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हलीम ने एक दिन
सोचा , आज मैं चाँद
पर जाऊँगा।
वह रॉकेट के
कारखाने में गया
और एक रॉकेट
पर बैठकर चल
दिया।
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चलते - चलते अँधेरा हो गया।
हलीम को डर लगने लगा।
उसको तो चाँद तक का
रास्ता पता नहीं था।
थोड़ी देर में उसने
चाँद देखा और
वह खुश हो गया।
109
चाँद पर हलीम को
खूब सारे गड्डे दिखे
और बड़े - बड़े पहाड़
भी। लेकिन वहाँ
कोई पेड़ या
जानवर नहीं थे।
लोग भी नहीं।
हलीम ने सोचा - ये
भी कोई जगह है !
चलो ' वापिस घर चलें।
वह रॉकेट में बैठकर
घर लौट आया।
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रास्ते में क्या देखा ?
हलीम को रास्ते में क्या - क्या दिखा होगा ?
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कहाँ जाओगे ?
हलीम चाँद पर जाना चाहता था। तुम कहाँ जाना चाहती हो ? कैसे जाओगी ?
कहाँ | कैसे
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डर
हलीम को अँधेरे से डर लगता था।
तुम्हें कब - कब डर लगता है ?
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फिर तुम क्या करते हो ?
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चाँद और सूरज का चित्र बनाओ।