QR Code Chapter 19

19. किसानों की कहानी बीज की जुबानी

मैं हूँ नन्हा बाजरा!

बहुत साल पहले सन् 1940 में मुझे लकड़ी के इस सुंदर बक्से में रखा गया था। आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाना चाहता हूँ। यह सिर्फ मेरी नहीं, मेरे किसान, दामजीभाई के परिवार की भी कहानी है। अगर आज न सुनाई तो शायद फिर कभी न सुना पाऊँ।

मैं जन्मा था गुजरात के वानगाम में। उस साल बाजरे की फ़सल बहुत अच्छी हुई थी। गाँव में त्योहार का माहौल था। हमारा इलाका अनाज, साग, सब्जी के लिए बहुत मशहूर था। दामजीभाई हर साल अच्छी फ़सल के कुछ बीज अगले साल के लिए रखा करते थे। इसी तरह हम बीजों का वंश चलता। सूखी लौकी को मिट्टी से लीपकर उसमें बीजों को रखा जाता। मगर उस साल दामजीभाई ने हम बीजों को रखने के लिए छोटे-छोटे खानों वाला मज़बूत लकड़ी का एक सुंदर बक्सा अपने हाथों से बनाया। हमें कीड़ों से बचाने के लिए उसमें नीम की पत्तियाँ बिछाईं। तब और बीजों के साथ मैं भी यहीं रहने लगा।

उस समय दामजीभाई के सभी चचेरे भाई भी उनके साथ ही रहते थे। गाँव वाले एक-दूसरे के खेतों में हाथ बँटाते। जब नई फ़सल तैयार हो जाती, तो सब साथ-साथ त्योहार मनाते। तब के खाने-पीने की तो बात ही अलग थी। सर्दियों में खेत में ही ताज़ी सब्ज़ि‍यों को मसालों के साथ एक मटके

शिक्षक संकेत-पाठ को शुरू करने से पहले बच्चों से उनके अनुभव अवश्य सुनें। पाठ में बाजरा मात्र एक उदाहरण है। बच्चे अपने इलाके में उगने वाली फ़सलों तथा सब्जियों के उगाने में जो बदलाव देखते हैं उन्हें भी बताने को कहें।

दो औरतें एक खुले मैदान में बैठ कर खाना बना रही हैं। कुछ बच्चे खेल रहे हैं जबकि पुरुष खेती में व्यस्त हैं।

में भरते और उसको सीलबंद कर देते। कोयले के अंगारों में मटके को उल्टा रखकर सब्जी को पकाया जाता। इस पकी सब्जी को कहते हैं 'उँधीयुँ' (गुजराती में 'उँधीयुँ' का मतलब है-उल्टा)। उँधीयुँ के साथ मिट्टी के चूल्हे में पकी बाजरे की रोटियों की सौंधी खुशबू... वाह! साथ में घर के दूध का मक्खन, दही और जितनी चाहे उतनी छाछ।

तरह-तरह की सब्जियाँ, अनाज, अलग-अलग मौसम में उगाई जाती थीं। किसान अपनी ज़रूरत के अनाज-सब्जी घर में रखकर, बाकी का शहर के दुकानदारों को बेच देते।

अनाज और सब्जियों के अलावा कभी-कभी थोड़ी कपास भी उगाई जाती। सूत की कताई और बुनाई भी घर में ही चरखों और करघों पर की जाती थी।

बताओ

  • क्या तुम्हारे घर में रोटियाँ बनती हैं? किस अनाज से?
  • क्या तुमने कभी ज्वार या बाजरे की रोटी खाई है? तुम्हें कैसी लगी?

पता करो और लिखो

  • तुम्हारे घर में अनाज और दालों को कीड़ों से बचाने के लिए क्या-क्या करते हैं?
  • अलग-अलग मौसम में खेती से जुड़े त्योहार कौन-कौन से हैं? इनमें से किसी एक त्योहार के बारे में जानकारी इकट्ठी करो, जैसे-
  • त्योहार का नाम। किस मौसम में मनाते हैं? किन-किन राज्यों में मनाया जाता है? क्या-क्या खाना पकाया जाता है? उस त्योहार को कैसे मनाते हैं - सब मिलकर या अपने-अपने घरों में?
  • अपने घर में बड़ों से पूछो, क्या खाने की कुछ ऐसी चीजें हैं जो उनके ज़माने में बनाई जाती थीं पर अब नहीं?
  • तुम्हारे इलाके में कौन-कौन से अनाज और साग-सब्जी उगाए जाते हैं? क्या तुम्हारे इलाके में कोई ऐसी चीज़ उगाई जाती है जो दूर-दूर तक मशहूर है?

मकई, गेहूं, सरसों और जौ के दाने।

क्या इन अनाजों को पहचान पा रहे हो?

बदलाव

कुछ सालों में गाँव में कई बदलाव आए। कुछ जगहों पर नहर का पानी पहुँच गया। कहते थे, दूर किसी बड़ी नदी पर बनाए बाँध से यह पानी यहाँ लाया गया था। फिर बिजली भी पहुंच गई। बस, बटन दबाओ तो रोशनी! धीरे-धीरे सभी लोग एक-दो तरह (गेहूँ और कपास) की ही फ़सल उगाने लगे। जिन्हें बेचकर ज़्यादा फ़ायदा हो। दामजीभाई के खेतों से हम ज्वार-बाजरे और साग-सब्जियों की तो छुट्टी ही हो गई! किसान बीजों को भी बाज़ार से खरीदने लगे। लोग कहते थे, नई तरह के बीज हैं। अब किसानों को पुराने बीज रखने की ज़रूरत नहीं थी।

अब तो खास मौकों पर ही मिलकर खास खाना पकाया जाता। सब पुराने खाने के स्वाद को याद करते। मगर बीज ही बदल गए तो स्वाद कैसे न बदले? फिर बाज़ार से खरीदी सब्जी से घर की ताज़ी सब्जी का मज़ा थोड़े ही आ सकता है!

दामजीभाई अब बूढ़े हो गए थे। उनका बेटा हसमुख, खेती और घर का जिम्मा सँभालने लगा। हसमुख खेती से खूब मुनाफ़ा कमा रहा था। उसने अपने पुराने घर को नया बनाया। खेती में भी नई-नई चीजें लाया। पानी के लिए बिजली का पंप लगाया। शहर में आने-जाने के लिए मोटरसाइकिल खरीद ली और ज़मीन जोतने के लिए ट्रैक्टर। जो काम करने में बैलों को कई दिन लगते, वह काम ट्रैक्टर कुछ ही समय में कर लेता। हसमुख कहता, “अब हम सोच-समझकर खेती कर रहे हैं। वही उगा रहे हैं, जो

एक गाँव की सड़क का दृश्य, एक व्यक्ति ट्रैक्टर चला रहा है, एक पानी का पक्का तालाब है, एक बच्चा सड़क किनारे खेल रहा है।

बाज़ार में बेचा जा सके। मुनाफ़े के पैसों से हम अपना जीवन सुधार सकते हैं और ज़्यादा तरक्की कर सकते हैं।"

मगर बक्से में पड़े हम पुराने बीजों को ऐसी तरक्की पर शक था। हम तो सोचते ही रह गए-यह कैसी तरक्की? हमारी और बैलों की तो छुट्टी ही हो गई। ट्रैक्टर ने खेत पर काम करने वाले लोगों को भी बेरोज़गार कर दिया।

कुछ बीज ।

चर्चा करो

  • बाजरे के बीज ने दामजीभाई की खेती और हसमुख की खेती (जैसे सिंचाई, ज़मीन जोतना, इत्यादि) में क्या-क्या अंतर देखे?
  • हसमुख कहता-खेती के मुनाफ़े से हम और तरक्की कर सकते हैं। तुम ‘तरक्की' से क्या समझते हो?

लिखो

  • तुम अपने गाँव या इलाके में क्या-क्या तरक्की देखना चाहोगे?

खर्चे पर खर्चा

अगले बीस सालों में बहुत-से बदलाव आए। गाय-बैल नहीं, तो गोबर की खाद भी नहीं! हसमुख ने नई महँगी खाद डालनी शुरू की। नए बीज ऐसे थे कि उनसे उगी फ़सल पर जल्दी कीड़े लग जाते। फ़सल पर दवाइयों का छिड़काव भी करना पड़ता।

शिक्षक संकेत-बच्चों के अनुभवों को आधार बनाते हुए चर्चा की जाए कि फ़सलों के उगाने में कैसे-कैसे बदलाव आए हैं और उनके क्या कारण हो सकते हैं। अखबारों का भी इस्तेमाल किया जाए।

उफ़! क्या बदबू थी उनकी! हसमुख का काफ़ी पैसा इन सब पर खर्च होने लगा। नहर का पानी कम हो रहा था। अब हसमुख के गाँव में सभी ने अपने-अपने पंप लगाकर ज़मीन के बहुत नीचे से खूब पानी खींचा। खर्चे पर खर्चे। मुनाफ़े का पैसा बैंक के कर्जे में कटने लगा। मुनाफ़ा भी क्या? जब सभी लोग कपास उगाते तो कपास की कीमत भी कम ही मिलती। एक ही तरह की फ़सल बार-बार उगाने से और दवाइयों ने जैसे ज़मीन की जान ही खींच ली। खेती करना और उससे अपना गुजारा चलाना अब मुश्किल होता जा रहा था।

एक आदमी फसलों को पानी दे रहा है।

हसमुख भी पहले जैसा न रहा, चिड़चिड़ा हो गया। उसका जवान बेटा परेश पढ़-लिखकर खेती का काम नहीं करना चाहता। बैंक का कर्जा चुकाने के लिए ट्रक-ड्राइवर का काम करने लगा है। कभी रात-रात भर घर नहीं लौटता, कभी हफ्ते भर भी नहीं। परसों घर आया तो कुछ ढूँढ़ने लगा। माँ से पूछने लगा, “बा, दादाजी का वह पुराना बीजों का बक्सा कहाँ है? ट्रक को ठीक करने वाले औज़ार रखने के काम आएगा।"

अब समझे, मैंने तुम्हें अपनी कहानी क्यों बताई?

सोचो और चर्चा करो

  • आगे चलकर हसमुख की खेती का क्या हुआ होगा?

शिक्षक संकेत-बच्चों को अपने शब्दों में सोचने के लिए प्रेरित करें कि वे 'तरक्की' या 'विकास' से क्या समझते हैं, क्या चाहते हैं। दुनिया भर में हो रही बहस से भी इस चर्चा को जोड़ें, जैसे – 'विकासशील' देशों में किसानों की ज़रूरतें, देसी बीजों और पौधों को बचाने की कोशिशें, देसी नुस्खों और दवाइयों पर किसका हक-किसानों का या बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियों का?


  • दामजीभाई के बेटे हसमुख ने अपने पिता की तरह खेती करना पसंद किया। हसमुख का बेटा परेश खेती न करके ट्रक चला रहा है। उसने ऐसा क्यों किया होगा?
  • बीज को शक था कि जो हसमुख के साथ हुआ वह तरक्की नहीं है। तुम्हें क्या लगता है?
  • क्या तुम्हारे आस-पास कुछ ऐसे बदलाव हुए हैं, जिन्हें 'तरक्की' मानने में कुछ दिक्कतें भी हैं? क्या?

अखबार में छपी रिपोर्ट पढ़ो और उस पर चर्चा करो

मंगलवार, 18 दिसम्बर 2007 आंध्र प्रदेश यहाँ के कई किसान खेती में हुए घाटे के कारण बैंक का कर्जा नहीं चुका पाए हैं। उन्हें जेल भेज दिया गया है। ऐसे ही एक किसान हैं- नालाप्पा रेड्डी। उन्होंने बैंक से 24,000 रुपए कर्जा लिया था। यह कर्जा चुकाने के लिए उन्होंने साहूकार से भी भारी ब्याज पर कर्जा लिया। कुल 34,000 रुपए देकर भी उनका सारा कर्जा न पूरा हुआ। वे कहते हैं- "ये बैंक किसानों को तो छोटा-सा कर्जा न चुकाने पर जेल भेज रहे हैं पर बड़े व्यापारी, उद्योगपति......जो करोड़ों का कर्जा नहीं चुकाते उन्हें कुछ नहीं कहते।" देश के सैंकड़ों किसानों की खेती में हुए घाटे की कहानी आंध्र प्रदेश के नालाप्पा रेड्डी जैसी है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इन्हीं कारणों से सन् 1997 से सन् 2005 तक 1,50,000 किसान अपनी जान खुद ले चुके हैं। यह संख्या शायद इससे भी ज्यादा हो।...

प्रोजेक्ट कार्य

  • तुम्हारे मन में खेती से जुड़े क्या-क्या सवाल उठते हैं? सब मिलकर कुछ सवाल बनाओ और किसी किसान से पूछो। जैसे-किसान एक साल में कितनी तरह की फ़सल उगाते हैं? किस फ़सल को कितने पानी की ज़रूरत होती है?
  • अपने आस-पास किसी खेत या बाड़ी पर जाओ। वहाँ लोगों से बात करो और आस-पास देखो। एक रिपोर्ट तैयार करो।

गुजरात में रहने वाले कक्षा पाँच के बच्चों ने भास्करभाई का फार्म देखा और उस पर एक रिपोर्ट लिखी। तुम भी पढ़ो

देहरी गाँव (भास्करभाई की बाड़ी)

हमें दूर से ही नारियल के पेड़ दिख गए। बाप रे! एक नारियल के पेड़ पर कितने सारे नारियल! हमें लगा वे तो ज़रूर बाज़ार से खरीदे महँगे खाद का इस्तेमाल करते होंगे पर बाड़ी में घुसते ही हम हैरान रह गए। पूरी ज़मीन पर सूखे पत्ते, खरपतवार और जंगली घास-फूस!

कुछ पेड़ों की एकाध सूखी शाखा देखकर लगा उसे कीड़ों ने खाया है। बीच-बीच में रंग-बिरंगे पत्तों वाले पौधे! किसलिए? हमने पूछा, तो भास्करभाई ने बताया कि इन पौधों (क्रोटोन) की जड़ें ज़मीन के बहुत अंदर नहीं जातीं। जब इनके पत्ते मुरझाने लगते हैं तो वे जान जाते हैं कि बाड़ी के इस भाग को पानी देने की ज़रूरत है।

उन्होंने बताया कि वे फ़ैक्ट्री में बनी खाद का इस्तेमाल नहीं करते। उनकी ज़मीन उपजाऊ बनती है, जड़ों, पत्तों, शाखाओं के सड़ने से और केंचुओं से। ध्यान से ज़मीन को देखा तो केंचुए दिखे। कितने सारे केंचुए ही केंचुए थे! पूरे फार्म में शायद लाखों होंगे। भास्करभाई ने बताया ये केंचुए ज़मीन में छेद बनाते रहते हैं। जिससे ज़मीन पोली हो जाती है। इन केंचुओं के मल से ज़मीन उपजाऊ बनती है। फिर प्रवीण ने शहर में रहने वाले अपने चाचा के बारे में बताया। उन्होंने एक गड्ढा खोदा जिसमें केंचुओं को रखा है। वे रसोईघर का सारा कचरा, सब्जी फल के छिलके उस गड़े में डाल देते हैं। इस तरह गड़े में खाद बनती रहती है। कचरे का अच्छा इस्तेमाल भी हो जाता है और बाज़ार की खाद से ज़्यादा अच्छी और सस्ती खाद भी मिल जाती है। फिर हमने इस फ़ार्म में उगे कई फल भी चखे। मज़ा भी आया और एक अलग तरह की खेती के बारे में भी जाना हमने!

समूह के सदस्य - प्रफुल, हंसा, कृतिका, चक्की, प्रवीण कक्षा पाँच 'सी'

बाजरे के बीज का सफ़र-खेत से प्लेट तक

चित्रों को देखो और बताओ कि हर चित्र में क्या दिख रहा है?

चित्र 2 में बाजरे की बाली ओखली में रखी हैं। मूसली से कूटकर बाजरे के दानों को बाली से अलग करते हैं। अलग किए गए बाजरे के दाने चित्र 3 में दिख रहे हैं। आजकल यह काम हाथ से नहीं बल्कि एक बड़ी मशीन 'थ्रेशर' से किया जाता है। दोनों एक ही काम करने के अलग-अलग तरीके हैं जिन्हें हम तकनीक भी कह सकते हैं।

चित्र (4) में दिखाई चक्की में क्या हो रहा होगा? फिर चित्र (5) और (6) में किस 'तकनीक' से आटा तैयार किया गया होगा? छलनी का इस्तेमाल कब किया गया होगा?

एक औरत खेत से गेहूं की फसल  तोड़ रही है।

रेनी आई ए मरकर

गेहूं की फसल को इमामदस्ते में कूटा जा रहा ।

मिलाम्बर

अब गेहूं पीस चुका है।

क्लॉड रिनॉल्ट

एक औरत अपनी रसोईं में आटा छान  रही है।

एक परात में आटा रखा है।

आटा गूँथ कर तैयार है।

अपर्णा

औरत हाथों  से आटे की गोल चपाती बना रही है।

रोटी को तवा पर डाला हुआ है।

थाली में दो रोटियाँ परोसी हुई हैं।

हम क्या समझे

  • हमारे खाने में कई बदलाव आए हैं। ऐसा कैसे कह सकते हैं? बाजरे के बीज की कहानी और बड़ों से मिली जानकारी के आधार पर लिखो।
  • अगर सभी किसान एक ही तरह के बीज बोएँ, एक ही तरह की फ़सल उगाएँ, तो क्या होगा?

शिक्षक संकेत-तकनीक से हमारी समझ अकसर मशीन तथा बड़े-बड़े औजारों तक ही सीमित होती है। पर कोई तरीका या प्रक्रिया भी तकनीक होती है। उदाहरण के लिए-आटे को गूंधना भी एक तरह की तकनीक है। इस बात पर कक्षा में बातचीत करके समझ बनााई जाए। सूखे आटे को छानना, फिर धीरे-धीरे उसको पानी से गीला करते हुए गूंधते जाना (हाँ, कभी ढेर पानी डालकर आप स्वयं पछताए हों तो जानोगे इस तकनीक की खूबी!) और अंत में जब आटे का सही स्वरूप हो जाए तो उसे लपेटकर इकट्ठा कर लेना-इन तकनीकों को शब्दों में बता पाना मुश्किल तो है पर उनको समझना ज़रूरी है।