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16 - पानी रे पानी
कहाँ से आता है हमारा पानी और फिर कहाँ चला जाता है हमारा पानी? हमने कभी इस बारे में कुछ सोचा हा साचा ता नहा होगा शायद, पर इस बार म पढ़ा ज़रूर है। भूगोल की किताब पढ़ते समय जल-चक्र जैसी बातें हमें बताई जाती हैं। एक सुंदर-सा चित्र में होता है, इस पाठ के साथ। सूरज, समुद्र, बादल, हवा, धरती फिर बरसात की वे और लो फिर बहती हुई एक नदी और उसके किनारे वसा तुम्हारा, हमारा घर, गाँव या शहर। चित्र के दूसरे भाग में यही नदी अपने चारों तरफ़ का पानी लेकर उसी समुद्र में मिलती दिखती है। चित्र में कुछ तीर भी बने रहते हैं। समुद्र से उठी भाप बादल बनकर पानी में बदलती है और फिर न तीरों के सहारे जल की यात्रा एक तरफ़ से शुरू होकर समुद्र में वापिस मिल जाती है। जल-चक्र पूरा हो जाता है।
यह तो हुई जल-चा की किताबी बात। पर अब तो हम सबके घरों में, स्कूल में, माता-पिता के दफ्तरों में, कारखानों और खेतों में पानी का कुछ अजीब-सा चक्कर सामने आने लगा है।
नलों में अब पूरे समम पानी नहीं आता। नल खोलो तो उससे पानी के बदले सू-सू की आवाज़ आने लगती है। पानी आता भी है तो बेवक्त। कभी देर रात को तो कमी भोर सबेरे। मीठी नींद छोड़कर घर भर की बाल्टियाँ, बर्तन और घड़े भरते फिरो। पानी को लेकर कभी-कभी, कहीं-कहीं आपस में तू-तू मैं-मैं, भी होने लगती हैं।
रोज़-रोज़ के इन हाई-टंटों से बचने के लिए कई घरों में लोग नलों के पाईप में मोटर लगवा लेते हैं। इससे कई घरों का पानी खिंचकर एक ही घर में आ जाता है। यह तो अपने आस-पास का हक छीनने जैसा काम है। लेकिन मजनूरी मानक इस काम को मोहल्ले में कोई
एक घर कर बैठे तो फिर और कई घर यही करने लगते हैं। पानी की कमी और बढ़ जाती है। शहरों में से अब कई चीज़ों की तरह पानी भी बिकने लगा है। यह कमी गाँव शहरों में ही नहीं बल्कि हमारे प्रदेशों की राजधानियों में और दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलोर जैसे बड़े शहरों में भी लोगों को भयानक कष्ट में डाल देती है। देश के कई हिस्सों में तो अकाल जैसी हालत बन जाती है। यह तो हुई गर्मी के मौसम की बात।
लेकिन बरसात के मौसम में क्या होता है लो, सब तरफ़ पानी ही बहने लगता है। हमारे-तुम्हारे घर, स्कूल, सड़कों, रेल की पटरियों पर पानी भर जाता है। देश के कई भाग बाढ़ में डूब जाते हैं। यह बाढ़ न गाँवों को छोड़ती है और न मुंबई जैसे बड़े शहरों को। कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम जाता है, कुछ बह जाता है।
ये हालात हमें बताते हैं कि पानी का बेहद कम हो जाना और पानी का बेहद ज़्यादा हो जाना, यानी अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि हम इन दोनों को ठीक से समझ सकें और सँभाल लें तो इन कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
चलो, थोड़ी देर के लिए हम पानी के इस चक्कर को भूल जाएँ और याद करें अपनी गुल्लक को। जब भी हमें कोई पैसा देता है, खुश होकर, दौड़कर उसे झट से अपनी गुल्लक में डाल देते हैं।
एक रुपया, दो रुपया पाँच रुपया, कभी सिक्के, तो कभी छोटे-बड़े नोट सब इसमें धीरे-धीरे जमा होते जाते हैं। फिर जब कभी हमें कुछ पैसों की ज़रूरत पड़ती है तो इस गुल्लक की बचत का उपयोग कर लेते हैं।
हक़ की बात
आज़ादी के बाद (पिछले साठ वर्षों में) दिल्ली में पानी की औसत माँग या खपत लगभग तीन गुना बढ़ गई है। पर झुग्गी बस्तियों को अभी भी औसत खपत का 30 प्रतिशत पानी ही मिल पाता है। जब ज़रूरत के हिसाब से लोगों को पानी नहीं मिलता तो उनके हक छिनते हैं। हमारे समाज में ज़रूरतों से जुड़े और कौन-से मुद्दे हैं जहाँ हमें बराबरी का बँटवारा नहीं दिखाई देता और कई लोगों का हिस्सा छीनकर कुछ लोगों को दे दिया जाता है कक्षा में और घर पर बड़ों के साथ चर्चा करो।
हमारी यह धरती भी इसी तरह की खूब बड़ी गुल्लक है। मिट्टी की बनी हक की बात इस विशाल गुल्लक में प्रकृति वर्षा के मौसम में खूब पानी बरसाती है। तब रुपयों से भी कई गुना कीमती इस वर्षा को हमें इस बड़ी गुल्लक में जमा कर लेना चाहिए। हमारे गाँव में, शहर में जो छोटे-बड़े तालाब, झील आदि है वे धरती की गुल्लक में पानी भरने का काम करते हैं। इनमें जमा पानी जमीन के नीचे छिपे जल के मंडार में धीरे-धीरे रिसकर, छनकर जा मिलता है। इससे हमारा भूजल मंडार समृद्ध होता जाता है। पानी का यह खजाना हमें दिखता नहीं, लेकिन इसी खजाने से हम बरसात का मौसम बीत जाने के बाद पूरे साल भर तक अपने उपयोग के लिए घर में खेतों में पायान में पानी निकाल सकते हैं।
लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब हम लोग इस छिपे खज़ाने का महत्व भूल गए और ज़मीन के लालच में हमने अपने तालाबों को कचरे से पाटकर, भर कर समतल बना दिया। देखते-ही-देखते इन पर तो कहीं मकान, कहीं बाज़ार, स्टेडियम और सिनेमा आदि खड़े हो गए।
इस बड़ी गलती की सज़ा अब हम सबको मिल रही है। गर्मी के दिनों में हमारे नल सूख जाते हैं और बरसात के दिनों में हमारी बस्तियाँ डूबने लगती हैं। इसीलिए यदि हमें अकाल और बाढ़ से बचना है तो अपने आस-पास के जलस्रोतों की, तालाबों की और नदियों आदि की रखवाली अच्छे ढंग से करनी पड़ेगी। जल-चक्र हम ठीक से समझें, जब बरसात हो तो उसे थाम लें, अपना भूजल भंडार सुरक्षित रखें, अपनी गुल्लक भरते रहें तभी हमें ज़रूरत के समय पानी की कोई कमी नहीं आएगी। यदि हमने जल-चक्र का ठीक उपयोग नहीं किया तो हम पानी के चक्कर में फँसते चले जाएंगे।
अनुपम मिश्र
तुम्हारे आस-पास
अपने आस-पास के बड़ों से पूछकर पता लगाओ-
- तुम्हारे घर में पानी कहाँ से आता है?
- तुम्हारे घर का मैला पानी बहकर कहाँ जाता है?
- (क) तुम्हारे इलाके में धरती के अंदर का पानी कितने फ़ीट या कितने हाथ नीचे है?
(ख) आज से पंद्रह वर्ष पहले यह पानी कितना नीचा था
अनुमान लगाओ
पाठ के आधार पर बताओ-
- अपने घर के नल के पाइप में मोटर लगवाना दूसरों का हक छीनने के बराबर है। लेखक ऐसा क्यों मानते हैं?
- बड़ी संख्या में इमारतें बनने से बाढ़ और अकाल का खतरा कैसे पैदा होता है?
- धरती की गुल्लक किन-किन साधनों से भरती है?
यदि हाँ तो...
- क्या तुम्हारे इलाके में कभी बाढ़ आई है यदि हाँ, तो उसके बारे में लिखो।
- क्या तुम्हारे घर में पानी कुछ ही घंटों के लिए आता है यदि हाँ, तो बताओ कि कैसे तुम्हारे परिवार की दिनचर्या नल में पानी आने के साथ बँधी होती है?
- क्या तुम्हारे मोहल्ले में रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने के लिए लोगों को पानी खरीदना पड़ता है? यदि हाँ, तो बताओ कि तुम्हारे घर में रोज़ औसतन कितने लीटर पानी खरीदा जाता है? इस पर कितना खर्चा होता है?
संकट क्यों
- पाठ में पानी के संकट के किस प्रमुख कारण की बात की गई है?
- पानी के संकट का एक और मुख्य कारण पानी की फ़िजूलखर्ची भी है। कक्षा में पाँच-पाँच के समूह में बातचीत करो और बताओ कि अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी में पानी की बचत करने के लिए तुम क्या-क्या उपाय कर सकते हो?
- जितना उपलब्ध है, उससे कहीं ज़्यादा खर्च करने से पानी का संकट उत्पन्न होता है। क्या यही बात हम बिजली के संकट के बारे में भी कह सकते हैं?
पानी का चक्कर-भाषा का चक्कर
- पानी की समस्या या बचत से संबंधित पोस्टर और नारे तैयार करो। यह काम तुम चार-चार के समूह में कर सकते हो।
- “पानी की बर्बादी, सबकी बर्बादी" इस नारे में 'बर्बादी' शब्द का एक अर्थ है या दो अलग अर्थ हैं?सोचो।
- पानी हमारी जिंदगी में महत्वपूर्ण तो है ही, मुहावरों की दुनिया में भी उसकी खास जगह है। पानी से संबंधित कुछ मुहावरे इकट्ठे करो और उनका उचित संदर्भ में प्रयोग करो।
नदी का सफ़र
किसी भी नदी की शुरुआत ऊँचे स्थानों या पहाड़ों से होती है। नदी में पानी झरने से, झील से, बारिश से या फिर हिम के पिघलने से आता है।
जहाँ से नदी की शुरुआत होती है उस जगह को नदी का ‘उद्गम’ कहते हैं।
कई धाराएँ आकर नदी में मिलती हैं।
पहाड़ी क्षेत्र में ढाल अधिक होने के कारण नदी का बहाव तेज़ होता है जिससे नदी गहरी घाटी (V आकार की घाटी) बनाती है।
कई सारी छोटी नदियाँ मुख्य नदी में मिलती हैं तथा उसे बड़ी नदी बनाती हैं। इन छोटी नदियों को मुख्य नदी की सहायक नदियाँ कहते हैं।
मछुआरे और सैलानी नदी के किनारे मछलियाँ पकड़ते हैं।
नदी पत्थर-चट्टानों से टकराकर और तेज़ बहती है।
नदी जब ऊँ चाई से गिरती है तो जलप्रपात बनता है।
पानी यहाँ से ढाल के साथ नीचे की ओर बहता है। नदी की शुरुआत एक पतली धारा के रूप में होती है आगे चलकर यही धारा गहरी और चौड़ी हो जाती है और एक नदी का रूप ले लेती है। यहाँ एक नदी का सफ़र दिखाया गया है। तुम्हारे आस-पास भी कोई नदी होगी? उसके बारे में तुम क्या-क्या जानते हो?