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3. म्याऊँ , म्याऊँ।।
सोई - सोई एक रात मैं एक रात मैं सोई - सोई रोई एकाएक बिलखकर एकाएक बिलखकर रोई रोती क्यों ना , मुझे नाक पर मुझे नाक की एक नोक पर काट गई थी चुहिया छूटी चुहिया काट गई चूँटी भर
सचमुच बहुत डरी चुहिया से चुहिया से सच बहुत डरी मैं खड़ी देखकर चुहिया को मैं लगी काँपने घड़ी - घड़ी मैं
सूझा तभी बहाना मुझको मुझको सूझा एक बहाना ज़रा डराना चुहिया को भी चुहिया को भी ज़रा डराना
कैसे भला डराऊँ उसको कैसे उसको भला डराऊँ धीरे से मैं बोली म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ
सुहानी की बात
- तुम्हें अपनी दोस्त सुहानी याद है न ? उसका एक दोस्त भी था। उस नटखट दोस्त का नाम लिखो। _____
इस कविता में बिल्ली की आवाज़ किसने निकाली है ? उसका भी नाम सोचो। _____
- अगर सुहानी इस लड़की की दोस्त होती तो क्या करती ?_____
डरना मत
- कविता में लड़की ने म्याऊँ की आवाज़ निकाली थी। म्याऊँ की आवाज़ सुनकर चुहिया पर क्या असर हुआ होगा ?
- तुम्हें सबसे ज़्यादा डर किससे लगता है ? तब तुम क्या करते हो ?
- अब बताओ तुम्हें अगर उसे डराना हो तो कैसे डराओगे ? क्या करोगे ?
बन गया वाक्य
नीचे लिखे शब्दों का वाक्यों में इस्तेमाल करो
- सूझा _____
- धीरे से _____
- सचमुच _____
- बहाना _____
नोक
चुहिया ने नाक की नोक पर चूँटी भरी।
किन - किन चीज़ों की नोक होती है ? लिखो और उसका चित्र भी बनाओ।
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चूंटी
चूंटी अँगूठे और उँगलियों से भरी जाती है। अँगूठे और उँगलियों से और कौन - कौन से काम किए जा सकते हैं ?
__ चुटकी बजाना ___ | _____ |
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शब्दों का उलट - फेर
सूझा मुझको एक बहाना मुझको सूझा एक बहाना
कविता में कही गई इस बात को बातचीत में इस तरह कहेंगे
मुझको एक बहाना सूझा।
- नीचे लिखी बातों को दो तरीकों से लिखो।
खड़ी गाय थी चौराहे पर | घुस गया शेर जंगल में |
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बिल्ली कैसे रहने आई मनुष्य के संग
बिल्ली अपने मौसरे भाई शेर के साथ जंगल में एक बड़े महल में रहती थी।
लेकिन वहाँ वह खुश नहीं थी।
( ओह !) बहन
आई ! भैया आई ! आ गई।
मेरे खाने का वक्त हो गया और तुमने अभी पत्तल भी नहीं बिछाई !
बस , अभी बिछाती हूँ , भैया !
बिल्ली तुरंत केले का पत्ता ले आई और शेर के सामने बिछा दिया।
हूँ ऽऽऽ ! आज सुबह मैंने भेड़िया पकड़ा था न , वह परोसो।
अहा !
मज़ा आ गया !
पेट भर गया बहन। साफ़ कर लो सब।
हाँ भैया।
लो , कुछ भी नहीं छोड़ा मेरे लिए। रोज़ यही होता है।
एक दिन शेर बीमार पड़ा और उसका हाल पूछने बहुत से जानवर आए।
बिल्ली ने जानवरों का स्वागत करने के लिए । हर एक से बात की।
लेकिन ठीक तभी
बहन।नाश्ता बना कर सबको दो। जाओ , जल्दी करो !
भैया , घर में आग तो है ही नहीं।
तो जाओ आदमियों की बस्ती से सुलगती लकड़ी ले आओ। भागो !
सो बिल्ली भागी , झाड़ियों और पत्थरों को फलाँगती हुई ।। गाँव में पहुँची।
वहाँ देखो।
डरो नहीं। ( हम तुम्हें कुछ करेंगे नहीं।
कितनी मुलायम और रेशमी !
जिस काम से बिल्ली आई थी , उसे भूल कर बहुत देर तक बच्चों नहीं मिला था। से लाड़ करवाती रही।
बिल्ली सोचने लगी।
मुझे कभी किसी से इतना प्यार नहीं मिला था ।
अचानक , ज़ोर की गरज से जंगल काँप उठा
यह शेर की दहाड़ थी।
हाय रे ! मुझे सुलगती लकड़ी ले जानी थी ! मैं भूल कैसे गई ?
बिल्ली एक घर में घुसी और एक सुलगती लकड़ी उठा कर झाड़ियों और पत्थरों को फलाँगती हुई भागी।।
अचानक फिर वही डरावनी गर्जन हुई।
और काँपती बिल्ली ने शेर को देखा , जिसकी आँखें गुस्से से लाल हो उठी थीं।
वह इतनी डर गई कि उसने जलती लकड़ी उसके पैरों के पास गिरा दी ...
और कूदती हुई वापस गाँव भागी।
देखो - बिल्ली वापस आ गई। ज़रूर शेर ने उसे बुरी तरह डरा दिया है।
हाँ हमारे पास रहो , नन्नी - मुन्नी। वापस मत जाओ। नहीं जाओगी न ? नहीं कभी नहीं।
और इस तरह से बिल्ली मनुष्य के संग रहने लगी।