20 बूंद - बूंद से

माधो राजस्थान के बज्जू गाँव में रहता है। गाँव में देखो तो चारों ओर रेत ही रेत दिखाई देती है। जब कभी रेत नहीं उड़ती , तब कुछ घर दिख जाते हैं।

माधो के घर में सब परेशान हैं। वैसे ही हर साल गर्मियों में पानी की बहुत कमी होती है। इस साल तो बिल्कुल ही बारिश नहीं हुई। अब उसकी माँ और बहन को और भी दूर जाना पड़ता है , पानी लाने के लिए। पास वाली बावड़ी सूख जो गई है ! हर रोज़ चार घड़े पानी जुटाने में ही कई घंटे निकल जाते हैं। गर्म रेत में चल - चल कर उनके पैर तो जलते ही हैं , छाले भी पड़ जाते हैं।


ऊपर चित्र में महिलाओं को दूर जाकर पानी लाने तथा पानी भरते दिखाया है। लिंग - भेद से जुड़ी बातें / समस्याओं पर कक्षा में चर्चा करवाएँ।

गाँव में खुशी की लहर तब उठती है , जब कभी रेल से पानी आता है। माधो के पिताजी ऊँट - गाड़ी में पानी लाने जाते हैं , पर ऐसा मौका अकसर नहीं आता। लोग पानी का इंतज़ार करते ही रह जाते हैं।

कुछ लोग बारिश का पानी इकट्ठा करते हैं। यह खास तरह से किया जाता है टाँका बना कर। क्या तुम जानते हो टाँका क्या होता है ? और इसे कैसे बनाते हैं ?

आँगन में गड्डा बना कर उसे पक्का करके टाँका बनाते हैं। टाँके को ढक्कन से बंद रखते हैं। टाँके के लिए घर की छत को कुछ ढलवाँ बना देते हैं , जिससे छत पर गिरा बारिश का पानी नाली के द्वारा नीचे टाँके में इकट्ठा हो सके। छत की नाली पर जाली लगा देते हैं जिससे कूड़ा - कचरा टाँके में न जा सके।

यह पानी साफ़ करके पीने के काम में लाया जाता है। कभी - कभी गाँव के एक टाँके से माधो को भी पानी लेने देते हैं।

सोचो ! पानी की कमी से लोगों को क्या - क्या परेशानियाँ होती होंगी ?

  • माधो के गाँव के लोग पीने का पानी कहाँ से लाते हैं ?
  • माधो के घर में पानी भरकर कौन लाता है ?
  • टाँके का पानी ज़्यादातर पीने के काम में ही आता है। क्यों ?
  • अब तुम बताओ , क्या तुम्हारे घर में भी बारिश का पानी इकट्ठा किया जाता है ? यदि हाँ , तो कैसे ?
  • क्या पानी को इकट्ठा करने का कोई और तरीका भी हो सकता है ?


अगर पानी इकट्ठा करने के स्थानीय तरीकों पर बच्चे अपने अनुभव बाँटें तो किताबी ज्ञान को   जीवन के अनुभवों से जोड़ पाएँगे।

माधो की तरह सोनल के घर में भी पानी की किल्लत रहती है। सोनल भावनगर शहर में रहती है। नल में रोज़ केवल आधे घंटे पानी आता है। मोहल्ले भर के लोग एक ही नल पर , सोचो कितना बुरा हाल होता होगा।

सोनल पानी भरने के लिए डटी रहती है। जब मौका मिलता है , बूंद - बूंद करके भी बाल्टी भर लेती है।

आओ पता लगाएँ कि कितनी बूंदों से भरती है कटोरी , या फिर बाल्टी।

चित्र में दिखाए तरीके से प्रयोग करो , पता लगाओ और खाली डिब्बे में लिखो।

देखा , बूंद - बूंद से मिला कितना पानी !

अगर नल से बूंद - बूंद पानी टपकता रहेगा तो कितना पानी बरबाद होगा। इन चित्रों में ऐसा ही कुछ हो रहा है।

पानी की बचत के लिए तुम क्या कुछ सोच सकते हो ? अपना सुझाव लिखो।


क्या तुमने घर में , स्कूल में या रास्ते में पानी को बेकार बहते देखा है ? कहाँ ?


चित्र देखो और चर्चा करो क्या एक बार पानी से काम करने के बाद उसी पानी से कुछ और काम कर सकते हैं ?


जिस जगह पर पानी की किल्लत होती है वहाँ लोग पानी की बचत करने व उसके दोबारा इस्तेमाल के कई तरीके अपनाते हैं। ऐसा वे लोग मज़बूरी में करते हैं। इस बात को समझकर बच्चे अपने जीवन में पानी की बचत के कुछ उपाय अपनाएँ तो ' पानी सबका साँझा है ' – यह बात वे समझ पाएँगे।

   

अलग - अलग रंगों से लाइनें खींचकर दिखाओ , किस काम के बाद क्या काम करोगे , जिससे वही पानी बार - बार इस्तेमाल हो सके। एक उदाहरण नीचे दिया गया है।

  • हाथ मुँह धोना
  • कपड़े धोना
  • फल - सब्जी धोना
  • पोंछा लगाना
  • पौधों में डालना
  • शौचालय में डालना

तुमने पानी के बार - बार इस्तेमाल के कुछ तरीके सुझाए। ये तरीके लोग ज़्यादातर मजबूरी में ही अपनाते हैं , जहाँ पानी की बहुत कमी होती है। जानते हो पानी की कमी इसलिए भी होती है क्योंकि कुछ लोग पानी बेकार करते हैं। सोचो कितना अच्छा हो अगर सभी को पानी   मिले !


इस्तेमाल किए हुए पानी के पुनः उपयोग पर चर्चा करें। यह चर्चा पानी के बचाव के महत्त्व को 80  समझने में सहायक होगी। इस बारे में बच्चों के सुझाव सुनना और इन सुझावों को जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करना उपयोगी रहेगा।