
सीता की खोज राम के मन में कइर् प्रकार के प्रश्न थे। आशंकाएँ थीं। मारीच की माया उन्होंने देख ली थी। वह छल से उन्हें वुफटिया से दूर ले आया था। फ्अब क्या होगा?य् यही सोचते हुए वे वुफटिया की ओर भागे चले जा रहे थे। वापसी में एक पल भी विलंब नहीं करना चाहते थे। लक्ष्मण को वे वुफटी पर छोड़ आए थे। सीता की रखवाली के लिए। फ्अच्छा हो कि लक्ष्मण वहीं हों। मारीच की मायावी आवाश उन तक न पहुँची हो,य् राम ने सोचा। फ्सीता अकेली रहीं तो राक्षस उन्हें मार डालेंगे। खा जाएँगे।य् तभी उन्होंने पगडंडी से लक्ष्मण को आते देखा। वही हुआ, जिसका राम को डर था। अनिष्ट की आशंका और बढ़ गइर्। पता नहीं सीता किस हाल में होंगी? राक्षसों ने उन्हें मार डाला होगा? उठा ले गए होंगे? अकेली सीता दुष्ट राक्षसों के सामने क्या कर पाइर् होंगी? वुफटी छोड़कर आने पर वह लक्ष्मण से व्रुफ( थे। उन्होंने क्रोध् पर नियंत्राण रखा। लक्ष्मण का बायाँ हाथ शोर से पकड़ लिया। डर ने दोनों भाइयों को घेर लिया था। फ्देवी सीता ने मुझे विवश कर दिया, भ्राते! उनके कटु वचन मैं सहन नहीं कर सका। कटाक्ष और उलाहना नहीं सुन सका। मैं जानता था कि आप सवुफशल होंगे। आपकी सुरक्षा को लेकर मन में कोइर् संदेह नहीं था। तब भी मुझे वुफटिया छोड़कर आना पड़ा,य् लक्ष्मण ने कहा। फ्यह तुमने अच्छा नहीं किया। तुम्हें मेरी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए था। अब जल्दी चलो। मेरा मन च्िंातित है। सीता न जाने किस हाल में होंगी। वैफसी होंगी। मायावी राक्षसों का कोइर् ठिकाना नहीं।य् राम ने चलने की गति और बढ़ा दी। वुफटिया अभी वुफछ दूर थी। पर दिखाइर् पड़ने लगी थी। राम ने वहीं से पुकारा, फ्सीते! तुम कहाँ हो?य् जैसे कि उन्हें पता चल गया हो कि सीता आश्रम में नहीं हैं।वुफटिया मौन रही। वहाँ से कोइर् उत्तर नहीं मिला। राम की बेचैनी बढ़ गइर्। उनकी एक आवाश पर कहीं से भी उपस्िथत हो जाने वाली सीता वहाँ नहीं थीं। अनुपस्िथति बोलती वैफसे? राम की आवाश पेड़ों से टकराकर हवा में विलीन हो गइर्। वुफटिया के शून्य में समा गइर्। राम पुकारते रहे। उत्तर में उन्हें हर बार सन्नाटा ही मिला। चुप्पी हर ओर थी। हर दिन हवा में झूलने वालेपत्ते शांत थे। लताएँ गुमसुम पड़ी हुइर् थीं। चिडि़यों की चहक लुप्त थी। वुफटिया के निकट घूमने वाले पशु - पक्षी चुप खड़े थे। सब स्तब्ध्! राम भागते हुए आश्रम पहुँचे। वुफटिया में जाकर देखा। फ्सीते! सीते!य् पुकारते हुए उन्होंने आसपास की हर जगह देखी। पेड़ों - झाडि़यों के पीछे गए। उन स्थानों की ओर भागे, जहाँ सीता जा सकती थीं। सीता का कहीं पता न था। शोक से व्यावुफल राम रोने लगे। सीता से बिछुड़ना उनके लिए असहनीय आघात था। वे सुध् - बुध् भुला बैठे। विरह में वे गोदावरी नदी के पास गए। उससे पूछा, फ्तुमने सीता को कहीं देखाहै?य् नदी ने कोइर् उत्तर नहीं दिया। वे पंचवटी के एक - एक वृक्ष के पास गए। सबसे पूछा। कोइर् सीता का पता बता दे। हाथी के पास गए। शेर से पूछा। पूफलों के 49 सीता की खोज पास रुके। च‘ानों, पत्थरों से प्रश्न किया। शोक संतप्त राम भूल गए कि च‘ानें नहीं बोलतीं। पेड़ - पौध्े बात नहीं करते। उनकीभाषा मौन है। उनके उत्तर भी मौन ही हैं। राम की मानसिक स्िथति विक्ष्िाप्त जैसी थी। एक बार उन्हें लगा कि सीता वहीं हैं। वुफटिया के पास। अभी भागकर पेड़ के पीछे छिप गइर् हैं। उन्हें ख्िाझाने के लिए। फ्मेरे साथ परिहास मत करो, सीते!य् राम उस पेड़ की ओर दौड़ पड़े। वहाँ कोइर् नहीं था। वे निराश होकर पेड़ के नीचे बैठ गए। राम का दुख लक्ष्मण से देखा नहीं जा रहा था। उनका व्यवहार सहन नहीं हो रहा था। वे राम के निकट गए। विलाप करते राम ने कहा, फ्मैं सीता के बिना नहीं रह सकता। तुम अयोध्या लौट जाओ, लक्ष्मण।मैं वहाँ नहीं जाऊँगा। यहीं प्राण दे दूँगा। मैं सीता के साथ आया था। उसके बिना कैसे लौटूँगा? नगरवासियों को क्या मुंँहदिखाऊँगा? तुम जाओ। मुझे यहीं छोड़ दो।य् फ्आप आदशर् पुरुष हैं। आपको ध्ैयर् रखना चाहिए। इस तरह दुःख से कातर नहीं होना चाहिए। हम मिलकर सीता की खोज करेंगे। वे जहाँ भी होंगी, हम उन्हें ढूँढ़ निकालेंगे। सीता हमारी प्रतीक्षा कर 50 बाल रामकथा रही होंगी।य् लक्ष्मण ने उन्हें ढाढ़स बँधते हुए कहा। राम शांत हुए। पर थोड़ी ही देर में फ्हा पि्रये!य् कहते हुए पुनः विलाप करने लगे। इसी बीच आश्रम के आसपास भटकने वाला हिरणों का एक झुंड राम - लक्ष्मण के निकट आ गया। राम को लगा कि हिरण सीता के बारे में जानते हैं। उन्हें वुफछ बताना चाहते हैं। फ्हे मृग! तुम्हीं बताओ सीता कहाँ हैं?य् राम ने पूछा। हिरणों ने सिर उठाकर आसमान की ओर देखा और दक्ष्िाण दिशा की ओर भाग गए। राम ने संकेत समझ लिया फ्हमें सीता की खोज दक्ष्िाण दिशा में ही करनी चाहिए,य् उन्होंने लक्ष्मण से कहा। फ्हिरण उसी ओर गए हैं।य् वन में भटकते हुए उन्होंने एक टूटे हुए रथ के टुकड़े देखे। मरा हुआ सारथी और मृत घोड़े भी थे। फ्वन में रथ का क्या प्रयोजन? उसके टूटने का क्या अथर्?य् राम असमंजस में पड़ गए। फ्लगता है थोड़ी देर पहले यहाँ संघषर् हुआ है,य् लक्ष्मण ने कहा। फ्यह पुष्पमाला वही है, जिसे सीता ने वेणी में गँूंथ रखा था। निश्िचत तौर पर सीता राक्षसों के चंगुल में पँफस गइर् हैं। यह माला संघषर् के दौरान वेणी से टूटकर गिरी होगी।य् फ्पर यह रथ वैफसे टूटा?य् राम सोचने लगे। फ्सीता के संघषर् से यह नहीं टूट सकता। अवश्य किसी ने राक्षसों को चुनौती दी होगी। उनसे यु( किया होगा।य् वहाँ से थोड़ी ही दूर राम ने पक्ष्िाराज जटायु को देखा। पंख कटे हुए। लहूलुहान। अंतिम साँसें गिनते हुए। फ्हे राजवुफमार! सीता को रावण उठा ले गया है। मेरे पंख उसी ने काटे। सीता का विलाप सुनकर मैंने रावण को चुनौती दी। उसका रथ तोड़ दिया। सारथी और घोड़ों को मार डाला। स्वयं रावण को घायल कर दिया। पर मैं सीता को नहीं बचा सका। रावण उन्हें लेकर दक्ष्िाण - पश्िचम दिशा की ओर उड़ गया,य् कहते - कहते जटायु ने प्राण त्याग दिए। राम ने आगे बढ़ने से पहले जटायु की अंतिम िया की। वे सोचते रहे। पछताते रहे। फ्यह वैफसा विधन है! मैं तो कष्ट में हू ँ ही। मेरी सहायता करने वालों को भी इतना कष्ट!य् राम की आँखें नम हो आईं। उन्होंने जटायु को अंतिम बार प्रणाम किया। जटायु ने सीता के बारे में महत्त्वपूणर् सूचना दी थी। रावण का नाम बताया। दिशा बताइर्, जिध्र सीता को लेकर वह गया। राम जटायु की चिता के पास मौन खड़े थे। फ्यह समय विलाप करने का नहीं है। हमें तुरंत दक्ष्िाण - पश्िचम दिशा की ओर जाना चाहिए। सीता उध्र ही होंगी,य् लक्ष्मण ने तत्परता दिखाइर्। आगे का मागर् और कठिन था। राम और लक्ष्मण को लगभग हर दिन राक्षसी आक्रमणों से जूझना पड़ा। अनेक कठिनाइयाँ आईं। अवरोध् मिले। दोनों राजवुफमार प्रत्येक बाध पार करते चले गए। उनके सामने लक्ष्य स्पष्ट था। दिशा तय थी। उन्हें कोइर् नहीं रोक सकता था। वन - मागर् जितना कठिन होता गया, उनकी दृढ़ता बढ़ती गइर्। वनवासी राजवुफमार प्रतिदिन सुबह उठते और दक्ष्िाण दिशा की ओर चल पड़ते। एक दिन यात्रा के प्रारंभ में ही एक विशालकाय राक्षस ने उन पर आक्रमण कर दिया। उसका नाम कबंध् था। कबंध् देेखने में बहुत डरावना था। मोटे माँस¯पड जैसा। गदर्न नहीं थी। एक आँख थी। दाँत बाहर निकले हुए। जीभ साँप की तरह। लंबी और लपलपाती हुइर्। राम - लक्ष्मण को देखते ही कबंध् प्रसन्न हो गया। उसने दोनों हाथ पैफलाए। एक - एक हाथ से दोनों भाइयों को पकड़कर हवा में उठा दिया। उसे मनमाँगा आहार मिल गया था। बैठे - बिठाए। वह अपने श्िाकार को भुजाओं में लपेटकर मुँह तक ले जाता 51 सीता की खोज इससे पहले ही राम - लक्ष्मण ने अपनी तलवारें निकाल लीं। एक झटके में कबंध् के हाथ काट दिए। उसके हाथ ध्रती पर गिर पड़े। कबंध् उनकी शक्ित और बुि पर आश्चयर्चकित रह गया। फ्कौन हो तुम दोनों?य् उसने पूछा। हम अयोध्या के महाराज दशरथ के पुत्रा हैं। राम और लक्ष्मण। रावण ने राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया है। हम उन्हीं की खोज में निकले हैं। राक्षस कबंध् ने राम के बारे में सुन रखा था। साक्षात् उन्हें देखकर प्रसन्न हो गया। उसने कहा, फ्मैं सीता के संबंध् में वुफछ नहीं जानता। लेकिन तुम दोनों की सहायता का उपाय बता सकता हूँ। मेरा एक छोटा - सा आग्रह स्वीकार करो तो। मेरा अंतिम संस्कार राम करें।य् राम ने इस पर सहमति व्यक्त की तो कबंध् बोला, फ्आप दोनों पंपा सरोवर के निकट )ष्यमूक पवर्त पर जाएँ। वह वानरराज सुग्रीव का क्षेत्रा है। वे निवार्सित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सुग्रीव से मदद का आग्रह कीजिए। उनके पास बहुत बड़ी वानर सेना है। सुग्रीव के वानर सीता को अवश्य खोज निकालेंगे।य् कबंध् की साँस टूटने लगी थी। उसका अंत निकट था। राम और लक्ष्मण को अपने निकट बुलाते हुए उसने कहा, फ्पंपा वुफटिया आश्रम में ही थी। वह )ष्िा की सरोवर के पास मतंग )ष्िा का आश्रम है। श्िाष्या थी। उसकी आयु बहुत हो गइर् थी। वहीं उनकी श्िाष्या शबरी रहती है। आगे जजर्र काया। लेकिन आँखें ठीक थीं। हर जाने से पूवर् शबरी से अवश्य मिल लें।य् पल राम की प्रतीक्षा में खुली हुइ यही बोलते - बोलते कबंध् ने प्राण त्याग दिए। राम ने अपना वचन पूरा करते हुए उसका अंतिम संस्कार किया और पंपासर की ओर चल पड़े। कबंध् की बातों से राम को बहुत ढाढ़स हुआ। सीता तक पहुँचने की आशा बलवती हुइर्। राम को सुग्रीव की क्षमता और उनकी वानर सेना की शक्ित का पता था। वे जल्दी सुग्रीव तक पहुँचना चाहते थे। )ष्यमूक पवर्त का रास्ता पंपा सरोवरहोकर जाता था। पंपासर का प्राकृतिक सौंदयर् अद्भुत था। मतंग )ष्िा का आश्रम उसी सरोवर के किनारे था। लता - वुंफज से घ्िारा हुआ। सरोवर का पानी मीठा था। शबरी की । )ष्िा ने उसे बताया था कि एक दिन राम आश्रम में अवश्य आएँगे। और उससे मिलेंगे। राम को आश्रम में देखकर शबरी बहुत प्रसन्न हुइर्। उनकी आवभगत की। सेवा की। खाने को मीठे पफल दिए। रहने की जगह दी। उसकी आँखें तृप्त हो गईं। राम ने उससे सीता के संबंध् में पूछा। फ्आप सुग्रीव से मित्राता करिए। सीता की खोज में वह अवश्य सहायक होगा। उसके पास विलक्षण शक्ित वाले बंदर हैं,य् शबरी ने राम को आश्वस्त किया। अगले दिन राम )ष्यमूक पवर्त चले गए। उनकी व्यावुफलता अब और घट गइर् थी। मन की शांति लौट आइर् थी। ±