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पाठ-1
चलो चलें स्कूल!
चलो चलें स्कूल!
आओ, कुछ बच्चों से मिलें और देखें, कैसे-कैसे ये बच्चे स्कूल पहुंचत, हैं।
बाँस से बना पुल
हमारे यहाँ बारिश बहुत होती है। कभी-कभी तो चारों तरफ घुटनों तक पानी भर जाता है। फिर भी हम स्कूल जाने से नहीं रूकते। एक हाथ में किताबें उठाते हैं और दूसरे हाथ से बाँस को पकड़ते हैं। हम जल्दी-जल्दी बॉस और रस्सी से बना पुल पार कर जाते है।
चलो, करके देखें
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कुछ ईंटें लो। इन्हें किसी खुली जगह पर सीधी लाइन में रखो, जैसे चित्र में दिखाया गया है। अब इन पर चलने की कोशिश करो। क्या यह आसान लगा?
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अपनी टीचर की मदद से चार पाँच बाँसों को बाँध कर एक छोटा सा पुल बनाओ। उस पर चल कर देखो। तुम्हें कैसा लगा? गिरे तो नहीं? कई बार चलोगे तो आसान लगने लगेगा।
जूते या चप्पल पहन कर पुल पर चलना ज्यादा आसान होगा या नंगे पैर? क्यों?
ट्रॉली से
स्कूल पहुँचने के लिए हमें रोज़ नदी पार करनी होती है। खूब चौड़ी और गहरी नदी। नदी के पार जाती हुई मज़बूत लोहे की रस्सी होती है। यह दोनों तरफ़ से भारी पत्थरों या पेड़ों से कस कर बँधी रहती है। ट्रॉली (लकड़ी से बना झूला) पुली की मदद से इस रस्सी पर सरकती है। हम चार-पाँच बच्चे एक साथ ट्रॉली में बैठ जाते हैं और पहुँच जाते हैं नदी के उस पार!
करके देखो
चित्र 1 और 2 को देखो। बच्चे कुँए से बाल्टी खींच रहे हैं। क्या दोनों चित्रों में अंतर बता सकते हो? इन दोनों में से किस तरह से खींचना आसान होगा-पुली (घिरनी) के साथ या बिना पुली के?
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अपने आस-पास देखो। तुम कहाँ-कहाँ पुली का प्रयोग देखते हो? उनकी सूची बनाओ।
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तुम भी चरखी या खाली धागे की रील से पुली बनाकर कुछ सामान उठाने की कोशिश करो।
सीमेंट का पुल
हमें भी कई बार कई जगह पानी पार करना पड़ता है। तब हम भी पुल से जाते है। ये सीमेंट, ईटों और लोहे के सरियों से बने होते हैं। देखो, पुल पर चढ़ने-उतरने के लिए सीढ़ियाँ भी हैं।
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यह पुल बाँस के बने पुल से किस तरह अलग है?
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अंदाज़ा लगाओ, इस पुल को एक समय पर कितने लोग पार कर सकते हैं?
तुमने देखा कि कैसे बच्चे अलग -अलग पुलों की मदद से ऊबड़ -खाबड़ रास्ते और नदियों को पार करके स्कूल पहुंचते हैं।
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अगर तुम्हें मौका मिले, तो तुम कौन-से पुल से जाना चाहोगे? क्यों?
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स्कूल जाने के लिए क्या तुम भी कोई पुल पार करते हो? वह पुल कैसा दिखाई देता है? उसका चित्र बनाओ।
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अपने दादा-दादी से पता करो कि उनके बचपन के समय में पुल कैसे होते थे?
अपने आस-पास किसी पुल या पुलिया को देखो और उसके बारे में कुछ बातें पता करो—
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वह कहाँ बना है— पानी पर, सड़क पर, पहाड़ों के बीच या कहीं और?
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पुल को कौन-कौन पार करता है? लोग ही जाते हैं या जानवर और गाड़ियाँ भी?
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क्या वह पुल पुराना-सा लगता है या नया?
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पता करो कि वह पुल किन-किन चीजों से बना है? उन चीज़ों की सूची बनाओ।
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उस पुल का चित्र कॉपी में बनाओ। पुल पर चलती ट्रेन, गाड़ियाँ, जानवर और लोग दिखाना मत भूलना।
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सोचो, अगर वह पुल नहीं होता, तो क्या-क्या परेशानियाँ होती ?
कुछ अन्य तरीके देखें, जिनसे बच्चे स्कूल पहुँचते हैं।
वल्लम
केरल के कुछ भागों में बच्चे पानी को पार करने के लिए वल्लम (लकड़ी की बनी छोटी नाव) में बैठकर स्कूल तक पहुँचते हैं।
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क्या तुमने किसी और तरह की नाव देखी है?
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पानी पार करने के और क्या तरीके हो सकते हैं?
ऊँट-गाड़ी
हम रेगिस्तान में रहते हैं। हमारे यहाँ दूर -दूर तक रेत ही रेत नज़र आती है। दिन में तो रेत खूब तपती है। हम ऊँट-गाड़ी में बैठकर स्कूल पहुंचते हैं।
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क्या तुम भी कभी ऊँट-गाड़ी या ताँगे पर बैठे हो? कहाँ? खुद चढ़े थे या किसी ने बिठाया था?
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तुम्हें उस गाड़ी पर बैठकर कैसा लगा? अपना अनुभव कक्षा में बताओ।
बैलगाड़ी
हम बैलगाड़ी पर बैठकर हरे-भरे खेतों में से धीरे-धीरे निकलते हुए स्कूल पहुंचते हैं। तेज़ धूप या बारिश हो तो हम अपनी छतरियाँ खोल लेते हैं।
अध्यापक के लिए - जानवरों को गाड़ी खींचते समय कैसा महसूस होगा? जानवरों के प्रति संवेदनशीलता पर चर्चा करें।
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क्या तुम्हारे यहाँ भी बैलगाड़ियाँ होती हैं?
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क्या उसमें छत होती है?
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उसके पहिये कैसे होते हैं?
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बैलगाड़ी का चित्र कॉपी में बनाओ।
साइकिल की सवारी
हम लंबे रास्तों पर साइकिल चलाकर स्कूल जाते हैं। पहले तो, स्कूल दूर होने के कारण कई लड़कियाँ स्कूल जा ही नहीं पाती थीं, पर अब सात -आठ लड़कियों की टोली मुश्किल रास्तों को भी पार कर जाती है।
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तुम्हारे स्कूल में कितने बच्चे साइकिल से आते हैं?
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क्या तुम्हें साइकिल चलानी आती है? यदि हाँ, तो किससे सीखी?
यह है जुगाड़!
हमारी गाड़ी का नाम है 'जुगाड़'। यह फट -फट करती हुई चलती है। है न शानदार! आगे से देखो, तो मोटर-बाइक की तरह दिखाई देती है। पर पीछे से लकड़ी के फट्टों से बनी है।
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क्या तुम्हारे इलाके में भी इस तरह की गाड़ी होती है?
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तुम्हारे यहाँ इसे क्या कहते हैं?
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तुम ऐसी गाड़ी में बैठना पसंद करोगे ? क्यों?
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क्या तुम बता सकते हो, इसे 'जुगाड़ ' क्यों कहते हैं?
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जुगाड़ पुराने बचे सामान के इस्तेमाल से बनता है। तुम भी कुछ चीज़ों के जुगाड़ से कोई नई चीज़ बनाओ।
सोचो, क्या ऐसी कोई जगह है, जहाँ इनमें से कोई भी गाड़ी नहीं पहुँच सकती? हाँ, ऐसी जगहें भी हैं !
जंगल से जाते बच्चे
स्कूल पहुँचने के लिए हमें घने जंगल से निकलना पड़ता है। कहीं -कहीं जंगल इतना घना होता है कि दिन में भी रात जैसा लगता है। उस सन्नाटे में कई पक्षियों और जानवरों की आवाजें सुनाई देती हैं।
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क्या तुम कभी घने जंगल या ऐसी किसी जगह से गुज़रे हो? कहाँ?
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अपने अनुभवों के बारे में कॉपी में लिखो।
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क्या तुम कुछ पक्षियों को उनकी आवाज़ों से पहचान सकते हो? कितनों की आवाज़ खुद निकाल सकते हो? आवाज़ निकालो।
बर्फ पर चलते बच्चे
देखो हम कैसे स्कूल पहुंचते हैं — मीलों फैली बर्फ पर चलकर। हम हाथ पकड़-पकड़ कर, बर्फ पर पैर जमाते हुए ध्यान से चलते हैं। ताजी बर्फ में पैर धंस जाते हैं। अगर बर्फ जमी हुई हो, तो फिसल भी सकते हैं।
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क्या तुमने इतनी ज्यादा बर्फ़ देखी है? कहाँ? फ़िल्मों में या कहीं और?
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क्या ऐसी जगहों पर हमेशा ही बर्फ़ रहती है? क्यों?
ऊबड़-खाबड़ पथरीले रास्ते
हम पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। यहाँ दूर -दूर तक ऊबड़ -खाबड़ पथरीले रास्ते हैं। मैदानों या शहर में रहने वाले बच्चों को भले ही मुश्किल लगे, हम तो भागते हुए पहाड़ी रास्ते पार कर जाते हैं।
चाहे घने जंगल हों, खेत हों, पहाड़ हों या फिर दूर -दूर तक फैली बर्फ़। हम बच्चे स्कूल पहुँच ही जाते हैं।
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क्या स्कूल पहुँचने में तुम्हें भी कोई परेशानी होती है ?
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तुम्हें किस महीने में स्कूल जाना सबसे अच्छा लगता है? क्यों?
तो फिर मेरी चाल देखना !
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मैदान में या स्कूल में किसी खुली जगह पर सब बच्चे इकट्ठे हो जाओ।
अब नीचे दी गई स्थितियों में तुम कैसे चलोगे, करके दिखाओ।
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अगर ज़मीन एकदम गुलाब की पंखुड़ियों जैसी हो।
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अगर ज़मीन काँटों भरे मैदान में बदल गई हो और आस-पास ऊँची-ऊँची घास हो।
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अगर ज़मीन ठंडी-ठंडी बर्फ से ढंक गई हो।
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क्या हर बार तुम्हारी चाल बदली? चर्चा करो।
अध्यापक के लिए— स्कूल पहुँचने के लिए बच्चों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न साधनों पर चर्चा करें। सम्भावित खतरों को पहचानने व सुरक्षा पक्षों पर चर्चा करें। पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाने वाले यातायात के साधनों पर चर्चा कर सकते हैं।