
अब सुबह हो गइर् है। मैं कल रात बहुत जल्दी सो गइर् थी। बाहर इतना अँध्ेरा था कि वुफछ भी दिखाइर् नहीं दे रहा था। आज सुबह जब ट्रेन 17 मइर् रुकी तो मेरी आँख खुली। बाहर प्लेटप़फॅामर् पर लगे बोडर् पर लिखा थाμमडगाँव। अप्पा ने बताया कि अब हम गोआ राज्य में हैं। हमने स्टेशन पर उतरकर चाय पी और अपनी पानी की बोतलें भी भर लीं। ट्रेन पिफर चल पड़ी। बाहर का नशारा देखने लायक है। चारों तरप़फ हरियाली है। मैदानों की लाल मि‘ी में उगे छोटे - छोटे पौध्े और पेड़ों से ढँवफी पहाडि़याँ बहुत ही सुंदर लग रही हैं। कभी - कभी छोटे आस - पास तालाब दिखाइर् पड़ते हैं। बहुत दूर पहाडि़यों के बीच पानी दिखाइर् दे रहा है। मुझे पता नहीं कि वहाँ नदी है या समुद्र। हवा ठंडी है, अहमदाबाद की तरह गमर् नहीं। ट्रेन अभी - अभी एक रेलवे पफाटक से गुशरी। दोनों तरप़फ पफाटक के पार बसों, कारों, ट्रकों, साइकिल, स्वूफटर, रिक्शा, बैलगाड़ी, ताँगे में बैठे लोग ट्रेन के गुशरने का इंतशार करते दिखाइर् दिए। वुफछ लोग तो अपनी गाडि़यों के इंजन बंद भी नहीं करते। कितना ध्ुआँ और कितना श्यादा शोर! मैंने देखा कि वुफछ लोग बंद रेलवे पफाटक को नीचे से झुक कर भी पार कर रहे थे। कितना खतरनाक है यह! कभी - कभी हमारी ट्रेन दूसरी टेªन के बिलवुफल पास से गुशरती है। मैंने और उन्नी ने डिब्बे गिनने की कइर् बार कोश्िाश की, पर दोनों ही ट्रेन इतनी तेश चल रही थीं कि हमारी गिनती कभी भी मेल नहीं खाइर्। गड़बड़ ही हुइर्। झ् ओमना ने पहले और दूसरे दिन ख्िाड़की से बाहर जो नशारा देखा, उसमें क्या अंतर है? ख्िाड़की से झ् ओमना ने रेलवे पफाटक के दोनों तरप़फ कौन - कौन से वाहन देखे, जो पेट्रोल या डीशल से चलते होंगे? झ् इन वाहनों से शोर और ध्ुआँ क्यों था? झ् क्या तुमने कभी वैसा ही नशारा देखा है, जैसा ओमना ने गोआ में देखा? उसके बारे में लिखो। चचार् करो वुफछ लोग रेलवे पफाटक तब भी पार करते हैं, जब वह बंद होता है। तुम इसके बारे मैं ख्िाड़की के पास आँखें बंद किए बैठी थी कि अचानक ट्रेन के चलने की आवाश 17 मइर् बदल गइर्μखड़ - खड़ - खड़...। मैंने आँखें खोलीं। अंदाजा लगाओ, मैंने क्या देखा? हमारी ट्रेन नदी के उफपर बने पुल पर से जा रही थी। कितना बड़ा था वह पुल! पुल पर से जाते हुए ट्रेन के पहियों की आवाश भी कितनी अलग होती है। मैंने ख्िाड़की से नीचे झाँका, तो मुझे बहुत डर लगा। पटरी के नीचे शमीन तो थी ही नहीं, केवल पानी आस - पास ही पानी था! नदी में वुफछ नावें दिखाइर् दे रही थीं और किनारे पर वुफछ मछुआरे। मैंने उन्हें हाथ हिलाकर इशारा किया। पता नहीं वे मुझे देख भी पाए या नहीं। ट्रेन के पुल के साथ - साथ दूसरे वाहनों के लिए एक और पुल भी बना हुआ था। वह इस पुल से अलग तरह से बना था। मुझे लगा कि हमारे जैसे पुल के उफपर से जाने में श्यादा मशा है। झ् क्या तुमने पुल देखे हैं? कहाँ? झ् क्या तुम कभी किसी पुल पर से गुशरे हो? कहाँ? झ् पुल किस पर बना था? झ् तुम्हें पुल के नीचे क्या दिखाइर् दिया था? झ् पता करो पुल क्यों बनाए जाते हैं? ख्िाड़की से पिछले वुफछ घंटे बहुत ही मशेदार रहे। नाश्ता करने के बाद मैं उफपर अपने बथर् पर लेट कर काॅमिक पढ़ने लगी। बाहर बहुत तेश ध्ूप ख्िाली थी। अचानक बिलवुफल अँध्ेरा हो गया। थोड़ी ठंड भी लगने लगी। मैं बहुत डर गइर्। वुफछ ही देर बाद ट्रेन के अंदर की बिायाँ जल उठीं, पर बाहर बिलवुफल घुप्प अँध्ेरा था। किसी ने बताया, हम सुरंग में से गुशर रहे थे। पहाड़ को काटकर बनी सुरंग! ऐसा लग रहा था, जैसे सुरंग खत्म ही नहीं होगी। जैसे अचानक अँध्ेरा हुआ था, वैसे ही पहले की तरह भरपूर रोशनी हो गइर्। ख्िाड़की से बाहर चमकती ध्ूप, रोशनी और हरियाली थी। ट्रेन सुरंग से बाहर निकल चुकी थी। अप्पा ने बताया कि हम पहाड़ के दूसरी तरप़् 17 मइर् ाफ पहुँच गए हैं। तब से अब तक हम चार और छोटी सुरंगों में से गुशर चुके हैं। अब, जब मैं सुरंग के बारे में जान चुकी हूँ, मुझे डर नहीं लगता, बल्िक मशा आता है। झ् क्या तुम कभी किसी सुरंग से गुशरे हो? तुम्हें वैफसा लगा? झ् गोआ से केरल तक के रेल के रास्ते में 92 सुरंगें और 2000 पुल हैं। तुम क्या सोचते होμइतनी सुरंगों और पुलों के होने के क्या कारण हो सकते हैं? आस - पास झ् ओमना ने पुल के नीचे जो नशारा देखा, उसे पढ़कर उसका चित्रा काॅपी में बनाओ। झ् कल्पना करो अगर सुरंगें और पुल न होते, तो ओमना की ट्रेन पहाड़ और नदियाँ वैफसे पार करती। अब दोपहर हो गइर् है। हमने उदिपी स्टेशन से जो गरमागरम इडली - वड़ा खरीदा था, उसे खाया। वहाँ से हमने केले भी खरीद लिए थे। वे थे तो 17 मइर् बहुत छोटे - छोटे, पर थे बहुत स्वादिष्ट! बाहर का नशारा पिफर बदल गया है। अब हम हरे - हरे खेत और बहुत सारे नारियल के पेड़ देख पा रहे हैं। अम्मा ने बताया कि यहाँ चावल की खेती होती है। बाहर सब वुफछ अलग दिखाइर् दे रहा हैμयहाँ के गाँव और यहाँ बने घर। जानती हो, यहाँ के लोगों का पहनावा भी अहमदाबाद के लोगों से अलग है। श्यादातर लोग सप़ेफद या व्रफीम रंग की सूती धेती और साडि़याँ पहने हैं। अहमदाबाद से हमारे साथ चले बहुत - से लोग बीच के स्टेशनों पर उतर गए। वुफछ और लोग चढ़े भी हैं। शाम छह बजे तक कोशीकोड पहुँचंेगे। सुनील का परिवार वहाँ उतर जाएगा। हमने एक - दूसरे का पता ले लिया है और अहमदाबाद में मिलने की योजना भी बनाइर् है। तुम्हें भी सुनील और एन से मिलकर अच्छा लगेगा। झ् तुम घर में कौन - सी भाषा बोलते हो? झ् गुजरात से केरल पहुँचने तक ट्रेन हमारे देश के किन - किन राज्यों से गुशरी? पता करो और सूची बनाओ। ख्िाड़की से झ् पता करो कि ये भाषाएँ किन जगहों पर बोली जाती हैं। भाषा जहाँ बोली जाती है ;राज्यद्ध मलयालम कोंकणी मराठी गुजराती कन्नड़ अब रात हो चुकी है। हमने अपना सामान सँभालना शुरू कर लिया है। लगभग तीन 17 मइर् घंटे में हमारा स्टेशन को‘ायम भी आ जाएगा। वहाँ हमें उतरना है। आज रात को हम वलियम्मा के घर जाएँगे। वहाँ से सुबह बस में बैठकर अम्मूमा के गाँव के लिए रवाना होंगे। सभी बहुत थक गए हैं। आज ट्रेन में हमारा दूसरा दिन खत्म होने को है। बाप रे! कितना लंबा सप़फर तय किया है हमने। पर मशा भी बहुत आया। अब मैं लिखना बंद कर रही हूँ। अम्मूमा के घर पहुँचकर ही पिफर डायरी लिखूँगी। झ् तुम इन्हें क्या कहकर बुलाते हो? माँ की बहन को माँ की माँ को पिताजी की बहन को पिताजी की माँ को अध्यापक के लिएμविभ्िान्न राज्यों की भाषा, पहनावे, भोजन और भू - भागों के बारे में जानकारी इकऋी करने में बच्चों की मदद की जा सकती है। मलयालम में वलियम्मा, माँ की बड़ी बहन को कहते हैं और अम्मूमा अपनी माँ की माँ को।