QR Code Chapter 6

6 - चिट्ठी का सफर

एक पत्र पेटी और पत्र।

अपनी दस-बारह साल की जिंदगी में तुमने कुछ पत्र तो लिखे ही होंगे। वे पत्र अपने सही पते और समय पर किस तरह पहुँचे होंगे- यह बहुत - सी बातों पर निर्भर करता है। जैसे कि, चिट्ठी किस स्थान से किस स्थान पर भेजी जा रही है, संदेश पहुँचाने की कितनी जल्दी है, तुमने पूरा और ठीक पता लिखा है कि नहीं, तुमने उस पर डाकटिकट लगाया है कि नहीं, आदि। अब प्रश्न यह उठते हैं कि

● अखिर चिट्ठी पर डाकटिकट लगाया ही क्यों जाए?
● पूरे और ठीक पते से क्या मतलब है?
● जरूरत पड़ने पर संदेश को जल्दी कैसे पहुँचाया जाए?
● स्थान बदलने से चिट्ठी के पहुंचने पर क्या असर पड़ता है?

इनमें से कुछ सवालों के जवाब शायद तुम्हारे पास हो- खासकर तुममें से उनके पास जो डाकटिकटें इकट्ठा करने का शैक रखते हैं।

इन सवालों के जवाबों के लिए ज़रा नीचे दिए गए लिफ़ानों को गौर से देखो दोनों पतों को दी गई जगह में लिखो।

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एक पत्र जिसमे एक ओर पता लिखा है और दूसरी ओर एक स्टाम्प लगा है और नीचे लिखा है महात्मा गांधी जहां है वहाँ है वर्धा।

एक पत्र के आस पास पक्षी जैसे पंख बने हैं।

ये दोनों पते किस तरह से भिन्न है? गांधीजी को भेजे गए पन्न में पते की जगह पर लिखा है - "महात्मा गांधी, जहाँ हो यहाँ वर्धा।" जबकि लिफ़ाफ़े पर हमारत या संस्थान से लेकर शहर तक का नाम लिखा हुआ है। पते में सबसे छोटी भौगोलिक इकाई से शुरू करके बड़ी की और बढे है। छोटी से बड़ी भौगोलिक इकाई। का मतलब यह हुआ कि घर के नंबर के बाद गली-मोहल्ले का नाम, फिर गाँव, कस्बे, शहर के जिस हिस्से में है उसका नाम, फिर गाँव या का नामा शहर के नाम के बाद लिखे अंक को पिनकोड कहते हैं। हर जगह को एक पिनकोड दिया गया है। यह सोचने लायक बात है कि आखिर पिनकोड की ज़रूरत क्या है? हमारे देश में अनेक ऐसे कस्बे/र्गाव/शहर हैं जिनके नाम एक जैसे हैं। पते के बाद पिन कोड लिखने से गंतव्य स्थान का पत्ता लगाने में डाक छोटने वाले कर्मचारियों को मदद मिलती है और पत्र जल्दी र्बाटे जा सकते हैं।

पिनकोड की शुरुआत 15 अगस्त 1972 को डाक कर विभाग ने पोस्टल नंबर योजना के नाम से की। जाहिर है कि गांधीजी को मिले इस पत्र पर और उन्हें मिले किसी भी पत्र पर पिनकोड

पिन शब्द पोस्टल इंडेक्स नंबर (Postal Index Number) का छोटा रूप है। किसी भी जगह का पिनकोड 6 अंकों का होता है। हर अंक का एक खास स्थानीय अर्थ है।

उदाहरण के लिए एन.सी..आर.टी. को भेजे गए लिफ़ाफ़े पर लिखा अंक है -110016

इसमें पहले स्थान पर दिया गया अंक यह बताता है कि यह पिनकोड दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब या जम्मू-कश्मीर का है। अगले दो अंक यानी 10 यह तय करते हैं कि यह दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) के उपक्षेत्र दिल्ली का कोड है। अगले तीन अंक यानी 016 दिल्ली उपक्षेत्र के ऐसे डाकघर का कोड है जहाँ से डाक बाँटी जाती है।

● अब तुम्हारा स्कूल जहाँ पर है उस इलाके का पिनकोड पता करो।
● अपने घर के इलाके का पिनकोड नंबर भी पता करो।

पिनकोड की जानकारी डाकघर से प्राप्त की जा सकती है। डाकघरों में टेलीफ़ोन डाइरेक्टरी की तरह पिनकोड डाइरेक्टरी भी मिलती है। तुम्हारे इलाके का पिनकोड तो तुम्हारे मोहल्ले में लगे लैटर बॉक्स पर ही लिखा होगा।

● प्रमुख जगहों/शहरों के पिनकोड नंबर तुम्हें कहाँ-कहाँ मिल सकते हैं?


टिकट-संग्रह का शौक काफी लोकप्रिय है। धीरे-धीरे इसमें टिकट-संग्रह के अलावा डाक से जुड़ी और बहुत-सी चीजें शामिल हो गई हैं। इसको डाक का विज्ञान कहना गलत नहीं होगा। क्या तुम जानते हो इस विज्ञान को क्या नाम दिया गया है? पता करो और यहाँ लिखो

चार  विभिन्न स्टांपस, किसी पर कोई जानवर बना है तो किसी पर कोई फूल पत्तियां।

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का इस्तेमाल नहीं किया गया था। फ़र्क सिर्फ़ पिनकोड का ही नहीं है। समय के साथ डाक सेवाओं में निरंतर बदलाव और विकास होता रहा है।

बहुत पुराने समय में कबूतरों के द्वारा संदेश भेजे जाते थे। जब संदेशवाहक कबूतरों की बात हो रही है तो उन इंसानों की बात कैसे हो जो ऐसे समय से डाक पहुँचाने का काम करते रहे, जब संचार और परिवहन के साधन बेहद सीमित थे! बात हो रही है उन हरकारों की जो पैदल ही आम आदमी तक चिट्ठी-पत्री पहुँचाने का काम करते रहे। राजा, महाराजाओं के पास घुड़सवार हरकारे हुआ करते थे। हरकारों को सिर्फ हर तरह की जगहों पर पहुँचना होता था, बल्कि डाक की रक्षा भी करनी होती थी। डाकू, लुटेरों या जंगली जानवरों की चपेट में आने का डर हमेशा बना रहता था। आज भी भारतीय डाक सेवा दुर्गम पहाड़ी इलाकों तक डाक पहुँचाने के लिए हरकारों पर निर्भर करती है। जम्मू-कश्मीर के लद्दाख खंड में पदम (जंस्कार) जैसी कई जगह हैं जहाँ हरकारे डाक पहुँचाते हैं।

एक पत्र के आस पास पक्षी जैसे पंख बने हैं।

आजकल तो संदेश भेजने के नए-नए और तेज़ साधन आसानी से उपलब्ध हो गए हैं। डाक बाँटने में हवाई जहाज़, पानी के जहाज़ और जाने कौन-कौन से साधन इस्तेमाल किए जा रहे हैं। डाक-विभाग भी पत्र, मनीआर्डर के साथ-साथ -मेल, बधाई कार्ड आदि लोगों तक पहुँचा रहा है।

कबूतरों की उड़ान से लेकर हवाई डाक सेवाओं तक का सफ़र दिलचस्प करने वाला है। यह सोचकर आश्चर्य होता है कि कबूतर जैसा पक्षी संदेशवाहक भी हो सकता है। कबूतर की कई प्रजातियाँ होती हैं और ये सभी संदेश लाने, ले जाने का काम नहीं कर सकती। गिरहबाज़ या हूमर वह प्रजाति है जिसे प्रशिक्षित करके डाक संदेश भेजने के काम में लाया जाता है। आखिर कबूतर अपना रास्ता ढूँढ़ कैसे लेता है? उन प्रवासी पक्षियों के बारे में सोची और पता करो कि वे कैसे सैकड़ों मील का रास्ता और सही जगह तय कर पाते हैं।

एक डाकिए ने एक हाथी को उठा रखा है, जिसपर लिखा है सेवा में। इस हाथी को एक बच्चा गौर से देख रहा है।


एक कबूतर की चोंच में एक पत्र है।

उड़ीसा पुलिस खास तौर पर हूमर कबूतरों का इस्तेमाल राज्य के कई दुर्गम इलाकों में संदेश पहुँचाने के लिए कर रही है। कानून-व्यवस्था, संकट और अन्य मौकों पर संदेश के लिए ये कबूतर बहुत ही उपयोगी साबित हुए। कबूतरों की संदेश सेवा बहुत सस्ती है और उन पर खास खर्च नहीं आता है। इन कबूतरों का जीवन 15-20 साल होता है और 8-10 साल तक वे बहुत अच्छा काम करते हैं। स्वस्थ कबूतर एक दिन में एक हज़ार किलोमीटर तक का सफ़र कर सकता है। यदि कोई महत्वपूर्ण संदेश पहुँचाना हो तो दो कबूतरों को भेजा जाता है ताकि बाज़ के हमले जैसी अनहोनी स्थिति में भी दूसरा कबूतर संदेश पहुँचा दे।

शायद यह पढ़कर तुम एक ऐसे कबूतर की कहानी पढ़ना चाहो जो दूसरे विश्व युद्ध में संदेश पहुँचाता था। इस कबूतर की कहानी नेशनल बुक ट्रस्ट से अंग्रेज़ी में छपी एक किताब में दी गई है। किताब का नाम है ' ग्रे-नेक', जो कि इस किताब के हीरो का भी नाम है। अगर तुम हिंदी में पढ़ना चाहते हो तो क्यों नेशनल बुक ट्रस्ट को पत्र लिखो कि वे इस किताब को हिंदी में भी छापें यह रहा उनका पता- नेहरू भवन, 5 इंस्टीट्यूशनल एरिया फेज़ -11, वसंत कुंज, नई दिल्ली -110070

चिट्ठीपत्री

1. गांधी जी को सिर्फ उनके नाम और देश के नाम के सहारे पत्र कैसे पहुँच गया होगा?
2. अगर एक पत्र में पते के साथ किसी का नाम हो तो क्या पत्र ठीक जगह पर पहुँच जाएगा?
3. नाम होने से क्या समस्याएँ सकती हैं?
4.पैदल हरकारों को किस-किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता होगा?
5. अगर तुम किसी को चिट्ठी लिख रहे हो तो पते में यह जानकारी किस क्रम में लिखोगे?

गली/मोहल्ले का नाम, घर का नंबर, राज्य का नाम, का नाम, कस्बे/शहर/गाँव का नाम, जनपद का नाम नीचे दी गई जगह में लिखो।

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तुमने इस क्रम में ही क्यों लिखा?

6. अपने घर पर कोई पुराना (या नया) पत्र ढूँढ़ो। उसे देखकर नीचे लिखे प्रश्नों का जवाब लिखो-
(क) पत्र किसने लिखा?
(ख) किसे लिखा?
(ग)  किस तारीख को लिखा?
(घ) यह पत्र किस डाकखाने में तथा किस तारीख को पहुँचा?
(ड़) यह उत्तर तुम्हें कैसे पता चला?
7. चिट्ठी भेजने के लिए आमतौर पर पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र या लिफ्नाफ़ा इस्तेमाल किया जाता है। डाकघर जाकर इनका मूल्य पता करके लिखो

पोस्टकार्ड.......

अंतर्देशीय पत्र........

लिफाफ........

8. डाकटिकट इकट्ठा करो। एक रुपये से लेकर दस रुपये तक के डाकटिकटों को क्रम में लगाकर कॉपी पर चिपकाओ। इकट्ठा किए गए डाकटिकटों पर अपने साथियों के साथ चर्चा करो।

शब्दकोश

नीचे शब्दकोश का एक अंश दिया गया है जिसमें 'संचार' शब्द का अर्थ भी दिया गया है।

संजीतज्ञ - संगीत जानने वाला, संगीत की कला में निपुण।

संग्रह - पु . 1. जमा करना, इकट्ठा करना,एकत्र करना, संचय। प्र. दीपक आजकल पक्षियों के पंखों का संग्रह करने में लगा है। 2. इकट्ठी की हुई चीज़ों का समूह या ढेर, संकलन;जैसे- टिकट-संग्रह, निबंध-संग्रह।

संचार - पु. 1. किसी संदेश को दूर तक या बहत-से लोगों तक पहुँचाने की क्रिया या प्रणाली, कम्यूनिकेशन। . टेलीफ़ोन, टेलीविज़न,सेटेलाइट आदि संचार के माध्यमों से दुनिया आज छोटी हो गई है। 2. किसी चीज़ का प्रवाह, चलना, फैलना; जैसे -शरीर में रक्त का संचार, विधुत का संचार।


(क) बताओ
कि कौन-सा अर्थ पाठ के संदर्भ में ठीक है।
 (ख) इस पन्ने को ध्यान से देखो और बताओ कि शब्दकोश में दिए गए शब्दों के साथ क्या-क्या जानकारी दी गई होती हैं।

एक पत्र पेटी के दो हाथ बने हैं, एक हाथ में एक पत्र है और दूसरे हाथ में एक झोला है, जिसमे अनेक पत्र हैं।