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15 आओ बनाएँ बर्तन
एक थी चिड़िया , नाम था फुदगुदी। एक था कौआ , नाम था भनाते। दोनों में गहरी दोस्ती थी। एक दिन भनाते ने कहा — अरे ओ फुदगुदी ! अगर पहले तूने अंडे दिए तो मैं खाऊँगा और अगर मैंने पहले अंडे दिए तो तू खा लेना। कबूल ?
फुदगुदी बोली — कबूल।
कुछ दिन बाद फुदगुदी ने अंडा दिया।
भनाते बोला — दे - दे अंडा , खाऊँ अंडा , दे - दे , दे - दे , दे - दे।
फुदगुदी गई डर। बोली – ठीक , भाई ठीक। पर पहले चोंच धो आओ नदी में।
भनाते गया नदी तट पर। बोला — हे नदी !
नदी बोली — क्या भाई भनाते ?
भनाते बोला — नदी - नदी पानी दे दे।
ठंडा पानी लाऊँगा ,
चोंच धोकर आऊँगा ,
फिर मैं अंडा खाऊँगा।
नदी बोली — पानी भरेगा कैसे ? कुल्हड़ तो ला।
भनाते गया कुम्हार के पास। बोला — रे कुम्हार !
कुम्हार बोला — क्या भाई भनाते ?
भनाते बोला — मुझे एक कुल्हड़ दे - दे।
कुल्हड़ लेकर जाऊँगा ,
ठंडा पानी लाऊँगा ,
चोंच धोकर आऊँगा ,
फिर मैं अंडा खाऊँगा।
कुम्हार बोला — कुल्हड़ बने कैसे ? पहले ला मिट्टी खदान से।
भनाते गया मिट्टी की खदान पर।
बोला — रे मिट्टी - खदान।
मिट्टी - खदान बोला — क्या भाई भनाते ?
भनाते बोला — मिट्टी - खदान मुझे मिट्टी दे - दे।
मिट्टी लेकर जाऊँगा ,
कुल्हड़ मैं बनवाऊँगा ,
ठंडा पानी लाऊँगा ,
चोंच धोकर आऊँगा ,
फिर मैं अंडा खाऊँगा।
मिट्टी - खदान बोला — खोदें मिट्टी कैसे ?
पहले ला खुरपी लोहार से।
भनाते गया लोहार के पास। बोला — रे लोहार !
लोहार बोला — क्या भाई भनाते ?
भनाते बोला — लोहार मुझे एक खुरपी दे - दे।
खुरपी लेकर जाऊँगा ,
मिट्टी मैं खुदवाऊँगा ,
कुल्हड़ मैं बनवाऊँगा ,
ठंडा पानी लाऊँगा ,
फिर मैं अंडा खाऊँगा।
लोहार बोला – ले - ले खुरपी प्यार से , पर लाना वापिस याद से।
खुरपी लेकर भनाते गया खदान पर। चिकनी मिट्टी खोदी और कुम्हार को दे दी। कुम्हार ने कुल्हड़ बनाया। कौए ने उसमें पानी भरा और धो ली अपनी चोंच। फिर दौड़ लगाई फुदगुदी का अंडा खाने को।
इसी बीच फुदगुदी चिड़िया का अंडा फूट कर चूज़ा बाहर आ गया था और बच्चा फुर्र हो गया था भनाते कौए की पहुँच से बहुत दूर।
( अन्नपूर्णा सिन्हा द्वारा भोजपुरी में रचित कहानी का हिंदी रूपांतर )
इस कहानी पर नाटक करने में बच्चों को बहुत मज़ा आएगा और क्रियाओं का क्रम समझने में भी सहायता मिलेगी। बच्चों को अपने सृजनात्मक विचारों को बताने के पूरे मौके दें। स्वयं क्रियाकलाप करने के लिए प्रेरित करें।
- कौए को कुल्हड़ की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
- एक कुल्हड़ बनाने में किन - किन लोगों ने कौए की मदद की ?
- कुल्हड़ बनाने के लिए कुम्हार को किस - किस सामान की ज़रूरत पड़ी ?
- क्या तुम्हारे घर में मिट्टी के बर्तन हैं ? कौन - कौन से ?
अगर तुम्हें कोई चिकनी मिट्टी दे , तो क्या तुम कोई बर्तन बना पाओगे ?
मिट्टी का लड्डू , लड्डू से कटोरी
चिकनी मिट्टी को गूंध कर एक बड़ा - सा लड्डू बनाओ। इस लड्डु में गड्डा बनाकर उसे कटोरी जैसा रूप दो। अपनी कटोरी को सुखाओ और सजाओ। इसमें अपने मन की चीजें रखो।
मिट्टी का साँप , साँप का बर्तन
चिकनी मिट्टी को पानी से गूंध लो। थोड़ी मिट्टी को पानी में घोल कर अलग रख लो। यह घोल मिट्टी के दो टुकड़ों को आपस में जोड़ने के काम आएगा।
गुँधी हुई मिट्टी का कुछ भाग लेकर उसे मोटी रोटी की तरह चपटा कर लो। यह बर्तन का तला बन गया। बाकी गुँधी हुई मिट्टी को साँप जैसा लंबा बना लो।
चित्र में देखो और मिट्टी से बने साँप को तले पर चिपकाकर बर्तन बनाओ।
मिट्टी की रोटी , रोटी का बर्तन
चित्र को देखकर इस तरह से बर्तन बनाओ।
- अगर इन बर्तनों में पानी डालकर रातभर रखो , तो क्या होगा ?
- हम अपने घर या स्कूल में मटके में पानी रखते हैं। वह मटका पानी से गल क्यों नहीं जाता ?
- क्या तुमने कभी ईंट या बर्तनों को भट्टी में पकाते देखा है ?
- अगर हम सबके पास केवल मिट्टी के बर्तन होते और सारे टूट या गल जाते , तब हम क्या करते ?
मिट्टी से बर्तन बनाते हुए कपड़े तो गंदे होंगे पर बच्चों को करके सीखने का आनंद भी मिलेगा।
- बहुत साल पहले जब बर्तन नहीं थे , तब लोग क्या करते थे ?
- लोगों ने बर्तन क्यों बनाए होंगे ?
मान लो , एक दिन दुनिया से सारे बर्तन गायब हो जाएँ , तो तुम्हारे घर में क्या होगा ?
जानते हो ?
बहुत , बहुत , बहुत साल पहले एक समय ऐसा था , जब लोगों के पास बर्तन ही नहीं थे। पर लोगों को खाने - पीने की चीज़ों को पकाने और सामान रखने के लिए बर्तन की ज़रूरत पड़ने लगी। बहुत कोशिश करने और दिमाग लगाने के बाद , लोग बर्तन बनाना सीख गए। शुरू में बनाए गए बर्तन पत्थर और मिट्टी के थे। पत्थर के बर्तन हाथों से खोदकर या कुरेद कर और मिट्टी के बर्तन गूंध कर हाथों से बनाए गए थे। लोगों ने यह भी खोज लिया कि मिट्टी के बर्तनों को मज़बूत बनाने के लिए उन्हें आग में पकाना चाहिए।