
मैं हूँ गौरव जानी और यह है ‘लोनर’, मेरी सबसे बढि़या साथी, मेरी मोटरसाइकिल। अँगे्रशी में ‘लोनर’ का अथर् होता हैμअकेला रहने वाला। वैसे तो मेरी मोटरसाइकिल अकेली नहीं है, उसके साथ मैं हूँ हरदम। हम दोनों ही मुंबइर् की भीड़भाड़, शोरगुल वालीगलियों और ऊँची - ऊँची इमारतों से निकलने का मौका ढँूढ़ते रहते हैं। हम दोनों को ही अपने संुदर देश के अलग - अलग इलाकों में घूमने का बहुत शौक है। आज मैं तुम्हें सुनाता हूँ, एक अद्भुत कहानीμदुनिया के सबसे उँफचे रास्तों पर मोटरसाइकिल यात्रा की। वैफसे की तैयारी मेरी यात्रा थी लगभग दो महीने की। इतने दिनों के लिए सामान ले जाना था, वह भी मोटरसाइकिल पर लादकर। मैंने बहुत सोच समझकर शरूरत का सामान इकऋा किया। रहने के लिए टेंट, बिछाने के लिए प्लास्िटक की शीट और स्लीपिंग बैग। गमर् कपड़े, काप़् ाफी दिन तक खराब न होने वाला खाना, वैफमरा, पेट्रोल रखने के लिए डिब्बे, इत्यादि भी। मैं मुंबइर् से निकला। महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के छोटे - बड़े शहरों से होता हुआ दिल्ली पहुँचा। मुंबइर् से दिल्ली तक का 1400 किलोमीटर का रास्ता मैंने तीन दिन में तय किया। मुझे पूरी उम्मीद थी कि दिल्ली में मुझे वुफछ नया देखने को मिलेगा। पर दिल्ली भी मुंबइर् जैसी ही लगी। इतने सालों में मैं थक चुका था, एक ही तरह के शहर देखते - देखते। 120 वही एक जैसे घरμसीमेंट, ईंट, काँच और स्टील के बने हुए। अब आनेवाले दिनों के बारे में सोचकर मैं बहुत उत्सुक था। मेरी कल्पना थी कि मुझे देखने को मिलेंगेμलकड़ी के घर, ढलवाँ छत वाले और बप़् ार्फ से ढँके घर, बिलवुफल वैसे, जैसे मैंने किताबों में देखे थे। दिल्ली में पिफर सामान भरवाकर मैं आगे बढ़ा। दो दिन बाद मनाली पहुँचकर पहाड़ों की ताशी हवा के बीच चैन की साँस ली। असली यात्रा तो अब शुरू होनी थी। जम्मू - कश्मीर राज्य के कइर् मुश्िकल रास्तों से होते हुए हमें लद्दाख में लेह तक जाना था। पता करो ऽ नक्शे में देखकर बताओ कि मुंबइर् से कश्मीर जाने के रास्ते में कौन - कौन से राज्य आएँगे? ऽ गौरव जानी मुंबइर् से दिल्ली तक के रास्ते में जिन राज्यों से गुजरे उनकी राजधनियों के नाम पता करो। क्या और भी कोइर् बड़ा शहर रास्ते में आया होगा? ऽ मनाली मैदानी इलाका है या पहाड़ी? वह शहर कौन - से राज्य में है? मेरा नया घर मैं और मेरी लोनर आगे बढ़े जा रहे थे। मुझे सिप़् ार्फ भरपेट खाना चाहिए था और रात की ठंड से बचने के लिए टेंट। मेरे छोटे से नाइलाॅन के टेंट में इतनी ही जगह थी कि मैं सो सवूँफ। रात के समय मेरी मोटरसाइकिल टेंट के बाहर पहरा देती। सुबह की ठंडी हवा और चिडि़यों की चहक से ही रोश आँख खुलती। बसेरा ऊँचाइर् पर 121 बताओ ऽ क्या तुम कभी टेंट में रहे हो? कहाँ? वैफसा अनुभव था? मान लो, तुम्हें अकेले पहाड़ पर दो दिन तक एक टेंट में रहना है और तुम अपने साथ केवल दस चीशें ले जा सकते हो। उन दस चीशों की सूची बनाओ, जो तुम ले जाना चाहोगे। ऽ तुमने किस - किस तरह के घर देखे हैं? उनके बारे में बताओ। चित्रा भी बनाओ। ठंडा रेगिस्तान आख्िारकार मैं और ‘लोनर’ लेह पहुँच ही गए। अजब अनूठा था यह इलाकाμसूखा, समतल और ठंडा रेगिस्तान। लद्दाख में बहुत ही कम बारिश होती है। यहाँ दूर - दूर तक दिखते थे बप़् ार्फ से ढँके पहाड़ और सूखा ठंडा मैदान। लेह शहर की एक शांत गली में सप़् ोफद पत्थर के सुंदर मशबूत घरों को देखा। थोड़ा आगे बढ़ा तो वुफछ बच्चे जूले, जूले यानी ‘स्वागत, स्वागत’ चिल्लाते हुए मेरा पीछा करने लगे। वे ‘लोनर’ को देखकर बहुत हैरान थे। सभी मुझे अपने - अपने घर ले जाना चाहते थे। ताशी के घर पर ताशी का शोर चला और वह मुझे खींचकर अपने घर ले गया। उसका घर दो - मंिाला था। पत्थरों को काटकर, एक के उफपर एक रखकर बना था। उन पर मि‘ी और चूने से पुताइर् की हुइर् थी। अंदर से घर छप्पर जैसा लग रहा था। हर तरप़्ाफ घास - पूफस पड़ी हुइर् थी। ताशी मुझे लकड़ी की सीढि़यों से पहली मंिाल पर ले गया। उसने बताया कि वह की जगह थी और शरूरत का सामान इकऋा करके रखते थे। सदीर् के दिनों में अकसर इनका परिवार भी नीचे की मंिाल पर जानवरों के पास ही रहता। नीचे की मंिाल में कोइर् ख्िाड़की भी नहीं थी। छत को मशबूत बनाने के लिए पेड़ों के मोटे तने इस्तेमाल किए हुए थे। पिफर ताशी मुझे घर की छत पर ले गया। आस - पास का नशारा तो देखते ही बनता था। सभी घरों की छतें समतल थीं। कहीं लाल मिचर् सूखने के लिए पैफली थीं तो कहीं सीतापफल और मक्का। किसी छत पर धन के ढेर लगे थे तो किसी पर उपले सूख रहे थे। ताशी ने बताया कि छत उनके घर का सबसे महत्त्वपूणर् हिस्सा है। यहाँ गमिर्यों की तेश ध्ूप में ही बहुत सारी पफल - सब्शी सुखा ली जाती है। ये ठंडे दिनों में इस्तेमाल होती हंै, जब पफल - सब्शी नहीं मिल पाती। सोचो, यह किन महीनों में होता होगा और क्यों? वहाँ खड़ा मैं सोच रहा था कि किस तरह उनके घर का हर हिस्सा एक खास सोच से बनाया गया था। बिलवुफल वहाँ के मौसम और लोगों की शरूरत के अनुवूफल। मुझे यह समझने में देर नहीं लगी कि मोटी - मोटी दीवारें, लकड़ी के प़्ाफशर् और लकड़ी की छत ही ठंड से बचाते होंगे। लिखो ऽ ताशी के इलाके के लोग सदिर्यों में नीचे की मंिाल पर रहते हैं। वे ऐसा क्यों करते होंगे? ऽ तुम्हारे घर की छत वैफसी है? तुम्हारे यहाँ छत किन - किन कामों के लिए इस्तेमाल होती है? बसेरा ऊँचाइर् पर दुनिया की चोटी पर लोगों का बसेरा अब समय था आगे बढ़ने का। टेढ़े - मेढ़े, सँकरे, पहाड़ी रास्तों से होते हुए मैं बहुतऊँचाइर् पर जाता जा रहा था। कहीं सड़क तो कहीं बड़े - बड़े पत्थर। ‘लोनर’ का चलना मुश्िकलों से भरा था। अब मैं चांगथांग इलाके की ओर बढ़ रहा था। लगभग 5000 मीटर की उँफचाइर् पर बना यह मैदानी इलाका बिलवुफल सुनसान और पथरीला था। इतनीऊँचाइर् पर साँस लेने में भी मुश्िकल हो रही थी। मेरे सिर में ददर् होने लगा और बहुत कमशोरी महसूस होने लगी। पिफर ध्ीरे - ध्ीरे ऐसी हवा में साँस लेने की आदत - सी पड़ गइर्। मैं कइर् दिन तक यहाँ मोटरसाइकिल पर घूमता रहा, लेकिन दूर - दूर तक कोइर् भी दिखाइर् नहीं पड़ता था। न ही कोइर् पेट्रोल पंप, न मैकेनिक। सिप़्ार्फ दूर - दूर तक पैफला नीला आसमान और पहाड़ों के बीच बहुत - से तालाब। कइर् रातें और कइर् दिन बीत गए। मैं अकेला ही बढ़ता रहा। पिफर एक दिन अचानक मेरे सामने था बड़ा - सा हरा मैदान और उसमें चरती भेड़ - बकरियाँ। थोड़ी ही दूरी पर मुझे वुफछ टेंट दिखाइर् दिए। मैं हैरान था कि इस सुनसान इलाके में ये कौन लोग थे और क्या कर रहे थे! पता करो ऽ तुम जिस इलाके में रहते हो वह कितनी उँफचाइर् पर है? ऽ गौरव जानी ने ऐसा क्यों कहाμ‘इतनी उँफचाइर् पर साँस लेने में भी मुश्िकल हो रही थी’? ऽ तुम कभी पहाड़ी इलाके में गए हो? कहाँ? ऽ वह कितनी उँफचाइर् पर था? क्या वहाँ साँस लेने में तुम्हें भी परेशानी आइर्? ऽ तुम श्यादा - से - श्यादा कितनी उँफचाइर् तक गए हो? 124 आस - पास चांगपा वहाँ मैं मिला नामग्याल से। उन्हीं से मुझे चांगपा के बारे में पता चला। इतने बड़े इलाके में सिपर्फ 5000 लोग!़चांगपा घुमंतू लोग हैं जो हमेशा एक ही जगह पर नहीं रहते। अपनी भेड़ - बकरियों के झुंड को लेकर पहाड़ों में हरे मैदानों की खोज में घूमते रहते हैं। इन्हीं जानवरों से इन्हें अपनी शरूरत का सामान मिल जाता हैμदूध्, माँस, टेंट के लिए चमड़ा, स्वेटर और कोट के लिएऊन, आदि। भेड़ - बकरियाँ ही इनकी सबसे बड़ी पूँजी है। जितनी भेड़ - बकरियाँ, उतना ही उँफचा परिवार का स्तर। चांगपा खास तरह की बकरियाँ पालते हैं। जिनके बालों से दुनिया की मशहूर पशमीना उफन बनती है। जितनी ठंडी और उँफची जगह होगी, इन बकरियों के बाल भी उतने ही श्यादा और नरम होंगे। इसीलिए चांगपा इतने मुश्िकल हालात में भी इतनी उँफचाइर् पर रहना पसंद करते हैं। यही है इनकी िांदगी। मैं मोटरसाइकिल पर तो अपना थोड़ा ही सामान लाया था। लेकिन ये लोग अपना पूरा घर और सामान घोड़ों और याक पर लादकर घूमते हैं। जब आगे बढ़ना हो तो ये सिप़्ार्फ ढाइर् घंटे में अपना डेरा समेटकर निकल पड़ते हैं। जहाँ ठहरना हो वहाँ वुफछ ही देर में ये अपने टेंट गाड़ लेते हैं और तैयार हो जाता है इनका घर। फ्आपका स्वागत हैय्, कहते हुए नामग्याल मुझे बहुत बड़े तिकोने टेंट में ले गया। ये अपने टेंटों को ‘रेबो’ कहते हैं। याक के बालों से बुनाइर् करके चांगपा प‘ियाँ बनाते हैं, जिन्हें सिलकर जोड़ लेते हैं। ये बहुत मशबूत होती हैं और गमर् भी। मैंने देखा कि ये प‘ियाँ नौ डंडियों के सहारे शमीन से बँध्ी थीं। टेंट लगाने से पहले शमीन में दो पुफट गहरा गइा खोदते हैं। पिफर गइे के आस - पास की ऊँची शमीन पर टेंट लगाते हैं। े जितना बड़ा था! दो लकड़ी के बड़े डंडों के सहारे खड़ा था। ‘रेबो’ के बीचांेबीच एक खुला छेद था, जहाँ से चूल्हे का ध्ुँआ बाहर जा सके। नामग्याल ने बताया कि इनके टेंट का डिशाइन एक हशार साल से भी पुराना था। इससे टेंट में रहने वाले चांगपा ठंड से बचे रहते हैं। ठंड भी वैफसी? सदिर्यों में यहाँ का तापमान शून्य से कइर् डिग्री नीचे चला जाता है और हवा भी बहुत तेश चलती है। एक घंटे में 70 किलोमीटर की गति! ;सोचो, अगर तुम अपने गाँव से बस में बैठे और वह इसी गति से चले तो तुम एक घंटे में कहाँ पहुँच जाओगे?द्ध ‘रेबो’ के पास ही भेड़ - बकरियों को रखने के लिए जगह बनी थीं। इसे चांगपा ‘लेखा’ कहते हैं। ‘लेखा’ की दीवारें पत्थरों और च‘ानों को एक - दूसरे पर रखकर बनाते हैं। हर परिवार अपने जानवरों के झुंड पर पहचान के लिए खास निशान बनाता है। रोश सुबह झुंड को ‘लेखा’ से बाहर निकालकर, गिनकर चराने ले जाना और ठीक से वापिस लाना, वहाँ की औरतों और जवान लड़कियों का रोश का कामहै। μ चांगपा लोगों की िांदगी पूरी तरह से इन जानवरों से जुड़ी है। क्या कोइर् जानवर तुम्हारी िांदगी का हिस्सा हैं? जैसेμतुम्हारा कोइर् पालतू जानवर या खेती में इस्तेमाल किए गए जानवर, इत्यादि। ऐसे पाँच उदाहरण सोचो और लिखो कि जानवर तुम्हारी पता करो ऽ तुमने पढ़ा कि चांगथांग इलाके में तापमान 0°ब् से कापफी कम हो जाता है।़टी.वी. या अखबार में देखकर बताओ कि और कौन - से शहर हैं जिनका तापमान 0°ब् से भी कम हो जाता है। वे शहर भारत के हो सकते हैं या किसी और देश के भी। किन महीनों में तुम्हें ऐसे तापमान की खबरें देखने को मिलंेगी? श्रीनगर की ओर मैंने वुफछ दिन इन लोगों के साथ बिताए। न चाहते हुए भी आगे तो बढ़ना ही था। लेह से वापसी की यात्रा मुझे इस अनोखे इलाके से दूर एक दूसरी ही दुनिया में ले जाने वाली थी। लेह से वापिस आते समय मैंने श्रीनगर की ओर का रास्ता पकड़ा। कारगिल से होता हुआ पिफर श्रीनगर पहुँचा। रास्ते में मैंने कइर् तरह के घर और अद्भुत इमारतें देखीं। पिफर वुफछ दिन मैं श्रीनगर में रहा। वहाँ के अलग घरों को देखकर मैं हैरान था। उन घरों ने मेरा दिल ही जीत लिया। कोइर् पहाड़ पर, तो कोइर् पानी पर, तरह - तरह के घरों में लोग रहते हैं। उन घरों के मैंने कइर् प़् ाफोटो खींचे। ये प़् ाफोटो तुम भी देखो। अपने सप़् ाफर की शुरुआत पर निकलने से पहले मैंने कभी सोचा भी न था कि एक ही राज्य में मुझे इतनी तरह के घर और लोगों के रहन - सहन के तरीके देखने को मिलेंगे। लेह में एक अनुभव था दुनिया की चोटी पर रहने का और श्रीनगर में अनुभव था पानी पर रहने का। इन इलाकों में घर भी ऐसे खास थे जो वहाँ के मौसम के अनुवूफल थे। वापसी का समय पिफर आगे बढ़ने का समय आ गया। इस बार जम्मू शहर से होते हुए जाना था। अब पिफर वैसे ही घर दिखे, जिन्हें देखकर मैं बड़ा हुआ हूँ। वही सीमेंट, ईंट, काँच और स्टील। इसबारे में कोइर् दो राय नहीं कि ये मशबूत और टिकाऊ हैं, पर इनमें उन घरों जैसी खासियत नहीं थी जो मैंने खुशकिस्मती से लेह और श्रीनगर में देखे। पिफर - से उतना ही लंबा वापसी ़ का सपफर करके मैं और ‘लोनर’ मुंबइर् पहुँचने ही वाले थे। मुंबइर् शहर की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर ‘लोनर’ वापिस नहीं आना चाह रही थी। मेरा मन भी भारी हो रहा था। पर अंदर से दिल में एक खुशी थी। इतना वुफछ अनोखा और नया मैं अपनी यादों और अपने वैफमरे में वैफद कर लाया था। और यह अंत थोड़े ही है! मैं और मेरी मोटरसाइकिल पिफर जब इस शहर से उफब जाएँगे तो निकल पड़ेंगे, एक नए सपफर पर!़ आप़्ाफाक घढा देखो और बताओ ऽ देखो, जम्मू - कश्मीर में अलग - अलग तरह के घर हैं, जो कि वहाँ के लोगों की शरूरत और मौसम के अनुरूप बनाए जाते हैं। 128 आस - पास आप़्ाफाक घढा आप़्ाफाक घढाविनोद रायना श्रीनगर के घरμएक नशर श्रीनगर में बाहर से आए कइर् टूरिस्ट ‘हाउसबोट’ में रहते हैं। हाउसबोट 80 पुफट तक लंबे होते हैं और बीच से इनकी चैड़ाइर् आठ - नौ पुफट तक होती है। ‘हाउसबोट’ और कइर् बड़े घरों की अंदर की छत पर, लकड़ी की सुंदर नक्काशी होती है। इनमें एक खास डिशाइन ‘खतमबंद’ है, जो ‘जिग्साॅ पशल’ जैसा दिखता है। यहाँ के पुराने घरों की खासियत हैμये जालीदार ख्िाड़कियाँ। ये बाहर की ओर उभरी होती हैं। इन्हें ‘डब’ कहते हैं। इनमें बैठकर बाहर का नशारा बढि़या दिखता है। बोट की तरह बने लकड़ी के डांेगे पानी पर तैरते रहते हैं। श्रीनगर की डल लेक और झेलम नदी में इन डोंगों में कइर् परिवार रहते हैं। मकान की तरह इस डोंगे में भी अलग - अलग कमरे होते हैं। पत्थरों को काटकर एक के उफपर एक रखकर बनाए गए घर कश्मीर के गाँवों में दिखते हैं। पत्थरों के उफपर मि‘ी की पुताइर् की जाती है और लकड़ी का भी इस्तेमाल किया जाता है। इन घरों की छत ढलवाँ होती है। यहाँ के पुराने घरों की खासियत हैμपत्थर, ईंट और लकड़ी को मिलाकर बनाना। घरों के दरवाशो, ख्िाड़कियों पर डिशाइनदार मेहराब बने होते हैं। बसेरा ऊँचाइर् पर 129 ़़ ़ आपफाक घढा आपफाक घढा आपफाक घढा ऽ क्या तुम्हारे इलाके में भी अलग - अलग तरह के घर हैं? अगर हाँ, तो इसके कारण सोचो। तुम्हारे घर में क्या कोइर् खास बात है? जैसेμश्यादा बारिश होती है तो ढलवाँ छत या बड़ा बरामदा, जहाँ गमिर्यों में सोते हो और ध्ूप में वुफछ सुखाते हो। ऽ अपने घर के बारे में सोचो। घर बनाने के लिए किन चीशों का इस्तेमाल हुआ है? मि‘ी, पत्थर, लकड़ी या सीमेंट? अपने घर की खास बात चित्रा द्वारा दिखाओ। सोचो और लिखो ऽ इस चित्रा को देखो। क्या इसमें वुफछ घर पहचान पा रहे हो? ये लकड़ी और मि‘ी के घर हैं जिनमें सदिर्यों में कोइर् नहीं रहता। गमिर्यों में बकरवाल लोग यहाँ रहने आते हैं जब वे बकरियों को चराने के लिए पहाड़ों की उँफचाइयों पर ले जाते हैं। ऽ अंदाशा लगाओ कि बकरवाल और चांगपा लोगों की िांदगी में कौन - सी