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6. टिपटिपवा
उत्तर प्रदेश की लोककथा
एक थी बुढ़िया। उसका एक पोता था। पोता रोज़ रात में सोने से पहले दादी से कहानी सुनता। दादी रोज़ उसे तरह - तरह की कहानियाँ सुनाती।
एक दिन मूसलाधार बारिश हुई। ऐसी बारिश पहले कभी नहीं हुई थी। सारा गाँव बारिश से परेशान था। बुढ़िया की झोंपड़ी में पानी जगह - जगह से टपक रहा था — टिपटिप - टिपटिप। इस बात से बेखबर पोता दादी की गोद में लेटा कहानी सुनने के लिए मचल रहा था। बुढ़िया खीझकर बोली — अरे बचवा , का कहानी सुनाएँ ? ई टिपटिपवा से जान बचे तब न !
पोता उठकर बैठ गया। उसने पूछा — दादी , ये टिपटिपवा कौन है ? टिपटिपवा क्या शेर - बाघ से भी बड़ा होता है ?
दादी छत से टपकते हुए पानी की तरफ़ देखकर बोलीं — हाँ बचवा , न शेरवा के डर , न बघवा के डर। डर त डर , टिपटिपवा के डर।
संयोग से मुसीबत का मारा एक बाघ बारिश से बचने के लिए झोंपड़ी के पीछे बैठा था। बेचारा बाघ बारिश से घबराया हुआ था। बुढ़िया की बात सुनते ही वह और डर गया।
अब यह टिपटिपवा कौन - सी बला है ? ज़रूर यह कोई बड़ा जानवर है। तभी तो बुढ़िया शेर - बाघ से ज़्यादा टिपटिपवा से डरती है। इससे पहले कि बाहर आकर वह मुझ पर हमला करे , मुझे ही यहाँ से भाग जाना चाहिए।
बाघ ने ऐसा सोचा और झटपट वहाँ से दुम दबाकर भाग चला।
उसी गाँव में एक धोबी रहता था। वह भी बारिश से परेशान था। आज सुबह से उसका गधा गायब था। सारा दिन वह बारिश में भीगता रहा और जगह - जगह गधे को ढूँढ़ता रहा लेकिन वह कहीं नहीं मिला।
धोबी की पत्नी बोली — जाकर गाँव के पंडित जी से क्यों नहीं पूछते ? वे बड़े ज्ञानी हैं। आगे - पीछे , सबके हाल की उन्हें खबर रहती है।
पत्नी की बात धोबी को जँच गई। अपना मोटा लट्ठ उठाकर वह पंडित जी के घर की तरफ़ चल पड़ा। उसने देखा कि पंडित जी घर में जमा बारिश का पानी उलीच - उलीचकर फेंक रहे थे।
धोबी ने बेसब्री से पूछा — महाराज , मेरा गधा सुबह से नहीं मिल रहा है। ज़रा पोथी बाँचकर बताइए तो वह कहाँ है ?
सुबह से पानी उलीचते - उलीचते पंडित जी थक गए थे। धोबी की बात सुनी तो झुँझला पड़े और बोले — मेरी पोथी में तेरे गधे का पता - ठिकाना लिखा है क्या , जो आ गया पूछने ? अरे , जाकर ढूँढ़ उसे किसी गढ़ई - पोखर में।
और पंडित जी लगे फिर पानी उलीचने। धोबी वहाँ से चल दिया। चलते - चलते वह एक तालाब के पास पहुँचा। तालाब के किनारे ऊँची - ऊँची घास उग रही थी। धोबी घास में गधे को ढूँढ़ने लगा। किस्मत का मारा बेचारा बाघ टिपटिपवा के डर से वहीं घास में छिपा बैठा था। धोबी को लगा कि बाघ ही उसका गधा है। उसने आव देखा न ताव और लगा बाघ पर मोटा लट्ठ बरसाने। बेचारा बाघ इस अचानक हमले से एकदम घबरा गया।
बाघ ने मन ही मन सोचा — लगता है यही टिपटिपवा है। आखिर इसने मुझे ढूँढ़ ही लिया। अब अपनी जान बचानी है तो यह जो कहे , चुपचाप करते जाओ।
आज तूने बहुत परेशान किया है। मार - मारकर मैं तेरा कचूमर निकाल दूँगा — ऐसा कहकर धोबी ने बाघ का कान पकड़ा और उसे खींचता हुआ घर की तरफ़ चल दिया। बाघ बिना चूँ - चपड़ किए भीगी बिल्ली बना धोबी के पीछे - पीछे चल दिया। घर पहुँचकर धोबी ने बाघ को खूँटे से बाँध दिया और सो गया।
सुबह जब गाँव वालों ने धोबी के घर के बाहर खूँटे से एक बाघ को बँधे देखा तो उनकी आँखें खुली की खुली रह गईं।
गिरिजा रानी अस्थाना
कौन - किससे परेशान ?
इस कहानी में लगता है सभी परेशान थे। बताओ कौन - किससे परेशान था ?
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मतलब बताओ
नीचे कहानी में से कुछ वाक्य दिए गए हैं। इन्हें अपने शब्दों में लिखो।
- टिपटिपवा कौन - सी बला है ?
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- पत्नी की बात धोबी को जँच गई।
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- बाघ बिना चूं - चपड़ किए भीगी बिल्ली बना धोबी के पीछे - पीछे चल दिया।
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- ज़रा पोथी बाँच कर बताइए वह कहाँ है ?
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याद करो तो
पोता दादी की गोद में कहानी सुनने के लिए मचल रहा था। तुम किन - किन चीज़ों के लिए मचलते हो ?
मैं __________
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कौन है टिपटिपवा !
हाँ बचवा , न शेरवा के डर , न बघवा के डर। डर त डर , टिपटिपवा के डर।
- तुम्हारे घर की बोली में इस बात को कैसे कहेंगे ?
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- कहानी में टिपटिपवा कौन था ? तुम किस - किस को टिपटिपवा कहोगे ?
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बारिश
यह कहानी एक ऐसे दिन की है जब मूसलाधार बारिश हो रही थी। अगर मूसलाधार बारिश की बजाए बूँदा - बाँदी होती , तो क्या होता ? यदि उस रात बूँदा - बाँदी होती तो
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तरह तरह की आवाजें
पानी के टपकने की टिपटिप - टिपटिप आवाज़ आ रही थी।
सोचो और लिखो ये आवाजें कब सुनाई पड़ती हैं।
- खर्र - खर्र ..........
- भिन - भिन...........
- ठक - ठक ..........
- चर्र - चर्र .............
- भक - भक ...........
- तड़ - तड़ ............
खूँटा
धोबी ने बाघ को खूँटे से बाँध दिया। सोचो और बताओ , खूँटे से क्या - क्या बाँधा जाता है ?
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कितने नाम, कितने काम?
नाम वाले शब्द | काम वाले शब्द |
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तुम्हारी ज़बानी