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रौशन के रुपए
जन्मदिन पर रौशन को दादा जी से कड़क नोट मिले। उसने उन्हें अपने हाथ में दबा रखा था। उसे एक नया सीडी खरीदने का बहुत मन था लेकिन साथ ही वह बिल्कुल नए कड़क नोटों को देखना और छू कर महसूस करना चाहती थी। तभी उसने पाया कि सभी नोटों में दाहिनी तरफ़गाँधीजी का मुस्कराता चेहरा बना हुआ था और बाईं तरफ़ छोटे-छोटे शेर चित्रित थे। उसने सोचा ‘आखिर यहाँ शेर क्यों बने हुए हैं’।
एक बहुत बड़ा राज्य – एक साम्राज्य
हम जिन शेरों के चित्र रुपयों-पैसों पर देखते हैं उनका एक लंबा इतिहास है। उन्हें पत्थरों को काट कर बनाया गया और फिर उन्हें सारनाथ में एक विशाल स्तंभ पर स्थापित किया गया था। (इस विषय में तुमने अध्याय 6 में पढ़ा।)
शेरों वाला स्तंभ-शीर्ष
इतिहास के महानतम राजाओं में से एक, अशोक के निर्देश पर इसके जैसे कई स्तंभों और पत्थरों पर अभिलेख उत्कीर्ण किए गए। इसके पहले कि हम यह जानें कि इन अभिलेखों में क्या लिखा है,
यह समझने की कोशिश करें कि उनके राज्य को साम्राज्य क्यों कहा जाता है।
अशोक जिस साम्राज्य पर शासन करते थे उसकी स्थापना उनके दादा चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग 2300 साल पहले की थी। चाणक्य या कौटिल्य नाम के एक बुद्धिमान व्यक्ति ने चन्द्रगुप्त की सहायता की थी। चाणक्य के कई विचार हमें अर्थशास्त्र नाम की किताब में मिलते हैं।
वंश
जब एक ही परिवार के कई सदस्य एक के बाद एक राजा बनते हैं तो उन्हें एक ही वंश का कहा जाता है। मौर्य वंश में तीन महत्वपूर्ण राजा हुए - चन्द्रगुप्त, उसका बेटा बिन्दुसार और बिन्दुसार का पुत्र अशोक।
साम्राज्य में बहुत-से नगर थे। (मानचित्र में उन्हें काले बिन्दुओं से दिखाया गया है।) इनमें साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र, उज्जैन और तक्षशिला जैसे नगर प्रमुख थे। तक्षशिला उत्तर-पश्चिम और मध्य एशिया के लिए आने-जाने का मार्ग था। दूसरी तरफ़उज्जैन उत्तरी भारत से दक्षिणी भारत जाने वाले रास्ते में पड़ता था। शायद नगरों में व्यापारी, सरकारी अधिकारी और शिल्पकार रहा करते थे।
साम्राज्य के बहुत बड़े क्षेत्रों में किसानों और पशुपालकों के गाँव बसे हुए थे। मध्य भारत जैसे इलाकों में ज़्यादातर हिस्सा जंगलों से भरा हुआ था। वहाँ पर लोग फल-फूल का संग्रहण और जानवरों का शिकार करके जीविका चलाते थे। साम्राज्य के अलग-अलग इलाकों में लोग भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलते थे। वे लोग शायद अलग-अलग प्रकार का भोजन करते थे और यहाँ तक कि अलग-अलग किस्म की पोशाक भी पहनते थे।
राज्य साम्राज्य से कैसे भिन्न है?
• चूंकि साम्राज्य राज्यों से बड़े होते हैं और उनकी रक्षा के लिए बड़ी सेनाओं की ज़रूरत होती है, इसीलिए सम्राटों को राजाओं की तुलना में ज़्यादा
संसाधनों की ज़रूरत होती है।
• इसी कारण उन्हें बड़ी संख्या में कर इकट्ठा करने वाले अधिकारियों की ज़रूरत होती है।
साम्राज्य का प्रशासन
चूंकि मौर्य साम्राज्य बहुत बड़ा था, इसलिए अलग-अलग हिस्सों पर अलग-अलग ढंग से शासन किया जाता था। पाटलिपुत्र और उसके आस-पास के इलाकों पर सम्राट का सीधा नियंत्रण था। इसका मतलब यह हुआ कि इस इलाके के गाँवों और शहरों के किसानों, पशुपालकों, शिल्पकारों और व्यापारियों से कर इकट्ठा करने के लिए राजा
अधिकारियों की नियुक्ति करता था। जो राजा के आदेशों का उल्लंघन करते थे, अधिकारी उनको सज़ा भी देते थे। इनमें से कई अधिकारियों को वेतन भी दिया जाता था। संदेशवाहक एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते थे और राजा के जासूस अधिकारियों के कार्य-कलाप पर नज़र रखते थे। इन सबके ऊपर सम्राट था जो राज-परिवार एवं वरिष्ठ मंत्रियों की सहायता से सब पर नियंत्रण रखता था।
मौर्य साम्राज्य के भीतर कई छोटे क्षेत्र या प्रांत थे। इन पर तक्षशिला या उज्जैन जैसी प्रांतीय राजधानियों से शासन किया जाता था। कुछ हद तक पाटलिपुत्र से इन क्षेत्रों पर नियंत्रण रखा जाता था और अक्सर राजकुमारों को वहाँ का राज्यपाल (गवर्नर) बना कर भेजा जाता था। लेकिन एेसा लगता है कि इन जगहों पर स्थानीय परंपराओं और नियमों को ही माना जाता था।
प्रादेशिक केंद्रों के बीच विस्तृत क्षेत्र थे। इनके इलाकों में मौर्य शासक सिर्फ़मार्गों और नदियों पर नियंत्रण रखने की कोशिश करते थे जो कि आवागमन के लिए महत्वपूर्ण थे। यहाँ से उन्हें जो भी संसाधन कर और भेंट के रूप में मिलते थे, उसे इकट्ठा किया जाता था। उदाहरण के लिए अर्थशास्त्र में यह लिखा है कि उत्तर-पश्चिम कंबल के लिए और दक्षिण भारत सोने और कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था। संभव है कि संसाधन नज़राने के रूप में इकट्ठे किए जाते थे।
नज़राना
जहाँ ‘कर’ नियमित ढंग से इकट्ठे किए जाते थे वहीं ‘नज़राना’ अनियमित रूप से जब भी संभव हो, इकट्ठा किया जाता था। एेसे नज़राने विविध पदार्थों के रूप में प्रायः एेसे लोगों से लिए जाते थे जो स्वेच्छा से इसे देते थे।
और अंत में जंगल वाले इलाके आते थे, वहाँ रहने वाले लोग काफ़ी हद तक स्वतंत्र थे। उनसे यह उम्मीद की जाती थी कि वे मौर्य पदाधिकारियों को हाथी, लकड़ी, मधु और मोम जैसी चीज़ें लाकर दें।
राजधानी में सम्राट
मेगस्थनीज़, चन्द्रगुप्त के दरबार में पश्चिम-एशिया के यूनानी राजा सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था। मेगस्थनीज़ ने जो कुछ देखा उसका विवरण दिया।
यहाँ हम उसके विवरण का एक अंश दे रहे हैं ः
सम्राट का, जनता के सामने आने के अवसरों पर शोभायात्रा के रूप में जश्न मनाया जाता है। उन्हें एक सोने की पालकी में ले जाया जाता है। उनके अंगरक्षक सोने और चाँदी से अलंकृत हाथियों पर सवार रहते हैं। कुछ अंगरक्षक पेड़ों को लेकर चलते हैं। इन पेड़ों पर प्रशिक्षित तोतों का एक झुण्ड रहता है जो सम्राट के सिर के चारों तरफ चक्कर लगाता रहता है। राजा सामान्यतः हथियारबंद महिलाओं से घिरे होते हैं। वे हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि कहीं कोई उनकी हत्या करने की कोशिश न करे। उनके खाना खाने के पहले खास नौकर उस खाने को चखते हैं। वे लगातार दो रात एक ही कमरे में नहीं सोते थे।
और पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) के बारे में ः
यह एक विशाल और खूबसूरत नगर है। यह एक विशाल प्राचीर से घिरा है जिसमें 570 बुर्ज और 64 द्वार हैं। दो और तीन मंज़िल वाले घर, लकड़ी और कच्ची ईंटों से बने हैं। राजा का महल भी काठ से बना है जिसे पत्थर की नक्काशी से अलंकृत किया गया है। यह चारों तरफ़से उद्यानों और चिड़ियों के लिए बने बसेरों से घिरा है।
राजा द्वारा खाना खाने के पहले खास नौकर उस खाने को क्यों चखते थे?
पाटलिपुत्र मोहनजोदड़ो से किस तरह भिन्न था? (संकेतः अध्याय 3 देखो)
अशोक-एक अनोखा सम्राट
अशोक मौर्य वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक थे। वह एेसे पहले शासक थे जिन्होंने अभिलेखों द्वारा जनता तक अपने संदेश पहुँचाने की कोशिश की। अशोक के ज़्यादातर अभिलेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में हैं।
कलिंग युद्ध का वर्णन करता हुआ अशोक का अभिलेख
अपने एक अभिलेख में अशोक ने यह बात कही ः
"राजा बनने के आठ साल बाद मैंने कलिंग विजय की।
लगभग डेढ़ लाख लोग बंदी बना लिए गए। एक लाख से भी ज़्यादा लोग मारे गए।
इससे मुझे अपार दुख हुआ। क्यों?
जब किसी स्वतंत्र देश को जीता जाता है तो लाखों लोग मारे जाते हैं और बहुत सारे बंदी बनाए जाते हैं। इसमें ब्राह्मण और श्रमण भी मारे जाते हैं।
जो लोग अपने सगे-संबंधियों और मित्रों को बहुत प्यार करते हैं तथा दासों और मृतकों के प्रति दयावान होते हैं, वे भी युद्ध में या तो मारे जाते हैं या अपने प्रियजनों को खो देते हैं।
इसीलिए मुझे पश्चाताप हो रहा है। अब मैंने धम्म पालन करने एवं दूसरों को इसकी शिक्षा देने का निश्चय किया है।
मैं मानता हूँ कि धम्म के माध्यम से लोगों का दिल जीतना बलपूर्वक विजय पाने से ज़्यादा अच्छा है। मैं यह अभिलेख भविष्य के लिए एक संदेश के रूप में इसलिए उत्कीर्ण कर रहा हूँ कि मेरे बाद मेरे बेटे और पोते भी युद्ध न करें।
इसके बदले उन्हें यह सोचना चाहिए कि धम्म को कैसे बढ़ाया जाए।"
कलिंग की लड़ाई से युद्ध को लेकर अशोक के विचारों में कैसे परिवर्तन हुआ?
(‘धम्म’ संस्कृत शब्द ‘धर्म’ का प्राकृत रूप है)।
अशोक का कलिंग युद्ध
कलिंग तटवर्ती उड़ीसा का प्राचीन नाम है (मानचित्र 5, पृष्ठ 68 देखो)। अशोक ने कलिंग को जीतने के लिए एक युद्ध लड़ा। लेकिन युद्धजनित हिंसा और खून-खराबा देखकर उन्हें युद्ध से वितृष्णा हो गई। उन्होंने निर्णय लिया कि वे भविष्य में कभी युद्ध नहीं करेंगे।
अशोक का धम्म क्या था?
अशोक के धम्म में किसी देवता की पूजा अथवा किसी कर्मकांड की आवश्यकता नहीं थी। उन्हें लगता था कि जैसे पिता अपने बच्चों को अच्छे व्यवहार की शिक्षा देते हैं वैसे ही यह उनका कर्तव्य था कि अपनी प्रजा को निर्देश दें। वे बुद्ध के उपदेशों से भी प्रेरित हुए थे।
उत्कृष्ट पॉलिश वाले पत्थर की इस मूर्ति को देखो।
यह बिहार के रामपुरवा में मिले एक मौर्यकालीन स्तंभ का हिस्सा है। अभी इसे राष्ट्रपति भवन में रखा गया है। यह उस समय की मूर्तिकला का एक नमूना है।
एेसी कई समस्याएँ थीं जिनके लिए उनमें संवेदना थी। उनके साम्राज्य में अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग थे और इससे कई बार टकराव पैदा हो जाता था। जानवरों की बलि चढ़ाई जाती थी। दासों और नौकरों के साथ क्रूर व्यवहार किया जाता था। इनके अलावा परिवार में व पड़ोसियों के बीच भी झगड़े होते रहते थे। अशोक ने यह महसूस किया कि इन समस्याओं का निदान उनका कर्तव्य है। इसीलिए उन्होंने
धम्म-महामात्त नाम के अधिकारियों की नियुक्ति की जो जगह-जगह जाकर धम्म की शिक्षा देते थे।
इसके अतिरिक्त अशोक ने अपने संदेश कई स्थानाें पर शिलाओं और स्तंभों पर खुदवा दिए। अधिकारियों को यह निर्देश दिया गया कि वे राजा के संदेश को उन लोगों को पढ़कर सुनाएँ जो खुद पढ़ नहीं सकते थे। अशोक ने धम्म के विचारों को प्रसारित करने के लिए सीरिया, मिस्र, ग्रीस तथा श्री लंका में भी दूत भेजे।
पृष्ठ सं. 76-77 पर दिए गए मानचित्र 6 में इन क्षेत्रों को पहचानने का प्रयास कीजिए।
उन्होंने सड़कें बनवाईं, कुएँ खुदवाए और विश्राम-गृह बनवाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने मनुष्यों व जानवरों की चिकित्सा की भी व्यवस्था की।
अपनी प्रजा के लिए अशोक के संदेश
लोग विभिन्न अवसरों पर अनुष्ठान करते हैं। उदाहरण के लिए जब वेे बीमार होते हैं, जब उनके बच्चों का विवाह होता है, बच्चों के जन्म पर और जब यात्रा शुरू करते हैं, तब वे तरह-तरह के अनुष्ठान करते हैं।
ये कर्मकांड किसी काम के नहीं।
इसके बदले यदि लोग दूसरी रीतियों को मानें तो वह ज़्यादा फलदायी होंगी। ये अन्य प्रकार की रीतियाँ क्या हैं?
ये हैं - अपने दासों और नौकरों के साथ अच्छा व्यवहार करना, बड़ों का आदर करना, सभी जीवों पर दया करना और ब्राह्मणों तथा श्रमणों को दान देना।
अपने धम्म की प्रशंसा या दूसरोें के धम्म की निन्दा करना, दोनों ही बातें गलत हैं। हर किसी को दूसरे धर्म का आदर करना चाहिए। यदि कोई अपने धर्म की बड़ाई और दूसरों के धर्म की बुराई करता है तो वह वास्तव में अपने धर्म को ज़्यादा नुकसान पहुँचा रहा है।
इसीलिए हर किसी को दूसरे के धर्म के प्रमुख विश्वासों को समझने की कोशिश करते हुए उसका आदर करना चाहिए।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है, "उनके धर्मादेश आज भी हमसे एक एेसी भाषा में बात करते हैं जिन्हें हम समझ सकते हैं... और जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।’’
अशोक ने धम्म के विचारों को दूर-दूर तक फैलाने के लिए उन बातों को बताया जो आपके अनुसार आज भी प्रासंगिक हैं। अशोक के संदेश के उन हिस्सों को बताओ जो आज भी प्रासंगिक हैं।
अन्यत्र
मौर्य साम्राज्य के उभरने से थोड़ा पहले लगभग 2400 वर्ष पहले, चीन में सम्राटों ने चीन की दीवार का निर्माण शुरू किया। इसे बनाने का उद्देश्य उत्तरी सीमा की पशुपालक लोगों से रक्षा करना था। अगले 2000 वर्षों तक इस दीवार का निर्माण कार्य चलता रहा, क्योंकि साम्राज्य की सीमाएँ बदलती रहीं। यह दीवार लगभग 6400 किलोमीटर लंबी है तथा पत्थर और ईंट से बनी है। इसकी ऊपरी सतह सड़क जैसी चौड़ी है। इस दीवार को बनाने के लिए हज़ारों लोगों को काम करना पड़ा। हर 100-200 मीटर की दूरी पर इस पर निगरानी के लिए बुर्ज बने हुए हैं।
पड़ोसी देशों के प्रति अशोक का रवैया चीनी सम्राटों के रवैये से कैसे भिन्न था?
कल्पना करो
तुम कलिंग में रहती हो और तुम्हारे माँ-बाप को युद्ध में काफी दुख उठाने पड़े हैं। अभी-अभी अशोक के दूत धम्म के नए विचारों को लेकर आए हैं। आप अपने माता-पिता और संदेशवाहकों के बीच बातचीत का वर्णन करो।
उपयोगी शब्द
साम्राज्य
राजधानी
अधिकारी
संदेशवाहक
प्रांत
धम्म
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
मौर्य साम्राज्य की शुरुआत
(2300 साल से पहले)
आओ याद करें
1. मौर्य साम्राज्य में विभिन्न काम-धंधों में लगे हुए लोगों की सूची बनाओ।
2. रिक्त स्थानों को भरो :
(क) जहाँ पर सम्राटों का सीधा शासन था वहाँ अधिकारी ———————— वसूलते थे।
(ख) राजकुमारों को अक्सर प्रांतों में ———————— के रूप में भेजा
जाता था।
(ग) मौर्य शासक आवागमन के लिए महत्वपूर्ण ———————— और
———————— पर नियंत्रण रखने का प्रयास करते थे।
(घ) प्रदेशों में रहने वाले लोग मौर्य अधिकारियों को ———————— दिया करते थे।
3. बताओ कि निम्नलिखित वाक्य सही हैं या गलत
(क) उज्जैन उत्तर-पश्चिम की तरफ़आवागमन के मार्ग पर था।
(ख) आधुनिक पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के इलाके मौर्य साम्राज्य के अंदर थे।
(ग) चन्द्रगुप्त के विचार अर्थशास्त्र में लिखे गए हैं।
(घ) कलिंग बंगाल का प्राचीन नाम था।
(ङ) अशोक के ज़्यादातर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं।
आओ चर्चा करें
4. उन समस्याओं की सूची बनाओ जिनका समाधान अशोक धम्म द्वारा करना चाहता था।
5. धम्म के प्रचार के लिए अशोक ने किन साधनों का प्रयोग किया?
6. तुम्हारे अनुसार दासों और नौकरों के साथ बुरा व्यवहार क्यों किया जाता होगा? क्या तुम्हें एेसा लगता है कि सम्राट के आदेशों से उनकी स्थिति में सुधार हुआ होगा? अपने जवाब के लिए कारण बताओ।
आओ करके देखें
7. रौशन को यह बताते हुए कि हमारे रुपयों पर शेर क्यों दिखाए गए हैं एक पैराग्राफ लिखो। कम से कम एक और चीज़ का नाम लो जिस पर इन्हीं शेरों के चित्र बने हैं।
8. अगर तुम्हारे पास अपना अभिलेख जारी करने की शक्ति होती तो तुम कौन-सी चार राजाज्ञाएँ देते?
मानचित्र: 6
रेशम मार्ग सहित महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग
चीनी, भारतीय, ईरानी, अरबी, यूनानी तथा रोमन व्यापारियों ने इस आदान-प्रदान में भाग लिया।
दक्षिण भारत के पत्तन काली मिर्च तथा अन्य मसालों के निर्यात की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे।
मानचित्र में पोडुका (दक्षिण भारत में) ढूँढ़ो। अरिकामेडु का यह रोमन नाम था (अध्याय 8)।
आगे की बात
लगभग 2200 वर्ष पहले मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया। इसके स्थान पर, (साथ ही अन्य जगहों पर भी) कई नए राज्यों का उदय हुआ। पश्चिमोत्तर में तथा उत्तर-भारत के कुछ भागों में करीब एक सौ सालों तक हिन्द-यवन राजाओं का शासन रहा। इनके बाद पश्चिमोत्तर, उत्तर तथा पश्चिमी भारत पर शक नामक मध्य-एशियाई लोगों का शासन स्थापित हुआ। इनमें से कुछ राज्य लगभग 500 वर्षों तक टिके रहे जब तक कि शक शासकों को गुप्त शासकों से पराजय नहीं मिल गई (अध्याय 10)। शकों के बाद कुषाणों (लगभग 2000 वर्ष पहले) का शासन स्थापित हुआ। अध्याय 9 में तुम कुषाणों के बारे में और अधिक जानोगे।
हमने देखा कि पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों पर शकों का शासन था। यहाँ पश्चिमी भारत तथा मध्य भारत पर शासन कर रहे सातवाहन शासकों के साथ इनके कई युद्ध हुए। लगभग 2100 साल पहले स्थापित सातवाहन राज्य लगभग 400 सालों तक टिका रहा। लगभग 1700 वर्ष पहले मध्य तथा पश्चिमी भारत में वाकाटक वंश का शासन स्थापित हुआ।
दक्षिण भारत में, 2200 से 1800 साल पूर्व के बीच चोलों, चेरों तथा पाण्ड्यों ने शासन किया। लगभग 1500 साल पहले, पल्लवों और चालुक्यों के दो बड़े राज्यों की स्थापना हुई।
इसके अलावा और भी कई राज्य और राजा थे। इनके बारे में हमें उनके सिक्कों, पाण्डुलिपियों तथा पुस्तकों से पता चलता है। इन सब के साथ-साथ अनेक एेसे परिवर्तन भी हो रहे थे, जिनमें सामान्य स्त्री-पुरुषों का महत्वपूर्ण योगदान था। इनमें कृषि का प्रसार, नए शहरों का विकास, उद्योग तथा व्यापार में प्रगति थी। व्यापारियों ने एक तरफ़जहाँ उपमहाद्वीप के अंदर तथा बाहर ज़मीन के रास्तों की खोज की, वहीं पश्चिम एशिया, पूर्वी अफ़्रीका तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया (मानचित्र 6 देखो) के समुद्री रास्ते भी खुलेे। मंदिरों, स्तूपों तथा अन्य इमारतों का निर्माण हुआ, किताबें लिखी गईं, साथ ही, वैज्ञानिक खोजें भी हुईं। ये सारी बातें साथ-साथ हो रही थीं। इस पुस्तक के बाकी हिस्सों को पढ़ते हुए तुम इन बातों को ध्यान में रखना।