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अध्याय 4
क्या बताती हैं हमें किताबें और कब्रें
पुस्तकालय में मेरी
जैसे ही घंटी बजी शिक्षक ने छात्रों को अपने साथ आने को कहा। आज वे पहली बार पुस्तकालय जा रहे थे। मेरी ने देखा कि पुस्तकालय उसकी कक्षा से काफी बड़ा था और वहाँ किताबों से भरे कई रैक थे। कोने में एक अलमारी थी जो मोटी-मोटी किताबों से भरी थी। मेरी को एक अलमारी खोलने की कोशिश करते देख शिक्षक ने कहा, "उस अलमारी में अलग-अलग धर्मों से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण किताबें हैं। क्या तुम्हें मालूम है कि हमारे पास वेदों का भी एक संग्रह है?"
मेरी सोचने लगी। "वेद क्या है?" चलो पता लगाएँ।
दुनिया के प्राचीनतम ग्रंथों में एक
शायद तुमने वेदों के बारे में सुना होगा। वेद चार हैं – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। सबसे पुराना वेद है, ऋग्वेद जिसकी रचना लगभग 3500 साल पहले हुई। ऋग्वेद में एक हज़ार से ज़्यादा प्रार्थनाएँ हैं जिन्हें, सूक्त कहा गया है। सूक्त का मतलब है, अच्छी तरह से बोला गया। ये विभिन्न देवी-देवताओं की स्तुति में रचे गए हैं। इनमें से तीन देवता बहुत महत्वपूर्ण हैं: अग्नि, इन्द्र और सोम। अग्नि आग के देवता, इन्द्र युद्ध के देवता हैं और सोम एक पौधा है, जिससे एक खास पेय बनाया जाता था।
वैदिक प्रार्थनाओं की रचना ऋषियों ने की थी। आचार्य विद्यार्थियों को इन्हें अक्षरों, शब्दों और वाक्यों में बाँटकर, सस्वर पाठ द्वारा कंठस्थ करवाते थे। अधिकांश सूक्तों के रचयिता, सीखने और सिखाने वाले पुरुष थे। कुछ प्रार्थनाओं की रचना महिलाओं ने भी की थी। ऋग्वेद की भाषा प्राक् संस्कृत या वैदिक संस्कृत कहलाती है। तुम स्कूल मेें जो संस्कृत पढ़ती हो उससे यह भाषा थोड़ी भिन्न है।
संस्कृत और अन्य भाषाएँ
संस्कृत भाषा भारोपीय (भारत–यूरोपीय) भाषा-परिवार का हिस्सा है। भारत की कई भाषाएँ - असमिया, गुजराती, हिंदी, कश्मीरी और सिंधी, एशियाई भाषाएं जैसे फ़ारसी तथा यूरोप की बहुत-सी भाषाएँ जैसे - अंग्रेज़ी, प्र.ηांसीसी, जर्मन, यूनानी, इतालवी, स्पैनिश आदि इसी परिवार से जुड़ी हुई हैं। उन्हें एक भाषा-परिवार इसलिए कहा जाता है क्योंकि आरंभ में उनमें कई शब्द एक जैसे थे। उदाहरण के लिए ‘मातृ’ (संस्कृत), माँ (हिंदी) और ‘मदर’ (अंग्रेज़ी) शब्द को देखो।
क्या तुम्हें इनमें कोई समानता नज़र आती है?
उपमहाद्वीप मेें दूसरे भाषा-परिवारों की भी भाषाएँ बोली जाती हैं। उदाहरण के लिए पूर्वोत्तर प्रदेशों में तिब्बत-बर्मा परिवार की भाषाएँ बोली जाती हैं। तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम, द्रविड़ भाषा-परिवार की भाषाएँ हैं। जबकि झारखंड और मध्य भारत के कई हिस्सों में बोली जाने वाली भाषाएँ अॉस्ट्रो–एशियाटिक परिवार से जुड़ी हैं।
उन भाषाओं की सूची बनाओ जिनके बारे में तुमने सुन रखा है। उनके भाषा-परिवारों को पहचानने की कोशिश करो।
हम जिन किताबों को पढ़ते हैं वे लिखी और छापी गई हैं। ऋग्वेद का उच्चारण किया जाता था और श्रवण किया जाता था न कि पढ़ा जाता था। रचना के कई सदियों बाद इसे पहली बार लिखा गया। इसे छापने का काम तो मुश्किल से दो सौ साल पहले हुआ।
इतिहासकार ऋग्वेद का अध्ययन कैसे करते हैं?
इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ताओं की तरह ही अतीत के बारे में जानकारी इकट्ठी करते हैं। लेकिन भौतिक अवशेषों के अलावा वे लिखित स्रोतों का भी उपयोग करते हैं। चलो देखते हैं कि वे ऋग्वेद का अध्ययन कैसे करते हैं।
ऋग्वेद के कुछ सूक्त वार्त्तालाप के रूप में हैं। विश्वामित्र नामक ऋषि और देवियों के रूप में पूजित दो नदियों (व्यास और सतलुज) के बीच यह संवाद एक एेसे ही सूक्त का अंश है।
इन दोनों नदियों को मानचित्र 1 (पृष्ठ 2) में खोजें तथा फिर पढ़ें।
ऋग्वेद की पाण्डुलिपि का एक पन्ना।
भूर्ज वृक्ष की छाल पर लिखी यह पाण्डुलिपि कश्मीर में पाई गई थी। लगभग 150 वर्ष पहले ऋग्वेद को सबसे पहली बार छापने के लिए इसका उपयोग किया गया था। इसी पाण्डुलिपि को देखकर अंग्रेज़ी अनुवाद तैयार हुआ। यह पाण्डुलिपि पुणे, महाराष्ट्र के एक पुस्तकालय में सुरक्षित है।
विश्वामित्र और नदियाँ
विश्वामित्र – हे नदियाें, अपने बछड़ों को चाटती हुई दो दमकती गायों की तरह, दो फुर्तीले घोड़ों की चाल से पहाड़ों से नीचे आओ। इन्द्र द्वारा दी हुई शक्ति से स्फूर्त तुम रथों की गति से सागर की ओर बह रही हो। तुम जल से परिपूर्ण हो और एक-दूसरे से मिल जाना चाहती हो।
नदियाँ – जल से परिपूर्ण हम देवताओं के बनाए रास्ते पर चलती हैं। एक बार निकलने पर हमें रोका नहीं जा सकता। हे ऋषि, तुम हमसे प्रार्थना क्यों कर रहे हो?
विश्वामित्र – हे बहनों, मुझ गायक की प्रार्थना सुनो। मैं रथों और गाड़ियों सहित बहुत दूर से आया हूँ। कृपा करके अपने जल को हमारे रथों और गाड़ियों की धुरियों के ऊपर न उठाओ ताकि हम आसानी से उस पार जा सकें।
नदियाँ – हम तुम्हारी प्रार्थना सुनेंगे, जिससे तुम सब सुरक्षित उस पार जा सको।
इतिहासकार यह बताते हैं कि यह प्रार्थना उस क्षेत्र में रची गई होगी जहाँ ये नदियाँ बहती हैं। वे यह भी सुझाते हैं कि जिस समाज में ऋषि रहते थे वहाँ घोड़ों और गायों को बहुत महत्त्व दिया जाता था। इसीलिए नदियों की तुलना घोड़ों और गायों से की गई है।
क्या तुम्हें लगता है कि रथ भी महत्वपूर्ण थे? अपने जवाब के लिए कारण बताओ। प्रार्थना की पंक्तियों को दुबारा पढ़कर यह बताओ कि उनमें परिवहन के लिए किन-किन साधनों का उल्लेख है।
ऋग्वेद की प्रार्थनाओं में अन्य दूसरी नदियों खासकर सरस्वती, सिन्धु और उसकी सहायक नदियों का भी ज़िक्र है। गंगा और यमुना का उल्लेख सिर्फ़ एक बार हुआ है।
मानचित्र 1 को देखो और एेसी पाँच नदियों की सूची बनाओ जिनके नाम ऋग्वेद में नहीं हैं।
मवेशी, घोड़े और रथ
ऋग्वेद में मवेशियों, बच्चों (खासकर पुत्रों) और घोड़ों की प्राप्ति के लिए अनेक प्रार्थनाएँ हैं। घोड़ों को लड़ाई में रथ खींचने के काम में लाया जाता था। इन लड़ाईयों में मवेशी जीत कर लाए जाते थे। लड़ाईयाँ वैसे ज़मीन के लिए भी लड़ी जाती थीं जहाँ अच्छे चारागाह हों या जहाँ पर जौ जैसी जल्दी तैयार हो जाने वाली फ़सलों को उपजाया जा सकता हो। कुछ लड़ाईयाँ पानी के स्रोतों और लोगों को बंदी बनाने के लिए भी लड़ी जाती थीं।
युद्ध में जीते गए धन का कुछ भाग सरदार रख लेते थे तथा कुछ हिस्सा पुरोहित को दिया जाता था। शेष धन आम लोगों में बाँट दिया जाता था। कुछ धन यज्ञ करने के लिए भी प्रयुक्त होता था। यज्ञ की आग में आहुति दी जाती थी। ये आहुतियाँ देवी-देवताओं को दी जाती थीं। घी, अनाज और कभी-कभी जानवरों की भी आहुति दी जाती थी।
अधिकांश पुरुष इन युद्धों में भाग लेते थे। कोई स्थायी सेना नहीं होती थी, लेकिन लोग सभाओं में मिलते-जुलते थे और युद्ध व शांति के विषय में सलाह-मशविरा करते थे। वहाँ ये एेसे लोगों को अपना सरदार चुनते थे जो बहादुर और कुशल योद्धा हों।
लोगों की विशेषता बताने वाले शब्द
लोगोें का वर्गीकरण काम, भाषा, परिवार या समुदाय, निवास स्थान या सांस्कृतिक परंपरा के आधार पर किया जाता रहा है। ऋग्वेद में लोगों की विशेषता बताने वाले कुछ शब्दों को देखो।
एेसे दो समूह हैं जिनका वर्गीकरण काम के आधार पर किया गया है। पुरोहित जिन्हें कभी-कभी ब्राह्मण कहा जाता था तरह-तरह के यज्ञ और अनुष्ठान करते थे। दूसरे लोग थे - राजा।
ये राजा वैसे नहीं थे जिनके बारे में तुम बाद में पढ़ोगी। ये न तो बड़ी
राजधानियों और महलों में रहते थे, न इनके पास सेना थी, न ही ये कर वसूलते थे। प्रायः राजा की मृत्यु के बाद उसका बेटा अपने आप ही शासक नहीं बन जाता था।
पिछले अनुभाग को एक बार फिर पढ़ो और यह पता लगाने की कोशिश करो कि राजा क्या करते थे।
जनता या पूरे समुदाय के लिए दो शब्दों का इस्तेमाल होता था। एक था जन जिसका प्रयोग हिंदी व अन्य भाषाओं में आज भी होता है। दूसरा था विश् जिससे वैश्य शब्द निकला है। इस विषय पर तुम अध्याय 5 में विस्तार से पढ़ोगी।
ऋग्वेद में विश् और जनों के नाम मिलते हैं। इसलिए हमें पुरू-जन या विश्, भरत-जन या विश्, यदु-जन या विश् जैसे कई उल्लेख मिलते हैं।
तुम्हें इनमें से कोई नाम जाना-पहचाना लगता है?
जिन लोगों ने इन प्रार्थनाओं की रचना की वे कभी-कभी खुद को आर्य कहते थे तथा अपने विरोधियों को दास या दस्यु कहते थे। दस्यु वे लोग थे जो यज्ञ नहीं करते थे और शायद दूसरी भाषाएँ बोलते थे। बाद के समय में दास (स्त्रीलिंगः दासी) शब्द का मतलब गुलाम हो गया। दास वे स्त्री और पुरुष होते थे जिन्हें युद्ध में बंदी बनाया जाता था। उन्हें उनके मालिक की जायदाद माना जाता था। जो भी काम मालिक चाहते थे उन्हें वह सब करना पड़ता था।
जिस युग में उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में ऋग्वेद की रचना हो रही थी उसी समय दूसरी जगहों पर एक अलग तरह का विकास हो रहा था। देखो, वहाँ क्या हो रहा था।
खामोश प्रहरी– कहानी महापाषाणों की
अगले पृष्ठ के चित्रों को देखो।
ये शिलाखण्ड महापाषाण (महा : बड़ा, पाषाण: पत्थर) नाम से जाने जाते हैं। ये पत्थर दफ़न करने की जगह पर लोगों द्वारा बड़े करीने से लगाए गए थे। महापाषाण कब्रें बनाने की प्रथा लगभग 3000 साल पहले शुरू हुई। यह प्रथा दक्कन, दक्षिण भारत, उत्तर-पूर्वी भारत और कश्मीर में प्रचलित थी।
कुछ महत्वपूर्ण महापाषाण पुरास्थल मानचित्र 2 में दिखाए गए हैं। कुछ महापाषाण ज़मीन के ऊपर ही दिख जाते हैं। कुछ महापाषाण ज़मीन के भीतर भी होते हैं।
कई बार पुरातत्त्वविदों को गोलाकार सजाए हुए पत्थर मिलते हैं। कई बार अकेला खड़ा हुआ पत्थर मिलता है। ये ही एकमात्र प्रमाण हैं जो ज़मीन के नीचे कब्रों को दर्शाते हैं।
महापाषाणों के निर्माण के लिए लोगों को कई तरह के काम करने पड़ते थे। हमने जो कार्यों की सूची बनाई है उन्हें क्रमबद्ध करो। गड्ढे खोदना, शिलाखंडों को ढो कर लाना, बड़े पत्थरों को तराशना और मरे हुए को
दफ़नाना।
इन सब कब्रों में कुछ समानताएँ हैं। सामान्यतः मृतकों को खास किस्म के मिट्टी के बर्तनों के साथ दफ़नाया जाता था जिन्हें काले-लाल मिट्टी के बर्तनों (ब्लैक एण्ड रेड वेयर) के नाम से जाना जाता है। इनके साथ ही मिले हैं लोहे के औज़ार और हथियार, घोड़ों के कंकाल और सामान तथा पत्थर और सोने के गहने।
क्या हड़प्पा के शहरों में लोहे का प्रयोग होता था?
पुरातत्त्वविद् यह मानते हैं कि कंकाल के साथ पाई गई चीज़ें मरे हुए व्यक्ति की ही रही होंगी। कभी-कभी एक कब्र की तुलना में दूसरी कब्र मेें ज़्यादा चीज़ें मिलती हैं। मानचित्र 2 पर (पृष्ठ 13) ब्रह्मगिरि को खोजो। यहाँ एक व्यक्ति की कब्र में 33 सोने के मनके और शंख पाए गए हैं। दूसरे कंकालों के पास सिर्फ़ कुछ मिट्टी के बर्तन ही पाए गए। यह दफ़नाए गए लोगों की सामाजिक स्थिति में भिन्नता को दर्शाता है। कुछ लोग अमीर थे तो कुछ लोग गरीब, कुछ लोग सरदार थे तो दूसरे अनुयायी।
क्या कुछ कब्रगाहें खास परिवारों के लिए थीं?
कभी-कभी महापाषाणों में एक से अधिक कंकाल मिले हैं। वे यह दर्शाते हैं कि शायद एक ही परिवार के लोगों को एक ही स्थान पर अलग-अलग समय पर दफ़नाया गया था। बाद में मरने वाले लोगों को पोर्ट-होल के रास्ते कब्रों में लाकर दफ़नाया जाता था। एेसे स्थान पर गोलाकार लगाए गए पत्थर या चट्टान चिह्नों का काम करते थे, जहाँ लोग आवश्यकतानुसार शवों को दफ़नाने दुुबारा आ सकते थे।
इनामगाँव के एक विशिष्ट व्यक्ति की कब्र
मानचित्र 2 में (पृष्ठ 13) इनामगाँव को खोेजो। यह भीमा की सहायक नदी घोड़ के किनारे एक जगह है। इस जगह पर 3600 से 2700 साल पहले लोग रहते थे। यहाँ वयस्क लोगों को प्रायः गड्ढे में सीधा लिटा कर दफ़नाया जाता था। उनका सिर उत्तर की ओर होता था। कई बार उन्हें घर के अंदर ही
दफ़नाया जाता था। एेसे बर्तन जिनमें शायद खाना और पानी हाें, दफ़नाए गए शव के पास रख दिए जाते थे।
एक आदमी को पाँच कमरों वाले मकान के आँगन में, चार पैरों वाले मिट्टी के एक बड़े से संदूक में दफ़नाया गया था। बस्ती के बीच में बसा यह घर गाँव के सबसे बड़े घरों में एक था। इस घर में एक अनाज का गोदाम भी था। शव के पैर मुड़े हुए थे।
क्या तुम्हें लगता है कि यह किसी सरदार का शव था? अपने जवाब का कारण बताओ।
क्या बताते हैं हमें कंकालों के अध्ययन
छोटे आकार के आधार पर एक बच्चे के कंकाल को आसानी से पहचाना जा सकता है। लेकिन एक बच्चे और बच्ची के कंकाल के बीच कोई बड़ा फ़र्क नहीं होता।
क्या हम यह पता लगा सकते हैं कि कंकाल किसी पुरुष का था या स्त्री का?
कभी-कभी लोग कंकाल के साथ मिले सामानों के आधार पर इसका अंदाजा लगाते हैं। उदाहरण के लिए यदि कंकाल के साथ गहने मिलते हैं तो कई बार उसे महिला का कंकाल मान लिया जाता है। लेकिन एेसी समझ के साथ समस्याएँ हैं। अक्सर पुरुष भी आभूषण पहनते थे।
कंकाल का लिंग पहचानने का बेहतर तरीका उसकी हयि स्त्रयों की जाँच है। चूँकि महिलाएँ बच्चों को जन्म देती हैं इसलिए उनका कटि-प्रदेश या कूल्हा पुरुषों से ज़्यादा बड़ा होता है।
ये समझ कंकालों के आधुनिक अध्ययन पर आधारित है।
आज से लगभग 2000 साल पहले चरक नाम के प्रसिद्ध वैद्य हुए थे। उन्होंनें चिकित्सा शास्त्र पर चरक संहिता नाम की किताब लिखी। वे कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में 360 हयि स्त्रयों होती हैं। यह आधुनिक शरीर रचना विज्ञान की 206 हयि स्त्रयों से काफी ज़्यादा हैं। सम्भवतः चरक ने अपनी गिनती में दाँत, हयि स्त्रयों के जोड़ और कार्टिलेज को जोड़कर यह संख्या बताई थी।
तुम्हारे अनुसार शरीर के बारे में उन्होंने इतनी विस्तृत जानकारी कैसे इकट्ठा की होगी?
इनामगाँव के लोगों के काम-धंधे
इनामगाँव में पुरातत्त्वविदों को गेहूँ, जौ, चावल, दाल, बाजरा, मटर और तिल के बीज मिले हैं। कई जानवरों की हड्डियाँ भी मिली हैं। कई हड्डियों पर काटने के निशान से यह अंदाजा होता है कि लोग इन्हें खाते होंगे। गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, कुत्ता, घोड़ा, गधा, सूअर, साँभर, चितकबरा हिरण, कृष्ण-मृग, खरहा, नेवला, चिड़ियाँ, घड़ियाल, कछुआ, केकड़ा और मछली की हड्डियाँ भी पाई गई हैं। एेसे साक्ष्य मिले हैं कि बेर, आँवला, जामुन, खजूर और कई तरह की रसभरियाँ एकत्र की जाती थीं।
इस प्रमाण के आधार पर इनामगाँव में लोगों के काम-धंधों की एक सूची बनाओ।
अन्यत्र
एटलस में चीन को देखो। लगभग 3500 साल पहले हम यहाँ की लेखन कला के सबसे पुराने उदाहरण पाते हैं।
यह जानवरों की हड्डियों पर लिखा गया था। इन्हें भविष्यवाणी करने वाली हड्डियाँ कहा जाता है, क्योंकि यह मान्यता थी कि ये भविष्य बताती हैं। राजा लोग लिपिकारों से इन हड्डियों पर सवाल लिखवाते थे – क्या वे युद्व जीतेंगे? क्या फ़सलें अच्छी हाेंगी? क्या उन्हें पुत्र होंगे? फिर इन हड्डियों को आग में डाल दिया जाता था जहाँ इनमें गर्मी से चटक कर दरारें पड़ जाती थीं। भविष्यवक्ता इन दरारों को बड़े ध्यान से देखकर भविष्यवाणी करने की कोशिश करते थे। जैसा शायद तुम भी सोच रही होगी ये भविष्यवक्ता कभी-कभी गलती भी करते थे।
ये राजा शहरों में महल बनाकर रहते थे। उन्होंने बेशुमार दौलत इकêòी कर ली थी जिनमें बड़े-बड़े नक्काशी किए हुए काँसे के बर्तन शामिल थे। लेकिन वे लोहे का इस्तेमाल करना नहीं जानते थे।
ऋग्वेद के राजा और इन राजाओं के बीच कोई एक फ़र्क बताओ।
कल्पना करो
तुम 3000 वर्ष पहले के इनामगाँव में रहती हो। पिछली रात सरदार की मृत्यु हो गई। आज, तुम्हारे माता-पिता दफ़न की तैयारी कर रहे हैं। यह बताते हुए सारे दृश्य का वर्णन करो कि अंतिम संस्कार के लिए कैसे भोजन तैयार किया जा रहाहै। तुम्हें क्या लगता है, खाने में क्या दिया जाएगा?
उपयोगी शब्द
वेद
प्रार्थना
भाषा
रथ
यज्ञ
राजा
दास
महापाषाण
कब्र
कंकाल
लोहा
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
वेदोें की रचना का प्रारंभ
(लगभग 3500 साल पहले)
महापाषाणों के निर्माण की शुरुआत
(लगभग 3000 साल पहले)
इनामगाँव में कृषकों का निवास
(3600 से 2700 साल पहले)
चरक (लगभग 2000 साल पहले)
आओ याद करें
1. निम्नलिखित को सुमेल करो :
सूक्त सजाए गए पत्थर
रथ अनुष्ठान
यज्ञ अच्छी तरह से बोला गया
दास युद्ध में प्रयोग किया जाता था
महापाषाण गुलाम
2. वाक्यों को पूरा करो
(क) ————————— के लिए दासों का इस्तेमाल किया जाता था।
(ख) ————————— में महापाषाण पाए जाते हैं।
(ग) ज़मीन पर गोले में लगाए गए पत्थर या चट्टान ————————— का काम करते थे।
(घ) पोर्ट-होल का इस्तेमाल ————————— के लिए होता था।
(ङ) इनामगाँव के लोग ————————— खाते थे।
आओ चर्चा करें
3. आज हम जो किताबें पढ़ते हैं वे ऋग्वेद से कैसे भिन्न हैं?
4. पुरातत्त्वविद् कब्रों में दफ़नाए गए लोगों के बीच सामाजिक अंतर का पता कैसे लगाते हैं?
5. एक राजा का जीवन दास या दासी के जीवन से कैसे भिन्न होता था?
आओ करके देखें
6. पता करो कि तुम्हारे विद्यालय के पुस्तकालय में धर्म के विषय पर किताबें हैं या नहीं। उस संग्रह से किन्हीं पाँच पुस्तकों के नाम बताओ।
7. एक याद की हुई कविता या गीत लिखो। तुमने उस कविता या गीत को सुनकर याद किया था या पढ़कर?
8. ऋग्वेद में लोगों का वर्गीकरण उनके कार्य या उनकी भाषा के आधार पर किया जाता है। नीचे की तालिका में तुम छः परिचित लोगों के नाम भरो। इनमें तीन पुरुष और तीन महिला होने चाहिए। प्रत्येक का पेशा और भाषा लिखो। क्या तुम उस विवरण में कुछ और जोड़ना चाहोगी?
नाम | कार्य | भाषा | अन्य |