13 छूकर देखें

मैं स्कूल से लौट रही थी। घर पर दो लोगों को अपनी बात सबसे पहले बताना चाहती थी। वे मेरी बातों से सबसे ज़्यादा खुश होते हैं।

पहली तो हैं मेरी नानी। वे उत्सुक रहती हैं मेरी बातें सुनने को। वे मेरे स्कूल से लौटने का इंतज़ार करती हैं। उनकी उम्र कुछ ज़्यादा है और उनकी कमर में भी दर्द रहता है। नानी ऊँचा सुनती हैं और दिखता भी कम है। रोज़ सुबह पापा उनको अखबार ज़ोर - ज़ोर से पढ़कर सुनाते हैं। नानी अपना बाकी सारा काम खुद करती हैं। उनकी कोई मदद करे , तो वे परेशान हो जाती हैं। दिखता है कम पर सब्जी काटने का बहुत शौक है। कहती हैं आजकल के बच्चों को सब्जी भी काटनी नहीं आती। मोटा - मोटा और टेढ़ा - मेढ़ा काटकर रख देते हैं।

दूसरे हैं , मेरे रवि भैया। रवि भैया हमारे घर में ही रहते हैं। मैं उन्हें रवि भैया कहती हूँ और वे मेरे पापा - मम्मी को कहते हैं भैया - भाभी। हमारा क्या रिश्ता है , मैं नहीं जानती पर वे हैं मेरे प्यारे भैया। वे मेरे सवालों का उत्तर देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। कभी नहीं कहा बाद में बताऊँगा।   रवि भैया कॉलेज में पढ़ाते हैं। कॉलेज के बच्चे उनकी बहुत इज्जत करते हैं। कुछ तो उनसे पढ़ने घर भी आते हैं। रवि भैया को संगीत सुनने , नाटकों में भाग लेने , दोस्तों के साथ घूमने और बातें करने का बहुत शौक है। खूब हँसते - हँसाते भी हैं।   भैया जब घर के बाहर जाते हैं , तब एक सफ़ेद छड़ी ले जाते हैं। उनको घर के अंदर घूमता देख कोई नहीं कह सकता कि उन्हें दिखता नहीं है।

वे अपना काम स्वयं करना चाहते हैं। कोई उन्हें ज़बरदस्ती सहारा दे तो वे नाराज़ हो जाते हैं। जब कभी उन्हें मदद की ज़रूरत होती है तो वे माँग लेते हैं।  

कुछ बच्चे रवि भैया से कॉलेज की किताबें ले जाते हैं और कुछ दिन बाद किताबों के साथ उन्हें टेप दे जाते हैं। रवि भैया टेप पर ही उन किताबों को सुनते रहते हैं। भैया के पास मोटे कागज़ की भी कई किताबें हैं , जिनमें बहुत सारे उभरे बिंदु हैं। उन पर वे हाथ फेरकर पढ़ते हैं।  

भैया को छेड़ने के लिए मैं कभी - कभी उनकी छड़ी की जगह बदल देती हूँ। वे परेशान तो होते हैं , पर नाराज़ नहीं। मैं उनकी प्यारी बहन सीमा जो ठहरी !

मैं अभी दरवाज़े पर पहुँची ही थी कि भैया बोल उठे क्यों सीमा , बहुत खुश हो ?

भैया मुझे ही नहीं , घर के सभी लोगों को उनकी आहट से पहचान लेते हैं। अक्सर यह भी भाँप लेते हैं कि मैं खुश हूँ या उदास।

भैया ! आखिर मैं फुटबॉल टीम में शामिल हो ही गई हूँ मैंने भैया को अपनी खबर सुनाई। भैया मेरी पीठ थपथपाकर बोले आज से तुम ही हो मेरी फुटबॉल की उस्ताद !

  • सीमा के पापा उसकी नानी को अखबार ज़ोर - ज़ोर से पढ़कर सुनाते हैं। तुम बड़ी उम्र वाले लोगों की कैसे मदद करते हो ?


  • जब कोई व्यक्ति बूढ़ा हो जाता है , तब उनको क्या - क्या तकलीफें हो सकती हैं ?


  • रवि भैया बिना देखे कई सारी बातें कैसे जान जाते हैं ?



कहानियों में बच्चे रुचि लेते हैं तथा कहानी के पात्रों की मदद से संवेदनशीलता पैदा की जा सकती है।

  • क्या तुम्हें कभी छड़ी की ज़रूरत पड़ी है ? कब ?


  • क्या तुम सोच सकते हो तुम्हें छड़ी की ज़रूरत कब पड़ सकती है ?


  • हम उन लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं , जिन्हें दिखता नहीं है ?


क्या तुम्हारे परिवार में कोई ऐसा सदस्य है , जो देख , बोल या सुन नहीं सकता ? क्या तुम किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हो ? इनके काम में लोग कैसे मदद करते हैं ?

तुमने कहानी में पढ़ा कि रवि भैया देख नहीं सकते। लेकिन वे अपने सारे काम खुद ही करते हैं। वे अलग तरह की किताबें पढ़ते हैं। वे कैसे अपना काम करते होंगे यह समझने के लिए पहले आँखें बंद करके पहचानने का खेल खेलो।  

आँख मिचौनी

समूह में एक बच्चा अपनी आँखों पर पट्टी बाँधे। फिर बाकी बच्चे एक - एक करके चुपचाप उस बच्चे के पास आएँ। आँखें बंद किया बच्चा दूसरे पर हाथ फेरकर उसे पहचानने की कोशिश करे। ध्यान रहे कोई आवाज़ न करे। क्यों ?

इसी तरह बारी - बारी सभी बच्चों की आँखों पर पट्टी बाँधो ताकि वे दूसरे बच्चों को पहचानने की कोशिश करें।


स्वयं को किसी और की परिस्थिति में रखने से हम उनकी समस्याओं को बेहतर समझ पाते हैं।

अब आपस में बात करो और बताओ

  • कितने बच्चे छूकर किसी को पहचान पाए ?
  •  कितने बच्चे आवाज़ सुनकर बच्चों को पहचान पाए ?
  • दोनों में से क्या ज़्यादा आसान था ?

  • छू कर बताओ तुम्हारे मुँह में कितने दाँत हैं। कक्षा में किन बच्चों के सबसे ज़्यादा दाँत हैं ? क्या - क्या चीजें तुम केवल छूकर जान सकते हो ?
  • आँखें बंद करके बैठो और सुनो। किस - किस की आवाजें सुनाई देती हैं ?
  • किन लोगों की आहट पहचान सकते हो ?
  • केवल सूंघ कर क्या तुम किसी व्यक्ति को या किसी जानवर को पहचान सकते हो ?

जो लोग देख नहीं सकते उनके पढ़ने का एक खास तरीका है , जिसे ब्रेल कहते हैं। ब्रेल एक मोटे कागज़ पर एक नुकीले औज़ार से बिंदु बना कर लिखा जाता है। ब्रेल कागज़ पर हाथ फेर कर पढ़ा जाता है कि उस पर क्या लिखा है।

आओ , अब यह देखते हैं कि बिना देखे किसी आकार को पहचानना मुश्किल है या आसान।

एक रेगमाल की शीट लो। उस पर मोटे ऊन या सुतली को दबाकर किसी चीज़ का आकार बनाओ। अपने दोस्त को कहो कि वह आँखें बंद करके , हाथ फेरकर बताए कि तुमने क्या आकार बनाया है।

  • अपने दोस्त से इसी तरह की रेगमाल शीट पर कोई आकार बनाने को कहो।
  • क्या यह उसके लिए पहचानना आसान था या मुश्किल ?

  अब तुम करके देखो कि क्या तुम हाथ फेर कर आकार पहचान सकें।

एक मोटे कागज़ का टुकड़ा लो। उस पर एक प्रकार या कील की नोक से कोई खास आकार बनाते हुए थोड़ी - थोड़ी दूरी पर छेद कर दो। तुम देखोगे कि कागज़ एक तरफ़ से उभरा है। अब अपने दोस्त से कहो कि वह आँखें बंद करके तुम्हारे कागज़ पर हाथ फेरे और बताए कि तुमने क्या बनाया है।

है न मुश्किल यह बताना ? सोचो कि लोग देखे बगैर कैसे इतना पढ़ लेते हैं।

आओ ब्रेल के बारे में जानें

तुमने देखा कि रवि भैया एक खास तरह की किताबें ही पढ़ सकते हैं। ये किताबें कैसे बनीं ? इसके बारे में सबसे पहले किसने सोचा होगा ?

आओ , इस ब्रेल के बारे में कुछ बातें जानें।

ब्रेल  

लुई ब्रेल फ्राँस देश का रहने वाला था। जब वह तीन साल का था , तब एक दिन अपने पिता के औज़ारों से खेल रहा था। अचानक एक नुकीले औज़ार से उसकी आँखों में चोट लग गई और आँखें खराब हो गई। उसे आँखों से दिखना बिल्कुल बंद हो गया। उसकी पढ़ने में बहुत रुचि थी। उसने हार नहीं मानी। वह पढ़ने के लिए तरह - तरह की तरकीबें सोचता रहता था। आखिर उसने ढूँढ़ ही लिया एक तरीका छूकर पढ़ने का। यह बाद में ब्रेल लिपि के नाम से जानी जाने लगी।

इस तरह की लिपि में मोटे कागज़ पर उभरे हुए बिंदु बने होते हैं। उभरे होने के कारण इन्हें छूकर पढ़ा जा सकता है। यह लिपि छः बिंदुओं पर आधारित होती है।

आजकल ब्रेल में नए - नए परिवर्तन हुए हैं , जिससे इसे पढ़ना - लिखना और भी आसान हो गया है। ब्रेल लिपि अब कंप्यूटर के द्वारा भी लिखी जा सकती है।


बच्चे ब्रेल लिपि को देखेंगे तो बेहतर ढंग से समझ पाएँगें। ब्रेल लिपि की जानकारी देते समय बच्चों को वास्तविक ब्रेल शीट दिखाना अच्छा रहेगा।