Aas-Paas

6.बूँद - बूँद, दरिया - दरिया.. बात पुरानी यह है 650 साल पुराना घड़सीसर। ‘सर’ यानी तालाब। इसे जैसलमेर के राजा घड़सी ने लोगों के साथ मिलकर बनवाया था। इसके दोनों तरपफ पक्के घाट, सजे हुए बरामदे,़कमरे, बड़े हाॅल और न जाने क्या - क्या है। यहाँ लोग मिलते - जुलते थे, जलसे होते थे, और गाने - बजाने का प्रोग्राम भी होता था। इसके घाट पर बनाए गए स्वूंे फल मआसपास के बच्चे पढ़ने आते थे। सभी इस बात का ध्यान रखते थे कि तालाब गंदा न हो और सप़् ाफाइर् में भी हाथ बँटाते थे। मीलों तक पैफले इस घड़सीसर में बारिश का पानी इकऋा होता था। तालाब इस तरह बनाया गया था कि जब वह पानी से भर जाता, तब बाकी पानी बहकर नीचे बने हुए तालाब में चला जाता। जब वह भी लबालब भर जाता तो पानी तीसरे तालाब में चला जाता। इस तरह नौ तालाब एक - दूसरे से आपस में जुड़े थे। पूरे साल पानी की कोइर् परेशानी नहीं होती थी। पर आज घड़सीसर जैसे उजड़ - सा गया है। नौ तालाबों के रास्ते में मकान और काॅलोनियाँ बन गइर् हैं। यहाँ इकऋा होने वाला पानी अब तालाब की तरप़्ाफ न जाकर बेकार बह जाता है। बूँद - बूँद की वफीमत राजस्थान में जैसलमेर के अलावा बहुत - से इलाके ऐसे हैं जहाँ साल में बस दस - बारह दिन ही बारिश होती है। यहाँ की नदियों में भी साल में कइर् महीने पानी नहीं रहता। सोचो, ऐसे में भी यहाँ के श्यादातर गाँवों में पानी की कमी क्यों नहीं थी। लोग बारिश की हर बूँद की वफीमत जो जानते थे। बूँदों को इकऋा करने के लिए तालाब और जोहड़ बनवाए जाते। यह एक साँझी ;सबकीद्ध शरूरत थी। इसलिए इंतशाम में भी सभी जुड़ते, चाहे व्यापारी हों या मशदूर। तालाब में से वुफछ पानी शमीन सोख लेती और इस तरह आस - पास के वुँफओं और बावडि़यों में भी पानी पहुँच जाता।आस - पास की शमीन भी नम और उपजाऊ हो जाती। घर - घर में भी बारिश का पानी इकऋा करने का इंतशाम होता था। इस चित्रा में निशान लगाओ कि छत पर बरसने वाला पानी शमीन के नीचे बने टैंक में वैफसे पहुँचेगा। तुमने क्या कभी बावड़ी देखी है? इस चित्रा को देेखकर क्या तुम अंदाशा लगा पा रहे हो कि ये सीढि़याँ शमीन के नीचे कइर् मंिाल तक जा रही हैं?पानी ऊपर से खींचने की बजाय लोग खुद पानी तक पहुँच सकते थे। इसीलिए वुफछ लोग इसे सीढ़ीदार वुँफआ भी कहते हैं। पुराने शमाने में लोग काप्िाफले बनाकर लंबे सप़्ाफर करते थे। अकसर लोगों का मानना था़कि प्यासे यात्रिायों को पानी पिलाना बहुत अच्छा काम है। इसीलिए कइर् जगह बहुत ही सुंदर बावडि़याँ बनवाइर् गइर् थीं। ऽ क्या तुम्हारे यहाँ कभी पानी की किल्लत हुइर् है? अगर हुइर् है, तो उसका कारण क्या था? अपनी दादी, नानी या किसी और बड़े से बातचीत करो कि जब वे तुम्हारी उम्र की थीं, तबμ ऽ घर में पानी कहाँ से आता था? क्या ‘तब’ और ‘अब’ में कोइर् बदलाव हुआ है? ऽ मुसाप्िाफरों के लिए पानी का किस - किस तरह का इंतशाम होता़था? जैसे प्याऊ, मशवफ या वुफछ और? आजकल सपफर में़ लोग क्या करते हैं? पानी से जुड़े रिवाज.. आज भी कहीं - कहीं कइर् सौ साल पुराने पानी के स्रोत हैं जैसेμबावड़ी, तालाब, नौला, धारा, आदिμजिनसे लोगों की पानी की शरूरत पूरी होती है। उत्तराखंड के ये पफोटो देखो। पानी ़ से जुड़े हैं कइर् रिवाज, त्योहार और जश्न। कइर् जगह तो आज भी बारिश से तालाब भरने की खुशी में μ आस - पास मेले का माहौल हो जाता है। यह उत्तराखंड की एक दुलहन है जो ब्याह के बाद नए गाँव में आइर् है। वह झरने या तालाब पर जाकर सिर झुकाती है। आज शहरों में इस रिवाज का एक मशेदार रूप दिखता है। दुलहन घर ही में किसी नल के पास जाकर पूजा करती है। पानी से ही तो िांदगी जुड़ी है न! 54 आस - पास क्या तुम्हारे यहाँ पानी के लिए वुफछ खास बतर्न इस्तेमाल होते हैं। यहाँ देखो इस सुंदर वंुफडों वाले ताँबे के बतर्न में पानी भरा जा रहा है। दूसरे चित्रा में चमकदार पीला, पीतल का घड़ा है। पानी भरने की जगह पर सुंदर मूतिर्याँ भी बनाइर् गइर् हैं। क्या तुमने कभी पानी की जगह पर कोइर् सुंदर इमारत बनी देखी है? कहाँ? ऽ यह कितना पुराना है? किसने बनवाया होगा? ऽ इसके आस - पास किस तरह की इमारत बनी है? ऽ पानी सापफ है या नहीं? क्या इसकी सप़्ाफाइर् होती है?़ ऽ यहाँ से कौन - कौन पानी भरते हैं? ऽ क्या कभी यहाँ कोइर् त्योहार मनाया जाता है? ऽ पानी कहीं सूख तो नहीं गया? बूँद - बूँद, दरिया - दरिया ऽ कइर् जगह मोटर लगाकर शमीन का पानी निकाला जा रहा है। ऽ तालाब जिनमें बारिश का पानी इकऋा होता था, अब नहीं रहे। ऽ पेड़ों के आस - पास और पावर्फ में भी शमीन को सीमेंट से पक्का कर दिया गया है। ऽ क्या तुम कोइर् और वजह भी सुझा सकते हो? हाल की बात आज लोग पानी का इंतशाम किस - किस तरह से करते हैं। चित्रा को देखकर चचार् करो। ऽ तुम्हारे यहाँ जिस तरह पानी आता है उस पर ;✓द्ध निशान लगाओ। अगर किसी अलग तरीके से आता है तो अलग से काॅपी में लिखो? बूँद - बूँद, दरिया - दरिया चचार् करो िांदगी का हक तो सभी का है। पिफर जीने के लिए या पीने भर के लिए पानी मिल जाएμक्या यह हक हर एक को मिल रहा है? ऐसा क्यों है कि वुफछ लोगों को तो खरीदकर ही पानी पीना पड़ता है? पृथ्वी पर तो पानी सभी का है, साँझा है। वुफछ लोग गहरा बोरिंग करके शमीन के नीचे से श्यादा पानी खींच लेते हैं यह कहाँ तक सही है। तुमने क्या ऐसा कहीं देखा है? वुफछ लोगों को जल बोडर् के पाइप में टुल्लू पंप क्यों लगाना पड़ रहा होगा? इससे दूसरे लोगों को क्या ऽ तुम्हारे यहाँ अगर बिल आता है तो कहाँ से आता है? ऽ इस बिल में दिल्ली जल बोडर् के नीचे दिल्ली सरकार क्यों लिखा होता है? ऽ बिल किसके नाम से है? कितने महीनों के कितने पैसे देने पड़ रहे हैं? ऽ क्या तुम्हारे यहाँ पानी के पैसे चुकाने पड़ते हैं? क्या तुम्हारे यहाँ अलग - अलग इलाकों में पानी का रेट अलग है? बड़ों से पता करो। 58 आस - पास यह मुमकिन है आज कइर् संस्थाएँ पानी के इंतशाम में लगी हैं। वे लोग बुशुगो± से मिलकर यह जानने की कोश्िाश करते हैं कि उनके शमाने में पानी का इंतशाम किस तरह का था। वे पुराने तालाबों की मरम्मत करते हैं और नए तालाब भी बनाते हैं। चलो देेखें कि ‘तरुण भारत संघ’ नाम की एक संस्था ने दड़की माइर् की मदद वैफसे की। ये हैं दड़की माइर्। राजस्थान के अलवर जिले के एक गाँव में रहती हैं। इस गाँव की औरतों का पूरा समय घर के कामों और जानवरों की देखभाल में चला जाता था। कभी - कभी तो जानवरों के लिए वँुफओं से पानी खींचने में पूरी रात लग जाती थी। जब गमिर्यों में वुँफए भी सूख जाते तो गाँव छोड़ना पड़ता। दड़की माइर् ने पहल की और लोगों ने संस्था के साथ मिलकर तालाब बना लिया। जानवरों के चारे - पानी की परेशानी कम हुइर् और श्यादा दूध् मिलने लगा। लोगों की कमाइर् भी बढ़ी है। वे लोग अब दूध् का मावा बनाकर भी बेचते हैं। μ चार गाँव की कथा किताब से ऽ तुमने इस तरह की क्या कोइर् खबर पढ़ी है? लोगों ने मिलकर पानी की परेशानी को वैफसे दूर किया? क्या किसी पुराने तालाब या बावड़ी को पिफर ठीक करके इस्तेमाल किया? बूँद - बूँद, दरिया - दरिया

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