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अध्याय - 8

ग्रामीण   क्षेत्र   में   आजीविका

क्यू आर कोड।

पहले पाठ में हमने अपने जीवन में मौजूद अनेक तरह की विविधताओं पर नजर डाली। हमने इस पर भी विचार किया कि अलग-अलग क्षेत्रों में रहने से वहाँ के लोगों के काम-धंधे पर कैसे असर पड़ता है। वहाँ पर पाए जाने वाले पेड़-पौधे, वहाँ की फ़सलें या दूसरी चीजें किस तरह उनके लिए महत्वपूर्ण हो जाती हैं। इस पाठ में हम यह देखेंगे कि गाँव में लोग किन विभिन्न तरीकों से अपनी आजीविका चलाते हैं। पहले दो पाठों की तरह यहाँ भी हम इसकी पड़ताल करेंगे कि क्या लोगों के पास आजीविका चलाने के समान अवसर उपलब्ध हैं या नहीं। उनके जीवन की परिस्थितियाँ एक-दूसरे से कितनी मिलती-जुलती हैं और वे किन समस्याओं का सामना करते हैं, इसे भी हम देखेंगे।

लोग जो गतिविधियाँ कर रहे हैं वे हैं निर्माण कार्य, एक आदमी ठेले पर सब्ज़ियाँ बेच रहा है, मछली पकड़ रहा है, एक आदमी छोटी दुकान में सामान बेच रहा है, एक आदमी फ़सलों में पानी दे रहा है, एक लड़की एक पेड़ से फल इकट्ठा कर रही है।

  • ऊपर दी गई तस्वीरों में लोग जो काम करते हुए दिख रहे हैं, उस काम का वर्णन कीजिए।
  • खेती से जुड़े कार्मों को अलग कीजिए और जो काम खेती से जुड़े हुए नहीं हैं, उनकी एक सूची बनाइए।
  • आपने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को कई तरह के काम करते हुए देखा है। उनमें से कुछ का चित्र बनाकर उनके बारे में लिखिए।

78 / सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन

कलपटटु   गाँव

मिलनाडु में समुद्र तट के पास एक गाँव है कलपटटु। यहाँ लोग कई तरह के काम करते हैं। दूसरे गाँवों की तरह यहाँ भी खेती के अलावा कई काम होते हैं, जैसे टोकरी, बर्तन, घड़े, ईंट, बैलगाड़ी इत्यादि बनाना।

   कलपटटु में कुछ लोग नर्स, शिक्षक, धोबी, बुनकर, नाई, साइकिल ठीक करने वाले और लोहार के रूप में अपनी सेवाएं देते हैं। यहाँ कुछ दुकानदार एवं व्यापारी भी हैं। जो मुख्य गली है वह बाजार की तरह दिखती है। उसमें आपको तरह-तरह की कई छोटी दुकानें दिखेंगी जैसे चाय, सब्जी, कपड़े की दुकान तथा दो दुकानें बीज और खाद की। चार दुकानें चाय की हैं जहाँ 'टिफ़िन' भी मिलता है। यहाँ टिफ़िन का मतलब है खाने-पीने की हल्की-फुल्की चीजें, जैसे सुबह इडली, डोसा व उपमा मिलता है और शाम के नाश्ते में वड़ा, बौंडा व मैसूरपाक मिलता है। चाय की दुकानों के पास एक कोने में एक लोहार का परिवार रहता है। उसके घर में ही लोहे की चीजें बनाने का काम होता है। बगल में साइकिल की मरम्मत की एक दुकान है। वहाँ साइकिल किराए पर भी मिलती है। गाँव में दो परिवार कपड़े धोकर अपनी आजीविका चलाते हैं। कुछ लोग पास के शहर में जाकर मकान बनाने और लॉरी चलाने का काम करते हैं।

   गाँव छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। सिंचित ज़मीन पर मुख्यतः धान की खेती होती है। ज्यादातर परिवार खेती के द्रारा अपनी आजीविका कमाते हैं। यहाँ आम और नारियल के काफ़ी बाग हैं। कपास, गन्ना और केला भी उगाया जाता है। आइए, कुछ लोगों से मिलें जो कलपटटु के खेतों में काम करते हैं और देखें कि हम उनकी आजीविका के बारे में क्या सीख सकते हैं।

कृषि क्षेत्र में काम कर रहे  कुछ पुरुष और महिलाएं।

धान की रोपाई कमरतोड़ काम होता है।

79 / ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका

तुलसी

हम सब यहाँ रामलिंगम की जमीन पर काम करते हैं। उसके परिवार के पास कलपटटु में बीस एकड़ धान के खेत हैं। शादी से पहले भी मैं मायके में धान के खेतों में ही मजदूरी करती थी। यहाँ मैं सुबह 8.30 से शाम 4.30 तक काम करती हूँ। रामलिंगम की पत्नी करुथम्मा काम की निगरानी करती है।

   साल में कुछ ही मौके ऐसे होते हैं जब मुझे नियमित रूप से मजदूरी मिलती है। यह उन मौकों में से एक है। मैं धान रोप रही हूँ। जब धान की फसल थोड़ी बढ़ जाएगी तो रामलिंगम हमें निराई के लिए और बाद में कटाई के लिए बुलाएगा।

   जब मैं कम उम्र की थी तो निराई-कटाई का काम आसानी से कर लेती थी। लेकिन अब जैसे-जैसे उम्र हो रही है मुझे झुककर काम करने और देर तक पानी में पैर डुबोए रहने से तकलीफ़ होती है। रामलिंगम एक दिन का 40 रुपया मजदूरी देता है। मेरे गाँव में मजदूरी के 'रेट' से यह थोड़ा कम है। फिर भी मैं मजदूरी के लिए यहीं आती हूँ। रामलिंगम पर मुझे भरोसा है कि काम होने पर वह मुझे ही बुलाएगा। बाकी लोगों की तरह वह आस-पड़ोस के गाँवों में सस्ते मज़दूर ढूँढ़ने नहीं जाता।

   मेरा पति रमन भी एक मज़दूर है। हमारे पास कोई ज़मीन नहीं है। साल के इन महीनों में वह खेतों में कीड़ों की दवाई छिड़कता है। जब खेतों में कोई काम नहीं मिलता तो उसे पास की खान से पत्थर या नदी से बालू ढोने का काम मिल जाता है। ये पत्थर और बालू पास के शहरों में मकान बनाने के लिए ट्रक से ले जाए जाते हैं। खेत में काम करने के अलावा मैं घर का सारा काम करती हूँ। मैं घर में सबके लिए खाना बनाती हूँ, कपड़े धोती हूँ और सफ़ाई करती हूँ। दूसरी औरतों के साथ जाकर जंगल से लकड़ी भी लाती हूँ। गाँव से करीब एक किलोमीटर दूर ‘बोरवेल' है जहाँ से पानी लेकर आती हूँ। मेरा पति घर का सामान जैसे साग-सब्जी खरीदने में मेरी मदद करता है।

एक वृत्त को बारह भागों में बांटा गया है, जिसमें जनवरी से दिसंबर तक के महीनों को दर्शाया गया है। मई और जून के कॉलम में बीड़ा बनाना  लिखा है, रोपाई जुलाई और अगस्त में लिखी  है, निराई सितंबर में अक्टूबर में और कटाई नवंबर में दिसंबर में लिखी  है।

क्या तुलसी को साल भर कमाई के मौके मिलते हैं? ऊपर दिए गए चित्र के आधार पर बताइए।

80 / सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन

   हमारी दो बेटियाँ हमारे जीवन की खुशी हैं। दोनों ही स्कूल जाती हैं। पिछले साल एक बेटी बीमार पड़ गई थी तो उसे शहर के अस्पताल ले जाना पड़ा। हमने उसके इलाज के लिए रामलिंगम से उधार लिया था और उस उधार को चुकाने के लिए हमें अपनी गाय बेचनी पड़ी।

  1. तुलसी के काम का विवरण दीजिए। यह रमन के काम से कैसे अलग है?
  2. तुलसी को अपने काम के लिए बहुत कम पैसा मिलता है। आपकी समझ में खेतों में काम करने वाले मजदूरों को कम पैसे पर काम क्यों करना पड़ता है?
  3. आपके क्षेत्र में या पास के गाँव में कौन-सी फ़सलें उगाई जाती हैं? वहाँ खेतिहर मजदूर किस तरह का काम करते हैं?
  4. अगर तुलसी के पास खेती की जमीन होती तो उसकी कमाई यानी आजीविका के तरीके कैसे अलग होते? चर्चा कीजिए।

   जैसा कि आपने तुलसी की कहानी में पढ़ा ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवारों का बहुत सारा समय पानी और जलावन की लकड़ी लाने एवं जानवर चराने में बीतता है। इन कामों से कोई पैसा नहीं मिलता है, लेकिन गरीब परिवारों में ये काम बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। वे मजदूरी से जो थोड़ा-सा पैसा कमाते हैं उससे गुज़ारा नहीं होता। घर चलाने और जिंदगी बसर करने के लिए इन कामों को करना पड़ता है।

   हमारे देश के ग्रामीण परिवारों में से करीब 40 प्रतिशत खेतिहर मजदूर हैं। कुछ के पास जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं, बाकी तुलसी की तरह भूमिहीन हैं। कई बार जब पूरे साल उन्हें काम नहीं मिल पाता तो मजबूरन काम की खोज में उन्हें दूर-दराज के इलाकों में जाना पड़ता है। इस तरह का पलायन कुछ विशेष मौसमों में ही होता है।

शेखर  

हमें यह धान अपने घर लेकर जाना है। मेरे परिवार ने अभी-अभी फ़सलों की कटाई पूरी की है। हमारे पास बस दो एकड़ जमीन है। हम अपने खेत का सारा काम खुद ही कर लेते हैं। मैं कई बार कटाई के समय दूसरे छोटे किसानों की मदद ले लेता हूँ और बदले में उनके खेतों में कटाई करवा देता हूँ।

   व्यापारी मुझे उधार पर बीज और खाद देता है। इसे चुकाने के लिए मुझे थोड़े कम दामों पर उसे धान बेचना पड़ता है। अगर बाज़ार में बेचूं तो ज्यादा पैसे मिल जाएंगे। लेकिन मुझे उधार भी तो चुकाना है। व्यापारी ने किसानों को याद दिलाने के लिए अपना एजेंट भेजा है कि जिन किसानों ने उधार लिया है वे उसी को अपना धान बेचें। मुझे अपने खेत से 60 बोरी धान मिलेगा। इनमें से कुछ से मैं अपना उधार चुका दूंगा और बाकी घर में लग जाएगा।

81 / ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका

लेकिन मेरे हिस्से में जो आता है वह सिर्फ आठ महीने तक ही चल पाता है। इसलिए मुझे और पैसा कमाने की ज़रूरत पड़ती है। इसके लिए मैं रामलिंगम की चावल की मिल में काम करता हूँ। वहाँ मैं पड़ोसी गाँव के किसानों से धान इकट्ठा करने में उसकी मदद करता हूँ। हमारे पास एक संकर गाय भी है। उसका दूध हम यहीं की सहकारी समिति में बेच देते हैं। इससे रोज़ के खर्चों के लिए थोड़ा और पैसा मिल जाता है।

कुछ लोग खेत में काम कर रहे हैं और खेत में ट्रैक्टर जैसी बड़ी मशीन भी है और उसके ऊपर एक आदमी बैठा है।

कर्ज   लेने   पर

जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कई बार शेखर जैसे किसान जरूरी चीजें खरीदने के लिए पैसा कर्ज लेते हैं। अक्सर ये पैसा बीज, खाद और कीटनाशक खरीदने के लिए साहूकार से कर्ज


  • शेखर का परिवार क्या काम करता है? आपके विचार से शेखर दूसरे मजदूरों को अपने खेत पर काम करने के लिए क्यों नहीं लगाता?
  • शेखर शहर के बाजार में अपना धान क्यों नहीं बेच पाता?
  • शेखर की बहन मीना ने भी व्यापारी से उधार लिया था, परंतु वह अपना धान उसको नहीं बेचना चाहती। उसने व्यापारी के एजेंट से कहा कि वह अपना उधार चुका देगी। मीना और व्यापारी के एजेंट के बीच में इसको लेकर क्या बातचीत हुई होगी? दोनों के तर्कों को लिखिए।
  • शेखर और तुलसी के जीवन में क्या समानताएँ हैं और क्या अंतर है? आपके उत्तर के निम्न लिखित आधार हो सकते हैं उनके पास कितनी ज़मीन है, उनको उधार क्यों लेना पड़ता है, उनकी कमाई के साधन क्या हैं और उन्हें दूसरों की जमीन पर काम करने की क्या ज़रूरत है।

82 / सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन

लिया जाता है। अगर बीज अच्छी किस्म के नहीं होते या फ़सल को कीड़ा लग जाता है तो पूरी फ़सल बर्बाद हो सकती है। बारिश पूरी नहीं होने पर भी फ़सल खराब हो सकती है। ऐसी स्थिति में किसान अपना उधार नहीं चुका पाते। कई बार परिवार चलाने के लिए उन्हें और पैसा कर्ज के तौर पर लेना पड़ता है।

   जल्दी ही कर्ज इतना बढ़ जाता है कि किसान कितना भी कमा ले, वह उसे चुका नहीं पाता। इस स्थिति में कहते हैं कि किसान कर्ज तले दब गया। पिछले कुछ सालों में यह किसानों की विपदा का मुख्य कारण बन गया है। कई क्षेत्रों में किसानों ने कर्ज के बोझ से दबकर आत्महत्या तक कर ली है।

रामलिंगम   और   करुथम्मा  

जमीन के अलावा रामलिंगम के परिवार के पास एक चावल की मिल है और बीज व कीटनाशक बेचने के लिए एक दुकान है। चावल की मिल में उन्होंने कुछ अपना पैसा

एक बड़ी हरी भूमि।

रामलिंगम की 20 एकड़ शमीन के एक हिस्से पर रोपी गई धान की फ़सल - तुलसी जैसे खेतिहर मजदूरों की कड़ी मेहनत का नतीजा है

तुलसी और शेखर का विवरण दोबारा पढ़िए। वे बड़े किसान रामलिंगम के बारे में क्या कहते हैं? इसके साथ जो आपने रामलिंगम के बारे में पढ़ा, उसे जोड़ते हुए निम्नलिखित सवालों का जवाब दीजिए –

  • उसके पास कितनी जमीन है?
  • अपनी ज़मीन पर उगने वाले धान का वह क्या करता है?
  • खेती के अलावा उसकी कमाई के और क्या साधन हैं?

लगाया और थोड़ा सरकारी बैंक से कर्ज लिया था। वे कलपटु और आस-पास के गाँवों से ही धान खरीदते हैं। मिल का चावल आस-पास के शहरों के व्यापारियों को बेचा जाता है। इससे उनकी अच्छी खासी कमाई हो जाती है।

भारत   के   खेतिहर   मजदूर   और   किसान  

कलपटटु गाँव में तुलसी की तरह के खेतिहर मजदूर हैं, शेखर की तरह के छोटे किसान हैं और रामलिंगम जैसे बड़े किसान हैं। भारत में प्रत्येक पाँच ग्रामीण परिवारों में से लगभग दो परिवार खेतिहर मजदूरों के हैं। ऐसे सभी परिवार अपनी कमाई के लिए दूसरों के खेतों पर निर्भर रहते हैं। इनमें से कई भूमिहीन हैं और कइयों के पास जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं।

   शेखर जैसे छोटे किसानों को लें तो उनकी जरूरतों के हिसाब से खेत बहुत ही छोटे पड़ते हैं। भारत के 80 प्रतिशत किसानों की यही हालत है। भारत में केवल 20 प्रतिशत किसान रामलिंगम जैसे बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे किसान गाँव की अधिकतर जमीन पर  

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खेती करते हैं। उनकी उपज का बहुत बड़ा भाग बाजार में बेचा जाता है। कई बड़े किसानों ने अन्य काम-धंधे भी शुरू कर दिए हैं जैसे दुकान चलाना, सूद पर पैसा देना, छोटी-छोटी फैक्ट्रियाँ चलाना इत्यादि।


ऊपर दिए गए आँकड़ों को देखते हुए क्या आप यह कह सकते हैं कि भारत के अधिकतर किसान गरीब हैं? आपकी राय में इस स्थिति को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है?


   हमने कलपटटु में होने वाली खेती के बारे में पढ़ा। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के साथ-साथ लोग जंगल की उपज और पशुओं आदि पर निर्भर रहते हैं। उदाहरण के लिए मध्य भारत के कुछ गाँवों में खेती और जंगल की उपज दोनों ही आजीविका के महत्वपूर्ण साधन हैं। महुआ बीनने, तेंदू के पत्ते इकट्ठा करने, शहद निकालने और इन्हें व्यापारियों को बेचने जैसे काम अतिरिक्त आय में मदद करते हैं। इसी तरह सहकारी समिति को या पास के शहर के लोगों को दूध बेचना भी कई लोगों के लिए आजीविका कमाने का मुख्य साधन है।

   समुद्रतटीय इलाकों में हम देखते हैं कि पूरे के पूरे गाँव मछली पकड़ने में लगे हुए हैं। आइए, अरुणा और पारिवेलन के जीवन के बारे में पढ़कर मछली पकड़ने वाले एक परिवार के बारे में थोड़ा और जानें। यह परिवार कलपटटु के पास पुदुपेट नाम के गाँव में रहता है।

सीढ़ीदार खेती के लिए सीढ़ियों में उकेरी गई पहाड़ी पर भूमि।

नागालैंड की सीढ़ीनुमा खेती

यह एक गाँव है जिसका नाम चिजामी है। यह नागालैंड के फेक जिले में है। इस गाँव में रहने वाले लोग चखेसंग समुदाय के हैं। वे 'सीढ़ीनुमा' खेती करते हैं। इसका मतलब है कि पहाड़ी की ढलाऊ जमीन को छोटे-छोटे सपाट टुकड़ों में बाँटा जाता है और उस ज़मीन को सीढ़ियों के रूप में बदल दिया जाता है। प्रत्येक सपाट टुकड़े के किनारों को ऊपर उठा देते हैं जिससे पानी भरा रह पाए, यह चावल की खेती के लिए सबसे अच्छा है।

चिजामी के लोगों के पास अपने-अपने खेत हैं, लेकिन वे इकट्टे होकर एक-दूसरे के खेतों में भी काम करते हैं। वे छ: से आठ लोगों का एक समूह बनाते हैं और इकट्ठे मिलकर पहाड़ के एक हिस्से पर घास-पतवार साफ़ करते हैं। जब दिन का काम खत्म हो जाता है तो सारा समूह इकट्ठे बैठकर खाना खाता है। ऐसा कई दिनों तक चलता रहता है जब तक काम खत्म नहीं हो जाता।

84 / सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन

जाल का उपयोग कर जलाशय में मछली पकड़ते ग्रामीण।

अरुणा   और   पारिवेलन  

पुदुपट कलपटटु से ज्यादा दूर नहीं है। यहाँ लोग मछली पकड़कर अपनी आजीविका चलाते हैं। उनके घर समुद्र के पास होते हैं और वहाँ चारों ओर जाल और 'कैटामरैन' (मछुआरों की खास तरह की छोटी नाव) की पॉक्तियाँ दिखाई देती हैं। सुबह 7 बजे समुद्र किनारे बड़ी गहमागहमी रहती है। इस समय सारे कैटामरैन मछलियाँ पकड़ कर लौट आते हैं। मछली खरीदने और बेचने के लिए बहुत सारी औरतें इकट्ठी हो जाती हैं।

   मेरा पति पारिवलन, मेरा भाई और जीजा आज बड़ी देर से लौटे। मैं बहुत परेशान हो गई थी। ये हमारे कैटामरैन में इकट्ठे ही समुद्र में जाते हैं। उन्होंने बताया कि आज वे तूफान में फंस गए थे।

   आज जो मछलियाँ पकड़ी गईं उनमें से मैंने परिवार के लिए कुछ मछलियाँ एक तरफ उठा कर रख दीं। बाकी मैं नीलाम कर दूंगी। इस नीलामी से जो पैसा मुझे मिलता है वह चार भागों में बैट जाता है। तीन हिस्से उन तीन लोगों में बँट जाते हैं जो मछली पकड़ने जाते हैं, बाकी एक हिस्सा उसे मिलता है जिसकी नाव और जाल वगैरह होते हैं। चूँकि जाल, कैटामरैन और उसका इंजन हमारे हैं तो वह हिस्सा भी हमें ही मिल जाता है। हमने बैंक से उधार लेकर एक इंजन खरीदा है, जो कैटामरैन में लगा हुआ है। इससे ये लोग समुद्र में दूर तक जा पाते हैं और ज्यादा मछलियाँ मिल जाती हैं।

   नीलामी में जो औरतें यहाँ से मछलियाँ खरीदती हैं वे टोकरे भर-भरकर पास के गाँवों में बेचने के लिए ले जाती हैं। कुछ व्यापारी भी हैं जो शहर की दुकानों के लिए मछलियाँ खरीदते हैं। मैं दोपहर 12 बजे तक ही नीलामी का काम निपटा पाती हूँ। शाम को मेरा पति और बाकी रिश्तेदार मिलकर जाल को सुलझाते हैं और उसकी मरम्मत करते हैं। कल सुबह-सुबह दो बजे वे फिर समुद्र की तरफ चल देंगे। हर साल मॉनसून के दौरान करीब चार महीने तक वे समुद्र में नहीं जा पाते क्योंकि यह मछलियों के प्रजनन का समय

85 / ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका

बाजार में मछली बेचती महिला।

स्थानीय बाजार में मछलियाँ बंचती हुई मछुआरिनें

होता है। इन महीनों में हम व्यापारी से उधार लेकर अपना गुजारा चलाते हैं। इस कारण बाद में हमें मजबूरी में उसी व्यापारी को मछली बेचनी पड़ती है और हम खुद खुली नीलामी

  • शेखर और अरुणा दोनों के ही परिवारों को उधार क्यों लेना पड़ता है? आपको उनमें क्या समनाताएँ और क्या अंतर दिखते हैं?
  • क्या आपने सुनामी के बारे में सुना है? यह क्या होता है? इससे अरुणा जैसे परिवारों को क्या नुकसान हुआ होगा?  

नहीं कर पाते। वे खाली महीने काटना सबसे मुश्किल होता है। पिछले साल सुनामी के कारण हमारा बड़ा नुकसान हुआ।

ग्रामीण   क्षेत्रों   में   आजीविका   के   साधन

ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपनी आय विभिन्न तरीकों से कमाते हैं। कुछ खेती-बाड़ी का काम करते हैं और कुछ अन्य काम करके अपनी आजीविका चलाते हैं। खेती में कई तरह के काम शामिल हैं, जैसे खेत तैयार करना, रोपाई, बुवाई, निराई और कटाई। फ़सल अच्छी हो इसके लिए हम प्रकृति पर निर्भर हैं। इस तरह जीवन ऋतुओं के इर्द-गिर्द ही चलता है। बुवाई और कटाई के समय लोग काफी व्यस्त रहते

86 / सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन

हैं और दूसरे समय काम का बोझ कम रहता है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में ग्रामीण लोग अलग-अलग तरह की फ़सलें उगाते हैं। फिर भी हम उनके जीवन की परिस्थितियों में और उनकी समस्याओं में काफी समानताएँ पाते हैं।

   लोग कैसे जिंदगी बसर करते हैं और कितना कमा पाते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे जिस जमीन को जोतते हैं वह कैसी है। कई लोग उस ज़मीन पर मजदूरों के रूप में निर्भर हैं। ज्यादातर किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने और बाजार में बेचने के लिए भी फ़सलें उगाते हैं।

   कुछ किसानों को अपनी फसल उन व्यापारियों को बेचनी पड़ती है जिनसे वे पैसा उधार लेते हैं। गुजर-बसर करने के लिए कई परिवारों को काम की खातिर उधार लेना पड़ता है या फिर तब लेना पड़ता है जब उनके पास कोई काम नहीं रहता। ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ परिवार ऐसे हैं जो बड़ी-बड़ी जमीनों, व्यापार और अन्य काम-धंधों पर फल-फूल रहे हैं। फिर भी ज्यादातर छोटे किसानों, खेतिहर मजदूरों, मछली पकड़ने वाले परिवारों और गाँव में हस्तशिल्प का काम करने वाले लोगों को पूरे साल रोजगार नहीं मिल पाता।

अभ्यास  

  1. आपने संभवतः इस बात पर ध्यान दिया होगा कि कलपटटु गाँव के लोग खेती के अलावा और भी कई काम करते हैं। उनमें से पाँच कामों की सूची बनाइए।
  2. कलपटटु में विभिन्न तरह के लोग खेती पर निर्भर हैं। उनकी एक सूची बनाइए। उनमें से सबसे गरीब कौन है और क्यों?
  3. कल्पना कीजिए कि आप एक मछली बेचने वाले परिवार की सदस्य हैं। आपका परिवार यह चर्चा कर रहा है कि इंजन के लिए बैंक से उधार लें कि न लें। आप क्या कहेंगी?
  4. तुलसी जैसे गरीब ग्रामीण मजदूरों के पास अक्सर अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाओं एवं अन्य साधनों का अभाव होता है। आपने इस किताब की पहली इकाई में असमानता के बारे में पढ़ा। तुलसी और रामलिंगम के बीच का अंतर एक तरह की असमानता ही है। क्या यह एक उचित स्थिति है? आपके विचार में इसके लिए क्या किया जा सकता है? कक्षा में चर्चा कीजिए।
  5. आपके अनुसार सरकार शेखर जैसे किसानों को कर से मुक्ति दिलाने में कैसे मदद कर सकती है? चर्चा कीजिए।

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  1. नीचे दी गई तालिका भरते हुए शेखर और रामलिंगम की स्थितियों की तुलना कीजिए:

शेखर

रामलिंगम

खेती की हुई ज़मीन

मजदूरों की जरूरत

उधार की ज़रूरत

फ़सल का बिकना

उनके द्रारा किया गया अन्य काम