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12 - गुरु और चेला
गुरु एक थे और था एक चेला,
चले घूमने पास में था न धेला।
चले चलते-चलते मिली एक नगरी,
चमाचम थी सड़कें चमाचम थी डगरी।
मिली एक ग्वालिन धरे शीश गगरी,
गुरु ने कहा तेज़ ग्वालिन न भग री।
बता कौन नगरी, बता कौन राजा,
कि जिसके सुयश का यहाँ बजता बाजा।
कहा बढ़के ग्वालिन ने महाराज पंडित,
पधारे भले हो यहाँ आज पंडित।
यह अंधेर नगरी है अनबूझ राजा,
टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।
गुरु ने कहा-जान देना नहीं है,
मुसीबत मुझे मोल लेना नहीं है।
न जाने की अंधेर हो कौन छन में?
यहाँ ठीक रहना समझता न मन में।
गुरु ने कहा किंतु चेला न माना,
गुरु को विवश हो पड़ा लौट जाना।
गुरुजी गए, रह गया किंतु चेला,
यही सोचता हूँगा मोटा अकेला।
चला हाट को देखने आज चेला,
तो देखा वहाँ पर अजब रेल-पेला।
टके सेर हल्दी, टके सेर जीरा,
टके सेर ककड़ी टके सेर खीरा।
टके सेर मिलती थी रबड़ी मलाई,
बहुत रोज़ उसने मलाई उड़ाई।
सुनो और आगे का फिर हाल ताज़ा।
थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा।
बरसता था पानी, चमकती थी बिजली,
थी बरसात आई, दमकती थी बिजली।
गरजते थे बादल, झमकती थी बिजली,
थी बरसात गहरी, धमकती थी बिजली।
गिरी राज्य की एक दीवार भारी,
जहाँ राजा पहुँचे तुरत ले सवारी।
झपट संतरी को डपट कर बुलाया,
गिरी क्यों यह दीवार, किसने गिराया?
कहा संतरी ने - महाराज साहब,
न इसमें खता मेरी, ना मेरा करतब!
यह दीवार कमजोर पहले बनी थी,
इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी।
खता कारीगर की महाराज साहब,
न इसमें खता मेरी, या मेरा करतब!
बुलाया गया, कारीगर झट वहाँ पर,
बिठाया गया, कारीगर झट वहाँ पर।
कहा राजा ने-कारीगर को सज़ा दो,
खता इसकी है आज इसको कज्ज़ा दो।
कहा कारीगर ने, ज़रा की न देरी,
महाराज ! इसमें खता कुछ न मेरी।
यह भिश्ती की गलती यह उसकी शरारत,
किया गारा गीला उसी की यह गफ़लत।
कहा राजा ने-जल्द भिश्ती बुलाओ।
पकड़ कर उसे जल्द फाँसी चढ़ाओ।
चला आया भिश्ती, हुई कुछ न देरी,
कहा उसने-इसमें खता कुछ न मेरी।
यह गलती है जिसने मशक को बनाया,
कि ज़्यादा ही जिसमें था पानी समाया।
मशकवाला आया, हुई कुछ न देरी,
कहा उसने इसमें खता कुछ न मेरी।
यह मंत्री की गलती, है मंत्री की गफ़लत,
उन्हीं की शरारत, उन्हीं की है हिकमत।
बड़े जानवर का था चमड़ा दिलाया,
चुराया न चमड़ा मशक को बनाया।
बड़ी है मशक खूब भरता है पानी,
ये गलती न मेरी, यह गलती बिरानी।
है मंत्री की गलती तो मंत्री को लाओ,
हुआ हुक्म मंत्री को फाँसी चढ़ाओ।
चले मंत्री को लेके जल्लाद फ़ौरन,
चढ़ाने को फाँसी उसी दम उसी क्षण।
मगर मंत्री था इतना दुबला दिखाता,
न गर्दन में फाँसी का फंदा था आता।
कहा राजा ने जिसकी मोटी हो गर्दन,
पकड़ कर उसे फाँसी दो तुम इसी क्षण।
चले संतरी ढूँढ़ने मोटी गर्दन,
मिला चेला खाता था हलुआ दनादन।
कहा संतरी ने चलें आप फ़ौरन,
महाराज ने भेजा न्यौता इसी क्षण।
बहुत मन में खुश हो चला आज चेला,
कहा आज न्यौता छकूँगा अकेला!!
मगर आके पहुँचा तो देखा झमेला,
वहाँ तो जुड़ा था अजब एक मेला।
यह मोटी है गर्दन, इसे तुम बढ़ाओ,
कहा राजा ने इसको फाँसी चढ़ाओ!
कहा चेले ने-कुछ खता तो बताओ,
कहा राजा ने-' चुप ' न बकबक मचाओ।
मगर था न बुद्धू-था चालाक चेला,
मचाया बड़ा ही वहीं पर झमेला!!
कहा पहले गुरु जी के दर्शन कराओ,
मुझे बाद में चाहे फाँसी चढ़ाओ।
गुरुजी बुलाए गए झट वहाँ पर,
कि रोता था चेला खड़ा था जहाँ पर।
गुरु जी ने चेले को आकर बुलाया,
तुरत कान में मंत्र कुछ गुनगुनाया।
झगड़ने लगे फिर गुरु और चेला,
मचा उनमें धक्का बड़ा रेल-पेला।
गुरु ने कहा - फाँसी पर मैं चढूँगा,
कहा चेले ने- फाँसी पर मैं मरूँगा।
हटाए न हटते अड़े ऐसे दोनों,
छुटाए न छुटते लड़े ऐसे दोनों।
बढ़े राजा फ़ौरन कहा बात क्या है?
गुरु ने बताया करामात क्या है।
चढ़ेगा जो फाँसी महूरत है ऐसी,
न ऐसी महूरत बनी बढ़िया जैसी।
वह राजा नहीं, चक्रवर्ती बनेगा,
यह संसार का छत्र उस पर तनेगा।
कहा राजा ने बात सच गर यही
गुरु का कथन, झूठ होता नहीं है
कहा राजा ने फाँसी पर मैं चढूँगा
इसी दम फाँसी पर मैं ही टॅगूंगा।
चढ़ा फाँसी राजा बजा खूब बाजा
प्रजा खुश हुई जब मरा मूर्ख राजा
बजा खूब घर-घर बधाई का बाजा।
थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा
सोहन लाल द्रिवेदी
टके की बात
- टका पुराने ज़माने का सिक्का था। अगर आजकल सब चीजें एक रुपया किलो मिलने लगें तो उससे किस तरह के फ़ायदे और नुकसान होंगे?
- भारत में कोई चीज खरीदने-बेचने के लिए 'रुपये' का इस्तेमाल होता है और बांग्लादेश में 'टके' का। 'रुपया' और 'टका' क्रमश: भारत और बांग्लादेश की मुद्राएँ हैं। नीचे लिखे देशों की मुद्राएँ कौन-सी हैं?
सऊदी अरब
जापान
फ्रांस
इटली
इंग्लैंड
कविता की कहानी
- इस कविता की कहानी अपने शब्दों में लिखो।
- क्या तुमने कोई और ऐसी कहानी या कविता पढ़ी है जिसमें सूझबूझ से बिगड़ा काम बना हो, उसे अपनी कक्षा में सुनाओ।
- कविता को ध्यान से पढ़कर 'अंधेर नगरी' के बारे में कुछ वाक्य लिखो।
(सड़कें, बाज़ार, राजा का राजकाज)
- क्या ऐसे देश को 'अंधेर नगरी' कहना ठीक है? अपने उत्तर का कारण भी बताओ।
कविता की बात
- “प्रजा खुश हुई जब मरा मूर्ख राजा।“
(क) अँधेर नगरी की प्रजा राजा के मरने पर खुश क्यों हुई?
(ख) यदि वे राजा से परेशान थे तो उन्होंने उसे खुद क्यों नहीं हटाया? आपस में चर्चा करो।
- "गुरु का कथन, झूठ होता नहीं है।“
(1) गुरुजी ने क्या बात कही थी?
(2) राजा यह बात सुनकर फाँसी पर लटक गया। तुम्हारे विचार से गुरुजी ने जो बात कही, क्या वह सच थी?
(3) गुरुजी ने यह बात कहकर सही किया या गलत? आपस में चर्चा करो।
अलग तरह से
- अगर कविता ऐसे शुरु हो तो आगे किस तरह बढ़ेगी?
थी बिजली और उसकी सहेली थी बदली ___
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क्या होता यदि...
- मंत्री की गर्दन फंदे के बराबर की होती?
- राजा गुरुजी की बातों में न आता?
- अगर संतरी कहता कि “दीवार इसीलिए गिरी क्योंकि पोली थी" तो महाराज किस-किस को बुलाते? आगे क्या होता?
शब्दों की छानबीन
- नीचे लिखे वाक्य पढ़ो। जिन शब्दों के नीचे रेखा खिंची है, उन्हें आजकल कैसे लिखते हैं, यह भी बताओ।
(क) न जाने की अंधेर हो कौन छन में!
(ख) गुरु ने कहा तेज़ ग्वालिन न भग री!
(ग) इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी!
(घ) ये गलती न मेरी, यह गलती बिरानी!
(ङ) न ऐसी महूरत बनी बढ़िया जैसी
- चमाचम थी सड़कें... इस पंक्ति में 'चमाचम' शब्द आया है। नीचे लिखे शब्दों को पढ़ो और दिए गए वाक्यों में ये शब्द भरो-
पटापट
चकाचक
फटाफट
चटाचट
झकाझक
खटाखट
चटपट
* बिना जड़ का पेड़
राजा के दरबार में एक व्यापारी संदूक के साथ पहुँचा। उसने गर्व से कहा, 'महाराज, मैं व्यापारी हूँ और बिजा बीज एवं पानी के पेड़ उगाता हूँ आपके लिए मैं एक अद्भुत उपहार लाया हूँ, लेकिन आपके दरबार में एक-से-एक ज्ञाजी-ध्याजी हैं, इसलिए पहले मुझे कोई यह बताए कि इस संदूक में क्या है? अगर बता देगा तो आपके यहाँ चाकरी करने को तैयार हूँ।"
सभासद पंडितो,पुरोहितों और ज्योतिषियों की ओर देखाने लगे, लेकिन उन लोगों जे सिर झुका लिए।
सभा में गोजू झा भी उपस्थित थे। उन्हें उसकी चुनौती स्वीकार करना आवश्यक लगा, अन्यथा दरबार की जला-हँसाई होती। गोजू झा ने विश्वासपूर्वक कहा, 'मैं बता सकता हूँ कि संदूक में क्या है, लेकिन इसके लिएमुझे रातभर का समय चाहिए और व्यापारी को संदूक के साथ मेरे यहाँ ठहरना होगा। संदूक बइलाज जाए . इसकी जिगरानी के लिए हम रातभर जमे रहेंगे और व्यापारी चाहे तो पहरेदार भी रखावा सकते हैं।'
सभी मान गए और व्यापारी योजू झा के यहाँ चला गया।
रातभर दोनों संदूक कीरखवाली करते रहे। शत काटनी थी, इसलिए किस्सा-कहानी भी चलती रही। बातचीत के क्रम में व्यापारीले कहा, "मैं बिना बीज-पानी के पेड़ उगा सकता हूँ।" गोजू झा ने कहा, 'भाई, कुछ दिनपूर्व मुझे एक व्यापारी मिला था, उसने भी यही कहा था कि बिना बीज-पानी के पेड़ उगाता हूँ। पेड़ों में भोंति-भाँति के फूल खिलते हैं, वह भी रात में। क्या आप भी रात में पेड़ उगाकर ऑति-ऑति के फूल खिला सकते हैं?
उसने अहंकार से कहा, 'क्यों नहीं! मेरे पेड़ रात में ही अच्छे लगते हैं और उनके खा-बिको फूल देखते ही बजते हैं।'
यह सुनते ही गोनू झा की आँखों में चमक आ गई और वे निश्चित हो गए।
दूसरे दिन दोजों दरबार में उपस्थित हुए। गोनू झा जे जेब से कुछ आतिशबाजी निकालकर छोड़ी।
सभासद जुजला गए महाराज की भी ऑखें बाल-पीली होगई और कहा, गोनू झा, यह क्या बेवक्त की शहनाई बजा दी सभा का सामान्य शिष्टाचार भी भूल गए?'
गोनू झा ने वातावरण को सहज करते हुए कहा, 'महाराज, सर्वप्रथम धृष्टता के लिए क्षमा चाहता है, लेकिन यह मेरी मजबूरी थी। इसी में व्यापारी भाई के रहस्यमय प्रश्न का उत्तर छुपा है। सोही बिना जल के भांति-भांतिरंगों में फूल खिलते हैं।'
व्यापारी अवाक रह गया उसने सहमते हुए कहा, 'महाराजा, इन्होंने मेरे गूढ़ प्रश्न का उत्तर दे दिया।' फिर कसने विस्मयपूर्वक गोनू झा शे पूछा, आपने कैसे जाना इसमें आतिशबाजी ही है?'
गोनू जाने सहजता से कहा, व्यापारी, जब आपने यह कहा कि बिना बीज-पानी के पेड़ उगते हैं और उनमें भांति-भांति के फूल खिलते हैं, तब तक तो मुझे संदेह रहा, परंतु मेरे पूछने पर यह कहा कि रात ही मैं आपकीयह फ़सल अच्छी लगती है, तब जरा भी संशय नहीं रहा कि इसमें आतिशबाजी छोड़ कुछ अन्य सामान नहीं होगा।'
व्यापारी मायूस हो गया। राजा ने कहा, 'व्यापारी, आपको दुखी होने की जरूरत नहीं है। आप यहाँ रहने के लिए स्वतंत्र पर अपना कमाल सत दिखाकर लोगों का मनोरंजन कीजिएगा। अगर प्रदान प्रशंसनीय रहा तोपुरस्कार भी पाएगा, पर अभी पुरस्कार के हकदार गोनू झा ही है।'
वीरेंद्र झा
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