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अध्याय 3
तंतु से वस्त्र तक
पहेली और बूझो ने अपने स्कूल में आयोजित की गई "विज्ञान प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता" में प्रथम पुरस्कार जीता। वे दोनों अत्यधिक उत्तेजित थे और उन्होंने प्राप्त हुई पुरस्कार राशि से अपने माता-पिता के लिए वस्त्र खरीदने का निश्चय किया। वे कपड़े की दुकान पर वस्त्र-सामग्री की विस्तृत विविधता देखकर उलझन में फंस गए (चित्र 3.1)। दुकानदार ने उन्हें यह समझाया कि कुछ कपड़े अथवा वस्त्र सूती हैं तो कुछ संश्लिष्ट (कृत्रिम) हैं। उसके पास ऊनी म.फलर तथा शाल भी थे। दुकान में बहुत-सी रेशमी साड़ियाँ भी थीं। पहेली तथा बूझो अत्यधिक उत्तेजित दिखाई दे रहे थे। उन्होंने इन विभिन्न कपड़ों को स्पर्श किया और उनके बारे में जानकारी प्राप्त की। अंत में उन्होंने एक ऊनी म.फलर तथा एक सूती साड़ी खरीदी।
चित्र 3.1 कपड़े की दुकान
कपड़े की दुकान का भ्रमण करने के पश्चात पहेली और बूझो ने अपने आस-पास में विभिन्न प्रकार के वस्त्रों को ध्यान से देखना आरंभ कर दिया। उन्होंने यह देखा कि बेडशीट (बिस्तर पर बिछाने की चादर), कंबल, पर्दे, मेज़पोश, तौलिए और झाड़न (डस्टर) आदि, ये सभी भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़ों से बने हैं। यहाँ तक कि उनके अपने बस्ते तथा बोरे भी किसी प्रकार के वस्त्र से बने हैं। उन्होंने इन सभी वस्त्रों की पहचान सूती, ऊनी, रेशमी अथवा संश्लिष्ट (कृत्रिम) के रूप में की। क्या आप भी इन वस्त्राें में से कुछ की पहचान कर सकते हैं?
3.1 वस्त्रों में विविधता
क्रियाकलाप 1
अपने पास के किसी दर्ज़ी की दुकान का भ्रमण कीजिए। सिलाई के बाद बचे कपड़े की कतरन एकत्र कीजिए। कपड़े की प्रत्येक कतरन को स्पर्श करके उसके स्पर्श का अनुभव कीजिए। दर्ज़ी की सहायता से, उससे पूछकर कुछ कपड़ों पर सूती, रेशमी, ऊनी, संश्लिष्ट के लेबल लगाने का प्रयास कीजिए।
क्या आप यह जानना चाहते हैं कि ये विभिन्न कपड़े किस प्रकार बनते हैं? जब आप किसी कपड़े का अवलोकन करते हैं तो वह एक सतत टुकड़ा प्रतीत होता है। अब इसे ध्यान से देखिए। आपने क्या देखा (चित्र 3.2)?
क्रियाकलाप 2
सूती कपड़े का वही टुकड़ा चुनिए जिस पर आपने क्रियाकलाप 1 में लेबल लगाया था। इसके एक सिरे पर कोई ढीला धागा या तागा ढूँढने का प्रयास कीजिए और इसे बाहर खींचिए (चित्र 3.3)। यदि कोई ढीला तागा दिखाई न दे तो पिन अथवा सुई की सहायता से आप एक तागा धीरे-धीरे बाहर खींच सकते हैं। हम यह देखते हैं कि तागों को एक साथ व्यवस्थित करने पर वस्त्र बना है। ये तागे किससे बनते हैं?
चित्र 3.3 कपड़े से कोई तागा या तंतु खींचना
3.2 तंतु
क्रियाकलाप 3
किसी सूती कपड़े के टुकड़े से कोई तागा बाहर निकालिए। इस तागे के टुकड़े को मेज़ पर रखिए। इस तागे के टुकड़े के एक सिरे को अपने अंगूठे से दबाइए। तागे के दूसरे सिरे को इसकी लंबाई के अनुदिश, चित्र 3.4 में दर्शाए अनुसार अपने नाखून से खराेंचिए। क्या आप इस सिरे पर यह देखते हैं कि तागा पतली लड़ियों में विखंडित हो गया है (चित्र 3.5)?
चित्र 3.4 तागे को पतले तंतुओं में विखंडित करना
सुई में तागे को पिरोने (डालने) का प्रयास करते समय भी आपने एेसा ही प्रेक्षण किया होगा। कई बार तागे का यह सिरा कुछ पतली लड़ियों में पृथक हो जाता है। एेसा होने पर तागे को सुई के नाके से गुजारना कठिन हो जाता है। तागे की ये दिखाई देने वाली पतली लड़ियाँ भी और अधिक पतली लड़ियों से मिलकर बनी होती हैं, जिन्हें तंतु कहते हैं।
वस्त्र, तागों (या धागों) से मिलकर बनते हैं तथा तागे भी आगे तंतुओं से मिलकर बने होते हैं। ये तंतु कहाँ से आते हैं?
कुछ वस्त्रों, जैसे सूती, जूट, रेशमी तथा ऊनी के तंतु पादपों तथा जंतुओं से प्राप्त होते हैं। इन्हें प्राकृतिक तंतु कहते हैं। रुई तथा जूट (पटसन) पादपों से प्राप्त होने वाले तंतुओं के उदाहरण हैं। ऊन तथा रेशम जंतुओं से प्राप्त होते हैं। ऊन, भेड़ अथवा बकरी की कर्तित ऊन से प्राप्त होती है। इसे खरगोश, याक तथा ऊँटों के बालों से भी प्राप्त किया जाता है। रेशमी तंतु रेशम-कीट कोकून से खींचा जाता है।
हज़ारों वर्ष तक वस्त्र निर्माण के लिए केवल प्राकृतिक तंतुओं का ही उपयोग होता था। पिछले लगभग सौ वर्षाें से एेसे रासायनिक पदार्थों, जिनका स्रोत पादप अथवा जंतु नहीं हैं, से तंतुओं का निर्माण किया जा रहा है। इन्हें संश्लिष्ट तंतु कहते हैं। पॉलिएस्टर, नायलॉन और एक्रिलिक, संश्लिष्ट तंतुओं के कुछ उदाहरण हैं।
3.3 कुछ पादप तंतु
रुई
क्या आपने कभी तेल के लैंपों के लिए बत्तियाँ बनाई हैं? इन बत्तियों को बनाने के लिए आप क्या उपयोग में लाते हैं? इस रुई का उपयोग गद्दों, रजाइयों अथवा तकियों में भी किया जाता है।
कुछ रुई लीजिए, इसे खींचकर पृथक कीजिए और इसके किनारों को ध्यान से देखिए। आपने क्या प्रेक्षण किया? ये छोटी पतली लड़ियाँ, जिन्हें आप देख रहे हैं, कपास तंतुओं से बनी हैं।
रुई कहाँ से आती है? इसे खेतों में उगाया जाता है। साधारणतया कपास के पौधे वहाँ उगाए जाते हैं जहाँ की मृदा काली तथा जलवायु उष्ण होती है। क्या आप एेसे कुछ राज्यों के नाम बता सकते हैं जहाँ हमारे देश में कपास की कृषि की जाती है? कपास पादप के फल (कपास गोलक) लगभग नींबू की माप के होते हैं। पूर्ण परिपक्व होने पर बीज टूटकर खुल जाते हैं तथा अब कपास तंतुओं से ढके बिनौले (कपास बीज) को देखा जा सकता है। क्या आपने एेसा कपास-खेत देखा है जो कपास चुने जाने के लिए तैयार हो चुका है? इस समय खेत कपास के परिफुल्लों (रोवों) से इतना श्वेत हो जाता है जैसे हिम ने ढक लिया हो (चित्र 3.6)।
चित्र 3.6 कपास पादप के खेत
साधारणतया इन कपास बॉलों से कपास को हस्त चयन द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसके पश्चात कपास से बीजों को कंकतन द्वारा पृथक किया जाता है। इस प्रक्रिया को कपास ओटना कहते हैं।
पारंपरिक ढंग से कपास हाथों से ओटी जाती थी (चित्र 3.7)। आजकल कपास ओटने के लिए मशीनों का उपयोग भी किया जाता है।
चित्र 3.7 कपास ओटना
जूट (पटसन)
पटसन तंतु को पटसन पादप (चित्र 3.8) के तने से प्राप्त किया जाता है। भारत में इसकी खेती वर्षा-ऋतु में की जाती है। भारत में पटसन को प्रमुख रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार तथा असम में उगाया जाता है। सामान्यतः पटसन पादप (फसल) को पुष्पन अवस्था में काटते हैं। फसल कटाई के पश्चात पादपों के तनों को कुछ दिनों तक जल में डुबाकर रखते हैं। एेसा करने पर तने गल जाते हैं और उन्हें पटसन-तंतुओं से हाथों द्वारा पृथक कर दिया जाता है।
3.4 सूती तागे की कताई
आप स्वयं सूती तागा बनाने का प्रयास कर सकते हैं।
क्रियाकलाप 4
एक हाथ में कुछ रुई पकड़िए। दूसरे हाथ के अंगूठे तथा तर्जनी के बीच कुछ रुई की चुटकी भरिए और इसे धीरे-धीरे रुई से बाहर की ओर खींचिए तथा रेशों को लगातार एेंठते भी रहिए (चित्र 3.9)। क्या आप तागा बना सके?
चित्र 3.9 रूई से तागा बनाना
रेशों से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं। इस प्रक्रिया में, रुई के एक पुंज से रेशों को खींचकर एेंठते हैं। एेसा करने से रेशे पास-पास आ जाते हैं और तागा बन जाता है।
चित्र 3-10 तकली
कताई के लिए एक सरल युक्ति ‘हस्त तकुआ’ का उपयोग किया जाता है जिसे तकली कहते हैं (चित्र 3.10)। हाथ से प्रचालित कताई में उपयोग होने वाली एक अन्य युक्ति चरखा है (चित्र 3.11)। चरखे के उपयोग को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के एक पक्ष के रूप में लोकप्रियता प्रदान की थी। उन्होंने लोगों को हाथ कते तागों से बुने वस्त्रों (खादी) को पहनने तथा ब्रिटेन की मिलों में बने आयातित कपड़ों का बहिष्कार करने के लिए प्रोत्साहित किया था। खादी के प्रचलन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने 1956 में एक संगठन का निर्माण किया जिसे खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग कहते हैं।
चित्र 3.11 चरखा
वृहत् पैमाने पर तागों की कताई का कार्य कताई मशीनों की सहायता से किया जाता है। कताई के पश्चात तागों का उपयोग वस्त्र बनाने में किया जाता है।
3.5 तागे से वस्त्र
तागे से वस्त्र बनाने की कई विधियाँ हैं। इनमें दो प्रमुख विधियाँ बुनाई तथा बंधाई हैं।
बुनाई
क्रियाकलाप 2 में आपने यह ध्यान दिया होगा कि वस्त्र तागों के दो सेटों, जिन्हें एक साथ व्यवस्थित किया जाता है, से मिलकर बनते हैं। तागों के दो सेटों को आपस में व्यवस्थित करके वस्त्र बनाने की प्रक्रिया को बुनाई (वीविंग) कहते हैं। आइए कागज़ की कुछ पट्टियों को बुनने का प्रयास करते हैं।
क्रियाकलाप 5
भिन्न रंगों की दो कागज़ की शीट लीजिए। दोनों में से 30 सेंटीमीटर लंबाई तथा 30 सेंटीमीटर चौड़ाई की वर्गाकार शीट काटिए। अब इन दोनों शीटों को आधा मोड़िए। एक शीट पर चित्र 3.12(a) में दिखाए अनुसार रेखाएँ खींचिए तथा दूसरी शीट पर चित्र 3.12(b) में दिखाए अनुसार रेखाएँ खींचिए। दोनों शीटों को खींची गई रेखाओं के अनुदिश काटिए और फिर शीटों के मोड़ों को खोलकर इन्हें फैला लीजिए। एक शीट की पट्टियों को एक-एक करके दूसरी शीट के कटावों से चित्र 3.12(c) में दिखाए अनुसार बुनिए। चित्र 3.12 (d) में पट्टियों के बुनने के पश्चात का नमूना दिखाया गया है।
(a) (b)
(c)
(d)
चित्र 3.12 कागज़ की पट्टियों से बुनाई
इसी ढंग से तागों के दो सेटों को बुनकर वस्त्र बुने जाते हैं। तागे वास्तव में कागज़ की पट्टियों की तुलना में बहुत पतले होते हैं। वस्त्रों की बुनाई करघों पर की जाती है (चित्र 3.13)। करघे या तो हस्तप्रचालित होते हैं अथवा विद्युतप्रचालित।
चित्र 3-13 हथकरघा
एक विशेष प्रकार की बुनाई
क्या कभी आपने यह ध्यान से देखा है कि स्वेटर किस प्रकार बुने जाते हैं? इनकी बुनाई (निटिंग) में किसी एकल तागे का उपयोग वस्त्र के एक टुकड़े को बनाने में किया जाता है (चित्र 3.14)। क्या आपने कभी किसी फटे हुए मोजे के किसी तागे को खींचकर देखा है? जब आप एेसा करते हैं तब क्या होता है? एकल धागा लगातार खिंचता चला आता है तथा वस्त्र उधड़ता जाता है। मोजे और बहुत-सी अन्य पहनने की वस्तुएँ एेसी बुनाई द्वारा बने वस्त्राें से बनाई जाती हैं। इस प्रकार की बुनाई हाथों से तथा मशीनों द्वारा भी की जाती है।
दोनों प्रकार की बुनाई का उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्रों के निर्माण में किया जाता है। इन वस्त्रों का उपयोग पहनने की विविध वस्तुओं को बनाने में होता है।
चित्र 3.14 स्वेटर बुनाई
3.6 वस्त्र-सामग्री का इतिहास
क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि प्राचीन काल में लोग पहनने के लिए किस सामग्री का उपयोग किया करते थे? वस्त्रों के विषय में पूर्व प्रमाणों से एेसा प्रतीत होता है कि प्रारंभ में लोग वृक्षों की छाल (वल्क), बड़ी-बड़ी पत्तियों अथवा जंतुओं की चर्म और समूर से अपने शरीर को ढकते थे।
कृषि समुदाय में बसना आरंभ करने के पश्चात लोगों ने पतली-पतली टहनियों तथा घास को बुनकर चटाईयाँ तथा डलियाँ (टोकरी) बनाना सीखा। लताओं, जंतुओं की ऊन अथवा बालों को आपस में एेंठन देकर लंबी लड़ियाँ बनाईं। इनको बुनकर वस्त्र तैयार किए। पूर्व में भारतवासी रुई से बने वस्त्र पहनते थे जो गंगा नदी के निकटवर्ती क्षेत्रों में उगाई जाती थी। फ्लैक्स भी एक पादप है जिससे प्राकृतिक तंतु प्राप्त होता है। प्राचीन मिस्र में वस्त्रों को बनाने के लिए रुई तथा फ्लैक्स की कृषि नील नदी के निकटवर्ती क्षेत्रों में की जाती थी।
उन दिनों में लोगों को सिलाई करना नहीं आता था। उस समय लोग अपने शरीर के विभिन्न भागों को वस्त्रों से आच्छादित कर लेते थे। वे शरीर को आच्छादित करने के लिए कई विभिन्न ढंगों का उपयोग करते थे। सिलाई की सुई के आविष्कार के साथ लोगों ने वस्त्रों की सिलाई करके पहनने के कपड़े तैयार किए। इस आविष्कार के पश्चात सिले कपड़ों में बहुत-सी विभिन्नताएँ आ गई हैं। परंतु क्या यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि आज भी साड़ियों, धोतियों, लुंगियों तथा पगड़ियों का बिना सिले वस्त्रों के रूप में उपयोग किया जाता है?
जिस प्रकार समस्त देश में खाए जाने वाले भोजन में अत्यधिक विविधता देखने को मिलती है, ठीक उसी प्रकार वस्त्रों एवं पहनने की वस्तुओं में भी अत्यधिक विविधता पाई जाती है।
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‣ वस्त्र-सामग्री अथवा वस्त्रों में विविधता होती है, जैसे सूती, रेशमी, ऊनी और पॉलिएस्टर।
‣ वस्त्र तागों से बनते हैं जिन्हें तंतुओं से बनाया जाता है।
‣ तंतु या तो प्राकृतिक होते हैं अथवा संश्लिष्ट। रेशम, ऊन और जूट कुछ प्राकृतिक तंतु हैं, जबकि नायलॉन और पॉलिएस्टर कुछ संश्लिष्ट तंतुओं के उदाहरण हैं।
‣ रुई और जूट जैसे तंतु पादपों से प्राप्त किए जाते हैं।
‣ तंतुओं से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते है।
‣ तागों की बुनाई दो प्रकार से की जाती है जिनसे वस्त्र बनता है।
1. निम्नलिखित तंतुओं को प्राकृतिक तथा संश्लिष्ट में वर्गीकृत कीजिए।
नायलॉन, ऊन, रुई, रेशम, पॉलिएस्टर, पटसन।
2. नीचे दिए गए कथन ‘सत्य’ हैं अथवा ‘असत्य’ उल्लेख कीजिए ः
(क) तंतुओं से तागा ंबनता है।
(ख) कताई वस्त्र निर्माण की एक प्रक्रिया है।
(ग) जूट नारियल का बाहरी आवरण होता है।
(घ) रुई से बिनौले (बीज) हटाने की प्रक्रिया को ओटना कहते हैं।
(ङ) तागों की बुनाई से वस्त्र का एक टुकड़ा बनता है।
(च) रेशम-तंतु किसी पादप के तने से प्राप्त होता है।
(छ) पॉलिएस्टर एक प्राकृतिक तंतु है।
3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ः
(क) ------------------ और ------------------ से पादप तंतु प्राप्त किए जाते हैं।
(ख) ------------------ और ------------------ जांतव तंतु हैं।
4. रुई तथा जूट (पटसन) पादप के किन भागों से प्राप्त होते हैं?
5. नारियल तंतु से बनने वाली दो वस्तुओं के नाम लिखिए।
6. तंतुओं से तागा निर्मित करने की प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए।
प्रस्तावित परियोजनाएँ एवं क्रियाकलाप
1. किसी निकटवर्ती हथकरघा अथवा बिजली करघा इकाई का भ्रमण कीजिए तथा भिन्न विधियों द्वारा तंतुओं की बुनाई का प्रेक्षण कीजिए।
2. पता लगाइए कि क्या आपके क्षेत्र में कहीं तंतु प्राप्त करने के लिए कोई फसल उगाई जाती है। यदि हाँ, तो इसका उपयोग किसलिए किया जाता है?
3. भारत रुई तथा सूती वस्त्रों का प्रमुख उत्पादक रहा है। भारत बहुत-से अन्य देशों को सूती वस्त्रों तथा वस्तुआें की आपूर्ति करता है। पता लगाइए कि यह हमारी सहायता किस प्रकार करता हैं?
4. क्या आप जानते हैं कि सू.फी संत तथा कवि कबीर, एक बुनकर थे। उनके जीवन चरित्र तथा शिक्षाओं का पता लगाइए।
5. आप अपने शिक्षक अथवा अभिभावकों के मार्गदर्शन (निरीक्षण के अधीन) में किसी वस्त्र के तंतु की पहचान के लिए एक क्रियाकलाप कर सकते हैं। किसी वस्त्र से छः से आठ तक तंतु खींचकर बाहर निकालिए। तंतु के एक सिरे को चिमटी से पकड़िए तथा दूसरे सिरे को मोमबत्ती की ज्वाला के ऊपर लाइए। सावधानी से प्रेक्षण कीजिए। क्या तंतु ज्वाला से दूर सिकुड़ता है? क्या तंतु पिघलता अथवा जल जाता है? इससे किस प्रकार की गंध निकलती है? अपने प्रेक्षणों को नोट कीजिए।
यदि ये सूती तंतु हैं, तो ये जल जाते हैं, परंतु सिकुड़ते अथवा पिघलते नहीं हैं। जलते तंतुओं से कागज़ के जलने जैसी गंध आती है। रेशमी तंतु ज्वाला से दूर सिकुड़ता है और जल जाता है, परंतु पिघलता नहीं है। इससे जले मांस जैसी गंध आती है। ऊनी तंतु भी सिकुड़ता है और जल जाता है परंतु पिघलता नहीं है। इससे जलते बालों जैसी तीव्र गंध आती है। संश्लिष्ट तंतु सिकुड़ते हैं और जल जाते हैं। ये पिघलते भी हैं तथा जलते प्लास्टिक जैसी गंध देते हैं।