
25 अक्टूबर 1999 को पूवीर् पोटर् ब्लेयर के निकट थाइर्लैंड की खाड़ी में फ्अवदाबय् के कारण यह चक्रवात उत्पन्न हुआ और यह धीरे - ध्ीरे उत्तर - पश्िचमी दिशा में बढ़ा। गहन होकर इसने महाचक्रवात का रूप धरण कर लिया और 29 अक्टूबर को सुबह 10.30 बजे ओडिशा के इरेसामा एवं बालीवुफडा के बीच के क्षेत्रों को प्रभावित किया। इस महाचक्रवात ने भुवनेश्वर, कटक और 28 तटीय नगरों सहित ओडिशा के पूरे तट को बबार्द कर दिया। इससे लगभग 130 लाख लोग प्रभावित हुए। बहुत बड़ी संख्या में पशुओं की मौत हो गइर्। ़ धन, सब्िजयों एवं पफलों की खड़ी पफसलों का भारी नुकसान हुआ। ज्वारीय प्रोत्कषर् से उत्पन्न हुइर् लवणता के कारण कृष्िा योग्य विशाल भू - क्षेत्रा अनुपजाउफ हो गए। साल, सागवान एवं बाँस के बागान वाले विशाल भू - क्षेत्रा नष्ट हो गए। पारादीप एवं कोणाकर् के बीच स्िथत मैंग्रोव के जंगल लुप्त ही हो गए। ठंडी गमर् वायु वायु चक्रवाती वषार् आद्रर् वायु पवर्तीय वषार् गमर् वायु संवहनी वषार् चित्रा 4.5: वषार् के प्रकार 26हमारा पयार्वरण आद्रर्ता जब जल पृथ्वी एवं विभ्िान्न जलाशयों से वाष्िपत होता है, तो यह जलवाष्प बन जाता है। वायु में किसी भी समय जलवाष्प की मात्रा को ‘आद्रर्ता’ कहते हंै। जब वायु में जलवाष्प की मात्रा अत्यध्िक होती है, तो उसे हम आद्रर् दिन कहते हैं। जैसे - जैसे वायु गमर् होती जाती है, इसकी जलवाष्प धरण करने की क्षमता बढ़ती जाती है और इस प्रकार यह और अध्िक आद्रर् हो जाती है। आद्रर् दिन में, कपड़े सूखने में काप़् ाफी समय लगता है एवं हमारे शरीर से पसीना आसानी से नहीं सूखता और हम असहज महसूस करते हैं। जब जलवाष्प ऊपर उठता है, तो यह ठंडा होना शुरू हो जाता है। जलवाष्प संघनित होकर ठंडा होकर जल की बूँद बनाते हैं। बादल इन्हीं जल बँूदों का ही एक समूह होता है। जब जल की ये बूँदें इतनी भारी हो जाती हैं कि वायु में तैर न सवेंफ, तब ये वषर्ण के रूप में नीचे आ जाती हैं। आकाश में उड़ते हुए जेट हवाइर् जहाश अपने पीछे सप़् ोफद पथ चिÉ छोड़ते हैं। इनके इंजनों से निकली नमी संघनित हो जाती है। वायु के गतिमान न रहने की स्िथति में यह संघनित नमी कुछ देर तक पथ के रूप में दिखाइर् देती है। पृथ्वी पर जल के रूप में गिरने वाला वषर्ण, वषार् कहलाता है। श्यादातर भौम जल, वषार् जल से ही प्राप्त होता है। पौध्े जल संरक्षण में मदद करते हंै। जब पहाड़ी पाश्वो± से पेड़ काटे जाते हैं, वषार् जल अनावृत पहाड़ों से नीचे बहता है एवं निचले इलाकों में बाढ़ का कारण बनता है। ियाविध्ि आधर पर वषार् के तीन प्रकार होते हैं: संवहनी वषार्, पवर्तीय वषार् एवं चक्रवाती वषार् ;चित्रा 4.5द्ध।