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पाठ 24
दूर देश की बात
आज मालू के घर में बहुत चहल-पहल है। चिट्टप्पन और उनका परिवार पाँच साल बाद घर आए हैं। पाँच साल पहले चिट्टप्पन की नौकरी अबू धाबी में लगी थी। तभी से वे वहीं रह रहे हैं। मालू और उसके अप्पा, चिट्टप्पन के परिवार को लेने हवाई अड्डे गए।
हवाई जहाज़ के पहुँचने के बाद सभी यात्रियों का सामान उतरने में काफ़ी समय लग गया। आखिरकार, चिट्टप्पन, कुंजम्मा और बच्चे हवाई अड्डे से बाहर आते दिखाई दिए। "शांता और शशि कितने बड़े हो गए हैं!" अप्पा एकाएक बोल पड़े। सारा सामान टैक्सी में रखा और सब चल दिए, मालू के घर की ओर।
"शांता, तुम इतने लंबे सफ़र के बाद बहुत थक गई होगी। अप्पा बता रहे थे कि अबू धाबी भारत से बहुत दूर है।" मालू ने कहा।
अध्यापक के लिए - मलयालम में चिट्टप्पन-पिता का छोटा भाई, कुंजम्मा-पिता के छोटे भाई की पत्नी अर्थात् चाची।
“अरे नहीं, हम तो बिलकुल नहीं थके। माना, अबू धाबी यहाँ से बहुत दूर है, पर हवाई जहाज़ से पहुँचने में हमें दो ही घंटे लगे। हवाई जहाज़ बहुत तेज़ जो उड़ता है।" शांता बोली।
मालू यह सुनकर बहुत हैरान हुई। उसे याद आया, जब वह अपने स्कूल के ट्रिप पर चेन्नई गई थी, तो उसे ट्रेन में पूरे 12 घंटे लगे थे लेकिन नक्शे में तो चेन्नई और कोच्ची बहुत पास दिखाई देते थे। हवाई अड्डे से घर तक के रास्ते में मालू, शांता और शशि ने बहुत सारी बातें कीं। मालू को याद आया कि वह जब अपने स्कूल के बच्चों के साथ ट्रिप पर गई थी, तो उसे बहुत ही अच्छा लगा था। वह शांता से भी पूरे सफ़र की बातें जानना चाहती थी।
रेत ही रेत!
मालू ने पूछा, "क्या तुमने हवाई जहाज़ से बहुत-सी मज़ेदार चीजें देखीं?" "हाँ! ज्यादातर हवाई जहाज़ से बादल-ही-बादल दिखाई दिए, क्योंकि हवाई जहाज़ बादलों से बहुत ऊपर उड़ रहा था। इससे पहले कुछ समय तक तो नीचे रेत-ही-रेत दिखाई दी, पर रेत का रंग बदलता रहा –कभी सफ़ेद, कभी भूरा तो कभी पीला, लाल या काला। कभी-कभी उन्हें रेत के पहाड़ भी दिखाई दिए। फिर नीचे ज़मीन दिखाई देनी बंद हो गई," शांता बोली। "इन्हें रेत के टीले भी कहते हैं," शशि ने आगे कहा।
"मैंने तो केवल समुद्र के किनारे ही रेत देखी है," मालू बोल पड़ी।
"तब तो तुम्हें अबू धाबी ज़रूर आना चाहिए," चिट्टप्पन बोले।
उन्होंने बताया कि अबू धाबी और आस-पास के देश रेगिस्तानी इलाके में हैं। शहर से थोड़ी ही दूर जाओ, तो चारों ओर दूर-दूर तक रेत ही रेत दिखाई देती है। न कोई पेड़, न ही हरियाली, केवल रेत!
"केरल में बने अपने घर के आस-पास की हरियाली और ठंडे पानी को मैं बहुत याद करती थी, अब यहाँ आकर बहुत अच्छा लग रहा है," कुंजम्मा बोली।
"बारिश कैसी होती है, यह बात तो शांता और शशि भूल ही गए हैं। वैसे भी, रेगिस्तान में बारिश नहीं होती। वहाँ पानी सचमुच बहुत कीमती है। वहाँ न बारिश है, न ही नदियाँ, न झील है और न ही तालाब। ज़मीन के नीचे भी वहाँ पानी नहीं है," चिट्टप्पन ने कहा। शशि ने बीच में कहा, "लेकिन, वहाँ रेतीली जमीन के नीचे तेल होता है। इसलिए तो वहाँ पेट्रोल आसानी से मिल जाता है।" "वहाँ पेट्रोल पानी से सस्ता है।" चिट्टप्पन ने बताया।
बातें करते-करते सब मालू के घर पहुँच गए। टैक्सी से उतरते ही शशि और शांता आस-पास इतने सारे फलों के पेड़ देखकर हैरान रह गए –नारियल, केले, पपीते, सुपारी, कटहल-कितनी ही तरह के पेड़! शशि बोली, “अबू धाबी में तो सिर्फ़ खजूर के ही पेड़ दिखाई देते हैं क्योंकि वही एक ऐसा पेड़ है, जो वहाँ उग सकता है।"
कितने सुंदर तोहफे और फोटो
सबसे मिलने के बाद कुंजम्मा ने अपने बैग और अटैची खोले। वे सभी के लिए तोहफ़े लाईं थीं, और खजूर भी, मीठे-मीठे और स्वादिष्ट। शशि ने मालू को अबू धाबी में चलने वाले नोट और सिक्के भी दिखाए। शांता ने बताया कि वहाँ अलग तरह के रुपये होते हैं, जिन्हें 'दिरहम' कहा जाता है। उन पर वहाँ की अरबी भाषा में कुछ लिखा होता है। उन्होंने अपने घर और आस-पास की जगहों की तसवीरें भी दिखाईं।
चिट्टप्पन ने मालू को एक ग्लोब निकालकर दिया। बोले, “मालू, ढूँढों आबू धाबी कहाँ है और केरल कहाँ”। सब बच्चे ग्लोब पर अलग-अलग जगह ढूंढ कर मज़े लेने लगे। मालू ने चेन्नई और कोच्ची भी ढूँढ़ा।
शाम को बरामदे में बैठे सभी ठंडी-ठंडी हवा का मज़ा ले रहे थे और अबू धाबी की तसवीरें देख रहे थे। बहुत ऊँची-ऊँची इमारतें और उनमें बड़ी-बड़ी शीशे की खिड़कियाँ! उनको देख मालू झट बोली, “इन खिड़कियों से कितनी ठंडी हवा आती होगी।" चिट्टप्पन बोले, "अबू धाबी में खिड़कियाँ खोलने का तो सवाल ही नहीं उठता। बाहर बहुत ही गर्मी होती है। ज्यादातर जगह तो एयर-कंडीश्नर चलते हैं। गर्मी की वजह से वहाँ के लोग ढीले-ढाले सूती कपड़े पहनते हैं और पूरा शरीर और सिर भी ढंककर रखते हैं। इससे वे तेज़ धूप से बच जाते हैं।"
मालू को वहाँ की तसवीरें देखने में बहुत मज़ा आ रहा था। उसे कितनी सारी नई-नई बातें भी सुनने को मिल रही थीं। वह हर तसवीर से अपने शहर की तुलना भी कर रही थी। उसने सोच लिया कि वह अबू धाबी की एक रिपोर्ट भी अपनी कक्षा के लिए तैयार करेगी।
चर्चा करो और लिखो
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तुम भी अपने शहर की तुलना अबू धाबी से करते हुए एक छोटी-सी रिपोर्ट तैयार करो। उसमें तसवीरें या चित्र बनाकर भी लगा सकते हो। अपनी रिपोर्ट में इन बातों के बारे में लिखना मत भूलना—
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जलवायु और मौसम
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पेड़-पौधे
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लोगों का पहनावा
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इमारतें
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सड़कों पर वाहन
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भाषा
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खान-पान
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रेगिस्तानी इलाके में पेड़-पौधे कम क्यों होते हैं?
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क्या तुम्हारी जान-पहचान के कोई व्यक्ति किसी और देश में रहते हैं?
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वे वहाँ कब से रहते हैं? वे वहाँ पढ़ाई करने गए थे या काम करने? क्या उनके वहाँ जाने का कोई अन्य कारण था?
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इन नोटों को देखो।
हर नोट के सामने के बक्से में उसका मूल्य लिखो।
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ये कौन-से देश के नोट हैं? तुम कैसे जानोगे?
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नोटों पर किसकी तसवीर बनी है?
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क्या नोटों पर मूल्य के अलावा और भी नंबर लिखे हैं?
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क्या दो नोटों पर एक ही नंबर छपा हो सकता है?
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एक दस रुपये के नोट को ध्यान से देखो। इस पर लिखी कितनी भाषाओं को तुम पहचान सकते हो?
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किसी एक नोट पर लिखे बैंक का नाम लिखो।
सिक्कों का मिलान करो
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इनमें से कितने सिक्के तुम पहचान सकते हो?
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सिक्कों पर मूल्य के अलावा और क्या-क्या लिखा है?
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इन नोटों को देखो। क्या ये सभी नोट भारत के हैं? जो नोट भारत के नहीं हैं, उन पर लाल गोले बनाओ। पता करो और लिखो कि बचे हुए नोट कहाँ के हैं?