
क्या कभी सोचा है, यह काम करना लोगों को वैफसा लगता होगा? लोगों को ऐसे काम क्यों करने पड़ते हैं? 147 हमारे साथ्िायों ने वुफछ सप़्ाफाइर् कामगारों से बातचीत की। ये हैं, उस बातचीत के वुफछ हिस्से। प्र.आप कब से यह काम कर रही हैं? उ.करीबन बीस साल से! जब से पढ़ाइर् खत्म हुइर् है। प्र.आगे क्यों नहीं पढ़ीं? वुफछ और काम मिल जाता। उ.पढ़ने के लिए पैसे चाहिए। वैसे भी पढ़कर हमारे कइर् लोग ऐसा ही काम करते हैं। प्र.मतलब? उ.बाप - दादाओं से... उनसे भी पहले से हमारे समाज के श्यादातर लोग यह काम कर रहे हैं। डिग्री लेकर भी दूसरी नौकरी नहीं मिलती तो यही काम कर रहे हैं। प्र.ऐसा क्यों? उ.ऐसा ही है। हमारे पूरे शहर में यह काम करने वाले सभी लोग हमारे ही समाज के हैं। हमेशा से ऐसा ही होता आया है। स्टालिन के. की डाॅक्यूमेंट्री प्िाफल्म़ इंडिया अनटच्ड से लिखो जो लोग तुम्हारे घर और स्वूफल के आस - पास की सप़्ाफाइर् करते हैं, उनसे बातचीत करो और लिखो। ऽ वे कब से यह काम कर रहे हैं? ऽ कहाँ तक पढ़े हैं? ऽ क्या उन्होंने और कोइर् काम ढूँढ़ने की कोश्िाश की? ऽ क्या उनके परिवार के बड़े - बूढ़े भी यही काम करते थे? ऽ उनको इस काम में क्या परेशानियाँ आती हैं? श्िाक्षक संकेतμसप़् ाफाइर् कामगारों से बातचीत से पहले कक्षा में उन प्रश्नों पर चचार् की जा सकती है, जो बातें बच्चे पता करेंगे। सप़्ाफाइर् कामगारों से बच्चों की बातचीत बहुत संवेदनशीलता से हो। 148 आस - पास ऽ इस चित्रा में किस तरह के काम किए जा रहे हैं? पाँच कामों के नाम लिखो। ऽ इस चित्रा में दिखाए गए कामों में से कोइर् पाँच काम तुम्हें करने हों, तो तुम कौन - से काम चुनोगे? क्यों? ऽ इनमें से कौन - से पाँच काम तुम नहीं चुनोगे? क्यों? कौन करेगा यह काम? 149 चचार् करो ऽ तुम्हारी समझ में किस तरह के काम करना लोग पसंद नहीं करते? क्यों? ऽ पिफर इस तरह के काम कौन करता है? ये लोग ऐसे काम क्यों करते हैं जिन्हें कोइर् भी करना पसंद नहीं करता? कल्पना करो ऽ अगर कोइर् भी यह काम न करे तो क्या होगा? यदि एक हफ्ऱते तक कोइर् भी तुम्हारे स्वूफल या घर के आस - पास पैफला वूफड़ा - कचरा सापफ न करे तो क्या होगा?़ कचरा सापफ करने के वुफछ अलग़ तरीके जैसे मशीन या और कोइर् तरीका सोचो, जिससे लोगों को नापसंद काम न करना पड़े। अपने सोचे गए तरीके को चित्रा बनाकर दिखाओ। ;ये चित्रा भी बच्चों ने बनाए हैंद्ध क्या ऐसे हालात बदलने की कोश्िाश किसी ने की? हाँ, कोश्िाश तो कइर् लोगों ने की, आज भी करते हैं। पर बदलाव लाना आसान नहीं। ऐसे लोगों में से एक थे महात्मा गांधी। गांध्ीजी के बहुत करीब के साथी थेμमहादेवभाइर् देसाइर्, जिनका बेटा है नारायण। नारायण का बचपन गांध्ी आश्रम में गुशरा था। यह किस्सा उन्हीं की किताब से लिया गया है। पुरानी यादें नारायण ;यानी बाबलाद्ध जब ग्यारह साल के थे, तब गुजरात के साबरमती आश्रम में उन्हें अलग - अलग काम करने पड़ते थे। उनमें से एक था, आनेवाले मेहमानों को टाॅयलेट की सपफाइर् का काम सिखाना।़तब के ‘टाॅयलेट’ में नीचे टोकरियाँ रखी होती थीं। जिनमें संडास की गंदगी गिरती थी, पिफर उस जगह को साप़्ाफ भी करना पड़ता था। इन टोकरियों को हाथांे से उठाकर ले जाना होता था। आमतौर पर इस काम को एक ही समाज के लोगों को ही करना पड़ता। पर गांध्ी आश्रम में खाद बनाने वाले गइे तक टोकरियाँ ले जाने का यह काम सभी को करना पड़ता था, पिफर वह कोइर् भी क्योंन हो। नारायण को याद है कि कइर् लोग इस काम को टालने की कोश्िाश करते थे। वुफछ तो इस काम से डरकर आश्रम छोड़कर भाग जाते। एक बार गांध्ीजी महाराष्ट्र के वधर् शहर के पास एक गाँव में रहने गए। यह गाँव था तो वधार् शहर के पास, लेकिन पिफर भी शहर की सुविधओं से परे था। गाँव में गांध्ीजी, महादेवभाइर् और उनके साथीसंडास की सप़्ाफाइर् का काम करने लगे। कइर् महीने बीत गए। एक दिन सुबह के समय गाँव के बाहर की गंदी संडास की तरपफ से एक आदमी लोटा लेकर आ रहा था। जब उसने महादेवभाइर् को देखा़तो बोला फ्उस तरपफ श्यादा गंदगी है, वहाँ सप़्ाफाइर् करो।य़् यह देख बाबला को बहुत हैरानी हुइर् और गुस्सा भी आया। उसने सोचा, गाँववाले तो यह समझरहे हैं कि यह काम उनका नहीं बल्िक गांध्ीजी और उनके साथ्िायों का ही है। यह बात ठीक नहीं है। उसने गांधीजी से यह पूछा तो वे बोले, फ्छुआछूत का भेदभाव छोटी - सी बात नहीं है। उसे मिटाने के लिए कड़ी मेहनत की शरूरत है।य् नारायण यह जानता था कि ऐसे काम करने वाले लोगों को अछूत माना जाता है। पर वह यह नहीं समझ पा रहा था कि उनके बदले अगर हम खुद यह काम करें तो हालात वैफसे बदलेंगे? उसने पूछा, फ्अगर गाँववाले नहीं सुध्रे तो क्या प़् ाफायदा? उन्हें तो आदत हो गइर् है कि उनका गंदा काम कोइर् और ही करे!य् गांध्ीजी बोले, फ्क्यों इससे सप़़् ाफाइर् करने वालों को पफायदा नहीं होता, क्या उन्हें सीख नहींमिलती? कोइर् काम सीखना एक कला सीखने जैसा है। सप़्ाफाइर् का काम भी।य् छोटा नारायण पिफर भी नहीं माना। वह पिफर से बोल पड़ा, फ्पर सीख तो उनको भी मिलनी चाहिए, जो गंदगी करते हैं और खुद सापफ नहीं करते।य् गांध्ीजी और नारायण की बहस तो चलती रही। पिफऱ भी आगे चलकर नारायणभाइर् ने गांधीजी के दिखाए रास्ते पर चलना कभी नहीं छोड़ा। μ नारायण भाइर् देसाइर्संत - चरण - रज सेवितां सहज नामक किताब से बताओ ऽ गांध्ीजी ने भी खुद और अपने साथ्िायों के साथ सप़् ाफाइर् का काम करना क्यों शुरू किया होगा? तुम्हें क्या लगता है? ऽ क्या तुम ऐसे किन्हीं लोगों को जानते हो जो आस - पास के लोगों की कठिनाइयों को आसान करने की कोश्िाश करते हैं? पता करो। ऽ गांध्ीजी के आश्रम में आने वाले नए मेहमानों को भी इस काम को सीखना पड़ता था। अगर तुम इन मेहमानों में से होते तो तुम क्या करते? कौन करेगा यह काम? 151 ऽ तुम्हारे घर में ‘टाॅयलेट’ की क्या व्यवस्था है? ‘टाॅयलेट’ घर के अंदर है या बाहर? ‘टाॅयलेट’ कौन सापफ करता है?़ ऽ गाँव में गंदी संडास की तरप़्ाफ से लोटा लेकर आ रहे आदमी ने© महादेवभाइर् के साथ वैफसा बतार्व किया? क्यों? ऽ जो लोग टाॅयलेट और नालियों वगैरह की सपफाइर् का काम करते हैं, उनसे़ नारायण और बाबासाहब के बचपन की बात तो अब कइर् साल पुरानी है। क्या आज हालात बदल गए हैं? बताओ ऽ तुम्हारे स्वूफल की सपफाइर् कौन करता है? क्या - क्या साप़् ़ ाफ करना पड़ता है? ऽ क्या तुम्हारे जैसे बच्चे इसमें मदद करते हैं? अगर हाँ, तो किस तरह की? ऽ अगर मदद नहीं करते तो क्यों नहीं? ऽ क्या सभी बच्चे सभी तरह के काम करते हैं? ऽ काम करने के लिए क्या क्लास की पढ़ाइर् छूट जाती है? ऽ क्या लड़के और लड़कियाँ एक ही तरह के काम करते हैं? ऽ घर में तुम किस तरह के काम करते हो? ऽ क्या लड़के - लड़कियों और मदर् - औरतों के किए जाने वाले कामों में समानता है? ऽ क्या तुम इसमें वुफछ बदलाव लाना चाहोगे? किस तरह का? चचार् करो ऽ क्या समाज में लोगों द्वारा किए जाने वाले सभी कामों को एक ही तरह से देखा जाता है? अगर नहीं, तो क्यों? क्या बदलाव होना शरूरी है? ऽ गांध्ीजी के पसंदीदा भजनों में से एक भजन का छोटा हिस्सा नीचे दिया है। यह भजन गुजराती भाषा में है। अपने आस - पास के लोगों की मदद लेकर इस भजन का मतलब पता करो और उसके बारे में सोचो। कौन करेगा यह काम? 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