Sanchayan-005

हामिद खाँ

एस. के. पोट्टेकाट

‘तक्षशिला (पाकिस्तान) में आगजनी1’-समाचार पत्र की यह खबर पढ़ते ही मुझे हामिद खाँ याद आया मैंने भगवान से विनती की, "हे भगवान! मेरे हामिद खाँ की दुकान को इस आगजनी से बचा लेना|"

अभी दो साल ही तो बीते हैं जब मैं तक्षशिला के पौराणिक खंडहर देखने गया था एक ओर कड़कड़ाती धूप, दूसरी ओर भूख और प्यास के मारे बुरा हाल हो रहा था रेलवे स्टेशन से करीब पौन मील की दूरी पर बसे एक गाँव की ओर निकल पड़ा|

हस्तरेखाओं के समान फैली गलियों से भरा तंग बाज़ार जहाँ कहीं नज़र पड़ी धुआँ, मच्छर और गंदगी से भरी जगहें ही दिखीं कहीं-कहीं तो सड़े हुए चमड़े की बदबू ने स्वागत किया लंबे कद के पठान अपनी सहज अलमस्त2 चाल में चलते नज़र आ रहे थे|

चारों तरफ़ चक्कर लगा लिया, पर अभी तक कोई होटल नज़र नहीं आया मन में विचार आया, इस गाँव में होटल की ज़रूरत ही क्या होगी?

अचानक एक दुकान नज़र आई जहाँ चपातियाँ सेंकी जा रही थीं चपातियों की सोंधी महक से मेरे पाँव अपने आप उस दुकान की ओर मुड़ गए अपने अनुभवों से मैंने जान लिया था कि परदेश में मुसकराहट ही रक्षक और सहायक होती है सो मुसकराते हुए मैं दुकान के अंदर घुस गया|


1. उपद्रवियों द्वारा आग लगाना 2. मस्त

एक अधेड़1 उम्र का पठान अँगीठी के पास सिर झुकाए चपातियाँ बना रहा था मैंने ज्योंही दुकान में प्रवेश किया, वह अपनी हथेली पर रखे आटे को बेलना छोड़कर मेरी ओर घूर-घूरकर देखने लगा मैं उसकी तरफ़ देखकर मुसकरा दिया|

फिर भी उसके चेहरे के हाव-भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ वह बेपरवाही के साथ तीखी नज़र से मुझे निहारे जा रहा था|

"खाने को कुछ मिलेगा?" मैंने धीमी आवाज़ में पूछा|

"चपाती और सालन2 है...वहाँ बैठ जाइए" उसने एक बेंच की तरफ़ इशारा करते हुए कहा|

मैं बेंच पर बैठकर रूमाल से हवा करने लगा! मैंने दुकान के भीतर झाँककर देखा बेतरतीबी3 से लीपा हुआ आँगन, धूल से सनी दीवारें एक कोने में खाट पड़ी हुई थी जिस पर एक दढ़ियल4 बुड्ढा गंदे तकिए पर कोहनी टेके हुए हुक्का पी रहा था हुक्के की गुड़गुड़ाहट में उसने अपने आपको ही नहीं, बल्कि सारे जहान को भुला रखा था|

"भाई जान, आप कहाँ के रहने वाले हैं?" चपाती को अंगारों पर रखते हुए उस अधेड़ उम्र के पठान ने पूछा|

"मालाबार के" मैंने जवाब दिया उसने यह नाम नहीं सुना था आटे को हाथ में लेकर गोलाकार बनाते हुए पूछा-"यह हिंदुस्तान में ही है न?"

"हाँ, भारत के दक्षिणी छोर-मद्रास के आगे|"

"क्या आप हिंदू हैं?"

"हाँ, एक हिंदू घर में जन्म लिया है|"

उसने एक फ़ीकी मुसकराहट के साथ फिर पूछा, "आप मुसलमानी होटल में खाना खाएँगे?"

"क्यों नहीं? हमारे यहाँ तो अगर बढ़िया चाय पीनी हो, या बढ़िया पुलाव खाना हो तो लोग बेखटके मुसलमानी होटल में जाया करते हैं"


1. ढलती उम्र का 2. गोश्त या सब्ज़ी का मसालेदार शोरबा 3. बिना किसी सलीके/तरीके के 4. दाढ़ी वाला

वह मेरी बात पर विश्वास नहीं कर पाया मैंने उसे गर्व के साथ बताया, "हमारे यहाँ हिंदू-मुसलमान में कोई फ़र्क नहीं है! सब मिल-जुलकर रहते हैं! भारत में मुसलमानों ने जिस पहली मस्जि़द का निर्माण किया था, वह हमारे ही राज्य के एक स्थान ‘कोडुंगल्लूर’ में है हमारे यहाँ हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे नहीं के बराबर होते हैं|"

उसने मेरी बात को बहुत ही ध्यानपूर्वक सुनकर कहा, "काश! मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता"

"क्या आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होता?" मैंने पूछा|

"मुझे आपकी बात पर तो पूरा यकीन हो गया है, पर मैं इस पर ईमान नहीं कर सकता कि आप हिंदू हैं क्योंकि यहाँ कोई भी हिंदू आपकी कही हुई बातों को इतने फंख1 के साथ किसी मुसलमान से नहीं कह सकता उसकी नज़र में हम आततायियों2 की औलादें हैं! हमें इस हालत में अपनी आन के लिए लड़ना पड़ता है यही हमारी नियति3 है" उसकी आवाज़ में सच्चाई कूट-कूटकर भरी थी|

"आपका शुभ नाम?" मैंने पूछा|

"हामिद खाँ, वो जो चारपाई पर बैठे हैं, वो मेरे अब्बाजान हैं अच्छा, आप दस मिनट तक इंतज़ार कीजिए, सालन अभी पक रहा है" मैं इंतज़ार करने लगा|

"अरे ओ अब्दुल!" हामिद खाँ ने ज़ोर से आवाज़ लगाई एक छोकरा दौड़ता हुआ आया जो आँगन में चटाई बिछाकर लाल मिर्च सुखा रहा था|

हामिद ने पश्तो4 भाषा में उसे कुछ आदेश दिया वह दुकान के पिछवाड़े की तरफ़ भागा|

"भाई जान, ज़ालिमों की इस दुनिया में शैतान भी लुक-छिपकर चलता है किसी पर धौंस जमाकर या मजबूर करके हम प्यार मोल नहीं ले सकते आप ईमान से मुहब्बत के नाते मेरे होटल में खाना खाने आए हैं ऐसी ईमानदारी और मुहब्बत का असर मेरे दिल में क्यों न पड़े? अगर हिंदू और मुसलमान ईमान से आपस में मुहब्बत करते तो कितना अच्छा होता" धीमे स्वर में बोलते हुए वह अँगीठी से आखिरी चपाती उतारकर खड़ा हो गया|


1. गर्व 2. अत्याचार करने वाले 3. भाग्य 4. एक प्राचीन

जो छोकरा पिछवाड़े की तरफ़ गया था, उसने एक थाली में चावल लाकर सामने रख दिया, हामिद खाँ ने तीन-चार चपातियाँ उसमें रख दीं, फिर लोहे की तश्तरी में सालन परोसा छोकरा साफ़ पानी से भरा एक कटोरा मेज़ पर रखकर चला गया मैंने बड़े चाव से1 भरपेट खाना खाया

"कितने पैसे हुए?" जेब में हाथ डालते हुए मैंने हामिद खाँ से पूछा!

मुसकराते हुए हामिद खाँ ने हाथ पकड़ लिया और बोला, "भाई जान, माफ़ कीजिएगा पैसा नहीं लूँगा, आप मेरे मेहमान हैं|"

"मेहमाननवाज़ी की बात अलग है एक दुकानदार के नाते आपको खाने के पैसे लेने पड़ेंगे आपको मेरी मुहब्बत की कसम|"

एक रुपये के नोट को मैंने हामिद खाँ की ओर बढ़ाया वह सकुचा रहा था उसने वह रुपया लेकर फिर मेरे हाथ में रख दिया|

"भाई जान मैंने खाने के पैसे आपसे ले लिए हैं, मगर मैं चाहता हूँ कि यह आप ही के हाथों में रहे आप जब पहुँचें तो किसी मुसलमानी होटल में जाकर इस पैसे से पुलाव खाएँ और तक्षशिला के भाई हामिद खाँ को याद करें"

वहाँ से लौटकर मैं तक्षशिला के खंडहरों की तरफ़ चला आया उसके बाद मैंने फिर कभी हामिद खाँ को नहीं देखा पर हामिद खाँ की वह आवाज़, उसके साथ बिताए क्षणों की यादें आज भी ताज़ा हैं उसकी वह मुसकान आज भी मेरे दिल में बसी है तक्षशिला के सांप्रदायिक दंगों की चिंगारियों की आग से हामिद और उसकी वह दुकान जिसने मुझ भूखे को दोपहर में छाया और खाना देकर मेरी क्षुधा2 को तृप्त3 किया था, बची रहे मैं यही प्रार्थना अब भी कर रहा हूँ|


1. शौक से 2. भूख 3. संतुष्ट, संतोष


बोध-प्रश्न

  1. लेखक का परिचय हामिद खाँ से किन परिस्थितियों में हुआ?
  2. ‘काश मैं आपके मुल्क में आकर यह सब अपनी आँखों से देख सकता’-हामिद ने ऐसा क्यों कहा?
  3. हामिद को लेखक की किन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था?
  4. हामिद खाँ ने खाने का पैसा लेने से इंकार क्यों किया?
  5. मालाबार में हिंदू-मुसलमानों के परस्पर संबंधों को अपने शब्दों में लिखिए
  6. तक्षशिला में आगजनी की खबर पढ़कर लेखक के मन में कौन-सा विचार कौंधा? इससे लेखक के स्वभाव की किस विशेषता का परिचय मिलता है?