QR Code Chapter 20




20. किसके जंगल?

जंगल की बेटी

सोच सकते हो ये बच्चे पोटलियाँ लेकर जंगल में क्या करने जा रहे होंगे? जानोगे तो तुम्हारा मन भी चाहेगा तुम ऐसे करो। असल में ये बच्चे जंगल में जाकर कूदते, दौड़ते हैं, पेड़ों पर चढ़ते हैं। अपनी 'कुड़ुक' भाषा में गीत गाते हैं, गिरे हुए फूल-पत्ते बीनकर मालाएँ, गुलदस्ते बनाते हैं। जंगली फलों का मज़ा लेते हैं। तरह-तरह के पक्षियों की बोली निकालते हैं। इन बच्चों के साथ होती हैं इनकी प्यारी दीदी - सूर्यमणि।

कुछ महिलाएं और लड़कियां हाथों में डंडों से बंधी पोटली लेकर जंगल में घूम रही हैं।

सूर्यमणि हर रविवार बच्चों को जंगल में ले जाती हैं। झारखंड के इन जंगलों में घूमते समय सूर्यमणि बच्चों को वहाँ के पेड़-पौधों और जानवरों की पहचान कराती हैं। बच्चों को जंगल में लगी ऐसी क्लास में खूब मज़ा आता है। "जंगल को पढ़ना, किताबें पढ़ने जितना ही ज़रूरी है", कहती हैं सूर्यमणि। वह कहती हैं, "हम आदिवासियों की जिंदगी जंगलों से ही जुड़ी है। अगर जंगल नहीं बचेंगे तो हम भी नहीं बचेंगे।"

कुछ पत्ते।

यह एक सच्ची कहानी है। सूर्यमणि एक चमकता सितारा (गर्ल स्टार) है। चमकते सितारे उन साधारण लड़कियों की असाधारण कहानियाँ है जिन्होंने स्कूल जाकर अपनी जिंदगी बदल दी।

शिक्षक संकेत–कक्षा में जंगल के बारे में चर्चा करते समय उनके अपने अनुभव पूछे। केवल सैंकड़ों पेड़ लगाने से जंगल नहीं बनते। जंगलों के बारे में समझ बनाने के लिए यह भी बातचीत हो कि जंगल में उगने वाले पेड़-पौधे और वहाँ के जानवरों का कैसा ताना-बाना है-उनके भोजन, आवास और सुरक्षा के लिए उनकी एक-दूसरे पर कैसी निर्भरता होती है।


चर्चा करो

  • तुम्हें क्या लगता है, जंगल क्या होते हैं?
  • कहीं बहुत सारे पेड़ उगाए गए हों तो क्या वह जंगल बन जाता है?

पता करो और लिखो

  • पेड़ों के अलावा जंगल में और क्या-क्या होता है?
  • क्या सभी जंगलों में एक ही तरह के पेड़ होते हैं? तुम कितने पेड़ पहचान लेते हो?
  • सूर्यमणि कहती हैं अगर जंगल नहीं बचेंगे तो हम भी नहीं बचेंगे। ऐसा क्यों?

खुले क्षेत्र में पेड़ लगाती महिला।

एक पेड़ की टूटी हुई टहनी।

सूर्यमणि का बचपन

बचपन से ही सूर्यमणि को जंगल से बहुत लगाव था। वह स्कूल जाने का सीधा रास्ता छोड़ जंगल के रास्ते से आती-जाती थी। सूर्यमणि के पिता की छोटी-सी खेती थी। उनका पूरा परिवार पास वाले जंगल से जड़ी-बूटी इकट्ठी करके बाज़ार में बेचता था। उसकी माँ बाँस से टोकरी बुनकर और गिरे हुए पत्तों से पत्तल बनाकर बेचती थी। पर जब से शंभु ठेकेदार आया, जंगल से एक पत्ता उठाना भी मुश्किल हो गया था।

सूर्यमणि के गाँव के लोग ठेकेदार से डरते थे पर बुधियामाई नहीं डरती थी। वह कहती, “इन जंगलों पर हम आदिवासियों का हक है। हम इनके रखवाले हैं। ठेकेदार की तरह हम जंगल काटते नहीं हैं। हमारे लिए तो जंगल हमारा ‘साँझा-बैंक' है – मेरा या तेरा नहीं। जितनी ज़रूरत है, उतना ही हम जंगल से लेते हैं। जंगल का खज़ाना हम लूटते नहीं हैं।"

शिक्षक संकेत- पाठ शुरू करने से पहले आदिवासियों के जीवन तथा उनकी जंगलों पर निर्भरता पर बातचीत करना अच्छा होगा। ठेकेदारी के बारे में बातचीत करें। ठेका क्या होता है? बच्चों से पूछे और बातचीत करें। सूर्यमणि की कहानी एक सच्ची कहानी पर आधारित है और इसकी संस्था आज भी इस काम को कर रही है। अपने इलाके की ऐसी संस्थाओं या लोगों पर चर्चा भी करवाएँ जो जंगल बचाने का काम कर रहे हैं।

छोटी-सी खेती के सहारे घर चलाना मुश्किल हो रहा था। सूर्यमणि के पिता काम की तलाश में शहर के पास ही रहने लगे। पर फिर भी हालात नहीं बदले। कभी खाना होता, कभी नहीं। मनिया चाचा अपनी पंसारी की छोटी-सी दुकान से कभी-कभी सूर्यमणि के घर अनाज भेज दिया करते। उन्होंने कोशिश करके सूर्यमणि का दाखिला बिशनपुर गाँव के स्कूल में करा दिया। उसे वहीं रहकर पढ़ना था। स्कूल से ही फ़ीस, खाना, कपड़े, किताबें - सब कुछ मुफ़्त मिलने वाला था। पर सूर्यमणि को अपना गाँव-जंगल छोड़कर दूर जाना पसंद न था। “पढ़ोगी नहीं तो भूखों मरोगी," मनिया चाचा ने समझाया। “भूखों क्यों? यह जंगल है न!" सूर्यमणि का जवाब तैयार था। "अरे पगली, हम आदिवासियों को अपने जंगलों से हटाया जा रहा है। कहीं खदान खोद रहे हैं, कहीं बाँध बना रहे हैं। जंगल के अधिकारी भी सोचते हैं जंगल उनके हैं। मेरी मान, पढ़-लिखकर कायदा-कानून समझेगी तो शायद जंगल बचा पाएगी।" छोटी सूर्यमणि मनिया चाचा की बात कुछ-कुछ समझ पाई।

सोचो और लिखो

  • तुम किसी को जानते हो जिसे जंगल से बहुत लगाव है?
  • ठेकेदार ने सूर्यमणि के गाँव वालों को जंगल में जाने से रोका। सोचो क्यों?
  • क्या तुम्हारे आस-पास कोई ऐसी जगह है, जो तुम सोचते हो सभी के लिए होनी चाहिए पर वहाँ जाने से लोगों को रोका जाता है?

चर्चा करो

  • तुम्हें क्या लगता है- जंगल किसके हैं?
  • बुधियामाई ने कहा- जंगल तो हमारा 'साँझा बैंक' है- न तेरा, न मेरा। क्या कोई और ऐसी चीज़ है जो हम सबका साँझा खज़ाना है, कोई उसका ज़्यादा इस्तेमाल करे तो सभी को नुकसान होगा?

सूर्यमणि का सफ़र

बिशनपुर गाँव का स्कूल देखते ही सूर्यमणि का मन खिल उठा। स्कूल घने जंगल के पास जो था। स्कूल में सूर्यमणि ने खूब मेहनत की और स्कॉलरशिप (वज़ीफा) लेकर बी.ए. पास किया। वह गाँव की ऐसी पहली लड़की थी। कॉलेज में उसकी पहचान वासवी दीदी से हुई जो पत्रकार थीं। उनके साथ मिलकर सूर्यमणि 'झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन' का काम करने लगी।

महिला के कंधे पर बैठा तोता।

इस काम के लिए उसे जगह-जगह दूर शहर में जाना पड़ता। उसके पिताजी को यह बात पसंद न थी। पर सूर्यमणि ने जंगल बचाने का काम भी जारी रखा और गाँववालों के हक के लिए भी लड़ना शुरू किया। इसमें उसका साथ दिया है उसके बचपन के साथी बिजय ने।

सूर्यमणि का एक सपना था कि वह अपने 'कुड़ुक' समाज की पहचान बनाए। आदिवासी होने पर जो गर्व उसे महसूस होता है, वह सभी गाँव वालों को भी हो।

सूर्यमणि का एक और साथी था 'मिर्ची', जो दिन-रात उसके साथ रहता। सूर्यमणि अपने सपने और मन की हर बात उसे बताती। 'मिर्ची' सुनता और कहता 'ची-चीं'।

सोचो और लिखो

  • क्या तुम्हारा ऐसा कोई साथी है, जिसे तुम अपने मन की हर बात बता सकते हो?
  • कई लोग जंगल से इतनी दूर हो गए हैं कि अकसर आदिवासियों की जिंदगी नहीं समझते। कुछ तो उन्हें जंगली भी कह देते हैं। ऐसा कहना सही क्यों नहीं है?
  • आदिवासी कैसे रहते हैं इस बारे में तुम क्या जानते हो? लिखो और चित्र बनाओ।
  • क्या तुम्हारा कोई आदिवासी दोस्त है? उससे जंगल के बारे में तुमने क्या-क्या सीखा?

सूर्यमणि का 'तोरांग'

सूर्यमणि 21 साल की थी जब उसने वासवी दीदी और कई लोगों की मदद से एक केंद्र खोला। उसने इस जगह का नाम रखा 'तोरांग'। कुड़ुक भाषा में 'तोरांग' का मतलब है- जंगल।

शिक्षक संकेत- बड़े-बड़े बाँध, सड़कों तथा खदानों के बनने की आवश्कता तथा उनके प्रभावों पर कक्षा में बातचीत की जाए। ज़मीन के नीचे से पानी या खनिज निकालना, समुद्र में से मछली पकड़ना, पेट्रोल का इस्तेमाल, सभी के साँझे खज़ाने से है। यह सभी आज एक सुलगता हुआ सवाल है। इन सब पर चर्चा होनी जरूरी है।

सूर्यमणि चाहती थी कि लोग त्योहारों पर अपने गीत-गानों को गाएँ, उन्हें भूलें न और अपने पहनावे को चाव से पहनें। जड़ी-बूटियों की समझ और बाँस की चीजें बनाने की कला बच्चे भी सीखें। अपनी स्कूल की भाषा तो सीखें ही, अपनी कुड़ुक भाषा का रिश्ता भी उससे जोड़ें। यह सब तोरांग केंद्र में होता है। 'तोरांग' में कुड़क समाज और अन्य आदिवासियों की खास किताबों को सँभालकर रखा गया है। गाने-बजाने की कई चीजें, जैसे – बाँसुरी, तरह-तरह के ढोल भी हैं।

जंगल में छोटे बच्चों से बात करती महिला।

कहीं अन्याय हो रहा हो, किसी को डर हो कि उसकी ज़मीन हडप ली जाएगी...कोई रोज़गार छिन जाने से परेशान हो...जिस किसी को भी मदद की ज़रूरत होती, वह सूर्यमणि की मदद लेता। सूर्यमणि सबके हक के लिए लड़ती है।

एक बटुआ।

सूर्यमणि ने अपने साथी बिजय के साथ शादी कर ली है। दोनों साथ में काम करते हैं। आज उनके काम को कई लोग सराहते हैं। उन्हें विदेश भी बुलाते हैं, उनके अनुभवों से सीखने के लिए। जंगल के नए कानून बनाने के लिए भी आज वहाँ लोग अपनी आवाज़ उठा रहे हैं।

जंगल अधिकार कानून-2007 : यह कानून आदिवासियों को जंगल पर उनका हक दिलाता है। जो लोग कम-से-कम 25 साल से जंगल में रहे हैं उनका वहाँ के जंगल और वहाँ पैदा होने वाली चीज़ों पर हक है। उन्हें जंगल से हटाया न जाए। जंगल बचाने का काम भी उनकी ग्राम सभा करे।

सोचो

  • क्या तुम ऐसे किसी और व्यक्ति को जानते हो जो जंगलों के पेड़-पौधों के लिए काम करते हैं?
  • तुम्हारा अपना सपना क्या है? सपना पूरा करने के लिए तुम क्या करोगे?
  • अखबारों में से जंगल की खबरें इकट्ठी करो। क्या जंगल कटने के कारण मौसम पर प्रभाव के बारे में कोई खबर है? क्या?
  • तोरांग में सूर्यमणि अपने आदिवासी रहन-सहन, नृत्य-संगीत को जिंदा रखने के लिए बहुत कुछ करती हैं। क्या तुम अपने समुदाय के लिए ऐसा कुछ करना चाहोगे? तुम किस चीज़ को बचाए रखना चाहोगे?

पढ़ो और बताओ

  • ओडिशा के एक स्कूल की दसवीं क्लास की लड़की सिकिया ने वहाँ के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। उसका एक हिस्सा पढ़ो।

"हम आदिवासियों के लिए जंगल ही सब कुछ है। हम एक दिन भी जंगल से दूर नहीं रह सकते। तरक्की के नाम पर जंगल में सरकार द्वारा बहुत से प्रोजेक्ट्स चलाए जा रहे हैं- कहीं बाँध बन रहे हैं तो कहीं फ़ैक्टरी। जंगल जिस पर हमारा अधिकार है, हमसे छीना जा रहा है। इन प्रोजेक्ट्स के चलते यह सोचने की ज़रूरत है कि हम आदिवासी कहाँ जाएँगे और रोज़ी-रोटी का क्या होगा? इन जंगलों में रहने वाले लाखों जानवर कहाँ जाएँगे? अगर जंगल न रहे, खानों में से एल्यूमीनियम जैसे खनिज निकालकर ज़मीन को खोखला कर दें, तो बचेगा क्या? सिर्फ़ दूषित हवा और पानी, और मीलों दूर तक फैली बंजर जमीन..."

  • क्या तुम्हारे आस-पास कोई ऐसा काम चल रहा है? क्या कोई फ़ैक्टरी है? उसमें किस तरह का काम होता है?
  • फ़ैक्टरी की वजह से क्या ज़मीन और पेड़ों पर कोई असर पड़ रहा है? क्या वहाँ के लोगों ने भी इस बात को उठाया है?

भारत का नक्शा जिसमे ज्यादा घने  जंगल और कम घने जंगल दिखाए हैं। नक्शे के हिसाब से उत्तराखंड के कुछ हिस्से, सिक्किम के कुछ हिस्से, बंगाल, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश औ कर्नाटक के कुछ हिस्से  में घने जंगल हैं।  जब की कम ghane जंगल वाले  हिस्से हैं जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, गुजरात, केरल, तमिल नाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा , मध्य प्रदेश आदि।

पता करो और लिखो

  • नक्शा देखो और पहचानो कि नक्शे में क्या दिखाया गया है?
  • तुमने सिकिया की चिट्ठी पढ़ी। नक्शे में देखो उड़ीसा कहाँ है?
  • क्या उड़ीसा के किसी किनारे पर समुद्र है? समुद्र कैसे पहचाना?
  • नक्शे में और कौन-कौन से ऐसे राज्य हैं, जिनके किसी किनारे पर समुद्र है?
  • नक्शे में सूर्यमणि का राज्य झारखंड कहाँ है?
  • नक्शे में जंगल कहाँ-कहाँ हैं? कैसे पहचानोगे?
  • यह कैसे पहचाना, कहाँ ज़्यादा घने जंगल हैं और कहाँ कम घने जंगल हैं?
  • नक्शे में कौन-सा राज्य है जहाँ सबसे ज़्यादा घने जंगल हैं?
  • अगर कोई मध्य प्रदेश में है तो देश के सबसे ज़्यादा घने जंगल उसकी किस दिशा में होंगे? उन राज्यों के नाम लिखो।

हरे भरे पहाड़।

मिज़ोरम में खेती की लॉटरी

झारखंड के जंगलों के बारे में तुमने सूर्यमणि की कहानी में पढ़ा। अब तुम मिज़ोरम राज्य के पहाड़ों पर कैसे जंगल होते हैं, वहाँ लोग कैसे रहते हैं, कैसे खेती करते हैं - उसके बारे में पढ़ो।

टन्-टन्-टन्! स्कूल छूटने की घंटी बजते ही लॉमटे-आ, डिंगा, डिंकीमा ने अपने बस्ते उठाए और चल दिए घर की ओर। बीच में सभी ने झरने से पानी पीया – वहीं पर रखे बाँस के बने कप में। आज सभी बच्चे ही नहीं उनके 'सायमा सर' भी गाँव पहुँचने की जल्दी में हैं। आज शाम गाँव की खास सभा बैठने वाली है।

इस साल किस परिवार को खेती की कितनी ज़मीन मिलेगी इसकी लॉटरी निकलने वाली है। ज़मीन को साँझा मानकर सब लोगों को बारी-बारी उस ज़मीन पर खेती करने का मौका मिलता है। बाँस के एक सुंदर बर्तन को हिलाकर उसमें से एक पर्ची निकाली गई। वाह! 'सायमा सर' के परिवार का नंबर पहला आया। वे बोले, “झूम खेती की पहली पर्ची मेरे परिवार के नाम आई है, यह मेरे लिए खुशी की बात है। मगर इस साल हम ज़्यादा ज़मीन नहीं ले पाएँगे। पिछली बार मैंने ज़्यादा ज़मीन ले ली थी और मैं अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं

कर पाया था। मेरी बहन झीरी की शादी के बाद, स्कूल की नौकरी के साथ अकेले खेती का काम करना मेरे लिए मुश्किल है।"

सायमा सर ने 'तीन टीन' ज़मीन माँग ली। छोटी माथनी पूछ बैठी, “तीन टीन ज़मीन?" चाँमुई ने समझाया, “एक टीन बीज हम जितनी ज़मीन में बोते हैं उसे ही ‘एक टीन' ज़मीन बोलते हैं।" धीरे-धीरे ऐसे ही लॉटरी से गाँव के सभी परिवारों को खेती के लिए बाकी ज़मीन मिल गई।

पता करो

  • नक्शे में मिज़ोरम और उसके आस-पास के राज्यों के नाम पढ़ो।
  • तुमने ज़मीन को टीन से नापने का तरीका पढ़ा। ज़मीन को नापने के और तरीके क्या-क्या हैं?
  • स्कूल से आते हुए बच्चों ने रास्ते में बाँस के बने कप से पानी पीया। तुम्हें क्या लगता है, जंगल में कप किसने बनाकर रखा होगा? क्यों?
  • जगलों की सुरक्षा के लिए क्या-क्या किया जा सकता है?

एक लालटेन।

 कुछ रस्सियाँ।

झूम खेती

झूम खेती का तरीका निराला है। एक फ़सल कटने के बाद ज़मीन को कुछ साल तक आराम करने देते हैं, उसमें खेती नहीं करते। इस जगह जो बाँस या जंगल उग जाता है उसे उखाड़ते नहीं। बस गिराकर जला देते हैं। यह राख ज़मीन में खाद का काम करती है। जमीन को जलाते हुए आस-पास के पेड़ न जलें, जंगलों को नुकसान न पहुँचे, यह भी देखना पड़ता है। फिर जब इस ज़मीन में खेती की बारी आती है तो ज़मीन को जोता नहीं जाता। मिट्टी को हल्के से हिलाकर बीज छिड़क देते हैं। एक ही खेत में अलग-अलग तरह के बीज - जैसे मकई, सब्जियाँ, मिर्च और चावल बोए जाते हैं।

फ़सल के समय भी अनचाही घास और पौधों को उखाड़ते नहीं हैं, उन्हें गिरा देते हैं। ताकि वे ज़मीन की मिट्टी में मिल जाएँ। इससे भी ज़मीन उपजाऊ बनती है। अगर किसी परिवार में किसी कारण खेती का काम पिछड़ जाता है तो दूसरे लोग मदद के लिए आ जाते हैं। बस उस परिवार को उन्हें खाना खिलाना पड़ता है। मुख्य फ़सल चावल की ही होती है। फ़सल तैयार होने पर उसे घर ले जाना पीठ तोड़ मेहनत का काम है। सड़कें तो हैं नहीं। बस ऊँचे-नीचे पहाड़ हैं। पीठ पर ही लादकर सारी फ़सल इन रास्तों से घर तक लानी पड़ती है। कई हफ़्ते लग जाते हैं।

फ़सल पकने पर गाँव में सबसे बड़ा त्योहार मनाया जाता है। सब साथ में खाना पकाते हैं, खाते हैं और मज़े करते हैं। 'चेराओ' नाच भी करते हैं। इस नाच में ज़मीन पर बाँस की डंडी लेकर दो-दो लोगों की जोड़ी आमने-सामने बैठती है। ढोल की ताल पर डंडियों को ज़मीन पर पीटते हैं। डंडियों के बीच लोग एक कतार में खड़े होकर कूदते हैं और नाचते हैं।

एक घना जंगल।

  • 'चराओ' नाच के बारे में पता करो। कक्षा में नाच करो।

मिज़ोरम में लगभग तीन-चौथाई लोग जंगलों से जुड़े हैं। मुश्किल जीवन जीते हुए भी लगभग सभी बच्चे स्कूल जाते हैं। इस चित्र में देखो - बच्चे कैसे मस्ती में पत्तों से सीटी बजा रहे हैं। ऐसी कई सीटियाँ तुमने भी तो बनाई हैं!

एक रैलिंग के सहारे खड़े कुछ बच्चे।  पीछे पड़ी नदी और कुछ पेड़ हैं।

हम क्या समझे

  • भास्कर भाई की खेती और झूम खेती में क्या समानता है और क्या फ़र्क है?
  • सूर्यमणि को जंगल से बहुत लगाव था। अपने शब्दों में समझाओ क्यों?
  • झूम खेती में तुम्हें क्या कोई बात अनोखी लगी?