
अध्याय 7 जीवों में विविध्ता ;क्पअमतेपजल पद स्पअपदह व्तहंदपेउेद्ध क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे चारों ओर कितने प्रकार के जीव समूह पाए जाते हैं। सभी जीवधरी एक - दूसरे से किसी न किसी रूप में भ्िान्न हैं। आप स्वयं को और अपने एक मित्रा को ही लीजिए। ऽ क्या दोनों की लंबाइर् एकसमान है? ऽ क्या आपकी नाक बिलवुफल आपके मित्रा की नाक जैसी दिखती है? ऽ क्या आपकी और आपके मित्रा की हथेली का आकार समान है? यदि हम अपनी और अपने मित्रा की तुलना किसी बंदर से करंे, तो हम क्या देखेंगे? निश्िचत रूप से, हम पाते हैं कि हममें और हमारे मित्रों के बीच बंदर की अपेक्षा अध्िक समानताएँ हैं। परंतु जब हम अपनी तुलना गाय और बंदर दोनों से करते हैं, तब हम देखते हैं कि गाय की तुलना मेें बंदर और हममें अध्िक समानताएँ हैं। ियाकलाप ऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋ 7ण्1 ऽ हमने देसी और जसीर् गाय के बारे में सुना है। ऽ क्या एक देसी गाय जसीर् गाय जैसी दिखती है? ऽ क्या सभी देसी गायें एक जैसी दिखती हैं? ऽ क्या हम देसी गायों के झुंड में जसीर् गाय को पहचान सवेंफगे? ऽ पहचानने का हमारा आधर क्या होगा? अब हम लोगों को तय करना है कि कौन - से विश्िाष्ट लक्षण वांछित समूह के जीवों के लिए अिाक महत्वपूणर् हैं। इसके बाद हम यह भी तय करेंगे कि किन लक्षणों को छोड़ा जा सकता है। अब पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के विभ्िान्न समूहों के बारे में सोचंे। हम एक ओर जहाँ सूक्ष्मदशीर् से देखे जाने वाले बैक्टीरिया, जिनका आकार वुफछ माइक्रोमीटर होता है, वहीं दूसरी ओर 30 मीटर लंबे नीले ह्नेल या वैफलिप़फो£नया के 100 मीटर लंबे रेडवुड पेड़ भी पाए जाते हैं। वुफछ चीड़ के वृक्ष हशारों वषर् तक जीवित रहते हैं, जबकि वुफछ कीट जैसे मच्छरों का जीवनकाल वुफछ ही दिनों का होता है। जैव विविध्ता रंगहीन जीवधरियों, पारदशीर् कीटों और विभ्िान्न रंगों वाले पक्ष्िायों और पूफलों में भी पाइर् जाती है। हमारे चारों ओर की इस असीमित विभ्िान्नता को विकसित होने में लाखों वषर् का समय लगा है। इन सभी जीवधरियों को जानने और समझने के लिए हमारे पास समय का बहुत छोटा हिस्सा है, इसलिए उनके बारे में हम एक - एक कर विचार नहीं कर सकते हैं। इसकी जगह हम जीवधरियों की समानता का अध्ययन करेंगे, जिससे हम उनको विभ्िान्न वगो± में रख सकेंगे, पिफर विभ्िान्न वगो± व समूहों का अध्ययन करेंगे। जीवन के इन विभ्िान्न रूपों की विभ्िान्नता का अध्ययन करने के अनुरूप समूह बनाने के क्रम में, हमें यह सुनिश्िचत करना होगा कि वे कौन - से विश्िाष्ट लक्षण हैं, जो जीवधरियों में अध्िक मौलिक अंतर पैदा करते हैं। इसी पर जीवधरियों के मुख्य विस्तृत समूहों का निधार्रण निभर्र करेगा। इन समूहों में सेछोटे समूहों का निणर्य अपेक्षाकृत कम महत्वपूणर् लक्षणों के आधर पर किया जाएगा। प्रश्न 1ण् हम जीवधरियों का वगीर्करण क्यों करते हैं? 2ण् अपने चारों ओर पैफले जीव रूपों की विभ्िान्नता के तीन उदाहरण दें। 7ण्1 वगीर्करण का आधर क्या है? जीवों के समूहों के वगीर्करण का प्रयास प्राचीन समय से किया जाता रहा है। यूनानी विचारक अरस्तू ने जीवों का वगीर्करण उनके स्थल, जल एवं वायु में रहने के आधर पर किया था। यह जीवन को देखने का बहुत ही सरल किंतु भ्रामक तरीका है। उदाहरण के लिए, समुद्रों में रहने वाले जीवऋ जैसे - प्रवाल ;बवतंसद्ध, ह्नेल, आॅक्टोपस, स्टारपिफश और शाॅवर्फ। ये कइर् मायने में एक - दूसरे से काप़फी अलग हैं। इन सभी में एक मात्रा समानता इनका आवास है। अध्ययन एवं विचार के लिए इस आधर पर जीवधरियों को समूहों में बाँटना ठीक नहीं है। इसलिए हमें अब यह निणर्य करना है कि किन विश्िाष्ट अभ्िालक्षणों के आधर पर वृहद् वगर् का निमार्ण किया गया। उसके बाद हम अन्य लक्षणों के आधर पर किसी वगर् वफो उपसमूहों में बाँट सकते हैं। नए लक्षणों के आधार पर समूहों के भीतर इस तरह के वगीर्करण की प्रिया जारी रह सकती है। इस विषय में आगे बढ़ने से पहले हमें लक्षणों वफा अथर् समझना पड़ेगा। जब हम जीव के किसी विविध समूह को वगीर्वृफत करते हैं, तो सबसे पहले हमें यह जानना होता है कि इस समूह के सदस्यों में क्या - क्या समानताएँ हैं जिसके आधार पर वुफछ को एक साथ रखा जा सके? वास्तव में, यही उनका लक्षण और व्यवहार होता है या यह कहें कि यही उन जीवों का रूप और कायर् होता है। किसी जीव के लक्षण से तात्पयर् उस जीव का कोइर् विश्िाष्ट रूप या विश्िाष्ट कायर् है। उदाहरण के लिए, हममें से श्यादातर लोगों के एक हाथ में पाँच अंगुलियाँ होती हैं, जो एक लक्षण है। उसी तरह हमारे दौड़ने की क्षमता और बरगद के पेड़ के न दौड़ पाने की क्षमता भी एक लक्षण है। अब हम देखेंगे कि वुफछ लक्षणों को वैफसे अन्य की तुलना में ज्यादा मौलिक लक्षणों के रूप में वगीर्वृफत किया जाता है। हम विचार करें कि एक पत्थर की दीवार वैफसे बनती है। दीवार में प्रयोग में लाए गए पत्थर विभ्िान्न आकार - प्रकार के होते हैं। यहाँ ध्यान देने की बात है कि उफपर की ओर लगे पत्थरों का आकार - प्रकार नीचे के पत्थरों को प्रभावित नहीं करेगा, लेकिन निचले स्तर के पत्थरों के आकार से उनके उफपर वाले पत्थरों का आकार अवश्य प्रभावित होता है। यहाँ पर सबसे निचले स्तर पर लगे पत्थर, जीवों के उन लक्षणों के समान हैं जो जीवों के वृहद्तम वगर् को निधर्रित करते हैं। ये लक्षण जीव के दूसरे किसी भी संरचनात्मक तथा ियात्मक लक्षण से स्वतंत्रा होते हैं। लेकिन उसके बाद के स्तर के लक्षण पहले के स्तर के लक्षण पर तो निभर्र रहते हंै तथा बाद के स्तर के प्रकार को निधार्रित करते हैं। ठीक इसी तरह हम जीवों के वगीर्करण के लिए भी परस्पर संबंध्ी लक्षणों का एक पदानुक्रम बना लेते हैं। आजकल हम जीवों के वगीर्करण के लिए कोश्िाकाकी प्रकृति से प्रारम्भ करके विभ्िान्न परस्पर - संबंिात अभ्िालक्षणों को दृष्िटगत रखते हैं। आइए हम ऐसे लक्षणों पर गौर करें। ऽ एक यूवैफरियोटी कोश्िाका में वेंफद्रक समेत वुफछ झिल्ली से घ्िारे कोश्िाकांग होते हैं जिसके कारण कोश्िाकीय िया अलग - अलग कोश्िाकाओं में दक्षतापूवर्क होती रहती है। यही कारण है कि जिन कोश्िाकाओं में झिल्लीयुक्त कोश्िाकांग और वेंफद्रक नहीं होते हैं, उनकी जैव रासायनिक प्रियाएँ भ्िान्न होती हैं। इसका असर कोश्िाकीय संरचना के सभी पहलुओं पर पड़ता है। इसके अतिरिक्त वेंफद्रकयुक्त कोश्िाकाओं में बहुकोश्िाक जीव के निमार्ण की क्षमता होती है, क्योंकि वे किसी खास कायो± के लिए विश्िाष्टीवृफत हो सकते अनुसार विकसित होता है। यही लक्षण, वगीर्करण के हैं। इसलिए कोश्िाकीय संरचना और कायर् वगीर्करण दौरान उपसमूह और पिफर बाद में बड़े समूहों में का आधरभूत लक्षण है। ऽ प्रश्न उठता है कि क्या कोश्िाकाएँ अकेले पाइर् जाती हैं या पिफर एक साथ समूहों में पाइर् जाती हैं या अविभाज्य समूह में मिलती हैं? जो कोश्िाकाएँ एक साथ समूह बनाकर किसी जीव का निमार्ण करती हैं, उनमें श्रम - विभाजन पाया जाता है। शारीरिक संरचना में सभी कोश्िाकाएँ एकसमान नहीं होती हैं बल्िक कोश्िाकाओं के समूह वुफछ खास कायो± के लिए विश्िाष्टीवृफत हो जाते हैं। यही वजह है कि जीवों की शारीरिक संरचना में इतनी विभ्िान्नता होती है। इसी के परिणामस्वरूप, हम पाते हैं कि एक अमीबा और एक वृफमि की शारीरिक बनावट में कितना अंतर है। ऽ क्या जीव प्रकाश - संश्लेषण की िया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं? स्वयं भोजन बनाने की क्षमता रखने वाले और बाहर से भोजन प्राप्त करने वाले जीवों की शारीरिक संरचना में आवश्यक भ्िान्नता पाइर् जाती है। ऽ जो जीव प्रकाश - संश्लेषण करते हैं, उन्हें पौध्े कहते हैं। पौधें का शारीरिक संगठन किस स्तर का होता है? ऽ उसी तरह जंतुओं में किस तरह शरीर विकसित होता है और शरीर के विभ्िान्न अंग बनते हैं। इसके अतिरिक्त विभ्िान्न कायो± के लिए विश्िाष्ट अंग कौन - कौन से हैं। इन प्रश्नों के माध्यम से हम देख सकते हैं कि किस तरह विभ्िान्न लक्षणों का पदानुक्रम विकसित होता है। वगीर्करण के लिए पौधें के शरीर के विभ्िान्न लक्षण किस प्रकार जंतुओं से भ्िान्न होते हैं। इसकी वजह यह है कि पौधें का शरीर भोजन बनाने की क्षमता के अनुसार विकसित होता है, जबकि जंतुओं का शरीर बाहर से भोजन ग्रहण करने के विभाजन का आधर बनते हैं। श्न 1ण् जीवों के वगीर्करण के लिए सवार्ध्िक मूलभूत लक्षण क्या हो सकता है? ;ंद्ध उनका निवास स्थान प्र ;इद्ध उनकी कोश्िाका संरचना 2ण् जीवों के प्रारंभ्िाक विभाजन के लिए किस मूल लक्षण को आधर बनाया गया? 3ण् किस आधर पर जंतुओं और वनस्पतियों को एक - दूसरे से भ्िान्न वगर् में रखा जाता है? 7ण्2 वगीर्करण और जैव विकास सभी जीवधरियों को उनकी शारीरिक संरचना और कायर् के आधर पर पहचाना जाता है और उनका वगीर्करण किया जाता है। शारीरिक बनावट में वुफछ लक्षण अन्य लक्षणों की तुलना में ज्यादा परिवतर्न लाते हंै। इसमें समय की भी बहुत महत्वपूणर् भूमिका होती है। अतः जब कोइर् शारीरिक बनावट अस्ितत्व में आती है, तो यह शरीर में बाद में होने वाले कइर् परिवतर्नों को प्रभावित करती है। दूसरे शब्दों में, शरीर की बनावट के दौरान जो लक्षण पहले दिखाइर् पड़ते हैं, उन्हें मूल लक्षण के रूप में जाना जाता है। इससे यह पता चलता है कि जीवों के वगीर्करण का जैव विकास से कितना नजदीकी संबंध् है। जैव विकास क्या है? हम जितने भी जीवों को देखते हैं वे सभी निरंतर होने वाले परिवतर्नों की उस प्रिया के स्वाभाविक परिणाम हैं जो उनके बेहतर जीवन - यापन के लिए आवश्यक थे। जैव विकास की इस अवधारणा को सबसे पहले चाल्सर् डाविर्न ने 1859 में अपनी पुस्तक ‘‘दि ओरिजिन आॅपफ स्पीशीश’’ में दिया। जैव विकास की इस अवधरणा को वगीर्करण से जोड़कर देखने पर हम पाते हैं कि वुफछ जीव समूहों विज्ञान की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक कोइर् खास परिवतर्न नहीं हुआ है। लेकिन वुफछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में पयार्प्त परिवतर्न दिखाइर् पड़ते हैं। पहले प्रकार के जीवों को आदिम अथवा निम्न जीव कहते हैं, जबकि दूसरे प्रकार के जीवों को उन्नत अथवा उच्च जीव कहते हैं। लेकिन ये शब्द उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि इससे उनकी भ्िान्नताओं का ठीक से पता नहीं चलता है। इसके बजाय हम इनके लिए पुराने जीव और नये जीव शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। चँूकि विकास के दौरान जीवों में जटिलता की संभावना बनी रहती है, इसलिए पुरानेजीवों को साधरण और नये जीवों को अपेक्षाकृत जटिल भी कहा जा सकता है। श्न 1ण् आदिम जीव किन्हें कहते हैं? ये तथाकथ्िात उन्नत जीवों से किस प्रकार भ्िान्न हैं? 2ण् क्या उन्नत जीव और जटिल जीव एक होते हैं? प्र 7ण्3 वगीर्करण समूहों की पदानुक्रमित संरचना अन्सर्ट हेकेल ;1894द्ध, राबटर् व्िहटेकर ;1959द्ध, और कालर् वोस ;1977द्ध नामक जैव वैज्ञानिकों ने सारे सजीवों को जगत ;ज्ञपदहकवउद्ध नामक बड़े वगो± में विभाजित करने का प्रयास किया है। व्िहटेकर द्वारा प्रस्तावित वगीर्करण में पाँच जगत हैं - मोनेरा, प्रोटिस्टा, पंफजाइर्, प्लांटी और एनीमेलिया। ये समूह कोश्िाकीय संरचना पोषण के स्रोत और तरीके तथा शारीरिक संगठन के आधर पर बनाए गए हैं। वोस ने अपने वगीर्करण में मोनेरा जगत को आकीर्बैक्टीरिया और यूबैक्टीरिया में बाँट दिया, जो प्रयोग में लाया जाता है। पुनः विभ्िान्न स्तरों पर जीवों को उप समूहों मेंवगीर्कृत किया गया है। जैसे - जगत ;किंगडमद्ध - प़फाइलम ;जंतुद्ध/डिवीशन ;पादपद्ध वगर् ;क्लासद्ध गण ;आॅडर्रद्ध वुफल ;पैफमिलीद्ध वंश ;जीनसद्ध जाति ;स्पीशीशद्ध इस प्रकार, वगीर्करण के पदानुक्रम में जीवों को विभ्िान्न लक्षणों के आधर पर छोटे से छोटे समूहों में बाँटते हुए हम वगीर्करण की आधरभूत इकाइर् तक पहुँचते हैं। वगीर्करण की आधरभूत इकाइर् जाति ;स्पीशीशद्ध है। अतः किन जीवों को हम एक जाति के जीव वफहेंगे? एक ही जाति के जीवों में बाह्य रूप से काप़फी समानता होती है तथा वे जनन कर सकते हैं। व्िहटेकर द्वारा प्रस्तुत जगत वगीर्करण की पाँच प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं - 7ण्3ण्1 मोनेरा इन जीवों में ना तो संगठित वेंफद्रक और कोश्िाकांग होते हैं और न ही उनके शरीर बहुकोश्िाक होते हैं। इनमें पाइर् जाने वाली विविधता अन्य लक्षणों पर निभर्रकरती है। इनमें वुफछ में कोश्िाका भ्िािा पाइर् जाती हैतथा वुफछ में नहीं। कोश्िाका भ्िािा के होने या न होने के कारण मोनेरा वगर् के जीवों की शारीरिक संरचना में आए परिवतर्न तुलनात्मक रूप से बहुकोश्िाक जीवोंमें कोश्िाका भ्िािा के होने या न होने के कारण आए परिवतर्नों से भ्िान्न होते हैं। पोषण के स्तर पर ये स्वपोषी अथवा विषमपोषी दोनों होे सकते हैं। उदाहरणाथर् - जीवाणु, नील - हरित शैवाल अथवा सायनोबैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा। वुफछ उदाहरणों को चित्रा 7.1 में दिखाया गया है। स्िथर बीजाणु बैक्टीरिया हेटरोसिस्ट एनाबीना चित्रा 7ण्1रू मोनेरा 7ण्3ण्2 प्रोटिस्टा इसमें एककोश्िाक, यूवैफरियोटी जीव आते हैं। इस वगर्के वुफछ जीवों में गमन के लिए सीलिया, फ्रलैजेला, नामक संरचनाएँ पाइर् जाती हैं। ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं। उदाहरणाथर्, एककोश्िाक शैवाल, डाइएटम, प्रोटोजोआ इत्यादि। उदाहरणों के लिए चित्रा 7.2 देखें। सीलिया अमीबा युग्लीना चित्रा 7ण्2रू प्रोटोशोआ 7ण्3ण्3 पंफजाइऱ्कवकों की वुफछ प्रजातियाँ नील - हरित शैवाल ;साइनोबैक्टीरियाद्ध के साथ स्थायी अंतस±बंध् बनाती ये विषमपोषी यूवैफरियोटी जीव हैं। ये पोषण के लिए सड़े गले काबर्निक पदाथो± पर निभर्र रहते हैं, इसलिए इन्हें हैं, जिसे सहजीविता कहते हैं। ऐसे सहजीवी जीवों मृतजीवी कहा जाता है। इनमें से कइर् अपने जीवन की को लाइकेन कहा जाता है। ये लाइकेन अक्सर पेड़ों विशेष अवस्था में बहुकोश्िाक क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। की छालों पर रंगीन ध्ब्बों के रूप में दिखाइर् देते हैं। प़फंजाइर् अथवा कवक में काइटिन नामक जटिल शकर्रा 7ण्3ण्4 प्लांटी की बनी हुइर् कोश्िाका भ्िािा पाइर् जाती है। उदाहरणाथर्, यीस्ट, मशरूम। उदाहरण के लिए चित्रा 7.3 देखें। इस वगर् में कोश्िाका भ्िािा वाले बहुकोश्िाक यूवैफरियोटी जीव आते हैं। ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश - संश्लेषण के लिए क्लोरोपि़फल का प्रयोग करते हैं। इस वगर् में सभी पौधें को रखा गया है। चूँकि पौधे और जंतु सवार्िाक दृष्िटगोचर होते हैं, अतः इन उपवगो± की चचार् बाद में ;खंड 7.4द्ध में करेंगे। चित्रा 7ण्3रू पंफजाइऱ् प्रोवैफरियोटी यूवैफरियोटी एककोश्िाक बहुकोश्िाक प्रोटिस्टा कोश्िाका भ्िािा सहित कोश्िाका भ्िािा रहित प्रकाशसंश्लेषण नहीं करने वाले प्रकाशसंश्लेषण करने में सक्षम एनिमेलिया पंफजाइर् प्लांटी चित्रा 7ण्4रू पाँच जगत वगीर्करण 7ण्3ण्5 एनिमेलिया इस वगर् में ऐसे सभी बहुकोश्िाक यूवैफरियोटी जीवआते हैं, जिनमें कोश्िाका भ्िािा नहीं पाइर् जाती है। इस वगर् के जीव विषमपोषी होते हैं। इस उपवगर् की चचार् हम बाद में ;खंड 7.5द्ध में करेंगे। श्न 1ण् मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वगीर्करण के मापदंड क्या हैं? प्र 2ण् प्रकाश - संश्लेषण करने वाले एककोश्िाक यूवैफरियोटी जीव को आप किस जगत में रखेंगे? 3ण् वगीर्करण के विभ्िान्न पदानुक्रमों में किस समूह में सवार्ध्िक समान लक्षण वाले सबसे कम जीवों को और किस समूह में सबसे ज्यादा संख्या में जीवों को रखा जाएगा? 7ण्4 प्लांटी पौधें में प्रथम स्तर का वगीर्करण इन तथ्यों पर आधारित है कि पादप शरीर के प्रमुख घटक पूणर्रूपेण विकसित एवं विभेदित हैं, अथवा नहीं। वगीर्करण का अगला स्तर पादप शरीर में जल और अन्य पदाथो± कोसंवहन करने वाले विश्िाष्ट ऊतकांे की उपस्िथति के आधर पर होता है। तत्पश्चात् वगीर्करण प्रिया के अंतगर्त यह देखा जाता है कि पौध्े में बीजधरण की क्षमता है अथवा नहीं। यदि बीजधरण की क्षमता है तो बीज पफल के अंदर विकसित है, अथवा नहीं। 7ण्4ण्1 थैलोप़फाइटा इन पौधों की शारीरिक संरचना में विभेदीकरण नहीं पाया जाता है। इस वगर् के पौधें को समान्यतया शैवाल कहा जाता है। ये मुख्य रूप से जल में पाए जाते हैं। उदाहरणाथर्, यूलोथ्िा्रक्स, स्पाइरोगाइरा, कारा इत्यादि ;चित्रा 7.5 देखेंद्ध। यूलोथ्िा्रक्स क्लैडोपफोरा कोश्िाका भ्िािा क्लोरोप्लास्ट पायरीनाॅयड वेंफद्रक जीवद्रव्य अल्वा स्पाइरोगाइरा कारा चित्रा 7ण्5रू थैलोप़फाइटा ;शैवालद्ध 7ण्4ण्2 ब्रायोप़फाइटा इस वगर् के पौधें को पादप वगर् का उभयचर कहाजाता है। यह पादप, तना और पत्तों जैसी संरचना में विभाजित होता है। इसमें पादप शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक जल तथा दूसरी चीशों के संवहन के लिए विश्िाष्ट उफतक नहीं पाए जाते हैं। उदाहरणाथर्,माॅस ;फ्रयूनेरियाद्ध, मावे±फश्िाया ;चित्रा 7.6 देखेंद्ध। 7ण्4ण्3 टेरिडोप़फाइटा इस वगर् के पौधें का शरीर जड़, तना तथा पत्ती में विभाजित होता है। इनमें शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक जल तथा अन्य पदाथो± के संवहन के लिएसंवहन ऊतक भी पाए जाते हैं। उदाहरणाथर् - मासीर्लिया, प़फनर्, हाॅसर् - टेल इत्यादि। थैलोप़फाइटा, ब्रायोप़फाइटा और टेरिडोप़फाइटा में नग्न भ्रूण पाए जाते हैं, जिन्हें बीजाणु ;ेचवतमद्ध कहते हैं। इन तीन समूह के पौधें में जननांग अप्रत्यक्ष होते हैं तथा इनमें बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है। अतः ये िप्टोगैम कहलाते हैं। दूसरी ओर, वे पौध्े जिनमें जनन उफतक पूणर् विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन प्रिया के पश्चात् बीज उत्पन्न करते हैं, पैफनरोगैम कहलाते हैं। पत्ती स्पोरोकापर् तना जड़ मासीर्लिया प़फनर् चित्रा 7ण्7रू वुफछ टेरिडोपफाइट बीज के अंदर भ्रूण के साथ संचित खाद्य पदाथर् होता है, जिसका उपयोग भ्रूण के प्रारंभ्िाक विकास एवं अंवुफरण के समय होता है। बीज की अवस्था के आधर पर इस वगर् के पौधें को पुनः दो वगो± में विभक्त किया जाता है। जिम्नोस्पमर्ः नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधे एंजियोस्पमर्ः पफल के अंदर ;बंदद्ध बीज उत्पन्न करने वाले पौधे। 7ण्4ण्4 जिम्नोस्पमर् यह शब्द दो ग्रीक शब्दों जिम्नो तथा स्पमार् से मिल कर बना है, जिसमें जिम्नो का अथर् है नग्न तथा स्पमार् का अथर् है बीज अथार्त् इन्हें नग्नबीजी पौधे भी कहा जाता है। ये पौधे बहुवषीर् सदाबहार तथा काष्ठीय होते हैं। उदाहरणाथर् - पाइनस तथा साइकस ;चित्रा 7.8 देखेंद्ध। चित्रा 7ण्8रू वुफछ नग्नबीजी ;जिम्नोस्पमर्द्ध 7ण्4ण्5 एंजियोस्पमर् यह दो ग्रीक शब्दों ‘एंजियो और स्पमार्’ से मिलकर बना है। एंजियो का अथर् है ढका हुआ और स्पमार् का अथर् है बीज, अथार्त् इन पौधें के बीज पफलों के अंदर ढके होते हैं। इनके बीजों का विकास अंडाशय के अंदर होता है, जो बाद में पफल बन जाता है। इन्हें पुष्पी पादप भी कहा जाता है। इनमें भोजन का संचय या तो बीजपत्रों में होता है या पिफर भ्रूणपोष में। बीजपत्रों की संख्या के आधर पर एंजियोस्पमर् वगर् को दो भागों में बाँटा गया है - एक बीजपत्रा वाले पौधांे को एकबीजपत्राी और दो बीजपत्रा वाले पौधंे को द्विबीजपत्राी कहा जाता है ;चित्रा 7.9 एवं 7.10 देखेंद्ध। पौधें के वगीर्करण का आलेख चित्रा 7.11 में दशार्या गया है। चित्रा 7ण्9रू एकबीजपत्राी ;पैपिफयोपेडिलमद्ध चित्रा 7ण्10रू द्विबीजपत्राी ;आइपोमियाद्ध पादप पादप शरीर बिना विभेदन के विभेदित पादप शरीर थैलोप़फाइटा बिना संवहनी ऊतक के संवहनी ऊतक सहित ब्रायोप़फाइटा बीज रहित बीज उत्पादित करने वाले ;पैफनरोगैमद्ध टेरिडोप़फाइटा नग्नबीजी पफलों में बंद बीज वाले जिम्नोस्पमर् एंजियोस्पमर् दो बीजपत्रा वाले बीज एक बीजपत्रा वाले बीज चित्रा 7ण्11रू पादपों का वगीर्करण ियाकलाप ऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋ 7ण्2 ऽ भ्िागोए हुए चने, गेहूँ, मक्का, मटर और इमली के बीज लीजिए। भीगे हुए बीज जल अवशोषण के कारण नरम हो जाते हैं। इन बीजों को दो भाग में बाँटने का प्रयास कीजिए। क्या इनमें सभी के बीज पफटकर दो बराबर भागों में बँट जाते हैं? ऽ जिन बीजों में दो दालें दिखाइर् देती हैं, वे द्विबीजपत्राी और जो नहीं पूफटते और दालें नहीं दिखाइर् देती, वे एकबीजपत्राी कहलाते हैं।अब इन पौधें की जड़ों, पिायों और पूफलों को देखें - ऽ क्या ये जड़ें मूसला हैं या पिफर रेशेदार? ऽ क्या पत्ितयों में समानांतर अथवा जालिकावत् श्िारा विन्यास है? ऽ इन पौधें के पूफलों में कितनी पंखुडि़याँ हैं? ऽ क्या आप एक बीजपत्राी और द्विबीजपत्राी पौधें के और अध्िक लक्षण अपने अवलोकन के आधर पर लिख सकते हैं? प्रश्न 1ण् सरलतम पौधें को किस वगर् में रखा गया है? 2ण् टेरिडोप़फाइट और पैफनरोगै म में क्या अंतर है? 3ण् जिम्नोस्पमर् और एंजियोस्पमर् एक - दूसरे से किस प्रकार भ्िान्न हैं? 7ण्5 एनिमेलिया इस वगर् में यूवैफरियोटी, बहुकोश्िाक और विषमपोषी जीवों को रखा गया है। इनकी कोश्िाकाओं में कोश्िाकाभ्िािा नहीं पाइर् जाती। अध्िकतर जंतु चलायमान होते हैं। शारीरिक संरचना एवं विभेदीकरण के आधर पर इनका आगे वगीर्करण किया गया है। 7ण्5ण्1 पोरीपेफरा पोरीपेफरा का अथर् - छिद्र युक्त जीवधारी है। ये अचल जीव हैं, जो किसी आधर से चिपके रहते हैं। इनके जीवों में विविधता पूरे शरीर में अनेक छिद्र पाए जाते हैं। ये छिद्र शरीर में उपस्िथत नाल प्रणाली से जुड़े होते हैं, जिसके माध्यम से शरीर में जल, आॅक्सीजन और भोज्य पदाथो± का संचरण होता है। इनका शरीर कठोर आवरण अथवा बाह्य कंकाल से ढका होता है। इनकीशारीरिक संरचना अत्यंत सरल होती है, जिनमें ऊतकों का विभेदन नहीं होता है। इन्हें सामान्यतः स्पांज के नाम से जाना जाता है, जो बहुधा समुद्री आवास में पाए जाते हैं। उदाहरणाथर्, साइकॅान, यूप्लेक्टेला, स्पांजिला इत्यादि। वुफछ उदाहरण चित्रा 7.12 में दशार्ए गए हैं। यूप्लेक्टेला साइकॅान चित्रा 7ण्12रू पोरिपेफरा 7ण्5ण्2 सीलेंटरेटा ये जलीय जंतु हैं। इनका शारीरिक संगठन ऊतकीय स्तर का होता है। इनमें एक देहगुहा पाइर् जाती है। इनका शरीर कोश्िाकाओं की दो परतों ;आंतरिक एवं बाह्य परतद्ध का बना होता है। इनकी वुफछ जातियाँ समूह में रहती हैं, ;जैसे - कोरलद्ध और वुफछ एकाकी होती है ;जैसे - हाइड्राद्ध। उदाहरणाथर्, हाइड्रा, समुद्री एनीमोन, जेलीपिफश इत्यादि ;चित्रा 7.13 में देखेंद्ध। स्पशर्क स्पशर्क समुद्री एनीमोन हाइड्रा चित्रा 7ण्13रू सीलेंटरेटा 7ण्5ण्3 प्लेटीहेल्िमन्थीज पूवर्वण्िार्त वगो± की अपेक्षा इस वगर् के जंतुओं की शारीरिक संरचना अध्िक जटिल होती है। इनका शरीर द्विपाश्वर्सममित होता है अथार्त् शरीर के दाएँ और बाएँ भाग की संरचना समान होती है। इनका शरीर त्रिाकोरक ;ज्तपचसवइसंेजपबद्ध होता है अथार्त्इनका ऊतक विभेदन तीन कोश्िाकीय स्तरों से हुआ है। इससे शरीर में बाह्य तथा आंतरिक दोनों प्रकार के अस्तर बनते हैं तथा इनमें वुफछ अंग भी बनते हैं। इनमें वास्तविक देहगुहा का अभाव होता है जिसमें सुविकसित अंग व्यवस्िथत हो सवेंफ। इनका शरीर पृष्ठधरीय एवं चपटा होता है। इसलिए इन्हें चपटे वृफमि भी कहा जाता है। इनमें प्लेनेरिया जैसे वुफछ स्वछंद जंतु तथा लिवरफ्रलूक, जैसे परजीवी हैं। उदाहरण के लिए चित्रा 7.14 देखें। शाख्िात जठर आँख संवहनी गुहा टेपवमर्प्लेनेरिया लिवरफ्रलूक चित्रा 7ण्14रू वुफछ प्लेटीहेल्िमन्थीज 7ण्5ण्4 निमेटोडा ये भी त्रिाकोरक जंतु हैं तथा इनमें भी द्विपाश्वर् सममिति पाइर् जाती है, लेकिन इनका शरीर चपटा ना होकर बेलनाकार होता है। इनके देहगुहा को वूफटसीलोमकहते हैं। इसमें ऊतक पाए जाते हैं परंतु अंगतंत्रा पूणर् विकसित नहीं होते हैं। इनकी शारीरिक संरचना भी त्रिाकोरिक होती है। ये अध्िकांशतः परजीवी होते हैं। परजीवी के तौर पर ये दूसरे जंतुओं में रोग उत्पन्न करते हैं। उदाहरणाथर् - गोल वृफमि, पफाइलेरिया वृफमि, पिन वृफमि इत्यादि। वुफछ उदाहरण चित्रा 7.15 में दिखाए गए हैं। चित्रा 7ण्15रू वुफछ निमेटोड ;एस्कहेल्िमन्थीजद्ध 7ण्5ण्5 एनीलिडा एनीलिड जंतु द्विपाश्वर्सममित एवं त्रिाकोरिक होते हैं। इनमें वास्तविक देहगुहा भी पाइर् जाती है। इससे वास्तविक अंग शारीरिक संरचना में निहित रहते हैं। अतः अंगों में व्यापक भ्िान्नता होती है। यह भ्िान्नता इनके शरीर के सिर से पूँछ तक एक के बाद एक खंडित रूप में उपस्िथत होती है। जलीय एनीलिड अलवण एवं लवणीय जल दोनों में पाए जाते हैं। इनमें संवहन, पाचन, उत्सजर्न और तंत्रिाका तंत्रा पाए जाते हैं। ये जलीय और स्थलीय दोनों होते हैं। उदाहरणाथर्, केंचुआ, नेरीस, जोंक इत्यादि ;चित्रा 7.16 देखेंद्ध। स्पशर्क 7ण्5ण्6 आथ्रार्ेपोडा यह जंतु जगत का सबसे बड़ा संघ है। इनमें द्विपाश्वर् सममिति पाइर् जाती है और शरीर खंडयुक्त होता है। इनमें खुला परिसंचरण तंत्रा पाया जाता है। अतः रुिार वाहिकाओं में नहीं बहता। देहगुहा रक्त से भरी होती है। इनमें जुड़े हुए पैर पाए जाते हैं। वुफछ सामान्य उदाहरण हैं - झींगा, तितली, मक्खी, मकड़ी, बिच्छू केकड़े इत्यादि ;चित्रा 7.17 देखेंद्ध। जीवों में विविधता तितली एरेनिया ;मकड़ीद्ध ;तिलचट्टाðद्ध स्कोलोपंेड्रा ;शतपादद्ध चित्रा 7ण्17रू वुफछ आथ्रोर्पोड जंतु 7ण्5ण्7 मोलस्का इनमें भी द्विपाश्वर्सममिति पाइर् जाती है। इनकी देहगुहा बहुत कम होती है तथा शरीर में थोड़ा विखंडन होता है। अध्िकांश मोलस्क जंतुओं में कवच पाया जाता है। इनमें खुला संवहनी तंत्रा तथा उत्सजर्न के लिए गुदेर् जैसी संरचना पाइर् जाती है। उदाहरणाथर्, घोंघा, सीप इत्यादि ;चित्रा 7.18 देखेंद्ध। घोंघा चित्रा 7ण्18रू वुफछ मोलस्क जंतु 101 7ण्5ण्8 इकाइनोडमेर्टा ग्रीक में इकाइनाॅस का अथर् है, जाहक ;हेजहाॅगद्ध तथा डमार् का अथर् है, त्वचा। अतः इन जंतुओं की त्वचा काँटों से आच्छादित होती है। ये मुक्तजीवी समुद्री जंतु हैं। ये देहगुहायुक्त त्रिाकोरिक जंतु हैं। इनमें विश्िाष्ट जल संवहन नाल तंत्रा पाया जाता है, जो उनके चलन में सहायक हैं। इनमें वैफल्िसयम काबोर्नेट का कंकाल एवं काँटे पाए जाते हैं। उदाहरणाथर् - स्टारपि़फश, समुद्री अ£चन, इत्यादि ;चित्रा 7.19 देखेंद्ध। इकाइनाॅस ;समुद्री अ£चनद्ध ऐस्टीरिऐस ;तारा मछलीद्ध चित्रा 7ण्19रू वुफछ इकाइनोडमर् जंतु 7ण्5ण्9 प्रोटोकाॅडेर्टा ये द्विपाश्वर्सममित, त्रिाकोरिक एवं देहगुहा युक्त जंतु हैं। इसके अतिरिक्त ये शारीरिक संरचनाओं के वुफछ नए लक्षण दशार्ते हैं, जैसे कि नोटोकाॅडर्। ये नए लक्षण इनके जीवन की वुफछ अवस्थाओं में निश्िचत रूप से उपस्िथत होती है। नोटोकाॅडर् छड़ वफी तरह की एक लंबी संरचना है जो जंतुओं के पृष्ठ भाग पर पाइर्जाती है। यह तंत्रिाका ऊतक को आहार नाल से अलग करती है। यह पेश्िायों के जुड़ने का स्थान भी प्रदान करती है जिससे चलन में आसानी हो। प्रोटोकाॅडेर्ट जंतुओं में जीवन वफी सभी अवस्थाओं में नोटोकाॅडर् नहीं उपस्िथत रह सकता है। ये समुद्री जंतु हैं। उदाहरणाथर्, बैलैनाग्लोसस, हडर्मेनिया, एम्िपफयोक्सस, इत्यादि ;चित्रा 7.20 देखेंद्ध। काॅलरक क्लोम छिद्र पृष्ठीय जननपख मध्य पृष्ठीय उभार यकृतीय सीका यकृतीय क्षेत्रा चित्रा 7ण्20रू एक प्रोटोकाॅडेर्ट ;बै़लैनाग्लोससद्ध 7ण्5ण्10 वटीर्ब्रेटा ;कशेरुकीद्ध इन जंतुओं में वास्तविक मेरुदंड एवं अंतःकंकाल पाया जाता है। इस कारण जंतुओं में पेश्िायों का वितरण अलग होता है एवं पेश्िायाँ कंकाल से जुड़ी होती हैं, जो इन्हें चलने में सहायता करती हैं। वटीर्ब्रेट द्विपाश्वर्सममित, त्रिाकोरिक, देहगुहा वालेजंतु हैं। इनमें ऊतकों एवं अंगों का जटिल विभेदन पाया जाता है। सभी कशेरुकी जीवों में निम्नलिख्िात लक्षण पाए जाते हैं कृ ;पद्ध नोटोकाॅडर् ;पपद्ध पृष्ठनलीय कशेरुक दंड एवं मेरुरज्जु ;पपपद्ध त्रिाकोरिक शरीर ;पअद्ध युग्िमत क्लोम थैली ;अद्ध देहगुहा वटीर्ब्रेटा को पाँच वगो± में विभाजित किया गया हैकृ 7ण्5ण्10 ;पद्ध मत्स्य ये मछलियाँ हैं, जो समुद्र और मीठे जल दोनों जगहों पर पाइर् जाती हैं। इनकी त्वचा शल्क ;ेबंसमेद्ध अथवा प्लेटों से ढकी होती है तथा ये अपनी मांसल पूँछ का प्रयोग तैरने के लिए करती हैं। इनका शरीर धारारेखीय होता है। इनमें श्वसन िया के लिए क्लोम पाए जाते हैं, जो जल में विलीन आॅक्सीजन का उपयोग करते हैं। ये असमतापी होते हैं तथा इनका हृदय द्विकक्षीय होता है। ये अंडे देती हैं। वुफछ मछलियों में कंकाल केवल उपास्िथ का बना होता हैऋ जैसे - शावर्फ। अन्य प्रकार की मछलियों में कंकाल अस्िथ का बना होता हैऋ जैसे - ट्युना, रोहू। उदाहरण के लिए चित्रा 7.21;ंद्ध तथा 7.21;इद्ध देखें। सिनकिरोपस स्प्लेंडिडस टेरोइस वोलिटंस कालोपफाइरीन जोरडानी ;मैन्डारिन पिफशद्ध ;लाॅयन पिफशद्ध ;ऐंग्लर पिफशद्ध स्कॅालियोडाॅन ;डाॅग पिफशद्ध चित्रा 7ण्21 ;ंद्धरू वुफछ मत्स्य पंख की तरह अंस पख पूँछ एनाबास ;क्लाइं¯बग पचर्द्ध श्रोण्िा पख एक्सोसीटस ;उड़न मछलीद्ध चित्रा 7ण्21 ;इद्धरू वुफछ मत्स्य 7ण्5ण्10 ;पपद्ध जल - स्थलचर ;।उचीपइपंद्ध ये मत्स्यों से भ्िान्न होते हैं क्योंकि इनमें शल्क नहीं पाए जाते। इनकी त्वचा पर श्लेष्म ग्रंथ्िायाँ पाइर् जाती हैं तथा हृदय त्रिाकक्षीय होता है। इनमें बाह्य कंकाल नहीं होता है। वृक्क पाए जाते हैं। श्वसन क्लोम अथवा पेफपफड़ों द्वारा होता है। ये अंडे देने वाले जंतु हैं। ये जल तथा स्थल दोनों पर रह सकते हैं। उदाहरण - मेंढक, सैलामेंडर, टोड इत्यादि ;चित्रा 7.22 देखेंद्ध। सैलामेंडर राना टिगि्रना ;साधारण मेंढकद्ध हाइला ;वृक्ष मेंढकद्ध चित्रा 7ण्22रू वुफछ जल - स्थलचर जंतु 7ण्5ण्10 ;पपपद्ध सरीसृप 7ण्5ण्10 ;पअद्ध पक्षी ये असमतापी जंतु हैं। इनका शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है। इनमें श्वसन पेफपफड़ों द्वारा होता है। हृदयसामान्यतः त्रिाकक्षीय होता है, लेकिन मगरमच्छ का हृदय चार कक्षीय होता है। वृक्क पाया जाता है। ये भीअंडे देने वाले प्राणी हैं। इनके अंडे कठोर कवच से ढके होते हैं तथा जल - स्थलचर की तरह इन्हें जल मेंअंडे देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। उदाहरणाथर् - कछुआ, साँप, छिपकली, मगरमच्छ ;चित्रा 7.23 देखेंद्ध। घरेलू छिपकली ;हेमिडैक्टाइलसद्ध उड़न छिपकली ;ड्रैकोद्ध चित्रा 7ण्23रू वुफछ सरीसृप ये समतापी प्राणी हैैं। इनका हृदय चार कक्षीय होता है। इनके दो जोड़ी पैर होते हैं। इनमें आगे वाले दो पैर उड़ने के लिए पंखों में परिवतिर्त हो जाते हैं। शरीर परों से ढका होता है। श्वसन पेंफपफड़ों द्वारा होता है। इस वगर् में सभी पक्ष्िायों को रखा गया है ;उदाहरण के लिए चित्रा 7.24 देखेंद्ध। सपेफद स्टोवर्फ ;सिकोनिया सिकोनियाद्ध आॅस्िट्रच ;स्ट्रथ्िायो वैफमेलसद्धु नर गुच्छेदार बत्तख ;आयथ्िाया फ्रयुलिगुलाद्ध कौआ चित्रा 7ण्24रू वुफछ पक्षी 7ण्5ण्10 ;अद्ध स्तनपायी ये समतापी प्राणी हैं। हृदय चार कक्षीय होता है। इस वगर् के सभी जंतुओं में नवजात के पोषण के लिए दुग्ध ग्रंथ्िायाँ पाइर् जाती हैं। इनकी त्वचा पर बाल, स्वेद और तेल ग्रंथ्िायाँ पाइर् जाती हैं। इस वगर् के जंतु श्िाशुओं को जन्म देने वाले होते हैं। हालांकि, वुफछ जंतु अपवाद स्वरूप अंडे भी देते हैं जैसे इकिड्ना, प्लेटिपस। कंगारू जैसे वुफछ स्तनपायी में अविकसित बच्चे मासूर्पियम नामक थैली में तब तक लटके रहते हैं जब तक कि उनका पूणर् विकास नहीं हो जाता है। वुफछ उदाहरण चित्रा 7.25 में दिखाए गए हैं। ह्नेल चूहा मनुष्य बिल्ली चमगादड़ चित्रा 7ण्25रू वुफछ स्तनपायी प्रश्न 1ण् पोरीफ्ऱफेरा और सिलेंटरेटा वगर् के जंतुओं में क्या अंतर है? 2ण् एनीलिडा के जंतु, आथ्रोर्पोडा के जंतुओं से किस प्रकार भ्िान्न हैं? 3ण् जल - स्थलचर और सरीसृप में क्या अंतर है? 4ण् पक्षी वगर् और स्तनपायी वगर् के जंतुओं में क्या अंतर है? 7ण्6 नामप(ति जीवों के वगीर्वृफत नाम की क्या आवश्यकता है? केरोलस लीनियस ;कालर्वाॅन लिनेद्धका जन्म स्वीडन में हुआ था। वे पेशे से डाॅक्टर थे लेकिन पौधें के अध्ययन में उनकी खासी दिलचस्पी थी। बाइर्स वषर् की आयु में पौधें पर उनका केरोलस लीनियस पहला शोध्पत्रा प्रकाश्िात हुआ। ;1707.1778द्ध एक धनी अध्िकारी के यहाँ नौकरी करते हुए उन्होंने अपने मालिक के बगीचे में पौधों की विविध्ता का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने सिस्टेमा नेचुरी नामक पुस्तक लिखी, जो आगे चलकर विभ्िान्न वगीर्करण प्रणालियों का आधर बनी। इस विषय पर उनके 14 शोध्पत्रा भी प्रकाश्िात हुए। उनके द्वारा दी गइर् वगीर्करण प्रणाली में पौधों को सरल क्रम में इस प्रकार व्यवस्िथत किया जा सकता है जिससे उनकी पहचान हो सके। ियाकलाप ऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋ 7ण्3 ऽ निम्नलिख्िात जंतुओं और पौधें के नाम जितनी भाषाओं में संभव हो सके आप बताएँ - 1ण् चीता 2ण् मोर 3ण् चींटी 4ण् नीम 5ण् कमल 6ण् आलू इनमें सभी के नाम भ्िान्न - भ्िान्न भाषाओं में अलग - अलग दिए गए हैं। इसलिए जब कोइर् एक भाषा में जीव की बात कर रहा हो तो हो सकता है कि दूसरी भाषा जानने वाला समझ ही न पाए। इस समस्या का हल वैज्ञानिकों ने सभी जीवों को एक वैज्ञानिक नाम देकर उसी प्रकार हल किया जैसे विभ्िान्न रासायनिक तत्वों को संकेत में निरूपित करके किया गया। इसी प्रकार किसी जीव का केवल एक ही वैज्ञानिक नाम होता है और पूरे संसार में वह उसी नाम से जाना जाता है। नामप(ति के लिए हम जिस वैज्ञानिक प(ति का प्रयोग करते हैं, वह सबसे पहले केरोलस लीनियस द्वारा अठारहवीं शताब्दी में शुरू की गइर्। वैज्ञानिक प्राणी कोश्िाकीय स्तर की संरचना ऊतक स्तर की संरचना बाह्य त्वचा एवं जठर त्वचा के वूफट देहगुहाधारी देहगुहाधारीबीच कोइर् देहगुहा नहीं निमेटोडा सीलेंटरेटा, प्लैटिहेल्िमन्थीश भ्रूण के विकास के समय एक अंतःस्तर की एक थैली से कोश्िाका से मेसोडमर् की देहगुहा का बनना कोश्िाका का विकास एनीलिडा, मोलस्का, आथ्रोर्पोडा इकाइनोडमेर्टा काॅडेर्टा लावार् में अवशेषी वयस्क में मेरूदंड द्वारा नोटोकाॅडर् का नोटोकाॅडर् की उपस्िथति प्रतिस्थापन वफशेरुकी प्रोटोकॅाडेर्टा शल्क का बाह्य वंफकाल,लावार् में क्लोम, अिाकतरशल्क का बाह्य वंफकाल, पंखों का बाह्य वंफकाल, बाल का बाह्य वंफकाल,अस्िथ/उपास्िथ का अंतः वयस्क में पेफपफड़े,जल के बाहर अंडे देना,बाह्य वफणर्, अिाकतर जल के बाहर अंडे देना वंफकाल, क्लोम द्वारा श्वसन श्लेष्मायुक्त त्वचा उड़ने की क्षमता श्िाशुओं को जन्म देने वाले मत्स्य जल - स्थलचर सरीसृप पक्षी स्तनपायी चित्रा 7ण्26रू जंतुओं का वगीर्करण नामप(ति प्रणाली जीवों की एक - दूसरे में पायी जाने वाली समानता और असमानता पर निभर्र करती है। हालांकि नामप(ति में हम जीव के वगीर्करण के सभी पदानुक्रम को ध्यान में नहीं रखते हैं, बल्िक केवल जीनस एवं स्पीशीश का ही ध्यान रखा जाता है। नामप(ति के लिए वुफछ विशेष बातों पर विचार किया जाता है, जैसे - 1.जीनस का नाम अंग्रेजी के बड़े अक्षर से शुरू होना चाहिए। 2.प्रजाति का नाम छोटे अक्षर से शुरू होना चाहिए। 3.छपे हुए रूप में वैज्ञानिक नाम इटैलिक से लिखे जाते हैं। 4.जब इन्हें हाथ से लिखा जाता है तो जीनस और स्पीशीश दोनों को अलग - अलग रेखांकित कर दिया जाता है। ियाकलाप ऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋऋ 7ण्4 किन्हीं पाँच जंतुओं और पौधें के वैज्ञानिक नाम का पता लगाइए। क्या इनके वैज्ञानिक नामों और सामान्य नामों में कोइर् समानता है? आपने क्या सीखा ऽ वगीर्करण जीवों की विविध्ता को स्पष्ट करने में सहायक होता है। ऽ जीवों को पाँच जगत में वगीर्वृफत करने के लिए निम्न विशेषताओं को ध्यान में रखा जाता है - ;ंद्ध कोश्िाकीय संरचना - प्रोवैफरियोटी अथवा यूवैफरियोटी ;इद्ध जीव का शरीर एककोश्िाक अथवा बहुकोश्िाक है। बहुकोश्िाक जीवों की संरचना जटिल होती है। ;बद्ध कोश्िाका भ्िािा की उपस्िथति तथा स्वपोषण की क्षमता। ऽ उपरोक्त आधर पर सभी जीवों को पाँच जगत में बाँटा गया है - मोनेरा, प्रोटिस्टा, कवक ;प़फंजाइर्द्ध, प्लांटी और एनीमेलिया। ऽ जीवों का वगीर्करण उनके विकास से संबंध्ित है। ऽ प्लांटी और एनिमेलिया को उनकी क्रमिक शारीरिक जटिलता के आधर पर वगीर्वृफत किया गया है। ऽ पौधें को पाँच वगो± में बाँटा गया है कृ शैवाल, ब्रायोपफाइटा, टेरिडोप़्ाफाइटा,़जिम्नोस्पमर् और एंजियोस्पमर्। ऽ जंतुओं को दस प़फाइलम में बाँटा गया है कृ पोरीपेफरा, सीलेंटरेटा, प्लेटीहेल्िमन्थीज़्ा,़निमेटोडा, एनीलिडा, आथ्रोर्पोडा, मोलस्का, इकाइनोडमेर्टा, प्रोटोकाॅडेर्टा और काॅडेर्टा। ऽ द्विपद - नामप(ति जीवों की सही पहचान में सहायता करती है। ऽ द्विपद - नामप(ति में पहला नाम जीनस और दूसरा स्पीशीश का होता है। अभ्यास 1ण् जीवों के वगीर्करण से क्या लाभ है? 2ण् वगीर्करण में पदानुक्रम निधर्रण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे? 3ण् जीवों के पाँच जगत में वगीर्करण के आधर की व्याख्या कीजिए। 4ण् पादप जगत के प्रमुख वगर् कौन हैं? इस वगीर्करण का क्या आधर है? 5ण् जंतुओं और पौधें के वगीर्करण के आधरों में मूल अंतर क्या है? 6ण् वटीर्ब्रेटा ;कशेरुक प्राणीद्ध को विभ्िान्न वगो± में बाँटने के आधर की व्याख्या कीजिए।