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अध्याय 2
विविधता एवं भेदभाव
पिछले पाठ में आपने विविधता के बारे में पढ़ा ।कई बार जो लो ग दूसरों से अलग होते हैं उन्हें मिलाया जाता है, उनका मजाक उडाया जाता है या फिर उन्हें कई गतिविधियों का समूहों में शामिल नहीं किया जाता।अगर इमारे दोस्त या दूसरे लोग हमारे साथ ऐसा महार करें तो हमें दुख होता है, गुस्सा आता है और इस असहाय महसूस करते हैं।क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है?
इस फल में हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि ऐसे अनुभव हमारे समाज से और हमारे आस – पास मौजूद असामानताओं से कैसे अडे हुए है ।
हम क्या हैं और हम कैसे हैं, यह कई चीजो पर निर्भर करता है ।हम कैसे रहते हैं, कौन-सी भाषाएँ बोलते हैं, क्या खाते हैं, पहनते हैं, कौन-से खेल खेलते हैं और कौन-से उत्सव मनाते हैं - इन सब पर हमारे रहने की जगह के भूगोल और उसके इतिहास का असर पडता है।
अगर आप संक्षेप में ही निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दें तो भी यह अंदाजा लग जाएगा कि भारत कितनी विविधताओं वाला देश है।
संसार में आठ मुख्य धर्म हैं।भारत में उन ही लोग आठों धर्मों के अनुयायी यानी मानने वाले रहते हैं।यहाँ सोलह सौ से ज्यादा भाषाएँ बोली जाती हैं।जो लोगों की मातृभाषाएँ हैं।यहाँ सौ से भी ज्यादा तरह के नृत्य किए जाते हैं।
यह विविधता हमेशा खुश होने का कारण नहीं बनती ।हम उन लोगों के साथ सुरक्षित एवं आआश्वस्त महसूस करते हैं जो हमारी तरह दिखते, बात करते हैं, कपड़े पहनते हैं और हमारी तरह सोचते हैं।कभी-कभी जब हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो हमसे बहुत भिन्न होते हैं, तो हमें वे बहुत अजीब और अपरिचित लग सकते हैं।कई बार हम समझ ही नहीं पाते या जान ही नहीं पाते कि वे हमसे अलग क्यों हैं।लोग अपने से अलग दिखने वालों के बारे में खास तरह की राय बना लेते हैं।
पूर्वाग्रह
उन कथनों को देखिए जो आपको ग्रामीण एवं शहरी लोगों के बारे में सही लगे।जिन कथनों से आप सहमत हैं, उन पर निशान लगाइए।क्या आपके दिमाग में ग्रामीण या शहरी लोगों को लेकर किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह हैं? क्या दूसरे लोगों के दिमाग में भी ये पूर्वाग्रह हैं? लोगों के दिमाग में ये पूर्वाग्रह क्यों होते हैं? जिन पूर्वाग्रहों को आपने अपने आस-पास महसूस किया है उनकी एक सूची बनाइए ।ये पूर्वाग्रह लोगों के व्यवहार को कैसे प्रभावित करते हैं?
ग्रामीण लोग
- आधे से ज्यादा भारतीय गाँवों में रहते हैं।
- गाँव के लोग आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते हैं।
- फसल की बुवाई और कटाई के समय परिवार के लोग खेतों में 12 से 14 घंटों तक काम करते हैं।
- ग्रामीण लोग काम की तलाश में शहरों की ओर स्थानान्तरण करने को बाध्य होते हैं।
शहरी लोग
- शहरी जीवन बड़ा आसान होता है।यहाँ के लोग बिगडे हुए और आलसी होते हैं।
- शहरों में लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ बहुत कम समय बिताते हैं।
- शहरी लोग केवल पैसे की चिंता करते हैं, लोगों की नहीं।
- शहरों में रहना बहुत महँगा पडता है।लोगों की कमाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा किराए और आने-जाने में खर्च हो जाता है।
इनमें से कुछ कथन ग्रामीण लोगों को अज्ञानी की तरह देखते हैं जबकि शहर में रहने वाले लोगों को आलसी एवं सिर्फ पैसे से सरोकार रखने वालों की तरह देखते हैं ।जब हम किसी के बारे में पहले से कोई राय बना लेते हैं और उसे हम अपने दिमाग में बिठा लेते हैं तो वह पूर्वाग्रह का रूप ले लेती है।ज्यादातर यह राय नकारात्मक होती है ।जैसा कि कथनों में दिया गया है - लोगों को आलसी या कंजूस मानना भी पूर्वाग्रह है ।
जब हम यह सोचने लगते हैं कि किसी काम को करने का कोई एक तरीका ही सबसे अच्छा और सही है, तो हम अक्सर दूसरों की इज्जत नहीं कर पाते जो उसी काम को दूसरी तरह से करना पसंद करते हैं।उदाहरण के लिए अगर हम सोचें कि अंग्रेजी सबसे अच्छी भाषा है और दूसरी भाषाएँ महत्त्वपूर्ण नहीं हैं | तो हम अन्य भाषाओं को बहुत नकारात्मक रूप से देखेंगे।परिणामस्वरूप हम उन लोगों की शायद इज्जत नहीं कर पाएँगे जो अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाएँ बोलते हैं ।
हम कई चीजों के बारे में पूर्वाग्रही हो सकते हैं - लोगों के धार्मिक विश्वास, उनकी चमड़ी का रंग, जिस क्षेत्र से वे आते हैं, जिस तरह सेवे बोलते हैं, जैसे कपड़े वे पहनते हैं इत्यादि ।
अक्सर दूसरों के बारे में बनाए गए हमारे पूर्वाग्रह इतने पक्के होते हैं कि हम उनसे दोस्ती नहीं करना चाहते।इस वजह से कई बार हमारा व्यवहार ऐसा होता है कि हम उन्हें दुःख पहुँचा देते हैं ।
लड़के और लड़की में भेदभाव
समाज में लड़के और लड़कियों में कई तरह से भेदभाव किया जाता है ।हम सभी इस भेदभाव से परिचित हैं।एक लड़का या लड़की होने का अर्थ क्या होता है? आपमें से कई लोग कहेंगे, “हम लड़के या लड़की की तरह जन्म लेते हैं।यह तो ऐसे ही होता है।इसमें सोचने वाली क्या बात है?” आइए, देखें कि क्या सच्चाई यही है?
नीचे दिए गए कथनों की सूची में से तालिका को भरिए।अपने उत्तर के कारणों पर चर्चा कीजिए।
- वे बहुत ही सुशील हैं।
- उनका बात करने का तरीका बड़ा सौम्य और मधुर है।
- वे शारीरिक रूप से बलिष्ठ हैं।
- वे शरारती हैं।
- वे नृत्य करने और चित्रकारी में निपुण हैं।
- वे रोते नहीं।
- वे उधमी हैं।
- वे खेल में निपुण हैं।
- वे खाना पकाने में निपुण हैं।
- वे भावुक हैं।
लड़का लड़की
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लोग तरह–तरह की बात करते हैं
में लंगड़ाता हूँ, मेरी बोली लड़खड़ाती है
इसके अलावा और भी बहुत कुछ ।
कभी मैं उदास हो जाता हूं तो कभी दुखी ।
लोग मेरा मजाक उड़ाते है, यह नई बात नहीं ।
अगर तुम मेरी जगह होते तो क्या करते ?
क्या उसका दिमाग सही है?
सिर्फ एसलिए
मेरी टर्मि डगमगाती है
लोग सोचते हैं कि मेरा दिमाग भी डगमगता है|
तुम दूसरों से कितनी... अलग दिखती हो!
मैं एक इंसान हूँ , मुझे शर्म आती है ।
घूरती आँखों से मैं छिप जाना चाहती हूँ ।
आर यू अफ्रंड टू होल्ड माई हँड, शीला धीर ।
ऊपर के चित्रों में जो बच्चे है उन्हें पहले 'विकलांग' कहा जाता था।इस शब्द को बदलकर आज उनके लिए जो शब्द प्रयोग किए जाते हैं वे हैं ‘खास शरूरतों वाले बच्चे’।उनके बारे में लोगों के पूर्वाग्रहों को यहाँ बड़े अक्षरों में दिया गया है।साथ में उनकी अपनी भावनाएँ और विचार भी दिए गए है ।
ये बच्चे अपने से जुड़ी रूदिबद्ध धारणाओं के बारे में क्या कह रहे हैं और - क्यों इस पर चर्चा कीजिए ।
आपकी राय में क्या ख़ास जरूरतों वाले बच्चों को सामान्य स्कूल में पढ़ना चाहिए या उनके लिए अलग स्कूल होने चाहिए? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए ।
अगर हम इस कथन को लें कि 'वे रोते नहीं' तो आप देखेंगे कि यह गुण आमतौर पर लड़कों या पुरुषों के साथ जोड़ा जाता है ।बचपन में जब लड़कों को गिर जाने पर चोट लग जाती है तो माता - पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य अक्सर यह कहकर चुप कराते हैं कि ' रोओ मत।तुम तो लड़के हो।लड़के बहादुर होते हैं, रोते नहीं हैं।जैसे - जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, वे यह विश्वास करने लगते हैं कि लड़के रोते नहीं हैं ।
यहाँ तक कि अगर किसी लड़के को रोना आए भी तो वह अपने आप को रोक लेता है ।लड़का यह मानता है कि रोना कमजोरी की | निशानी है।हालाँकि लड़कों और लड़कियों दोनों का कभी - कभी रोने का मन करता है खासकर जब उन्हें गुस्सा आए या दर्द हो । लेकिन बड़े होने तक लड़के सीख जाते हैं या अपने को सिखा लेते हैं कि रोना नहीं है।अगर एक बड़ा लड़का रोए तो उसे लगता है कि दूसरे उसे चिढ़ाएँगे या उसका मज़ाक बनाएँगे, इसलिए वह दूसरों के सामने रोने से अपने आप को रोक लेता है ।
हम लगातार यह सुनते रहते हैं कि लड़के ऐसे होते हैं 'और’ लड़कियाँ ऐसी होती हैं ।समाज की इन मान्यताओं को हम बिना सोचे - समझे मान लेते हैं।हम विश्वास कर लेते हैं कि हमारा व्यवहार इनके अनुसार ही होना चाहिए।हम सभी लड़कों और लड़कियों को उसी छवि के अनुरूप देखना चाहते हैं ।
रूढिबद्ध धारणाएँ बनाना
जब हम सभी लोगों को एक ही छवि में बाँध देते हैं या उनके बारे में पक्की धारणा बना लेते हैं, तो उसे रूढिबद्ध धारणा कहते हैं।कई बार हम किसी खास देश, धर्म, लिंग के होने के कारण किसी को 'कंजूस', 'अपराधी' या 'बेवकूफ़' ठहराते हैं।ऐसा दरअसल उनके बारे में मन में एक पक्की धारणा बना लेने के कारण होता है।हर देश, धर्म आदि में हमें कंजूस, अपराधी, बेवकूफ़ लोग मिल ही जाते हैं।सिर्फ इसलिए कि कुछ लोग उस समूह में वैसे हैं, पूरे समूह के बारे में ऐसी राय बनाना वाजिब नहीं है।इस प्रकार की धारणाएँ हमें प्रत्येक इंसान को एक अनोखे और अलग व्यक्ति की तरह देखने से रोक देती हैं।हम नहीं देख पाते कि उस व्यक्ति के अपने कुछ खास गुणऔर क्षमताएँ हैं जो दूसरों से अलग हैं ।
रूढिबद्ध धारणाएँ बड़ी संख्या में लोगों को एक ही प्रकार के खाँचे में जड़ देती हैं।जैसे माना जाता था कि हवाई जहाज उड़ाने का काम लड़कियाँ नहीं कर सकतीं।इन धारणाओं का असर हम पर पड़ता हैं।कई बार ये धारणाए हमें ऐसे कम करने से रोकती हैं जिनको करने की काबलियत शायद हममें हो|
कुछ मुसलमानों के बारे में यह आम रूढिबद्ध धारणा है कि वे लड़कियों को पढ़ाने में रुचि नहीं लेते, इसीलिए उन्हें स्कूल नहीं भेजते ।जबकि अध्ययन यह दिखा रहे हैं कि मुसलमानों की गरीबी इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण है।गरीबी की वजह से ही वे लड़कियों को स्कूल नहीं भेज पाते या स्कूल से जल्दी निकाल लेते हैं।
जहाँ पर भी गरीबों तक शिक्षा पहुँचाने के प्रयास किए गए हैं, वहाँ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने में रुचि दिखाई है।उदाहरण के तौर पर केरल में स्कूल प्रायः घर के पास हैं।सरकारी बस की सुविधा बहुत अच्छी है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों को स्कूल पहुंचने में मदद मिलती है ।उनमें 60 प्रतिशत से ज्यादा महिला शिक्षक हैं ।इन सभी कारकों ने बहुत सारे गरीब परिवार के बच्चों को स्कूल जाने में मदद की है जिनमें मुसलमान लड़कियाँ भी शामिल हैं।
दूसरे राज्यों में जहाँ ऐसे प्रयास नहीं किए गए, वहाँ गरीब परिवारों के बच्चों को स्कूल जाने में मुश्किल आती है - चाहे वे मुसलमान हो, जनजातीय हों या अनुसूचित जाति के हों।जाहिर है कि मुसलमान लड़कियों को स्कूल से गैर-हाजिरी का कारण धर्म नहीं, गरीबी है।
असमानता एवं भेदभाव
भेदभाव तब होता है जब लोग पूर्वाग्रहों या रूढिबद्ध धारणाओं के आधार पर व्यवहार करते हैं ।अगर आप लोगों को नीचा दिखाने के लिए कुछ करते हैं,
अगर आप उन्हें कुछ गतिविधियों में भाग लेने से रोकते हैं, किसी खास नौकरी को करने से रोकते हैं या किसी मोहल्ले में रहने नहीं देते, एक ही कुएँ या हैंडपंप से पानी नहीं लेने देते और दूसरों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे कप या गिलास में चाय नहीं पीने देते तो इसका मतलब है कि आप उनके साथ भेदभाव कर रहे हैं ।
भेदभाव कई कारणों से हो सकता है।आप याद करें कि पिछले पाठ में समीर एक और समीर दो एक - दूसरे से बहुत भिन्न थे।उदाहरण के लिए उनका धर्म अलग था।यह विविधता का एक पहलू है।पर यह भेदभाव का कारण भी बन सकता है।ऐसा तब होता है जब लोग अपने भिन्न प्रथाओं और रिवाजों को निम्न कोटि का मानते हैं ।
दोनों समीरों में एक और अंतर उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि का था समीर दो गरीब
विविधता का पहलू नहीं है।यह तो असमानता है।बहुत लोगों के पास अपने खाने, कपड़े और घर की मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए साधन और पैसे नहीं होते हैं।इस कारण दफ़्तरों, अस्पतालों, स्कूलों आदि में उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
कुछ लोगों को विविधता और असमानता पर आधारित दोनों ही तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है।एक तो इस कारण कि वे उस समुदाय के सदस्य हैं जिनकी संस्कृति को मूल्यवान नहीं माना जाता।ऊपर से यदि वे गरीब हैं और उनके पास अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के साधन नहीं, तो इस आधार पर भी भेदभाव किया जाता है।ऐसे दोहरे भेदभाव का सामना कई जनजातीय लोगों, धार्मिक समूहों और खास क्षेत्र के लोगों को करना पड़ता है।
भेदभाव का सामना करने पर
अपनी आजीविका चलाने के लिए लोग अलग-अलग तरह के काम करते हैं – जैसे पढ़ाना, बर्तन बनाना, मछली पकड़ना, बढ़ईगिरी, खेती एवं बुनाई इत्यादि।लेकिन कुछ कामों को दूसरों के मुकाबले अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।सफ़ाई करना, कपड़े धोना, बाल काटना, कचरा उठाना जैसे कामों को समाज में कम महत्त्व का माना जाता है।इसलिए जो लोग इन कामों को करते हैं उनको गंदा और अपवित्र माना जाता है।यह जाति व्यवस्था का एक बड़ा ही महत्त्वपूर्ण पहलू है।जाति व्यवस्था में लोगों के समूहों
दलित वह शब्द है जो नीची कही जाने वाली जाति के लोग अपनी पहचान के रूप में इस्तेमाल करते हैं।वे इस शब्द को 'अछूत' से ज्यादा पसंद करते हैं।दलित का मतलब है जिन्हें 'दबाया गया', 'कुचला गया।दलितों के अनुसार यह शब्द दर्शाता है कि कैसे सामाजिक पूर्वाग्रहों और भेदभाव ने दलित लोगों को 'दबाकर रखा है’।सरकार ऐसे लोगों को 'अनुसूचित जाति' के वर्ग में रखती है।
को एक तरह की सीढ़ी के रूप में रखा गया जिसमें एक जाति, दूसरी जाति के ऊपर या नीचे थी।जिन्होंने अपने आपको इस सीढ़ी में सबसे ऊपर रखा, उन्होंने अपने को ऊँची जाति का और उत्कृष्ट कहा।जिन समूहों को इस
सीढ़ी के तले में रखा गया उनको 'अछूत' और अयोग्य कहा गया।जाति प्रथा के नियम एकदम निश्चित थे।इन 'अछूतों' को दिए गए काम के अलावा और कोई काम करने की इजाजत नहीं थी।उदाहरण के लिए कुछ समूहों को सिर्फ कचरा उठाने और मरे हुए जानवरों को गाँव से हटाने की इजाजत थी।उन्हें ऊँची जाति के लोगों के घर में घुसने, गाँव के कुएँ से पानी लेने और यहाँ तक कि मंदिर में घुसने की भी इजाजत नहीं थी।उनके बच्चे दूसरी जाति के बच्चों के साथ स्कूल में बैठ नहीं सकते थे।इस तरह ऊँची जाति के लोगों को जो अधिकार हासिल था, उससे उन्होंने तथाकथित अछूतों को वंचित रखा।
रूढिबद्ध धारणाओ एवं भेदभाव में क्या अंतर है?
आपके अनुसार जिस व्यक्ति के साथ भेदभाव होता है उसे कैसा महसूस होता है ?
अगले पृष्ठ पर हम यह देखेंगे कि कैसे भारत की एक मशहूर हस्ती को भेदभाव का सामना करना पड़ा था।यह भाग हमें यह समझने में मदद करेगा कि कैसे जाति के तहत बहुत बड़ी संख्या में लोग भेदभाव के शिकार हुए।
भारत के एक महान नेता डा. भीमराव अंबेडकर ने जाति व्यवस्था पर आधारित भेदभाव के अपने अनुभवों के बारे में लिखा है।यह अनुभव उनको 1901 में हुआ था जब वे केवल 9 साल के थे।वे महाराष्ट्र में
डा. भीम राव अंबेडकर (1891-1956) को भारतीय संविधान के पिता एवं दलितों के सबसे बड़े नेता के रूप में जाना जाता है।डा. अंबेडकर ने दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी।उनका महार जाति में जन्म हुआ था जो अछूत मानी जाती थी।महार लोग गरीब होते थे, उनके पास जमीन नहीं थी और उनके बच्चों को वही काम करना पड़ता था जो वे खुद करते थे।उन्हें गाँव के बाहर रहना पड़ता था और गाँव के अंदर आने की इजाजत नहीं थी।
अंबेडकर अपनी जाति के पहले व्यक्ति थे जिसने अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और वकील बनने के लिए इंग्लैंड गए।उन्होंने दलितों को अपने बच्चों को स्कूल - कॉलेज भेजने के लिए प्रोत्साहित किया।दलितों से अलग–अलग तरह की सरकारी नौकरी करने को कहा ताकि वे जाति व्यवस्था से बाहर निकल पाएँ।
दलितों के मंदिर में प्रवेश के लिए जो कई प्रयास किए जा रहे थे, उनका अंबेडकर ने नेतृत्व किया।उन्हें ऐसे धर्म की तलाश थी जो सबको समान निगाह से देखे।जीवन में आगे चल कर उन्होंने धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म को अपनाया।उनका मानना था कि दलितों को जाति प्रथा के खिलाफ अवश्य लड़ना चाहिए और ऐसा समाज बनाने की तरफ काम करना चाहिए जिसमें सबकी इज्जत हो, न कि कुछ ही लोगों की।
कोरेगाँव में अपने भाइयों के साथ पिता से मिलने गए थे ।
बड़ी देर हमने इंतज़ार किया, पर कोई नहीं आया।एक घंटा बीत गया तो स्टेशन मास्टर पूछने आ गए।उन्होंने हमसे हमारे टिकट माँगे जो हमने दिखा दिए।उन्होंने पूछा कि हम वहाँ क्यों रुके हुए थे।हमने बताया कि हमें कोरेगाँव जाना था और हम पिताजी या उनके नौकर के आने का इंतजार कर रहे थे।लेकिन दोनों में से कोई भी नहीं पहुँच पाया था और हमें पता नहीं था कि कोरेगाँव कैसे पहुंचते हैं।हमने बहुत अच्छे कपड़े पहन रखे थे।हमारे कपड़ों और बोली से कोई भी यह अंदाज़ नहीं लगा सकता था कि हम अछूतों के बच्चे थे। निश्चय ही स्टेशन मास्टर को यह लगा कि हम ब्राह्मण बच्चे हैं और वे हमारी मुश्किल को देखकर बड़े परेशान हुए।जैसा कि हिंदुओं में होता ही है, स्टेशन मास्टर ने हमसे पूछा कि हम कौन हैं।बिना एक पल भी सोचे मेरे मुँह से निकल गया कि हम महार हैं।( बंबई प्रांत में महार समुदाय को अछूत माना जाता था।) उनको एकदम से धक्का लगा।वे भौंचक्के रह गए।उनके चेहरे पर अचानक परिवर्तन हुआ।हमने देख लिया कि एक अजीब - सी घृणा की भावना उन पर हावी हो गई थी।उन्होंने जैसे ही मेरा जवाब सुना, वे अपने कमरे में वापस चले गए और हम वहीं के वहीं खड़े रह गए।पंद्रह–बीस मिनट बीत गए, सूरज बिल्कुल छिप - सा गया था।पिताजी आए नहीं थे और न ही उनका नौकर और अब स्टेशन मास्टर भी हमें छोड़कर चले गए थे।हम काफी घबराए हुए थे।यात्रा के शुरू में जो खुशी और उत्साह की भावना थी उसकी जगह अब अत्यधिक उदासी ने ले ली थी।
आधे घंटे के बाद स्टेशन मास्टर लौटकर आए तो पूछा कि हम क्या करने की सोच रहे हैं।हमने कहा कि अगर हमें किराए पर एक बैलगाड़ी मिल जाती तो हम कोरेगांव जा सकते थे।अगर कोरेगाँव ज्यादा दूर नहीं हो तो हम फौरन निकलना चाहते थे।वहाँ किराए पर कई बैलगाड़ियाँ चल रही थीं।लेकिन मैंने स्टेशन
मास्टर को जो जवाब दिया था कि हम महार हैं, उसका पता सबको चल गया था।कोई भी गाड़ीवान अछूत वर्ग की सवारी को ले जाकर अपने आप को गंदा और नीचा नहीं बनाना चाहता था।हम दुगुना किराया देने को तैयार थे, पर हमें एहसास हुआ कि बात पैसे से नहीं बन सकती थी।स्टेशन मास्टर जो हमारे लिए गाड़ीवानों से मोल - तोल कर रहे थे, चुपचाप खड़े हो गए।समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें?
स्रोत: डा. बी. आर. अंबेडकर, राइटिंग एंड स्पीचेज़ खंड 12, संपादन: वंसत मून, बंबई शिक्षा विभाग, महाराष्ट्र सरकार
कल्पना करके देखिए कि यह कितना मुश्किल होगा अगर लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने न दिया जाए।यह कितना अपमानजनक और दुखदायी होगा अगर लोग आपसे दूर - दूर रहें, आपको छूने से मना करें और आपको पानी न पीने दें ।यह छोटी–सी घटना दिखाती है कि कैसे गाड़ी से एक से दूसरी जगह जाने के साधारण काम की सुविधा भी इन बच्चों के पास नहीं थी जबकि वे पैसा दे सकते थे।स्टेशन के सभी गाड़ीवानों ने बच्चों को ले जाने से मना कर दिया।उन्होंने बच्चों के साथ भेदभाव भरा व्यवहार किया।
इस कहानी से यह बिल्कुल साफ़ है कि जाति पर आधारित भेदभाव न केवल दलितों को कई गतिविधियों से वंचित रखता है, बल्कि वह उन्हें आदर और सम्मान भी नहीं मिलने देता जो दूसरों को मिलता है।
समानता के लिए संघर्ष
ब्रिटिश शासन से आजादी पाने के लिए जो संघर्ष किया गया था उसमें समानता के व्यवहार के लिए किया गया संघर्ष भी शामिल था।दलितों, औरतों, जनजातीय लोगों और किसानों ने अपने जीवन में जिस गैर–बराबरी का अनुभव किया, उसके खिलाफ़ उन्होंने लड़ाई लड़ी।
जैसा कि पहले भी बात हुई, बहुत सारे दलितों ने संगठित होकर मंदिर में प्रवेश पाने के लिए संघर्ष किया।महिलाओं ने माँग की कि जैसे पुरुषों के पास शिक्षा का अधिकार है
वैसे उन्हें भी अधिकार मिले।किसानों और दलितों ने अपने आपको ज़मींदारों और उनकी ऊँची ब्याज की दर से छुटकारा दिलाने के लिए संघर्ष किया।
1947 में भारत जब आजाद हुआ और एक राष्ट्र बना तो हमारे नेताओं ने समाज में व्याप्त कई तरह की असमानताओं पर विचार किया।संविधान को लिखने वाले लोग भी इस बात से अवगत थे कि हमारे समाज में कैसे भेदभाव किया जाता है और लोगों ने उसके खिलाफ किस तरह संघर्ष किया है।कई नेता इन लड़ाइयों के हिस्सा थे जैसे डा. अंबेडकर।इसलिए नेताओं ने संविधान में ऐसी दृष्टि और लक्ष्य रखा जिससे भारत में सभी लोगों को बराबर माना जाए।समानता को एक अहम मूल्य की तरह माना गया है जो हम सभी को एक भारतीय के रूप में जोड़ती है।प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और समान अवसर प्राप्त हैं।अस्पृश्यता यानी छुआछूत को अपराध की तरह देखा जाता है और
दलित के अलावा कई अन्य समुदाय हैं जिनके साथ भेदभाव किया जाता है।क्या आप भेदभाव के कुछ अन्य उदाहरण सोच सकते हैं ?
उन तरीकों पर चर्चा कीजिए जिनके द्वारा ‘खास ज़रूरतों वाले’ लोगों के साथ भेदभाव किया जा सकता है।
इसे कानूनी रूप से खत्म कर दिया गया है।लोग अपनी पसंद का काम चुनने के लिए बिल्कुल आजाद हैं।नौकरियाँ सभी लोगों के लिए खुली हुई हैं।इन सबके अलावा संविधान ने सरकार पर यह विशेष जिम्मेदारी डाली थी कि वह गरीबों और मुख्यधारा से अलग–थलग पड़ गए समुदायों को इस समानता के अधिकार के फायदे दिलवाने के लिए विशेष कदम उठाए।
भारत का संविधान लिखने वाली समिति के कुछ सदस्य
संविधान के लेखकों ने यह भी कहा कि विविधता की इज्जत करना, उसे मूल्यवान मानना समानता सुनिश्चित करने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण कारक है।उन्होंने यह महसूस किया कि लोगों को अपने धर्म का पालन करने, अपनी भाषा बोलने, अपने त्योहार मनाने और अपने आप को खुले रूप से अभिव्यक्त करने की आजादी होनी चाहिए।उन्होंने कहा कि कोई एक भाषा, धर्म या त्योहार सबके लिए अनिवार्य नहीं बनना चाहिए।उन्होंने जोर दिया कि सरकार सभी धर्मों को बराबर मानेगी।इसीलिए भारत एक र्मनिरपेक्ष देश है जहाँ लोग बिना भेदभाव के अपने धर्म का पालन करते हैं।इसे हमारी एकता के महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जाता इकट्ठे रहते हैं और एक दूसरे की इज्जत करते हैं।
हालाँकि हमारे संविधान में इन विचारों पर जोर दिया गया है, पर यह पाठ इसी बात को उठाता है कि असमानता आज भी मौजूद है।समानता वह मूल्य है जिसके लिए हमें निरंतर संघर्ष करते रहना होगा।भारतीयों के लिए समानता का मूल्य वास्तविक जीवन का हिस्सा बने , सच्चाई बने इसके लिए लोगों के संघर्ष, उनके आंदोलन और सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदम बहुत जरूरी हैं।
अभ्यास
- निलिखित कथनों का मेल कराइए ।रूढिबद्ध धारणाओं को कैसे चुनौती दी जा रही है, इस पर चर्चा कीजिए :
(क) दो डॉक्टर खाना खाने बैठे थे और उनमें से एक ने मोबाइल पर फोन करके
(ख) जिस बच्चे ने चित्रकला प्रतियोगिता जीती, वह मंच पर
(ग) संसार के सबसे तेज़ धावकों में से एक
(घ) वह बहुत अमीर नहीं थी, लेकिन उसका
- दमा का पुराना मरीज़ है।
- एक अंतरिक्ष यात्री बनने सपना अंततः पूरा हुआ।
- अपनी बेटी से बात की जो उसी समय स्कूल से लौटी थी।
- पुरस्कार लेने के लिए एक पहियोंवाली कुर्सी पर गया।
- लड़कियाँ माँ - बाप के लिए बोझ हैं, यह रूढिबद्ध धारणा एक लड़की के जीवन को किस तरह प्रभावित करती है? उसके अलग - अलग पाँच प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- भारत का संविधान समानता के बारे में क्या कहता है? आपको यह क्यों लगता है कि सभी लोगों में समानता होना जरूरी है?
- कई बार लोग हमारी उपस्थिति में ही पूर्वाग्रह से भरा आचरण करते हैं।ऐसे में अक्सर हम कोई विरोध करने की स्थिति में नहीं रहते, क्योंकि मुँह
पर तुरंत कुछ कहना मुश्किल जान पड़ता है।अपनी कक्षा को दो समूहों में | बाँटिए और प्रत्येक समूह इस पर चर्चा करे कि दी गई परिस्थिति में वे क्या करेंग :
(क) गरीब होने के कारण एक सहपाठी को आपका दोस्त चिढ़ा रहा है।
(ख) आप अपने परिवार के साथ टी. वी. देख रहे हैं और उनमें से कोई सदस्य किसी खास धार्मिक समुदाय पर पूर्वाग्रहग्रस्त टिप्पणी करता है।
(ग) आपकी कक्षा के बच्चे एक लड़की के साथ मिलकर खाना खाने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि वह गंदी है।
(घ) किसी समुदाय के खास उच्चारण का मजाक उड़ाते हुए कोई आपको चुटकुला सुनाता है।
(ङ) लड़के, लड़कियों पर टिप्पणी कर रहे हैं कि लड़कियाँ उनकी तरह नहीं खेल सकतीं।
उपर्युक्त परिस्थितियों में विभिन्न समूहों ने कैसा बर्ताव करने की बात की है, इस पर कक्षा में चर्चा कीजिए, साथ ही इन मुद्दों को उठाते समय कक्षा में कौन - सी समस्याएँ आ सकती हैं, इस पर भी बातचीत कीजिए|