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क्या तुमने इनकी फ़ोटो कहीं देखी है? ये हैं लेफ्टीनेंट कमांडर वहीदा प्रिज्म। ये भारतीय नौसेना में डॉक्टर हैं और नौसेना के समुद्री जहाज़ पर काम करने वाली गिनी-चुनी महिलाओं में से एक हैं। ये पहली महिला हैं, जिन्होंने एक पूरी परेड की कमान संभाली। किसी भी सेना में यह बहुत बड़ी बात मानी जाती है।
तुम्हारी इस किताब के लिए हमने उनसे एक खास बातचीत की। आओ, उसे पढ़ते हैं।
प्रश्न — वहीदा, आप अपने बचपन और स्कूल के बारे में बताइए।
वहीदा — मैं थन्नामंडी नाम के बहुत छोटे गाँव से हूँ। यह जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में है। मैंने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है। मेरे गाँव की कई लड़कियाँ इसी स्कूल में पढ़ने आती थीं, पर वे इसके बाद आगे के बारे में कुछ नहीं सोचती थीं।
अध्यापक के लिए— बच्चों को भारत के नक्शे में जम्मू और कश्मीर ढूँढने के लिए प्रोत्साहित करें।
लेकिन मैं तो कुछ बनना चाहती थी। हमेशा आगे बढ़ना चाहती थी। मुझे आगे पढ़ने की इच्छा थी और मैं दसवीं की पढ़ाई पूरी करना चाहती थी। उस समय, यह हमारे इलाके के लिए नई बात थी। इसके कारण मेरे मम्मी-पापा को बहुत मुश्किलें आईं। यहाँ तक कि हमें गाँव भी छोड़ना पड़ा। तब हम नानी के घर राजौरी में रहे। मैंने बारहवीं भी वहीं से की।
प्रश्न — तो आप पहले से ही कुछ अलग सोचती थीं?
वहीदा — जब मैं बहुत छोटी थी, तभी से कुछ अलग करना चाहती थी। मुझे मोटर साइकिल चलाने का बहुत शौक था। हम तीन बहनें हैं। पापा भी यही चाहते थे कि हम बहनों में से एक डॉक्टर बने, एक वकील बने या पुलिस में जाए और एक बच्चों को पढ़ाए। मैं भारतीय नौसेना में डॉक्टर बन गई हूँ और मेरी बहन जम्मू पुलिस में है।
प्रश्न — आप डॉक्टर कैसे बनीं?
वहीदा — इसके लिए मैंने बहुत मेहनत की थी। मेरे दोस्तों और घरवालों ने भी मेरी बहुत मदद की। मैंने जम्मू मेडिकल कॉलेज में दाखिला पाया। वहाँ मैंने पाँच साल पढ़ाई की और एम.बी.बी.एस. की परीक्षा पास की।
प्रश्न — आप सेना में कैसे आईं? आपके घरवालों ने रोका नहीं?
वहीदा — अरे नहीं! उन्हें तो लगता था कि यही नौकरी मेरे लिए सबसे अच्छी है। जब मैं बहुत छोटी थी, तब अपने गाँव में फ़ौजियों को देखती थी। मेरा मन करता था कि मैं भी उन्हीं की तरह बनूँ। यह मेरे लिए एक बहुत ही बड़ा सपना था। स्कूल के समय में मैं कैंपों में भी जाती थी, पहाड़ों पर चढ़ती थी और 'गर्ल गाइड ' भी थी। डॉक्टर बनने के बाद सेना में भर्ती होने के लिए मेरा एक इंटरव्यू हुआ।
अध्यापक के लिए— बच्चों को भारत की तीनों सेनाओं के बारे में जानकारी दी जा सकती है। इसके लिए फ़ौजी परिवार से आने वाले बच्चों की मदद ली जा सकती है।
उसमें मुझे चुन लिया गया। मेरी छह महीने की ट्रेनिंग भी हुई थी।
प्रश्न — अच्छा, तो आप नौसेना में क्यों आईं? नौसेना में तो समुद्री जहाज़ पर रहना पड़ता है न?
वहीदा — मुझे घूमने का बहुत शौक है। मेरा दूर-दूर जाने का मन करता है। मैं पहाड़ वाली जगह पर पैदा हुई हूँ। अब मैं समुद्र में काम कर रही हूँ। बहुत अच्छा लगता है।
बहुत कम महिला अधिकारियों ने जहाज़ पर काम किया है। मैं उनमें से एक हूँ। पहले नौसेना में महिलाएँ जहाज़ पर नहीं जाती थीं। जब मौका दिया गया, तो मैंने खुद ही आगे बढ़ कर अपना नाम दिया। मैं तो पनडुब्बी में भी जाना चाहती हूँ। मैं हर ऐसा काम करना चाहती हूँ, जो लोग सोचते हैं कि महिलाएँ नहीं कर सकतीं। अभी तो महिलाओं को पनडुब्बी में जाने नहीं दिया जाता। जब भी मौका मिलेगा, मैं ज़रूर जाऊँगी।
प्रश्न — तो आपकी डॉक्टरी की पढ़ाई का क्या हुआ?
वहीदा — मैं भारतीय नौसेना में डॉक्टर हूँ। नौसेना में काम करने वाले डॉक्टर, मरीजों को सिर्फ दवाई ही नहीं देते। वे तो दरअसल मेडिकल अधिकारी होते हैं। जहाज़ तीन-चार महीने के लिए समुद्र में जाता है। तब मेरी जिम्मेदारी होती है कि सबकी तबीयत ठीक रहे। मैं जहाज़ पर मौजूद सभी अधिकारियों और नाविकों का चेकअप करती हूँ।
अध्यापक के लिए— इस बातचीत की मदद से बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वे भी बड़ा बनने का सपना देखें और उसके लिए मेहनत करें।
इसके अलावा यह भी देखना होता है कि जहाज़ पर सफ़ाई रहे। कहीं गंदगी न फैले और चूहे न आएँ। गंदगी और चूहों से बीमारियाँ फैल सकती हैं। इसके अलावा मैं सबको इसकी तैयारी करवाती हूँ कि वे 'मेडिकल इमरजेंसी ' में क्या करेंगे। अगर कोई ऐसी दुर्घटना हो जाए, जैसे आग लगना, तब जहाज़ पर ऐसी बातों के लिए तैयार रहना होता है।
प्रश्न — क्या जहाज़ पर अस्पताल होता है?
वहीदा — नौसेना के हर जहाज़ पर 'फ़र्स्ट-एड ' दी जाती है। जहाज़ पर एक डॉक्टर और दो-तीन सहायक होते हैं। जरूरी दवाइयाँ और कुछ मशीनें भी होती हैं। ये सब एक छोटे से कमरे में रखी रहती हैं।
प्रश्न — आपने जब परेड की टुकड़ी का नेतृत्व किया, तब आप ऐसा करने वाली पहली महिला बनीं। इसके लिए आपने बहुत मेहनत की होगी।
वहीदा — तीन साल तक मेरी परेड देखने के बाद मेरे अधिकारियों ने मुझे यह मौका दिया। मुझे लगा कि मेरे अधिकारियों ने मुझे चुना, मुझ में विश्वास दिखाया। इसीलिए मैंने बहुत लगन से परेड का अभ्यास किया था।
प्रश्न — परेड के बारे में कुछ बताइए।
वहीदा — जब परेड होती है, तो पीछे चार टुकड़ियाँ चलती हैं। पूरी परेड में 36 निर्देश देने होते हैं। निर्देश इतनी ज़ोर से देने होते हैं कि सबसे पीछे वाली टुकड़ी के लोग भी सुन पाएँ। देखने वाले तक भी आवाज़ सुनें, जो मैदान के दूसरी तरफ़ बैठते हैं।
अध्यापक के लिए— इस पाठ को पढ़ाते हुए अन्य व्यवसायों की भी चर्चा करवाई जा सकती है।
प्रश्न — चार टुकड़ियों के आगे चलते हुए आप घबराई नहीं?
वहीदा — घबराहट तो नहीं थी, पर ये है कि 36 बार चिल्ला कर निर्देश देने होते हैं। एक भी भूल जाओ, तो पूरी परेड गड़बड़ा जाती है। मैंने पूरा एक महीना सुबह-शाम अभ्यास किया था। परेड तो मैं स्कूल में भी करती ही थी।
प्रश्न — आपके नाम में जो यह शब्द है 'प्रिज्म ', इसका क्या मतलब है?
वहीदा — यह नाम मेरे पापा ने मुझे दिया था। प्रिज्म ऐसा काँच होता है, जो सात रंग दिखाता है। वे चाहते थे कि मैं भी इसी तरह अपनी पहचान बनाऊँ। इसीलिए उन्होंने बचपन से ही मुझे यह नाम दिया।
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क्या तुम किसी को जानते हो जो सेना में हैं? वे कौन-सी सेना में हैं— नौ सेना, थल सेना या वायु सेना?
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वे क्या काम करते है?
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क्या तुम सेना में जाना चाहते हो?
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कौन-सी सेना में जाना चाहते हो – थल सेना, वायु सेना या नौसेना?
अध्यापक के लिए— इस बात पर जोर दिया जा सकता है कि अब महिलाएँ भी बड़ी संख्या में तीनों सेनाओं और पुलिस में जा रही हैं। बच्चों को कक्षा में प्रिज्म दिखाएँ।
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सेना की तरह कौन-कौन सी नौकरियों में लोग वर्दी पहनते हैं?
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वहीदा नौसेना में डॉक्टर का काम करती हैं। नौसेना के तुम कोई और पाँच काम बताओ।
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क्या तुमने कोई परेड देखी है? अपने स्कूल में परेड करो और 36 बार निर्देश देकर देखो। जैसे – “परेड, दाएँ देखेगी, दाएँ देख", " परेड हिलो मत", "खुली लाइन चल", "निकट लाइन चल"। क्या तुम इसमें परेड के कुछ और निर्देश जोड़ सकते हो?
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एक डॉक्टर से बातचीत करो। उनके काम के बारे में पता लगाओ।
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क्या तुम ऐसी किसी महिला को जानते हो, जिन्होंने अनोखा काम किया है? उनके साथ ऐसी ही बातचीत करो जैसी हमने वहीदा के साथ की है। सोचो, क्या प्रश्न पूछोगे। उनसे पता करो कि उन्होंने उस काम को क्यों चुना और उन्हें कैसी-कैसी मुश्किलें आईं।