QR Code Chapter 5


5 दोस्त की पोशाक

एक बार नसीरूद्दीन अपने बहुत पुराने दोस्त जमाल साहब से मिले। अपने पुराने दोस्त से मिलकर वे बड़े खुश हुए। कुछ देर गपशप करने के बाद उन्होंने कहा, "चलो दोस्त, मोहल्ले में घूम आएँ।"

जमाल साहब ने जाने से मना कर दिया और कहा, "अपनी इस मामूली सी पोशाक में मैं लोगों से नहीं मिल सकता।"

नसीरूद्दीन ने कहा, "बस इतनी सी बात!"

नसीरूद्दीन तुरंत उनके लिए अपनी एक भड़कीली अचकन निकाल कर लाए और कहा, "इसे पहन लो। इसमें तुम खूब अच्छे लगोगे। सब देखते रह जाएँगे।"  बनठन कर दोनों घूमने निकले। दोस्त को लेकर नसीरूद्दीन पड़ोसी के घर गए। नसीरूद्दीन ने पड़ोसी से कहा, "ये हैं मेरे खास दोस्त, जमाल साहब। आज कई सालों बाद इनसे मुलाकात हुई है। वैसे जो अचकन इन्होंने पहन रखी है, वह मेरी है।"

नसीरूद्दीन और उसका दोस्त एक पड़ोसी के घर पर

यह सुनकर जमाल साहब पर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। बाहर निकलते ही मुँह बनाकर उन्होंने नसीरूद्दीन से कहा, "तुम्हारी कैसी अकल है! क्या यह बताना ज़रूरी था कि यह अचकन तुम्हारी है? तुम्हारा पड़ोसी सोच रहा होगा कि मेरे पास अपने कपड़े हैं ही नहीं।"

नसीरूद्दीन अपने दोस्त से बात कर रहा है

नसीरूद्दीन ने माफ़ी माँगते हुए कहा, "गलती हो गई। अब ऐसा नहीं कहूँगा।"। अब नसीरूद्दीन उन्हें हुसैन साहब से मिलवाने ले गए। हुसैन साहब ने गर्मजोशी से उनका स्वागत सत्कार किया। जब जमाल साहब के बारे में पूछा तो नसीरूद्दीन ने कहा, "जमाल साहब मेरे पुराने दोस्त हैं और इन्होंने जो अचकन पहनी है वह इनकी अपनी ही है।"

जमाल साहब फिर नाराज़ हो गए। बाहर आकर बोले, "झूठ बोलने को किसने कहा था तुमसे?"

"क्यों?" नसीरूद्दीन ने कहा, "तुमने जैसा चाहा, मैंने वैसा ही तो कहा।"

"पोशाक की बात कहे बिना काम नहीं चलता क्या? उसके बारे में न कहना ही अच्छा है", जमाल साहब ने समझाया।

जमाल साहब को लेकर नसीरूद्दीन आगे बढ़े। तभी एक अन्य पड़ोसी मिल गए। नसीरूद्दीन ने जमाल साहब का परिचय उनसे करवाया, "मैं आपका परिचय अपने पुराने दोस्त से करवा दूं। यह हैं। जमाल साहब और इन्होंने जो अचकन पहनी है उसके बारे में मैं चुप ही रहूँ तो अच्छा है।"

अचकन

तुम्हारे सवाल

कहानी के बारे में कोई पाँच प्रश्न बनाकर नीचे दी गई जगह में लिखो। कॉपी में उनके उत्तर लिखो।

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तुम्हारी बात

नसीरूद्दीन और जमाल साहब बनठन कर घूमने के लिए निकले।

  1. तुम बनठन कर कहाँ-कहाँ जाते हो?
  2. तुम किस-किस तरह से बनते-ठनते हो?

तुम्हारी समझ से

  1. तीसरे मकान से बाहर निकलकर जमाल साहब ने नसीरूद्दीन से क्या कहा होगा?

  1. जमाल साहब अपने मामूली से कपड़ों में घूमने क्यों नहीं जाना चाहते होंगे?
  2. नसीरूद्दीन अपनी अचकन के बारे में हमेशा क्यों बताते होंगे?

गपशप

जब जमाल साहब और नसीरूद्दीन हुसैन साहब के घर से बाहर निकले तो उन्होंने अपनी बेगम को नसीरूद्दीन और जमाल साहब से मुलाकात का किस्सा सुनाया। उन दोनों के बीच में क्या बातचीत हुई होगी? लिखकर बताओ।

बेगम कौन आया था?

हुसैन साहबनसीरूद्दीन अपने दोस्त के साथ आया था।

बेगम _____

घूमना-फिरना

नसीरूद्दीन ने कहा, "चलो दोस्त, मोहल्ले में घूम आएँ।"

जब नसीरूद्दीन अपने दोस्त से मिले, वे उसे अपना मोहल्ला दिखाने ले गए।जब तुम अपने दोस्तों से मिलते हो, तब क्या-क्या करते हो?

करके दिखाओ

नीचे कुछ वाक्य लिखे हैं। तुम्हें इनका अभिनय करना है। तुम चाहो तो कहानी में देख सकते हो कि इन कामों का ज़िक्र कहाँ आया है।

  • बनठन कर घूमने के लिए निकलना।
  • घड़ों पानी पड़ना।
  • मुँह बनाकर शिकायत करना।
  • गर्मजोशी से स्वागत करना।
  • नाराज़ होना।
  • देखते ही रह जाना।

घड़ों पानी पड़ना

नसीरूद्दीन की बात सुनकर जमाल साहब पर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया।

  1. घड़ों पानी पड़ना एक मुहावरा है। इसका क्या मतलब हो सकता है? पता लगाओ। तुम इसका मतलब पता करने के लिए अपने साथियों या बड़ों से बातचीत कर सकते हो या शब्दकोश देख सकते हो।
  2. इस मुहावरे को सुनकर मन में एक चित्र सा बनता है। तुम भी किन्हीं दो मुहावरों के बारे में चित्र बनाओ। कुछ मुहावरे हम दे देते हैं। तुम चाहो तो इनमें से कोई पसंद कर सकते हो
  • सिर मुंडाते ही ओले पड़ना
  • ऊँट के मुँह में जीरा
  • दीया तले अँधेरा
  • ईद का चाँद

कौन है कैसा

नसीरूद्दीन एक भड़कीली अचकन निकालकर लाए। भड़कीली शब्द बता रहा है कि अचकन कैसी थी। कहानी में से ऐसे ही और शब्द छाँटो जो किसी के बारे में कुछ बताते हों। उन्हें छाँटकर नीचे दी गई जगह में लिखो।

देखें, कौन सबसे ज़्यादा ऐसे शब्द ढूँढ़ पाता है।

पुराना दोस्त

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भड़कीली, पुराना जैसे शब्द किसी के बारे में कुछ खास या विशेष बात बता रहे हैं। इसलिए इन्हें विशेषण कहते हैं।

पास-पड़ोस

पड़ोस के घर में जाकर नसीरूद्दीन पड़ोसी से मिले।

तुम अपने पड़ोसी बच्चों के साथ बहुत-से खेल खेलते हो। पर क्या तुम उनके परिवार के बारे में जानते हो?

चलो, दोस्तों के बारे में और जानकारी इकट्ठी करते हैं। यदि तुम चाहो तो उनसे ये बातें पूछ सकते हो

  • घर में कुल कितने लोग हैं?
  • उनके नाम क्या हैं?
  • उनकी आयु क्या है?
  • वे क्या काम करते हैं?

इस सूची में तुम अपने मन से बहुत-से सवाल जोड़ सकते हो।

शब्दों का हेरफेर

झूठा - जूठा

इन शब्दों को बोलकर देखो। ये मिलती-जुलती आवाज़ वाले शब्द हैं। ज़रा से अंतर से भी शब्द का अर्थ बदल जाता है।

नीचे इसी तरह के कुछ शब्दों के जोड़े दिए गए हैं। इन सबके अर्थ अलग-अलग हैं। इन शब्दों का वाक्यों में प्रयोग करो।

घड़ा - गढ़ा

घूम - झूम

राज - राज़

फ़न - फन

सजा - सज़ा

खोल - खौल

नसीरूद्दीन का निशाना

नसीरूद्दीन अपने दोस्तों से बात कर रहा है

एक दिन नसीरूद्दीन अपने दोस्तों के साथ बैठे बतिया रहे थे। बात ही बात में उन्होंने गप्प मारना शुरू कर दिया, “तीरंदाज़ी में मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सकता। मैं धनुष कसता हूँ, निशाना साधता हूँ और तीर छोड़ता हूँ, शूँ.. ऊँ... ऊँ। तीर सीधे निशाने पर लगता है।"

दोस्तों को विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने नसीरूद्दीन की परीक्षा लेने का फ़ैसला किया। एक दोस्त भागा-भागा गया और तीर-धनुष खरीदकर ले आया। नसीरूद्दीन को थमाते हुए उसने कहा, "ये लो तीर-धनुष और अब साधो अपना निशाना उस लक्ष्य पर। देखते हैं कि तुम सच बोल रहे हो या झूठ।"

नसीरूद्दीन फँस गए। उन्होंने धनुष अपने हाथों में उठाया, डोर खींची, निशाना साधा और छोड़ दिया तीर को।

शूँ... ऊँ... ऊँ...।

तीर निशाने पर नहीं लगा। बल्कि वह तो बीच में ही कहीं गिर गया। “हा! हा! हा! हा! हा!" सभी दोस्त हँसने लगे।

"क्या यही तुम्हारा बेहतरीन शूट निशाना था?" उन्होंने कहा।

"नहीं, नहीं! हरगिज़ नहीं! यह तो काज़ी का निशाना था। मैं तो तुम्हें दिखा रहा था कि काज़ी कैसे निशाना लगाता है", इतना कहते हुए नसीरूद्दीन ने दुबारा धनुष उठाया, डोर खींची, निशाना साधा और तीर को छोड़ दिया।

नसीरूद्दीन धनुष उठाकर इशारा कर रहा है

शूँ... ऊँ... ऊँ...। इस बार तीर पहले वाले तीर से तो थोड़ा आगे गिरा पर निशाना फिर भी चूक गया।

दोस्तों ने कहा, “यह तो ज़रूर तुम्हारा ही निशाना था नसीरूद्दीन।" "बिल्कुल नहीं", नसीरूद्दीन ने कहा, "यह मेरा नहीं, सेनापति का निशाना था।"

एक दोस्त ने ताना कसा, “सूची में अब अगला कौन है?" इतना सुनते ही सबने जमकर ठहाका लगाया। नसीरूद्दीन खामोश रहा। उसने चुपचाप एक और तीर उठाया। नसीरूद्दीन ने एक बार फिर तीर चलाया।

शूँ... ऊँ... ऊँ... !

तीर से सेब पर निशाना लगा

इस बार तीर ठीक निशाने पर लग गया। सभी आश्चर्य से नसीरूद्दीन की ओर की ओर मुँह बाए ताकने लगे। इससे पहले कि कोई कुछ कह पाता नसीरूद्दीन ने एक विजेता के अंदाज़ में कहा, “देखा तुमने! यह था मेरा निशाना।"