 1 45° रेखा को म्1 पर प्रतिच्छेद करती है, जो कि संतुलन स्िथर कीमत माॅडल ;प्रतिरूपद्ध में संतुलन निगर्त और बिंदु है। निगर्त और समस्त माँग के संतुलन समस्त माँग मूल्य क्रमशः ल्’ 1 और ।क्’ 1 ;त्र 250द्ध हैं। जब स्वायत्त निवेश में वृि होती है, तो रेखा ।क्1 ऊपर की ओर समानांतर श्िाफ्रट होती है और ।क्की स्िथति को प्राप्त करती है। निगर्त ल्’ पर समस्त माँग का मूल्य ल्’ थ् है, जो निगर्त व्ल्’ 62 2 1 11 त्र ल्’ म्के मूल्य से म्थ् के परिमाण के बराबर अिाक है। म्थ् से अिामाँग के परिणाम की 1111 माप होती है, जो अथर्व्यवस्था में स्वायत्त व्यय में वृि के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। अतः म्1 संतुलन को निरूपित नहीं करता। अंतिम वस्तु बाशार में नये संतुलन की प्राप्ित के लिए हमें उस बिंदु की खोज करनी होगी, जहाँ नयी समस्त माँग रेखा ।क्2 ए 45° रेखा को प्रतिच्छेद करेगी। यह बिंदु म्2 पर होता है, जो नया संतुलन बिंदु है। निगर्त और समस्त माँग के नये मूल्य क्रमशः ल्’ 2 और ।क्’ 2 है। ध्यान रखें कि नये संतुलन निगर्त तथा समस्त माँग में म् 1 ळ त्र म् 2 ळ के परिमाण में वृि होती है, जो स्वायत्त व्यय Δ प् त्र म्1थ् त्र म्2 श्र में प्रारंभ्िाक वृि से अिाक है। अतः स्वायत्त व्यय में प्रारंभ्िाक वृि से प्रतीत होता है कि समस्त माँग और निगर्त के संतुलन मूल्यों पर अिाप्लावन प्रभाव पड़ता है। किस कारण से समस्त माँग और निगर्त के स्वायत्त व्यय में प्रारंभ्िाक वृि के आकार से अिाक बड़े परिमाण में वृि होती है? इसकी चचार् हम खंड 4ण्3ण्3 में करेंगे। 4.3.3 गुणक यांत्रिाकता स्पष्ट रूप से निगर्त अथवा समस्त माँग का संतुलन मूल्य 250 नहीं है। प्त्र 20 के साथ अथर्व्यवस्था में समस्त माँग समीकरण ;4ण्4द्ध से 40 ़ 20 ़ ;0ण्8द्ध 250 त्र 260 होगा, जो निगर्त ल् त्र 250 से स्वायत्त निवेश ;Δ प् त्र 10द्ध में वृि परिमाण के बराबर अिाक है। अथर्व्यवस्था में अिामाँग की स्िथति होगी और उत्पादक इस अतिरिक्त माँग की पूतिर् के लिए अपनी माल - सूची में कमी लाएँगे। अतः अगले उत्पादन चक्र में वे पुनः अपनी उत्पादन योजना को ऊपर की ओर संशोिात करेंगे अथार्त वे अंतिम वस्तु बाशार में संतुलन की पुनः प्राप्ित के लिए अपने निगर्त की नियोजित पूतिर् में 10 की वृि करेंगे। सरकार के द्वारा अप्रत्यक्ष कर नहीं लगाने अथवा उपदान नहीं देने की स्िथति में, अंतिम वस्तुओं के वुफल निगर्त का मूल्य अथवा सकल घरेलू उत्पाद राष्ट्रीय आय के बराबर होगा। अंतिम वस्तुओं के उत्पादन में श्रम, पूँजी, भूमि और उद्यम जैसे कारकों को लगाया जाता है। अप्रत्यक्ष कर अथवा उपदान की अनुपस्िथति में अंतिम वस्तुओं के निगर्त के वुफल मूल्य को उत्पादन के विभ्िान्न कारकों में वितरित कर दिया जाता है, जो क्रमशः श्रम की मशदूरी, पूँजी का ब्याज, भूमि का लगान आदि होते हैं। शेष बचा हुआ उद्यमी के पास रहता है, जिसे लाभ कहा जाता है। अतः अथर्व्यवस्था में समस्त कारक अदायगी का योग, राष्ट्रीय आय, अंतिम वस्तुओं के निगर्त के समस्त मूल्य, सकल घरेलू उत्पाद के बराबर होता है। उपयुर्क्त उदाहरण में, अतिरिक्त निगर्त का मूल्य 10 को, विभ्िान्न कारकों में कारक अदायगी के रूप में वितरित कर दिया जाता है और इस प्रकार अथर्व्यवस्था की आय में 10 की वृि होती है। जब आय में 10 की वृि होती है, तब उपभोग व्यय में भी ;0.8द्ध10 की वृि होती है, क्योंकि लोग उपभोग पर अपनी अतिरिक्त आय का 0.8 ;सीमांत उपभोग प्रवृिाद्ध व्यय करते हैं। अतः अगले दौर में अथर्व्यवस्था में समस्त माँग में ;0.8द्ध10 की वृि होती है और पुनः ;0.8द्ध10 के बराबर अिामाँग उत्पन्न होती है। इसीलिए अगले उत्पादन चक्र में पुनः संतुलन स्थापित करने के लिए, उत्पादक अपने नियोजित निगर्त में ;0.8द्ध10 की वृि करता है। जब इस अतिरिक्त निगर्त को उत्पादन के कारकों के मध्य वितरित कर दिया जाता है, तो अथर्व्यवस्था की आय में ;0.8द्ध10 की वृि होती है और उपभोग माँग बढ़कर ;0.8द्ध2 10 हो जाती है। पुनः उसी परिमाण में अिामाँग की उत्पिा होती है। यह प्रिया एक चक्र के बाद दूसरे चक्र में निरं तर जारी रहती है। प्रत्येक चक्र में उत्पादक अिामाँग को दूर करने के लिए अपने निगर्त में वृि करता है और उपभोक्ता इस अतिरिक्त उत्पादन से अपनी अतिरिक्त आय का एक अंश उपभोग मदों पर व्यय करता है और इससे अगले दौर में पुनः अिामाँग का सृजन होता है। अब निम्नलिख्िात तालिका ;4.1द्ध में प्रत्येक दौर में समस्त माँग और निगर्त के मूल्यों में परिवतर्न को दशार्या जाएगा। तालिका 4.1ः अंतिम वस्तु बाशार में गुणक यांत्रिाकता उपभोग समस्त माँग निगर्त/आय दौर 1 0 10 ;स्वतः बढ़ोतरीद्ध 10 दौर 2 ;0.8द्ध10 ;0.8द्ध10 ;0.8द्ध10 दौर 3 ;0.8द्ध10 ;0.8द्ध210 ;0.8द्ध210 दौर 4 ;0.8द्ध10 ;0.8द्ध310 ;0.8द्ध310 . . . . . . . . . . . . . . . इत्यादि प्रत्येक दौर में अंतिम वस्तुओं के निगर्त के मूल्य ;अथर्व्यवस्था की आयद्ध में वृि की माप अंतिम काॅलम में की गइर् है। दूसरे और तीसरे काॅलम में अथर्व्यवस्था में वुफल उपभोग व्यय में वृि और इस तरह समस्त माँग के मूल्य में वृि की माप की गइर् है। ध्यान रखें कि क्रमिक चक्रों में अंतिम वस्तुओं के निगर्त में वृि धीरे - धीरे घट रही है। अतः कइर् चक्रों के बाद वृि वास्तव में शून्य हो जाएगी और क्रमिक चक्रों से निगर्त के वुफल परिमाण में कोइर् योगदान नहीं होगा। हम कहते हैं कि अंतिम वस्तुओं के निगर्त को प्रभावित करने वाले चक्र, अभ्िासारी प्रिया को प्रदश्िार्त करती हैं। अंतिम वस्तुओं के निगर्त में वुफल वृि को प्राप्त करने के लिय हमें, अंतिम काॅलम में अनंत ज्यामितीय शृंखला का योग प्राप्त करना चाहिए। अथार्त् - 10 ़ ;0ण्8द्ध10 ़ ;0ण्8द्ध2 10 ़ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ∞ 10 क्ष्1 ़ ;0ण्8द्ध ़ ;0ण्8द्ध2 ़ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ∞द्व त्र 10 त्र 50 1 दृ 0ण्8 अतः स्वायत्त व्यय में प्रारंभ्िाक वृि से वुफल निगर्त के संतुलन मूल्य में अिाक वृि होती है। अंतिम वस्तुओं के निगर्त के संतुलन मूल्य में वुफल वृि और स्वायत्त व्यय में आरंभ्िाक वृि के अनुपात को अथर्व्यवस्था का निगर्त गुणक कहते हैं। स्मरण रहे कि 10 और 0.8 क्रमशः Δ प् त्र Δ । तथा उचब मूल्य को प्रदश्िार्त करते हैं। अतः गुणक की अभ्िाव्यक्ित को इस प्रकार लिखा जा सकता हैः Δल् 1 निगर्त गुणक त्र त्र ;4.5द्ध 1दृ ब Δ। जहाँ Δल् अंतिम वस्तु निगर्त की वुफल वृि तथा ब त्रउचब ;सीमांत उपभोग प्रवृिाद्ध है। देखें कि गुणक का आकार ब के मूल्य पर निभर्र करता है। जैसे - जैसेब बढ़ता है, गुणक में वृि होती जाती है। पिछले उदाहरण में, स्वायत्त व्यय में 10 की वृि से अथर्व्यवस्था में वुफल निगर्त और समस्त माँग में 50 की वृि होती है। इस प्रकार गुणक का मूल्य 5 है। गणना का प्रति परीक्षण करने समष्िट अथर्शास्त्रा एक परिचय के लिए नये संतुलन प् त्र 20 पर समस्त माँग और निगर्त के मूल्य की गणना करते हैं। समीकरण ;4ण्4द्ध से नये संतुलन में निगर्त का मूल्य निम्न के बराबर होगा - ’ल् 40 ़ 20 त्र त्र 300 21दृ0ण्8 इससे सि( होता है कि गुणक की हमारी गणना वास्तव में सही है। इस रोचक प्रति अनुमानिक तथ्य अथवा ‘विरोधाभास’ के साथ, हम अंतिम वस्तु बाशार के स्िथर कीमत - ब्याज दर विश्लेषण का निष्कषर् निकालेंगे। यदि अथर्व्यवस्था के सभी लोग अपनी आय से बचत के अनुपात को बढ़ा दें ;अथार्त यदि अथर्व्यवस्था की बचत की सीमांत प्रवृिा बढ़ जाती हैद्ध तो अथर्व्यवस्था में बचत के वुफल मूल्य में वृि नहीं होगी अथार्त् इससे या तो बचत में कमी आएगी या वह अपरिवतिर्त रहेगी। इस परिणाम को मितव्ययिता का विरोधाभास कहते हैं जो यह बतलाता है कि जब लोग अिाक मितव्ययी हो जाते हैं, तो वे कमोवेश पूवर्वत ही बचत करते हैं। यह परिणाम, यद्यपि असंभव प्रतीत होता है, ¯कतु वास्तव में हमारे द्वारा पढ़े गए माॅडल का अनुप्रयोग है। इस उदाहरण पर और विचार करते हैं। मान लीजिए, कि ल् का प्रारंभ्िाक संतुलन त्र 250 और लोगों के व्यय के स्वरूप में बहिजार्त अथवा स्वायत्त श्िाफ्रट होता है। अकस्मात वे अिाक मितव्ययी बन जाते हैं। ऐसा किसी बड़े यु( अथवा किसी अन्य आसन्न खतरे के संबंध में नइर् सूचना के कारण हो सकता है। इसके पफलस्वरूप लोग अपने खचर् में अिाक परिनिरीक्षण और अनुदारिता बरतने लगते हैं। अतः अथर्व्यवस्था की सीमांत बचत प्रवृिा ;उचेद्ध में वृि होती है अथवा विकल्पतः सीमांत उपभोग प्रवृिा ;उचबद्ध 0ण्8 से घटकर 0ण्5 रह जाती है। प्रारंभ्िाक आय - स्तर ।क्’ 1 त्र ल्’ 1 त्र 250 पर, सीमांत उपभोग प्रवृिा में आकस्िमक ”ास समस्त उपभोग व्यय में ”ास का द्योतक होगा, जो समस्त माँग, ।क् त्र। ़ बल् ;0ण्8 दृ 0ण्5द्ध 250 त्र 75 के परिमाण के बराबर होगा। इसे उपभोग व्यय में स्वायत्त कटौती कहा जा सकता है। यह कटौती उस सीमा तक हो सकती है कि सीमांत उपभोग प्रवृिा में किसी बाह्य कारण से परिवतर्न हो रहा हो और यह माॅडल के परिवतो± में परिवतर्न के पफलस्वरूप नहीं होता है। लेकिन जब समस्त माँग में 75 तक ”ास होता है, तो निगर्त ल्’1 त्र 250 में गिरावट आती है और अथर्व्यवस्था में इससे 75 के बराबर तक अिापूतिर् उत्पन्न होती है। गोदामों में माल भरा पड़ा रहता है और उत्पादक बाशार में संतुलन की पुनस्थार्पना के लिए अगले चक्र में 75 की कमी करने का निणर्य लेता है। ¯कतु इसका अथर् है कि अगले चक्र में कारक भुगतान और आय में 75 की कमी होगी। जैसे - जैसे आय में ”ास होता है, लोग आनुपातिक रूप से उपभोग में कटौती करते हैं। ¯कतु इस बार सीमांत उपभोग प्रवृिा के नये मूल्य के अनुसार, जो कि 0ण्5 है, कटौती होती है। उपभोग व्यय और समस्त माँग में इस प्रकार ;0ण्5द्ध 75 की कमी होती है, जिससे बाशार में पुनः अिापूतिर् का सृजन होता है। अतः अगले दौर में, उत्पादक पुनः निगर्त में ;0ण्5द्ध 75 की कटौती करते हैं। लोगों की आय इसी के अनुसार घटती है और उपभोग व्यय और समस्त माँग में पुनः ;0ण्5द्ध275 का ”ास होता है। यह प्रिया निरंतर जारी रहती है। ¯कतु जैसाकि क्रमिक चक्र के प्रभावों के मूल्य”ास से अनुमान किया जा सकता है कि प्रिया में अभ्िासरण होता है। निगर्त और समस्त माँग के मूल्य में वुफल कितना ”ास है? यदि अनंत शृंखलाएँ 75 ़ ;0ण्5द्ध 75 ़ ;0.5द्ध2 75 ़ ऽ ऽ ऽ ∞ को जोड़ दें, तो निगर्त में वुफल कटौती, 75 त्र 150 1 दृ 0ण्5लेकिन इसका अथर् है कि अथर्व्यवस्था में नया संतुलन निगर्त केवल ल् ’2त्र 100 है। अब लोग ै’ त्रल्’ दृब्’ त्रल्’ दृ ;ब् 2222 ़ बल्’ द्ध त्र 100दृ;40़ 0ण्5 2 2 × 100द्ध त्र समस्त 10 की बचत कर रहे हैं। जबकि पूवर् संतुलन के अंतगर्त उनकी बचत ै’ त्रल्’ दृब्’ 1 11 त्रल्’ दृ ;ब़् बल्’ द्धत्र250 दृ ;40 1 1 1 ़ 0ण्8 × 250द्ध त्र 10ए पहले सीमांत उपभोग प्रवृिा पर। ब1त्र 0ण्8 अतः अथर्व्यवस्था में बचत का वुफल मूल्य अपरिवतिर्त रहता है। संक्ष्िाप्त में यह उदाहरण समष्िट अथर्शास्त्रा से जुड़े ताकिर्क बिंदुओं का विश्लेषण करती है, मितव्ययिता का विरोधाभास - समस्त माँग रेखा का नीचे की जैसा कि कृ ‘‘अलग - अलग भागों का ओर झुकाव योगपफल संपूणर् के बराबर नहीं है।’’ यहाँ तक कि यदि हम व्यक्ितगत रूप से निणर्य लेने वाली प्रिया के संदभर् में अध्ययन करें कि कितना बचत किया जाये - व्यष्िट अथर्शास्त्रा के विश्लेषण का प्राथमिक विषय - वस्तु क्या हो - तो हम यह सि(ांत बनाने में असमथर् होंगे कि अथर्व्यवस्था में कुल बचत का क्या होगा? दूसरी ओर, कुल बचत के सभी घटकों का परिणाम व्यक्ितगत बचत निणर्य के सभी कारकों के योग के ठीक बराबर नहीं है, बल्िक इससे कुछ अध्िक है। खंड 4ण्3ण्2 में हमने रेखा ।क् की स्िथति में दो प्रकार के पैरामे टिªक परिवतर्नों के बारे में चचार् की। जब । में परिवतर्न हो, तो रेखा में समांतर रूप से ऊपर की ओर अथवा नीचे की ओर श्िाफ्रट होती है। ¯कतु जब ब में परिवतर्न होता है, तो रेखा ऊपर या नीचे को झुकती है। सीमांत उपभोग प्रवृिा में वृि अथवा सीमांत बचत प्रवृिा में कमी से, रेखा ।क् की प्रवणता में कमी आती है और यह नीचे की ओर झुकती है। इस स्िथति का चित्रांकन रेखाचित्रा 4ण्6 में किया गया है। पैरामीटरों के प्रारंभ्िाक मूल्य । त्र50 और ब त्र 0ण्8 पर निगर्त का संतुलन मूल्य और समस्त माँग समीकरण ;4ण्4द्ध में - 50 त्र त्र 250 ’ल् 11दृ0ण्8 पैरामीटर के परिवतिर्त मूल्य ब त्र 0ण्5 के अंतगर्त निगर्त और समस्त माँग का नया संतुलन मूल्य है। 50 त्र त्र 100 ’ ल् 21दृ0ण्5 संतुलन निगर्त और समस्त माँग में 150 की कमी हुइर् है। जैसाकि ऊपर बताया गया है, इससे यह सि( होता है कि बचत के वुफल मूल्य में कोइर् परिवतर्न नहीं है। जब किसी विशेष कीमत स्तर पर अंतिम वस्तु की समस्त माँग, समस्त पूतिर् के बराबर होती है, तो अंतिम वस्तु अथवा उत्पाद बाशार संतुलन की स्िथति में होता है। अंतिम वस्तु की समस्त माँग में प्रत्याश्िात उपभोग, प्रत्याश्िात निवेश, सरकारी व्यय आदि आते हैं। आय में इकाइर् वृि के कारण प्रत्याश्िात उपभोग में वृि की दर को सीमांत उपभोग प्रवृिा कहते हैं। सरलता की दृष्िट से, अथर्व्यवस्था में अंतिम वस्तु के स्तर के निधार्रण के लिए अल्पकाल में हम समस्त माँग एक नियत अंतिम वस्तु कीमत और नियत ब्याज की दर को मान लेते हैं। अल्पकाल में हम यह भी मान लेते हैं कि इस कीमत पर समस्त पूतिर् पूणर्तः लोचदार है। इन परिस्िथतियों में समस्त निगर्त का निधार्रण केवल समस्त माँग के स्तर पर ही निधार्रित होता है। इसे प्रभावी माँग का सि(ांत कहते हैं। स्वायत्त व्यय में वृि ;”ासद्ध के कारण गुणक प्रिया के द्वारा अंतिम वस्तु के समस्त निगर्त में बड़ी मात्रा में वृि ;”ासद्ध होती है। समस्त माँग संतुलन यथाथर् सीमांत उपभोग प्रवृिा माल - सूची में अनभ्िाप्रेत परिवतर्न पैरामेटिªक श्िाफ्रट मितव्ययिता का विरोधाभास समस्त पूतिर् प्रत्याश्िात प्रत्याश्िात उपभोग प्रत्याश्िात निवेश स्वायत्त परिवतर्न प्रभावी माँग का सि(ांत स्वायत्त व्यय गुणक 1.सीमांत उपभोग प्रवृिा किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमांत बचत प्रवृिा से संबंिात है? 2.प्रत्याश्िात निवेश और यथाथर् निवेश में क्या अंतर है? 3.फ्किसी रेखा में पैरामेटिªक श्िाफ्रटय् से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार श्िाफ्रट होता है जब इसकी ;पद्ध ढाल घटती है और ;पपद्ध इसके अंतःखंड में वृि होती है। 4.‘प्रभावी माँग’ क्या है? जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुइर् हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक वैफसे प्राप्त करेंगे? 5.जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय ;।द्ध 50 करोड़ रु॰ हो और सीमांत बचत प्रवृिा ;डच्ैद्ध 0ण्2 तथा आय ;ल्द्ध का स्तर 4,000.00 करोड़ रु॰ हो, तो प्रत्याश्िात समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अथर्व्यवस्था संतुलन में है या नहीं ;कारण भी बताएँद्ध। 6.मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए। सुझावात्मक पठन डोनर्बुश, आर. और पिफशर, एस. 1990, मैक्रोइकोनाॅमिक्स ;पाँचवा संस्करणद्ध पृ॰ 63 - 105, मैक्ग्राॅहिल, पेरिस।

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