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16. कौन करेगा यह काम?
क्या तुमने अपने आस-पास ऐसे दृश्य देखे हैं?
क्या कभी सोचा है, यह काम करना लोगों को कैसा लगता होगा? ऐसी जगहों की सफाई रखने में हमारी क्या ज़िम्मेदारी है? लोगों को ऐसे काम क्यों करने पड़ते हैं?
हमारे साथियों ने कुछ सफ़ाई कामगारों से बातचीत की।
ये हैं, उस बातचीत के कुछ हिस्से।
प्र. आप कब से यह काम कर रही हैं?
उ. करीबन बीस साल से! जब से पढ़ाई खत्म हुई है।
प्र. आगे क्यों नहीं पढ़ीं? कुछ और काम मिल जाता।
उ. पढ़ने के लिए पैसे चाहिए। वैसे भी पढ़कर हमारे कई लोग ऐसा ही काम करते हैं।
प्र. मतलब?
उ. बाप-दादाओं से... उनसे भी पहले से हमारे समाज के ज़्यादातर लोग यह काम कर रहे हैं। डिग्री लेकर भी दूसरी नौकरी नहीं मिलती तो यही काम कर रहे हैं।
प्र. ऐसा क्यों?
उ. ऐसा ही है। हमारे पूरे शहर में यह काम करने वाले सभी लोग हमारे ही समाज के हैं। हमेशा से ऐसा ही होता आया है।
स्टालिन के. की डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म इंडिया अनटच्ड से
लिखो
जो लोग तुम्हारे घर और स्कूल के आस-पास की सफ़ाई करते हैं, उनसे बातचीत करो और लिखो।
- वे कब से यह काम कर रहे हैं?
- कहाँ तक पढ़े हैं?
- क्या उन्होंने और कोई काम ढूँढने की कोशिश की?
- क्या उनके परिवार के बड़े-बूढ़े भी यही काम करते थे?
- उनको इस काम में क्या परेशानियाँ आती हैं?
शिक्षक संकेत-सफ़ाई कामगारों से बातचीत से पहले कक्षा में उन प्रश्नों पर चर्चा की जा सकती है, जो बातें बच्चे पता करेंगे। सफाई कामगारों से बच्चों की बातचीत बहुत संवेदनशीलता से हो।
- इस चित्र में किस तरह के काम किए जा रहे हैं? पाँच कामों के नाम लिखो।
- इस चित्र में दिखाए गए कामों में से कोई पाँच काम तुम्हें करने हों, तो तुम कौन-से काम चुनोगे? क्यों?
- इनमें से कौन-से पाँच काम तुम नहीं चुनोगे? क्यों?
चर्चा करो
- तुम्हारी समझ में किस तरह के काम करना लोग पसंद नहीं करते? क्यों?
- फिर इस तरह के काम कौन करता है? ये लोग ऐसे काम क्यों करते हैं जिन्हें कोई भी करना पसंद नहीं करता?
कल्पना करो
- अगर कोई भी यह काम न करे तो क्या होगा? यदि एक हफ़्ते तक कोई भी तुम्हारे स्कूल या घर के आस-पास फैला कूड़ा-कचरा साफ़ न करे तो क्या होगा?
कचरा साफ़ करने के कुछ अलग तरीके जैसे मशीन या और कोई तरीका सोचो. जिससे लोगों को नापसंद काम न करना पड़े। अपने सोचे गए तरीके को चित्र बनाकर दिखाओ।
(ये चित्र भी बच्चों ने बनाए हैं)
क्या ऐसे हालात बदलने की कोशिश किसी ने की? हाँ, कोशिश तो कई लोगों ने की, आज भी करते हैं। पर बदलाव लाना आसान नहीं। ऐसे लोगों में से एक थे महात्मा गांधी। गांधीजी के बहुत करीब के साथी थे- महादेवभाई देसाई, जिनका बेटा है नारायण। नारायण का बचपन गांधी आश्रम में गुजरा था। यह किस्सा उन्हीं की किताब से लिया गया है।
शिक्षक संकेत-अपने इलाके के लोगों में से उनकी चर्चा हो सकती है जिन्होंने ऐसे बदलाव लाने की कोशिश की है। छूआछूत के भेदभाव पर खबरों का इस्तेमाल करके बच्चों को इन बातों के प्रति संवेदनशील होने के लिए प्रेरित करें।
पुरानी यादें
नारायण (यानी बाबला) जब ग्यारह साल के थे, तब गुजरात के साबरमती आश्रम में उन्हें अलग-अलग काम करने पड़ते थे। उनमें से एक था, आनेवाले मेहमानों को टॉयलेट की सफ़ाई का काम सिखाना। तब के ‘टॉयलेट’ में नीचे टोकरियाँ रखी होती थीं। जिनमें संडास की गंदगी गिरती थी, फिर उस जगह को साफ़ भी करना पड़ता था। इन टोकरियों को हाथों से उठाकर ले जाना होता था।
आमतौर पर इस काम को एक ही समाज के लोगों को ही करना पड़ता। पर गांधी आश्रम में खाद बनाने वाले गड्डे तक टोकरियाँ ले जाने का यह काम सभी को करना पड़ता था, फिर वह कोई भी क्यों न हो। नारायण को याद है कि कई लोग इस काम को टालने की कोशिश करते थे। कुछ तो इस काम से डरकर आश्रम छोड़कर भाग जाते।
एक बार गांधीजी महाराष्ट्र के वर्धा शहर के पास एक गाँव में रहने गए। यह गाँव था तो वर्धा शहर के पास, लेकिन फिर भी शहर की सुविधाओं से परे था। गाँव में गांधीजी, महादेवभाई और उनके साथी संडास की सफ़ाई का काम करने लगे। कई महीने बीत गए। एक दिन सुबह के समय गाँव के बाहर की गंदी संडास की तरफ़ से एक आदमी लोटा लेकर आ रहा था। जब उसने महादेवभाई को देखा तो बोला "उस तरफ़ ज़्यादा गंदगी है, वहाँ सफ़ाई करो।"
यह देख बाबला को बहुत हैरानी हुई और गुस्सा भी आया। उसने सोचा, गाँव वाले तो यह समझ रहे हैं कि यह काम उनका नहीं बल्कि गांधीजी और उनके साथियों का ही है। यह बात ठीक नहीं है। उसने गांधीजी से यह पूछा तो वे बोले, "छुआछूत का भेदभाव छोटी-सी बात नहीं है। उसे मिटाने के लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत है।"
नारायण यह जानता था कि ऐसे काम करने वाले लोगों को अछूत माना जाता है। पर वह यह नहीं समझ पा रहा था कि उनके बदले अगर हम खुद यह काम करें तो हालात कैसे बदलेंगे? उसने पूछा, "अगर गाँववाले नहीं सुधरे तो क्या फ़ायदा? उन्हें तो आदत हो गई है कि उनका गंदा काम कोई और ही करे!" गांधीजी बोले, “क्यों इससे सफ़ाई करने वालों को फ़ायदा नहीं होता, क्या उन्हें सीख नहीं मिलती? कोई काम सीखना एक कला सीखने जैसा है। सफ़ाई का काम भी।"
छोटा नारायण फिर भी नहीं माना। वह फिर से बोल पड़ा, "पर सीख तो उनको भी मिलनी चाहिए, जो गंदगी करते हैं और खुद साफ़ नहीं करते।" गांधीजी और नारायण की बहस तो चलती रही। फिर भी आगे चलकर नारायणभाई ने गांधीजी के दिखाए रास्ते पर चलना कभी नहीं छोड़ा।
- नारायण भाई देसाई
संत-चरण-रज सेवितां सहज नामक किताब से
बताओ
- गांधीजी ने भी खुद और अपने साथियों के साथ सफ़ाई का काम करना क्यों शुरू किया होगा? तुम्हें क्या लगता है?
- क्या तुम ऐसे किन्हीं लोगों को जानते हो जो आस-पास के लोगों की कठिनाइयों को आसान करने की कोशिश करते हैं? पता करो।
- गांधीजी के आश्रम में आने वाले नए मेहमानों को भी इस काम को सीखना पड़ता था। अगर तुम इन मेहमानों में से होते तो तुम क्या करते?
- तुम्हारे घर में 'टॉयलेट' की क्या व्यवस्था है? 'टॉयलेट' घर के अंदर है या बाहर? 'टॉयलेट' कौन साफ़ करता है?
- गाँव में गंदी संडास की तरफ़ से लोटा लेकर आ रहे आदमी ने महादेवभाई
- के साथ कैसा बर्ताव किया? क्यों?
- जो लोग टॉयलेट और नालियों वगैरह की सफ़ाई का काम करते हैं, उनसे आम लोगों का किस तरह का बर्ताव होता है? लिखकर समझाओ।
नारायण और बाबासाहब के बचपन की बात तो अब कई साल पुरानी है। क्या आज हालात बदल गए हैं?
ऐसा भी एक बचपन
यह बात लगभग सौ साल पुरानी है। सात साल का भीम महाराष्ट्र के गोरेगाँव में अपने पिता के साथ छुट्टियाँ मनाने गया था। उसने देखा कि एक नाई किसी बड़े किसान की भैंस की खाल पर उगे लंबे-लंबे बाल साफ़ कर रहा था। भीम को अचानक अपने बढ़े हुए बालों का ख्याल आया। नाई के पास जाकर उसने अपने बाल काटने को कहा। नाई फट से बोल पड़ा, “तुम्हारे बाल काटूँगा तो मैं और मेरा उस्तरा दोनों गंदे हो जाएँगे।" अरे, क्या इंसान के बाल काटना भैंस की खाल साफ़ करने से ज़्यादा गंदा काम है? नन्हें भीम ने सोचा।
आगे चलकर यही भीम, भीमराव यानी बाबासाहब अंबेडकर के नाम से दुनियाभर में मशहूर हो गये। बाबासाहब ने अपने जैसे लोगों पर होने वाले अन्याय के खिलाफ़ लड़ाई की। आज़ादी के बाद बाबासाहब की अगुवाई में ही हमारे देश का संविधान तैयार हुआ।
स्कूल में एक बातचीत-आज का सच
हेतल- मैं हेतल हूँ। यह मीना है। हम तीसरी कक्षा में पढ़ते हैं।
प्र. स्कूल में पढ़ाई के अलावा तुम क्या-क्या करते हो?
मीना- हम ग्राउंड साफ़ करते हैं।
प्र. सब बच्चे?
हेतल- नहीं, सब बच्चे नहीं करते।
मीना- हमें संडास भी साफ़ करने पड़ते हैं। सब को दिन बाँट दिए गए हैं। मैं सोमवार को करती हूँ, यह मंगल, यह बुध... ऐसे। हमारे समाज के सभी बच्चे करते हैं।
हेतल- बीस बाल्टी पानी ढोकर यहाँ डालना पड़ता है, झाडू लगाना पड़ता है।
प्र. तुम ही क्यों? सब बच्चे क्यों नहीं करते?
हेतल- हमको ही करना पड़ता है। नहीं किया तो मार पड़ती है।
स्टालिन के. की डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म इंडिया अनटच्ड से
बताओ
- तुम्हारे स्कूल की सफ़ाई कौन करता है? क्या-क्या साफ़ करना पड़ता है?
- क्या तुम्हारे जैसे बच्चे इसमें मदद करते हैं? अगर हाँ, तो किस तरह की?
- अगर मदद नहीं करते तो क्यों नहीं?
- क्या सभी बच्चे सभी तरह के काम करते हैं?
- काम करने के लिए क्या क्लास की पढ़ाई छूट जाती है?
- क्या लड़के और लड़कियाँ एक ही तरह के काम करते हैं?
- घर में तुम किस तरह के काम करते हो?
- क्या लड़के-लड़कियों और मर्द-औरतों के किए जाने वाले कामों में समानता है?
- क्या तुम इसमें कुछ बदलाव लाना चाहोगे? किस तरह का?
चर्चा करो
- क्या समाज में लोगों द्वारा किए जाने वाले सभी कामों को एक ही तरह से देखा जाता है? अगर नहीं, तो क्यों? क्या बदलाव होना ज़रूरी है?
- गांधीजी के पसंदीदा भजनों में से एक भजन का छोटा हिस्सा नीचे दिया है। यह भजन गुजराती भाषा में है। अपने आस-पास के लोगों की मदद लेकर इस भजन का मतलब पता करो और उसके बारे में सोचो।
वैष्णव जन तो तेणे कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे,
पर दु:खे अपमान सहे जे मन अभिमान ना आणे रे
हम क्या समझे
- गांधीजी समझते थे कि हम सभी को हर तरह का काम करना सीखना चाहिए। इस बारे में तुम्हें क्या लगता है? अगर ऐसा हो तो क्या-क्या बदल सकता है? तुम्हारे घर में कुछ बदलाव आ सकते हैं?