7 बिन बोले बात

चुप तुम रहो , चुप हम रहें

चलो , एक खेल खेलें। इस खेल में सब को बिना बोले अपनी बात दूसरों तक पहुँचानी है। सभी बच्चे सात - सात के गुटों में बँट जाओ। इस खेल में तुम्हारी टीचर सभी गुटों को एक - एक कागज़ की पर्ची देगी। हर पर्ची में कुछ लिखा होगा। सभी अपने - अपने गुट में पर्ची पढ़ेंगे। सभी गुटों को पर्ची के अनुसार मूक - नाटक तैयार करना है। इस बात का ध्यान रखना है कि बिना बोले ही सभी को अपनी बात दूसरों तक पहुँचानी है। तुम्हें अपने शरीर के अलग - अलग अंगों से ही अपनी बात कहनी है , जैसे आँखों से , चेहरे के हाव - भाव से , हाथ के इशारों से। जब सबका नाटक तैयार हो जाए तब सभी गुट एक - एक करके आएँ और सबके सामने अपना मूक - नाटक करें। सभी देखने वालों को यह बुझना होगा कि नाटक में क्या हो रहा है।

कैसा लगा यह खेल ?

क्या बिना बोले नाटक करने में मुश्किल आई ?

अगले पृष्ठ पर दिए गए चित्र को देखो। चित्र में बच्चे इशारों से बातें कर रहे हैं।

  • क्या तुमने कभी किसी को इशारों से बातें करते देखा है ?
  • लोगों को इशारों में बात करने की ज़रूरत कब पड़ती है ?


जिन घटनाओं को बच्चे समझ पाएँ , जिनसे   स्वयं   को   जोड़   पाएँ , उनको   चुनें   ताकि   बच्चे   उन्हें   प्रभावी   ढंग   से   नाटक   के   रूप   में   प्रस्तुत   कर   पाएँ।  

हम में से ज़्यादातर लोग बोल और सुन सकते हैं। पर कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बोल और सुन नहीं सकते। ऐसे लोग दूसरों को अपनी बातें इशारों से समझाते हैं। दूसरों की बातें वे उनके होठों को देखकर समझने की कोशिश करते हैं।  

हम सब भी तो सब कुछ नहीं कर पाते। हममें से कोई गाता अच्छा है , तो कोई कविता अच्छी लिखती है। कुछ बच्चे झट से पेड़ पर चढ़ जाते हैं , तो कुछ बहुत तेज़ दौड़ते हैं। कोई चित्र अच्छे बनाता है , तो कोई सुर में गा पाती है। हम सब अपनी - अपनी तरह से खास हैं। स्कूल इसीलिए तो हैं कि सभी को एक - दूसरे से कुछ - - कुछ सीखने का मौका मिले। सबकी तरह जो बच्चे बोल - सुन नहीं सकते , वे भी स्कूल जाकर पढ़ते - लिखते हैं। इन बच्चों को स्कूल में इशारों से बातें करने की भाषा सिखाई जाती है।

आओ , अब एक बच्ची के बारे में पढ़ें जो सुन नहीं सकती। वह बच्ची फिर भी कितना कुछ कर पाती है।

मेरी बहन सुन नहीं सकती

मेरी एक बहन है।  

मेरी बहन सुन नहीं सकती।  

मेरी बहन अनूठी है। बहुत कम लोगों की बहनें ही मेरी बहन   की तरह होंगी।  

मेरी बहन पियानो बजा सकती है।  

वो पियानो के सुरों को   महसूस कर सकती है।  

वो उंगलियों से छूकर पता कर लेती है कि रेडियो चल रहा है या वो बंद है।  

कूदने , उछलने और कलाबाज़ियां लगाने में   उसे बड़ा आनंद आता है।  

मेरी बहन अब मेरे ही   स्कूल में जाने लगी है।

वैसे माँ , उसे घर पर होंठ पढ़ने की ट्रेनिंग देती हैं।  

क्लास में टीचर और अन्य बच्चे मेरी बहन के कहे   सभी शब्दों को समझ नहीं पाते हैं।  

वो   जो कुछ कहना चाहती है उसे वो अच्छी तरह नहीं कह पाती है।  

कल मैंने धूप का चश्मा पहन रखा था।

उसका फ्रेम काफ़ी बड़ा था।  

उसके काँच भी एकदम काले थे।  

जब मैं बोल रही थी तो मेरी बहन ने मुझ से चश्मा उतारने को कहा।

मेरी भूरी आँखें , उसकी भूरी आँखों से , न जाने क्या - क्या कहती हैं ?

जीन वाइटहाउस पीटरसन की   कविता के कुछ अंश

 ( अनुवाद : अरविंद गुप्ता )


इस पाठ से चर्चा हो सकती है कि हम सब में अलग - अलग   तरह   की   क्षमताएँ   हैं।   बच्चों   के   अपने   अनुभवों   को   शामिल   करते   हुए   इस   विषय   पर   संवेदनशीलता   बढ़ाई   जा   सकती   है।  

हम अपनी आँखों से बहुत कुछ कहते हैं। छोटे बच्चे तो बोलना सीखने से पहले ही कितना कुछ कहते हैं चेहरे से , हाथों से। वे कितना कुछ समझते भी हैं।

चेहरा है आईना

अपने आस - पास के छोटे बच्चों ( करीब 6-8 महीने के ) को देखो। वे अपनी बात बिना बोले कैसे कहते हैं ?

तुम सोच रहे होगे कि ये कैसे चेहरे हैं ? न इनमें आँखें हैं , न नाक और न ही मुँह। ये सब तो तुम्हें बनाने हैं , पर साथ में जो लिखा है , उसे पढ़कर।

यह आफ़ताब है। उसका खिलौना गिर कर टूट गया है। वह दुखी है। कैसा होगा उसका चेहरा ?

यह जूली है। कल ही उसकी छोटी बहन पैदा हुई है। वह बहुत खुश है। उसका चेहरा बनाओ।

यह यामिनी की अम्मा है। आज यामिनी ने जब रसोई से अचार की शीशी निकाली , शीशी गिर कर टूट गई। अम्मा का चेहरा बनाओ।

यह रेहाना है। रेहाना को कुत्तों से बहुत डर लगता है। वह खेल रही थी। अचानक उसके सामने एक कुत्ता आ गया। कैसा होगा रेहाना का चेहरा ?


बच्चों को अपनी भावनाओं को विभिन्न तरह से व्यक्त करने के लिए प्रेरित   करें।   बच्चों   में   इससे   उनकी   सृजनात्मक   क्षमता   का   विकास   होगा।  

चेहरे को देखकर हमें पता चल जाता है कि कौन दुखी है , कौन खुश है और कौन गुस्से में। तुम्हारे साथ कभी ऐसा हुआ है कि तुमने कोई शरारत की हो और माँ को तुम्हारा चेहरा देखकर ही समझ में आ गया हो ? नाच से भी हम अपनी बात दूसरों तक पहुँचा सकते हैं। नाच में इशारों और चेहरे   के हाव - भाव का इस्तेमाल करते हैं। इन्हें मुद्राएँ कहते हैं।

नीचे चित्र में नाच की कुछ मुद्राएँ दी हैं इन्हें देखो और करो। नाच की कुछ मुद्राएँ तुम भी सीखो और करके दिखाओ।

चित्रों को देखकर अनुमान लगाओ , इन पर अपने मन से कहानी बनाओ तथा अपने साथियों को सुनाओ और उस कहानी पर बातचीत भी करो।