Our Past -3

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रहीम

(1556 - 1626)

रहीम का जन्म लाहौर (अब पाकिस्तान) में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। इनकी नीतिपरक उक्तियों पर संस्कृत कवियों की स्पष्ट छाप परिलक्षित होती है। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे।

रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे। इनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते हैं। इनके नीतिपरक दोहे ज़्यादा प्रचलित हैं, जिनमें दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।

रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं: रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन। ये सभी कृतियाँ ‘रहीम ग्रंथावली’ में समाहित हैं।

प्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। ये दोहे जहाँ एक ओर पाठक को औरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, इसकी शिक्षा देते हैं, वहीं मानव मात्र को करणीय और अकरणीय आचरण की भी नसीहत देते हैं। इन्हें एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और उन स्थितियों का सामना होते ही इनका याद आना लाज़िमी है, जिनका इनमें चित्रण है।

 

दोहे


रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।

टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।

 

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।

सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।

 

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।

 

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।

जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।

 

दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं।।

 

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।

उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।।

 

नाद रीझि तन देत मृृग, नर धन हेत समेत।

ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत।।

 

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

 

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

 

रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।

बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय।।

 

रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।।


प्रश्न-अभ्यास

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए–

(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?

(ख) हमें अपना दुःख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?

(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?

(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?

(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता?

(च) अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा?

(छ) ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?

(ज) ‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।

2. निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए–

(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।

(ख) सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।

(ग) रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।

(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।

(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।

(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।

3. निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है–

(क) जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।

(ख) कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।

(ग) पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।

4. उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए–

उदाहरणः कोय – कोई, जे – जो

ज्यों ..................... कछु .....................

नहिं ..................... कोय .....................

धनि ..................... आखर .....................

जिय ..................... थोरे .....................

होय ..................... माखन .....................

तरवारि ..................... सींचिबो .....................

मूलहिं ..................... पिअत .....................

पिआसो ..................... बिगरी .....................

आवे ..................... सहाय .....................

ऊबरै ..................... बिनु .....................

बिथा ..................... अठिलैहैं .....................

परिजाय .....................

योग्यता-विस्तार

1. ‘सुई की जगह तलवार काम नहीं आती’ तथा ‘बिन पानी सब सून’ इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

2. ‘चित्रकूट’ किस राज्य में स्थित है, जानकारी प्राप्त कीजिए।

परियोजना कार्य

नीति संबंधी अन्य कवियों के दोहेे/कविता एकत्र कीजिए और उन दोहों/कविताओं को 

चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।

शब्दार्थ और टिप्पणियाँ

चटकाय चटकाकर

बिथा व्यथा, दुःख, वेदना

गोय छिपाकर

अठिलैहैं इठलाना, मज़ाक उड़ाना

सींचिबो सिंचाई करना, पौधों में पानी देना

अघाय - तृप्त

अरथ (अर्थ) मायने, आशय

थोरे - थोड़ा, कम

पंक कीचड़

उदधि - सागर

नाद - ध्वनि

रीझि - मोहित होकर

बिगरी - बिगड़ी हुई

फाटे दूध - फटा हुआ दूध

मथे - बिलोना, मथना

आवे - आना

निज - अपना

बिपति - मुसीबत, संकट

पिआसो - प्यासा

चित्रकूट - वनवास के समय श्री रामचंद्र जी सीता और लक्ष्मण के साथ कुछ समय तक चित्रकूट में रहे थे

 

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