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1 - राख की रस्सी
लोनपो गार तिब्बत के बत्तीसवें राजा सौनगवसैन गांपो के मंत्री थे। वे अपनी चालाकी और हाज़िरजवाबी के लिए दूर-दूर तक मशहूर थे। कोई उनके सामने टिकता न था। चैन से ज़िंदगी चल रही थी। मगर जब से उनका बेटा बड़ा हुआ था उनके लिए चिंता का विषय बना हुआ था। कारण यह था कि वह बहुत भोला था। होशियारी उसे छूकर भी नहीं गई थी। लोनपो गार ने सोचा, “मेरा बेटा बहुत सीधा-सादा है। मेरे बाद इसका काम कैसे चलेगा!"
एक दिन लोनपो गार ने अपने बेटे को सौ भेड़ें देते हुए कहा, “तुम इन्हें लेकर शहर जाओ। मगर इन्हें मारना या बेचना नहीं। इन्हें वापस लाना सौ जौ के बोरों के साथ। वरना मैं तुम्हें घर में नहीं घुसने दूँगा।" इसके बाद उन्होंने बेटे को शहर की तरफ़ रवाना किया।
लोनपो गार का बेटा शहर पहुँच गया। मगर इतने बोरे जौ खरीदने के लिए उसके पास रुपए ही कहाँ थे? वह इस समस्या पर सोचने-विचारने के लिए सड़क किनारे बैठ गया। मगर कोई हल उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था। वह बहुत दुखी था। तभी एक लड़की उसके सामने आ खड़ी हुई। “क्या बात है तुम इतने दुखी क्यों हो?" लोनपो गार के बेटे ने अपना गल कह सुनाया। “इसमें इतना दुखी होने की कोई बात नहीं। मैं इसका हल निकाल देती हूँ।" इतना कहकर लड़की ने भेड़ों के बाल उतारे और उन्हें बाजार में बेच दिया। जो रुपए मिले उनसे जौ के सौ बोरे खरीदकर उसे घर वापस भेज दिया।
लोनपो गार के बेटे को लगा कि उसके पिता बहुत खुश होंगे। मगर उसकी आपबीती पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। वे उठकर कमरे से बाहर चले गए। दूसरे दिन उन्होंने अपने बेटे को बुलाकर कहा, “पिछली बार भेड़ों के बाल उतारकर बेचना मुझे ज़रा भी पसंद नहीं आया। अब तुम दोबारा उन्हीं भेड़ों को लेकर जाओ। उनके साथ जौ के सौ बोरे लेकर ही लौटना।"
एक बार फिर निराश लोनपो गार का बेटा शहर में उसी जगह जा बैठा। न जाने क्यों उसे यकीन था कि वह लड़की उसकी मदद के लिए ज़रूर आएगी। और हुआ भी कुछ ऐसा ही, वह लड़की आई। उससे उसने अपनी मुश्किल कह सुनाई, “अब तो बिना जौ के सौ बोरों के मेरे पिता मुझे घर में नहीं घुसने देंगे।" लड़की सोचकर बोली, “एक तरीका है।” उसने भेड़ों के सींग काट लिए। उन्हें बेचकर जो रुपए मिले उनसे सौ बोरे जौ खरीदे। बोरे लोनपो गार के बेटे को सौंपकर लड़की ने उसे घर भेज दिया।
भेड़ें और जौ बोरे पिता के हवाले करते हुए लोनपो गार का बेटा खुश था। उसने विजयी भाव से सारी कहानी कह सुनाई। सुनकर लोनपो गार बोले, “उस लड़की से कहो कि हमें नौ हाथ लंबी राख की रस्सी बनाकर दे।” उनके बेटे ने लड़की के पास जाकर पिता का संदेश दोहरा दिया। लड़की ने एक शर्त रखी, “मैं रस्सी बना तो दूंगी। मगर तुम्हारे पिता को वह गले में पहननी होगी।” लोनपो गार ने सोचा ऐसी रस्सी बनाना ही असंभव है। इसलिए लड़की की शर्त मंजूर कर ली।
अगले दिन लड़की ने नौ हाथ लंबी रस्सी ली। उसे पत्थर के सिल पर रखा
अपनी बात
और जला दिया। रस्सी जल गई, मगर रस्सी के आकार की राख बच गई। इसे वह सिल समेत लोनपो गार के पास ले गई और उसे पहनने के लिए कहा। लेनपो गार रस्सी देखकर चकित रह गए। वे जानते थे कि राख की रस्सी को गले में पहनना तो दूर, ठाना भी मुश्किल है। हाथ लगाते ही वह टूट जाएगी। लड़की की समझदारी के सामने उनकी अपनी चालाकी धरी रह गई। बिना वक्त गवाए लोनपो गार ने अपने बेटे की शादी का प्रस्ताव लड़की के सामने रख दिया। धूमधाम से उन दोनों की शादी हो गही
भोला - भाला
शहर की तरफ
गेहूँ
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जौ
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लेह
धातु
शेरवानी
भोजन
ताँबा
खिचड़ी
शहर
वेशभूषा
तुम सेर, मैं सवा सेर
तुम ऐसा कोई काम ढूँढो जिसे करने के लिए सूझबूझ की ज़रूरत हो। उसे एक कागज़ में लिखो और तुम सभी अपनी-अपनी चिट को एक डिब्बे में डाल दो। डिब्बे को बीच में रखकर उसके चारों ओर गोलाई में बैठ जाओ। अब एक-एक करके आओ, उस डिब्बे से एक चिट निकालकर पढ़ो और उसके लिए कोई उपाय सुझाओ। जिस बच्चे ने सबसे ज़्यादा उपाय सुझाए वह तुम्हारी कक्षा का ‘बीरबल’ होगा।
क्या मंत्री को सचमुच यह बात पसंद नहीं आई थी? अपने उत्तर का कारण भी बताओ।
सींग और जौ
पहली बार में मंत्री के बेटे ने भेड़ों के बाल बेच दिए और दूसरी बार में भेड़ों के सींग बेच डाले। जिन लोगों ने ये चीजें खरीदी होंगी, उन्होंने भेड़ों के बालों और सींगों का क्या किया होगा? अपनी कल्पना से बताओ।
बात को कहने के तरीके
नाम दो
कहानी में लोनपो गार के बेटे और लड़की को कोई नाम नहीं दिया गया है। नीचे तिब्बत में बच्चों के नामकरण के बारे में बताया गया है। यह परिचय पढ़ो और मनपसंद नाम छाँटकर बेटे और लड़की को कोई नाम दो।
जाविमा, डावा, मिगमार, लाखापा, जुखू, फू दोरजे-ये क्या है? कोई खाने की चीज़ या घूमने की जाहों के जामा जी नहीं, ये हैं तिब्बती बच्चों के कुछ नाम। ये सारे जाम तिब्बत में शुभ माजे जाते हैं। नायिमा नाम दिया जाता है रविवार को जन्म लेने वाले बच्चों को। मानते हैं कि इससे बच्चे को उस दिन के देवता सूरज जैसी शक्ति मिलेगी और जब-जब उसका जाम पुकारा
जाएगा, यह शक्ति बढ़ती जाएगी। सोमवार को जन्म लेने वाले बच्चों का नाम ‘डावा’ रखा जाता है। यह लड़का-लड़की दोनों का नाम हो सकता है। तिब्बती भाषा में डावा के दो मतलब होते हैं, सोमवार और चाँद। यानी डावा चाँद जैसी रोशनी फैलाएगी और अँधेरा दूर करेगी। तिब्बत में बुद्ध के स्त्री-पुरुष रूपों पर भी जामकरण करते हैं, खासकर दोलमा नाम बहुत मिलता है। यह बुद्ध के स्त्रीरूपताराका ही तिब्बती नाम है।
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» दुनिया की छत
किसी भी लोककथा को समझने के लिए उस इलाके की जलवायु, रहन-सहन, खान-पान और संस्कृति को समझना उपयोगी होता है, जिस इलाके में वह लोककथा सुनाई जाती है। राख कीरस्तीशीर्षक लोककथा तिब्बत से संबंधित है, जिसे दुनिया की छत कहा जाता है क्योंकि यह बहुत ऊँचे पठार पर स्थित है। पठार ज़मीन के ऐसे आग को कहते हैं जो मैदान से ऊँचा और पहाड़ से नीचा होता है। तिव्यत के पठार पर खड़े हैं ऊँचे-ऊँचे पहाड़ जो हिमालय का हिस्सा है। इन पहाड़ों की एक खासियत यह है कि ये कई रंग के हैं-भूरे, लाल, पीले, बैंगजी, गुलाबी, गेरुआ और हरी ठीक वैसे ही जैसे छोटे बच्चे अपने चित्रों मैं मनचाहे खा भर देते हैं। इन पधरीले पहाड़ों में तरह-तरह की मिट्टी और खनिज पदार्थ हैं। सूरज की बढ़ती और घटती किरणों के पड़ने से वे पहाड़ अनोखे रंगों में चमक उठते हैं।
तिब्बत की हवा में जमी बहुत कम है। इस वजह से यहाँ बरसात और बर्फ़बारी कम्म होती है। खुश्क मौसम में पेड़-पौधे बहुत नहीं होते हैं। तिब्बत का पूर्वी भाग ही ऐसा है जहाँ घने जंगल पाए जाते हैं। उन जंगलों में पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों की दुर्लभ किसमें मिलती हैं। तिब्बत की मिट्टी कहीं रेतीली है, कहीं लाल-पीली, तो कहीं काली।
तिब्बत में लगभग 1500 झीलें हैं। ये झीलें बनती हैं पहाड़ों की बर्फ़ पिघालने से। इनमें मानसरोवर झील का बहुत जाम है। यहीं से सांगपो यानी ब्रह्मपुत्र नदी निकलती है।
काफी ऊँचाई पर बसा होने के कारण तिब्बत बहुत ठंडा प्रदेश है। यहाँ की सर्दी का हाल मत पूछो! ऐसा लगता है जैसे किसी जे फ्रिज में डाल दिया हो और ऊपर से तेज़ ठंडी
* दुनिया की छत बच्चों को तिब्बत के बारे में जानकारी देने के लिए दिया गया है। इसमें से प्रश्न नहीं पूछे जाएँ।
हवा चल रही हो। इसीलिए वहाँ के लोग हमेशा भारी-भरकम गर्म कपड़े पहने रहते हैं।
तिब्बती लोगों की घर बनाने की कारीगरी अनोखी है। यहाँ लकड़ी के बने हुए बहुमंजिला घर हैं। जोमा अब पत्थर, मिट्टी और सीमेंट के घर भी बनाने लगी हैं। खिड़कियाँ भी अधिक बनाई जाती हैं ताकि सूर्य की ढेर सारीरोशनी घर के अंदर जा सके। भूकंप से बचाव के लिए दीवारें अंदर की ओर थोड़ा झुकी होती हैं।
तिब्बत का सबसे बड़ा शहर है ल्हासा। 3650 मीटर की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यह दुनिया का सबसे ऊँचा शहर माना जाता है। कपड़ी तथा खाने-पीने के लिए यहाँ का बाजार बहुत प्रसिद्ध है। व्हासा को तिब्बतियों का दिल माना जाता है।