ओमना की डायरी

16 मई सात बजे

रेल्वे स्टेशन का दृश्य

दोपहर का समय था। स्टेशन पर पहुंचते ही हमने सबसे पहले अपने नाम 'रिजर्वेशन चार्ट ' में देखे। जल्दी ही ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर आ पहुँची। हमने देखा कि ट्रेन तो पहले से ही भरी हुई थी। आज सुबह-सुबह ही यह ट्रेन गाँधीधाम, कच्छ से चली थी। ट्रेन के पहुँचते ही हलचल - सी मच गई। एक ही दरवाज़े से कुछ लोग उतर रहे थे, तो कुछ चढ़ने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे।

A ticket collector and passengers inside the train.

हम भी जैस-तैसे चढ़ ही गए और अपनी सीट ढूँढकर अपना सामान सीट के नीचे रख दिया। ट्रेन के चलने से पहले सभी अपनी-अपनी सीटों पर बैठ चुके थे। कुछ देर बाद टिकट - चेकर आया और उसने सभी की टिकटें देखीं। वह यह देख रहे थे कि सभी ठीक सीटों पर बैठे हैं या नहीं। अम्माऔर अप्पा को नीचे वाली बर्थ मिली, उन्नी और मुझे बीच वाली। सबसे ऊपर वाली बर्थ पर कॉलेज के दो लड़के हैं। पास ही बैठे परिवार के दोनों बच्चे हमारे जितने ही लग रहे हैं। मैं उनसे बात जरूर करूँगी, पर थोड़ी देर बाद।

मैं अब खिड़की के पास बैठी यह सब लिख रही हूँ। अम्मा ने खाने का डिब्बा खोल लिया है। ढोकला, चटनी, नींबू वाले चावल और मिठाई - कितनी सारी चीजें लाई हैं अम्मा! मेरे मुँह में तो पानी आ रहा है। बाकी बातें अब बाद में ही लिखूँगी।

  • ट्रेन के डिब्बे के दरवाजे पर धक्का-मुक्की क्यों हो रही थी?



  • क्या तुमने कभी ट्रेन में सफ़र किया है? कब?



  • अगर तुम सफ़र पर जाओ, तो खाने-पीने का क्या-क्या सामान ले जाना पसंद करोगे? क्यों?



  • टिकट - चेकर के क्या -क्या काम होते हैं?



  • तुम टिकट - चेकर को कैसे पहचानोगे?



16 मई

दोपहर का खाना खाकर कुछ लोग सो गए पर मुझे नींद नहीं आई। मैं खिड़की से बाहर देखती रही। यहाँ बाहर सूखे, भूरे मैदान दिखाई पड़े। कहीं-कहीं छोटे-छोटे गाँव भी दिखे। लग रहा था, जैसे सभी भाग रहे है। पता है, जब ट्रेन इतनी तेजी से चलती है, तो बाहर की सभी चीजें उलटी दिशा में भागती दिखाई देती हैं।

लड़की ट्रेन की खिड़की के बाहर देख रही है

कुछ समय पहले बहुत गर्मी थी। अब शाम हो गई है और हलकी-हलकी हवा चल रही है।

बाहर आसमान संतरी रंग का दिखाई दे रहा है, सूरज जो डूब रहा है। मैंने अहमदाबाद में कभी डूबते सूरज पर ध्यान ही नहीं दिया!

रेल्वे स्टेशन का दृश्य

हम अभी-अभी वलसाड स्टेशन से निकले हैं। वहाँ ट्रेन दो ही मिनट के लिए रुकी थी। स्टेशन पर खाने-पीने की चीजें बेचने वालों का बहुत शोर था "चाय! गरम, चाय!",

एक तरफ़ से आवाज आ रही थी, “बटाटा-वड़ा! बटाटा-वड़ा!, पूरी-साग!", "दूध! ठंडा, दूध!" लोग प्लेटफॉर्म पर खाने की चीजें खरीद और बेच रहे थे। हमने तो खिड़की से ही केले और चीकू खरीद लिए थे।

  • ओमना ने खिड़की से बाहर क्या देखा?



  • रेलवे स्टेशन पर क्या-क्या चीजें बिकती हैं?





16 मई साढ़े आठ बजे

रेल्वे स्टेशन पे अलग अलग स्टॉल लगे हैं

मैंने साथ बैठे बच्चों से दोस्ती कर ली है। वे हैं - सुनील और एन। वे अपनी दादी के घर कोजीकोड जा रहे हैं। सुनील ने मुझे कहानी की कुछ किताबें पढ़ने को दी।

मैं थोड़ी देर पहले बाथरूम में हाथ-मुँह धोने गई थी, पर वहाँ पानी खत्म हो गया था। किसी ने कहा कि अब पानी अगले स्टेशन पर ही भरा जाएगा।

अध्यापक के लिए — गाँधीधाम, अहमदाबाद और वलसाड़ गुजरात में हैं। कोजीकोड केरल में है। बच्चों को नक्शे पर गुजरात और केरल दिखाने से उन्हें यह बात समझने में आसानी होगी कि यह सफ़र बहुत लंबा है।

  • ट्रेन के बाथरूम में पानी खत्म क्यों हो गया? चर्चा करो।

  • कल्पना करो कि अब तुम्हें ट्रेन में एक लंबे सफ़र पर जाना है। तुम अपने साथ मनोरंजन के लिए क्या-क्या सामान ले जाना चाहोगे?

  • चित्रों को पहचान कर लिखो, रेलवे स्टेशन पर ये लोग क्या काम करते हैं? चर्चा करो।

रेलवे स्टेशन से जुड़े कुछ करमचारी

अध्यापक के लिए— रेलवे स्टेशन पर टिकट काउंटर व ऑनलाइन रेलवे टिकट बुक करने के तरीकों पर चर्चा करें। वेबलिंक -
http://www.coms.indianrailways.gov.in/criscm/home.seam का प्रयोग करें।