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11. सुनीता अंतरिक्ष में
दिल की बात बताओ
- तुम्हें क्या लगता है पृथ्वी कैसी है? अपनी कॉपी में चित्र बनाओ। इसमें तुम कहाँ हो, यह भी दिखाओ। अपने साथियों के बनाए चित्रों को भी देखो।
कैसी है हमारी पृथ्वी-
उजैरा और शाहमीर ग्लोब को घुमा-घुमाकर खेल रहे हैं। तुम भी पढ़ो वे क्या बातें कर रहे हैं। उजैरा- पता है, कल हमारे स्कूल में सुनीता विलियम्स आ रही हैं। मैंने सुना है कि वे छह महीने से भी ज्यादा अंतरिक्ष में रहीं।
शाहमीर- यह रहा अमरीका... यह है अफ़्रीका। पर अंतरिक्ष कहाँ है?
उजैरा- अरे भई! ये सारा आसमान, ये तारे, चाँद, सूरज ये सब अंतरिक्ष में हैं।
शाहमीर- हाँ, पता है! सुनीता विलियम्स वहाँ स्पेसशिप से गई थीं। टी.वी. पर बताया था कि वहाँ से उन्होंने पृथ्वी को भी देखा।
उजैरा- हाँ, वहाँ से पृथ्वी ग्लोब की तरह दिखती है।
शाहमीर- अगर हमारी पृथ्वी ग्लोब की तरह है तो इसमें हम कहाँ हैं? (उजैरा ने एक पेन उठाया और ग्लोब के ऊपर टिका दिया।)
उजैरा- यहाँ, ये रहे हम। यहाँ है इंडिया।
शाहमीर – पर ऐसे तो हम गिर ही जाएँगे। ज़रूर, हम सब ग्लोब के अंदर होंगे!
शिक्षक संकेत- हम जानते हैं कि वैज्ञानिक भी पृथ्वी के आकार की समझ बनाने के लिए जूझते रहे हैं और इस उम्र के बच्चों के लिए भी पृथ्वी के आकार को समझना आसान नहीं है। बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वे पृथ्वी के आकार के बारे में अपनी सोच को बेझिझक व्यक्त करें।
उजैरा- अगर हम ग्लोब के अंदर हैं, तो फिर आसमान कहाँ है और तारे, सूरज और चाँद कहाँ होंगे? हम ग्लोब के ऊपर ही होंगे! सारे समुद्र भी ग्लोब के ऊपर होंगे!
शाहमीर (ग्लोब के नीचे की ओर दिखाते हुए कहा)-तो फिर यहाँ कोई नहीं रहता क्या? उजैरा- यहाँ भी लोग रहते तो हैं। यहाँ ब्राज़ील और अर्जेंटीना हैं।
शाहमीर- तो यहाँ क्या लोग उलटे खड़े होंगे? ये लोग गिर क्यों नहीं जाते?
उजैरा- हाँ, अजीब-सा लगता है! और यह नीला-नीला समुद्र है न। फिर यह पानी भी क्यों नहीं गिर जाता?
तुम्हें क्या लगता है-
- हम धरती पर कैसे टिके होंगे? अगर पृथ्वी ग्लोब जैसी गोल है तो हम गिरते क्यों नहीं?
- क्या अर्जेंटीना के लोग उलटे खड़े हैं?
सुनीता से बातचीत
जब सुनीता विलियम्स भारत आईं तो उजैरा और शाहमीर जैसे हज़ारों बच्चों को उनसे बातचीत करने का मौका मिला। सुनीता कहती हैं कि उनकी दोस्त कल्पना चावला खुद भारत आकर बच्चों से मिलना चाहती थीं। कल्पना के अधूरे सपने को पूरा करने सुनीता भारत आईं।
शिक्षक संकेत- बच्चों को कल्पना चावला और उनकी अंतरिक्ष यात्रा के बारे में बताया जा सकता है। frecht os fone Toh Tolos foralla -How We Found the Earth is Round by Issac Asimov (Longman). इसमें बताया है सदियों से अलग-अलग संस्कृतियों में इंसानों ने पृथ्वी के बारे में क्या-क्या सोचा है। पते की बात है कि आज भी बच्चों की कल्पना कई बार उन विचारों से सहज ही मेल खाती है। यह बात कि पृथ्वी पर ऊपर-नीचे कुछ नहीं होता, कि भारत और अर्जेंटीना के लोग सापेक्ष एक-दूसरे के उलटे हो सकते हैं-कई बार बड़ों को भी चक्कर में डाल देती है!
सुनीता बताती हैं अंतरिक्ष की कुछ मज़ेदार बातें!
- हम एक जगह टिककर तो बैठ ही नहीं सकते थे। यान में एक जगह दूसरी जगह तैरते हुए पहुँचते।
- पानी भी एक जगह टिका नहीं। रहता। वह बुलबुलों की तरह इधर-उधर उड़ता फिरता। पता है, हाथ-मुँह धोने के लिए हम तैरते बुलबुलों को पकड़कर कपड़ा गीला करते और हाथ-मुँह साफ़ करते!
- वहाँ खाना भी अजब तरीके से खाना पड़ता था। सबसे ज़्यादा मज़ा तब आता था, जब हम सभी उड़ते हुए खाने वाले कमरे में जाते और उड़ते हुए खाने के पैकेटों को पकड़ते।
- अंतरिक्ष में मुझे कंघी करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी। बाल हमेशा ही खड़े रहते!
- चल न पाना, हर समय तैरते रहना और हर काम अलग तरीके से करना यह सब करने की आदत डालना आसान नहीं था। एक जगह टिककर काम करना हो तो अपने-आप को बेल्ट से बाँधो। कागज़ को भी ऐसे नहीं छोड़ सकते, उसे भी दीवार के साथ बाँधकर रखो। अंतरिक्ष में रहना बहुत ही मज़ेदार था लेकिन मुश्किल भी।
फ़ोटो देखो और लिखो -
- अंतरिक्ष में सुनीता के बाल खड़े क्यों रहते होंगे? बाल नीचे क्यों नहीं बैठते थे?
- सुनीता के इन सब चित्रों को देखो और बताओ कि उनमें कब, क्या-क्या होता दिख रहा है?
यह भरी उड़ान (9-12-2006)
अरे, पाँव टिकते ही नहीं (11-12-2006)
बाल खड़े के खड़े काम करते हुए भी न करें परेशान (13-12-06)
यह खाना कहाँ उड़ा जा रहा है! (11-12-2006)
यान के बाहर सुनीता-वाकई अंतरिक्ष में (16-12-06)
सभी चित्र नासा के सौजन्य से
क्लास बनी अंतरिक्ष यान (स्पेसशिप)-
- आँखें बंद करो और सोचो कि तुम्हारी क्लास एक अंतरिक्ष यान बन गई है। तुम शू...से 10 मिनट में अंतरिक्ष में पहुँच गए हो। तुम्हारा यान अब पृथ्वी के चारों तरफ़ चक्कर लगा रहा है। अब बताओ
- क्या एक जगह बैठ भी पा रहे हो?
- बालों का क्या हाल है?
- अरे भई, बस्ता और किताबें कहाँ घूम रही हैं?
- और टीचर जी क्या कर रही हैं? उनकी चॉक का क्या हुआ?
- आधी छुट्टी में खाना कैसे खा पाए? पानी कैसे पिया? बॉल उछाली तो क्या हुआ?
- चित्र बनाकर या एक्टिंग करके यह सब बताओ।
कुछ तो है कमाल-
पृथ्वी पर कुछ भी उछालें तो वह वापस नीचे आता है। बॉल उछालकर वापस पकड़ पाते हो न! पृथ्वी पर तो हम तैरते नहीं फिरते। पानी रखते हैं, तो गिलास में रहता है या बाल्टी में टिका रहता है। बुलबुले बनकर घूमता नहीं फिरता। यह कमाल पृथ्वी का ही है। पृथ्वी हर चीज़ को अपनी तरफ़ खींचकर रखती है। सुनीता विलियम्स पृथ्वी से 360 किलोमीटर दूर स्पेसशिप में गई थीं। सोचो 360 किलोमीटर कितना होता है? तुम जहाँ रहते हो वहाँ से 360 किलोमीटर कौन-सा शहर है। सुनीता उतनी ही दूर पृथ्वी से बाहर गई थीं।
शिक्षक संकेत- अंतरिक्ष में चीजें किस तरह व्यवहार करती हैं, यह समझना बड़ों के लिए भी कठिन है। बच्चों को चित्रों की मदद से सवाल पूछने, चर्चा करने और कल्पना करने का मौका दें। दरअसल हम इतने आदी हो जाते हैं, पृथ्वी द्वारा हर चीज़ को खिंचते देख, कि उस खिंचाव के बारे में सोचते ही नहीं और कल्पना भी नहीं कर पाते कि उसके बिना क्या-क्या होता होगा।
जादू 1-नन्हा-सा कागज़ चला सिक्के की चाल!
एक पाँच रुपये का सिक्का लो और कड़े कागज़ का एक छोटा-सा टुकड़ा जो सिक्के के चौथाई भर हो।
- एक हाथ में सिक्का और दूसरे में नन्हा कागज़ पकड़कर दोनों एक साथ गिराओ। क्या हुआ?
- अब नन्हे कागज़ को सिक्के के ऊपर रखो और फिर दोनों को एक साथ गिराओ।
इस बार क्या हुआ? चौंक गए क्या!
जादू 2 - चूहे ने हाथी को ऊपर उठाया!
इस खेल के लिए एक छोटा पत्थर (बेर के बराबर), एक बड़ा पत्थर (नींबू के बराबर) और एक कागज़ का रोल लो। कागज़ की कई तहों से रोल बन सकता है।
- लगभग दो फुट लंबी डोरी लो।
- डोरी के एक सिरे पर छोटा पत्थर बाँधो। कागज़ पर चूहा बनाकर पत्थर पर चिपकाओ या बाँधो।
- अब डोरी के दूसरे सिरे को कागज़ के एक रोल में डालो।
इस सिरे पर बड़ा पत्थर बाँधो और कागज़ पर बनाया हाथी उस पर चिपकाओ।
- कागज़ के रोल को गोल-गोल घुमाओ ताकि छोटा पत्थर घूमने लगे।
खींच रहा है न चूहा हाथी को! खेल में चूहे ने ऐसा कमाल कैसे दिखाया होगा?
लकीरें आखिर हैं कहाँ-
स्पेसशिप की खिड़की से पृथ्वी को देखकर सुनीता बताती हैं, “पृथ्वी बहुत ही अद्भुत और सुंदर दिखती है। इतनी सुंदर कि उसे घंटों तक निहारते रहो। अंतरिक्ष से पृथ्वी की गोलाई भी साफ़ दिखती है।"
शिक्षक संकेत- सुनीता के अनुभवों से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में यहाँ केवल संकेत है, पर इस शब्द की अभी ज़रूरत नहीं। हमें बच्चों की मदद करनी होगी कि वे अपने रोज़ के अनुभवों से पृथ्वी के खिंचाव का कुछ एहसास बना पाएँ। नन्हा कागज़ भी भारी सिक्के की आड़ में उसी के साथ गिरता है तो वाकई जादुई लगता है! क्योंकि आम जिंदगी में हल्के पत्ते या कागज़ तो मँडराते हुए गिरते दिखते हैं, जब हवा उनकी चाल को धीरे करने में सफल होती है।
चूहे-हाथी के खेल का विज्ञान बच्चों को समझाने की कतई अपेक्षा नहीं है। बस उन्हें कुछ अहसास हो पाए कि जो पत्थर घूम रहा है वह पृथ्वी के खिंचाव के खिलाफ़ हाथी को खींच पा रहा है, तो वह भी अपेक्षा से ज़्यादा है। वास्तव में अंतरिक्ष यान के पृथ्वी के गिर्द घूमने से ही सुनीता भी तो पृथ्वी के खिंचाव से मुक्त थीं।
तुम भी देखो हमारी पृथ्वी का यह फ़ोटो जो एक स्पेसशिप से लिया गया है। आज तो हम यह फ़ोटो देख पा रहे हैं, पर हज़ारों सालों से लोग कल्पना ही करते रहे हैं कि भला पूरी पृथ्वी कैसी दिखती होगी! वैज्ञानिक भी जानने की कोशिश करते रहे कि पृथ्वी कितनी बड़ी है, कैसे घूम रही है।
फ़ोटो को देखो और बताओ-
अपने स्कूल में ग्लोब को देखो और बताओ -
(उजैरा और शाहमीर ग्लोब पर अलग-अलग देशों को देख रहे हैं।)
उजैरा- ग्लोब पर तो सारे देशों के बीच लकीरें दिखाई देती हैं। क्या पृथ्वी पर ऐसी लाइनें खिंची होती हैं?
शाहमीर- लकीरें तो होती हैं। हमारी किताब में इंडिया के नक्शे में भी हैं। देखो, राज्यों के बीच में लाइनें साफ़ दिखाई देती हैं।
उजैरा- अगर हम दिल्ली से राजस्थान जाएँगे तो क्या रास्ते में ज़मीन पर ऐसी लाइनें दिखेंगी?
अपने देश के नक्शे को देखो और बताओ-
जब सुनीता ने अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखा तो उसे बहुत सुंदर लगी और उसके मन में कई ख्याल आए। सुनीता कहती हैं, "इतनी दूर से बस इतना दिखता है कि पृथ्वी पर समुद्र कहाँ है और ज़मीन कहाँ है। अलग-अलग देश नहीं दिखते। ज़मीन का देशों में बँटवारा तो हमारा ही किया हुआ है। ये लाइनें तो कागज़ पर ही होती हैं। मैं चाहूँगी तुम भी इसके बारे में सोचो कि लकीरें आखिर हैं कहाँ?"
चलो आसमान को देखें
शाहमीर- (एक आँख बंद करके, चाँद की तरफ़ देखते हुए और सिक्के को थोड़ा आगे-पीछे करते हुए) मैं चाँद को सिक्के से छुपा सकता हूँ।
उजैरा- वाह! इतने बड़े चाँद को इतने छोटे-से सिक्के ने छुपा दिया।
सोचो-
• क्या चाँद सिक्के की तरह चपटा होगा या बॉल की तरह गोल?
क्या तुमने कभी रात में आसमान को गौर से देखा है। अँधेरी रात में चमकते तारों को देखने का मज़ा ही कुछ निराला है! कभी तो चाँद चाँदनी बिखराता है, तो कभी घुप अँधेरी रात में ढूँढ़ते नहीं मिलता।
आज की तारीख | एक हफ़्ते बाद की तारीख | 15 दिन बाद की तारीख |
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पता करो -
अभ्यास
दिल्ली में कुछ दिनों तक चाँद के निकलने और डूबने का समय तालिका में दिया गया है।
तारीख | चाँद निकलने का समय घंटा : मिनट
| चाँद डूबने का समय घंटा : मिनट |
28-10-2007 | 19:16 | 08:5 |
29-10-2007 | 20:17 | 10:03 |
30-10-2007 | 21:22 | 11:08 |
31-10-2007 | 22:29 | 12:03 |
तालिका देखो और बताओ-
28 अक्तूबर को चाँद शाम के _____ बजकर _____ मिनट पर निकला।
29 अक्तूबर को चाँद शाम के _____ बजकर _____ मिनट पर निकला।
29 अक्तूबर को चाँद निकलने में _____ घंटे _____ मिनट का फ़र्क आया।
कवि भी इस कविता में कुछ इसी तरह के सवाल उठा रहे हैं।
आसमान में कितने तारे
क्या तुमको दिखते हैं सारे
किस-किस का तुम नाम जानते
कौन है कितने पास तुम्हारे
आसमान में कितने तारे?
दिन में क्यों छिपते हैं तारे
रात में क्यों दिखते हैं तारे
क्यों होता है गोरखधंधा
जगमग क्यों करते हैं तारे
दिन में क्यों छिपते हैं तारे?
हर तारे की बात पुरानी
कुछ की लेकिन सही निशानी
क्या देखा, क्या जाना तुमने
बोलो इनकी राम कहानी
हर तारे की बात पुरानी!
अनवार इस्लाम
चकमक, दिसम्बर 2003
पृथ्वी का एक मज़ेदार फ़ोटो!
चाँद पर एक स्पेसशिप गया था। उसमें लगे कैमरे ने चाँद की सतह से पृथ्वी की ऐसी फ़ोटो खींची थी। देखो, पृथ्वी कैसी दिख रही है। चाँद की सतह कहाँ दिख रही है? चित्र देखने के बाद तुम्हारे मन में क्या कुछ सवाल आए? सवाल लिखो और क्लास में चर्चा करो।
शिक्षक संकेत- आसमान को निहारने में बच्चों और बड़ों, सभी को मज़ा आएगा। बच्चों को टूटते तारे, तारे और उपग्रह में अंतर समझने में मदद चाहिए होगी। तारे अकसर टिमटिमाते हैं। कोई चमकती चीज़ अगर तेज़ गति से चलती दिखे तो वो उपग्रह हो सकती है। टूटता तारा (उल्का पिंड) वह होता है जो पृथ्वी के वायुमंडल में आते ही जल जाता है। अगर हम रुचि दिखाएँगे तो बच्चे भी रात में आसमान का अवलोकन करके नई-नई बातें सीखने के लिए प्रेरित होंगे।
हिम्मत रखो तो नए दरवाजे खुलेंगे!
सुनीता जब 5 साल की थीं, उन्होंने टी.वी. पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग को चाँद पर उतरते देखा। सन् 1969 में नील आर्मस्ट्रॉन्ग चाँद पर उतरने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे। छोटी सुनीता उनसे बहुत प्रभावित हुई। सुनीता बताती हैं कि बचपन में उनकी खेल-कूद में बहुत दिलचस्पी थी। उन्हें तैराकी खासतौर पर पसंद थी। पढ़ाई में वे कभी सबसे आगे नहीं रहीं। सुनीता बनना तो गोताखोर (डाइवर) चाहती थीं, पर बन गईं हेलिकॉप्टर पायलट। एक दिन उन्हें किसी अंतरिक्ष यात्री से पता चला कि वे आगे पढ़ाई करें तो अंतरिक्ष में जा सकती हैं। फिर क्या था! सुनीता ने डटकर आगे पढ़ाई की, ट्रेनिंग ली और अब वे अंतरिक्ष में सबसे लंबे समय तक रहने वाली पहली महिला हैं।
सुनीता कहती हैं कि जो चाहो वह हमेशा नहीं मिलता, लेकिन निराश नहीं होना चाहिए। जो भी काम करें, उसे पूरे मन से करें, तो कई नए दरवाज़े अपने आप खुलते जाते हैं।
सुनीता से जब किसी बच्चे ने सवाल पूछा कि वे आगे क्या बनना चाहती हैं तो उन्होंने जवाब दिया 'स्कूल टीचर'! ताकि वे बच्चों को समझा पाएँ कि विज्ञान और गणित कैसे जिंदगी से जुड़े हैं।
हम क्या समझे –