Durva

चैथा पाठ गुब्बारे पर चीता फ्मैं तो शरूर जाउफँगा, चाहे कोइर् छु‘ी दे या न दे।य् बलदेव सब लड़कों को सरकस देखने चलने की सलाह दे रहा है। बात यह थी कि स्वूफल के पास एक मैदान में सरकस पाटीर् आइर् हुइर् थी। सारे शहर की दीवारों पर उसके विज्ञापन चिपका दिए गए थे। विज्ञापन में तरह - तरह के जंगली जानवर अजीब - अजीब काम करते दिखाए गए थे। लड़के तमाशा देखने के लिए ललचा रहे थे। पहला तमाशा रात को शुरू होने वाला था मगर हेडमास्टर साहब ने लड़कों को वहाँ जाने की मनाही कर दी थी। इश्ितहार बड़ा आकषर्क थाμ ‘आ गया है! आ गया है!’ ‘जिस तमाशे की आप लोग भूख - प्यास छोड़कर इंतशार कर रहे थे, वही बंबइर् सरकस आ गया है।’ ‘आइए और तमाशे का आनंद उठाइए। बड़े - बड़े खेलों के सिवा एक खेल और भी दिखाया जाएगा, जो न किसी ने देखा होगा और न सुना होगा।’ लड़कों का मन तो सरकस में लगा हुआ था। सामने किताबें खोले जानवरों की चचार् कर रहे थे। क्योंकर शेर और बकरी एक बतर्न में पानी पिएँगे! और इतना बड़ा हाथी पैरगाड़ी पर वैफसे बैठेगा? पैरगाड़ी के पहिए बहुत बड़े - बडे़ होंगे! तोता बंदूक छोड़ेगा! और बनमानुष बाबू बनकर मेश पर बैठेगा! बलदेव सबसे पीछे बैठा हुआ अपनी हिसाब की काॅपी पर शेर की तस्वीर खींच रहा था और सोच रहा था कि कल शनीचर नहीं, इतवार होता तो वैफसा मशा आता। बलदेव ने बड़ी मुश्िकल से वुफछ पैसे जमा किए थे। मना रहा था कि कब छु‘ी हो और कब भागूँ। हेडमास्टर साहब का हुक्म सुनकर वह जामे से बाहर हो गया। छु‘ी होते ही वह बाहर मैदान में निकल आया और लड़कों से बोला, फ्मैं तो जाउँफगा, शरूर जाउँफगा चाहे कोइर् छु‘ी दे या न दे।य् मगर और लड़के इतने साहसी न थे। कोइर् उसके साथ जाने पर राशी न हुआ। बलदेव अब अकेला पड़ गया। मगर वह बड़ा िाद्दी था, 18ध्दूवार् दिल में जो बात बैठ जाती, उसे पूरा करके ही छोड़ता था। शनीचर को और लड़के तो मास्टर के साथ गेंद खेलने चले गए, बलदेव चुपके से ख्िासककर सरकस की ओर चला। वहाँ पहुँचते ही उसने जानवरों को देखने के लिए एक आने का टिकट खरीदा और जानवरों को देखने लगा। इन जानवरों को देखकर बलदेव मन में बहुत झुँझलाया वह शेर है! मालूम होता है महीनों से इसे मलेरिया बुखार आ रहा हो। वह भला क्या बीस हाथ उँफचा उछलेगा! और यह सुंदर - वन का बाघ है? जैसे किसी ने इसका खून चूस लिया हो। मुदेर् की तरह पड़ा है। वाह रे भालू! यह भालू है या सूअर, और वह भी काना, जैसे मौत के चँगुल से निकल भागा हो। अलबत्ता चीता वुफछ जानदार है और एक तीन टाँग का वुफत्ता भी।यह कहकर बड़े शोर से हँसा। उसकी एक टाँग किसने काट ली? दुमकटे वुफत्ते तो देखे थे, पैरकटा वुफत्ता आज ही देखा! और यह दौडे़गा वैफसे? उसे अप़्ाफसोस हुआ कि गेंद छोड़कर यहाँ नाहक आया। एक आने पैसे भी गए। इतने में एक बड़ा भारी गुब्बारा दिखाइर् दिया। उसके पास एक आदमी खड़ा गुब्बारे पर चीता ध्19 चिल्ला रहा था - ‘आओ, चले आओ, चार आने में आसमान की सैर करो।’ अभी वह उसी तरपफ देख रहा था कि अचानक शोर सुनकर वह चैंक पड़ा। पीछे पिफरकर देखा तो मारे डर के उसका दिल काँप उठा। वही चीता न जाने किस तरह पिंजरे से निकलकर उसी की तरपफ दौड़ा चला आ रहा था। बलदेव जान लेकर भागा। इतने में एक और तमाशा हुआ। इधर से चीता गुब्बारे की तरपफ दौड़ा। जो आदमी गुब्बारे की रस्सी पकड़े हुए था, वह चीते को अपनी तरपफ आता देखकर बेतहाशा भागा। बलदेव को और वुफछ न सूझा तो वह झट से गुब्बारे पर चढ़ गया। चीता भी शायद उसे पकड़ने के लिए वूफदकर गुब्बारे पर जा पहुँचा। गुब्बारे की रस्सी छोड़कर तो वह आदमी पहले ही भाग गया था। वह गुब्बारा उड़ने के लिए बिलवुफल तैयार था। रस्सी छूटते ही वह उफपर उठा। बलदेव और चीता दोनों उफपर उठ गए। बात की बात में गुब्बारा ताड़ के बराबर जा पहुँचा। बलदेव ने एक बार नीचे देखा तो लोग चिल्ला - चिल्लाकर उसे बचने के उपाय बतलाने लगे। मगर बलदेव के तो होश उड़े हुए थे। उसकी समझ में कोइर् बात न आइर्। ज्यों - ज्यों गुब्बारा उफपर उठता जाता था चीते की जान निकली जाती थी। उसकी समझ में न आता था कि कौन मुझे आसमान की ओर लिए जाता है। वह चाहता तो बड़ी आसानी से बलदेव को चट कर जाता, मगर उसे अपनी ही जान की प्ि़ाफक्र पड़ी हुइर् थी। सारा चीतापन भूल गया था। आख्िार वह इतना डरा कि उसके हाथ - पाँव पूफल गए और वह प्ि़ ाफसलकर उलटा नीचे गिरा। शमीन पर गिरते ही उसकी हंी - पसली चूर - चूर हो गइर्। अब तक तो बलदेव को चीते का डर था। अब यह प्िाफक्र हुइर् कि गुब्बारा मुझे़कहाँ लिए जाता है। वह एक बार घंटाघर वफी मीनार पर चढ़ा था। उफपर से उसे नीचे के आदमी ख्िालौनों - से और घर घरौदों - से लगते थे। मगर इस वक्त वह उससे कइर् 20ध्दूवार् गुना उँफचा था। एकाएक उसे एक बात याद आ गइर्। उसने किसी किताब में पढ़ा था कि गुब्बारे का मुँह खोल देने से गैस निकल जाती है और गुब्बारा नीचे उतर आता है। मगर उसे यह न मालूम था कि मुँह बहुत धीरे - धीरे खोलना चाहिए। उसने एकदम उसका मुँह खोल दिया और गुब्बारा बड़े शोर से गिरने लगा। जब वह शमीन से थोड़ी उँफचाइर् पर आ गया तो उसने नीचे की तरपफ देखा, दरिया बह रहा था। पिफर तो वह रस्सी छोड़कर दरिया में वूफद पड़ा और तैरकर निकल आया। μप्रेमचंद गुब्बारे पर चीता ध्21 अभ्यास नाहक - बेकार में तमाशा - मनोरंजन दरिया - नदी इश्ितहार - विज्ञापन जानदार - ताकतवर बेतहाशा - तेशी से, बिना सलाह - मशवरा, राय इध्र - उध्र देखे आकषर्क - दूसरों का ध्यान प्ि़ाफव्रफ - ¯चता अपनी ओर खींचनेवाला दुदर्शा - बुरी हालत जामा - कपड़ा हिसाब - गण्िात 1. कहानी से क हेडमास्टर साहब ने बच्चों को सरवफस में जाने से क्यों मना किया होगा? ख सरवफस के बारे में कौन - कौन सी अपफवाहें पैफली हुइर् थीं?़ ग बलदेव सरवफस में जाकर निराश क्यों हो गया? घ बलदेव और चीता दोनों गुब्बारे पर उफपर उठते जा रहे थे। पिफर भी चीते ने बलदेव को कोइर् नुकसान क्यों नहीं पहुँचाया? घ कहानी के इस वाक्य पर ध्यान दोμ फ्इतने में उसे एक बड़ा भारी गुब्बारा दिखाइर् दियाय् तुम्हें क्या लगता है कि गुब्बारा भारी होता है? लेखक ने उसे भारी क्यों कहा है? 2. सोचो और बताओ क गुब्बारे में से हवा निकलने पर वह नीचे क्यों आने लगता है? ख स्वूफल में तुम्हें क्या - क्या करने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है? ग क्या तुमने अपने आस - पास के जानवरों की दुदर्शा देखी है? उसके बारे में बताओ। घ सरवफस में जानवरों के करतब दिखाए जाते हैं। उनके प्रति व्रूफरता बरती जाती है। क्या ऐसे सरवफस को मनोरंजन का साधन माना जा सकता है? सरवफस को स्वस्थ मनोरंजन का साधन बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए? 22ध्दूवार् 3. मुहावरे नीचे लिखे वाक्य पढ़ो। उनमें इस्तेमाल हुए मुहावरों को अपने ढंग से इस्तेमाल करके वुफछ और वाक्य बनाओ। क बलदेव के तो होश उड़े हुए थे। ख बलदेव के दिल में जो बात बैठ जातीऋ उसे पूरा करके ही छोड़ता। ग वह इतना डरा कि उसके हाथ - पाँव पूफल गए। घ ऐसा लगा जैसे किसी ने चीता का खून चूस लिया हो। घ बलदेव का दिल काँप उठा। 4. तुम्हारी बात क तुम्हारे स्वूफल से भागने के कौन - कौन से बुरे परिणाम हो सकते हैं? ख किसी चीश के प्रचार के लिए विज्ञापन का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? ग तुम भी सड़क सुरक्षा, प्रदूषण और श्िाक्षा के बारे में विज्ञापन बनाकर अपने मित्रा को दिखाओ तथा पूछो कि उसे तुम्हारा विज्ञापन पसंद आया या नहीं। कारण भी पूछो। 5. समझो अजीब - अजीब हिसाब - किताब धीर - धीरे जब - तब अभी - अभी खेल - तमाशा ज्यों - ज्यों भूख - प्यास चूर - चूर हंी - पसली

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