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6. बूंद-बूंद, दरिया-दरिया...
बात पुरानी
यह है 650 साल पुराना घड़सीसर। ‘सर’ यानी तालाब। इसे जैसलमेर के राजा घड़सी ने लोगों के साथ मिलकर बनवाया था। इसके दोनों तरफ़ पक्के घाट, सजे हुए बरामदे, कमरे, बड़े हॉल और न जाने क्या-क्या था। यहाँ लोग मिलते-जुलते थे, जलसे होते थे, और गाने-बजाने का प्रोग्राम भी होता था। इसके घाट पर बनाए गए स्कूल में आसपास के बच्चे पढ़ने आते थे। सभी इस बात का ध्यान रखते थे कि तालाब गंदा न हो और सफ़ाई में भी हाथ बँटाते थे।
मीलों तक फैले इस घड़सीसर में बारिश का पानी इकट्ठा होता था। तालाब इस तरह बनाया गया था कि जब वह पानी से भर जाता, तब बाकी पानी बहकर नीचे बने हुए तालाब में चला जाता। जब वह भी लबालब भर जाता तो पानी तीसरे तालाब में चला जाता। इस तरह नौ तालाब एक-दूसरे से आपस में जुड़े थे। पूरे साल पानी की कोई परेशानी नहीं होती थी।
पर आज घड़सीसर जैसे उजड़-सा गया है। नौ तालाबों के रास्ते में मकान और कॉलोनियाँ बन गई हैं। यहाँ इकट्ठा होने वाला पानी अब तालाब की तरफ़ न जाकर बेकार बह जाता है।
अल-बिरूनी की नज़र से
हज़ार से भी ज़्यादा साल पहले एक यात्री भारत आए। इनका नाम था अल-बिरूनी। अल-बिरूनी जिस देश से आए थे उसे आजकल उज़्बेकिस्तान कहते हैं। अल-बिरूनी ने बहुत ही बारीकी से चीज़ों और जगहों को देखा और उनके बारे में लिखा। खासतौर से वे जो उन्हें अपने देश से अलग लगीं। चलो, देखें कि अल-बिरूनी उस समय के तालाबों के बारे में क्या लिखते हैं।
यहाँ के लोग तालाब बनाने में तो माहिर हैं! अगर हमारे देश के लोग इन्हें देखेंगे, तो हैरान ही रह जाएँगे। बहुत बड़े-बड़े भारी पत्थरों को लोहे के कुण्डों और सरियों से जोड़कर तालाब के चारों तरफ़ चबूतरे बनाए जाते हैं। इन चबूतरों के बीच में ऊपर से नीचे जाती हुई सीढ़ियों की लंबी कतारें होती हैं। लोगों के उतरने चढ़ने के रास्ते अलग-अलग होते हैं। यहाँ कभी भीड़ लगने से परेशानी नहीं होती है।
आज इतिहास पढ़ने वाले लोगों को अल-बिरूनी की किताबों से उस ज़माने के बारे में बहुत कुछ पता चलता है। (यह डाक टिकट 1973 में छपी थी जब उनके जन्म के हज़ार साल पूरे हुए थे।)
देखो और पता करो
अपने स्कूल के आस-पास के इलाके को देखो। क्या वहाँ कच्चा मैदान, पक्की सीमेंट से बनी सड़कें, नालियाँ, आदि हैं। इलाका किस तरह का है? जैसे – ढलान वाला, पथरीला या किसी तरह का। तुम्हें क्या लगता है, बारिश का पानी बहकर कहाँ-कहाँ जाता होगा? जैसे- ज़मीन में, नालियों में, पाइपों में, गड्डों में, आदि।
बूँद-बूँद की कीमत
राजस्थान में जैसलमेर के अलावा बहुत-से इलाके ऐसे हैं जहाँ साल में बहुत ही कम दिन बारिश होती है। यहाँ की नदियों में भी साल में कई महीने पानी नहीं रहता।
शिक्षक संकेत-बच्चों को बताएँ कि अल-बिरूनी की किताब किस तरह से इतिहास के बारे में जानने में मददगार है। ऐसे ही अन्य इतिहास के स्रोत, जैसे-इमारतें, दस्तावेज़, सिक्के, चित्र, आदि के बारे में चर्चा करें। उज्बेकिस्तान को संसार के नक्शे में ढूँढ़ने में बच्चों की मदद करें।
सोचो, ऐसे में भी यहाँ के ज़्यादातर गाँवों में पानी की कमी क्यों नहीं थी। लोग बारिश की हर बूंद की कीमत जो जानते थे। पानी को इकट्ठा करने के लिए तालाब और जोहड़ बनवाए जाते। यह एक साँझी (सबकी) ज़रूरत थी। इसलिए इंतज़ाम में भी सभी जुड़ते, चाहे व्यापारी हों या मज़दूर। तालाब में से कुछ पानी ज़मीन सोख लेती और इस तरह जमीन से आस-पास के कुओं और बावड़ियों में भी पानी पहुँच जाता। आस-पास की ज़मीन भी नम और उपजाऊ हो जाती।
घर-घर में भी बारिश का पानी इकट्ठा करने का इंतज़ाम होता था। सामने दिए चित्र में निशान लगाओ कि छत पर बरसने वाला पानी जमीन के नीचे बने टैंक में कैसे पहुँचेगा।
तुमने क्या कभी बावड़ी देखी है? इस चित्र को देखकर क्या तुम अंदाज़ा लगा पा रहे हो कि ये सीढ़ियाँ ज़मीन के नीचे कई मंज़िल तक जा रही हैं? पानी ऊपर से खींचने की बजाय लोग खुद पानी तक पहुँच सकते थे। इसीलिए कुछ लोग इसे सीढ़ीदार कुआँ भी कहते हैं।
पुराने जमाने में लोग काफ़िले बनाकर लंबे सफ़र करते थे। अकसर लोगों का मानना था कि प्यासे यात्रियों को पानी पिलाना बहुत अच्छा काम है। इसीलिए कई जगह बहुत ही सुंदर बावड़ियाँ बनवाई गई थीं।
शिक्षक संकेत - ज़मीन, पानी किस तरह सोख लेती है? कुँए या बावड़ी में पानी कैसे पहुँच पाता है? चर्चा करें।
- क्या तुम्हारे यहाँ कभी पानी की किल्लत हुई है? अगर हुई है, तो उसका कारण क्या था?
अपनी दादी, नानी या किसी और बड़े से बातचीत करो कि जब वे तुम्हारी उम्र की थीं, तब
- घर में पानी कहाँ से आता था? क्या ‘तब’ और ‘अब’ में कोई बदलाव हुआ है?
- मुसाफ़िरों के लिए पानी का किस-किस तरह का इंतज़ाम होता था? जैसे प्याऊ, मशक या कुछ और? आजकल सफ़र में लोग क्या करते हैं?
पानी से जुड़े रिवाज...
आज भी कहीं-कहीं कई सौ साल पुराने पानी के स्रोत हैं जैसे- बावड़ी, तालाब, नौला, धारा, आदि- जिनसे लोगों की पानी की ज़रूरत पूरी होती है। उत्तराखंड के ये फ़ोटो देखो। पानी से जुड़े हैं कई रिवाज, त्योहार और जश्न। कई जगह तो आज भी बारिश से तालाब भरने की खुशी में - आस-पास मेले का माहौल हो जाता है।
यह उत्तराखंड की एक दुलहन है जो ब्याह के बाद नए गाँव में आई है। वह झरने या तालाब पर जाकर सिर झुकाती है। आज शहरों में इस रिवाज का एक मज़ेदार रूप दिखता है। दुलहन घर ही में किसी नल के पास जाकर पूजा करती है। पानी से ही तो जिंदगी जुड़ी है न!
क्या तुम्हारे यहाँ पानी के लिए कुछ खास बर्तन इस्तेमाल होते हैं। यहाँ देखो इस सुंदर कुंडों वाले ताँबे के बर्तन में पानी भरा जा रहा है। दूसरे चित्र में चमकदार पीला, पीतल का घड़ा है। पानी भरने की जगह पर सुंदर मूर्तियाँ भी बनाई गई हैं। क्या तुमने कभी पानी की जगह पर कोई सुंदर इमारत बनी देखी है? कहाँ?
पता करो
क्या तुम्हारे घर या स्कूल के आस-पास तालाब, कुँआ या बावड़ी बनी है? उसे देखने जाओ और पता भी करो।
- यह कितना पुराना है? किसने बनवाया होगा?
- इसके आस-पास किस तरह की इमारत बनी है?
- पानी साफ़ है या नहीं? क्या इसकी सफ़ाई होती है?
- यहाँ से कौन-कौन पानी भरते हैं?
- क्या कभी यहाँ कोई त्योहार मनाया जाता है?
- पानी कहीं सूख तो नहीं गया?
ज़रा सोचो
1986 में जोधपुर और आस-पास के इलाकों में जब सूखा पड़ा था, तब भूली-बिसरी बावड़ियों को एक बार फिर से याद किया गया। मोहल्ले के लोगों ने मिल-जुलकर बावड़ी में से 200 ट्रक से भी ज्यादा कूड़ा निकाला। बावड़ी ने फिर से प्यासे शहर को पानी पिलाया। इसके लिए चंदा भी मोहल्ले वालों ने ही दिया। कुछ साल बाद फिर से अच्छी बारिश हुई और पानी की परेशानी कम हुई। पर अब फिर-से बावड़ी को भुला दिया गया है।
चर्चा करो
पुनीता के मोहल्ले में दो पुराने कुँए हैं। उसकी दादी बताती हैं कि लगभग 15-20 साल पहले तक उनमें पानी था। क्या कुँए सूखने की कुछ वजह ये हो सकती हैं? चर्चा करो
- कई जगह मोटर लगाकर ज़मीन का पानी निकाला जा रहा है।
- तालाब जिनमें बारिश का पानी इकट्ठा होता था, अब नहीं रहे।
- पेड़ों के आस-पास और पार्क में भी ज़मीन को सीमेंट से पक्का कर दिया गया है।
- क्या तुम कोई और वजह भी सुझा सकते हो?
हाल की बात
आज लोग पानी का इंतज़ाम किस-किस तरह से करते हैं। चित्र (पृष्ठ 57) को देखकर चर्चा करो।
- तुम्हारे यहाँ जिस तरह पानी आता है उस पर (सही) निशान लगाओ। अगर किसी अलग तरीके से आता है तो अलग से कॉपी में लिखो?
शिक्षक संकेत – पानी की सुविधा सभी को बराबर नहीं मिलती-इस पर चर्चा ज़रूरी है। साथ ही यह भी देखें कि कहाँ-कहाँ से और किन परेशानियों से लोगों को पानी लाना पड़ता है। पानी और जात-पात का मुद्दा मुश्किल तो है लेकिन ज़रूरी भी है।
हमारे यहॉं पानी यहॉं से आता है
हमारे मोहल्ले में दिन में दो बार जल बोर्ड का टैंकर आता है। पानी के लिए लंबी लाइन लगती है और रोज़ झगड़े होते हैं।
हम कुएँ से पानी भरते हैं। पास के कुँए एक साल पहले सूख गए। अब काफ़ी दूर चलकर जाना पड़ता है। कई कुँओं पर तो जात के नाम पर पानी लेने भी नहीं देते हैं।
मेरे यहाँ दिन में आधे घंटे के लिए पानी आता है। हम लोग दिनभर के इस्तेमाल के लिए टंकी में पानी भरकर रखते हैं।
हमारे यहाँ तो दिनभर नल में पानी आता है।
मेरे यहाँ हैंडपंप लगा है, लेकिन उसका पानी काफ़ी खारा है। पीने के लिए तो पानी खरीदना ही पड़ता है।
हमने जल बोर्ड के पाइप में टुल्लू पंप लगाया है। कोई परेशानी नहीं!
हमारे घर में बोरिंग के पाइप में मोटर लगी है। लेकिन बिजली ही नहीं होती तो क्या करें!
हम नहर से ही पानी भरते हैं।
चर्चा करो
जिंदगी का हक तो सभी का है। फिर जीने के लिए या पीने भर के लिए पानी मिल जाए - क्या यह हक हर एक को मिल रहा है? ऐसा क्यों है कि कुछ लोगों को तो खरीदकर ही पानी पीना पड़ता है? पृथ्वी पर तो पानी सभी का है, साँझा है। कुछ लोग गहरा बोरिंग करके ज़मीन के नीचे से ज़्यादा पानी खींच लेते हैं यह कहाँ तक सही है। तुमने क्या ऐसा कहीं देखा है? कुछ लोगों को जल बोर्ड के पाइप में टुल्लू पंप क्यों लगाना पड़ रहा होगा? इससे दूसरे लोगों को क्या परेशानी हो रही होगी? तुम्हारा क्या कुछ ऐसा अनुभव है?
बिल को देखकर बताओ
- यह बिल कौन-से दफ़्तर से आया है?
- तुम्हारे यहाँ अगर बिल आता है तो कहाँ से आता है?
- इस बिल में दिल्ली जल बोर्ड के नीचे दिल्ली सरकार क्यों लिखा होता है?
- बिल किसके नाम से है? कितने महीनों के कितने पैसे देने पड़ रहे हैं?
- क्या तुम्हारे यहाँ पानी के पैसे चुकाने पड़ते हैं? क्या तुम्हारे यहाँ अलग-अलग इलाकों में पानी का रेट अलग है? बड़ों से पता करो।
यह मुमकिन है
आज कई संस्थाएँ पानी के इंतज़ाम में लगी हैं। वे लोग बुजुर्गों से मिलकर यह जानने की कोशिश करते हैं कि उनके ज़माने में पानी का इंतज़ाम किस तरह का था। वे पुराने तालाबों की मरम्मत करते हैं और नए तालाब भी बनाते हैं। चलो देखें कि ‘तरुण भारत संघ’ नाम की एक संस्था ने दड़की माई की मदद कैसे की।
ये हैं दड़की माई। राजस्थान के अलवर जिले के एक गाँव में रहती हैं। इस गाँव की औरतों का पूरा समय घर के कामों और जानवरों की देखभाल में चला जाता था। कभी-कभी तो जानवरों के लिए कुँओं से पानी खींचने में पूरी रात लग जाती थी। जब गर्मियों में कुँए भी सूख जाते तो गाँव छोड़ना पड़ता। दड़की माई ने पहल की और लोगों ने संस्था के साथ मिलकर तालाब बना लिया। जानवरों के चारे-पानी की परेशानी कम हुई और ज़्यादा दूध मिलने लगा। लोगों की कमाई भी बढ़ी है। वे लोग अब दूध का मावा बनाकर भी बेचते हैं।
- चार गाँव की कथा किताब से
- तुमने इस तरह की क्या कोई खबर पढ़ी है? लोगों ने मिलकर पानी की परेशानी को कैसे दूर किया? क्या किसी पुराने तालाब या बावड़ी को फिर ठीक करके इस्तेमाल किया?
हम क्या समझे
पोस्टर बनाओ– “पृथ्वी पर पानी सभी का है, साँझा है।” कुछ और ऐसे ही नारे सोचो और साथ ही चित्र भी बनाकर अपना एक सुंदर पोस्टर बनाओ।
एक पानी का बिल लाओ। उसे देखकर बताओ
- एक पानी का बिल लाओ। उसे देखकर बताओ
- यह बिल किस तारीख से किस तारीख तक का है?
- इस बिल के लिए कितने पैसे भरने पड़ेंगे?
- इनके अलावा बिल में और क्या-क्या देख पा रहे हो? जैसे-मरम्मत, टूट-फूट आदि पर हुआ खर्च।