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एक गाँव के मुकाबले शहर ज़्यादा बड़ा और अधिक फैला हुआ होता है। शहर की गलियाँ ज्यादा चौड़ी होती हैं, यहाँ के बाजारों में ज्यादा भीड़-भाड़ होती है। पानी और बिजली की सुविधाएँ होती हैं, अस्पताल होते हैं। यहाँ बहुत ज्यादा वाहन होते हैं और यातायात को नियंत्रित करना पड़ता है। क्या आपने कभी सोचा है कि यह सब इतने सुचारु रूप से कैसे चलता है, कौन-सी संस्था इन सबके लिए जिम्मेदार होती है? कैसे निर्णय लिए जाते हैं? कैसे योजनाएं बनाई जाती हैं? कौन लोग हैं। जो यह सारा काम करते हैं? आइए, उतर ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं। |
इतवार की एक अलसायी हुई दोपहर थी जब माला और उसके साथी शंकर, जहाँगीर और रेहाना गली में क्रिकेट खेल रहे थे। शंकर ने बड़ा अच्छा ओवर फेंका था और रेहाना आउट होते-होते बची थी। रेहाना के आउट न होने से शंकर हताश हो रहा था। इसीलिए उसने इस उम्मीद से कि वह कैच आउट हो जाएगी एक शार्ट बॉल फेंक दी। हुआ उल्टा ही। रेहाना ने इतनी तेजी से बल्ला घुमाया कि गेंद ऊपर गई और गली की ट्यूबलाइट टूट गई। रेहाना चिल्लाई, “अरे! यह मैंने क्या कर दिया?" तो शंकर तपाक से बोला,“ अरे हम यह नियम बनाना भूल गए थे कि अगर तुम्हारी गेंद से गली की ट्यूबलाइट टूट जाएगी तो तुम आउट मानी जाओगी।" तीनों ने ही तब शंकर को विकेट की चिंता छोड़ने के लिए कहा क्योंकि जो हुआ वे उस बारे में ज्यादा चितित और परेशान हो रहे थे।
पिछले हफ्ते उनसे निर्मला मौसी की खिड़की टूट गई थी जिसको बदलने के लिए अपने जेब-खर्च में से पैसे देने पड़े थे। क्या
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अब दोबारा जेब-खर्च में से पैसे देने पड़ेंगे? और ये पैसे देंगे किसको? गली की ट्यूबलाइट बदलता कौन है?
माला का घर सबसे पास था। चारों भाग कर माला के घर गए और उसकी माँ को सब कुछ बता दिया। सारी बात सुनकर माला की माँ ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ खास तो पता नहीं, बस यही मालूम है कि यह नगर निगम की जिम्मेदारी होती है। उन्होंने सुझाया, “यास्मीन खाला से पूछना चाहिए, वे हाल ही में नगर निगम से सेवानिवृत हुई हैं। जाओ उनसे पूछ लो और माला, तुम जल्दी घर वापस आना।
यास्मीन खाला उसी गली में रहती थीं और माला की माँ से उनकी बहुत अच्छी दोस्ती भी थी। चारों दौड़कर खाला के घर पहुंचे और जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला वे एक साथ पूरा किस्सा सुनाने लगे। उनका सवाल सुनकर
यास्मीन खाला बड़े जोर से हँस पड़ी और बोली, “कोई एक व्यक्ति नहीं है जिसको तुम पैसा दे सकते हो। एक बहुत बड़ी संस्था होती है जिसको नगर निगम कहते हैं। यह सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था, कूड़ा इकट्ठा करने, पानी की सुविधा उपलब्ध कराने और सड़कों व बाजारों की सफाई का काम करती है।"
माला बोली, "हाँ-हाँ, मैंने नगर निगम के बारे में सुना है। मैंने शहर में बोर्ड देखे हैं जो नगर निगम द्रारा लोगों को मलेरिया के बारे में बताने के लिए लगाए जाते हैं।"
खाला बोली, “तुम बिल्कुल सही कह रही हो। नगर निगम का काम यह सुनिश्चित करना भी है कि शहर में बीमारियाँ न फैलें। यह स्कूल स्थापित करता है और उन्हें चलाता है। शहर में दवाखाने और अस्पताल चलाता है। यह बाग-बगीचों का रख-रखाव भी करता है।" उन्होंने आगे जोड़ा, “हमारा पुणे शहर बहुत ही बड़ा शहर है और यहाँ नगर प्रशासन चलाने वाले संस्थान को नगर निगम कहते हैं। छोटे कस्बों में इसे नगर पालिका कहते हैं।"
क्या आप नगर पालिका के कार्यों की सूची बनाने में शंकर की मदद कर सकती हैं:
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निगम पार्षद एवं प्रशासनिक कर्मचारी
“यास्मीन खाला, मुझे बड़ी उत्सुकता हो रही है कि यह फैसला लेता कौन है कि पार्क कहाँ बनाया जाए? जब आप नगर निगम में काम करती थीं तो क्या ऐसे मजेदार निर्णय भी लेने पड़ते थे?" रेहाना ने पूछा।
खाला ने जवाब दिया, "नहीं रेहाना, मैं तो निगम के लेखा विभाग (एकाउंट) में थी, बस लोगों की मासिक तनख्वाह की पर्चियाँ बनाती थी। चूकि शहर का आकार बहुत बड़ा होता है, इसलिए नगर निगम को कई निर्णय लेने होते हैं। इसी तरह शहर को साफ़ रखने के लिए बहुत काम करना पड़ता है। ज्यादातर निगम पार्षद ही यह निर्णय लेते हैं कि अस्पताल या पार्क कहाँ बनेगा।"
शहर को अलग-अलग वाडौं में बाँटा जाता है और हर वार्ड से एक पार्षद का चुनाव होता हैं। है। नगर निगम के कुछ निर्णय ऐसे होते हैं जो सारे शहर को प्रभावित करते हैं। ऐसे जटिल निर्णय पार्षदों के समूह द्रारा लिए जाते हैं। कुछ पार्षद मिलकर समितियाँ बनाते हैं जो विभिन्न मुद्दों पर निर्णय लेने का काम करते हैं। मुद्दों पर विचार-विमर्श करके निर्णय लेती हैं - उदाहरणस्वरूप एक बस स्टैंड को बेहतर बनाना है या किसी भीड़भाड़ वाले बाजार का कचरा ज्यादा नियमित रूप से साफ़ करना है या फिर शहर के मुख्य नाले की सफ़ाई होनी है। पार्षदों की समितियाँ ही पानी, कचरा जमा करने और सड़कों पर रोशनी आदि की व्यवस्था करती हैं।
निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थान भरिए:
- पंचायत के चुने हुए सदस्यों को _____ कहते हैं।
- शहर विभिन्न _____ में बँटा हुआ होता है।
- नगर निगम के चुने हुए सदस्यों को _____ कहते हैं।
- पार्षदों के समूह उन मुद्दों पर काम करते हैं जो _____ को प्रभावित करते हैं।
- पंचायत और नगर पालिका के चुनाव प्रत्येक _____ वर्ष में होते हैं
- पार्षद अगर निर्णय लेते हैं तो आयुक्त के नेतृत्व में दफ्तर के प्रशासनिक कर्मचारी उन निर्णयों _____ ।
जब एक वार्ड के अंदर की समस्या होती है तो वार्ड के लोग पार्षद से संपर्क कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर बिजली के खतरनाक तार लटक कर नीचे आ जाएँ तो स्थानीय पार्षद बिजली विभाग के अधिकारियों से बात करने में मदद कर सकते हैं।
जहाँ पार्षदों की समितियाँ एवं पार्षद विभिन्न मुदो पर निर्णय लेने का का काम आयुक्त (कमिश्नर) और प्रशासनिक कर्मचारी करते हैं। आयुक्त और प्रशासनिक कर्मचारियों की सरकार द्रारा नियुक्ति की जाती है, जबकि पार्षद निर्वाचित होते हैं।
"तो नगर निगम में ये निर्णय लिए कैसे जाते हैं?" रेहाना ने पूछा। वह कभी सोचना बंद ही नहीं करती।
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बच्चों के सवालों से खुश होते हुए यास्मीन खाला ने जवाब दिया, "सारे वार्डों के पार्षद मिलते हैं और सबकी सम्मिलित राय से एक बजट बनाया जाता है। उसी बजट के अनुसार पैसा खर्च किया जाता है। पार्षद यह प्रयास करते हैं कि उनके वार्ड की विशिष्ट ज़रूरतें परिषद् के सामने रखी जा सकें। फिर ये निर्णय प्रशासनिक कर्मचारियों द्रारा क्रियान्वित किए जाते हैं।" खाला बड़ी खुश थीं क्योंकि किसी बड़े व्यक्ति
नगर निगम को पैसा कहाँ से मिलता है?
इतने सारे काम करने के लिए बहुत सारा पैसा चाहिए। निगम यह राशि अलग-अलग तरीकों से इकट्ठा करता है। इस राशि का बड़ा भाग लोगों द्रारा दिए गए कर (टैक्स) से आता है। कर वह राशि है जो लोग सरकार द्रारा उपलब्ध कराई गई सुविधाओं के लिए सरकार को देते हैं।
जिन लोगों के अपने घर होते हैं उन्हें संपति कर देना होता है और साथ ही पानी एवं अन्य सुविधाओं के लिए भी कर देना होता है। जितना बड़ा घर उतना ज्यादा कर। निगम के पास जितना पैसा आता है उसमें संपति कर से केवल 25-30 प्रतिशत पैसा ही आता है।
शिक्षा पर भी कर लगता है। अगर आप किसी दुकान या होटल के मालिक हैं तो उस पर भी कर देना पड़ता है। अगली बार जब आप सिनेमा देखने जाइएगा तो टिकट पर ध्यान से देखिएगा, हमें मनोरंजन के लिए भी कर देना पड़ता है।
इस तरह अमीर लोग संपति कर देते हैं, वहीं जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा सामान्य तरह के कर अधिक देता है।
ने तो आज तक उनके काम के बारे में पूछा नहीं था। बच्चों के सवालों ने उन्हें अपने अनुभव बाँटने का एक मौका दिया था।
शंकर ने बड़ी उत्सुकता से पूछा, “अपना शहर तो इतना बड़ा है। इसकी देखभाल के लिए बहुत लोगों की ज़रूरत पड़ती होगी! खाला, तब तो नगर निगम में ढेर सारे लोग काम करते होंगे?" वह अब तक क्रिकेट के मैच और अपने अधूरे ओवर की बात बिल्कुल भूल चुका था।
“दरअसल शहर में काम को अलग-अलग विभागों में बाँट देते हैं। जैसे जल विभाग होता है, कचरा जमा करने का विभाग, उधानों की देखभाल का विभाग, सड़क व्यवस्था का विभाग, इत्यादि। मैं नगर-निगम के सफाई विभाग में थी, उसी के लेखा विभाग में हिसाब-किताब का काम करती थी।" खाला बड़े इत्मीनान से बता रहीं थीं। फिर बच्चों के खाने के लिए रसोई से कबाब लाने चल पड़ी।
जहाँगीर ने रसोई में खड़े-खड़े तेजी से अपने कबाब खा लिए, फिर ऊँची आवाज में वहीं से बोला, “यास्मीन खाला, नगर निगम जिस कूड़े-कचरे को इकट्ठा करता है वह जाता कहाँ है?" बाकी बच्चे अभी कबाब खा ही रहे थे। यास्मीन खाला ने बताना शुरू किया, “इस सवाल का जवाब बड़ा मजेदार है। जैसा कि तुम जानते हो कचरा लगभग हर गली में ही फैला रहता है। पहले हमारे पड़ोस का भी यही हाल था, चारों तरफ कूड़ा फैला रहता था। अगर कूड़े को इकट्ठा करके हटाया न जाए तो मक्खियाँ भिनभिनाती रहती हैं और आस-पास कुत्तों, चूहों
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का जमावड़ा हो जाता है। लोग इसकी बदबू से बीमार भी पड़ जाते हैं। एक और बुरी बात यह थी कि बच्चों ने गली में क्रिकेट खेलना छोड़ दिया था क्योंकि उनके घरवालों को यही डर लगा रहता था कि गली में अधिक समय रहने से बच्चे बीमार न पड़ जाएँ।
पुनर्चक्रण कोई नई चीश नहीं है। तस्वीर में दिख रहे व्यक्ति की तरह कई लोग बड़े लंबे समय से कागज, काँच, प्लास्टिक और धातु का पुनर्चक्रण कर रहे हैं। घरेलू प्लास्टिक के पुनर्चक्रण में कबाड़ीवाला एक मुख्य भूमिका निभाता है।
लोगों का विरोध
यास्मीन खाला ने अपनी बात जारी रखी, “मोहल्ले की औरतें इन सबसे बड़ी नाराज थीं। वे सलाह लेने मेरे पास भी आईं। मैंने उन्हें कहा कि मैं विभाग के किसी अधिकारी से इस मामले में बात करने की कोशिश करूंगी। मगर मैं भी निश्चित तौर पर यह बात नहीं कह सकती थी कि इसमें कितना समय लगेगा। इस पर गंगाबाई ने बताया कि हमें अपने वार्ड के पार्षद के पास इस समस्या को लेकर जाना चाहिए, आखिर वोट देकर उसे हमने चुना है। उसके सामने हमें विरोध प्रदर्शन करना चाहिए।
गंगाबाई ने महिलाओं के एक छोटे समूह को इकट्ठा किया और पार्षद के घर पहुँच गईं। सभी औरतें घर के सामने जाकर नारे लगाने लगी तब पार्षद घर के बाहर निकले और उन्होंने उनकी समस्या के बारे में पूछा। गंगाबाई ने अपने मोहल्ले की खराब हालत बयान की। पार्षद ने उन महिलाओं से वादा किया कि वे अगले दिन उनके साथ आयुक्त से मिलने जाएंगे। साथ ही उन्होंने गंगाबाई को मोहल्ले के सारे वयस्कों से एक अर्जी पर दस्तखत करवाने के लिए कहा। अर्जी यह थी कि उनके मोहल्ले से कचरा उठाने की नियमित व्यवस्था की जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि कल आयुक्त से मिलने जाते समय स्थानीय सफाई अभियंता यानी इंजीनियर को भी साथ ले जाना अच्छा रहेगा। इससे फायदा होगा क्योंकि सफ़ाई अभियंता भी आयुक्त को बता सकेगा कि हालत कितनी खराब है।
उस दिन पूरी शाम बच्चे घर-घर का ने चक्कर लगाते रहे ताकि अर्जी पर ज्यादा से
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ज्यादा परिवारों के लोगों के दस्तखत लिए जा सके। अगली सुबह बहुत बड़ी संख्या में महिलाएँ, पार्षद और सफाई अभियंता के साथ नगर निगम के दफ्तर गईं। आयुक्त पूरे समूह से मिले, पर वे बहाना बनाने लगे कि नगर निगम के पास पर्याप्त संख्या में ट्रक उपलब्ध नहीं हैं। गंगाबाई ने तपाक से कहा, "लेकिन लगता है कि आपके पास अमीर इलाकों से कचरा उठाने के लिए पूरे ट्रक हैं।"
जहाँगीर ने झट से कहा, “इससे आयुक्त का तो मुँह ही बंद हो गया होगा।"
खाला के सेवानिवृत होने के बाद से क्या-क्या बदला है?
यास्मीन खाला ने बच्चों को जो नहीं बताया वह यह है कि हाल के समय में पैसा बचाने के लिए कई नगर निगमों ने कचरा उठाने और उसे ठिकाने लगाने के लिए निजी ठेकेदार रख लिए हैं। इसको निजीकरण कहते हैं। इसका मतलब है कि जो काम पहले सरकारी कर्मचारी करते थे वे काम अब निजी कंपनियाँ करती हैं। निजी ठेकेदार जिन मजदूरों को कचरा जमा करने और उठाने के काम पर लगाते हैं, उन्हें बहुत कम पैसा देते हैं। उन
मजदूरों की नौकरी अस्थायी होती है। कचरा उठाने का काम काफी खतरनाक भी होता है। अक्सर उनके पास अपनी सुरक्षा के साधन नहीं होते हैं। अगर काम करते हुए वे घायल हो जाएँ तो उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं।
"और नहीं तो क्या! उसने फौरन इंतजाम करने के लिए कहा।" यास्मीन खाला ने बताया, "गंगाबाई ने आयुक्त को चेतावनी दी कि अगर दो दिन के अंदर काम नहीं हुआ तो नगर निगम के सामने बहुत बड़ी संख्या में महिलाएँ धरने पर बैठ जाएंगी”।
"तो क्या गलियों की सफाई हो गई?" रेहाना ने झट से पूछा, जो कभी चीजों को अधूरा नहीं छोड़ती थी।
“दो दिन तक कुछ भी नहीं हुआ। वो तो जब एक बहुत बड़े समूह ने विरोध प्रदर्शन किया, जोरदार नारे लगाए तब जाकर बात बनी। अब मोहल्ले की सफाई नियमित रूप से होने लगी है।"
गंगाबाई किस बात का विरोध कर रही थी?
आपके हिसाब से गंगाबाई ने पार्षद के पास जाने की बात क्यों सोची?
जब आयुक्त ने यह कहा कि शहर में ट्रकों की संख्या पर्याप्त नहीं है तो गंगाबाई ने क्या कहा?
"यह तो बिल्कुल बंबइया सिनेमा की तरह सुखद अंत हुआ", माला ने कहा। वह अपने आप को नेतृत्व करने वाली गंगाबाई की भूमिका में देखने का सपना देख रही थी।
सभी बच्चों को गंगाबाई की कहानी सुनकर बहुत मज़ा आया। उन्हें इसका आभास तो था
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ही कि मोहल्ले में गंगाबाई की खासी इज्जत थी और लोग उन्हें बहुत मानते थे, मगर उसका कारण उन्हें अब समझ में आया था।
बच्चों ने खाला का शुक्रिया अदा किया और जाने के लिए उठ खड़े हुए। जाते-जाते रेहाना ने कहा, “खाला, बस एक आखिरी सवाल और है! घर पर अभी जो दो कूड़ेदान हैं वो भी क्या गंगाबाई का सुझाव था?"
खाला हँसने लगी। बोली, "अरे नहीं-नहीं! यह तो नगर निगम ने ही सुझाव दिया था कि हम खाने-पीने और गलने वाली चीजों को एक कूड़ेदान में डालें और प्लास्टिक, काँच जैसी गलने वाली चीजों को दूसरे कूड़ेदान में। जब हम अपने कचरे की छंटाई कर देते हैं तो निगम वालों का काम थोड़ा आसान हो जाता है।"
बच्चों ने इतने सारे सवालों का जबाब देने के लिए खाला का फिर से शुक्रिया अदा किया और टहलते हुए गली की तरफ चल पड़े। बहुत देर हो चुकी थी और उन्हें जल्दी से जल्दी घर पहुंचना था। आज हमेशा के मुकाबले गली में अंधेरा थोड़ा ज्यादा था। उन्होंने ऊपर देखा, फिर मुस्कराते हुए एक-दूसरे को देखा और वापस खाला के घर की तरफ दौड़ पड़े...
1994 में सूरत शहर में भयंकर प्लेग फैला था। सूरत भारत के सबसे गदै शहरों में एक था। लोग घरों का और होटलों का भी कूड़ा-कचरा पास की नाली में या सड़क पर ही फेंक देते थे। इससे सफ़ाई कर्मचारियों को कूड़ा-कचरा उठाने तथा उसे ठिकाने लगाने में काफी मुश्किल होती थी। ऊपर से नगर निगम अपना काम नियमित रूप से नहीं कर रही थी जिससे स्थिति और भी बदतर हो गयी थी।
प्लेग हवा के जरिए फैलता है। जिन लोगों को प्लेग हो जाए उन्हें दूसरों से अलग रखना पड़ता है। सूरत में उस साल बहुत से लोगों ने अपनी जान गंवाई। करीब तीन लाख से अधिक लोगों को शहर छोड़ना पड़ा। प्लेग के डर ने यह अनिवार्य कर दिया कि नगर निगम मुस्तैदी से काम करे। सारे शहर की अच्छी तरह से सफ़ाई हुई। आज की तारीख में चंडीगढ़ के बाद भारत के सबसे साफ शहरों में दूसरा स्थान सूरत का है।
क्या आप जानती हैं कि आपके मोहल्ले में कब और कितनी बार कूड़ा उठाया जाता है? क्या आपको लगता है कि सभी मोहल्लों में उतनी ही बार कूड़ा उठाया जाता है? यदि नहीं, तो क्यों? चर्चा करें।
क्या आप जानते है कि सरकार आपके करों से ही सड़क, पुल, पार्क एवं गलियों में मिजली इत्यादि की व्यवस्था करती है? अपने परिवार में इस बारे में बातचीत कीजिए और करों से मिलने वाले तीन अन्य लाभों की सूची बनाइए।
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अभ्यास
- बच्चे यास्मीन खाला के घर पर क्यों गए?
- नगर निगम के कार्य शहर के निवासियों के जीवन को किस तरह प्रभावित करते हैं? ऐसे चार तरीकों के बारे में लिखिए।
- नगर निगम पार्षद कौन होता है?
- गंगाबाई ने क्या किया और क्यों?
- नगर निगम अपने काम के लिए धन कहाँ से प्राप्त करता है?
- चर्चा कीजिए :
नीचे दिए गए चित्रों में कूड़ा इकट्ठा करने एवं उसको ठिकाने लगाने की विभिन्न विधियों को देखें।
चित्र 1
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चित्र 2
(क) आपके विचार से कौन-सी विधि कूड़े का निपटारण करने वाले व्यक्ति
के लिए सुरक्षित है?
(ख) पहले चित्र में कूड़ा इकट्ठा करने का जो तरीका दिखाया गया है उसमें
क्या-क्या जोखिम है?
(ग) आप क्या सोचती हैं कि जो लोग नगर निगमों में काम करते हैं उनके
पास अपने कूड़े के निपटारण की व्यवस्थित सुविधाएँ क्यों नहीं हैं?
7 . शहर में बहुत सारे लोग घरेलू नौकरों की तरह काम करते हैं और दूसरे घरों को साफ़ रखते हैं। उसी तरह बहुत से लोग नगर निगम के लिए काम करते हैं और शहर को साफ-सुथरा रखते हैं। इसके बावजूद जिन बस्तियों में वे रहते हैं, वहाँ काफ़ी गंदगी होती है। इसका कारण यह है कि इन बस्तियों में पानी एवं सफाई की सुविधा विरले ही होती है। नगर निगम इसके लिए अक्सर बस्तीवासियों को ही दोषी ठहराती है कि जिस जमीन पर वे गरीब लोग अपना मकान बनाते हैं वह उनकी नहीं होती और न ही वे सरकार को कोई कर देते हैं। जबकि मध्यवर्ग के रिहायशी इलाकों में पार्क बनाने, गलियों में रोशनी की व्यवस्था करने और नियमित कूड़ा जमा करने आदि के काम पर जितना नगर निगम खर्च करता है, उसकी तुलना में वहाँ रहने वाले लोग बहुत कम कर देते हैं। पाठ में भी आपने पढ़ा है कि नगर निगम को संपत्ति कर से कुल 25-30 प्रतिशत ही आय होती है।क्या आपको लगता है कि निगम को बस्तियों की सफाई पर ज्यादा खर्च करना चाहिए? यह क्यों महत्वपूर्ण है? और यह क्यों ज़रूरी है कि शहर में नगर निगम जो सुविधाएँ धनी व्यक्तियों को मुहैया कराता है वही गरीबों को भी मिलें?
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- नीचे दिए गए चित्र को देखें।
भारत सरकार ने देशभर के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सफाई को बढ़ावा देने के लिए 2 अक्तूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन का शुभारंभ किया। “स्वच्छ भारत, स्वच्छ विधालय" अभियान के तहत, विधार्थियों के बीच स्वच्छता और साफ-सफाई के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए स्कूलों में कई गतिविधियाँ भी चलाई जा रही हैं। आपके इलाके में नगरपालिका/पंचायत द्वारा चलाए जा रहे "स्वच्छ भारत अभियान" के तरीकों को देखें। एक पोस्टर तैयार करें और इसे अपने स्कूल में प्रदर्शित करें।