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15. उसी से ठंडा उसी से गर्म
एक था लकड़हारा। जंगल में जाकर रोज़ लकड़ियाँ काटता और शहर में जाकर शाम को बेच देता था। एक दिन वह दूर जंगल के अंदर चला गया। कटकटी का जाड़ा पड़ रहा था। उसकी उँगलियाँ बिल्कुल सुन्न होती जाती थी। वह थोड़ी-थोड़ी देर बाद कुल्हाड़ी रख देता और दोनों हाथों को मुँह के पास ले जाकर खूब जोर से उनमें फूंक मारता कि गर्म हो जाएँ।
कोने में खड़े एक मियाँ बालिश्ति ये उसे देख रहे थे। घूर-घूरकर उन्होंने जब देखा कि वह बार-बार हाथ में कुछ फूंकता है तो सोचने लगे कि यह बात क्या है। मगर कुछ समझ में न। आया तो वे अपनी जगह से उठे और कुछ दूर चलकर फिर लौट आए, कि न मालूम कहीं पूछने से यह आदमी बुरा न माने। मगर फिर रहा न गया। आखिर वे ठुम्मक-ठुम्मक लकड़हारे के पास गए और कहा, "सलाम भाई, बुरा न मानो तो एक बात पूछे? "लकड़हारे को यह ज़रा-सा आदमी देखकर ताज्जुब भी हुआ, हँसी भी आई। मगर उसने हँसी को रोककर कहा, “हाँ-हाँ भई, ज़रूर पूछो।" "बस यह पूछता हूँ कि तुम मुँह से हाथ पर फूंक-सी क्यों मारते हो?"
शिक्षक संकेत- बच्चों को बताएँ कि इस कहानी के लेखक हैं डॉ. जाकिर हुसैन जो हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति थे। उन्होंने बच्चों के लिए और कई कहानियाँ लिखी हैं। बच्चों से चर्चा हो सकती है कि बालिश्ति ये जैसे काल्पनिक पात्र का इस्तेमाल क्यों किया गया होगा।
लकड़हारे ने जवाब दिया, “सर्दी बहुत है। हाथ ठिठुरे जाते हैं। मैं मुँह से फूंककर उन्हें ज़रा गर्मा लेता हूँ; फिर ठिठुरने लगते हैं, फिर फूंक लेता हूँ।" मियाँ बालिश्तिये ने कहा, “अच्छा-अच्छा, यह बात है।" यह कहकर बालिश्तिये मियाँ वहाँ से तो खिसक गए, मगर रहे आस-पास ही। दोपहर का वक्त आया। लकड़हारे को खाना पकाने की फ़िक्र हुई। इधर-उधर से दो पत्थर उठा कर चूल्हा बनाया। आग सुलगाकर चूल्हे पर आलू रख दिए। लकड़ी गीली थी। इसलिए आग बार-बार ठंडी हो जाती तो लकड़हारा मुँह से फूंककर तेज़ कर देता था। "अरे," बालिश्तिये ने दूर से देखकर अपने जी में कहा, "अब यह फिर फूंकता है! क्या इसके मुँह से आग निकलती है?" लकड़हारे को भूख ज़्यादा लगी थी इसलिए एक सिका हुआ आलू उठाया। उसे खाना चाहा तो वह ऐसा गर्म था जैसे आग। तो फिर वह मुँह से 'फू-फू' करके फूंकने लगा। “अरे," बालिश्तिये ने फिर जी में कहा, “यह फिर फूंकता है! अब क्या इस आलू को फूंककर जलाएगा?" थोड़ी देर 'फू-फू' करके लकड़हारे ने उसे अपने मुँह में रख लिया और गपगप खाने लगा। अब तो इस बालिश्तिये की हैरानी का हाल न पूछो! इससे
फिर न रहा गया और ठुम्मक-ठुम्मक फिर लकड़हारे के पास आया और कहा "सलाम भाई, बुरा न मानो तो एक बात पूछू?" लकड़हारे ने कहा, “बुरा क्यों मानूँगा? पूछो।" बालिश्तिये ने कहा, "तुमने सुबह मुझसे कहा था कि मुँह से फूंककर अपने हाथों को गर्माता हूँ। अब इस आलूको क्यों फूंकते थे? यह तो खुद बहुत गर्म था। इसे और गर्माने से क्या फ़ायदा?"
“नहीं मियाँ टिटलू। यह आलू बहुत गर्म है। मैं इसे मुँह से फूंक-फूंककर ठंडा कर रहा हूँ।" बात तो कुछ ऐसी न थी मगर यह सुनकर मियाँ बालिश्तिये का मुँह पीला पड़ गया। डर के मारे कप-कपकाँपने लगे। उसके पैर पीछे हटते जाते थे। लकड़हारा भला मानस था। उसने आखिर पूछा, "क्यों मियाँ, क्या हुआ, क्या जाड़ा बहुत लग रहा है?" मगर मियाँ बालिश्तिये थे कि बराबर पीछे ही हटते चले गए। और जब काफ़ी दूर हो गए तो बोले, "अरे...यह न जाने क्या बला है। कोई भूत है या जिन्न! 'उसी से ठंडा उसी से गर्म' हमारी अकल में यह बात नहीं आती।" सच है, यह बात बालिश्तिये की नन्ही-सी खोपड़ी में आने की थी भी नहीं!
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
सोचो- क्या असल में बालिश्तिये होते हैं? इस कहानी के लेखक ने बालिश्तिये की बात क्यों की होगी?
करके देखो-
बालिश्तिये ने जब यह देखा कि लकड़हारा आग सुलगाने के लिए भी और आलू ठंडा करने के लिए भी फूंक रहा था तो उसे बड़ी हैरानी हुई।
- क्या तुमने भी कभी सर्दी में अपने हाथों पर फूंक मारी है? कैसा लगता है?
- अपने हाथों को मुँह के पास लाकर ज़ोर से दो-तीन बार फूंक मारो। मुँह से छोड़ी हुई फूंक की हवा आस-पास की हवा के मुकाबले कैसी लगी?
- अगर हाथों को मुँह से थोड़ी दूरी पर रखो, तब भी हम क्या मुँह से निकली हुई हवा गर्म लगेगी? क्यों?
सोचो और बताओ-
- क्या तुम कोई और ऐसी स्थिति सोच सकते हो जब फूंक मारने से गर्मी मिलती है?
- अपने रूमाल या किसी भी मुलायम कपड़े को दो-तीन बार मोड़ दो। उसे मुँह के पास लाकर दो-तीन बार ज़ोर से फूंक मारो। क्या रूमाल या कपड़ा कुछ गर्म हो गया? करके देखो।
- बालिश्तिये ने देखा कि लकड़हारा गर्म-गर्म आलू को फूंकमार कर ठंडा कर रहा था। अगर वह बिना फूंक मारे ही गर्म-गर्म आलू को खा लेता तो क्या होता?
- क्या कभी कुछ गर्म खाने या पीने से तुम्हारी जीभ जली है? तुम अपने गर्म खाने को कैसे-कैसे ठंडा करते हो?
- अगर रोटी, चावल और दाल बहुत गर्म हैंतो तुम तीनों को किस-किस तरीके से ठंडा करोगे?
चित्र 1
मिन्नी ने चाय को फूंक मार-मार कर जल्दी से ठंडा किया। तुम्हें क्या लगता है कि मिन्नी की चाय ज़्यादा गर्म होगी या उसकी फूंक की हवा?
चित्र 2
सोनू की ठंड से जान निकल रही थी। इसलिए वह बार-बार अपने हाथों पर फूंक मार रहा था। अब सोचो और लिखो कि सोनू के हाथ ज़्यादा ठंडे होंगे या उसकी फूंक की हवा।
- तुम और क्या-क्या करने के लिए फूंक मारते हो?
कागज़ से अपनी सीटी बनाओ-
अलग-अलग चीज़ों से सीटी बजाओ-
नीचे दी गई चीज़ों से आवाजें निकालकर देखो। लिखो उनमें से किससे सबसे तेज़ सीटी बजी और किससे सब से धीरे। आवाज़ की तेज़ी को क्रम में लिखो–
टॉफी की पन्नी से _____
पत्ते से _____
गुब्बारे से _____
पेन के ढक्कन से _____
किसी और चीज़ से _____
शिक्षक संकेत- बच्चों को हवा-ठंडी या गर्म की अवधारणा समझ ने में समय लगता है। इस गतिविधि से यह समझाने का प्रयास किया है कि मुँह से निकली हुई हवा बाहर के तापमान के मुकाब ले ठंडी या गर्म हो सकती है। यह अपेक्षा बिल्कुल नहीं है कि बच्चे एक ही बार में यह समझ बना पाएँगे। इस अवधारणा को उनके अलग-अलग अनुभवों से जोड़ना ज़रूरी है।
क्या तुमने कभी देखा या सुना है कि लोग अलग-अलग चीजों के इस्तेमाल से अलग-अलग तरह का संगीत बजाते हैं। जैसे- बाँसुरी, ढोलक, बीन, मृदंग, गिटार, आदि। क्या तुम आँखें बंदकर के इनकी आवाजें पहचान सकते हो? इन सभी चीज़ों के बारे में और बातें पता करो। चित्र भी इकट्ठे करो।
लिखो-
क्या तुम ऐसी चीज़ों के नाम बता सकते हो, जिनमें फेंक मारने से सुहावनी आवाज़ निकलती है? उनके नाम लिखो।
करके देखो और चर्चा करो-
शिक्षक संकेत– साँस गर्म होती है और शीशा ठंडा। इसलिए साँस के साथ आई भाप से ठंडे शीशे पर पानी की बूंदें जैसी बन जाती हैं- यही नमी शीशे को धुंधला करती है।
हर मिनट में कितनी साँस-
तुम्हारे अंदर धड़कती घड़ी-
घड़ी की सुई से होती टिक-टिक की आवाज़ तो तुमने सुनी होगी। क्या तुमने कभी सुना या देखा है कि डॉक्टर हमारी छाती पर स्टेथोस्को पलगाकर हमारी धड़कन सुन सकते हैं? यह आवाज़ कहाँ से आती है? क्या हमारे अंदर भी कोई घड़ी है जो हमेशा धड़कती रहती है? आओ सुनें अपनी धड़कन-अपने कंधे से कोहनी तक की लंबाई की एक रबड़ पाइप लो। इस पाइप के एक सिरे पर एक कीप लगा दो। अब कीप को अपनी छाती की बाईं ओर रखकर पाइप के दूसरे सिरे को कान में लगाओ। ध्यान से सुनो। क्याधक-धक की आवाज़ सुन पाए?
शिक्षक संकेत- साँस गिनने वाले क्रिया कलाप में शिक्षक पूरी कक्षा के लिए मिनट शुरू होने पर 'शुरू' और खत्म होने पर 'खत्म' बोल सकता है।
चित्र 1
साँप बताए हवा का बहाव!
हम क्या समझे
शिक्षक– संकेत साँप वाले खेल से हवा के बहाव का अंदाज़ा होता है। जब गर्म हवा हल्की होकर ऊपर उठती है तो साँप घड़ी की दिशा में घूमता है। जब ठंडी हवा भारी होने के कारण नीचे को आती है तो यह साँप घड़ी की उल्टी दिशा में घूमेगा जैसे पंखे के नीचे। ध्यान रहे दिशा पहचान ने के लिए साँप को ऊपर से देखें।