Durva-027

सत्ताईसवाँ पाठ


व्यर्थ की शंका

(चित्रकथा 1)


1. किसी गाँव में एक दंपति रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी।



2. उन दोनों ने एक छोटे-से नेवले को पाल लिया। पति-पत्नी नेवले को बहुत प्यार करने लगे।

तू तो मेरा राजा बेटा है।


3. कुछ दिन बाद ...


उनके घर पुत्री का जन्म हुआ। संतान पाकर पति-पत्नी बहुत खुश हुए।


4. स्त्री अपनी बच्ची से बहुत प्यार करने लगी। उसका ध्यान अपनी संतान पर ही रहता था। अब उसे नेवला व्यर्थ लगने लगा।


तू तो मेरी रानी बेटी है।



5. उसे नेवले पर गुस्सा आता रहता था। स्त्री को संदेह था कि नेवला उसकी बेटी से जलता है और इसलिए वह चुपचाप बैठा रहता है।

तुम मेरी रानी बेटी 
से क्यों जलते हो?


6. पति के मन में नेवले के प्रति कोई संदेह नहीं था। वह पत्नी को समझाता, नेवला मेरी बेटी से क्यों जलेगा? ये दोनों हमारी संतानें हैं।


तुम तो हमारे बेटे हो।
अपनी छोटी बहन से प्यार जताओ,
उसके साथ खेलो ।


7. एक दिन ... जब स्त्री घड़ा लेकर कुएँ से पानी भरने के लिए जाने लगी, उसने अपने पति से कहा–

सुनो... मैं पानी 
लेने जा रही हूँ



8. जाते-जाते उसने पति को सावधान किया।

तुम बिटिया का ध्यान रखना।
नेवले का क्या भरोसा?


9. अचानक...
मैं तो भूल ही गया था कि आज शाम को पड़ोसी के घर में मेहमान आनेवाले हैं। चलूँ अभी बता दूँ, नहीं तो उसे उलझन होगी।

पति को नेवले पर संदेह नहीं था उसे एक काम याद आया। घर से निकलते हुए उसने नेवले से कहा–


10.
तुम अपनी बहन का ध्यान रखना,
थोड़ी देर में वापस आ जाऊँगा।
उसकी बात सुनकर नेवला सतर्क हो गया। वह बच्ची के पालने के पास जा बैठा।

11. और तभी ...
नेवले ने देखा...

बच्ची पालने में सो रही थी। और दरवाज़े से एक साँप पालने की ओर बढ़ता चला आ रहा है।


12.

खाँय-खाँय

–फोंऽफोंऽ...

नेवला साँप पर झपटा। उसने साँप को पकड़ लिया, दांतों से टुकड़े-टुकड़े कर साँप को मार डाला।


13. प्रतीक्षा ...

माँ मुझ पर बहुत प्रसन्न होगी, मैंने साँप को मार डाला।

नेवला घर से बाहर आकर स्त्री की प्रतीक्षा करने लगा। उसे अपनी विजय पर गर्व था।



14.
खून ... हाय!
तूने मेरी बिटिया को काट खाया।
स्त्री ने नेवले के मुँह में खून देखा। उसने गुस्से में पानी से भरा घड़ा फेंककर मारा। नेवला मर गया।


15. वह घर में गई। उसने देखा साँप मरा पड़ा है और बच्ची पालने में सोई हुई है।

हाय! हाय! यह मैंने क्या कर डाला। नेवले ने मेरी बेटी की रक्षा की, मैंने उसकी हत्या। यदि उसने मेरी बेटी की रक्षा नहीं की होती तो मैं संतान का मुँह नहीं देख पाती।


16. वह बैठी रोती रही, उसे बहुत दुःख हुआ, तभी उसका पति घर आया।



17.

ओह! मैंने नेवले पर संदेह क्यों किया!
वह लाड़-प्यार के बिना बहुत उदास रहता था और मुझे लगता था कि वह मेरी बेटी से जलता है। व्यर्थ की शंका के कारण मैंने बहुत बड़ी गलती की है।

पत्नी ने पति को अपनी बातें सुनाईं और पछताने लगी।


18.

व्यर्थ की शंका नहीं करनी चाहिए। 
कोई भी काम सोच-समझकर ही करना चाहिए। पछताने से कुछ नहीं मिलता।


दंपति, नेवले की निष्ठा और कर्तव्य को जीवनभर नहीं भूल पाए।



अभ्यास

1. नीचे दिए गए कथन किसके हैं?

कथन

1. तू तो मेरा राजा बेटा है। ...............

2. सुनो ..., मैं पानी लेने जा रही हूँ। ...................

3. अपनी बहन का ध्यान रखना। ...........................

4. माँ मुझ पर बहुत प्रसन्न होगी। ......................

5. हाय! हाय! यह मैंने क्या कर डाला। ..................

6. कोई भी काम सोच-समझकर ही करना चाहिए। .............


2. प्रश्नों के उत्तर दो

1. स्त्री के मन में नेवले के बारे में क्या संदेह था?

2. पति ने पत्नी को नेवले के बारे में क्या समझाया?

3. जब साँप बच्ची के पालने की ओर आता दिखा तो नेवले ने क्या किया?

4. स्त्री फूट-फूटकर क्यों रोने लगी?

5. दंपति, नेवले को जीवन भर क्यों नहीं भूल पाए?