
इकाइर् - प्ट अध्याय 8 पहले पाठ मेहमने अपने जीवन मेमौजूेें ं ं द अनक तरह की विविध्ताआ ग्रामीण क्षेत्रा में आजीविका पर नशर डाली। हमने इस पर भी विचार किया कि अलग - अलग क्षत्रोंमेरहने से वहाँ कलागोे ंे पर वैफसे असर पड़ँ ं े ेंककाम - ध्ध्ताहै।वहापरपाएजाने े े़े,वहा़फसलेयादू़ं वालपड - पौध्ँ की पं सरी चीजेकिस तरह फ लिए महत्त्वपणर् हा। इस पाठ मं ेगकि गाव उनवेूेजातीहैंेहमयहदखें ँमेलों से अपनी आजीविका चलाते ंे े ं ग किन विभ्िान्न तरीकोहै। पहलदापाठों की तरह यहाँ भी हम इसकी पडताल कऱेंगे कि क्या लोगों के पास आजीविका चलाने वेैं या नहींे फ समान अवसर उपलब्ध् ह। उनवफ जीवन की परिस्िथतियाँ ूे से कितनी मिलती - जुं और वे एक - दसरलती हैकिन समस्याआंेका सामना करते हैं , इसे भी हम देखंेगे। 78 ध् सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन कलपट्टु गाँव मिलनाडु में समुद्र तट के पास एक गाँव तहै कलपट्टु। यहाँ लोग कइर् तरह के काम करते हैं। दूसरे गाँवों की तरह यहाँ भी खेती के अलावा कइर् काम होते हैं, जैसे टोकरी,बत्तर्न, घड़े, ईंट, बैलगाड़ी इत्यादि बनाना। कलपट्टु में वुफछ लोग नसर्, श्िाक्षक, धेबी, बुनकर, नाइर्, साइकिल ठीक करने वाले और लोहार के रूप में अपनी सेवाएँ देते हैं। यहाँ वुफछ दुकानदार एवं व्यापारी भी हैं। जो मुख्य गली है वह बाशार की तरह दिखती है। उसमें आपको तरह - तरह की कइर् छोटी दुकानें दिखेंगी जैसे चाय, सब्शी, कपड़े की दुकान तथा दो दुकानें बीज और खाद की। चार दुकानें चाय की हैं जहाँ ‘टिपि़फन’ भी मिलता है। यहाँ टिप्ि़ाफन का मतलब है खाने - पीने की हल्की - पफुल्की चीशें, जैसे सुबह इडली, डोसा व उपमा मिलता है और शाम के नाश्ते में वड़ा, बौंडा व मैसूरपाक मिलता है। चाय की दुकानों के पास एक कोने में एक लोहार का परिवार रहता है। उसके घर में ही लोहे की चीशें बनाने का काम होता है। बगल में साइकिल की मरम्मत की एक दुकान है। वहाँ साइकिल किराए पर भी मिलती है। गाँव मेें दो परिवार कपड़े धेकर अपनी आजीविका चलाते हैं। कुछ लोग पास के शहर में जाकर मकान बनाने और लाॅरी चलाने का काम करते हैं। गाँव छोटी - छोटी पहाडि़यों से घ्िारा हुआ है। सिंचित शमीन पर मुख्यतः धन की खेती होती है। श्यादातर परिवार खेती के द्वारा अपनी आजीविका कमाते हैं। यहाँ आम और नारियल के काप़फी बाग हैं। कपास, गन्ना और केला भी उगाया जाता है। आइए, वुफछ लोगों से मिलें जो कलपट्टु के खेतों में काम करते हैं और देखें कि हम उनकी आजीविका के बारे में क्या सीख सकते हैं। तुलसी हम सब यहाँ रामलिंगम की शमीन पर काम करते हैं। उसके परिवार के पास कलपट्टु में बीस एकड़ धन के खेत हैं। शादी से पहले भी मैं मायके में धन के खेतों में ही मज़दूरी करती थी। यहाँ मैं सुबह 830 से शाम 430 तक काम करती हूँ। रामलिंगम की पत्नी करुथम्मा काम की निगरानी करती है। साल में कुछ ही मौके ऐसे होते हैं जब मुझे नियमित रूप से मशदूरी मिलती है। यह उन मौकों में से एक है। मैं धन रोप रही हूँ। जब धन की प़फसल थोड़ी बढ़ जाएगी तो रामलिंगम हमें निराइर् के लिए और बाद में कटाइर् के लिए बुलाएगा। जब मैं कम उम्र की थी तो निराइर् - कटाइर् का काम आसानी से कर लेती थी। लेकिन अब जैसे - जैसे उम्र हो रही है मुझे झुककर काम करने और देर तक पानी में पैर डुबोए रहने से तकलीप़फ होती है। रामलिंगम एक दिन का 40 रुपया मशदूरी देता है। मेरे गाँव में मशदूरी के ‘रेट’ से यह थोड़ा कम है। पिफर भी मैं मशदूरी के लिए यहीं आती हूँ। रामलिंगम पर मुझे भरोसा है कि काम होने पर वह मुझे ही मेरा पति रमन भी एक मज़दूर है। हमारे पास कोइर् शमीन नहीं है। साल के इन महीनों में वह खेतों में कीड़ों की दवाइर् छिड़कता है। जब खेतों में कोइर् काम नहीं मिलता तो उसे पास की खान से पत्थर या नदी से बालू ढोने का काम मिल जाता है। ये पत्थर और बालू पास के शहरों में मकान बनाने के लिए ट्रक से ले जाए जाते हैं। खेत में काम करने के अलावा मैं घर का सारा काम करती हूँ। मैं घर में सबके लिए खाना बनाती हूँ, कपड़े धेती हूँ और सप़फाइर् करती हूँ। दूसरी औरतों के साथ जाकर जंगल से लकड़ी भी लाती हूँ। गाँव से करीब एक किलोमीटर दूर ‘बोरवेल’ है जहाँ से पानी लेकर आती हूँ। मेरा पति घर का सामान जैसे साग - सब्शी खरीदने में मेरी मदद करता है। माचर् बुलाएगा। बाकी लोगों की तरह वह आस - पड़ोस के गाँवों में सस्ते मशदूर ढूँढ़ने नहीं जाता। 80 ध् सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन हमारी दो बेटियाँ हमारे जीवन की खुशी हैं। दोनों ही स्कूल जाती हैं। पिछले साल एक बेटी बीमार पड़ गइर् थी तो उसे शहर के अस्पताल ले जाना पड़ा। हमने उसके इलाज के लिए रामलिंगम से उधर लिया था और उस उधर को चुकाने के लिए हमें अपनी गाय बेचनी पड़ी। से जो थोड़ा - सा पैसा कमाते हैं उससे गुज़ारा नहीं होता। घर चलाने और िांदगी बसर करने के लिए इन कामों को करना पड़ता है। हमारे देश के ग्रामीण परिवारों में से करीब 40 प्रतिशत खेतिहर मशदूर हैं। कुछ के पास शमीन के छोटे - छोटे टुकड़े हैं, बाकी तुलसी की तरह भूमिहीन हैं। कइर् बार जब पूरे साल उन्हें काम नहीं मिल पाता तो मजबूरन काम की खोज में उन्हें दूर - दराश के इलाकों में जाना पड़ता है। इस तरह का पलायन कुछ विशेष मौसमों में ही होता है। शेखर हमें यह धन अपने घर लेकर जाना है। मेरे परिवार ने अभी - अभी प़फसलों की कटाइर् पूरी की है। हमारे पास बस दो एकड़ शमीन है। हम अपने खेत का सारा काम खुद ही कर लेते हैं। मैं कइर् बार कटाइर् के समय दूसरे छोटे किसानों की मदद ले लेता हूँ और बदले में उनके खेतों में कटाइर् करवा देता हूँ। व्यापारी मुझे उधर पर बीज और खाद देता है। इसे चुकाने के लिए मुझे थोड़े कम दामों पर उसे धन बेचना पड़ता है। अगर बाशार में बेचूँ तो श्यादा पैसे मिल जाएँगे। लेकिन मुझे उधर भी तो चुकाना है। व्यापारी ने किसानों को याद दिलाने के लिए अपना एजेंट भेजा है कि जिन किसानों ने उधर लिया है वे उसी को अपना धन बेचें। मुझे अपने खेत से 60 बोरी धन मिलेगा। इनमें से कुछ से मैं अपना उधर चुका दूँगा और बाकी घर में लग जाएगा। लेकिन मेरे हिस्से में जो आता है वह सिपफर् आठ महीने तक ही चल पाता है। इसलिए मुझे और पैसा कमाने की शरूरत पड़ती है। इसके लिए मैं रामलिंगम की चावल की मिल में काम करता हूँ। वहाँ मैं पड़ोसी गाँव के किसानों से धन जाता है। कशर् लेने पर जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कइर् बार शेखर जैसे किसान शरूरी चीशें खरीदने के लिए पैसा कशर् लेते हैं। अक्सर ये पैसा बीज, खाद और कीटनाशक खरीदने के लिए साहूकार से कशर् शेखर का परिवार क्या काम करता है? आपके विचार से शेखर दूसरे मज़दूरों को अपने ’ खेत पर काम करने के लिए क्यों नहीं लगाता? शेखर शहर के बाशार में अपना धन क्यों नहीं बेच पाता? ’ शेखर की बहन मीना ने भी व्यापारी से उधर लिया था, परंतु वह अपना धन उसको ’ नहीं बेचना चाहती। उसने व्यापारी के एजेंट से कहा कि वह अपना उधर चुका देगी। मीना और व्यापारी के एजेंट के बीच में इसको लेकर क्या बातचीत हुइर् होगी? दोनों के तको± को लिख्िाए। शेखर और तुलसी के जीवन में क्या समानताएँ हैं और क्या अंतर है? आपके उत्तर के निम्न ’ लिख्िात आधर हो सकते हैं - उनके पास कितनी शमीन है, उनको उधर क्यों लेना पड़ता है, उनकी कमाइर् के साध्न क्या हैं और उन्हें दूसरों की शमीन पर काम करने की क्या शरूरत है। 82 ध् सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन लिया जाता है। अगर बीज अच्छी किस्म के नहीं होते या प़फसल को कीड़ा लग जाता है तो पूरी प़फसल बबार्द हो सकती है। बारिश पूरी नहीं होने पर भी प़फसल खराब हो सकती है। ऐसी स्िथति में किसान अपना उधर नहीं चुका पाते। कइर् बार परिवार चलाने के लिए उन्हें और पैसा कशर् के तौर पर लेना पड़ता है। जल्दी ही कशर् इतना बढ़ जाता है कि किसान कितना भी कमा ले, वह उसे चुका नहीं पाता। इस स्िथति में कहते हैं कि किसान कशर् तले दब गया। पिछले कुछ सालों में यह किसानों की विपदा का मुख्य कारण बन गया है। कइर् क्षेत्रों में किसानों ने कशर् के बोझ से दबकर आत्महत्या तक कर ली है। रामलिंगम और करुथम्मा शमीन के अलावा रामलिंगम के परिवार के पास एक चावल की मिल है और बीज व कीटनाशक बेचने के लिए एक दुकान है। चावल की मिल में उन्होंने वुफछ अपना पैसा लगाया और थोड़ा सरकारी बैंक से कजर् लिया था। वे कलपट्टु और आस - पास के गाँवों से ही धन खरीदते हैं। मिल का चावल आस - पास के शहरों के व्यापारियों को बेचा जाता है। इससे उनकी अच्छी खासी कमाइर् हो जाती है। भारत के खेतिहर मशदूर और किसान कलपट्टु गाँव में तुलसी की तरह के खेतिहर मशदूर हैं, शेखर की तरह के छोटे किसान हैं और रामलिंगम जैसे बड़े किसान हैं। भारत में प्रत्येक पाँच ग्रामीण परिवारों में से लगभग दो परिवार खेतिहर मशदूरों के हैं। ऐसे सभी परिवार अपनी कमाइर् के लिए दूसरों के खेतों पर निभर्र रहते हैं। इनमें से कइर् भूमिहीन हैं और कइयों के पास शमीन के छोटे - छोटे टुकड़े हैं। शेखर जैसे छोटे किसानों को लें तो उनकी शरूरतों के हिसाब से खेत बहुत ही छोटे पड़ते हैं। भारत के 80 प्रतिशत किसानों की यही हालत है। भारत मेें केवल 20 प्रतिशत किसान रामलिंगम जैसे बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे किसान गाँव की अध्िकतर शमीन पर खेती करते हैं। उनकी उपज का बहुत बड़ा भाग बाशार में बेचा जाता है। कइर् बड़े किसानों ने अन्य काम - ध्ंध्े भी शुरू कर दिए हैं जैसे दुकान चलाना, सूद पर पैसा देना, छोटी - छोटी पफैक्िट्रयाँ चलाना इत्यादि। ऊपरदिएगएआँ़ाकादेेहु कडें ेखतए क्या आप यह कह सकते हैं कि भारत वें फ अध्िकतर किसान गरीब है? आपकी राय मंेइस स्िथति को बदलने वे फ लिए क्या किया जा सकता है? हमने कलपट्टु में होने वाली खेती के बारे में पढ़ा। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के साथ - साथ लोग जंगल की उपज और पशुओं आदि पर निभर्र रहते हैं। उदाहरण के लिए मध्य भारत के वुफछ गाँवों में खेती और जंगल की उपजदोनों ही आजीविका के महत्त्वपूणर् साध्न हैं।महुआ बीनने, तेंदू के पत्ते इकट्टòा करने, शहद निकालने और इन्हें व्यापारियों को बेचने जैसे काम अतिरिक्त आय में मदद करते हैं। इसी तरह सहकारी समिति को या पास के शहर के लोगों को दूध् बेचना भी कइर् लोगों के लिए आजीविका कमाने का मुख्य साध्न है। समुद्रतटीय इलाकों में हम देखते हैं कि पूरे के पूरे गाँव मछली पकड़ने में लगे हुए हैं। आइए, अरुणा और पारिवेलन के जीवन के बारे में पढ़कर मछली पकड़ने वाले एक परिवार के बारे में थोड़ा और जानें। यह परिवार कलपट्टु के पास पुदुपेट नाम के गाँव में रहता है। ग्रामीण क्षेत्रा में आजीविका ध् 83 नागालैंड की सीढ़ीनुमा ख्ेाती यह एक गाँव है जिसका नाम चिजामी है। यह नागालैंड के पेफक िाले में है। इस गाँव में रहने वाले लोग चखेसंग समुदाय के हैं। वे ‘सीढ़ीनुमा’ खेती करते हैं। इसका मतलब है कि पहाड़ी कीढलाऊ शमीन को छोटे - छोटे सपाट टुकड़ों में बाँटा जाता है और उस शमीन को सीढि़यों के रूप में बदल दिया जाता है। प्रत्येक सपाट टुकड़े के किनारों कोऊपर उठा देते हैं जिससे पानी भरा रह पाए, यह चावल की खेती के लिए सबसे अच्छा है। चिजामी के लोगों के पास अपने - अपने खेत हैं, लेकिन वे इकट्टòे होकर एक - दूसरे के खेतों में भी काम करते हैं। वे छः से आठ लोगों का एक समूह बनाते हैं और इकऋे मिलकर पहाड़ के एक हिस्से पर घास - पतवार साप़फ करते हैं। जब दिन का काम खत्म हो जाता है तो सारा समूह इकऋेे बैठकर खाना खाता है। ऐसा कइर् दिनों तक चलता रहता है जब तक काम खत्म नहीं हो जाता। 84 ध् सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन अरुणा और पारिवेलन पुदुपेट कलपट्टु से श्यादा दूर नहीं है। यहाँ लोग मछली पकड़कर अपनी आजीविका चलाते हैं। उनके घर समुद्र के पास होते हैं और वहाँ चारों ओर जाल और ‘कैटामरैन’ ;मछुआरों की खास तरह की छोटी नावद्ध की पंक्ितयाँ दिखाइर् देती हैं। सुबह 7 बजे समुद्र किनारे बड़ी गहमागहमी रहती है। इस समय सारे कैटामरैन मछलियाँ पकड़ कर लौट आते हैं। मछली खरीदने और बेचने के लिए बहुत सारी औरतें इकट्टòी हो जाती हैं। मेरा पति पारिवेलन, मेरा भाइर् और जीजा आज बड़ी देर से लौटे। मैं बहुत परेशान हो गइर् थी। ये हमारे कैटामरैन में इकट्टेò ही समुद्र में जाते हैं। उन्होंने बताया कि आज वे तूपफान में पफँस गए थे। आज जो मछलियाँ पकड़ी गईं उनमें से मैंने परिवार के लिए कुछ मछलियाँ एक तरपफ उठा कर रख दीं। बाकी मैं नीलाम कर दूँगी। इस नीलामी से जो पैसा मुझे मिलता है वह चार भागों में बँट जाता है। तीन हिस्से उन तीन लोगों में बँट जाते हैं जो मछली पकड़ने जाते हैं, बाकी एक हिस्सा उसे मिलता है जिसकी नाव और जाल वगैरह होते हैं। चूँकि जाल, कैटामरैन और उसका इंजन हमारे हैं तो वह हिस्सा भी हमें ही मिल जाता है। हमने बैंक से उधर लेकर एक इंजन खरीदा है, जो कैटामरैन में लगा हुआ है। इससे ये लोग समुद्र में दूर तक जा पाते हैं और श्यादा मछलियाँ मिल जाती हैं। नीलामी में जो औरतें यहाँ से मछलियाँ खरीदती हैं वे टोकरे भर - भरकर पास के गाँवों में बेचने के लिए ले जाती हैं। कुछ व्यापारी भी हैं जो शहर की दुकानों के लिए मछलियाँ खरीदते हैं। मैं दोपहर 12 बजे तक ही नीलामी का काम निपटा पाती हूँ। शाम को मेरा पति और बाकी रिश्तेदार मिलकर जाल को सुलझाते हैं और उसकी मरम्मत करते हैं। कल सुबह - सुबह दो बजे वे पिफर समुद्र की तरपफ चल देंगे। हर साल माॅनसून के दौरान करीब चार महीने तक वे समुद्र में नहीं जा पाते स्थानीय बाशार में मछलियाँ क्योंकि यह मछलियों के प्रजनन का समय होता है। इन महीनों में हम व्यापारी से उधर लेकर अपना गुशारा चलाते हैं। इस कारण बाद में हमें मजबूरी में उसी व्यापारी को मछली बेचनी पड़ती है और हम खुद खुली नीलामी बेचती हुइर् मछुआरिनें नहीं कर पाते। वे खाली महीने काटना सबसे मुश्िकल होता है। पिछले साल सुनामी के कारण हमारा बड़ा नुकसान हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के साध्न ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपनी आय विभ्िान्न तरीकों से कमाते हैं। कुछ खेती - बाड़ी का काम करते हैं और कुछ अन्य काम करके अपनी आजीविका चलाते हैं। खेती में कइर् तरह के काम शामिल हैं, जैसे खेत तैयार करना, रोपाइर्, बुवाइर्, निराइर् और कटाइर्। प़फसल अच्छी होइसके लिए हम प्रकृति पर निभर्र हैं। इस तरह जीवन )तुओं के इदर् - गिदर् ही चलता है। बुवाइर् और कटाइर् के समय लोग कापफी व्यस्त रहते 86 ध् सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन हैं और दूसरे समय काम का बोझ कम रहता है। देश के अलग - अलग क्षेत्रों में ग्रामीण लोग अलग - अलग तरह की प़फसलें उगाते हैं। पिफर भी हम उनके जीवन की परिस्िथतियों में और उनकी समस्याओं में कापफी समानताएँ पाते हैं। लोग कैसे िांदगी बसर करते हैं और कितना कमा पाते हैं, यह इस बात पर निभर्र करता है कि वे जिस शमीन को जोतते हैं वह कैसी है। कइर् लोग उस शमीन पर मशदूरों के रूप में निभर्र हैं। श्यादातर किसान अपनी शरूरतों को पूरा करने और बाशार में बेचने के लिए भी प़फसलें उगाते हैं।। वुफछ किसानों को अपनी पफसल उन व्यापारियों को बेचनी पड़ती है जिनसे वे पैसा उधर लेते हैं। गुशर - बसर करने के लिए कइर् परिवारों को काम की खातिर उधर लेना पड़ता है या पिफर तब लेना पड़ता है जब उनके पास कोइर् काम नहीं रहता। ग्रामीण क्षेत्रों में वुफछ परिवार ऐसे हैं जो बड़ी - बड़ी शमीनों, व्यापार और अन्य काम - ध्ंधें पर पफल - पफूल रहे हैं। पिफर भी श्यादातर छोटे किसानों, खेतिहर मशदूरों, मछली पकड़ने वाले परिवारों और गाँव में हस्तश्िाल्प का काम करने वाले लोगों को पूरे साल रोजगार नहीं मिल पाता। अभ्यास 1आपने संभवतः इस बात पर ध्यान दिया होगा कि कलपट्टु गाँव के लोग खेती के अलावा और भी कइर् काम करते हैं। उनमें से पाँच कामों की सूची बनाइए। 2कलपट्टु में विभ्िान्न तरह के लोग खेती पर निभर्र हैं। उनकी एक सूची बनाइए। उनमें से सबसे गरीब कौन है और क्यों? 3कल्पना कीजिए कि आप एक मछली बेचने वाले परिवार की सदस्य हैं। आपका परिवार यह चचार् कर रहा है कि इंजन के लिए बैंक से उधर लें कि न लें। आप क्या कहेंगी? 4तुलसी जैसे गरीब ग्रामीण मशदूरों के पास अक्सर अच्छी श्िाक्षा, स्वास्थ्य की सुविधओं एवं अन्य साध्नों का अभाव होता है। आपने इस किताब की पहली इकाइर् में असमानता के बारे में पढ़ा। तुलसी और रामलिंगम के बीच का अंतर एक तरह की असमानता ही है। क्या यह एक उचित स्िथति है? आपके विचार में इसके लिए क्या किया जा सकता है? कक्षा में चचार् कीजिए। 5आपके अनुसार सरकार शेखर जैसे किसानों को कर से मुक्ित दिलाने में कैसे मदद कर सकती है? चचार् कीजिए। 6नीचे दी गइर् तालिका भरते हुए शेखर और रामलिंगम की स्िथतियों की तुलना कीजिएः खेती की हुइर् शमीन मशदूरों की शरूरत उधर की शरूरत प़फसल का बिकना उनके द्वारा किया गया अन्य काम