Aas-Paas

अब मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाना चाहता हूँ। यह सिप़्ार्फ मेरी नहीं, मेरे किसान - दामजीभाइर् - के परिवार की भी कहानी है। अगर आज न सुनाइर् तो शायद पिफर कभी न सुना पाउँफ। में भरते और उसको सीलबंद कर देते। कोयले के अंगारों में मटके को उल्टा रखकर सब्शी को पकाया जाता। इस पकी सब्शी को कहते हैं ‘उँधीयुँ’ ;गुजराती में उँध्ीयुँ का मतलब हैμउल्टाद्ध। उँधीयुँ के साथ मि‘ी के चूल्हे में पकी बाजरे की रोटियों की सौंधी खुशबू... वाह! साथ में घर के दूध् का मक्खन, दही और जितनी चाहे उतनी छाछ। तरह - तरह की सब्िशयाँ, अनाज, अलग - अलग मौसम में उगाइर् जाती थीं। किसान अपनी शरूरत के अनाज - सब्शी घर में रखकर, बाकी का शहर के दुकानदारांें को बेच देते। अनाज और सब्िशयों के अलावा कभी - कभी थोड़ी कपास भी उगाइर् जाती। सूत की कताइर् और बुनाइर् भी घर में ही चरखों और करघों पर की जाती थी। बताओ ऽ क्या तुम्हारे घर में रोटियाँ बनती हैं? किस अनाज से? ऽ क्या तुमने कभी ज्वार या बाजरे की रोटी खाइर् है? तुम्हें वैफसी लगी? पता करो और लिखो ऽ तुम्हारे घर में अनाज और दालों को कीड़ों से बचाने के लिए क्या - क्या करते हैं? ऽ अलग - अलग मौसम में खेती से जुड़े त्योहार कौन - कौन से हैं? इनमें से किसी एक त्योहार के बारे में जानकारी इकऋी करो, जैसेμ त्योहार का नाम। किस मौसम में मनाते हैं? किन - किन राज्यों में मनाया जाता है? क्या - क्या खाना पकाया जाता है? उस त्योहार को वैफसे मनाते हैंμसब मिलकर या अपने - अपने घरों में? ऽ अपने घर में बड़ांे से पूछो, क्या खाने की वुफछ ऐसी चीशें हैं जो उनके शमाने में बनाइर् जाती थीं पर अब नहीं? किसानों की कहानी - बीज की ज़्ु 175 ाबानी ऽ तुम्हारे इलाके में कौन - कौन से अनाज और साग - सब्शी उगाए जाते हैं? बदलाव वुफछ सालों में गाँव में कइर् बदलाव आए। वुफछ जगहों पर नहर का पानी पहुँच गया। कहते थे, दूर किसी बड़ी नदी पर बनाए बाँध् से यह पानी यहाँ लाया गया था। पिफर बिजली भी पहुँच गइर्। बस, बटन दबाओ तो रोशनी! धीरे - ध्ीरे सभी लोग एक - दो तरह ;गेहूँ और कपासद्ध की ही प़्ाफसल उगाने लगे। जिन्हें बेचकर श्यादा पफायदा हो।़दामजीभाइर् के खेतों से हम ज्वार - बाजरे और साग - सब्िशयों की तो छु‘ी ही हो गइर्! किसान बीजों को भी बाशार से खरीदने लगे। लोग कहते थे, नइर् तरह के बीज हैं। अब किसानों को पुराने बीज रखने की शरूरत नहीं थी। अब तो खास मौकों पर ही मिलकर खास खाना पकाया जाता। सब पुराने खाने के स्वाद को याद करते। मगर बीज ही बदल गए तो स्वाद वैफसे न बदले? पिफर बाशार से खरीदी सब्शी से घर की ताशी सब्शी का मशा थोड़े ही आ सकता है! दामजीभाइर् अब बूढ़े हो गए थे। उनका बेटा हसमुख, खेती और घर का जिम्मा सँभालने लगा। हसमुख खेती से खूब मुनापफा कमा रहा था। उसने अपने पुराने घर को़नया बनाया। खेती में भी नइर् - नइर् चीशें लाया। पानी के लिए बिजली का पंप लगाया। शहर में आने - जाने के लिए मोटरसाइकिल खरीद ली और शमीन जोतने के लिए टैªक्टर। जो काम करने में बैलों को कइर् दिन लगते, वह काम ट्रैक्टर वुफछ ही समय में कर लेता। हसमुख कहता, फ्अब हम सोच - समझकर खेती कर रहे हैं। वही उगा रहे हैं, जो 176 आस - पास बाशार में बेचा जा सके। मुनाप़्ोफ के पैसों से हम अपना जीवन सुधर सकते हैं और श्यादा तरक्की कर सकते हैं।य् मगर बक्से में पड़े हम पुराने बीजों को ऐसी तरक्की पर शक था। हम तो सोचते ही रह गएμयह वैफसी तरक्की? हमारी और बैलों की छु‘ी ही तो हो भी बेरोशगार कर दिया। चचार् करो ऽ बाजरे के बीज ने दामजीभाइर् की खेती और हसमुख की खेती में ;जैसे सिंचाइर्, शमीन जोतना, इत्यादिद्ध में क्या - क्या अंतर देखे? ऽ हसमुख कहता - खेती के मुनापेफ से हम और तरक्की कर सकते हैं।़तुम ‘तरक्की’ से क्या समझते हो? लिखो ऽ तुम अपने गाँव या इलाके में क्या - क्या तरक्की देखना चाहोगे? खचेर् पर खचार् अगले बीस सालों में बहुत - से बदलाव आए। गाय - बैल नहीं, तो गोबर की खाद भी नहीं! हसमुख ने नइर् मँहगी खाद डालनी शुरू की। नए बीज ऐसे थे कि उनसे उगी पफसल पर जल्दी कीड़े लग जाते। प़्ाफसल पर दवाइयों का छिड़काव भी करना पड़ता।़ उप़्ाफ! क्या बदबू थी उनकी! हसमुख का कापफी पैसा इन सब पर खचर् होने लगा। नहऱका पानी कम हो रहा था। अब हसमुख के गाँव में सभी ने अपने - अपने पंप लगाकर शमीन के बहुत नीचे से खूब पानी खींचा। खचर्र्े पर खचेर्। मुनाप़् ोफ का पैसा बैंक के कशेर् में कटने लगा। मुनाप़् ाफा भी क्या? जब सभी लोग कपास उगाते तो कपास की कीमत भी कम ही मिलती। एक ही तरह की प़् ाफसल बार - बार उगाने से और दवाइयों ने जैसे शमीन की जान ही खींच ली। खेती करना और उससे अपना गुशारा चलाना अब मुश्िकल होता जा रहा था। हसमुख भी पहले जैसा न रहा, चिड़चिड़ा हो गया। उसका जवान बेटा परेश पढ़ - लिखकर खेती का काम नहीं करना चाहता। बैंक का कशार् चुकाने के लिए ट्रक - ड्राइवर काकाम करने लगा है। कभी रात - रात भर घर नहीं लौटता, कभी हफ्ऱते भर भी नहीं। परसों घर आया तो वुफछ ढूँढ़ने लगा। माँ से पूछने लगा, फ्बा, दादाजी का वह पुराना बीजों का बक्सा कहाँ है? ट्रक को ठीक करने वाले औशार रखने के काम आएगा।य् अब समझे, मैंने तुम्हें अपनी कहानी क्यों बताइर्? सोचो और चचार् करो ऽ आगे चलकर हसमुख की खेती का क्या हुआ होगा? ऽ दामजीभाइर् के बेटे हसमुख ने अपने पिता की तरह खेती करना पसंद किया। हसमुख का बेटा परेश खेती न करके ट्रक चला रहा है। उसने ऐसा क्यों किया होगा? ऽ बीज को शक था कि जो हसमुख के साथ हुआ वह तरक्की नहीं है। तुम्हें क्या लगता है? ऽ क्या तुम्हारे आस - पास वुफछ ऐसे बदलाव हुए हैं, जिन्हें ‘तरक्की’ मानने में वुफछ दिक्कतें भी हैं? क्या? अखबार में छपी रिपोटर् पढ़ो और उस पर चचार् करो मंगलवार, 18 दिसम्बर 2007 आंध््र प्रदेश यहाँ के कइर् किसान खेती में हुए घाटे के कारण बैंक का कशार् नहीं चुका पाए हैं। उन्हें जेल भेज दिया गया है। ऐसे ही एक किसान हैं - नालाप्पा रेड्डी। उन्होंने बैंक से 24,000 रुपए कशार् लिया था। यह कशार् चुकाने के लिए उन्होंने साहूकार से भी भारी ब्याज पर कशार् लिया। वुफल 34,000 रुपए देकर भी उनका सारा कशार् न पूरा हुआ। वे कहते हैंμफ्ये बैंक किसानों को तो छोटा - सा कशार् प्रोजेक्ट न चुकाने पर जेल भेज रहे हैं पर बड़े व्यापारी, उद्योगपति......जो करोड़ों का कशार् नहीं चुकाते उन्हें वुफछ नहीं कहते।य् देश के सैंकड़ों किसानों की खेती में हुए घाटे की कहानी आंध््र प्रदेश के नालाप्पा रेड्डी जैसी है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इन्हीं कारणों से सन् 1997 से सन् 2005 तक 1,50,000 किसान अपनी जान खुद ले चुके हैं। यह संख्या शायद इससे भी श्यादा हो।.. ऽ तुम्हारे मन में खेती से जुड़े क्या - क्या सवाल उठते हैं? सब मिलकर वुफछ सवाल बनाओ और किसी किसान से पूछो। जैसेμकिसान एक साल में कितनी तरह की प़्ाफसल उगाते हैं? किस पफसल को कितने़पानी की शरूरत होती है? ऽ अपने आस - पास किसी खेत या बाड़ी पर जाओ। वहाँ लोगों से बात करो और आस - पास देखो। एक रिपोटर् तैयार करो। किसानों की कहानी - बीज की ज़्ु 179 ाबानी गुजरात में रहने वाले कक्षा पाँच के बच्चों ने भास्करभाइर् का पफामर् देखा और उस पर एक रिपोटर् लिखी। तुम भी पढ़ो बाजरे के बीज का सप़्ाफरμखेत से प्लेट तक चित्रों को देखो और बताओ कि हर चित्रा में क्या दिख रहा है? चित्रा 2 में बाजरे की बाली ओखली में रखी हैं। मूसली से वूफटकर बाजरे के दानों को बाली से अलग करते हैं। अलग किए गए बाजरे के दाने चित्रा 3 में दिख रहे हैं। आजकल यह काम हाथ से नहीं बल्िक एक बड़ी मशीन ‘थ्रेशर’ से किया जाता है। दोनों ही एक काम करने के तरीके हैं जिन्हें हम तकनीक भी कह सकते हैं। 180 आस - पास चित्रा ;4द्ध में दिखाइर् चक्की में क्या हो रहा होगा? पिफर चित्रा ;5द्ध और ;6द्ध में किस ‘तकनीक’ से आटा तैयार किया गया होगा? छलनी का इस्तेमाल कब किया गया होगा? मिलाम्बर रेनी आइर् ए मरकरी क्लाॅड रिनाॅल्टअपणार् किसानों की कहानी - बीज की ज़्ु181 ाबानी

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