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3. चखने से पचने तक
स्वाद-ही-स्वाद
झुम्पा रसोई में गई और माँ से लिपटकर बोली, “माँ, मैं नहीं खाऊँगी, कड़वे करेले। मुझे तो तुम गुड़-रोटी ही दे दो।” माँ ने हँसते हुए कहा, “कितना मीठा खाओगी! सुबह भी तो तुमने चीनी वाली रोटी खाई थी।”
“तुम बोर नहीं होती, एक ही तरह के स्वाद की चीजें खाकर?” झूलन ने झुम्पा को चिढ़ाते हुए कहा। झुम्पा तपाक से बोली, “तुम बोर होती हो क्या इमली चाटते-चाटते? ज़रूर नाम सुनते ही तुम्हारे मुँह में पानी आ गया होगा।” झूलन बोली, “मैं मीठा भी खाती हूँ, नमकीन भी। हाँ, खट्टी इमली मुझे बहुत ही पसंद है, पर मैं करेला भी खा लेती हूँ।” यह कहकर झूलन ने माँ को देखा और दोनों ज़ोर से हँस पड़ीं।
झूलन झुम्पा से बोली, “चलो, एक खेल खेलते हैं। मैं तुम्हारे मुँह में खाने की कोई चीज़ रखूगी। तुम्हें आँखें बंद करके उसे पहचानना होगा।” झूलन ने चम्मच में नींबू के रस की कुछ बूंदें ली और झुम्पा को चखाईं। “खट्टा नींबू”, झुम्पा फट से बोली। फिर झूलन ने गुड की डली उठाई तो माँ बोली, “पीसकर
खिलाओ, नहीं तो फट पहचान लेगी।” झूलन ने थोड़ा-सा गुड़ पीसकर झुम्पा को चखाया तो उसने पहचान लिया। इस तरह झुम्पा ने कई चीजें पहचानीं।
तली हुई मछली को तो झुम्पा ने बिना चखे ही पहचान लिया। तब झूलन बोली, “अब नाक बंद करके पहचानो।” झुम्पा ने चखा तो वह सोच में पड़ गई। “कुछ कड़वा-सा है, कुछ खट्टा-सा, कुछ नमकीन-सा। एक चम्मच और खिलाओ,” वह बोली। झूलन ने चम्मच में करेले की सब्जी ली, झुम्पा की आँखों की पट्टी खोली और बोली, 'खाओ!' झुम्पा भी हँसते हुए बोली, “लो, खिलाओ!”
चर्चा करो और लिखो
- खट्टी इमली का नाम सुनते ही झूलन के मुँह में पानी आ गया। तुम्हारे मुँह में कब-कब पानी आता है? अपनी पसंद की पाँच चीज़ों के नाम और उनके स्वाद लिखो।
- तुम्हें एक ही तरह का स्वाद पसंद है या अलग-अलग? क्यों?
- झूलन ने झुम्पा को नींबू के रस की कुछ बूँदें चखाईं। क्या कुछ बूँदों से स्वाद का पता चल सकता है?
- अगर तुम्हारी जीभ पर सौंफ के दाने रखें, तो क्या तुम बिना चबाए उसे पहचान पाओगे? कैसे?
अहा...
भौं-भौं
- खेल में झुम्पा ने मछली कैसे पहचान ली? वे कौन-सी चीजें हैं, जो तुम बिना देखे और चखे, केवल सूँघकर पहचान सकते हो?
- क्या तुम्हारे घर पर किसी ने तुम्हें नाक बंद करके दवाई पीने को कहा है? वे ऐसा क्यों कहते होंगे?
आँख बंद करके स्वाद पहचानो
अलग-अलग स्वाद की कुछ चीजें इकट्ठी करो और अपने साथी के साथ झूलन और झुम्पा की तरह खेल खेलो। अपने साथी को चीजें चखाओ और पूछो
- स्वाद कैसा था? खाने की चीज़ क्या थी?
- जीभ के कौन-से हिस्से में स्वाद ज़्यादा पता चल रहा था- आगे, पीछे, बाईं या दाईं तरफ़?
- तुम्हें जीभ के कौन-से हिस्से में कौन-सा स्वाद ज़्यादा पता चला? अपने अनुभव के आधार पर चित्र में लिखो।
- कुछ खाने की चीज़ों को मुँह के किसी और हिस्से पर रखो-होंठ, तालू, जीभ के नीचे। क्या कहीं और भी स्वाद का पता चला?
जीभ के हिस्सों को चित्र में दर्शाए
शिक्षक संकेत– ‘आँख बंद करके स्वाद पहचानो’ में बच्चों को खाने की चीजें एक ही तरीके से (जैसे – पीसकर) खिलाने से चीजें आसानी से पहचानी नहीं जाएँगी। बच्चों को अलग-अलग खाने की चीज़ों के स्वाद बताने और नए शब्द ढूँढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। अलग-अलग स्वादों के मेल (जैसे- खट्टा-मीठा, तीखा-चटपटा) पर चर्चा करने से बच्चे खाने में इतनी विविधता को समझ पाएँगे।
जीभ के अगले हिस्से को किसी साफ़ कपड़े से पोंछो ताकि वह सूखा हो जाए। अब वहाँ चीनी के कुछ दाने या शक्कर रखो। क्या कुछ स्वाद आया? सोचो, ऐसा क्यों हुआ होगा?
- शीशे के सामने खड़े होकर अपनी जीभ की सतह को ध्यान से देखो। कैसी दिखती है? क्या जीभ पर कुछ दाने-दाने जैसे दिखते हैं?
बताओ
- अगर कोई हम से पूछे कि कच्चे आँवले या खीरे का क्या स्वाद है तो हमें सोचना पड़ेगा।
- तुम खाने की इन चीज़ों, जैसे-टमाटर, प्याज़, सौंफ़, लौंग, आदि का क्या स्वाद बताओगे?
- स्वाद बताने के लिए कुछ शब्द ढूँढ़ो और खुद से सोचकर बनाओ।
- कुछ चीजें चखने के बाद झुम्पा बोली ‘सी-सी-सी’। सोचो, उसने क्या खाया होगा?
- तुम भी इसी तरह कुछ खाने के स्वादों के लिए आवाज़ें निकालो।
- अपने साथी से कहो कि वह तुम्हारे हाव-भाव देखकर अनुमान लगाए कि तुमने क्या खाया होगा।
चबाकर या चबा-चबाकर खाओ - दोनों में अंतर बताओ।
सब मिलकर कक्षा में यह गतिविधि करो। ब्रेड या रोटी का टुकड़ा या पके हुए चावल लो।
शिक्षक संकेत-मुमकिन है कि बच्चे बिल्कुल ठीक जगह न बता पाएँ कि जीभ के कौन-से हिस्से पर कौन-सा स्वाद पता चलता है।
- पहले रोटी का टुकड़ा या कुछ चावल मुँह में डालो और तीन-चार बार चबाकर निगल जाओ।
- क्या चबाने से स्वाद में बदलाव आया?
- अब रोटी का टुकड़ा या कुछ चावल मुँह में डालो और 30-32 बार चबाओ।
- क्या देर तक चबाने से स्वाद में बदलाव आया?
चर्चा करो
- घर में लोग तुम्हें कहते होंगे, “खाना धीरे-धीरे खाओ, ठीक से चबाओ, खाना अच्छे से पचेगा”। सोचो, वे ऐसा क्यों कहते होंगे?
- जब तुम कोई सख्त चीज़-जैसे अमरूद, खाते हो तो उसे मुँह में डालने से लेकर निगलने तक कौन-से बदलाव आते हैं और कैसे?
- सोचो, हमारे मुँह में लार क्या काम करती होगी?
शिक्षक संकेत- (अगले पृष्ठ पर) बच्चों को अपने शरीर में खाने के रास्ते का चित्र बनाकर दिखाने का उद्देश्य उन्हें पाचन तंत्र बताना नहीं है। कोशिश करें कि बच्चे अपने खुद के विचार बताएँ व उनका चित्र बनाएँ। बच्चों की कल्पना शक्ति को प्रोत्साहित करें, जिससे उन्हें ज्ञान सृजन के मौके मिलें। उन्हें एक-दूसरे के चित्र देखकर उन पर चर्चा करने के लिए भी प्रोत्साहित करें।
दिल की बात
तुम्हें क्या लगता है, शरीर में खाना कहाँ-कहाँ जाता होगा? दिए गए चित्र में खाना जाने का रास्ता अपने मन से बनाओ। अपने साथी का चित्र भी देखो। क्या तुम्हारा चित्र और साथी का चित्र एक जैसा है या अलग?
चर्चा करो
- क्या तुमने किसी को कहते सुना है, “मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं।” तुम्हें क्या लगता है, भूख लगने पर सचमुच पेट में चूहे कूदते हैं?
- तुम्हें कैसे पता चलता है कि तुम्हें भूख लगी है?
- सोचो, अगर तुम दो दिन तक कुछ भी न खाओ तो क्या होगा?
- क्या तुम दो दिन तक पानी के बिना रह सकते हो? सोचो, जो पानी हम पीते हैं, वह कहाँ जाता होगा?
भूख से तो मेरे सिर में दर्द हो जाता है।
जब भूख लगती है तो मुक्षे गुस्सा आता है।
जब मेरी बहन को भूख लगती है तो वह रोती है।
मुझे भूख लगती है तो मैं भी रोता हूँ।
जब मैं भूखा होता हूँ तो थका-थका महसूस करता हूँ
नीतू को चढ़ाया गया ग्लूकोज़
नीतू को पूरा दिन लगातार उल्टी होती रही, साथ में दस्त भी लग गए थे। उफ़! कुछ भी खाओ या पियो तो उल्टी। उसके पिताजी ने उसे पानी में नमक और चीनी घोलकर पीने के लिए दिया। शाम को डॉक्टर के पास जाने के लिए वह बिस्तर से उठी, तो चक्कर खाकर गिर पड़ी। वे उसे गोद में उठाकर डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने नीतू को अस्पताल में भर्ती होने को कहा, ग्लूकोज़ चढ़ाने के लिए। यह सुनकर नीतू सोच में पड़ गई। स्कूल में खेल के समय तो टीचर कई बार ग्लूकोज़ पीने को देती हैं, पर अब ग्लूकोज़ चढ़ाना क्यों है? डॉ. आँटी ने उसे कहा, “खाना और पानी शरीर में न रुकने की वजह से शरीर में। कमज़ोरी आ गई है। तुम्हारा पेट खराब है। ग्लूकोज़ चढ़ाने से, बिना खाए-पिए तुम्हें जल्दी ताकत मिल जाएगी और हिम्मत भी।”
बताओ और चर्चा करो
तुम्हें याद होगा कि तुमने चौथी कक्षा में नमक-चीनी का घोल बनाया था। नीतू के पिताजी ने भी उसे यही घोल दिया। सोचो, उल्टी-दस्त होने पर यह घोल क्यों देते होंगे?
- क्या तुमने कभी ‘ग्लूकोज़’ शब्द सुना है या लिखा हुआ देखा है? कहाँ?
- क्या तुमने कभी ग्लूकोज़ चखा है? उसका स्वाद कैसा होता है? अपने साथियों को बताओ।
शिक्षक संकेत-ग्लूकोज़ शुगर के रूप में हमारे शरीर को कैसे ताकत देता है, यह बात बच्चों के लिए अमूर्त है। इस उम्र के बच्चों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वे यह संबंध समझ पाएँगे।
- क्या तुम्हें या तुम्हारे घर में कभी किसी को ग्लूकोज़ चढ़ाया गया है? कब और क्यों? उसके बारे में अपने साथियों को बताओ।
- नीतू की टीचर उसे हॉकी खेलते समय बीच-बीच में ग्लूकोज़ पीने को कहती हैं। सोचो, वह खेल के दौरान ग्लूकोज़ क्यों पीती होगी?
- चित्र देखकर बताओ, नीतू को ग्लूकोज़ कैसे चढ़ाया गया?
कहानी खिड़की वाले पेट की
सुनो कहानी एक अनोखे पेट की
पेट में था छेद, कहानी छेद की
मार्टिन नाम का एक फ़ौजी
भूल से पेट में लगी गोली
हुआ इलाज पर रह गया छेद
डॉक्टर के लिए बना खेल
बातें जान लीं उसने भेद की
सुनो कहानी एक अनोखे पेट की
जब चाहें तब उसमें झाँक लें
अंदर का सारा हाल भाँप लें
क्या खाया, क्या चबाया
क्या नहीं पचा, क्या पचाया
कर सकते थे यह मीन मेख भी
सुनो कहानी एक अनोखे पेट की
चीज़ें जो करती थीं गड़बड़
उन्हें डालकर हाथ झटपट
बाहर निकाल सकते थे
बदले में नया खाना डाल सकते थे
हाँ! दाल-भात और सेव भी
सुनो कहानी एक अनोखे पेट की
खिड़की जैसे छेद वाले पेट की
इसके, उसके, सबके पेट की
कहानी यह हमने नहीं गढ़ी
वर्षों पहले सच्ची थी घटी
पढ़ो कहानी एक अनोखे पेट की
पेट में था छेद, कहानी छेद की
- राजेश उत्साही
चकमक, अगस्त 1985
कहानी-पेट में झाँका, जाना भेद!
तुमने कविता में जिस फ़ौजी के बारे में पढ़ा, वह सन् 1822 में अठारह साल का था और बहुत तंदुरुस्त था। जब वह गोली से ज़ख्मी हुआ तो उसे डॉक्टर बोमोंट के पास ले जाया गया।
डॉक्टर ने मार्टिन की अच्छी तरह से मरहम-पट्टी की। धीरे-धीरे उसका ज़ख्म ठीक होने लगा। पर पेट का छेद नहीं भरा। लगभग डेढ़ साल के बाद डॉक्टरों ने देखा कि मार्टिन के पेट में एक अद्भुत खिड़की-सी बन गई थी। पेट की चमड़ी ने बढ़कर छेद को ढँक तो लिया था, ठीक उस तरह जैसे एक फुटबाल का वाशर होता है। यानी चमड़ी की एक तह के ऊपर एक और तह-सी बन गई थी। निचली तह को दबाने पर छेद में से पेट में झाँका जा सकता था। छेद में ट्यूब डालकर पेट का खाना भी बाहर निकाला जा सकता था। अब क्या था। डॉक्टर बोमोंट को मार्टिन का यह अजूबा पेट क्या मिल गया, मानो एक खज़ाना मिल गया। सोच सकते हो, कितना समय लगाया होगा उन्होंने इस पेट के साथ प्रयोग करने में? नौ साल! इन नौ सालों में मार्टिन कुछ काम भी करते रहे और उनकी शादी भी हुई।
उस समय तक वैज्ञानिकों को यह नहीं मालूम था कि पेट में पाचन की क्रिया होती कैसे है? पेट में जो पाचक रस होते हैं, उनका क्या काम होता है? क्या वे पाचन में मदद करते हैं? या केवल भोजन को तरल बनाने के लिए ही होते हैं? पहले तो उन्होंने यह देखना चाहा कि यदि पेट के पाचक रस को बाहर एक गिलास में निकाल लिया जाए और खाने की कोई चीज़ डुबाकर उसमें रख दी जाए तो क्या वह पड़ी-पड़ी पच जाएगी!
इसके लिए उन्होंने एक प्रयोग किया। एक ट्यूब से पेट में से कुछ पाचक रस निकाल लिया। फिर दस मिलीलीटर पाचक रस में एक उबली हुई मछली के बीस बारीक टुकड़े डालकर सुबह साढ़े आठ बजे रख दिए। इस गिलास को उतने ही तापमान में रखा, जितना आमतौर पर हमारे पेट के अंदर होता है। लगभग 30° सेंटीग्रेड। दोपहर के दो बजे तक उन्होंने देखा कि मछली के सब टुकड़े पूरी तरह से घुल चुके थे।
फिर उन्होंने इसी तरह कुछ और भोजन पेट के पाचक रस में रखा और वही मार्टिन को खिलाया।
अलग-अलग भोजन पचने में कितनी देर लगी, उसकी
तालिका बना ली। डॉक्टर बोमोंट की तालिका देखो
क्र. | खाने की चीज़ | पचने में लगा समय |
|
|
| पेट में | गिलास के पाचक रस में |
1 | कच्चा दूध | 2 घंटे 15 मिनट | 4 घंटे 45 मिनट |
2 | उबला दूध | 2 घंटे | 4 घंटे 15 मिनट |
3 | पूरी तरह उबला अंडा | 3 घंटे 30 मिनट | 8 घंटे |
4 | कम उबला अंडा | 3 घंटे | 6 घंटे 30 मिनट |
5 | कच्चा अंडा फेंटा हुआ | 2 घंटे | 4 घंटे 15 मिनट |
6 | कच्चा अंडा | 1 घंटे 30 मिनट | 4 घंटे |
कहो, अब क्या सोचते हो? है कुछ फ़ायदा इस पेट का!
डॉक्टर बोमोंट ने मार्टिन के खिड़की वाले पेट के सहारे पाचन के कई रहस्य खोले। उन्होंने तालिका से देखा कि पेट में खाना जल्दी पचता है। क्या तुम भी यह देख पाए?
जल्दी पचाने के लिए हमारा पेट खाने को खूब घुमाता-हिलाता है। वे यह भी देख पाए जब मार्टिन दुखी या परेशान होता तो उसका खाना ठीक से नहीं पचता। यही नहीं उन्होंने बताया कि हमारे पेट का पाचक रस ‘एसिड’ (अम्ल) की तरह होता है। क्या तुमने किसी को कहते सुना है कि पेट में ‘एसिडिटी’ हो गई - खासकर जब ठीक से खाना नहीं खाया हो या पचाया हो?
उनकी वैज्ञानिक खोज को दुनिया के सभी वैज्ञानिकों ने सराहा। फिर कितने ही अन्य प्रयोग दुनिया के कोने-कोने में किए गए। क्या कहा तुमने? पेट में गोली मारकर! नहीं भई, बाद में होने वाले ये प्रयोग किसी के पेट में गोली मारकर नहीं किए गए! ये प्रयोग दूसरे वैज्ञानिकों ने मशीनों
की सहायता से किए। तो कहो, कैसी लगी मार्टिन के पेट उर्फ तुम्हारे पेट की कहानी!
- अनीता रामपाल
चकमक, अगस्त 1985
सोचो और चर्चा करो
- अगर डॉ. बोमोंट की जगह तुम होते तो पेट के रहस्य जानने के लिए क्या-क्या प्रयोग करते? उन प्रयोगों के नतीजे भी बताओ।
शिक्षक संकेत-इस सच्ची कहानी में बच्चे वैज्ञानिकों के काम करने के व्यवस्थित तरीके और विज्ञान के इतिहास की एक रोचक दास्ताँ पढ़ेंगे। बच्चों से यह अपेक्षा नहीं है कि वे पूरी तरह से पाचन क्रिया को समझ पाएँ। पेट क्या होता है, आँतें क्या काम करती हैं- यह सब वे बड़े होकर जानेंगे।
सही खाना और सही सेहत
डॉक्टर अपर्णा के पास इलाज के लिए दो बच्चे आए - रश्मि और कैलाश। दोनों बच्चों से डॉक्टर अपर्णा ने बातचीत की। बातचीत से कुछ जानकारी मिली जो नीचे दी है, तुम भी पढ़ो।
रश्मि, 5 साल
3 साल की लगती है। हाथ-पैर पतले और पेट फूला हुआ है, अक्सर बीमार रहती है।
थकान के कारण बहुत बार स्कूल भी नहीं जा पाती। खेलने की ताकत भी नहीं होती।
खाना- पूरे दिन में थोड़े-से चावल या एक-आध रोटी भी मिली तो समझो उस दिन बहुत मिल गया।
कैलाश, 7 साल
उम्र से बड़ा है। शरीर मोटा और थुलथुला है, पैरों में दर्द रहता है, फुर्ती से कोई भी काम नहीं कर पाता।
बस से स्कूल जाना, दिन में कई घंटे टी.वी. देखना।
खाना- (घर का बना खाना उसको पसंद नहीं) दाल-चावल, रोटी-सब्जी से दूर रहता है। बाज़ार के चिप्स, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक, बस यही भाता है उसे।
डॉक्टर ने दोनों का कद और वज़न नापा और जाँच भी की। दोनों बच्चों को कहा कि तुम्हारी बीमारी का एक ही इलाज है- ‘सही खाना’।
चर्चा करो
- तुम्हें क्या लगता है, रश्मि पूरे दिन में एक ही रोटी क्यों खाती होगी?
- क्या कैलाश को खेल-कूद में दिलचस्पी होगी?
- सही खाने से तुम क्या समझते हो?
- तुम्हारे हिसाब से रश्मि और कैलाश का खाना ठीक क्यों नहीं है? लिखो।
पता करो
- दादा-दादी से पूछो कि जब वे तुम्हारी उम्र के थे तब वे एक दिन में क्या-क्या काम करते थे? क्या खाते थे और कितना?
- अब तुम अपना सोचो, तुम जो खाते हो और जो काम करते हो।
- क्या आपके द्वारा की गई चीजें / बातें बड़ों जैसी हैं या उनसे अलग?
भरपेट खाना-सभी बच्चों का हक?
एक तरफ़ है कैलाश जो घर का खाना पसंद नहीं करता और दूसरी तरफ़ है रश्मि जिसको पेटभर खाने को मिलता ही नहीं। भरपेट खाना सभी बच्चों का अधिकार है। हमारे देश में लगभग आधे बच्चे रश्मि जैसे हैं। उन्हें ठीक तरह से बढ़ने के लिए जितना खाना चाहिए उतना भी नहीं मिलता। ये बच्चे कमज़ोर रहते हैं और कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।
ओडिशा के कालाहांडी जिले के बारे में पढ़ो और कक्षा में चर्चा करो।
सोचो और चर्चा करो
- क्या तुम किसी ऐसे बच्चे को जानते हो जिसे दिनभर में खाने को कुछ नहीं मिलता? इसके क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
- क्या तुमने कभी ऐसा गोदाम देखा है जहाँ बहुत सारा अनाज रखा हो? कहाँ?
तीस साल की गोमती किसी बड़े किसान के खेत में मजदूरी करती है। इस मेहनत की उसे बहुत कम मज़दूरी मिलती है। इन पैसों से वह पेटभर अनाज भी नहीं खरीद पाती। कई महीने तक तो उसे काम भी नहीं मिलता। फिर जंगल के पेड़ों की पत्तियाँ या जड़ें खाकर काम चलाना पड़ता है। इसी के कारण अब गोमती के बच्चे बीमार पड़े हैं। गोमती का पति भी कुछ साल पहले भूख के कारण ही गुज़र गया था।
एक तरफ़ तो कालाहांडी में सबसे अधिक चावल पैदा किया जाता है और दूसरे राज्यों में बेचा जाता है। दूसरी तरफ़ कालाहांडी के कई गरीब मज़दूरों की हालत गोमती जैसी है। कई बार तो यह धान गोदामों में पड़ा-पड़ा सड़ भी जाता है। फिर ऐसी जगह लोग भुखमरी का शिकार क्यों हो रहे हैं?
हम क्या समझे
- जब तुम्हें जुकाम होता है तो खाना बेस्वाद क्यों लगता है?
- अगर ऐसा कहा जाए – ‘हमारा मुँह ही पचाना शुरू कर देता है’- तो तुम कैसे समझाओगे? लिखो।
- ‘सही खाना’ न मिले तो बच्चों को क्या-क्या परेशानी हो सकती है?