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एक था चूहा। उस चूहे की सात पूछे थीं।
सब उसे चिढ़ाते – सात पूंछ का चूहा , सात पूंछ का चूहा।
तंग आकर चूहा गया नाई के पास। उसने नाई से कहा – ए नाई ,
मेरी एक पूँछ काट दो।
नाई ने एक पूँछ काट दी। अब उसके पास बची सिर्फ छह पूँछे।
अगले दिन जैसे ही चूहा बाहर निकला , सब उसे चिढ़ाने लगे
छह पूंछ का चूहा , छह पूंछ का चूहा।
चूहा फिर से तंग आ गया। वह गया नाई के पास।
उसने कहा – ए नाई , मेरी एक पूँछ और काट दो।
नाई ने एक पूंछ और काट दी। अब उसके पास बची
सिर्फ पाँच पूँछे।
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पर अगले दिन सब उसे फिर से चिढ़ाने लगे – पाँच पूँछ
का चूहा , पाँच पूँछ का चूहा।
चूहा गया नाई के पास - ए नाई , मेरी एक पूँछ और काट
दो। नाई ने एक पूंछ और काट दी। अब उसके पास बची
सिर्फ़ चार पूँछे।
पर सब उसे फिर से चिढ़ाने लगे – चार पूंछ का चूहा , चार
पूँछ का चूहा।
चूहा गया नाई के पास। नाई ने एक पूँछ और काट दी। अब
उसके पास बचीं सिर्फ तीन पूँछे।
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पर सब उसे चिढ़ाते तीन पूंछ का चूहा , तीन पूँछ का चूहा।
चूहा गया नाई के पास।
नाई ने एक पूँछ और काट दी। अब उसके पास बची दो
ही पूँछे।
पर सब उसे चिढ़ाते – दो पूँछ का चूहा , दो पूँछ का चूहा।
तो चूहा गया नाई के पास। नाई ने एक पूंछ और काट दी।
अब वह एक पूँछ का चूहा हो गया।
पर सब उसे चिढ़ाते। एक पूँछ का चूहा , एक पूँछ का चूहा।
तो चूहा गया नाई के पास। नाई ने आखिरी पूँछ भी काट
दी। अब पूँछ ही नहीं बची।
लेकिन फिर भी सब चूहे को चिढ़ाते – बिना पूँछ का चूहा ,
बिना पूँछ का चूहा।
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इस चित्र के बारे में बच्चों से बातचीत करें और उन्हें बताएँ कि
यह चित्र उड़ीसा की पट्टचित्र शैली में बना है।
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क्या होता अगर ?
चूहे ने बेकार ही सातों पूँछे कटवा लीं। सोचो तो , सात पूँछों
से वह कितना सारा काम कर लेता। बताओ ये क्या - क्या
कर पाते अगर -
• हाथी के पास चार सूड होती तो
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• बंदर की तीन पूँछ होती तो
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• ऊँट की गर्दन खूब - खूब लंबी होती तो ...
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• दूसरों की बातों में न आकर चूहा अपने दिमाग से काम लेता तो ....
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बिना पूँछ के , अब क्या होगा ?
रंग - बिरंगे कागज़ के टुकड़े करके चूहे के चित्र में चिपकाओ।
चूहा बिना पूँछ के क्या नहीं कर पाएगा ?
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वर्णमाला
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
क्ष त्र ज्ञ श्र
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पुराने बच्चे
हम पहली के बच्चे हैं अधरे पक्के कच्चे हैं। एक साल हो गया हमें इस विद्यालय में आए पिछले पूरे साल में हमने कितने मज़े उड़ाए। रंग बिरंगे कागज़ काटे काट काट चिपकाए खेले कूदे , पढ़े लिखे और ढेरों गाने गाए। पूरी छोले , इडली सांभर क्या क्या माल उड़ाए घर जा कर अपने स्कूल के किस्से खूब सुनाए। आने वाले साल में भी हम मिलकर मौज़ उड़ाएँगे नई नई चीजें सीखेंगे बढ़िया गाने गाएँगे तुम सब जो इस साल आए हो साथ हमारे खेलोगे साथ साथ गाने गाओगे संग संग झूले झूलोगे। धीरे धीरे साथ - साथ हम ऊपर चढ़ते जाएँगे नए नए बच्चों को ऐसे गाने सदा सुनाएँगे। |
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रचनाकार - जिनकी कविता और कहानियाँ हमने पढ़ीं
हरा समंदर गोपी चंदर -- विश्वदेव शर्मा
1. झूला -- रामसिंहासन सहाय मधुर
2. आम की कहानी -- देबाशीष देव
3. आम की टोकरी -- रामकृष्ण शर्मा खद्दर
4. पत्ते ही पत्ते -- वर्षा सहस्त्रबुद्धे
5. पकौड़ी -- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
6. मेरी रेल -- सुधीर
7. रसोईघर -- मधु पंत
8. चूहो ! म्याऊँ सो रही है -- धर्मपाल शास्त्री
मकड़ी - ककड़ी - लकड़ी -- अज्ञात
9. बंदर और गिलहरी -- प्रथम संस्था , दिल्ली से साभार
10. पगड़ी -- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
11. पतंग -- सोहनलाल द्विवेदी
12. गेंद - बल्ला -- निरंकारदेव सेवक
13. बंदर गया खेत में भाग -- सत्यप्रकाश कुलश्रेष्ठ
14. एक बुढ़िया -- निरंकारदेव सेवक
15. मैं भी -- वी . सुतेयेव
16. लालू और पीलू -- विनीता कृष्ण
17. चकई के चकदुम -- रमेश तैलंग
18. छोटी का कमाल -- सफ़दर हाश्मी
19. चार चने -- निरंकार देव सेवक
20. भगदड़ -- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
21. हलीम चला चाँद पर -- सी . एन . सुब्रमण्यम , एकलव्य
22. हाथी चल्लम चल्लम -- श्रीप्रसाद
23. सात पूँछ का चूहा -- रामनरेश त्रिपाठी
पुराने बच्चे -- सफ़दर हाश्मी