Vigyan  Chapter-14

अध्याय 14

जल

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मान लीजिए, किसी कारणवश आपके परिवार को एक सप्ताह तक प्रतिदिन एक बाल्टी जल मिलता है। कल्पना कीजिए, तब क्या होगा? क्या आप खाना पकाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ़ करना और स्नान करना जैसे कार्य कर पाएँगे? इनके अतिरिक्त अन्य कौन-कौन से क्रियाकलाप हैं जिन्हें आप नहीं कर पाएँगे? यदि काफ़ी लंबे समय तक हमें आसानी से जल प्राप्त नहीं होगा, तो क्या होगा?

पीने के अतिरिक्त एेसे बहुत-से क्रियाकलाप हैं, जिनके लिए हम जल का उपयोग करते हैं (चित्र 14.1)। क्या आपको यह अनुमान है कि हम एक दिन में जल की लगभग कितनी मात्रा का उपयोग करते हैं?


चित्र 14-1 पानी के उपयोग


14.1 हम कितने जल का उपयोग करते हैं?

क्रियाकलाप 1

प्रतिदिन के उन सभी क्रियाकलापों की सूची बनाइए जिनमें आप जल का उपयोग करते हैं। सारणी
14.1 में कुछ क्रियाकलापों की सूची दी गई है। इसी प्रकार की सारणी अपनी नोटबुक में बनाइए। अब पूरे दिन में आप तथा आपके परिवार के सदस्यों द्वारा प्रत्येक क्रियाकलाप में प्रयुक्त जल की मात्रा मापिए। आप मापन के लिए मग, गिलास, बाल्टी या किसी अन्य बर्तन का उपयोग कर सकते हैं।

सारणी 14-1: आपके परिवार द्वारा एक दिन में  उपयोग होने वाले जल की मात्र का अनुमान

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अब आप यह जान गए होंगे कि प्रतिदिन आपके परिवार में लगभग कितने जल का उपयोग होता है। क्या आप अपनी स्वच्छता के लिए, एक दिन में उपयोग किए जाने वाले पानी की मात्रा का अनुमान लगा सकते हैं? इस जानकारी का उपयोग करके यह गणना कीजिए कि आपके परिवार को एक वर्ष में कितने जल की आवश्यकता होती है। अब जल की इस मात्रा को अपने परिवार के सदस्यों की संख्या से विभाजित कीजिए। यह आपके परिवार के एक सदस्य की एक वर्ष की जल की आवश्यकता का ज्ञान कराएगा। पता लगाइए कि आपके गाँव या शहर में कितने लोग रहते हैं। अब आपको यह बोध हो जाएगा कि आपके शहर अथवा गाँव के लिए एक वर्ष में कितने जल की आवश्यकता होगी।


आपने एेसे बहुत-से क्रियाकलापों की सूची बनाई है जिनमें आप जल का उपयोग करते हैं। क्या आप सोचते हैं कि हमारी जल की आवश्यकताएँ इसी प्रकार के क्रियाकलापों तक ही सीमित है? हम गेहूँ, चावल, दालें, सब्ज़ियाँ तथा अन्य बहुत-सी खाने की वस्तुओं का प्रतिदिन उपयोग करते हैं। हम जानते हैं कि कुछ रेशे जिनका उपयोग हम कपड़ा बनाने में करते हैं, पौधों से ही प्राप्त होते हैं। क्या इन्हें उगाने के लिए जल की आवश्यकता नहीं होती? क्या आप जल के कुछ और उपयोग सोच सकते हैं? हमारे उपयोग की लगभग सभी वस्तुओं के उत्पादन में जल का उपयोग किया जाता है। इसलिए जल का उपयोग केवल दैनिक कार्यों के लिए ही नहीं वरन् बहुत-सी वस्तुओं के उत्पादन के लिए भी होता है।

14.2 हम जल कहाँ से प्राप्त करते हैं?

अपने उपयोग के लिए आप जल कहाँ से प्राप्त करते हैं? आपमें से कुछ कहेंगे हम नदियों, झरनों, तालाबों, कुओं अथवा हैंडपंप से जल प्राप्त करते हैं। कुछ अन्य यह कह सकते हैं कि हम जल टोंटियों से प्राप्त करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि टोंटियों में जल कहाँ से आता है (चित्र 14.2)? टोंटियों के द्वारा जो जल हम प्राप्त करते हैं वह जल भी किसी झील, नदी या किसी कुएँ से प्राप्त किया जाता है जिसकी आपूर्ति फिर पाइपों के नेटवर्क द्वारा की जाती है।

हममें से प्रत्येक का अपने घरों में जल प्राप्त करने का ढंग भिन्न हो सकता है। अंततः हम सबके जल के एक से ही स्रोत हैं जैसे — तालाब, झील, नदी तथा कुएँ।

चित्र 14-2 नदियों, झीलों, नलकूपों या कुओं से जल टोंटियों में आता है



हमने अपनी चर्चा में कुछ जल-स्रोतों का उल्लेख किया है। इन तालाबों, नदियों, झीलों तथा कुओं को भरने के लिए जल कहाँ से आता है?


चित्र 14-3 महासागरों ने पृथ्वी के अधिकतर भाग को घेर रखा है


क्या आप जानते हैं कि पृथ्वी का 2/3 भाग जल से घिरा हुआ है? इस जल का अधिकांश भाग समुद्रों और महासागरों में है (चित्र 14.3)।

समुद्रों और महासागरों के जल में बहुत-से लवण घुले होते हैं जिससे जल खारा होता है। इसलिए यह पीने के लिए अनुपयुक्त तथा अन्य घरेलू, कृषि तथा उद्योगों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए उचित नहीं है। कदाचित आपने एस. टी. कोलरिज़ द्वारा 1798 में लिखी गई कविता ‘राइम अॉफ दि एनशिएंट मैरिनर’ की ये पंक्तियाँ सुनी होंगी ः

र जगह जल ही जल

पीने के लिए कोई बूँद नहीं

यहाँ कवि ने महासागर में भटके किसी जहाज़ के नाविकों की करुण गाथा का उल्लेख किया है।

फिर भी महासागर हमारे उपयोग के लिए जल आपूर्ति में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं। क्या आपको यह आश्चर्यजनक लगता है? आखिरकार जो जल हम उपयोग करते हैं वह खारा नहीं होता। हममें से बहुत-से लोग महासागरों से बहुत अधिक दूरी पर रहते हैं। क्या इन स्थानों की जल आपूर्ति भी महासागरों पर ही निर्भर करती है? महासागरों का जल उन तालाबों, झीलों, नदियों तथा कुओं में कैसे पहुँचता है जो हमें जल की आपूर्ति करते हैं। एेसा क्यों है कि इन स्रोतों का जल किसी भी प्रकार से खारा नहीं होता है?

इसे समझने के लिए हमें जलचक्र के विषय में जानना आवश्यक है।

14.3 जलचक्र

जल के विलुप्त होने की युक्ति

आपने कितनी बार यह देखा है कि फ़र्श पर फैला जल कुछ समय बाद सूख जाता है? यह जल विलुप्त होता प्रतीत होता है। इसी प्रकार गीले कपड़ों के सूखते समय भी जल विलुप्त हो जाता है  (चित्र 14.4)। वर्षा के पश्चात् गीली सड़कों, छतों तथा अन्य स्थानों से भी जल विलुप्त हो जाता है। यह जल कहाँ चला जाता है?

चित्र 14-4 अलगनी पर सूखते कपड़े

क्या आपको अध्याय 5 का क्रियाकलाप 6 याद है जिसमें हमने उस जल को गर्म किया था जिसमें नमक घुला हुआ था? हमने क्या पाया था? जल वाष्पित हो गया था तथा नमक शेष रह गया था। इस क्रियाकलाप से हमें यह बोध होता है कि गर्म करने पर जल, जलवाष्प में परिवर्तित हो जाता है। इस क्रियाकलाप से हम यह भी अनुभव करते हैं कि जलवाष्प अपने साथ लवणों का वहन नहीं करती है। इस प्रकार बनी जलवाष्प वायु का एक भाग बन जाती है जिसे प्रायः देखा नहीं जा सकता। हमने यह भी पाया था कि जल को गैसीय अवस्था में परिवर्तित करने के लिए उसे गर्म करना अनिवार्य है तथापि हमने यह देखा है कि खेतों, सड़कों, छतोें तथा अन्य ज़मीनी क्षेत्रों से भी जल, जलवाष्प में परिवर्तित होता रहता है। अध्याय 5 में हमने यह भी उल्लेख किया है कि महासागरों का खारा जल जो गहरे गड्ढों में छूट जाता है, वाष्पन के परिणामस्वरुप नमक के ढेर के रूप में एकत्र हो जाता है। वाष्पन के लिए आवश्यक यह ऊष्मा, जल को कहाँ से प्राप्त होती है? आइए, इसका पता लगाते हैं।

क्रियाकलाप 2

दो एक जैसी प्लेट लीजिए। एक प्लेट को सूर्य के प्रकाश (धूप) में तथा दूसरी को छाया वाले स्थान पर रखिए। अब इन दोनों प्लेटों में बराबर मात्रा में जल भरिए (चित्र 14.5)। जल को मापने के लिए आप किसी बोतल के ढक्कन का उपयोग कर सकते हैं। ध्यान रखिए जल इधर-उधर न छलके। प्रत्येक 15 मिनट पश्चात् दोनों प्लेटों का प्रेक्षण कीजिए। क्या जल विलुप्त होता प्रतीत होता है? किस प्लेट का जल पहले विलुप्त होता है? जल के वाष्पन के लिए इस ऊर्जा का स्रोत क्या है?

दिन के समय सूर्य की किरणें महासागरों, नदियों, झीलों तथा तालाबों में भरे जल पर पड़ती है। खेत तथा अन्य भूमिक्षेत्र भी सूर्य की किरणों को ग्रहण करते हैं। इसके फलस्वरूप इन सभी का जल, निरंतर वाष्प में परिवर्तित होता रहता है। तथापि जल में घुले लवण शेष रह जाते हैं।

क्रियाकलाप 2 में हमने यह देखा था कि छाया वाले स्थान पर रखी हुई प्लेट से भी जल विलुप्त होता है, यद्यपि इसमें अधिक समय लगता है। क्या सूर्य के प्रकाश की ऊष्मा यहाँ भी पहुँच जाती है? हाँ, एेसा इसलिए होता है क्योंकि दिन के समय हमारे चारों ओर की वायु भी गर्म हो जाती है। गर्म वायु छाया में रखे जल को वाष्पित करने के लिए ऊष्मा प्रदान करती है। इस प्रकार जल के सभी खुले पृष्ठों से वाष्पन की क्रिया होती रहती है। इसके फलस्वरूप वायु में जलवाष्प निरंतर मिलती जाती है। तथापि, जल का वाष्पन एक धीमी प्रक्रिया है। यही कारण है कि जल से भरी किसी बाल्टी से जल की इस क्षति को हम बहुत कम देख पाते हैं। सूर्य के प्रकाश में वाष्पन तेज़ी से होता है। जल को किसी बर्नर पर गर्म करने पर वाष्पन और अधिक तेज़ी से होता है। क्या जलवाष्प के वायु में अंतरित होने का अन्य कोई प्रक्रम भी है?

चित्र 14-5 सूर्य के प्रकाश (धूप) और छाया में जल का वाष्पन


पौधों द्वारा जल की क्षति


आपने अध्याय 7 में पढ़ा है कि सभी पौधों को वृद्धि के लिए जल की आवश्यकता होती है। पौधे इस जल की कुछ मात्रा का उपयोग अपना भोजन बनाने में करते हैं तथा कुछ मात्रा को अपने विभिन्न भागों में सुरक्षित रखते हैं। पौधे इस जल का शेष भाग वाष्पोत्सर्जन प्रक्रम द्वारा जलवाष्प के रूप में वायु में मुक्त कर देते हैैं। क्या आपको अध्याय 7 का वह क्रियाकलाप 4 याद है जिसमें आपने पत्तियों द्वारा जल के वाष्पोत्सर्जन का प्रेक्षण किया था?

वायु में जल, वाष्पन तथा संघनन के प्रक्रमों द्वारा प्रवेश करता है। क्या यह जल सदा के लिए लुप्त हो जाता है? नहीं यह हमें पुनः प्राप्त हो जाता है, जैसा कि हम देखेंगे।

बादल कैसे बनते हैं?

क्रियाकलाप 3

जल से आधा भरा गिलास लीजिए। गिलास को बाहर से सूखे कपड़े से पोंछिए। जल में कुछ बर्फ़ डालिए। एक या दो मिनट तक प्रतीक्षा कीजिए। गिलास के बाहरी पृष्ठ में होने वाले परिवर्तनों का प्रेक्षण कीजिए (चित्र 14.6)।

गिलास की बाहरी सतह पर जल की बूँदें कहाँ से आती हैं। बर्फ़युक्त जल से भरे गिलास की बाहरी सतह, बाहर की हवा को ठंडा कर देती है और जलवाष्प गिलास की सतह पर संघनित हो जाती है। संघनन के इस प्रक्रम को हमने अध्याय 5 के क्रियाकलाप 7 में देखा था।

img14-6

चित्र 14-6 बर्फ  व जल से भरे गिलास के बाहरी पृष्ठ पर प्रकट जल की बूँदें




जल को पृथ्वी के पृष्ठ पर पुनः वापस लाने में संघनन-प्रक्रम की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। यह कैसे होता है? जैसे-जैसे हम पृथ्वी के पृष्ठ से ऊपर जाते हैं, ताप कम हो जाता है। जैसे-जैसे वायु ऊपर उठती जाती है, ठंडी होती जाती है। पर्याप्त ऊँचाई पर वायु इतनी ठंडी हो जाती है कि इसमें उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर छोटी-छोटी जल की बूँदों, जिन्हें जलकणिका कहते हैं, में परिवर्तित हो जाता है। ये ही छोटी जलकणिकाएँ, जो वायु में तैरती रहती हैं, हमें बादलों के रूप में दिखाई देती है (चित्र 14.7)।


चित्र 14-7 बादल

इस प्रकार बनी हुई बहुत-सी जलकणिकाएँ आपस में मिलकर एक बड़े आमाप की जल की बूँदें बनाती है। इनमें से कुछ जल की बूँदें इतनी भारी हो जाती हैं कि वे नीचे की ओर गिरने लगती हैं। इन गिरती हुई बूँदों को ही हम वर्षा कहते है। विशेष परिस्थितियों में यह ओले या हिम के रूप में भी गिर सकती है।


इस प्रकार वाष्पन तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल वायु में चला जाता है, बादल बनते हैं और वर्षा, ओले तथा हिम के रूप में जल पुनः धरती पर वापस आता है।

14.4 पुनः महासागरों की ओर

वर्षा तथा हिम के रूप में पृथ्वी के विभिन्न भागों में आए जल का क्या होता है? प्रायः समस्त भूपृष्ठ महासागरों के तल से ऊँचे हैं। वर्षा तथा हिम के रूप में भूमि पर गिरा अधिकांश जल, अंततः महासागरों में वापस चला जाता है। यह विभिन्न ढंगों से होता है।

पर्वतों पर हिम पिघलकर जल बन जाती है। यह जल पहाड़ों से झरनों तथा नदियों के रूप में नीचे गिरता है (चित्र 14.8)। कुछ जल जो वर्षा के रूप में भूमि पर गिरता है, वह भी नदियों और झरनों के रूप में बह जाता है। अधिकांश नदियाँ भूमि पर लंबी दूरी तय करती हैं और अंततः किसी समुद्र या महासागर में गिर जाती हैं तथापि कुछ नदियों का जल झीलों में बह जाता है।

वर्षा का जल भी झीलों तथा तालाबों को भर देता है। वर्षा के जल का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है और मृदा में विलुप्त हुआ प्रतीत होता है। इस जल का कुछ भाग वाष्पन तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा, वापस वायु में चला जाता है। शेष जल धीरे-धीरे भूमि के नीचे रिसता रहता है। इस जल का अधिकांश भाग हमें भौम-जल के रूप में उपलब्ध हो जाता है। कुओं का भरण भौम-जल से ही होता है। इसी प्रकार कुछ झीलों के जल का स्रोत भी भौम-जल ही होता है। हैंडपंप या नलकूप से खींचा गया जल, भौम-जल से ही आता है। जिन क्षेत्रों में अधिक हैंडपंप या नलकूप उपयोग होते हैं वहाँ पर भौम-जल प्राप्त करने के लिए हमें गहरी खुदाई की आवश्यकता होती है। अति उपयोग के कारण भौम-जल के स्तर की यह क्षति चिंता का विषय है।

चित्र 14-8 वर्षा का जल झरनों और नदियों के रूप में बहता है

पहेली एक चिंता को आपसे बाँटना चाहती है। उन क्षेत्रों में, जहाँ भूमि पर वनस्पति बहुत कम है या बिलकुल ही नहीं है वहाँ वर्षा का जल शीघ्र बह जाता है। बहुत-से एेसे भी क्षेत्र हैं जहाँ पर अधिकांश जमीन कंक्रीट से ढकी होती है। एेसी भूमि में जल का रिसाव बहुत कम होता है जिससे अंततः भौम-जल की उपलब्धता प्रभावित हो जाती है। वर्षा का बहता जल अपने साथ मृदा के ऊपरी पृष्ठ को भी बहा ले जाता है।

अब हम यह जानते हैं कि भूमि की सतह पर वर्षारूपी जल, ओलों तथा हिम के रूप में महासागरों में वापस पहुँच जाता है। इस प्रकार जल पृथ्वी की ऊपरी सतह से जलवाष्प के रूप में वायु में जाता है, वर्षा, ओलों तथा हिम के रूप में वापस लौटता है और अंत में वापस महासागरों में लौट जाता है। जल के इस प्रकार चक्रण करने को जलचक्र कहते हैं (चित्र 14.9)। समुद्र तथा भूमि के बीच यह जलचक्र एक निरंतर प्रक्रम है। यह भूमि पर जल की आपूर्ति बनाए रखता है।


चित्र 14-9 जलचक्र


14.5 यदि भारी वर्षा हो तो क्या होगा?

वर्षा का समय, अवधि तथा मात्रा विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है। संसार के कुछ भागों में पूरे वर्ष वर्षा होती रहती है, जब कि एेसे स्थान भी हैं जहाँ पर वर्षा कुछ दिनों के लिए ही होती है। हमारे देश में अधिकांश वर्षा मानसून के मौसम में होती है। विशेषतः गर्मी के गर्म दिनों के बाद वर्षा हमें राहत प्रदान करती है। बहुत-सी फसलों का बोया जाना मानसून के आने पर निर्भर करता है।



चित्र 14-10 भारी वर्षा के बाद का दृश्य

परंतु अत्यधिक वर्षा से बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं (चित्र 14.10)। भारी वर्षा से नदियों, झीलों तथा तालाबों का जल स्तर बढ़ सकता है। एेसा होने पर जल एक बड़े क्षेत्र में फैलकर बाढ़ का कारण बन सकता है। यह खेतों, वनों, गाँवों और शहरों को जलमग्न कर सकता है (चित्र 14.11)। हमारे देश में बाढ़ से फसलें, पालतू जानवर, संपदा तथा मानव जीवन की अपार क्षति होती है।

चित्र 14-11 किसी बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का दृश्य

बाढ़ के समय जल में रहने वाले जीव भी बह जाते हैं। प्रायः जब बाढ़ का जल उतरता है तो ये जलश्य जीव, थल भाग में फंसकर मर जाते हैं। वर्षा भूमि पर रहने वाले जीवों को भी प्रभावित करती है।

14.6 यदि काफ़ी समय तक वर्षा न हो तो क्या होगा?

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि किसी क्षेत्र में एक वर्ष या उससे भी अधिक समय तक वर्षा न हो तो क्या होगा? वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन द्वारा मृदा से लगातार जल की क्षति होती रहती है क्योंकि यह वर्षा द्वारा वापस नहीं लाया जा रहा है, इसलिए मृदा सूख जाती है। उस क्षेत्र के तालाबों और कुओं में जल का स्तर गिर जाता है और उनमें से कुछ सूख भी जाते हैं। भौम-जल की भी कमी हो जाती है। इससे सूखा पड़ सकता है।

सूखे की स्थिति में खाद्यान्न और चारा प्राप्त करना दुर्लभ हो जाता है। कदाचित् आपने हमारे देश या संसार के कुछ भागों में पड़े सूखे के बारे में सुना होगा। क्या आपको जानकारी है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? इन परिस्थितियों में पशुओं और वनस्पति का क्या होता है? अपने माता-पिता तथा पड़ोसियों से चर्चा करके अथवा समाचारपत्रों व मैगज़ीन में पढ़कर इनके बारे में पता लगाने का प्रयास कीजिए।

14.7 हम जल को कैसे संरक्षित कर सकते हैं?

पृथ्वी पर उपलब्ध जल का केवल एक छोटा-सा भाग ही पौधों, जंतुओं तथा मनुष्यों के प्रयोग के लिए उपयुक्त होता है। अधिकांश जल महासागरों में हैं, जिसे सीधे ही उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। जब भौम-जल का स्तर अत्यधिक गिर जाता है, तब भौम-जल का और अधिक उपयोग नहीं कर सकते हैं। पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा समान रहती है परंतु उपयोग के लिए उपलब्ध जल की मात्रा अत्यंत सीमित है और अति उपयोग के कारण घटती जा रही है।

चित्र 14-12 जल एकत्र करने के लिए लंबी कतार


जल की माँग प्रतिदिन बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ जल का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। बहुत-से नगरों में जल भरने के लिए लंबी कतारों का दिखना एक साधारण दृश्य है (चित्र 14.12)। खाने की वस्तुओं के उत्पादन और उद्योगों में भी जल की अधिकाधिक मात्रा का प्रयोग हो रहा है। इन्ही कारणों से संसार के बहुत-से भागों में जल की कमी हो गई है। इसलिए यह आवश्यक है कि जल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए। हम सावधानी बरतें, जिससे जल व्यर्थ न हो।

14.8 वर्षा के जल का संग्रहण

वर्षा के जल को एकत्र करना और उसका भंडारण करके बाद में प्रयोग करना, जल की उपलब्धता में वृद्धि करने का एक उपाय है। इस उपाय द्वारा वर्षा का जल एकत्र करने को वर्षा जल संग्रहण कहते हैं। वर्षा जल संग्रहण का मूलमंत्र यह है कि ‘‘जल जहाँ गिरे वहीं एकत्र कीजिए।’’

वर्षा के उस जल का क्या होता है जो एेसे क्षेत्रों में गिरता है जहाँ अधिकांश क्षेत्रों में कंक्रीट की सड़कें और मकान होते हैं? यह नालियों में बह जाता है, क्या एेसा नहीं है? इस प्रकार वर्षा जल का कुछ भाग बहकर नदियों या झीलों तक पहुँच जाता है जो कि बहुत दूरी पर हो सकते हैं। क्योंकि यह जल हमारे चारों ओर भूमि में वापस नहीं गया है अतः इस जल को घरों में वापस लाने के लिए हमें अत्यधिक प्रयास करने की आवश्यकता होगी।

वर्षा जल संग्रहण की यहाँ दो तकनीकों का उल्लेख किया गया हैः

1. छत के ऊपर वर्षा जल संग्रहणः इस प्रणाली में भवनों की छत पर एकत्रित वर्षा के जल को भंडारण टैंक में पाइपों द्वारा पहुंचाया जाता है। इस जल में, छत पर उपस्थित मिट्टी के कण हो सकते हैं जिन्हें उपयोग करने से पहले निस्यंदित करना आवश्यक होता है। इस जल को भंडारण टैंक में एकत्रित करने के स्थान पर सीधेे ही पाइपों द्वारा जमीन में बने किसी गड्ढे तक ले जाया जा सकता है जहाँ से यह मिट्टी में रिसाव द्वारा भौम-जल की पुनः पूर्ति करेगा (चित्र 14.11)।

चित्र 14-11 छत पर वर्षा जल संग्रहण

2. एक दूसरा विकल्प है कि सड़क के किनारे बनी नालियों द्वारा एकत्रित वर्षा का जल भूमि में सीधे पहुँचने दिया जाए।


बादल

संघनन

सूखा

वाष्पन

बाढ़

ओला

महासागर

वर्षा जल संग्रहण

हिम

जलवाष्प

जलचक्र


  • ➤जल, जीवन के लिए आवश्यक है।

    ➤वायु में वाष्पन और वाष्पोत्सर्जन से जलवाष्प मिलती रहती है।

    ➤जलवाष्प वायु में संघनित होकर छोटी-छोटी जल की बूँदे बनाती है, जो बादल जैसे दिखाई देते हैं। बहुत-सी छोटी जल की बूँदे परस्पर मिलकर वर्षा, हिम अथवा ओले के रूप में गिरती हैं।

    ➤वर्षा, ओले तथा हिम नदियों, झीलों, तालाबों, कुँओं तथा मिट्टी में जल की पुनःपूर्ति करते हैं।

    ➤महासागरों तथा जलीय भागों के बीच जल के चक्रण को जलचक्र कहते है।

    ➤अत्यधिक वर्षा से बाढ़ आती है जबकि लंबे समय तक वर्षा न होने से सूखा पड़ सकता है।

    ➤पृथ्वी पर उपयोग करने योग्य जल की मात्रा सीमित है इसलिए विवेकपूर्ण उपयोग की 
    आवश्यकता है।


1. नीचे दिए गए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिएः

(क) जल को वाष्प में परिवर्तित करने के प्रक्रम को ------------------ कहते हैं।

(ख) जलवाष्प को जल में परिवर्तित करने के प्रक्रम को ------------------ कहते हैं।

(ग) एक वर्ष या इससे अधिक समय तक वर्षा न होना उस क्षेत्र में --------------- लाता है।

(घ) अत्यधिक वर्षा से ------------------ आती है।

2. नीचे लिखे में से प्रत्येक का क्या यह वाष्पन अथवा संघनन के कारण से है।

(क) ठंडे जल से भरे गिलास की बाहरी सतह पर जल की बूँदों का दिखना।

(ख) गीले कपड़ों पर इस्त्री करने पर भाप का ऊपर उठना।

(ग) सर्दियों में प्रातःकाल कोहरे का दिखना।

(घ) गीले कपड़े से पोंछने के बाद श्यामपट्ट कुछ समय बाद सूख जाता है।

(ङ) गर्म छड़ के ऊपर जल छिड़कने से भाप का ऊपर उठना।

3. निम्नलिखित में से कौन-से कथन सत्य हैं?

(क) वायु में जलवाष्प केवल मानसून के समय में उपस्थित रहती हैं। ( )

(ख) जल महासागरों, नदियों तथा झीलों से वाष्पित होकर वायु में मिलता है परंतु

भूमि से वाष्पित नहीं होता। ( )

(ग) जल के जलवाष्प में परिवर्तन की प्रक्रिया वाष्पन कहलाती है। ( )

(घ) जल का वाष्पन केवल सूर्य के प्रकाश में ही होता है। ( )

(ङ) वायु की ऊपरी परतों में, जहाँ यह और अधिक ठंडी होती है, जलवाष्प संघनित

होकर छोटी-छोटी जलकणिकाएँ बनाती है। ( )

4. मान लीजिए कि आप अपनी स्कूल यूनिफार्म को वर्षा वाले दिन शीघ्र सुखाना चाहते हैं। क्या इसे किसी अँगीठी या हीटर के पास फैलाने पर इस कार्य में सहायता मिलेगी? यदि हाँ, तो कैसे?

5. एक जल की ठंडी बोतल रेफ्रिजरेटर से निकालिए और इसे मेज पर रखिए। कुछ समय पश्चात् आप इसके चारों ओर जल की छोटी-छोटी बूँदे देखेेंगे। कारण बताओ?

6. चश्मों के लेंस साफ करने के लिए लोग उस पर फूँक मारते हैं तो लेंस भींग जाते हैं। लैंस क्यों भींग जाते हैं? समझाइए।

7. बादल कैसे बनते हैं?

8. सूखा कब पड़ता है?


प्रस्तावित परियोजनाएँ और क्रियाकलाप

1. तीन क्रियाकलापों की सूची बनाइए जिससे आप जल बचा सकते हैं। प्रत्येक क्रियाकलाप को कैसे करेंगे, इसका उल्लेख कीजिए।

2. किसी पत्रिका या पुराने समाचारपत्र से हाल ही में आई बाढ़ या सूखे के चित्र एकत्र करके अपनी उत्तर-पुस्तिका में चिपकाइए। उस क्षेत्र में रहने वाले मनुष्यों ने जिन समस्याओं का सामना किया है, उन पर कुछ पंक्तियाँ लिखिए।

3. जल की बचत के उपायोें पर एक पोस्टर बनाइए और उसे अपने विद्यालय के सूचना-पट पर प्रदर्शित कीजिए।

4. ‘‘जल की बचत’’ के विषय पर अपने स्वयं के कुछ नारे लिखिए।

5. क्या नदियों को आपस में जोड़ना बाढ़ से बचने का एक उपाय हो सकता है?