अध्याय 8

खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर



लोहार की दुकान पर प्रभाकर

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प्रभाकर लोहारों को काम करते देख रहा था। एक छोटी-सी बेंच पर कुल्हाड़ी और हँसिया जैसे कुछ औज़ार बेचने के लिए रखे थे। दूसरी ओर भट्ठी जल रही थी। औज़ार बनाने के लिए दो लोग लोहे की एक छड़ को गरम कर उसे पीट रहे थे। प्रभाकर को ये सब बड़ा मज़ेदार लग रहा था।


लोहे के औज़ार और खेती

लोहे का प्रयोग आज एक आम बात है। लोहे की चीज़ें हमारी रोज़मर्रा की ज़ि्ांदगी का हिस्सा बन गई हैं। इस उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ। महापाषाण कब्रों में लोहे के औज़ार और हथियार बड़ी संख्या में मिले हैं। इनके बारे में तुम अध्याय 4 में पढ़ चुके हो।

औज़ारों की सूची में इन चित्रों के नाम चुनो  हँसिया, कुल्हाड़ी, और सँड़सी।

लोहे की एेसी पाँच चीज़ों की सूची बनाओ जिनका प्रयोग तुम रोज़ करते हो।

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करीब 2500 वर्ष पहले लोहे के औज़ारों के बढ़ते उपयोग का प्रमाण मिलता है। इनमें जंगलों को साफ़ करने के लिए कुल्हाड़ियाँ और जुताई के लिए हलों के फाल शामिल हैं। अध्याय 5 में तुमने पढ़ा था कि लोहे के फाल के इस्तेमाल से कृषि उत्पादन बढ़ गया।

कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उठाए गए अन्य कदम: सिंचाई

समृद्ध गाँवों के बिना राजाओं तथा उनके राज्यों का बने रहना मुश्किल था। जिस तरह कृषि के विकास में नए औज़ार तथा रोपाई (अध्याय 5) महत्वपूर्ण कदम थे, उसी तरह सिंचाई भी काफी उपयोगी साबित हुई। इस समय सिंचाई के लिए नहरें, कुएँ, तालाब तथा कृत्रिम जलाशय
बनाए गए।

इस चार्ट में तुम्हें सिंचाई से आए परिवर्तन दिखाए गए हैं। खाली स्थानों में सही वाक्य भरो:

लोगों द्वारा परिश्रम किया गया।

किसानों को लाभ मिला, क्योंकि अब उत्पादन की अनिश्चितता घटी।

कर अदा करने के लिए किसानों को उत्पादन बढ़ाना था।

राजाओं ने सिंचाई की योजना बनाई और धन खर्च किया।

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गाँवों में कौन रहते थे?

इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी तथा उत्तरी हिस्सों के अधिकांश गाँवों में कम से कम तीन तरह के लोग रहते थे। तमिल क्षेत्र में बड़े भूस्वामियों को वेल्लला, साधारण हलवाहों को उणवार और भूमिहीन मज़दूर, दास कडैसियार और अदिमई कहलाते थे।

देश के उत्तरी हिस्से में, गाँव का प्रधान व्यक्ति ग्राम-भोजक कहलाता था। अक्सर एक ही परिवार के लोग इस पद पर कई पीढ़ियों तक बने रहते थे। यानी कि यह पद आनुवंशिक था। ग्राम-भोजक के पद पर आमतौर पर गाँव का सबसे बड़ा भू-स्वामी होता था। साधारणतया इनकी ज़मीन पर इनके दास और मज़दूर काम करते थे। इसके अतिरिक्त प्रभावशाली होने के कारण प्रायः राजा भी कर वसूलने का काम इन्हें ही सौंप देते थे। ये न्यायाधीश का और कभी-कभी पुलिस का काम भी करते थे।

ग्राम-भोजकों के अलावा अन्य स्वतंत्र कृषक भी होते थे, जिन्हें गृहपति कहते थे। इनमें ज़्यादातर छोटे किसान ही होते थे। इसके अतिरिक्त कुछ एेसे स्त्री-पुरुष थे, जिनके पास अपनी ज़मीन नहीं होती थी। इनमें दास कर्मकार आते थे, जिन्हें दूसरों की ज़मीन पर काम करके अपनी जीविका चलानी पड़ती थी।

अधिकांश गाँवों में लोहार, कुम्हार, बढ़ई तथा बुनकर जैसे कुछ शिल्पकार भी होते थे।

प्राचीनतम तमिल रचनाएँ

तमिल की प्राचीनतम रचनाओं को संगम साहित्य कहते हैं। इनकी रचना करीब 2300 साल पहले की गई। इन्हें संगम इसलिए कहा जाता है क्योंकि मदुरै (देखो मानचित्र 7, पृष्ठ 105) के कवियों के सम्मेलनों में इनका संकलन किया जाता था। गाँव में रहने वालों के जिन तमिल नामों का उल्लेख यहाँ किया गया है, वे संगम साहित्य में पाए जाते हैं।

 

नगर: क्या कहती हैं कहानियाँ, यात्रा-विवरण, मूर्तिकलाएँ और पुरातत्त्व

तुमने जातकों के बारे में सुना होगा। ये वो कहानियाँ हैं, जो आम लोगों
में प्रचलित थीं। बौद्ध भिक्खुओं ने इनका संकलन किया। यहाँ एक जातक कथा दी गई है, जिसमें यह बताया गया है कि एक निर्धन किस तरह
धीरे-धीरे धनी बन जाता है



एक निर्धन की चतुराई

एक शहर में एक गरीब युवक रहता था। उसके पास एक मरे चूहे के अलावा कुछ नहीं था। उसने उस चूहे को एक सिक्के में एक भोजनालय वाले की बिल्ली के लिए बेच दिया।

फिर एक दिन बड़ी ज़ोर की आँधी आई। राजा का बगीचा टूटी टहनियों और पत्तों से भर गया। उनका माली इसे साफ़ करने की बात से परेशान हो उठा। युवक ने माली से कहा कि अगर लकड़ियाँं और पत्ते उसे मिल जाएँ तो वह बगीचे की सफ़ाई कर सकता है। माली तुरंत मान गया।

युवक ने पास खेल रहे बच्चों को यह कह कर इकट्ठा कर लिया कि प्रत्येक टहनी और पत्ते के बदले में उन्हें एक-एक मिठाई मिलेगी। देखते ही देखते उन्होंने बगीचे से एक-एक तिनका चुनकर गेट के पास इकट्ठा कर दिया। तभी उधर से राजा का कुम्हार बर्तनों को पकाने के लिए ईंधन की तलाश में गुजरा। उसने पूरे ढेर को खरीद लिया। इस तरह युवक के पास कुछ और पैसे हो गए।

अब उस युवक ने एक और योजना बनाई। एक बड़े बर्तन में पानी भरकर वह नगर के द्वार पर गया और वहाँ उसने घास काटने वाले 500 लोगों को पानी पिलाया।

खुश होकर उन लोगों ने कहा, "तुमने हमारे लिए इतना अच्छा काम किया बताओ अब हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं?"

उसने कहा, "मैं आपको यह तब बताऊँगा जब मुझे आपकी सहायता की ज़रूरत होगी।" उसके बाद उसने एक व्यापारी से दोस्ती की। एक दिन उस व्यापारी ने बताया, "कल एक घोड़े का व्यापारी 500 घोड़ों के साथ शहर में आ रहा है।"

यह सुनकर उस युवक ने उन घास काटने वालों के पास जाकर कहा, "कृपया, तुम सब एक-एक घास का गट्ठर मुझे दो और अपनी घास तब तक मत बेचो, जब तक मेरी न बिक जाए।" उन्होंने उसे घासों के 500 गट्ठर दे दिए। जब घोड़े के व्यापारी को कहीं भी घास न मिली तो उसने इस युवक की घास एक हज़ार सिक्के में खरीद ली।

इस कहानी में आए व्यक्तियों के व्यवसायों की सूची बनाओ।

प्रत्येक के लिए यह तय करो कि वे (क) शहर में, (ख) गाँव में, या फिर (ग) शहर तथा गाँव दोनों में रहते थे।

घोड़े का व्यापारी शहर में क्यों आया होगा?

क्या महिलाएँ कहानी में बताए व्यवसायों को अपना सकती थीं? उत्तर के कारण बताओ।

 

प्राचीन नगरों के जीवन के बारे में हमें कुछ अन्य स्रोतों से भी पता चल सकता है। शहरों, गाँवों या फिर जंगलों के जीवन से जुड़ी घटनाओं को मूर्तिकार कलात्मक ढंग से उकेरते थे। इन मूर्तियों को एेसी इमारतों की रेलिंग, खंभों या प्रवेश-द्वारों पर सजाया जाता था जहाँ लोग आते थे।


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दिल्ली में मिला वलयकूप।

हड़प्पा की जल निकास व्यवस्था से यह कैसे भिन्न है?

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नीचेः साँची की मूर्तिकला।

यह मध्य प्रदेश स्थित साँची के स्तूप की मूर्तिकला का नमूना है। इसमें शहर के
जीवन का एक दृश्य
है। तुम अध्याय 11 में साँची के बारे में पढ़ोेगे। इन दीवारों को देखो। क्या वे ईंट की बनी हैं या फिर लकड़ी या पत्थर से? क्या इसकी रेलिंग लकड़ी की बनी हैं? इन इमारतों की छतों का वर्णन करो।

अध्याय 5 में वर्णित अनेक शहर, महाजनपदों की राजधानी थे। जैसा कि तुमने पढ़ा इनमें से कुछ शहर परकोटों से घिरे होते थे।

जैसा कि तुम ऊपर के चित्र में देख रहे हो, अनेक शहरों में वलयकूप मिले हैं। ये वलयकूप गुसलखाने, नाली या कूड़ेदान के लिए प्रयुक्त होते थे। प्रायः ये वलयकूप लोगों के घरों में होते थे।

महलों, बाज़ारों या आम घरों के अवशेष बहुत कम मिले हैं। संभवतः लकड़ी, मिट्टी व कच्ची ईंटों या छप्पर से बने होने के कारण ये ज़्यादा समय तक टिक न पाए हों। भविष्य में पुरातत्त्वविद् इनकी खोज कर सकते हैं।

प्राचीन शहरोें के बारे में वहाँ गए नाविकों तथा यात्रियों के विवरणों द्वारा भी पता चलता है। एेसा ही एक विस्तृत विवरण किसी अज्ञात यूनानी नाविक का है। जिन-जिन पत्तनों पर वह गया, उन सभी के बारे में उसने लिखा है। मानचित्र 7 (पृष्ठ 105) में भरूच ढूँढ़ो। अब उसके द्वारा दिए गए वर्णन को पढ़ो।

बेरिगाज़ा (भरूच का यूनानी नाम) की कहानी

बेरिगाज़ा की संकरी खाड़ी मेें समुद्र से आने वालों के लिए नाव चला पाना बहुत मुश्किल होता है।

राजा के द्वारा नियुक्त कुशल और अनुभवी स्थानीय मछुआरे ही यहाँ जहाज़ ला सकते थे।

बेरिगाज़ा में शराब, ताँबा, टिन, सीसा, मूँगा, पुखराज, कपड़े, सोने और चाँदी के सिक्कों का आयात होता था।

हिमालय की जड़ी-बूटियाँ, हाथी-दाँत, गोमेद, कार्नीलियन, सूती कपड़ा, रेशम तथा इत्र यहाँ से निर्यात किए जाते थे।

राजा के लिए व्यापारी विशेष उपहार लाते थे। इनमें चाँदी के बर्तन, गायक-किशोर, सुंदर औरतें, अच्छी शराब तथा उत्कृष्ट महीन कपड़े शामिल थे।

बेरिगाज़ा से आयात और निर्यात होने वाली चीज़ों की सूची बनाओ।

दो एेसी चीज़ें बताओ, जिनका उपयोग हड़प्पा युग में नहीं होता था।

 

सिक्के

पृष्ठ 82 पर दी गई कहानी में तुमने देखा कि किस तरह सिक्कों के आधार पर सम्पत्ति का मूल्यांकन किया गया। पुरातत्त्वविदों को इस युग के हज़ारों सिक्के मिले हैं। सबसे पुराने आहत सिक्के थे, जो करीब 500 साल चले। इसका चित्र नीचे दिया गया है। चाँदी या ताँबे के सिक्कों पर विभिन्न आकृतियों को आहत कर बनाए जाने के कारण इन्हें आहत सिक्का कहा जाता था।


आहत सिक्के

आहत सिक्के सामान्यतः आयताकार और कभी-कभी वर्गाकार या गोल होते थे। ये या तो धातु की चादर को काटकर या धातु के चपटे गोलिकाओं से बनाये जाते थे। इन सिक्कों पर कुछ लिखा हुआ नहीं था, बल्कि इन पर कुछ चिन्ह ठप्पे से बनाये जाते थे। इसीलिए ये आहत सिक्के कहलाए। ये सिक्के उपमहाद्वीप के लगभग अधिकांश हिस्सों में पाए जाते हैं और ईसा की आरंभिक सदियों तक ये प्रचलन में रहे।


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विनिमय के अन्य साधन

संगम साहित्य की इस छोटी सी कविता को पढ़ो।

खेतों के सफ़ेद  धान गाड़ियों पर लादे

जा रहे हैं

नमक के लिए,

लंबे-लंबे रास्ते

चाँदनी सी सफ़ेद रेत पर

परिवार को समेटे

कहीं पीछे छूट न जाएँ।

शहरों से नमक के सौदागरों के

यूँ चले जाने से सिर्फ़  सन्नाटा रह जाता है।

समुद्र के किनारे नमक का बहुत ज़्यादा उत्पादन होता था।

व्यापारी किस चीज़ से इसका विनिमय करते हैं?

वे किस तरह यात्रा कर रहे हैं?

नगर: अनेक गतिविधियों के केंद्र

अक्सर नगर कई कारणों से महत्वपूर्ण हो जाते थे। उदाहरण के लिए मथुरा (मानचित्र 7, पृष्ठ 105) को देखो।

यह 2500 साल से भी ज़्यादा समय से एक महत्वपूर्ण नगर रहा है क्योंकि यह यातायात और व्यापार के दो मुख्य रास्तों पर स्थित था। इनमें से एक रास्ता उत्तर-पश्चिम से पूरब की ओर, दूसरा उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाला था। शहर के चारों ओर किलेबंदी थी, इसमें अनेक मंदिर थे। आस-पास के किसान तथा पशुपालक शहर में रहने वालों के लिए भोजन जुटाते थे। मथुरा बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र था।

लगभग 2000 साल पहले मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी बनी। इसके बारे में तुम अगले अध्याय में पढ़ोगे। मथुरा एक धार्मिक केंद्र भी रहा है। यहाँ बौद्ध विहार और जैन मंदिर हैं। यह कृष्ण भक्ति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

मथुरा में प्रस्तर-खंडों तथा मूर्तियों पर अनेक अभिलेख मिले हैं। आमतौर पर ये संक्षिप्त अभिलेख हैं, जो स्त्रियाें तथा पुरुषों द्वारा मठों या मंदिरों को दिए जाने वाले दान का उल्लेख करते हैं। प्रायः शहर के राजा, रानी, अधिकारी, व्यापारी तथा शिल्पकार इस प्रकार के दान करते थे। उदाहरण के लिए मथुरा के अभिलेख में सुनारों, लोहारों, बुनकरों, टोकरी बुनने वालों, माला बनाने वालों और इत्र बनाने वालों के उल्लेख मिलते हैं।

मथुरा के लोगों के व्यवसायों की एक सूची बनाओ। एक एेसे व्यवसाय का नाम बताओ जो हड़प्पा में नहीं था।

शिल्प तथा शिल्पकार

पुरास्थलों से शिल्पों के नमूने मिले हैं। इनमें मिट्टी के बहुत ही पतले और सुंदर बर्तन मिले हैं, जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है क्योंकि ये ज़्यादातर उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में मिले हैैं।

ध्यान रहे कि अन्य दूसरे शिल्पों के अवशेष नहीं बचे होंगे। जैसे कि विभिन्न ग्रंथों से हमें पता चलता है कि कपड़ों का उत्पादन बहुत महत्वपूर्ण था। उत्तर में वाराणसी और दक्षिण में मदुरै इसके प्रसिद्ध केंद्र थे। यहाँ स्त्री-पुरुष दोनों काम करते थे।

अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने-अपने संघ बनाने लगे थे, जिन्हें श्रेणी कहते थे। शिल्पकारों की श्रेणियों का काम प्रशिक्षण देना, कच्चा माल उपलब्ध कराना तथा तैयार माल का वितरण करना था। जबकि व्यापारियों की श्रेणियाँ व्यापार का संचालन करती थीं। श्रेणियाँ बैंकों के रूप में काम करती थीं, जहाँ लोग पैसे जमा रखते थे। इस धन का निवेश लाभ के लिए किया जाता था। उससे मिले लाभ का कुछ हिस्सा जमा करने वाले को लौटा दिया जाता था या फिर मठ आदि धार्मिक संस्थानों को दिया
जाता था।


उत्तरी काले चमके पात्र (NBPW)

ये एक कठोर, चाक निर्मित, धातु की तरह दिखने वाले तथा चमकदार काली सतह वाले पात्र हैं। इसे बनाने के लिए कुम्हार मिट्टी के बर्तनों को भट्टों पर उच्च तापमान पर रखते थे जिसके परिणामस्वरूप इन बर्तनों की बाहरी सतह काली हो जाती थी। इन पर एक पतली काली लेप भी लगायी जाती थी जो इस बर्तन को शीशे जैसी चमक प्रदान करता था।


सूत कातने और बुनने के नियम

ये नियम अर्थशास्त्र के हैं। अध्याय 7 में अर्थशास्त्र का उल्लेख किया गया है। इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार एक विशेष पदाधिकारी की देखरेख में कारखानों में सूत की कताई और बुनाई की जाती थी।

ऊन, पेड़ों की छाल, कपास, पटुआ तथा सन को तैयार करने के काम में विधवाओं, सक्षम-अक्षम महिलाओं, भिक्खुणियों, वृद्धा वेश्याओं, राजा की अवकाशप्राप्त दासियों, सेविकाओं और अवकाशप्राप्त देवदासियों को लगाया जा सकता है।

इन्हें इनके काम के और गुणवत्ता के अनुसार पारिश्रमिक देना चाहिए। जिन महिलाओं को बाहर निकलने की अनुमति नहीं है, वे अपनी दासियों को भेजकर कच्चे माल को मंगवा सकती हैं और फिर तैयार माल उन्हें भिजवा सकती हैं।

वे औरतें, जो कारखाने तक जा सकती हैं, उन्हें अपना माल कारखाने तक तड़के ले जाना पड़ता था, जहाँ उन्हें पारिश्रमिक मिलता था। इस समय माल को अच्छी तरह जाँचने के लिए रोशनी रहती है। अगर निरीक्षक उस औरत की तरफ़ देखता है या इधर-उधर की बातें करता है, तो उसे सज़ा मिलनी चाहिए।

अगर औरत ने अपना काम पूरा नहीं किया, तो उसे जुर्माना देना होगा, इसके लिए उसका अंगूठा भी काटा जा सकता है।

उन महिलाओं की सूची बनाओ जिन्हें निरीक्षक नियुक्त कर सकता था।

क्या काम करने के दौरान महिलाओं को मुश्किलें झेलनी पड़ती थीं?

 

सूक्ष्म निरीक्षण: अरिकामेडु

मानचित्र 7 (पृष्ठ 105) में अरिकामेडु (पुदुच्चेरी में) ढूँढ़ो। पृष्ठ 88 में रोम के बारे में दी जानकारी पढ़ो। लगभग 2200 से 1900 साल पहले अरिकामेडु एक पत्तन था, यहाँ दूर-दूर से आए जहाज़ों से सामान उतारे जाते थे। यहाँ ईंटों से बना एक ढाँचा मिला है जो संभवतः गोदाम रहा हो। यहाँ भूमध्य-सागरीय क्षेत्र के एंफोरा जैसे पात्र मिले हैं। इनमें शराब या तेल जैसे तरल पदार्थ रखे जा सकते थे। इनमेें दोनों तरफ़ से पकड़ने के लिए हत्थे लगे हैं। साथ ही यहाँ ‘एरेटाइन’ जैसे मुहर लगे लाल-चमकदार बर्तन भी मिले हैं। इन्हें इटली के एक शहर के नाम पर ‘एरेटाइन’ पात्र के नाम से जाना जाता है। इसे मुहर लगे साँचे पर गीली चिकनी मिट्टी को दबा कर बनाया जाता था। कुछ एेसे बर्तन भी मिले हैं, जिनका डिज़ाइन तो रोम का था, किन्तु वे यहीं बनाए जाते थे। यहाँ रोमन लैंप, शीशे के बर्तन तथा रत्न भी मिले हैं।

साथ ही छोटे-छोटे कुण्ड मिले हैं, जो संभवतः कपड़े की रंगाई के पात्र रहे होंगे। यहाँ पर शीशे और
अर्ध-बहुमूल्य पत्थरों से मनके बनाने के पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं।

रोम के साथ संबंध दर्शाने वाले साक्ष्य की सूची बनाओ।

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अभिलेखित मिट्टी के बर्तन

कई बर्तनों पर ब्राह्मी लिपि में अभिलेख मिले हैं। प्रारंभ में तमिल भाषा के लिए इसीलिपि का प्रयोग किया जाता था। इसीलिए इन्हें तमिल ब्राह्मी अभिलेख भी कहा जाता है।


अन्यत्र

मानचित्र 6 (पृष्ठ 76) में रोम को ढूँढ़ो। यह यूरोप के सबसे पुराने शहरों में से एक है। इसका विकास लगभग तभी हुआ, जब गंगा के मैदान के शहर बस रहे थे। रोम एक बहुत बड़े साम्राज्य की राजधानी था। यह यूरोप, उत्तरी अफ़्रीका तथा पश्चिमी एशिया तक फैला साम्राज्य था। इसके सबसे महत्वपूर्ण शासकों में से एक अॉगस्टस ने करीब 2000 साल पहले शासन किया था। उसने कहा था कि रोम ईंटों का शहर था, जिसे मैंने संगमरमर का बनवाया। अॉगस्टस और उसके बाद के शासकों ने कई मंदिर तथा महल भी बनवाए।

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एक्वाडक्ट

अॉगस्टस ने बड़े-बड़े रंगमंडल (एम्फिथियेटर) बनवाए। इनमें चारों तरफ़ दर्शकों के बैठने की सीढ़ीनुमा जगहें होती थीं। यहाँ लोग विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम देख सकते थे। उन्होंने स्नानागार भी बनवाए जहाँ स्त्रियों तथा पुरुषों के लिए अलग-अलग समय निर्धारित थे। यहाँ लोग एक-दूसरे से मिलते थे, और आराम करते थे। बड़े-बड़े जलवाही सेतु (एक्वाडक्ट) के ज़रिए शहर के स्नानागारों, फव्वारों तथा गुसलखानों के लिए पानी लाया जाता था।


ये बड़े खुले रंगमंडल (एम्फिीथियेटर) और जलवाही सेतु इतने दिनों तक कैसे बचे रहे?


कल्पना करो

तुम बेरिगाज़ा में रहते हो और पत्तन देखने निकले हो। तुमको क्या-क्या देखने को मिला?


उपयोगी शब्द

लोहा

गाँव

सिंचाई

संगम

नगर

वलयकूप

पत्तन

श्रेणी


कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ

 

उपमहाद्वीप में लोहे के प्रयोग की शुरुआत

(करीब 3000 साल पहले)

लोहे के प्रयोग में बढ़ोतरी, नगर, आहत सिक्के (करीब 2500 साल पहले)

संगम साहित्य की रचना की शुरुआत

(करीब 2300 साल पहले)

अरिकामेडु का पत्तन

(करीब 2200 तथा 1900 साल पहले)


आओ याद करें

1. खाली जगहों को भरो:

(क) तमिल में बड़े भूस्वामी को ———————— कहते थे।

(ख) ग्राम-भोजकों की ज़मीन पर प्रायः———————— द्वारा खेती की जाती थी।

(ग) तमिल में हलवाहे को ———————— कहते थे।

(घ) अधिकांश गृहपति ———————— भूस्वामी होते थे।

2. ग्राम-भोजकों के काम बताओ। वे शक्तिशाली क्यों थे?

3. गाँवों तथा शहरों दोनों में रहने वाले शिल्पकारों की सूची बनाओ।

4. सही जवाब ढूँढ़ो:

(क) वलयकूप का उपयोग

. नहाने के लिए

. कपड़े धोने के लिए

. सिंचाई के लिए

. जल निकास के लिए किया जाता था।

(ख) आहत सिक्के

. चाँदी

. सोना

. टिन

. हाथी दाँत के बने होते थे।

(ग) मथुरा महत्वपूर्ण

. गाँव

. पत्तन

. धार्मिक केंद्र

. जंगल क्षेत्र था।

(घ) श्रेणी

. शासकों

. शिल्पकारों

. कृषकों

.शुपालकों का संघ होता था।


आओ चर्चा करें

5. पृष्ठ 79 पर दिखाए गए लोहे के औज़ारों में कौन खेती के लिए महत्वपूर्ण होंगे? अन्य औज़ार किस काम में आते होंगे?

6. अपने शहर की जल निकास व्यवस्था की तुलना तुम उन शहरों की व्यवस्था से करो, जिनके बारे में तुमने पढ़ा है। इनमें तुम्हें क्या-क्या समानताएँ और अंतर दिखाई दिए?

आओ करके देखें

7. अगर तुमने किसी शिल्पकार को काम करते हुए देखा है तो कुछ वाक्यों में उसका वर्णन करो (संकेत: उन्हें कच्चा माल कहाँ से मिलता है, किस तरह के औज़ारों का प्रयोग करते हैं, तैयार माल का क्या होता है, आदि)

8. अपने शहर या गाँव के लोगों के कार्योें की एक सूची बनाओ। मथुरा में किए जाने वाले कार्यों से ये कितने समान और कितने भिन्न हैं?